शोध आलेख : कथा सम्राट ‘प्रेमचंद’ की बाल कहानियां : एक अनुशीलन / चंद्रकांत यादव

कथा सम्राटप्रेमचंदकी बाल कहानियां : एक अनुशीलन
- चंद्रकांत यादव

शोध सार : बाल साहित्य हिंदी साहित्य की एक ऐसी विधा है जो अन्य विमर्शों की अपेक्षा उपेक्षित है। हिंदी साहित्य में  बाल सहित्य केवल मनोरंजन के निमित्त समझा गया है जबकि यह अपने क्षेत्र में उतना ही महत्त्वपूर्ण है जितना कि अन्य विधाएं। बाल साहित्य बच्चों के मन- मस्तिष्क के विकास का प्रमुख साधन है। बाल कहानियां , बाल कविताएं आदि बाल रचनाओं को रुचिकर बनाकर हम उनके मानसिक विकास को सुदृढ़ करते हैं। साथ ही ये बाल रचनाएं उनके सोचने- समझने की क्षमता को बढ़ाने का कार्य करते हैं। ये बाल साहित्य लिखित और श्रव्य, दोनों रूपों में बालकों के लिए महत्त्वपूर्ण है। इससे उनके भीतर तर्कशक्ति के साथ- साथ अच्छे संस्कार, सहयोग और प्रेम की भावना, दया, करुणा, सत्य- असत्य, न्याय – अन्याय, अनुशासन जैसे नैतिक मूल्यों का विकास होता है। यही नैतिक मूल्य उनके जीवन  निर्माण में मुख्य भूमिका निभाते हैं। जिस तरह बच्चों के लिए शारीरिक विकास आवश्यक होता है उसी तरह मानसिक विकास भी वांछित है और ये बाल साहित्य बच्चों के मानसिक विकास के लिए मुख्य श्रोत है। बाल रचनाएं बच्चों के भीतर देशप्रेम, जीवों से प्रेम, सम्मान, सहयोग, साहचर्य आदि अन्य अनुशानात्मक मूल्यों को  विकसित करती हैं। इन मूल्यों को वे अपने व्यवहारिक जीवन में अपनाकर जीवन को सफल और सार्थक बनाते हैं। प्रेमचंद की हिंदी बाल कहानियों में इन सभी मूल्यों का प्रतिपादन हुआ है। जिसे बच्चे बड़े ही चाव से पढ़कर और सुनकर उन मूल्यों को  सीखते और गुनते हैं।

बीज शब्द : बाल साहित्य, मानसिक विकास,  प्रेम की भावना, पशु – पक्षी प्रेम, दया और करुणा, आत्मीयता, सत्य और न्याय, साथ और सहयोग की भावना, संवेदनशीलता, नादानी।

