शोध आलेख : हरियाणवी सिनेमा की विकास यात्रा / कमलेश कुमारी

हरियाणवी सिनेमा की विकास यात्रा
- कमलेश कुमारी


शोध सार : हरियाणवी सिनेमा,हरियाणा की सांस्कृतिक धरोहर का प्रतिनिधित्व करता है। इसे स्थानीय संस्कृति और परंपराओं का दर्पण माना जाता है।  हरियाणवी सिनेमा की विकास यात्रा बीसवीं शताब्दी के छठे दशक से शुरू होकर अनवरत सफलता के नए आयाम  स्थापित कर रही है। यह सिनेमा केवल मनोरंजन का साधन है बल्कि यह हरियाणा की सामाजिक, आर्थिक और सांस्कृतिक समस्याओं को भी उजागर करता है। इस शोध पत्र में हरियाणवी सिनेमा की विकास यात्रा, इसके प्रमुख पहलुओं वर्तमान स्थिति का विश्लेषण करेंगे। हरियाणवी सिनेमा का समाज पर गहरा प्रभाव पड़ा है। यह केवल मनोरंजन का साधन है अपितु यह सामाजिक मुद्दों को उठाने का एक मंच भी है। जैसे-जैसे फिल्में रिलीज होती हैं, वे समाज के विभिन्न पहलुओं को उजागर करती हैं जैसे जातिवाद, महिला सशक्तिकरण और ग्रामीण जीवन से जुड़ी समस्याएं। इन फिल्मों ने युवाओं को जागरूक करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। हालांकि हरियाणवी सिनेमा ने कई सफलताएं हासिल की है किंतु इसके सामने कई चुनौतियाँ भी हैं। बाजार में हिंदी और अन्य क्षेत्रीय फिल्मों की प्रतिस्पर्धा बढ़ती जा रही है। हरियाणवी फिल्म उद्योग को उचित वितरक और प्रमोशन की कमी का सामना करना पड़ता है। इन चुनौतियों के बावजूद भी अनेक फिल्म निर्माता और कलाकार इस क्षेत्र में अपने कौशल को साबित कर रहे हैं। अनेक उतार-चढ़ाव के बाद भी हरियाणवी सिनेमा का भविष्य उज्ज्वल दिखाई देता है। यदि फिल्म निर्माता स्थानीय कहानियों एवं मुद्दों को सही तरीके से प्रस्तुत करें तो वे राष्ट्रीय तथा अंतरराष्ट्रीय पहचान बना सकते हैं। डिजिटल प्लेटफार्म के उदय ने हरियाणावी सिनेमा को एक नया अवसर प्रदान किया है जिससे हरियाणवी सिनेमा को वैश्विक पहचान प्राप्त करने की संभावना है। स्थानीय संस्कृति, परंपरा और सामाजिक मुद्दों को उजागर करने वाले  इस सिनेमा ने केवल हरियाणा में अपितु पूरे देश में एक विशेष स्थान बना लिया है। भविष्य में यदि इस दिशा में सही रणनीति अपनाई जाए तो हरियाणवी सिनेमा को एक नई ऊंचाई प्राप्त होगी।

बीज शब्द : संस्कृति, मनोरंजन, परंपरा, स्थानीय भाषा, प्रतिस्पर्धा, तकनीकी विकास, समस्याएं, महिला सशक्तिकरण, सामाजिक जागरूकता, भविष्य की संभावनाएं, डिजिटल प्लेटफॉर्म।

मूल आलेख : कला मानव की सृजनात्मकता और भावनाओं की अभिव्यक्ति का माध्यम है। यह विभिन्न माध्यमों में प्रकट होती है जैसे संगीत, चित्रकला, स्थापत्य कला, नृत्य, साहित्य और अभिनय कला। कला केवल सौंदर्य का अनुभव कराती है अपितु सामाजिक, राजनीतिक और व्यक्तिगत मुद्दों पर भी विचार करने के लिए प्रेरित करती है।यह संस्कृति और मानवता के विभिन्न पहलुओं को समझने का एक माध्यम है। कला एवं संस्कृति जीवंतता की पहचान है। कला और संस्कृति से किसी भी समाज वैचारिकी और सामाजिक विकास का अनुमान लगाना संभव है। कला की किसी भी विधा का जन्म अचानक नहीं होता। वह सूक्ष्म रूप में प्रकट होकर विकास के चरणों से गुजरती हुई शनै-शनै समाज की कलात्मक सोच और उस दिशा में उनके द्वारा किए गए सतत प्रयोगों से परिपक्व होती चली जाती है। सिनेमा की गणना आधुनिक कला के तौर पर की जाति है। सिनेमा के इतिहास पर दृष्टिपात किया जाए तो सिनेमा फ्रांस की देन है। प्रारंभ में छाया चित्रों के माध्यम से कथावाचक की सहायता से कथाओं को चित्रों के साथ मिलाते हुए मंच पर उसका प्रदर्शन किया। सिनेमा अपनी विकास यात्रा तय करता हुआ विश्व के प्रत्येक कोने में अपना फैलाव कर चुका है।सिनेमा कला का आधुनिकतम रूप है। सिनेमा, कला का  वह सशक्त माध्यम है जो अपने दर्शकों को किसी खास विषय-वस्तु पर आधारित कथा को दिखाता है, बताता है और मनोरंजन करते हुए दर्शकों के हृदयों में गहरे उतर जाने की अभूतपूर्व क्षमता रखता है। सिनेमा, कहानी कहने का एक प्रभावशाली माध्यम है। अन्य कई कलाओं की तरह सिनेमा भी देश, काल, सामाजिक संरचना और व्यक्ति की समस्याओं से सीधा जुड़ा रहता है। सिनेमा, कला की कई विधाओं जैसे साहित्य, चित्रकला, संगीत, नृत्य आदि का मिला-जुला रूप होता है।1

