शोध आलेख : अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता बनाम सेंसरशिप : कानूनी पड़ताल / नीलम राठी

अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता बनाम सेंसरशिप : कानूनी पड़ताल
- नीलम राठी

शोध सार : प्रेस की स्वतंत्रता सभ्य समाज और लोकतंत्र के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है। प्रेस सरकार को निरंकुश बनने से रोकती है। निर्धन व पीड़ित की आवाज बनती है। प्रेस उन घोटालों को भी खोजकर जनता के समक्ष लाती है जो सरकार द्वारा किए जाते हैं। समाज के शक्तिशाली एवं अपराधियों द्वारा किए गए अपराधों को जब शक्ति एवं राजनीति की साँठ- गांठ से प्रश्रय मिलना प्रारंभ हो जाए और न्याय महंगा हो तब प्रेस ही एकमात्र न्याय प्राप्त करने का विकल्प बचता है क्योंकि प्रेस में हजारों लाखों लोगों को एक साथ प्रभावित करने की शक्ति है। इसलिए आवश्यक है कि किसी भी स्थिति में जनता और मीडिया के बीच संवाद की कड़ी बनी रहनी चाहिए। ये तभी संभव है जब प्रेस में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता बनी रहे,बची रहे। लेकिन बरसों से पनप रहे संगठित ढाँचे नियम और कानूनों से इन धारदार आवाजों को कुन्द करने के लिए जीजान से लगे रहते हैं। विचार एवं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता सदैव ही प्रचलित व्यवस्थाओं के निशाने पर रही है। किन्तु मनुष्य को गरिमा युक्त जीवन निर्वाह के लिए आवश्यक अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता ही लोकतान्त्रिक प्रणाली की जन्मदात्री है। किन्तु आज मीडिया उद्योग बन गया है और अधिकांशत: मीडिया कॉर्पोरेट घरानों के हाथ में है। जिनका मुख्य उद्देश्य पैसा कमाना है। बाजारवाद और उपभोक्तावाद के अपने संकट है। किन्तु यह भी सत्य है कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के समर्थकों और यथास्थिति बनाए रखने हेतु प्रतिबंधों के समर्थकों के बीच बहस जारी है।

बीज शब्द : सेंसरशिप, अभिव्यक्ति,प्रतिबंध, आपातकाल, ब्लैकआउट, प्रमाणन बोर्ड

मूल आलेख : 

अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की अवधारणा एवं प्रतिबंध संबंधी कानून -

अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार भारतीय संविधान में मौलिक अधिकार है जो अनुच्छेद 19 (1 ) (a) में प्राप्त है। अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता में हम स्वयं को अभिव्यक्त कर सकते हैं। यह भाषण देने की स्वतंत्रता का अधिकार भी प्रदान करता है। इसी अधिकार के तहत ही हम किसी की आलोचना का अधिकार रखते हैं। इस अधिकार के कारण ही हम शांति पूर्ण विरोध प्रदर्शन करते हैं। जब हम कोई सृजनात्मक मौलिक कार्य करते हैं जैसे कार्टून या व्यंग्य के रूप में हम किसी की आलोचना करते हैं तब हम इस अधिकार का उपयोग करते हैं अथवा फिल्म,समाचार और सरकार के किसी निर्णय या योजना की आलोचना भी इस अधिकार के प्राप्त होने के कारण ही कर पाते हैं। अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार हमें स्वच्छंद नहीं बनाता न ही यह अनियंत्रित है। अनुच्छेद 19(2)हमारी जिस अभिव्यक्ति के कारण देश की संप्रभुता और अखंडता को खतरा उत्पन्न हो जाए हमारी जिस अभिव्यक्ति से मित्र देशों के साथ हमारे संबंध खटाई में पड जाएं,हमारी जिस अभिव्यक्ति से शालीनता या नैतिकता का आचरण न रहे,हमारे जिस भाषण या वक्तव्य से किसी के प्रति द्वेष उत्पन्न हो समाज की शांति भंग होने का खतरा हो ऐसी अभिव्यक्ति पर प्रतिबंध लगाती है। इसका उल्लंघन करने पर सजा का प्रावधान है। इसके साथ ही अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के प्रतिबंध को हम कुछ अन्य कानूनों के अनुसार भी देख सकते हैं। जैसे सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 की धारा 69A के अनुसार केंद्र सरकार चाहे तो वह किसी भी ऑनलाइन सामग्री या सोशल मीडिया अकाउंट, जो भारत की संप्रभुता, अखंडता, रक्षा, विदेशी राष्ट्रों के साथ मैत्रीपूर्ण संबंध के लिए खतरा पैदा करती हो, को ब्लॉक कर सकती है और साइबर अपराधी को गिरफ्तार भी कर सकती है। वर्ष 2021 में नये आईटी नियम के दिशा निर्देशों के अनुसार - “भारत में एक मुख्य अनुपालन अधिकारी और एक नोडल संपर्क अधिकारी की नियुक्ति करनी होगी, जो सोशल मीडिया पर सामग्री से संबंधित शिकायतों की जांच करेगा और उन पर की गई कार्रवाई को विस्तृत रूप से एक मासिक अनुपालन रिपोर्ट के रूप में प्रकाशित करने के लिए बाध्य होगा”1 इस प्रकार हम देखते हैं कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का कानून हमें जहां अनेक अधिकार देता है वहीं निरंकुश होने से रोकता भी है।

