शोध आलेख : हिंदी सिनेमा में अभिव्यक्त वृद्ध मनोभाव / कोमल कुमारी

हिंदी सिनेमा में अभिव्यक्त वृद्ध मनोभाव
- कोमल कुमारी

सौजन्य: आईएमडीबी

शोध सार : सिनेमा का मुख्य उद्देश्य मनोरंजन करना तो हैं हीं उसके साथ-साथ दर्शक गण को एक ऐसे संसार में ले जाना है, जो वास्तविक दुनिया से पूरी तरह अलग है। प्रस्तुत शोध पत्र का उद्देश्य हिन्दी सिनेमा में उपस्थित वृद्ध व्यक्तियों का चित्रण करना हैं, जिनकी उम्र 60 वर्ष से अधिक या 60 के इर्द-गिर्द है। फिल्म में चित्रित वृद्ध पात्रों को केंद्र में रखकर निर्देशित की गयी फिल्मों को शोध आलेख हेतु चयन किया गया है। इस शोध पत्र के लिए मुख्यतः बारह फिल्मों को आधार बनाया गया है। फिल्मों की सूची कुछ इस प्रकार है- मोहन कुमार द्वारा निर्देशित फिल्म-'अवतार' 1983, मोहन कुमार द्वारा निर्देशित फिल्म-'अमृत' 1986, सुभाष अग्रवाल द्वारा निर्देशित फिल्म-'रूई का बोझ' 1997, रवि चोपड़ा द्वारा निर्देशित फिल्म-'बागवान' 2003, दिबाकर बनर्जी द्वारा निर्देशित फिल्म-'खोसला का घोसला' 2006, आर. बाल्की द्वारा निर्देशित फिल्म-'चीनी कम' 2007, होमी अदजानिया द्वारा निर्देशित फिल्म-'फाइंडिंग फैनी' 2014, शूजित सरकार द्वारा निर्देशित फिल्म-'पीकू' 2015, शुभाशीष भूटियानी द्वारा निर्देशित फिल्म-'मुक्ति भवन' 2016, उमेश शुक्ला द्वारा निर्देशित फिल्म-'102 नॉट आऊट' 2018, सूरज बड़जात्या द्वारा निर्देशित फिल्म-'ऊंचाई' 2022, हितेश भाटिया द्वारा निर्देशित फिल्म-'शर्मा जी नमकीन' 2022 । वृद्ध व्यक्तियों को अनेक समस्याएं झेलनी पड़ती है जैसे शारीरिक समस्या, मानसिक समस्या, आर्थिक समस्या, पारिवारिक समस्या, सामाजिक समस्या, अकेलापन, स्वास्थ्य की समस्या आदि। इन समस्याओं के कहीं न कहीं कारण संयुक्त परिवार में विघटन, नई पीढ़ी की स्वार्थी मानसिकता, पीढ़ीगत अंतराल, पश्चिमी सभ्यता का प्रभाव आदि है। 

बीज शब्द : वृद्ध, सिनेमा, कमजोरी, परायापन, बुजुर्ग, अकेलापन, पारिवारिक मूल्य। 

मूल आलेख : वृद्धावस्था जीवन की अंतिम अवस्था है। भारतीय संस्कृति में वृद्ध व्यक्ति को परिवार का मुखिया माना जाता रहा है। 20 वीं सदी के उत्तरार्द्ध में पाश्चात् संस्कृति ने भारतीय पारिवारिक मूल्यों पर प्रहार किए, जिसके कारण वृद्धों की उपेक्षा दिनों-दिन घर परिवार में बढ़ती चली गई। आए दिन ऐसी घटना अब आम बात हो गई है। वृद्ध व्यक्ति अकेलेपन से चिंताग्रस्त दिखाई देते हैं, जिनसे उन्हें मानसिक एवं शारीरिक बीमारियों का सामना करना पड़ रहा है। ऐसी हीं वृद्धों की अकेलेपन की स्थिति का बखूबी बयान कृष्णेश्वर डींगर की कविता "वार्द्धक्य का आक्रमण" करती चलती है-

"शिशु कपोत से उड़ गए, छोड़ नीड का मोह
बूढे माता पिता को केवल मिला विछोह
कभी उठाते रिसीवर सुनते डायल टोन
'फोन ठीक' पर क्यों नहीं बच्चे करते फोन"

पारिवारिक संरचना में बदलाव से वृद्ध जीवन किस प्रकार प्रभावित है इसका स्पष्ट चित्रण करती है। वर्तमान युग में वृद्धों की दशा सोचनीय व चिंतनीय है। वृद्धावस्था की वैज्ञानिक परिभाषा कुछ इस प्रकार है- "किसी जीव या पदार्थ में समय के साथ इकट्ठे होने वाले परिवर्तनों को वृद्धावस्था (ब्रिटिश और ऑस्ट्रेलियन अंग्रेजी में Ageing) या उम्र का बढना (अमेरिकी और कैनेडियन अंग्रेजी में Aging) कहते हैं। मनुष्यों में उम्र का बढना शारीरिक, मानसिक और सामाजिक परिवर्तन की एक बहुआयामी प्रक्रिया को दर्शाता है।"2  मुख्य रूप से वृद्ध जीवन की अवस्था 60 वर्ष से शुरू होकर, जीवन के अंतिम पड़ाव तक चलती है।

वृद्ध होना एक जटिल प्रक्रिया है। वृद्ध जीवन की समस्या के विभिन्न पहलू हैं ; आत्मसम्मान की समस्या, शारीरिक दुर्बलता, आवास की समस्या, आर्थिक रूप से निर्भर, दुर्व्यवहार, अवसाद ग्रस्त आदि। "अमेरीका के कुछ विकासात्मक मनोवैज्ञानिकों ने वृद्धावस्था को उत्तर प्रौढ़ावस्था कहना प्रारंभ कर दिया है। इनके अनुसार समस्त वृद्धजनों को तीन वर्गों में विभाजित किया गया है-