प्रत्येक समाज की अपनी लोक कथाएं होती है और लोककथाएं अपने आप में अत्यंत मनोहर, मनोरंजक, ज्ञानवर्धक, सशक्त और उपयोगी होती है इन कथाओं से प्रेरित होकर कला-साहित्य और कला साहित्य से प्रेरणा पाकर सिनेमा का जन्म हुआ है।नाटक प्राचीन विधा के बावजूद सिनेमा की आवश्यकता महसूस हुई क्योंकिमनुष्य की चेतना और आकांक्षा के विकास के साथ तकनीक, हुनर और कौशल के विस्तार से जुड़ा हुआ है... लिखित कलाओं की तरह क्रियात्मक कलाओं को भी सुरक्षित रख सकें-अपने उसी प्रभाव के साथ, जिस रूप में ये प्रदर्शित हुई है। यानी क्रियात्मक कलाओं के प्रदर्शन और प्रभाव को हम सिनेमा के जरिए गतिशील चित्रात्मक प्राणवत्ता प्रदान करते हैं विष्णु खरे ने फिल्मों को सभ्यता की प्रतिकृति कहा है,“फिल्में एक समूचे देश या सभ्यता का प्रतिबिंब हो सकती है।साथ हीव्यक्ति सामाजिक परिवर्तन, लोक जागरण बौद्धिक क्रांति की दिशा में भारतीय सिनेमा अविस्मरणीय है।सिनेमा समाज की आत्मकथा है अथवा एक व्यक्ति  की जीवनी। आत्मकथा जो सदैव अधूरी रहती है जीवनी जो कभी पूरी नहीं होती।  सिनेमा का माया-दर्पण इन्हीं दो निरंतरताओं के बीच स्वयं को खोजने की कोशिश है सिनेमा की प्रासंगिकता समाज के हर वर्ग, हर उम्र से संबंधित है। इसके निर्माण में जीवन के हर पहलू को आवश्यकतानुसार स्थान मिलना चाहिए।यह हृदय के अंत:स्थल को झकझोरता है एवं चिंतन करने को विवश करता है। इसलिए यह समाज के लिए दर्पण का कार्य करता है।7

भारत का सत्रहवाँ राज्य हरियाणा 1 नवंबर 1966 में पंजाब से अलग होकर स्थापित हुआ किंतु इससे पूर्व इस क्षेत्र को पंजाब प्रांत का हिंदी भाषी क्षेत्र समझा जाता था जो अनुचित था। एक विशेष सामाजिक और सांस्कृतिक विरासत के रूप में हरियाणा प्राचीन काल से विद्यमान रहा है। राजनैतिक तौर पर अलग होने के बाद यहाँ की बोली, कला और संस्कृति अपने समग्र तथा स्वतंत्र रूप में परिलक्षित हुई। हरियाणा प्रदेश की भौगोलिक, सांस्कृतिक और ऐतिहासिक विरासत के कारण इसे समस्त भारत का भाग्य विधाता, देव-स्थली और संस्कृति का पालना कहा जाता रहा है। वेद-मंत्रों से गुंजायमान, यज्ञधूमों से धवलीकृत, सरस्वती-स्नेह-सिक्त, महाभारत की साक्षी, गीता-गायिका, संतों की सेविका, बाणभट्ट, हर्षवर्धन और सूरदास सरीखे शारदा पुत्रों की धात्री, लोक संगीत की संरक्षिका, लोक-नृत्य एवं लोक नाट्य की रंग-स्थली यही हरियाणा भू है, जिसे अपनी गरिमाग्रंथित सांस्कृतिक परंपराओं एवं धर्मधाम होने के कारण भारतीय संस्कृति की जननी कहलाने का गौरव प्राप्त है।हरियाणा का सांस्कृतिक और ऐतिहासिक महत्व भारतीय समाज में अद्वितीय है।हरियाणा को भारतीय सभ्यता और संस्कृति की जन्मस्थली माना जाता है। वेदों, उपनिषदों, आरण्यक, ब्राह्मण, संहिता आदि ग्रंथों की रचना इसी पवित्र धरा पर हुई थी। मानव को जीवन की सही दिशा दिखने और प्रेरणा पुंज गीत के श्लोक इसी धरा पर गुंजायमान हुए। यहाँ के निवासियों की विशेषता के विषय में कहा गया है, “हरियाणा के लोगों का जीवन सरल एवं स्वच्छ है। ये बड़े स्वाभिमानी प्रकृति के होते हैं।9

हरियाणावी साहित्य और कला का इतिहास अत्यंत गौरवशाली रहा है। हरियाणवी का साहित्य लोक गीतों एवं लोकनाट्य के माध्यम से ही जन सामान्य में व्याप्त हुआ। वह कालखंड जब हरियाणा की धरा पर जन्म लेकर पंडित लखमीचंद, पंडित मांगेराम, बाजे भगत एवं अनेक विभूतियों ने इस धरा का सृजन कार्य किया है। मनोरंजन और जनजागृति के संवाहक सांग परंपरा समय के बदलाव के साथ तकनीकी प्रगति के चलते कलाओं की अभिव्यक्ति के माध्यमों में बदलाव होता चला गया। रंगमंच और आधुनिक सिनेमा का उत्थान इसी प्रक्रिया के उदाहरण है।हरियाणवी लोक  नाट्य यहाँ के समाज की वस्तु है उसमें व्यक्ति विशेष कल्पनाओं, मान्यताओं की अनुकृति नहीं है। पं लखमीचंद के सांग उनके निजी व्यक्तित्व से ही परिव्याप्त नहीं है। उसमें तो उस लखमी की अनुभूतियों का चित्रण है, जो हरियाणा की जनता की प्रतिनिधि है और जो जनता की मूक एवं प्रसूत भावनाओं को मुखरित करता है।10