सेंसरशिप की परिभाषा -

वेबस्टर डिक्शनरी के अनुसार, "सेंसर का अर्थ है - किसी भी आपत्तिजनक चीज़ को दबाने या हटाने के लिए जाँच करना” 2 ब्रिटेनिका शब्द कोश के अनुसार – “सेंसरशिप भाषण या लेखन को बदलना दबाना या प्रतिबंधित करना है। जिसे आमजन के कल्याण के लिए विध्वंसक माना जाता है। यह कुछ हद तक अधिकार की सभी अभिव्यक्तियों में होता है। लेकिन आधुनिक समय में यह सरकार और कानून के शासन के संबंध में विशेष महत्व रखता है”3 सेंसरशिप इस बात की निष्पक्ष जाँच करता है कि सार्वजनिक रूप से प्रसारित होने वाली रचना सत्य भी हो और वह शांति, सांप्रदायिक सद्भाव एवं राष्ट्रीय सुरक्षा बनाए रखने के लिये सामान्य रूप से स्वीकार्य मानकों के अनुरूप हो। भारत के संदर्भ में सेंसरशिप कानून सार्वजनिक डोमेन में आने वाले प्रत्येक विषय को अपने प्रभाव क्षेत्र में लेते हैं – जिसमें विज्ञापन, थिएटर, फिल्में, श्रृंखला, संगीत, भाषण, रिपोर्ट, बहस, पत्रिकाएं, समाचार पत्र, नाटक, कला, नृत्य, साहित्य, लिखित, वृत्तचित्र या मौखिक कार्यों के समस्त रूप आते हैं।सेंसरशिप के दो प्रकार होते हैं:-1 प्रेस सेंसरशिप – जिसमें प्रिन्ट इलेक्ट्रॉनिक मीडिया, सोशल मीडिया और डिजिटल मीडिया आते हैं। इनमें प्रकाशित सामग्री की जांच पड़ताल प्रेस सेंसरशिप में आती है। 2 फिल्म सेंसरशिप – जिसमें फिल्मों की जांच पड़ताल के बाद प्रदान कर प्रमाण पत्र दिए जाते हैं।

प्रेस सेंसरशिप संबंधी प्रमुख कानून और उनके प्रयोग -

प्रेस सेंसरशिप से तात्पर्य – “किसी भी संचार माध्यम की प्रकाशित अथवा प्रसारित की जाने वाली सामग्री पर चयनात्मक प्रतिबंध से है। यह सूचना अथवा संचार सामग्री की प्रसारण से पूर्व जांच पड़ताल को व्याख्यायित करती है”4 सेंसरशिप का प्रयोग भारत में प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से विभिन्न कानूनों के द्वारा यथा भारतीय दंड संहिता, दंड प्रक्रिया संहिता, केंद्रीय फिल्म प्रमाणन बोर्ड, भारतीय प्रेस परिषद, सिनेमैटोग्राफी अधिनियम, 1952, केबल टेलीविजन अधिनियम,सूचना प्रोद्योगिकी कानून 2021 आदि में अधिनियमित किया गया है। जैसे भारतीय दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 95 कुछ सामग्री/प्रकाशनों को ज़ब्त करने की अनुमति देती है। इस धारा के तहत यदि किसी समाचार पत्र, पुस्तक या दस्तावेज या मुद्रण कार्यालय में कोई ऐसा मामला है जिसे केंद्र अथवा राज्य सरकार अपने राज्य के लिए हानिकारक मानती है तो वह एक आधिकारिक अधिसूचना के माध्यम से उसके प्रकाशन /प्रसारण पर रोक लगा सकती है,पूर्व में यदि वह यू ट्यूब पर प्रसारित है तो उसे हटाने के लिए आदेश भी पारित कर सकती है। साथ ही दंडात्मक कार्यवाही करते हुए सजा भी सुना सकती है। इसके तहत मजिस्ट्रेट 'आपत्तिजनक' प्रकाशनों की तलाशी के लिये वारंट जारी करने की अनुमति दे सकता है। ऐसे प्रेस को जब्त कर सकती है। उस प्रकाशित सामग्री के प्रसार पर प्रतिबंध लगा सकती है। निर्णय को लागू न करने पर न्यायालय की अवमानना के कारण जुर्माना और सजा दोनों भी हो सकता है।