(1) The young old - 65 to 75 Years
(2) The old, old - 75 to 85 Years
(3) The Oldest old - 95 to Above"3

प्रत्येक वर्ष 21 अगस्त को विश्व वरिष्ठ नागरिक दिवस पूरी दुनिया में वृद्धों के स्वास्थ एवं उनके खुशहाल जीवन के लिए मनाया जाता रहा है। कहीं न कहीं इस दिवस की जरुरत इसलिए पड़ी, ताकि वृद्ध जो उपेक्षित हो रहे हैं उनकी आवाज को सुना जा सके और उन्हें उचित सम्मान दिया जा सके। सिनेमा’ शब्द की यदि बात की जाए तो “सिनेमा शब्द फ़्रांसीसी भाषा  के Cinematographe से आता है जो मूलतः एक यूनानी शब्द Kinema पर आधारित है, जिसका अर्थ है गति या हरकत” सामाजिक परिवर्तन में सिनेमा सदैव आगे रहा है। जिस प्रकार साहित्य के अंतर्गत कहानी के छः तत्वों की बात की गयी है, ठीक उसी प्रकार से सिनेमा के भी विभिन्न तत्व दृष्टिगोचर होते हैं। प्रसून सिन्हा अपनी पुस्तक ‘भारतीय सिनेमा एक अनन्त यात्रा में सिनेमा को परिभाषित करते हैं- "सिनेमा, कला का वह सशक्त माध्यम है जो अपने दर्शकों को किसी खास विषय-वस्तु पर आधारित कथा को दिखाता है, बताता है और मनोरंजन करते हुए दर्शकों के हृदयों में गहरे उतर जाने की अभूतपूर्व क्षमता रखता है। सिनेमा, कहानी कहने का एक प्रभावशाली माध्यम है। अन्य कई कलाओं की तरह सिनेमा भी देश, काल, सामाजिक संरचना और व्यक्ति की समस्याओं से सीधा जुड़ा रहता है। सिनेमा, कला की कई विधाओं जैसे- साहित्य, चित्रकला, संगीत, नृत्य आदि का मिला-जुला रूप होता है। अर्थात् सिनेमा समग्रता का दूसरा नाम है।"4   सिनेमा, साहित्य और समाज का गहरा नाता रहा है। साहित्य के विषय में कहा भी गया है साहित्य समाज का दर्पण है समाज में जो भी कुछ घटित होता है उसकी स्पष्ट परछाईं साहित्य के पन्नों में साफ झलकती है, ठीक उसी प्रकार से सिनेमा भी समाज का दर्पण है। प्रेमचंद अपने एक लेख 'सिनेमा और जीवन' में साहित्य और सिनेमा के संबंध को इस प्रकार से समझाते हैं। उन्होंने लिखा “साहित्य जनरुचि का पथप्रदर्शक होता है, उसका अनुयायी नहीं। सिनेमा जनरुचि के पीछे चलता है, जनता जो कुछ मांगे वही देता है।”5  सिनेमा हमारे जीवन को कला के व्यापक रूप में प्रभावित करती चलती है। “हिंदी सिनेमा समाज का एक प्रमाणित और वैज्ञानिक दस्तावेज भले न हो लेकिन एक समाज उसके भीतर से रिफ्लेक्ट होता है। हम सभ्यता के और समय के जिस बिंदु पर खड़े है वहाँ सिनेमा हम पर असर डालता है। हमारी जिंदगी को गढ़ने-बिगाड़ने की कोशिश करता दिखता है। साथ ही दृश्य और श्रवण का यह माध्यम हमारी ज्ञानेन्द्रियों से अनुभूत नब्बे प्रतिशत सूचनाएँ मस्तिष्क तक पहुँचाने में सक्षम होता है। निश्चय ही फिल्में वह माध्यम हैं जो समाज में दर्पण, दीपक और दिगसूचक तीनों की भूमिका निभाती है।”5  सिनेमा कला का ऐसा माध्यम जो बहुत लोकप्रिय है। समय एवं समाज के लिए सिनेमा एक सशक्त माध्यम है। सामजिक बदलाव हेतु सिनेमा का निर्माण आवश्यक भी है। हिन्दी सिनेमा में वृद्ध व्यक्तियों की अपनी एक अलग दुनिया है। वृद्ध मन पर आधारित विषय पर हिन्दी सिनेमा में एक अलग स्थान बनाया है, इन फिल्मों ने अलग पहचान बनाई है। इनमें से चुनिंदा फिल्मों की मुख्य रूप से चर्चा करना इस शोध लेख में आवश्यक भी है -