मूल आलेख : कथा सम्राट मुंशी प्रेमचन्द जी ने अपने रचनाकाल में तीन सौ से अधिक कहानियां लिखी हैं। आदर्शवाद और यथार्थवाद उनकी कहानियों की मुख्य प्रवृत्ति रही है। आदर्शवाद और यथार्थवाद जैसी मूल प्रवृत्तियों के साथ ही उन्होंने कई बाल मनोवृत्ति आधारित कहानियां भी लिखीं हैं। जैसे – मिट्ठू,शेर और लड़का,ईदगाह, दो बैलों की कथा, गुल्ली – डंडा, बड़े भाई साहब, पंच- परमेश्वर, कजाकी, पागल हाथी,चोरी, नादान दोस्त इत्यादि। इन्होंने अपनी कहानियों में बाल साहित्य अथवा बाल मनोवृत्ति को भी व्यक्त किया है। बाल रचनाओं के जरिए लेखक ने बाल मनोवृत्ति को जानने और समझने का प्रयास किया है, साथ ही उनके मानसिक विकास को ध्यान में रखते हुए कई कहानियां भी लिखीं हैं। बाल साहित्य क्या है ? बाल  रचनाएं की प्रवृति क्या? इसकी कसौटी क्या है ?  इन सभी प्रश्नों को समझने के लिए बाल साहित्य के वरिष्ठ बाल साहित्यकार  हरिकृष्ण देवसरे के अनुसार “जो साहित्य बच्चों की रुचि के अनुकूल, सरल भाषा में लिखा गया हो और जो बच्चों कीज्ञान सीमा को विस्तारित करते हुए उनकी ज्ञान पिपासा को शांत करता हो, वह साहित्य बाल साहित्य कहलाता है।”1 यदि  दूसरे शब्दों में समझा जाए तो यह कहा जा सकता है कि वे कहानियां जो बच्चों और उनके हमउम्र आयु के बच्चों के मानसिक  विकास की दृष्टि से लिखी गई  हो,जो रूचिकर हो और बच्चें कहानियों के पात्रों और वातावरण को स्वयं और अपने समाज के वातावरण से तादात्म्य स्थापित कर लें, वही बाल साहित्य है।  बच्चों के शारीरिक विकास के साथ- साथ मानसिक विकास का होना आवश्यक है। शारीरिक और मानसिक विकास का संतुलन होना आवश्यक है। ये बाल साहित्य बच्चों के मानसिक विकास का भोजन है। वे इन बाल कहानियों और कविताओं को पढ़कर- सुनकर अपने मानसिक विकास में वृद्धि करते हैं।

प्रेमचंद की हिंदी कहानियां बच्चों के भीतर प्रेम,दया और करुणा का बीजारोपण करता है। बच्चें सरल और प्रांजल होते हैं। उनका दुनिया से वास्ता उतना नहीं होता जितना कि युवा,प्रौढ़ और बुजुर्गों का होता है। वे उर्वर खेत की तरह होते है। उनमें जो बोया जायेगा, वही फलेगा। वे नई - नई चीजों को जानने, समझने और सीखने के लिए लालायित रहते हैं। बच्चों में नई चीजों को सीखने की क्षमता ज्यादा होती है। ऐसे में प्रेमचंद की कहानियां  बच्चों के भीतर प्रेम, दया और करुणा का बीजारोपण करता है। प्रेमचंद की कहानियां बच्चों में एक दूसरे के प्रति दया और सहानुभूति के साथ - साथ करुणा और प्रेम को सींचता है। बच्चों का प्रेम निस्वार्थ होता है, वहां कोई छल और भ्रम नहीं होता है, वहां वास्तविक प्रेम होता है। यह सत्य है कि प्रेमचंद की कहानियां बच्चों में न केवल मनुष्य के प्रति प्रेम का भाव प्रगाढ़ करता है, बल्कि उतना ही पशु - पक्षी और अन्य जीवों के प्रति भी उनका प्रेम छलकता है। यह लेखक की सफ़लता है कि लेखक अपनी कहानियों के लिए जितना अन्य पाठकों में प्रचलित है उतना ही बाल पाठकों और बाल श्रोताओं में भी लोकप्रिय हैं। जाहिर तौर पर वे बच्चों में  सफल इसलिए भी है कि उन्होंने अपने कहानियों में बाल पात्रों को भी प्रतिष्ठित किया है। बच्चों के संगी - साथी के रूप में पशु - पक्षियों को पारिवारिक सदस्य की भांति अंकित किया है। इसका उदाहरण उनकी कहानियां हैं मसलन मिट्ठू, दो बैलों की कथा, शेर और लड़का, पागल हाथी आदि। इन सभी कहानियों में लेखक ने पशु- पक्षी और जीवों को बच्चों के संगी - साथी के रूप से प्रस्तुत किया है, जिनसे वे प्रेम, करुणा और दया की प्रतीति कराते हैं। मिट्ठू कहनी का बाल पात्र गोपाल और मिट्ठू बंदर के बीच का एक प्रसंग बहुत ही महत्वपूर्ण है जहां गोपाल का मिट्ठू के प्रति प्रेम जगजाहिर होता हैं जो कुछ इस तरह है – “वह मिट्ठू के लिए घर से चने, मटर, केले लाता और खिलाता। मिट्ठू भी उससे इतना हिल गया था कि बगैर उसके खिलाए कुछ न खाता। इस तरह दोनों में बड़ी दोस्ती हो गयी। एक दिन गोपाल ने सुना कि सरकस-कंपनी वहां से दूसरे शहर में जा रही है। यह सुनकर उसे बड़ा रंज हुआ। वह रोता हुआ अपनी मां के पास आया और बोला, “अम्मा, मुझे एक अठन्नी दो, मैं जाकर मिट्ठू को खरीद लाऊं। वह न जाने कहां चला जायेगा! फिर मैं उसे कैसे देखूंगा? वह भी मुझे न देखेगा तो रोयेगा। मां ने समझाया, “बेटा, बंदर किसी को प्यार नहीं करता। वह तो बड़ा शैतान होता है। यहां आकर सबको काटेगा, मुफ़्त में उलाहने सुनने पड़ेंगे।” लेकिन लड़के पर मां के समझाने का कोई असर न हुआ। वह रोने लगा। आखिर मां ने मजबूर होकर उसे एक अठन्नी निकालकर दे दी। अठन्नी पाकर गोपाल मारे खुशी के फूल उठा। उसने अठन्नी को मिट्टी से मलकर खूब चमकाया, फिर मिट्ठू को खरीदने चला।”2 गोपाल  कंपनी के मालिक से मिट्ठू बन्दर को खरीदने की बात करता है और उसे अपने घर ले जाने की जिद करता है। अततः सर्कस कंपनी का मालिक मिठ्ठू के प्रति प्रेम और लगाव देखकर गोपाल को बिना पैसे लिए ही मिट्ठू को उसे सौंप देता है।