प्रेस काउंसिल ऑफ इंडिया -

यह एक वैधानिक और अर्ध-न्यायिक निकाय है। यह प्रेस के लिये स्व-नियामक निकाय के रूप में कार्य करता है और सार्वजनिक क्षेत्र में आने वाली चीज़ों को नियंत्रित करता है। यह निकाय प्रेस कर्मचारियों और पत्रकारों द्वारा आत्म-विनियमन की आवश्यकता पर ज़ोर देता है, प्रेस परिषद प्रेस की नैतिकता और सार्वजनिक हित के लिए कार्य करती है।

केबल टेलीविजन नेटवर्क अधिनियम -

यह अधिनियम केबल ऑपरेटरों के लिये पंजीकरण अनिवार्य करता है। यह केबल ऑपरेटर द्वारा प्रसारित की जाने वाली सामग्री को विनियमित करने हेतु प्रावधान भी करता है। केबल टेलीविजन के माध्यम से प्रसारण के पूर्व यह सीबीफसी द्वारा श्रेणी- U (यानी अप्रतिबंधित सार्वजनिक प्रदर्शनी) के तहत फिल्म के प्रमाणन को अनिवार्य करता है, भले ही फिल्म भारत में निर्मित हो या विदेश में। यह अधिनियम सरकार को केबल ऑपरेटरों, चैनलों या कुछ कार्यक्रमों पर प्रतिबंध लगाने के लिये पर्याप्त शक्ति प्रदान करता है।

सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म और नए सूचना प्रौद्योगिकी नियम, 2021 -

सोशल मीडिया की वृद्धि दर को देखते हुए, इसकी सेंसरशिप भारत में चिंता का विषय रहा है क्योंकि हाल के दिनों तक, यह किसी भी सरकारी प्राधिकरण और विशिष्ट विनियमन की प्रत्यक्ष देखरेख में नहीं था। वर्तमान में, सूचना और प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 सोशल मीडिया के उपयोग को विनियमित करता है एवं विशेष रूप से धारा 67A, 67B, 67C और 69A में विशिष्ट नियामक खंड शामिल हैं। सूचना प्रौद्योगिकी नियम,2021: इन्हें सूचना प्रोधयोगिकी अधिनियम, 2000 के तहत 'एलोकेशन ऑफ बिजनेस रूल्स' में संशोधन कर लाया गया था, ताकि फिल्मों, ऑडियो-विजुअल कार्यक्रमों, समाचार, समसामयिक मामलों की सामग्री और अमेज़ॅन, नेटफ्लिक्स और हॉटस्टार जैसे प्लेटफार्मों सहित डिजिटल और ऑनलाइन मीडिया को सूचना और प्रसारण मंत्रालय, भारत सरकार के दायरे में लाया जा सके। इस संशोधन के बाद लागू सूचना प्रोधयोगिकी नियम, 2021 में सोशल मीडिया, ओटीटी, डिजिटल समाचार और यहाँ तक कि मैसेजिंग ऐप व्हाट्सएप आदि के लिये नए अनुपालन और निवारण तंत्र शामिल हैं। तभी वह सार्वजनिक रूप में प्रदर्शित की जा सकती है।

सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय ने अंतर-मंत्रालयी समिति की संस्तुति पर हिंदी समाचार चैनल NDTV इंडिया को 7 नवंबर 2016 को 24 घंटे के लिए ब्लैकआउट करने का आदेश दिया था। समिति ने पाया कि NDTV इंडिया ने जनवरी में पठानकोट आतंकवाद विरोधी अभियान को कवर करते हुए "रणनीतिक रूप से संवेदनशील जानकारी" का खुलासा किया। NDTV ने तर्क दिया है कि जिस जानकारी के लिए उसे दंडित किया जा रहा है, उसे उजागर करने वाला वह अकेला नहीं था, बल्कि इससे पहले अन्य मीडिया आउटलेट्स ने भी ऐसा किया था। यह कार्यवाही सरकार ने केबल टेलीविजन नेटवर्क नियम, 1994 के कार्यक्रम संहिता में एक अतिरिक्त धारा- 6(1)पी- जोड़ी थी। - “यह धारा आतंकवाद विरोधी अभियानों की लाइव कवरेज को प्रतिबंधित करती है और मीडिया कवरेज को एक नामित अधिकारी द्वारा समय-समय पर ब्रीफिंग तक सीमित करती है। संहिता का कोई भी उल्लंघन सरकार को किसी चैनल को कुछ समय के लिए बंद करने का आदेश देने का अधिकार देता है”5

इसके साथ ही शोध करने पर हम यह भी पाते हैं कि अनेक यू ट्यूब चैनलों पर भी समय – समय पर कार्यवाही की गई है। एक अन्य उदाहरण के रूप में हम देख सकते हैं :- “सूचना प्रसारण मंत्रालय के मुताबिक आई टी नियम 2021 के तहत 7 भारतीय और 1 पाकिस्तान के यू ट्यूब समाचार चैनल को प्रतिबंधित किया गया है. ब्लॉक किए गए चैनलों को 114 करोड़ से ज्यादा बार देखा जा चुका था और इन चैनलों के 85 लाख 73 हजार सब्सक्राइबर थे.--- आईटी एक्ट 2000 की धारा 69A के उल्लंघन के आरोप में यह कार्रवाई की गई थी -“सितंबर 2022 में खुफिया एजेंसियों से मिली जानकारी के आधार पर सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय ने 10 यूट्यूब चैनलों के 45 वीडियो को ब्लॉक करने का निर्देश दिया था। इन वीडियो को कुल मिलाकर एक करोड़ 30 लाख से भी ज्यादा व्यूज मिले थे। इन चैनलों ने अपने वीडियो के जरिए सांप्रदायिक वैमनस्य फैलाने और सार्वजनिक व्यवस्था को बाधित करने की कोशिश की थी। इनमें से कुछ वीडियो का इस्तेमाल अग्निपथ योजना, भारतीय सशस्त्र बलों, राष्ट्रीय सुरक्षा, कश्मीर आदि मुद्दों पर गलत सूचना फैलाने के लिए किया जा रहा था। अगस्त 2022 में सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय ने आठ यूट्यूब न्यूज चैनलों, एक फेसबुक अकाउंट और दो फेसबुक पोस्ट को ब्लॉक करने के निर्देश दिए गए”6

केंद्रीय फिल्म प्रमाणन ब्यूरो (CBFC) -

केंद्रीय फिल्म प्रमाणन ब्यूरो (CBFC) सिनेमैटोग्राफी अधिनियम, 1952 के तहत संचालित एक वैधानिक निकाय है। चलचित्र/फिल्मों के प्रदर्शन के लिए प्रमाणन तथा चलचित्रों के ज़रिए प्रदर्शनों को विनियमित करने हेतु उपबन्ध तैयार करने के लिए संसद द्वारा सिनेमैटोग्राफी एक्ट 1952 में अधिनियमित किया गया है कि प्रत्येक फिल्म को प्रदर्शन से पूर्व फिल्म प्रमाणन बोर्ड/ सेंसरबोर्ड से इस अशय का प्रमाणपत्र लेना अनिवार्य है। यह सार्वजनिक डोमेन में लाई जाने वाली फिल्मों की सामग्री को नियंत्रित करता है। CBFC फिल्मों के पूर्व प्रमाणन की प्रणाली का पालन करता है। प्रसारक प्रदत्त प्रमाणन का पालन करने के लिए 'कार्यक्रम संहिता और विज्ञापन संहिता' के तहत दिशानिर्देशों से बंधे होते हैं।