       अवतार (1983) - निर्देशक और निर्माता-मोहन कुमार, संगीत-लक्ष्मीकांत प्यारेलाल, गीत-  आनंद बख्शी, कलाकार-राजेश खन्ना, शबाना आज़मी, सुजीत कुमार, ए.के. हंगल, गुलशन ग्रोवर, शशि पुरी, प्रीति सप्रू, सचिन, यूनुस परवेज़। मोहन कुमार द्वारा निर्देशित फिल्म 'अवतार' में अवतार किशन (राजेश खन्ना) की कहानी वर्णित है, जिसकी उम्र लगभग 60 से अधिक है। नई पीढ़ी, स्वार्थी मानसिकता और धन लोलुपता के कारण पुराने पीढ़ी अर्थात बुजुर्गों को किस प्रकार अकेला और बेसहारा छोड़ देती है इसका स्पष्ट चित्रण है। अवतार किशन (राजेश खन्ना) एक ऑटो मैकेनिक है, उसकी 25 साल की प्यारी पत्नी राधा (शबाना आज़मी) है। दो बड़े बेटे हैं, जिनकी सफलता के लिए अवतार किशन कड़ी मेहनत करते हैं परंतु आगे के दृश्य में स्थितियां बिल्कुल विपरीत हो जाती है। अवतार किशन और राधा के दोनों बेटे स्वार्थ लोलुपता से भरे होते हैं, वे अपने ही मां-बाप को घर से निकाल कर बेसहारा कर देते हैं। अंत में अवतार किशन का वफादार नौकर ही उन्हें सहारा देता है। बेटों द्वारा घर से निकाले जाने पर पत्नी राधा (शबाना आज़मी) कहती है – “आगे क्या होगा?” तब अवतार किशन कहता है- “अरे अच्छा हीं होगा। अरे पगली, औलाद धोखा दे गयी तो क्या ? मेरा तजुरबा मुझे कभी धोखा नहीं दे सकता। मैं एक कारीगर हूँ। मेरे हाथ में औज़ार आ जाए। मैं अपनी किस्मत खुद तलाश लूँगा” अवतार किशन का एक अलग रूप देखने को मिलता है, अपने बच्चों द्वारा अपमानित होने के कारण वे अपने पैरों पर खड़े होकर एक नया व्यवसाय शुरू करते हैं जिसमें उन्हें खूब तरक्की मिलती है। बेटों को सबक सिखाने का यह अच्छा हथियार भी साबित होता है। अवतार किशन का परोपकारी पक्ष भी स्पष्ट होता है- वे उन बुजुर्गों के लिए भी घर का निर्माण करते हैं, जिनके बच्चों ने उन्हें घर से बेदखल कर दिया है। 


       अमृत (1986) - निर्देशक और निर्माता- मोहन कुमार, संगीत-लक्ष्मीकांत प्यारेलाल, गीत-  आनंद बख्शी, कलाकार-राजेश खन्ना, स्मिता पाटिल, अरुणा ईरानी, शफी इनामदार, सतीश शाह, ज़रीना वहाब, मुकरी, सुजीत कुमार, दलजीत कौर। मोहन कुमार द्वारा निर्देशित फिल्म 'अमृत' दो भिन्न परिवार में रह रहें बुजुर्गों की त्रासदी को वर्णित करती है। एक ओर अमृत (राजेश खन्ना) अपने बेटे के साथ रहते हैं, वहीं दूसरी ओर कमला (स्मिता पाटिल) जो एक विधवा है वह भी अपने बेटे के साथ रहती है। अमृत और कमला दो अलग-अलग पात्र हैं जो विडंबनाओं में अपना जीवन यापन कर रहे हैं। इन दोनों को जोड़ने वाली कड़ी अमृत का पोता राहुल और कमला की पोती सुनीता है। इनको घर पर उचित सम्मान नहीं दिया जाता और ऊपर से नौकरों सा व्यवहार किया जाता है। अमृत और कमला के रिश्तों को लेकर अमृत का बेटा कहता है –“आपको शर्म आनी चाहिए बाबूजी। इस उम्र में एक घटिया रखैल को लेकर आप यहाँ पड़े हुए हैं” तब अमृत कहतें है-“शाबाश बेटे, शाबाश । बहुत बड़ा इनाम दिया है तूने मुझे । अपने बाप के सीने पर आवारा और बदमाश होने का तमगा लगा दिया । मेरे बेदाग बुढ़ापे पर कालिख पोत दी । एक देवी की ममता पर लांछन लगा दिया”


       रूई का बोझ (1997) - निर्देशक - सुभाष अग्रवाल, संगीत- के. नारायण, कलाकार-पंकज कपूर, रीमा लागू, रघुबीर यादव। सुभाष अग्रवाल द्वारा निर्देशित फिल्म 'रूई का बोझ' उपन्यास "गवाह गैरहाजिर" जो चंद्र किशोर जायसवाल का है, उस पर आधारित है। किशन शाह  (पंकज कपूर ) की कहानी बयां करती है, जिसकी उम्र 60 से अधिक है। इस फिल्म में यह दिखाया गया है कि किस प्रकार संतान संपत्ति का स्वामित्व बन जाता है और माता-पिता को बोझ समझता है। किशन शाह  (पंकज कपूर ) बुढ़ापे में अपना सर्वस्व धन अपने परिवार में बाँटकर अपने छोटे बेटे राम शरण (रघुबीर यादव) और छोटी बहु (रीमा लागू) के साथ रहने का फैसला करते हैं। एक जगह पर किशन शाह  (पंकज कपूर ) कहते हैं-"जरा भी ख्याल नहीं है किसी को इस घर में के एक बूढ़ा भी है l 8 महीना हो गया, तोता हो गया, करता रहे टेंटें l जब घर वालों को फुर्सत होगी तो दे जाएंगे दाना-पानी l पीठ दर्द की दवा ला दे रे बेटा ! ला दूंगा ! अरे धोती फट गई है रे रामशरण ! ला दूंगा ! हर बात पर ला दूंगा ! ला दूंगा ! लाता कभी नहीं l" किशन शाह (पंकज कपूर) छोटी-छोटी जरूरतों को पूरा करने के लिए भी अपने बेटे-बहू के सामने मोहताज है। बहू को चाय बनाने कहने पर दूध खत्म होने का जवाब सुनकर अपने आप में अपमानित व लज्जित महसूस करते हैं। किशन शाह खीझकर कह उठता है- “मैं बूढ़ा हूं इसलिए सही खा-पी नहीं सकता, सही कपड़े नहीं पहन सकता। क्या इस दुनिया में अकेला हूं जो बूढ़ा हुआ? क्या तुम सब कभी बूढ़े नहीं होगे?” किशन शाह का दोस्त उन्हें समझाता है कि- वृद्ध पिता अपने बेटे पर रूई के बोझ के समान होते हैं। जब तक वह हल्का है, तब तक ठीक  है। रूई के गीली होते हीं बच्चों को वे बोझ लगने लगते हैं, रूई का गीला होना अर्थात उम्र बढ़ाना। फिल्म में एक संवाद के जरिए पंकज कपूर (किसुन साह ) कहते हैं - “बाप वो संपत्ति होता है जिसे बेटा अपने भाइयों को देने के लिए हमेशा तैयार रहता है।” किशुनशाह के अनुभव के ज़रिए फिल्म कह गई कि "बूढ़ों के लिए कोई मौसम अच्छा नहीं होता। सारे मौसम उनके दुश्मन होते हैं और जब मौसम भी तकलीफदेह हो जाए तो फिर हमें समझ लेना चाहिए कि बुज़ुर्गों की तकलीफ बयान नहीं की जा सकती।"