जहां प्रेम और करुणा होती है उसकी व्यवहारिक परिणति सहयोग, साथ की भावना और साहचर्य के रूप में प्रस्तुत होती है। यही सहयोग और साथ देने की भावना के जरिए बच्चों में एकता, एक दूसरे को समझने और एक दूसरे से जुड़ने की प्रक्रिया विकसित होती है।   सहयोग और साथ देने की प्रक्रिया बच्चों को अन्याय और असत्य के खिलाफ़ खड़ा होने के लिए प्रोत्साहित करता है। जिसे लेखक ने अपनी कहानियों के माध्यम से बाल समूह में हितैषी प्रवृत्ति को विकसित किया है। इस प्रकार वे दूसरों के सुख - दुःख के साथी बनते हैं जिसे लेखक ने अपनी रचना में बाल पात्रों के रूप में प्रस्तुत किया है। बच्चें उन्हें अपने ही समान और बीच का समझकर उन्हें आत्मसात कर लेते हैं और अपने दैनिक व्यवहार में लाते हैं। प्रेमचंद ने अपनी कहानियों में असत्य और अन्याय के खिलाफ़ बहुत किस्से गढ़ें हैं जिसका एक उदाहरण इस प्रकार है कि दो बैलों की कहानी में एक लड़की पात्र है जो भैरों  की लड़की है।  भैरो की लडकी रोज रात को चुपके से बैलों को खाने के लिए दो रोटी डाल जाती थी। वह बैलों के साथ हो रहे सौतेले व्यवहार को बर्दाश्त नहीं कर पाती है। उससे बैलों के खिलाफ़ हो रहे अन्याय देखा नहीं जाता। अंततः वह बैलों को अन्याय और दुःख से मुक्ति दिलाने का काम करती है। वह अपना जान जोखिम में डालकर भी अन्याय के खिलाफ़ खड़ा होती है और बैलों को  खूंटे से मुक्त कर देती है। इस सन्दर्भ में यह दृश्य देखने योग्य है- “सहसा घर का द्वार खुला और वही लड़की निकली दोनों सिर झुकाकर उसका हाथ चाटने लगे। दोनों की पूंछे खड़ी हो गई। उसने उनके माथे सहलाए और बोली – खोल देती हूं। चुपके से भाग जाओ, नहीं तो यहां लोग मार डालेंगे। आज घर में सलाह हो रही है कि इनकी नाकों में नाथ डाल दी जाएं।”3 स्वाभाविक है बच्चों के मन में भी इन कहानियों को पढ़कर साथ और सहयोग की भावना विकसित होगी।