यह संगठन भारत में प्रदर्शित होने वाली विभिन्न श्रेणी की फिल्मों के लिए प्रमाण पत्र जारी करता है। बोर्ड की अनुमति के बिना भारत में कोई भी देसी अथवा विदेशी फिल्मों का सार्वजनिक प्रदर्शन नहीं किया जा सकता। “बोर्ड सामान्य सार्वजनिक फिल्मों के लिए वर्तमान में फिल्मों को 4 श्रेणियों के तहत प्रमाणित करता है:1. सभी के दर्शन योग्य जो फिल्म होती है उसके लिए U श्रेणी का प्रमाण पत्र दिया जाता है। 2. वयस्क लोगों के देखने योग्य फिल्मों के लिए A श्रेणी का प्रमाण पत्र दिया जाता है। 3. अभिभावकों की उपस्थिति में किशोरों सहित सबके देखने योग्य फिल्म के लिए U /A श्रेणी का प्रमाण पत्र दिया जाता है तथा 4.विशेष विशेषज्ञता वाली फिल्मों जैसे चिकित्सा, स्वास्थ्य आदि पर बनी फिल्मों के लिए S श्रेणी का प्रमाण पत्र जारी करता है”7 इसके साथ ही फिल्म प्रमाणन बोर्ड को ये अधिकार भी प्राप्त है कि वह फिल्म की प्रकृति , कथावस्तु, प्रस्तुति,फिल्मांकन, दृश्यांकन, चरित्रांकन को ध्यान में रखते हुए फिल्म को निर्बंधित रूप से सार्वजनिक प्रदर्शन की अनुमति प्रदान करे अथवा सार्वजनिक प्रदर्शन से पूर्व किसी शॉट,अंश,दृश्य,गाने,नृत्य अथवा अंश को हटाने के पश्चात ही सार्वजनिक प्रदर्शन की अनुमति प्रदान करें। अथवा उस फिल्म को समाज,राष्ट्र अथवा व्यक्तित्व के विकास के लिए हानिकारक मानते हुए फिल्म के प्रदर्शन हेतु प्रतिबंधित कर दें। अर्थात अनुमति ण प्रदान करें रोक लगा दें।

फिल्मों पर प्रतिबंध के कारण -

फिल्मों को राजनीतिक या नैतिक कारणों से या विवादास्पद सामग्री, जैसे नस्लवाद ,कॉपीराइट उल्लंघन और कम उम्र में अनैतिकता के लिए फिल्म सेंसरशिप या समीक्षा संगठनों द्वारा भी प्रतिबंधित किया गया है।फिल्मों पर प्रतिबंध लगाने का निर्णय देश और उसके कानूनों के आधार पर अलग-अलग होता है। आम तौर पर, यह सरकारी निकायों या नियामक प्राधिकरणों, जैसे कि फिल्म सेंसरशिप बोर्ड या आयोगों का दायित्व होता है कि वे तय करें कि किन फिल्मों पर प्रतिबंध लगाया जाए। ये निकाय विभिन्न मानदंडों के आधार पर फिल्मों का मूल्यांकन करते हैं, जिसमें स्पष्ट सामग्री, हिंसा, अभद्र भाषा,अशांति अथवा सांप्रदायिक सद्भाव को खतराहो सकता है। किसी फिल्म पर प्रतिबंध लगाने के विशिष्ट कारण अलग-अलग हो सकते हैं, लेकिन आम तौर पर इसका उद्देश्य सार्वजनिक हित की रक्षा करना, सांस्कृतिक मूल्यों को बनाए रखना या शासी निकाय द्वारा निर्धारित नैतिक मानकों का पालन करना होता है। कई बार कारण राजनीतिक वोट बैंक को प्रभावित करना भी होता है । जैसे अदा शर्मा की फिल्‍म 'द केरल स्‍टोरी' रिलीज से पहले ही विवादों में घिर गयी थी, जो अदालत तक पहुंचे। कोर्ट ने तो फिल्म की रिलीज रोकने से इनकार कर दिया था,परंतु पश्चिम बंगाल की राज्य सरकार द्वारा बंगाल में फिल्म पर प्रतिबंध लगा दिया गया है।