हरियाणवी सिनेमा हरियाणा की लोक संस्कृति, भाषा और परंपराओं का प्रतिबिंब है। किसी भी समाज अथवा प्रदेश की संस्कृति की पहचान उस समाज के लोक साहित्य, लोक संगीत, लोक गीत एवं लोक नृत्य होते हैं। समय के प्रवाह के साथ नए संदर्भ अर्थात क्षेत्रीय सिनेमा भी अपने प्रदेश का प्रतिनिधित्व करते हैं। हरियाणवी सिनेमा के लिए सबसे पहले सत्यजीत फिल्म्स इंटरनेशनल, बंबई के बैनर तले  1973 में प्रेमगाथा पर आधारित फिल्मबीरा शेराप्रदर्शित हुई जो कि 118 मिनट की श्याम-श्वेत थी। इसके निर्माता-निर्देशक के.के. कुन्द्रा और प्रदीप . नय्यर थे। अशोक राज, मीना राय, चंदर सिंह, सरिता देवी आदि कलाकार मुख्य भूमिका में रहे। इसमें कुल सात गीत थे। तत्पश्चात 1974 में 133 मिनट 1 अवधि की यह फिल्म जुलाणी गाँव के चौधरी हरफूल सिंह के जीवन पर आधारितचौधरी हरफूल सिंह : जाट जुलानी आलाकंबोज फिल्म्स, बंबई के बैनर तले प्रदर्शित हुई। आनंद जैलदार, मालती धनराज, मोहन शैतान,पुष्पा शाह आदि कलाकार मुख्य भूमिका में रहे। लेकिन ये दोनों फिल्में आम जनमानस तक अपनी जगह बनाने में असफल रही।दोनों फिल्में बालीवुड के फ़िल्मकारों की देन थी। इनमें काम  करने वाले करीब सभी कलाकार भी वहीं के थे। हरियाणवी संस्कृति से कोसों दूर इन फिल्मों को स्थानीय जनमानस ने सिरे से ही नकार दिया। परिणामतः मुंबइया ढर्रे पर बनी फिल्में फ्लाप रही।11 क्षेत्रीय फिल्मों में अपनी माटी की गंध होना जरूरी है, जो फिल्म की सफलता निर्धारित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है।

1976 के आसपाससुविख्यात हिंदी फिल्म निर्देशक श्याम बेनेगल वृत्तचित्र का फिल्मांकन करने हरियाणा के रोहतक जिले में आए। उन्होंने वहाँ के स्थानीय रंगकर्मियों जिनमेंयुद्धवीर मलिक, सुमित्रा हुड्डा,और रवींद्र मलिक आदि को शामिल किया जिससे हरियाणा प्रदेश के युवाओं में अभिनय के प्रति लगन लगी।  इस प्रकार श्याम बेनेगल को हरियाणवी सिनेमा के उद्भव में प्रेरक के रूप में स्वीकार किया जाता है। तत्कालीनयुवा कलाकारों के उत्साह ने फिल्म निर्माण के सपने देखने प्रारंभ कर दिए। लगभग चालीस युवाओं ने मिलकरहरियाणा राज्य चलचित्र विकास सहकारी समितिबनाई जिसका अध्यक्ष उषा शर्मा और उपाध्यक्ष वीरेंद्र भार्गव, सचिव अरविन्द स्वामी को नियुक्त किया गया। आर्थिक सबलता के लिए लगभग सभी ने व्यक्तिगत स्तर पर योगदान दिया। कुछ मुंबई के रंगकर्मी हबीब तनवीर, बलवंत गार्गी, शशि सक्सेना, पिंचू कपूर और तिलक राज आदि ने प्रेरक वातावरण तैयार किया। तत्पश्चात हरियाणा की प्रथम मौलिक फिल्मबहुराणीवीरेंद्र भार्गव तथा बाद में सत्येन सिंह रावल को फिल्म का निर्देशक बना दिया। नायिका का किरदार सुमित्रा हुड्डा ने तथा शशि रंजन ने नायक की भूमिका निभाई। जे.पी. कौशिक, भूपेन्द्र, भाल सिंह बल्हारा, दिलराज कौर और सविता साथी के मधुर गीतों ने दर्शकों का मन मोहा-‘मनै इब कै बचा ले मेरी माँ बटेऊ आया लेवण नै/ साथण चाल पड़ी मेरे डब-डब भर आए नैन/ सपेले बीण बजादे चालूँगी तेरे साथ/ बदन सिंह फागण आया तथा बगड़ो का रूप देख मेरे दिल पै चाली आरी रै कुलमिलकर कहा जा सकता है कि अनेक कारणों के चलते यह फिल्म आम जनमानस में लोकप्रिय नहीं हो पाई। फिल्म निर्माण में लगे लोगों में कलह और अहंकार इस फिल्म की असफलता का मुख्य कारक बने। 

बहुराणीफिल्म में आपसी खींचतान और असामंजस्य के प्रतिफल मेंचंद्रावलफिल्म प्रभाकर फिल्म्स के बैनर तले 1984 में प्रदर्शित हुई। इस फिल्म में मुख्य किरदार उषा शर्मा ने नायिका और जगत जाखड़ नायक की भूमिका में रहे। अनूप लाठर, कंवर औंकार सिंह तेवतिया, रेखा वर्मा, राजू मान, रामचंद्र गिरधर, तारीफ सिंह, लीला सैनी, शारदा वर्मा, पुष्पा खत्री, गीता शर्मा, कावेरी, रामपाल बल्हारा, मास्टर निशान आदि के अभिनय ने लोहा मनवाया। दरियाव सिंह मलिक, नसीब कुंडु, प्रशांत शुक्ला आदि हास्य कलाकारों का अभिनय आज भी दर्शकों के दिलों में जीवंत है। कहानी और पटकथा लेखक देवीशंकर प्रभाकर और उन्हीं के बेटे जयंत प्रभाकर ने निर्देशन किया। उस समय के जानेमाने गायक-गायिका जेपी कौशिक, भाल सिंह बल्हारा, दिलराज कौर और विजया मजूमदार ने अपनी गायकी से इस फिल्म में गाए गए छह गानों को अमर बना दिया। परदेसी लौट रे/ जीजा तू काला मैं गौरी घणी/मैं सूरज तू चांद्रवल म्हारा जोड़ा ठाठ का/ गाड़े आली गजबन छोरी भादरगढ़ का बम/ मेरा चुंदड़ मांगदे हो नणदी के बीरा/ नैन कटोरे काजल कौरे मैं तो तन मन हार गयालोकधुन पर गाए गए गीतों नेचंद्रावलकी जोरदार सफलता में अहम भूमिका निभाई। सामाजिक तानेबाने और अंतरजातीय विवाह में समाज की क्रूरता को बड़े फलक पर दिखाया गया है।चंद्रावलकी लोकप्रियता का ऐसा जादू चला कि स्थानीय थियेटरों में एक नया दर्शक वर्ग तैयार हुआ-वह थी महिलाएं। इससे पूर्व शायद महिलाएँ  थियेटर में नहीं गई थी।इसके ढाई लाख में बनकर तैयार हुई यह फिल्म बाक्स ऑफिस हिट होती हुई लगभग पाँच करोड़ की कमाई तक पहुँच गई जो उन दिनों बालीवुड के सुपरस्टार अमिताभ बच्चन और राजेश खन्ना भी इतनी ही कमाई कर रहे थे।चंद्रावलने पहला नायक और गायक दिया साथ ही जेपी कौशिक जैसा पहला संगीतकार दिया।