       बागवान (2003) - निर्देशक -रवि चोपड़ा, निर्माता- बी आर चोपड़ा, संगीत-आदेश श्रीवास्तव, उत्तम सिंह, कलाकार-अमिताभ बच्चन, हेमामालिनी, सलमान ख़ान, परेश रावल, महिमा चौधरी, रिमी सेन, असरानी। रवि चोपड़ा द्वारा निर्देशित फिल्म 'बागवान' राज मल्होत्रा (अमिताभ बच्चन) और पूजा मल्होत्रा (हेमामालिनी) दो बुज़ुर्ग दंपत्ति की कहानी है। नौकरी से सेवानिवृत्त हुए राज मल्होत्रा, जिनकी उम्र 60 वर्ष के इर्द-गिर्द है। अपने बच्चों के भविष्य पर उन्होंने अपनी सारी जमा पूंजी खर्च कर दी। पैसे के अभाव में पूजा और राज मल्होत्रा अपने बेटों से देखभाल का अनुरोध करते हैं परंतु नालायक बेटे अपने हीं माता-पिता को अलग-अलग रखने में सहमति जताते हैं। बहू कहती है -"तो सब की फिलिंग्स को ध्यान में रखते हुए हमने यह तय किया है कि पापा मेरे साथ रहेंगे और मम्मी किरण के साथ रहेंगी l फिर 6 महीने के बाद पापा रोहित के साथ और मम्मी करण के साथ रहेंगी l" राज मल्होत्रा (अमिताभ बच्चन) कहते हैं -"नहीं , यह नामुमकिन है । बच्चे हमारा प्यार नहीं हमें बांटना चाह रहे हैं l ये इत्ता नहीं समझ पा रहे हैं कि उनके मां-बाप दो नहीं एक है।" राज मल्होत्रा जिसने पिता के रूप में बच्चों की हर जिद पूरी की, आज उन्हें लज्जित व अपमानित होना पड़ रहा है। पोते-पोतियों से प्यार और स्नेह पाकर वे अलग होकर भी खुशी-खुशी जीवनयापन कर रहे होते हैं। पत्र व्यवहार के माध्यम से राज और पूजा में बातचीत होती है। वहीं दूसरी ओर दत्तक पुत्र आलोक (सलमान ख़ान) द्वारा उन्हें वही सम्मान वापस मिलती है। इसी क्रम में राज मल्होत्रा बागबान नामक उपन्यास का सृजन करते हैं, जो उन्होंने व्यक्तिगत जीवन के अनुभव से प्रभावित होकर लिखते हैं। 

       खोसला का घोंसला (2006) - निर्देशक - दिबाकर बनर्जी, निर्माता - सविता राज हीरमथ, रॉनी स्क्रूवाला, कहानी-पटकथा-संवाद-गीत- जयदीप साहनी, संगीत - बापी-टुटुल, ध्रुव भल्ला, कलाकार- अनुपम खेर, बोमन ईरानी, प्रवीण दबास, तारा शर्मा, नवीन निश्चल, किरण जुनेजा, रणवीर शौरी, विनोद नागपाल, विनय पाठक, नितीश पाण्डे, राजेन्द्र सेठी, राजेश शर्मा, रूपम बाजवा। दिबाकर बनर्जी द्वारा निर्देशित फिल्म 'खोसला का घोंसला' कहानी एक 60 साल से अधिक बूढ़े व्यक्ति कमल किशोर खोसला (अनुपम खेर) के इर्द-गिर्द घूमती है। इनकी पत्नी सुधा खोसला ( किरण जुनेजा ), इनके छोटे बेटे चिरौंजीलाल खोसला / चेरी ( परवीन डबास ) है। इनका बड़ा बेटा बलवंत खोसला / बंटी ( रणवीर शौरी ), बेटी निक्की (रूपम बाजवा) के साथ नई दिल्ली में रहता है। कमल किशोर खोसला परिवार के लिए नया घर बनाना चाहते है, जिसके लिए वे एक प्लॉट खरीदते हैं। बिल्डर किशन खुराना (बोमन ईरानी) उसकी जमीन को जब्त कर लेता है। कमल किशोर खोसला के जीवन में काफी उतार-चढ़ाव आते रहते है, वह कहता भी है- अब यह सब नहीं संभाल सकता। कमल किशोर खोसला की इच्छा है कि उनका बेटा अमेरिका न जाए बल्कि वहीं परिवार के साथ भारत में रहे।  ये फिल्म दर्शाती है कि किस प्रकार एक बूढ़ा व्यक्ति अपने बच्चों पर निर्भर है। 