खैर, यह बॉलीवुड में पहली बार नहीं हुआ है, जब कोई मूवी राजनीतिक विवादों में फंसी हो और उस पर रोक लगाई गई हो। आंधी फिल्म भी कुछ इसी प्रकार विवादों में आई थी। कई फिल्मों का विरोध धर्म, समाज और संस्कृति के नाम पर किया गया है। किस्सा कुर्सी का’ भारतीय सिनेमा की सबसे विवादास्पद फिल्मों में से एक मानी जाती है। 1974 में आयी राजनीति पर व्यंग्य कसने वाली यह फिल्म कभी रिलीज नहीं हो सकी। सरकार द्वारा इस पर 1975 में रोक लगा दी गई। इसके प्रिंट भी जब्त कर लिए गए थे। सीमा बिस्वास की फिल्म ‘वाटर’ जिसे एक विधवा आश्रम पर बनाया गया था। इस फिल्म पर एक संगठन द्वारा आपत्ति दर्ज कर रोक लगाने की मांग की गई थी। बाद में इसे 2007 में रिलीज किया गया। ब्लैक फ्राइडे' फिल्म जो मुंबई ब्लास्ट से पहले उसकी प्लानिंग को दर्शाने वाली फिल्म थी को भी प्रारंभ में बैन किया गया था । जिसे कोर्ट के हस्तक्षेप से 2007 में रिलीज किया गया। फिल्म प्रमाणन बोर्ड द्वारा प्रतिबंधित फिल्मों की लंबी सूची है और प्रत्येक के प्रतिबंध का अलग कारण है। 2004 में गुलाबी दर्पण फिल्म को समलैंगिक सामग्री के कारण रेटिंग देने से इनकार किया गया था। 2014 में अग्नि निषेध क्षेत्र नामक फिल्म जो कि श्री लंका के गृह युद्ध पर आधारित डॉक्यूमेंटरी थी को भी प्रसारण की अनुमति प्रदान नहीं की गई थी। इसमें श्री लंका सरकार द्वारा छिपाए गए युद्ध अपराधों को दिखाया गया था। 2015 में टेलीविजन वृत्त चित्र ‘भारत की बेटी’ को कोर्ट के स्थगन आदेश के पश्चात प्रसारण से रोक दिया गया था। यह फिल्म निर्भया केस पर आधारित थी। इस फिल्म में बलात्कार एवं बलात्कारी का बचाव करने वाली टिप्पणियाँ थी। बाद में इसे यू ट्यूब पर अपलोड कर दिया गया जिसे भारत सरकार के हस्तक्षेप से यू ट्यूब से भी हटाया गया। 2016 में धर्मयुद्ध फिल्म की भारतीय रिलीज पर प्रतिबंध लगा दिया गया। यह फिल्म पंजाब में उग्रवाद के दौर से संबंधित थी। फिल्मों पर प्रतिबंध या आंशिक कट केवल फिल्म प्रमाणन बोर्ड द्वारा ही नहीं लगाया जाता । विश्वरूपम तमिलनाडू के दो प्रमुख दलों द्वारा अपने अपने घरेलू टी वी चैनल पर प्रसारण के अधिकार को लेकर छिड़ी लड़ाई के कारण तमिलनाडू के तत्कालीन सत्ता द्वारा प्रतिबंधित कर दिया गया था। बल्कि कभी कभी समाज व संगठनों के विरोध भी कारण होते हैं। फिल्म पद्मावत में करणी सेना के विरोध के कारण अलाउद्दीन खिलजी के स्वप्न का दृश्य हटाया गया। इसके अतिरिक्त बिल्लू बारबर फिल्म से नाई जाति के विरोध के कारण शीर्षक से बारबर शब्द हटाया गया। सितंबर 2024 में नेट फ़िलिक्स पर आई वेब सीरीज ‘आई सी 814’द कांधार हाइजैक’, साल 1999 में इंडियन एयर लाइंस के कांधार हाई जैक की घटना पर आधारित है में आतंकवादियों के वास्तविक नाम इब्राहिम, अतहर ,शाहिद अख्तर सईद ,सनी अहमद काजी ,जहूर मिस्त्री और शाकिर थे और सीरीज में आतंकवादियों के कोड नाम भोला,शंकर ,डॉक्टर और चीफ का प्रयोग किया गया। जिससे देश में नाराजगी बढ़ी तो सूचना मंत्रालय की चेतावनी के बाद डिसक्लेमर लगा दिए गए।

अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता बनाम सामाजिक दायित्व -

अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता हमारा संवैधानिक अधिकार के साथ नैसर्गिक अधिकार भी है। यदि कोई हमारे अभिव्यक्ति के अधिकार को छीनता है तो कोर्ट हमें यह अधिकार दिलाएगा। यदि लोकतंत्र है तो बोलने की आजादी भी है। यह नहीं हो सकता कि लोकतंत्र तो है लेकिन अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता न हो। लोकतंत्र में एक मजबूत विपक्ष की भी आवश्यकता होती है। उसे अपने कार्य की असहमतियों के जनतान्त्रिक प्रतिस्पर्धी की महती आवश्यकता है जो मीडिया की वाणी बने। हाँ यह नहीं हो सकता कि आप अपनी स्वतंत्रता बनाए रखने के लिए अन्य की स्वतंत्रता का हनन करें। स्वतंत्रता के साथ ही हम जिस समाज में रहते हैं उस समाज के प्रति हमारे कुछ सामाजिक दायित्व भी होते हैं। संवैधानिक सेंसरशिप आपत्तिजनक सामग्री के प्रकटीकरण की रोकथाम करके समाज में वैमनस्य को रोकता है जो सांप्रदायिक कलह का कारण बन सकता है इंटरनेट की सेंसरशिप सामाजिक स्थिरता और राष्ट्रीय सुरक्षा की रक्षा करने में मदद कर सकती है।चूंकि इंटरनेट सेंसरशिप बड़ी संख्या में अवैध गतिविधियों और इंटरनेट अपराधों को रोकने में मदद कर सकती है, इसलिये यह समाज की स्थिरता के लिये अच्छा है। कुछ अवैध संगठन या लोग गलत जानकारी जारी कर सकते हैं जो राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था और राजनीति को नुकसान पहुँचा सकता है।आतंकवादी और चरमपंथी तथ्यों को विकृत करने के लिये झूठी जानकारी जारी कर सकते हैं, जनता को भ्रमित कर सकते हैं और इंटरनेट के माध्यम से भय और आतंक पैदा कर सकते हैं। समाज में नैतिकता का अनुरक्षण: सेंसरशिप समाज में नैतिकता बनाए रखने में मदद कर सकती है। झूठी मान्यताओं या अफवाहों के प्रसार पर प्रतिषेध: सरकार झूठी मान्यताओं या अफवाहों के प्रसार को रोकने के लिये सेंसरशिप का उपयोग कर सकती है और साथ ही उनके सार्वजनिक प्रदर्शन पर रोक लगाकर अन्य लोगों की हानिकारक गतिविधियों तक पहुँच को प्रतबंधित कर सकती है। इंटरनेट की सेंसरशिप अनुचित जानकारी को ऑनलाइन फ़िल्टर कर सकती है और बच्चों को परेशान करने वाली वेबसाइटों यथा बाल पोर्नोग्राफी, यौन हिंसा और अपराध या नशीली दवाओं के उपयोग में विस्तृत निर्देश से बचा सकती है।वही सेंसरशिप के विरोध में भी अनेक तर्क दी जा रहे हैं और विरोध करने वाले लोगों का कहना है कि - सेंसरशिप कानून का व्यावहारिक अनुप्रयोग नैतिक पुलिसिंग का एक उपकरण बन सकता है जो बड़े सार्वजनिक मुद्दों के साथ खुद को संबंधित करने के बजाय अन्य लोगों के जीवन को नियंत्रित करता है। नए नियमों के तहत नियामक निकाय को दी गई व्यापक शक्तियां, जो नौकरशाहों के अधीन हैं, विवेकाधीन राजनीतिक नियंत्रण का जोखिम भी उठाती हैं। यह अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के संवैधानिक जनादेश के खिलाफ: नैतिकता, रूचि और अरुचि की परिधि में भारत में व्यापक भिन्नता है। इसलिए, गहन सेंसरशिप का यह स्तर सभी भारतीय नागरिकों (कुछ उचित प्रतिबंधों के अधीन) को गारंटीकृत भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के संवैधानिक जनादेश से बहुत दूर कर देता है। 4 अप्रैल,2024 को रात 1 बजे, हिंदी न्यूज़ यूट्यूब चैनल बोलता हिंदुस्तान के संस्थापक हसीन रहमानी को यूट्यूब से एक ईमेल मिला, जिसमें बताया गया कि सूचना और प्रसारण मंत्रालय (MIB) से मिले नोटिस के कारण उनके चैनल को ब्लॉक कर दिया गया है। यह नोटिस “आईटी नियम, 2021 के नियम 15(2) के तहत जारी किया गया था, जिसे आईटी अधिनियम, 2000 की धारा 69ए के साथ पढ़ा गया”---रहमानी का कहना था - "अगर किसी एक वीडियो को लेकर कोई समस्या थी, तो उन्हें उस खास वीडियो को हटा देना चाहिए था और हमें सूचित करना चाहिए उन्होंने हमें बताया कि हम कुछ उल्लंघनों के लिए ज़िम्मेदार थे। उन्हें कम से कम हमें यह तो बताना चाहिए कि हमने क्या अपराध किया है। उन्होंने ये भी कहा कि नफरत फैलाने वाले स्वतंत्र हैं और उनपर स्टोरी करने वालों पर बैन लगाया जा रहा है। यूट्यूब के अनुसार, बोलता हिंदुस्तान को उनकी सेवा शर्तों का उल्लंघन करने के कारण हटाया गया था। था। गौरतलब है कि इससे पूर्व भी रहमानी द्वारा शुरू किए गए एक अन्य चैनल, बोलता यूपी को यूट्यूब द्वारा उनकी स्पैम, भ्रामक प्रथाओं और घोटाले नीतियों"का उल्लंघन करने के कारण हटाया गया था”8 फरवरी 2024 में राम दत्त त्रिपाठी का स्वराज नामक प्लेटफार्म भी बिना किसी स्पष्टीकरण के प्रतिबंधित कर दिया गया था। हालांकि अपील के बाद चैनल पर प्रसारण पुन:प्रारंभ हो गया।