चंद्रावलकी रिकार्ड तोड़ सफलता के पश्चात फिल्म निर्माण व्यवसाय में लोगों को अपार संभावनाएं नजर आने लगी और हरियाणवी सिनेमा एक मनभावन सफर पर निकाल पड़ा। इसी वर्षके सुपने का जिकर करूंफिल्म रिलीज हुई। सफलता की जिस उम्मीद के साथ यह फिल्म बनाई गई थी उससे बिल्कुल विपरीत रहा। फूहड़ता के आरोपों से घिरी यह फिल्म कमाई नहीं कर पाई। अगले वर्ष 1985 में पाँच फिल्में बनीछैल गैल्या जांगी’, ‘लीलो  चमन’, ‘प्रेमी रामफल’, म्हारा पीहर सासरा’, ‘चंद्र किरणप्रेम कहानी, सामाजिक समस्याओं पर आधारित ये फिल्में सफलता की ऊंचाइयों को नहीं छू पाई। 1986 में फिल्म निर्माण में तेजी आई और लगभग 12 फिल्में इस वर्ष प्रदर्शित हुई जो हरियाणवी फिल्म उद्योग के इतिहास में सबसे अधिक रही।लाडो बसंती’, ‘गुलाबो’, ‘पनघट’, ‘रामायण’, ‘भंवर-चमेली’, ‘छैल गाबरु’, ‘चंद्र कांता’, ‘म्हारी धरती म्हारी माँ’, ‘ले ज्याग लणिहार’, ‘छोरा जाट का’, ‘भाभी का आशीर्वाद’, ‘छोटी साली’,इनके कुछ गीत लोगों की जुबान पर रहे लेकिन ये फिल्में कोई कमाल नहीं दिखा सकी।

बटेउऔरझनकदार कंगनादो फिल्में 1987 में रिलीज हुई। इन फिल्मों ने भी बाक्स ऑफिस में अपनी बढ़त नहीं दिखाई। अगले वर्ष नौ फिल्में रिलीज हुई-‘फूल बदन’, ‘धन पराया’, ‘छोरी सपेले की’, ‘फगण आया रे’, ‘चंद्रों’, ‘बैरी’, ‘लबम्बरदार’, ‘घूँघट की फटकार’, ‘छोरा हरियाणे कासमाज सुधार, सामाजिक यथार्थ और प्रेम कथा पर आधारित ये फिल्में व्यवसाय  की दृष्टि से अधिकतर फ्लॉप रही। कुछ फिल्मों में तकनीकी दृष्टि से सुधार हुआ। 1989 मेंजर जोरू और जमीन’, ‘छन्नों’, ‘यारी’, ‘ये माटी हरियाणे कीये फिल्में अभिनय और संवाद की दृष्टि से उत्कृष्ट रही किंतु कमाई नहीं कर सकीं। अगले दस वर्षों में कम ही फिल्में बन पाई -‘खानदानी सरपंच’, ‘जाटणी’, ‘छबीली’, ‘जाट’, ‘छोरी नट की’, ‘जनेत्तीसामाजिक कटाक्ष करती ये फिल्में सफलता के परचम नहीं लहरा पाई।

नई सदी सन् 2000 में बनी फिल्मलाडोप्रो. सुरेन्द्र चौधरी की सुप्रसिद्ध पुस्तकलाडोपर आधारित रही अवैध संबंधों के कथानक पर बनी फिल्म में प्रतिष्ठित रागणीकार राजेंद्र खरकिया ने गीतों में स्वर दिया।पाणी आली पाणी प्यादेगीत  इस फिल्म की ताकत बना। किंतुराष्ट्रीय फिल्म विकास निगम के सहयोग से बनीलाडोको हरियाणवी महिलाएं देखने से लगभग वंचित रही।12  हरियाणवी फिल्म उद्योग में काफी गिरावट आती चली गई। 2001-02 मेंचंद-चकोरी’, ‘पिया’,  2007 से अब तकपीहर की चुंदड़ी’, ‘मुठभेड- प्लांड एनकाउंटर’, ‘चंद्रावल-2’, ‘तेरा मेरा वादा’, ‘दबंग छोरा’, ‘मॉडर्न गर्ल देसी छोरा’, ‘माटी करे पुकार’, ‘लंदन की छोरी’, ‘कुनबा’, ‘फाइटर-वार 4 लव’, ‘पगड़ी : ऑनर’, ‘तेरे तै प्यार होया’, ‘छोरियां छोरों  से कम नहीं होती’, ‘दादा लखमीआदि फिल्मों ने धीरे-धीरे क्षेत्रीय सिनेमा की और दर्शकों  का ध्यान खींचा है। 2015 में विज्ञान भवन दिल्ली मेंपगड़ी : ऑनरको सर्वश्रेष्ठ हरियाणवी फिल्म का राष्ट्रीय पुरस्कार प्राप्त हुआ। 2022 में यशपाल शर्मा के अभिनय और निर्देशन में सांग सम्राट पंडित लखमीचंद के जीवन और संगीत यात्रा पर आधारित फिल्मदादा लखमीचंदने सर्वश्रेष्ठ क्षेत्रीय फिल्म का खिताब जीता। ओटीटी प्लेटफॉर्म केस्टेज एपपर इस फिल्म ने खूब धूम मचाई।