प्रेमचंद के हिंदी कहानियों में बच्चों में आत्मीयता के संबंध को रेखांकित किया गया है। वे अपने बाल कहानियों में संबंधों के प्रेमराग को उकेरते हैं। बच्चों की प्रकृति में आत्मीयता उनमें निहित वैचारिक सुंदरता को व्यक्त करते हैं। बच्चें किसी से भी बहुत जल्द जुड़ जाते हैं और आपस में घुल - मिल जाते हैं। और यही प्रक्रिया यदि दीर्घ काल तक किसी से जुड़ा रहा तो उसकी आत्मीयता पारिवारिक सदस्य की भांति हो जाती है। जाहिर तौर पर यदि यही संबंध विच्छेद हो जाए तो बच्चों की बेचैनी की सीमा उनके आत्मीयता को प्रदर्शित करती है। यह आत्मीयता किसी से दूर अथवा अलग होने पर बच्चों में परेशानी का सबब बन जाती है और कमोबेश उस दूरी को  सहन नहीं कर पाते। वह आत्मीयता चाहे मानव के साथ हो, पशु- पक्षी के साथ हो या फिर उनके प्रिय खेल - खिलौने हो। बच्चें जिन चीज़ों के आदि हो जाते है उसकी अनुपस्थिति में व्याकुल हो जाते है और जल्दी भूल नहीं पाते। नौकरी से निकाल दिये जाने पर कजाकी ने घर आना बंद कर दिया। लड़का कजाकी के गैरहाजिरी में व्याकुल रहने लगा। कजाकी कहानी का बालक और  डाकिया पात्र ‘कजाकी’ के प्रति आत्मीयता बहुत ही संजीदा है। उसका एक रूप कुछ यूं है - “शाम को सड़क पर जाकर खड़ा हो गया। मगर अंधेरा हो गया और कजाकी का कहीं पता नहीं। दीए जल गये, रास्ते में सन्नाटा छा गया, पर कजाकी न आया! 

मैं रोता हुआ घर आया।अम्माॅं जी ने पूछा- क्यों रोते हो, बेटा? क्या कजाकी नहीं आया? मैं और जोर से रोने लगा। अम्माॅं जी ने मुझे छाती से लगा लिया। मुझे ऐसा मालूम हुआ कि उनका भी कंठ गद्गद हो गया है। उन्होंने कहा- बेटा,चुप हो जाओ, मैं कल किसी हरकारे को भेजकर कजाकी को बुलवाऊंगी। मैं रोते-रोते ही सो गया।”4

जितना जरुरी कजाकी के लिए बच्चा था उतना ही ज़रूरी बच्चे के लिए कजाकी था। दोनों में प्रगाढ़ लगाव था। कजाकी के बिना बच्चे की मानसिक हालत बुरा था। आत्मीयता दोनों के लिए ज़रूरी साज की भांति था। बच्चा कजाकी को रोज बुलाने की जिद करने लगा। बदले में  कजाकी को वो सबकुछ देने को तैयार था जो भी उसके पास था। इस बात को कजाकी और बच्चे के बीच हुए संवाद से समझा जा सकता है जो इस प्रकार है  “अच्छा, मुझे उतार दो तो मैं दाल और नमक ला दूॅं, मगर रोज आया करोगे न?