निष्कर्ष : संतुलित कानून की आवश्यकता है। सेंसरशिप कानूनों को एक तरफ प्रसारण और सूचना प्रसार के उद्देश्य मानकों को बनाए रखने और दूसरी तरफ अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को बनाए रखनेऔर दोनों के बीच संतुलन स्थापित करने वाले होने चाहिए। राष्ट्रीय सुरक्षा को स्पष्टत:परिभाषित करने की आवश्यकता है। ऐसे स्पष्ट नियम होने चाहिए जिनसे राष्ट्रीय सुरक्षा के वास्तविक खतरे को वाणी प्रदान की जाए। सत्ताधारी राजनीतिक दल और सरकार के बीच की विभाजक रेखा भी स्पष्ट होनी चाहिए। यही वह ग्रे एरिया अथवा फोर्ट लाइन है जहां कानून के दुरू पयोग का खतरा रहता है। आतंकवाद से संबंधित कानून के मामले में विशेष रूप से सावधान रहने की आवश्यकता है। जहाँ अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के नाम पर अनेक व्यक्तियों की जिंदगी से खेल हो जाता है। प्रेस परिषद के दिशा निर्देशों के अनुरूप प्रेस को स्व-विनियमन की आवश्कता ही नहीं अनिवार्यता भी है। जो प्रेस को उसके दायित्व बोध से जोड़ती है। जब पत्रकार स्व विवेक से समाज हित में निर्णय लेकर अपनी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता से दूससे व्यक्ति की मानहानि या समाज और राष्ट्र हित के लिए कदम बढ़ाएगा,स्वनियमन का पालन होगा तब अन्य विकल्प अव्यावहारिक और वैचारिक रूप से अस्वीकार्य रह जाएंगे। जवाबदेही की वर्तमान प्रणाली तभी सक्षम है जब केंद्र व राज्य सरकारों एवं स्थानीय और राष्ट्रीय मीडिया संगठनों की इच्छाएँ लोकतांत्रिक समाज की ज़रूरतों के साथ समन्वय रखती हो। किसी शासक, सरकार, सरकारी अधिकारियों, धर्म या धार्मिक नेताओं की आलोचना को रोकना; नस्लवाद को बढ़ावा देने वाले वीडियो को रोकना ; राष्ट्रीय कानूनों का उल्लंघन, जिनमें शामिल हैं: कॉपीराइट और बौद्धिक संपदा संरक्षण कानून, अभद्र भाषा,नैतिकता का उल्लंघन,राष्ट्रीय सुरक्षा कानून. युवाओं के लिए अनुपयुक्त समझे जाने वाले वीडियो तक पहुंच को रोकना एक सभ्य समाज,बालक अथवा किशोर के स्वस्थ विकास के लिए अनिवार्य आवश्यकता भी है ।

संदर्भ

नीलम राठी
प्रोफेसर, हिन्दी विभाग, अदिति महाविद्यालय, दिल्ली विश्वविद्यालय, दिल्ली
  
सिनेमा विशेषांक
चित्तौड़गढ़ (राजस्थान) से प्रकाशित पत्रिका
UGC CARE Approved  & Peer Reviewed / Refereed Journal 
  अपनी माटी (ISSN 2322-0724 Apni Maati) अंक-58, दिसम्बर, 2024
सम्पादन  : जितेन्द्र यादव एवं माणिक सहयोग  : विनोद कुमार

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