हरियाणा में ऐसी अनेक प्रेरक प्रतिभाएं हैं जिन्होंने भारतीय सिनेमा जगत में अपनी अमिट छाप छोड़ी है जिनकी पहचान राष्ट्रीय ही नहीं अंतरराष्ट्रीय स्तर पर रही है अनेक यादगार फिल्मों को हिंदी सिनेमा की झोली में डालने वाले निर्माता निर्देशक के रूप में प्रतिष्ठित शोमैन के नाम से प्रसिद्ध सुभाष घई हरियाणा के रोहतक जिले के निवासी हैं। हरियाणवी की सुपरहिट फिल्मोंबहुरानी’, ‘प्यार भरतार’, प्रेमी रामफल’, में अपने अभिनय का लोहा मनवाने वाले अभिनेता से निर्देशक बने राजेश बक्शी भी रोहतक निवासी हैं इसी शहर से हरविंद्र मलिक, रणदीप हुड्डा, पायल एवं मल्लिका शेरावत जाने माने नाम है। ओमपुरी जो मूल रूप से तो पंजाब के  रहने वाले थे किंतु शिक्षा अंबाला से प्राप्त कर की। उन्होंने हरियाणवी फिल्मसांझीमें अभिनय किया। प्रियंका चोपड़ा का बचपन हरियाणा में बीता है। समंदर सिंह अहलावत ने अपना फिल्मी सफर अरविन्द स्वामी निर्देशित प्रसिद्ध हरियाणवी फिल्मछैल गैल्यां जांगीसे प्रारंभ कर अनेक हरियाणवी फिल्मों में अपना अभिनय किया है। तत्पश्चात हरियाणा की कलात्मक माने जानी वाली फिल्मपिंगला भरथरीके सहायक निर्माता के रूप में काम किया। आगे चलकर बालीवुड की हिट फिल्मेंकोयला’, ‘सोल्जर’, ‘बादशाहआदि फिल्मों में सहायक निर्देशक  की भूमिका निभाई। राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार से सम्मानित निर्देशक अश्विनी चौधरी नेलाडोफिल्म का निर्माण हरविंद्र मलिक केसाथ किया। हिंदी फिल्म अभिनेता  आशुतोष राणा ने भी  इस फिल्म में अभिनय किया था। यशपाल शर्मालगान’, ‘सिंह इज किंगआदि सुपरहिट फिल्मों में काम किया। गिरीश धमिजा नेयकीनभव्य फिल्म बना चुके हैं। सुप्रसिद्ध अभिनेता करनाल से, गजल गायक जगजीत कुरुक्षेत्र से संबंधित है। सुनील दत्त यमुनानगर, सैफ अली खान पटौदी सेसोनू निगम, सतीश कौशिक, मेघना मलिक, .के.अब्बास आदि अनेक महान हस्तियों ने अपनी मेहनत और प्रतिभा के बल पर स्थापित हुए।

हरियाणवी साहित्य, संस्कृति एवं सिनेमा के मार्गदर्शक, निर्माता-निर्देशक के रूप में जाने माने देवीशंकर प्रभाकर का नाम बड़े आदर सहित याद किया जाता है। हरियाणवी लोक संस्कृति का उनके बिना जिक्र अधूरा है। हरियाणा प्रदेश के अस्तित्व में आने से पहले ही हरियाणवी संस्कृति को राष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलवाने वाले देवीशंकर प्रभाकर ही थे। उन्होंने केवल निर्देशन और लेखन का कार्य किया है बल्कि हरियाणवी संस्कृति और जीवन शैली को अपनी फिल्मों के माध्यम से उजागर ही किया, भारतीय सिनेमा को एक नई दिशा दी। प्रभाकर की फिल्मों में संवेदना, वास्तविकता और मानव अनुभव की गहरी समझ देखने को मिलती है। प्रेरक व्यक्तित्व के रूप में देवीशंकर प्रभाकर का वही स्थान है जो बांग्ला फिल्मों के संदर्भ में विमल राय का है। उनके द्वारा निर्देशित हरियाणवी फिल्मबहुरानीको पहली फिल्म का दर्जा दिया जा सकता है। इस फिल्म के निर्माण, फिल्मांकन एवं अन्य कारणों  से संतुष्ट नहीं होने पर उन्होंने स्वतंत्र प्रयास से 1984 मेंचंद्रावलफिल्म बनाई जिसमें सभी पक्षों को समग्र एवं विराट स्वरूप प्रदान कर संस्कृति के सरोकार पूरे किए।चंद्रावलने हरियाणा ही  नहीं पंजाब, राजस्थान,उत्तर प्रदेश सहित सम्पूर्ण उत्तर भारत में सफलता का परचम लहराया। तत्कालीन फिल्मशोले’, ‘बॉबीको हो रही दर्शकों की कमी ने  मुंबई के फिल्म निर्माताओं का ध्यान हरियाणा की इस फिल्म की ओर आकर्षित किया था।13 लाडो बसंती(1985)’, ‘फूलबदन(1986 )’ और जाटणी(1991)आदि सफल फिल्मों के निर्माता-निर्देशन का कार्य किया।

हरियाणा के प्रथम फिल्म संगीतकार, स्वतंत्रता सेनानी, सेना अधिकारी, कुशल तैराक, ‘दादा साहब एकेडमी अवार्डसे सम्मानित महान संगीतकार जगफूल कौशिक ने अपने संगीत कैरियर की शुरुआत 1963 में हिंदी फिल्मशहर और सपनासे की थी। इस फिल्म के संगीत को राष्ट्रपति के स्वर्णपदक के साथ बंगाल जर्नलिस्ट एसोसिएशन की ओर से बैस्ट म्यूजिक डायरेक्टर का अवार्ड भी मिला। उनके संगीत निर्देशन में मोहम्मद रफी, मन्ना डे, महेंद्र कपूर, आशा भोंसले, गीता दत्त जैसे ख्यातिनाम  गायकों के साथ सुलक्षणा पंडित, कृष्णा काले, विजया मजूमदार, बेला सावेरा, अनुराधा पौड़वाल, दिलराज कौर ने स्वर साधना की। साथ ही हरियाणवी फिल्मबहुराणीऔरचंद्रावलके संगीत ने खूब धूम मचाई और राजस्थानी फिल्मधर्म भाईऔरलाडो रानीके संगीत ने भी अनेक अवार्ड जीते। हिंदी, हरियाणवीराजस्थानी, गुजराती, पंजाबी, इंग्लिश और बाल फिल्मों में बेहतरीन संगीत मील का पत्थर साबित हुआ।