       चीनी कम (2007) - निर्देशक-आर. बाल्की, निर्माता - सुनील मनचन्दा, संगीत- इलैयाराजा, गीत-समीर, मनोज तापड़िया, कलाकार-तब्बू, अमिताभ बच्चन, परेश रावल, जोहरा सहगल। आर. बाल्की द्वारा निर्देशित फिल्म 'चीनी कम' एक 64 साल के बुद्धदेव गुप्ता (अमिताभ बच्चन) की कहानी है, जिसकी लंदन में एक रेस्तरां है। बुद्धदेव गुप्ता सख्त शेफ है। परिवार में केवल दो सदस्य हैं- मां (ज़ोहरा सहगल) एवं पड़ोसी, साथी के रूप में एक छोटा बच्चा जो कैंसर से पीड़ित है। एक दिन उनके रेस्टोरेंट में नीना वर्मा (तब्बू) जिसकी उम्र 34 साल की है, एक डिश हैदराबादी ज़ाफ़रानी पुलाव को 'मीठा' होने के कारण वापस कर देती है। इस घटना से बुद्धदेव गुप्ता को गुस्सा आता है जिसके कारण वह नीना वर्मा को अपमानित कर देते है। इस घटना के बाद बुद्धदेव नीना वर्मा से मिलते है, धीरे-धीरे उनमें दोस्ती होती फिर प्यार हो जाता है। यह प्रेम कहानी कोई साधारण नहीं अपितु संघर्षपूर्ण प्रेम कहानी है। यह संघर्ष बुद्धदेव गुप्ता एवं नीना वर्मा के बीच उम्र के अंतर को लेकर है। बुद्धदेव गुप्ता (अमिताभ बच्चन) ओमप्रकाश जी से पूछते हैं, ओमप्रकाश जो नीना वर्मा के पिता है-"आपको कभी अकेलापन नहीं महसूस होता है।" ओमप्रकाश-"Almost 25 साल हो गए नीना की मां को गुजरे हुए l" बुद्धदेव-"दूसरी शादी के बारे में नहीं सोचा l" ओमप्रकाश-"No, गुप्ता साहब क्या है कि हर उमर का अपना एक मतलब होता है l अब देखिए बचपन में खेलो, जवानी में ऐश करो, फिर शादी करके गृहस्थी का सुख लो और बुढ़ापे में संयम और Self Discipline, Time to go ऊपर जाने की तैयारी करो l That's it !" अंततः बहुत उतार-चढ़ाव के बाद ओमप्रकाश जो नीना वर्मा के पिता है, वे शादी के लिए राजी हो जाते है। यह फिल्म दर्शाती है कि वृद्ध लोग भी अपना जीवन खुशी से बिता सकते और प्यार में पड़ सकते हैं। 

       फाइंडिंग फैनी (2014) - निर्देशक -होमी अदजानिया, निर्माता- दिनेश विजन, संगीत-माथियास डुप्लेसी, सचिन-जिगर, कलाकार-नसीरुद्दीन शाह, डिंपल कपाड़िया, पंकज कपूर, दीपिका पादुकोन, अर्जुन कपूर। होमी अदजानिया द्वारा निर्देशित फिल्म 'फाइंडिंग फैनी' एक बूढ़े पोस्टमैन फर्डिनेंड 'फर्डी' पिंटो (नसीरुद्दीन शाह) की कहानी है, जिसकी उम्र 60 से अधिक है। फर्डिनेंड 'फर्डी' पिंटो पेशे से एक गायक है, पिंटो की यात्रा शुरू होने का कारण है-एक पत्र। उसे एक पत्र मिलता है जिसमें उसने 46 साल पहले उसने अपने प्रेमी को प्रपोज किया था। एंजेलिना 'एंजी' यूचरिस्टिका (दीपिका पादुकोण) जो एक विधवा है, 'फर्डी' पिंटो की मदद करती है। श्रीमती रोज़लिना 'रोज़ी' (डिंपल कपाड़िया) जो एंजेलिना 'एंजी' (दीपिका) की सास है। डॉन पेड्रो क्लेटो (पंकज कपूर), सविओ दा गामा (अर्जुन कपूर) दीपिका का प्रेमी है। यह कहानी 'पोकोलिम' नाम के एक गांव से शुरू होती है। इस गांव के लोगों को अपनी जिंदगी में कोई खास रुचि या मकसद नहीं है। 'फैनी' को ढूंढने के लिए 'फर्डी' पिंटो के साथ गांव के चार लोग मिल जाते हैं। जहां पहले कहानी में चारों की जिंदगी व्यर्थ एवं बोरिंग चल रही थी, वहीं अंत तक आते-आते कहानी में सभी लोग एक दूसरे से प्यार और एक दूसरे के लिए सांत्वना महसूस करते हैं। 