हरियाणवी सिनेमा को शीर्ष पर पहुँचाने का कार्य भाल सिंह बल्हारा ने किया। अभिनय और गायन से अपने कैरियर की शुरुआत की।इनके द्वारा गाएबहुराणीऔरचंद्रावलहरियाणवी फिल्मों के गीतों ने प्रदेश में ही नहीं अपितु पड़ोसी राज्यों में भी तहलका मचाया और इन्हें हरियाणा का रफी कहा जाने लगा। इन्होंने हिंदी, हरियाणवी ही नहीं पंजाबी सहित अनेक अलबम में गायन किया।  इन्होंने अनेक हरियाणवी के अमर गीत गए जो हरियाणवी सिनेमा की पहचान बने-बगड़ो का रूप देख, मेरे दिल पै चाल्ली आरी रै/देवलोक की एक परी सै, स्वर्ग धाम तै जो उतरी सै एवं एक गीत दिलराज कौर के साथ-सपेले सपेले, रे सपेले बीन बजादे, चलूँगी तेरे साथ साथ ही छैल गैल्यां जांगी, छैल गाबरू, छोटी साली, छोरा जाट का, गुलाबो, म्हारी धरती म्हारी माँ, लागी छूटे ना (हिंदी) आदि गीत गाकर लोगों के दिलों में जगह बनाई। 

अपने अभिनय का लोहा मनवाने वाले हरियाणवी लोक संस्कृति के अद्वितीय नायक अनूप लठार का नाम बहुत ही सम्मान के साथ लिया जाता है। हरियाणवी सुपर हिट फिल्मचंद्रावलमें सहनायक चंदरिया औरलाडो बसंतीमें नायक के अभिनय का उत्कृष्ट रूप देखा जा सकता है।  संगीत, अभिनय एवं रंगमंच पर अपनी अनोखी छाप छोड़ने वाले अनूप लाठर अकादमिक जगत में स्वर्ण पदक प्राप्त कर एक ओर अपनी बौद्धिकता को प्रमाणित कर रहे थे तो दूसरी और भारतीय संस्कृति के सिपाही बन अपनी पूरी तन्मयता से काम कर रहे थे। उसी दौरानरानी जिंदापंजाबी नाटक में में काम के लिए विदेश जाने का अवसर मिला। किंतु मातृभूमि के सच्चे सपूत युवा अनूप लाठर हरियाणवी संस्कृति के लिए काम करने का जज्बा लिए स्वदेश लौट आए और अपना सम्पूर्ण जीवन लोक संस्कृति के उत्थान के लिए संकल्पित किया। उन्होंने अपने अभिनय से पात्रों को यादगार बना दिया। उनके अनेक संवाद आज भी दिलों में अपनी जगह बनाए हुए हैं उन्होंने अनेक संगों का मंचन भी किया। हरियाणवी संस्कृति के प्रचार प्रसार के लिए उन्होंने अनेक पदों को ठुकराते हुए हरियाणवी संस्कृति और युवाओं को जोड़ने के लिए कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय के सांस्कृतिक विभाग में निदेशक रहे। हरियाणा दिवस पररत्नावली उत्सवका आयोजन उनकी सृजनात्मकता और दूरदृष्टि का परिचायक है।हरियाणवी संस्कृति के अनूठे नायक के रूप मेंइंडिया टुडेने उनको देश भर के बीस लोगों में शामिल किया जो अपनी लोक संस्कृति के प्रति गंभीरता एवं समर्पण भाव से कार्यरत हैं। लोक संस्कृति के सरोकार निभाने की दिशा में चाहे लेखन हो, निर्देशन हो, अध्ययन हो, एक अनवरत सिलसिला हम उनके कामों में देख सकते हैं।14

ठेठ हरियाणवी बुलंद आवाज में सुप्रसिद्ध हरियाणवी फिल्मबहुराणीसे अपनी पहचान बनाने वाली दिलराज कौर हरियाणा की लता कहलाई। एक कलाकार कभी भी भाषाओं की सीमा में नहीं बांधता यह बात दिलराज कौर ने साबित कर दी। उन्होंने केवल हरियाणवी, हिंदी गीतों में अपनी आवाज दी बल्कि पंजाबी राजस्थानी, बृज, अवधी, सिंधी, कश्मीरी, गुजराती, बंगला, उड़िया, गुजराती, मराठी की विभिन्न विधाओं भजन, गीत, गजल, ठुमरी, रसिया, दादरा, टप्पा आदि पर समानाधिकार रूप में गायन किया। अकादमिक योग्यताओं को  हासिल कर इन्होंने लोक संगीत से गायन शुरू किया। पहली बारबहुराणीहरियाणवी फिल्म में भाल सिंह बल्हारा के साथ स्वर दिया। अपने समय के सभी बड़े गीत-संगीतकारों के साथ  सह गायिका के रूप में उपलब्धि प्राप्त की। उनकी स्वर से अपनी खास पहचान बनाने वाली चर्चित हरियाणवी फिल्में-बहुराणी, चंद्रावल, सांझी,लीलो चमन, पनघट, बटेऊ, प्रेमी रामफल, भंवर चमेली, लाड्डो बसंती, पराया धन, फूल बदन, ये माटी हरियाणे की, घूँघट की फटकार, पीहर की चुंदड़ी, कुणबा आदि फिल्मों में सैंकड़ों गीतों को स्वर दिया। हिंदी की चर्चित फिल्मों में भी लगभग सैंकड़ों गीतों का गायन किया है। रामायण, महाभारत, जय गंगा मैया, कृष्णा, अलिफ़ लैला आदि लोकप्रिय धारावाहिकों में भी उनके स्वर की विशेष भूमिका रही।

लोक संस्कृति के सजग प्रहरी एवं वाहक रघुविंदर मलिक हरियाणवी सिनेमा के सशक्त हस्ताक्षर हैं।बहुराणीमें अपने अभिनय की छटा बिखेर कर दर्शकों के दिलों में राज किया।बहुराणीफिल्म में उनका एक संवादजिब तेजा म्हं तेजी आवै तो कोई नहीं रोक साकताआज भी लोगों की यादों में ताजा है। नॉर्थ इंडिया फ़िल्म प्रोड्यूसर्स एसोसिएशन द्वाराबेस्ट एक्टर विलेनका अवार्ड दिया गया। रघुविंदर मलिक के सद् प्रयासों से ख्यातिलब्ध कलाकारों ओमपुरी, सदाशिव आदि कोसांझीमें लाकर विशेष भूमिका में काम किया।

हिंदी, हरियाणवी, पंजाबी, राजस्थानी, गढ़वाली, डोगरी, हिमाचली, उर्दू, गुजराती, बंग्ला आदि भाषाओं के गीतों में स्वर देकर  सविता साथी ने गायन के क्षेत्र में अपनी विशेष पहचान कायम की। हरियाणवी हिट फिल्मों में अपनी आवाज के जादू से लोगों को मंत्रमुग्ध किया। भाल सिंह बल्हारा के सह गायन मेंछैल गैल्यां जांगीमें पहली बार हरियाणवी गीत में अपना स्वर दिया। साथ ही लगभग बीस हरियाणवी फिल्मों के गीतों का गायन किया। असंख्य पुरस्कारों और सम्मान इनकी खनकती आवाज के लिए प्राप्त हुए। 

सुप्रसिद्ध हरियाणवी फिल्मलाडोमें सह निर्माता के तौर पर पदार्पण करने वाले हरविंद्र मलिक  सिनेमा, लेखन और ललित कलाओं से जुड़ी जानी-मानी हस्ती है। असंख्य लोक गीतों के एलबम गिटपिट और -वन तहलका हरियाणवी चैनल की शुरुआत कर हरियाणवी संस्कृति को सहेजने का कार्य किया। रमानंद सागर द्वारा निर्मित रामायण का हरियाणवी में डब करवाकर प्रसारित करवाया। बालीवुड में अनेक हिट फिल्मों का सह निर्देशन किया जिनमें मुख्य रूप से-हम है रही प्यार के, इन्हीं दिनों जुनून, सर, मिलन, ताड़ीपार, और फिर तेरी कहानी याद आई आदि।हरियाणवी बोली में टेलीविजन पर पहली बार खबरों का सिक्सर नाम से बुलेटिन प्रसारित करवाने का श्रेय भी हरविंद्र मलिक को ही जाता है। इन सबके साथ-साथ -वन तहलका हरियाणा पर हरियाणवी चित्रहार, कविता टाइम, म्हारे गीत जैसे कार्यक्रम हरविंद्र मलिक की ही सोच का परिणाम है...हरियाणवी संस्कृति और फिल्मों से लोगों को गर्व से जोड़ने के बारे में बहुत बड़ा योगदान निभाया।15

हरियाणवी सिनेमा की अद्वितीय फिल्मचंद्रावलसे जीवंत अभिनय की शुरुआत जिसकी यात्रा- लाडो बसंती, गुलाबो, जर जोरू और जमीन, छोटी साली, म्हारी धरती म्हारी माँ, म्हरा पीहर सासरा, नटखट, लाट साहब, फक्कड़, करजा, माटी करै पुकार आदि  अनेक  फिल्मों में शानदार अभिनय किया। जमीनी कलाकार राजू मान ने हिंदी फिल्मलागी छूटे नापहली बार अभिनय किया। शाहरुख खान के साथअधूरी जिंदगीतथासही बंदे-गलत धंधे’, ‘कुलज्योतिजैसी चर्चित फिल्मों  में अभिनय किया। बहुआयामी व्यक्तित्व के धनी समर्पित अभिनेता जोगेन्द्र कुंडु ने अपने अभिनय के जौहर से अपनी एक विशेष पहचान स्थापित की है।चंद्रावल-2’,‘कुणबा’,‘माडर्न गर्ल देसी छोरा’,‘माटी करै पुकार’,‘बन्नोआदि बड़े पर्दे की अनेक हरियाणवी फिल्मों में अभिनय कर चुके हैं।जोधा अकबरमें रितिक रोशन के साथ अभिनय कर चुके हैं।इश्क में रिश्क’,‘जाट’,‘क्रांतिकारी योद्धाआदि उनकी चर्चित फिल्में हैं। मनफूल सिंह डांगी ने गायन के मध्य से हरियाणवी संस्कृति के वाहक के रूप में उपस्थिति दर्ज की।

पिछले दो दशकों में हरियाणवी सिनेमा में तकनीकी उन्नति के साथ महत्वपूर्ण परिवर्तन देखे हैं। डिजिटल युग के आगमन ने केवल फिल्म निर्माण की प्रक्रिया को सरल बनाया है बल्कि इसके परिणामस्वरूप गुणवत्ता और प्रस्तुति में भी सुधार हुआ है। हरियाणवी सिनेमा में तकनीकी सुधारों ने इसे और भी आकर्षक बनाया है। फिल्म निर्माण में डिजिटल तकनीकी के उपयोग ने उत्पादन लागत को काम किया है। साउंड और विजुअल इफेक्ट्स के क्षेत्र में भी नई तकनीकों का प्रयोग किया जा रहा है जिससे फिल्में और भी बेहतर बन रही है। सन् 2000 के बाद हरियाणवी सिनेमा में डिजिटल तकनीकी का उपयोग तेजी से बढ़ा है। पहले फिल्म निर्माण में फिल्म कैमरों और एनालॉग प्रोसेसिंग का उपयोग होता था जिससे उत्पादन में अधिक लागत और समय लगता था।