       पीकू (2015) - निर्देशक -शूजित सरकार, निर्माता-एनपी सिंह, रोनी लाहिड़ी, स्नेहा रजनी, संगीत-अनुपम रॉय, कलाकार-अमिताभ बच्चन, दीपिका पादुकोन, इरफान खान, मौसमी चटर्जी, जिशु सेनगुप्ता, रघुबीर यादव। शूजित सरकार द्वारा निर्देशित फिल्म 'पीकू' भास्कर बनर्जी (अमिताभ बच्चन) और उनकी बेटी पीकू (दीपिका पादुकोन) के इर्द-गिर्द कहानी घूमती है। भास्कर बनर्जी बूढ़ा है जिसकी उम्र लगभग 65 से अधिक होगी और उनको कब्ज की समस्या है। इस समस्या से उनकी बेटी पीकू और आस पास के लोग भी परेशान हैं। इनकी आधी जिंदगी कब्ज के इर्द-गिर्द घूमती है, इनका दिमाग कहीं ना कहीं अपने मल त्याग पर केंद्रित रहता है। वृद्ध होने के कारण वे अपनी बेटी पीकू और नौकरानी पर हीं निर्भर रहते हैं। राणा (इरफान खान), भास्कर को एहसास दिलाता है और समझाता है कि मां-बाप को अपने बच्चों को भावनात्मक रूप से blackmail नहीं करना चाहिए। भास्कर बनर्जी (अमिताभ बच्चन) कहते हैं -"क्यों तुमलोग सोचता है कि हम तुम्हारे ऊपर एक Burden है l" राणा (इरफान खान) कहता है -"Burden होते अगर तो दिल्ली के अंदर बैठे होते, कलकत्ता लेके नहीं जाती वो आपको l" पुश्तैनी घर बेचने को लेकर भी पीकू और भास्कर में लड़ाई छिड़ जाती है। भास्कर पैतृक घर कोलकाता जाने की योजना बनाता है। वापस घर लौटने पर उसे एक डंप मिलता है, शौचालय जाने से उसे राहत महसूस होती है। उसे साइकिल चलाने का शौक है। अंत में भास्कर बनर्जी का शांतिपूर्ण अंत होता है, अगले दिन भस्कार की नींद में मौत हो जाती है। अंततः उसकी जो इच्छा थी वो पूरी हुई साफ पेट एवं शांति पूर्ण मौत। 

       मुक्ति भवन (2016) - निर्देशक - शुभाशीष भूटियानी, निर्माता-संजय भूटियानी, साजिदा शर्मा, शुभाशीष भूटियानी, संगीत- ताजदार जुनैद, कलाकार-आदिल हुसैन, ललित बहल, गीतांजलि कुलकर्णी, पालोमी घोष, नवनिन्द्र बहल, अनिल के रस्तोगी। शुभाशीष भूटियानी द्वारा निर्देशित फिल्म 'मुक्ति भवन' को यूनेस्को का अवार्ड मिला है। 77 वर्षीय दया (ललित बहल) जीवन का अंतिम पड़ाव महसूस करता है। अपने पिता की तरह वह भी मुक्ति भवन में अपनी आखिरी सांस लेना चाहता है, दया शहर में मरना नहीं चाहता बल्कि बनारस में जाकर मरना चाहता है। उनका बेटा राजीव (आदिल हुसैन) एक ऑफिस कर्मचारी है जो स्वयं दबाव में अपना जीवनयापन कर रहा है। वह सभी सांसारिक चीजों को त्याग कर अपने पिता को उसकी अंतिम यात्रा पर ले जाता है। वहीं दूसरी ओर राजीव की पत्नी लता (गीतांजलि कुलकर्णी) पिता की आकांक्षाओं को समझना नहीं चाहती और राजीव की बेटी सुनीता (पालोमी घोष) वृद्ध  व्यक्ति का मजाक उड़ाती है। जब उनका बेटा राजीव (आदिल हुसैन) पिता से पूछता है -"अच्छा बाबा ये बताइए आपको क्यों लगा कि आपका समय आ गया है l"  पिता कहते -"बस लगा कि अब मुझे मर जाना चाहिए l"  बेटा -"क्यों मतलब हम लोगों ने आपका ख्याल नहीं रखा l"  पिता-"नहीं वो बात नहीं है l"  बेटा-"तो"  पिता-"बस थकावट सी हो गई थी न l अब होता नहीं सब कुछ l थक गया हूं मैं l"  बेटा-"अगर आपको दूबारा इस परिवार में जनम लेने का मौका मिले फिर भी नहीं l"  पिता -"मैं आदमी क्यों बनूं l"  बेटा-"मतलब"  पिता-"मैं तो ! मैं तो ! शेर बनूंगा ! मेरी अम्मा कहा करती थी मेरा शेर बेटा है l मैं तो शेर बनूंगा या फिर कंगारू भी बन सकता हूं l"  बेटा-"क्यों"  पिता-"क्यों मालूम ! उसमें पॉकेट होती है न, कुछ भी रख सकते हैं l चश्मा ! पेन ! बच्चा कुछ भी ! कंगारू बनूंगा l"  आखिर सवाल यह है की दया क्यों अपने जीवन के अंतिम पड़ाव पर काशी में मुक्ति भवन आश्रम क्यों जाना चाहता है ? कहीं ना कहीं बेटे और बहू उन्हें उचित समय नहीं दे पाते, फिल्म में नौकरी के कारण युवा राजीव चाहते हुए भी घर के बुजुर्गों को समय नहीं दे पाता। 