हरियाणवी सिनेमा में हरियाणा की धरती, जनमानस, रीति-रिवाज, रहन-सहन का मूल रूप में चित्रण हुआ साथ ही सामाजिक मुद्दों को भी अपने कथानक में शमिल किया है। जातिवाद, महिला सशक्तिकरण और ग्रामीण विकास जैसे विषयों पर कई फिल्में बनी है। ये फिल्में मनोरंजन के साथ-साथ समाज में जागरूकता फैलाने का कार्य करती है। हरियाणवी सिनेमा का भविष्य उज्ज्वल है। फिल्म निर्माण के साथ-साथ डिजिटल प्लेटफॉर्म पर भी हरियाणवी कंटेंट की मांग बढ़ रही है। युवा फिल्म निर्माताओं की नई पीढ़ी पारंपरिक मुद्दों को आधुनिक दृष्टिकोण से प्रस्तुत कर रही है। इससे हरियाणावी सिनेमा को एक नई दिशा और पहचान बन रही है। हरियाणवी सिनेमा ने अपनी विकास यात्रा में अनेक पड़ावों का सामना किया है। आज यह केवल हरियाणा बल्कि सम्पूर्ण भारत में एक महत्वपूर्ण पहचान बना चुका है। हरियाणवी बोली, कहानियों, पात्रों एवं कलाकारों ने हिंदी सिनेमा में भरपूर स्थान दिया जाने लगा है जिससे पर्याप्त मात्रा में दर्शक समूह को हरियाणवी सिनेमा की ओर आकर्षित किया है। निश्चित रूप से भविष्य में भी हरियाणवी बोली तथा उसका सिनेमा राष्ट्रीय ही नहीं अपितु अंतरराष्ट्रीय स्तर पर स्वयं को स्थापित करेगा।  

हरियाणवी सिनेमा को अनेक चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। अन्य क्षेत्रीय सिनेमा की भांति हरियाणवी सिनेमा के लिए मानक एवं नीतियाँ निर्धारित की जानी चाहिए।महाराष्ट्र के सिनेमाघरों में, साल में कम से कम चार सप्ताह मराठी फिल्में दिखाना अनिवार्य है। ऐसा करने पर लाइसेंस रद्द कर दिए जाते हैं।16 राज्य सरकारों को भी क्षेत्रीय सिनेमा को बढ़ावा देना चाहिए।संविधान में जिन भाषाओं को स्थान मिला है, उनमें हरियाणवी नहीं है। हरियाणवी बोलियों में आती है। इसलिए फिल्म समारोहों फिल्म पुरस्कारों में हरियाणवी फिल्मों को शामिल नहीं किया  जाता। जहां तक बोलियों की फिल्मों को समारोह में शामिल करने की बात है, इस बारे में नियम काफी कड़े हैं। एक साल में उसी बोली की तीन फिल्मों का होना जरूरी है, तभी उन्हें फिल्म समारोह में शामिल करने पर विचार किया जा सकता है। राष्ट्रीय फिल्म विकास निगम भी हरियाणवी फिल्मों के निर्माण में मदद नहीं करता है।17

संदर्भ :

       1.   सिन्हा, प्रसून, भारतीय सिनेमा... एक अनंत यात्रा, श्री नटराज प्रकाशन, संस्करण 2006, पृष्ठ 15
2.   सिन्हा, प्रसून, भारतीय सिनेमा... एक अनंत यात्रा, श्री नटराज प्रकाशन, संस्करण 2006, पृष्ठ 19
3.   मृत्युंजय, संपादक, सिनेमा के सौ बरस, शिल्पायन प्रकाशन, दिल्ली, संस्करण 2017, पृष्ठ 29
4.   खरे विष्णु, सिनेमा समय, अनन्य प्रकाशन, दिल्ली, संस्करण 2018, पृष्ठ 126
5.   कुंदे, पुरुषोत्तम,संपादक, साहित्य और सिनेमा, साहित्य संस्थान, गाजियाबाद, संस्करण 2014, पृष्ठ 315
6.   शाक्य, दिलीप, सिनेमा का माया दर्पण, अतुल्य पब्लिकेशन, दिल्ली, संस्करण 2018, पृष्ठ 7
7.   शुक्ला, मधुरानी, संपादक, भारतीय सिनेमा की विकास यात्रा, कनिष्क पब्लिशिंग हाउस, दिल्ली, संस्करण 2018
8.   शर्मा ,पूर्णचंद, हरियाणवी भाषा, साहित्य एवं संस्कृति, संस्करणपहला संस्करण, पृष्ठ-1
9.   महिमा, डॉ., हरियाणा संस्कृति एवं कला, निर्मल पब्लिशिंग हाउस, कुरुक्षेत्र संस्करण 2015, पृष्ठ 2
10. वालिया, डॉ. दीपिका, हरियाणवी संस्कृति के विविध परिदृश्य, संजय प्रकाशन, नई दिल्ली, संस्करण 2014, पृष्ठ 115       
11. सैनी,सुशील, हरियाणवी सिनेमा दशा और दिशा, अर्थ विजन पब्लिकेशन, गुड़गांव, संस्करण 2016, पृष्ठ,17
12. सैनी, सुशील, हरियाणवी सिनेमा दशा और दिशा, अर्थ विजन पब्लिकेशन, गुड़गांव, हरियाणा, संस्करण 2016, पृष्ठ  55
13.  वर्मा, रोशन, हरियाणवी सिनेमा संदर्भ कोश, लक्ष्य बुक्स, पंचकुला, हरियाणा,संस्करण 2015, पृष्ठ 21
14. वर्मा, रोशन, हरियाणवी सिनेमा संदर्भ कोश, लक्ष्य बुक्स, पंचकुला, हरियाणा,संस्करण 2015, पृष्ठ 39
15. वर्मा, रोशन, हरियाणवी सिनेमा संदर्भ कोश, लक्ष्य बुक्स, पंचकुला, हरियाणा,संस्करण 2015, पृष्ठ 45 
16. वर्मा, रोशन, हरियाणवी सिनेमा संदर्भ कोश, लक्ष्य बुक्स, पंचकुला, हरियाणा,संस्करण 2015, पृष्ठ 11
17. वर्मा, रोशन, हरियाणवी सिनेमा संदर्भ कोश, लक्ष्य बुक्स, पंचकुला, हरियाणा,संस्करण 2015, पृष्ठ 11

 

कमलेश कुमारी
सह-आचार्य, हिंदी विभाग, हरियाणा केंद्रीय विश्वविद्यालय, महेंद्रगढ़
kumaridrkamlesh@gmail.com, 7015405750
  
सिनेमा विशेषांक
चित्तौड़गढ़ (राजस्थान) से प्रकाशित पत्रिका
UGC CARE Approved  & Peer Reviewed / Refereed Journal 
  अपनी माटी (ISSN 2322-0724 Apni Maati) अंक-58, दिसम्बर, 2024
सम्पादन  : जितेन्द्र यादव एवं माणिक सहयोग  : विनोद कुमार

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