       102 नॉट आऊट (2018) - निर्देशक - उमेश शुक्ला, निर्माता- एसपीई फिल्म्स इंडिया, संगीत-सलीम-सुलेमान, अमिताभ बच्चन, रोहन-विनायक, कलाकार-अमिताभ बच्चन, ऋषि कपूर, जिमित त्रिवेदी। उमेश शुक्ला द्वारा निर्देशित फिल्म '102 नॉट आऊट' में पिता दत्तात्रेय बखारिया (अमिताभ बच्चन) की उम्र 102 साल की है और बाबूलाल  बखारिया (ऋषि कपूर) जिनकी उम्र 75 साल की है। पिता दत्तात्रेय 116 साल पुराना विश्व रिकॉर्ड तोड़ना चाहते हैं। पिता दत्तात्रेय ऊर्जावान एवं जिंदादिल पिता है वही बेटा बाबूलाल ने अपने जीवन को नीरस बना लिया है। पिता दत्तात्रेय अपने बेटे बाबूलाल  को कार्यों की सूची को पूरा करने का आदेश देते हैं, नहीं करने पर बेटे को वृद्धआश्रम भेजने की योजना बनाते हैं। जहां  दूसरी ओर बाबूलाल का बेटा अमोल विदेश में रहता है, पैसे की जरूरत होने पर फोन करता है। पिता दत्तात्रेय बखारिया (अमिताभ बच्चन) अमोल के पत्रों के माध्यम से बाबूलाल  बखारिया (ऋषि कपूर) को समझाते हैं कि आज की युवा पीढ़ी को हमारी जरूरत नहीं अपितु हमारे प्रॉपर्टी से मतलब है। जब बाबूलाल  बखारिया अपने बेटे अमोल के समक्ष अमेरिका जाने का प्रस्ताव रखते हैं तब बेटा पत्र के माध्यम से लिखता है-"घर बहुत सूना है और हमलोग Busy भी बहुत रहते हैं l आप अकेले पड़ जाओगे, I Hope You Understand." बाबूलाल का बेटा अमोल अपनी मां के अंतिम संस्कार में भी शामिल नहीं होता। पिता दत्तात्रेय बाबूलाल को समझते हैं कि उनका बेटा अमोल एक बुरा बेटा है, पिता दत्तात्रेय चाहते हैं बाबूलाल अपने बेटे अमोल से दूर रहे। यह फिल्म दर्शाती है कि वृद्ध होने का अर्थ वृद्ध  होना नहीं बल्कि उम्र के किसी भी पड़ाव में या 60 से अधिक में भी आप अपने को अधिक ऊर्जावान और जिंदादिल कैसे रख सकते हैं। 

       ऊंचाई (2022) - निर्देशक - सूरज बड़जात्या, निर्माता- सूरज बड़जात्या, महावीर जैन, नताशा मालपानी, ओसवाल, संगीत-अमित त्रिवेदी, कलाकार-अमिताभ बच्चन, परिणीति चोपड़ा, अनुपम खेर, बोमन ईरानी, डैनी डेन्जोंगपा, नीना गुप्ता, सारिका। सूरज बड़जात्या द्वारा निर्देशित फिल्म 'ऊंचाई'  वृद्धावस्था में सुखी जीवन जीने का एक बेहतरीन उदाहरण पेश करती है और साथ-साथ दोस्ती, फर्ज, परिवार का ध्यान किस प्रकार रखा जाए यह भी बताती चलती है। प्रस्तुत फिल्म के लिए यह पंक्ति यहां बिल्कुल सटीक बैठती है- "age is just a number." व्यक्ति चाहे तो उम्र के किसी भी पड़ाव में अपने सपने को साकार कर सकता है। ज्यादातर बुजुर्गों को देख कर हमारे भीतर उनके लिए सहानुभूति होती है परंतु यहां स्थिति विपरीत है। यहां वृद्धों  का ताकतवर और कभी हिम्मत न हारने वाला जज्बा स्पष्ट रूप से देखने को मिलता है। यह फिल्म 70 से 80 उम्र के चार दोस्तों के इर्द-गिर्द कहानी घूमती है। चार दोस्तों में भूपेन (डैनी डेन्जोंगपा) जो कि इन चारों में सबसे फिट थे, अचानक उनकी तबीयत बिगड़ जाती है। दिल का दौड़ा पड़ने से उनकी मृत्यु हो जाती हैं। भूपेन जिसकी अंतिम इच्छा माउंट एवरेस्ट चढ़ने की थी, वह सपना अधूरा रह जाता है। उनके तीन दोस्तों को जब यह बात पता चलती है, वह उनकी अंतिम इच्छा पूरा करने की योजना बनाते हैं। अमित श्रीवास्तव (अमिताभ बच्चन) जो की एक बेस्ट सेलर लेखक है, ओम शर्मा (अनुपम खेर) का बुक स्टोर है, जावेद सिद्दीकी (बोमन ईरानी) की कपड़ों की दुकान है। अंत में तीनों साथी भूपेन की अस्थियों को हिमालय ले जाकर उसके सपने को नई ऊंचाई देते  हैं। ओम शर्मा (अनुपम खेर) कहते हैं-"आजकल की पीढ़ी ही ऐसी है l मां-बाप का सम्मान करना तो आता ही नहीं l कैसा महसूस होता है जब आपको अपने ही खुद के बच्चे अपनी जरूरत के हिसाब से याद करते हैं l कितनी आसानी से कह दिया सॉरी अम्मी, सॉरी अब्बू l"


       शर्मा जी नमकीन (2022) - निर्देशक - हितेश भाटिया, निर्माता-फरहान अख्तर, रितेश सिधवानी, हनी त्रेहान, अभिषेक चौबे, संगीत-स्नेहा खानवलकर, कलाकार-ऋषि कपूर, परेश रावल, जूही चावला, सुहैल नैय्यर, ईशा तलवार, सुलग्ना पाणिग्रही। हितेश भाटिया द्वारा निर्देशित फिल्म 'शर्मा जी नमकीन' एक बुजुर्ग व्यक्ति की कहानी बयां करती है। जो अपने सपनों को किसी भी प्रकार से बाधित नहीं करता है, चाहे वह उम्र के किसी भी पड़ाव पर क्यों ना हो। यह फिल्म 58 उम्र के एक बुजुर्ग की कहानी है जो कुकिंग जैसी हॉबी को पार्ट टाइम जॉब में बदल देता है। शर्मा जी (ऋषि कपूर/परेश रावल) का बड़ा बेटा रिंकू जिसकी जॉब है, उसकी गर्लफ्रेंड भी है, जिससे वह शादी करना चाहता है। रिंकू हर वक्त अपने पापा की हरकतों से परेशान और चिड़चिड़ा दिखता है -"कभी पानी की मोटर ,कभी कॉलोनी का गेट, कभी पार्किंग, आप रोज कोई नया क्लेश ढूंढ लेते हो" जब बच्चे शर्मा जी के किसी भी काम पर अपनी टिप्पणी देते तो शर्मा जी कहते हैं - "सारी दुनिया से बात कर लेगा पर अपने बाप से बात करने में दिक्कत होती है l"  एक जगह पर शर्मा जी (ऋषि कपूर/परेश रावल) कहते हैं-"मेरे लिए कौन क्या कर रहा है l जब तक कोई बिल न भर रहा हूं किसी को मेरी याद नहीं आती l किसी ने भी फोन करके ये पूछा है कि मैं कैसा हूं या कैसा गया मेरा दिन l बर्थडे के दिन केक खिला दिया हो गई ड्यूटी l क्या फायदा ऐसी फैमिली का, नहीं चाहिए ऐसी फैमिली l"


निष्कर्ष : निष्कर्ष रूप से हम देखते हैं कि हिन्दी सिनेमा में विभिन्न विषयों को केंद्र में रखते हुए वृद्ध आधारित कई फिल्में बनाई गयी। इन सभी फिल्मों में वृद्ध व्यक्तियों का चित्रण अलग-अलग ढंग से किया गया है। वृद्ध पात्रों के व्यक्तित्व के माध्यम से उनकी सामाजिक, पारिवारिक एवं आर्थिक स्थिति का पता लगाया जा सकता है। चुनिंदा फिल्मों की कहानियाँ अलग-अलग है। जहाँ एक ओर फिल्म ‘बागबान’ एवं ‘खोसला का घोसला’ के वृद्ध पात्र अपने को पूर्ण रूप से बच्चों पर निर्भर हो जाते हैं तो वहीं दूसरी ओर फिल्म ‘चीनी कम’ के पात्र बुद्धदेव गुप्ता (अमिताभ बच्चन) एक रेस्टोरेंट चलाता है, वृद्ध होने के बावजूद बुद्धदेव एक स्वतंत्र जीवन निर्वाह करता है। बहरहाल, उपर्युक्त सभी फ़िल्में भिन्न-भिन्न दृष्टिकोणों से समाज को वृद्धों के प्रति सम्मान एवं ज्यादा संवेदनशील होने की राह दिखलाती है। साथ हीं साथ बुजुर्गों को अपने ऊपर हो रहे दुर्व्यवहार को रोकने का बोध कराती चलती है। ये फिल्में बुजुर्गों को आर्थिक रूप से सशक्त और शारीरिक रूप से मजबूत रहने की योजना बनाने की प्रेरणा भी देती हैं। 


आधार फिल्में :
  1. मोहन कुमार, फिल्म-'अवतार', 1983
  2. मोहन कुमार, फिल्म-'अमृत', 1986
  3. सुभाष अग्रवाल, फिल्म-'रूई का बोझ', 1997
  4. रवि चोपड़ा, फिल्म-'बागवान', 2003
  5. दिबाकर बनर्जी, फिल्म-'खोसला का घोसला', 2006
  6. आर. बाल्की, फिल्म-'चीनी कम', 2007
  7. होमी अदजानिया, फिल्म-'फाइंडिंग फैनी', 2014
  8. शूजित सरकार, फिल्म-'पीकू', 2015
  9. शुभाशीष भूटियानी, फिल्म-'मुक्ति भवन', 2016
  10. उमेश शुक्ला, फिल्म-'102 नॉट आऊट', 2018
  11. सूरज बड़जात्या, फिल्म-'ऊंचाई', 2022
  12. हितेश भाटिया, फिल्म-'शर्मा जी नमकीन', 2022

सन्दर्भ :
  1. नई धारा, अप्रैल-मई, 2010, पृष्ठ सं-155
  2. www.hi.wikipedia.org
  3. लक्ष्मीकांत चंदेला, आधुनिक भारतीय समाज में वृद्धजनों की दशा और दिशा, जे.टी.एस. पब्लिकेशंस, दिल्ली, 2024, पृष्ठ सं-76
  4. प्रसून सिन्हा, भारतीय सिनेमा एक अनन्त यात्रा, श्री नटराज प्रकाशन, दिल्ली, 2006, पृष्ठ सं-15
  5. संपादन-मृत्युंजय, हिंदी सिनेमा का सच, समकालीन सृजन, कोलकाता, अंक-17, वर्ष 1997, पृष्ठ-17
  6. डॉ. देवेन्द्र नाथ सिंह, डॉ. वीरेंद्र सिंह यादव, भारतीय हिन्दी सिनेमा की विकास यात्रा एक मूल्यांकन, पैसिफिक पबिलकेशन्स, दिल्ली, 2012, पृष्ठ सं-57, 58

कोमल कुमारी
शोधार्थी, हिंदी संकाय, मानविकी विद्यापीठ, इंदिरा गांधी राष्ट्रीय मुक्त विश्वविद्यालय, नई दिल्ली
सिनेमा विशेषांक
चित्तौड़गढ़ (राजस्थान) से प्रकाशित पत्रिका
UGC CARE Approved  & Peer Reviewed / Refereed Journal 
  अपनी माटी (ISSN 2322-0724 Apni Maati) अंक-58, दिसम्बर, 2024
सम्पादन  : जितेन्द्र यादव एवं माणिक सहयोग  : विनोद कुमार

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