कजाकी- भैया, खाने को दोगे, तो क्यों न आऊंगा।

 मैंने कहा- मैं रोज खाने को दूंगा।

 कजाकी बोला, तो मैं रोज आऊंगा।

मैं नीचे उतरा और दौड़कर सारी पूंजी उठा लाया। कजाकी को रोज बुलाने के लिए उस वक्त मेरे पास कोहनूर हीरा भी होता, तो उसको भेंट करने में मुझे पसोपेश न होता।”5  बच्चें  अथवा बालमन अपने प्रिय वस्तु के लिए कोहिनूर का हीरा भी त्यागने को तैयार रहते हैं। इस तरह लेखक ने बालक की आत्मीयता को कजाकी कहानी के माध्यम से प्रस्तुत किया है।

चोरी एक बुरी बला है जिसे प्रेमचन्द ने कहानी के माध्यम से बच्चों को समझाने का प्रयास किया है, यह उनकी कला है। बच्चें  अनभिज्ञ और नादान भी होते हैं। वे परिणाम की परवाह किए बगैर ही जाने अनजाने उचित - अनुचित कार्य कर जाते है। चोरी कहानी के जरिए लेखक ने बालमन को टटोलने का प्रयास किया है। यह दो बच्चों की कहानी है जो पैसों की चोरी करते हैं, परंतु परिणाम के भय से अपना मुंह बंद रखते हैं। वे पैसे निपटाने के चक्कर में गलती कर देते हैं और पकड़े जाते हैं। बच्चों की खासियत हैं की वे अपनी गलतियों को छिपा नहीं पाते। वे चोरी के पैसे को पचा नहीं  पाए । उनके लिए चोरी को छिपाना बहुत ही मुश्किल काम है। वे अपनी चोरी को छिपाने के लिए मौलवी को फीस जमा करने की सोचते हैं और बड़े दिनों बाद मकतब पहुंचते हैं तब  “मौलवी साहब ने बिगड़कर पूछा- इतने दिन कहां रहे? मैंने कहा- मौलवी साहब, घर में गमी हो गई । यह कहते-कहते बारह आने उनके सामने रख दिये। फिर क्यापूछना था? पैसे देखते ही मौलवी साहब की बाछें खिल गयीं। महीना खत्म होने में अभी कई दिन बाकी थे। साधारणतः महीना चढ़ जाने और बार-बार तकाजे करने पर कहीं पैसे मिलते थे।अबकी इतनी जल्दी पैसे पाकर उनका खुश होना कोई अस्वाभाविक बात न थी। हमने अन्य लड़कों की ओर सगर्व नेत्रों से देखा, मानो कह रहे हों, “एक तुम हो कि मांगनेपर भी पैसे नहीं देते, एक हम हैं कि पेशगी देते हैं।”6 और उनकी यही  पेशगी  उनके लिए मुसीबत बन गई और उनकी चोरी पकड़ी गई।  मेले से वापस लौटते हुए हलधर को ढूंढते हुए मकतब की तरफ़ से गुजरता है तो उसे  एक लड़के से जो पता चलता है उससे हलधर का भाई बिल्कुल डर जाता है। लड़के ने उससे कहा कि “बचा, घर जाओ,तो कैसी मार पड़ती है। तुम्हारे चचा आये थे। हलधर को मारते-मारते ले गये हैं। अजी, ऐसा तान कर घूंसा मारा कि मियां हलधर मुंह के बल गिर पड़े। यहां से घसीटते ले गये हैं। तुमने मौलवी साहब की तनख्वाह दे दी थी;  वह भी ले ली। अभी कोई बहाना सोच लो, नहीं तो बेभाव की पड़ेगी।“ मेरी सिट्टी-पिट्टी भूल गयी, बदन का लहू सूख गया। वही हुआ, जिसका मुझे शक हो रहा था। पैर मन-मन भर के हो गये।”7 प्रेमचंद चोरी कहानी के माध्यम से बच्चों को यह समझाने में पूरी तरह से सफल है कि चोरी एक बुरी बला है।  यह नीतिविरुद्ध और गलत कार्य है और इसके परिणाम भी बुरे होते हैं। घर पर पड़ी डॉट- फटकार, शाबाशी और प्रोत्साहन बच्चों के अंदर सही – गलत, अच्छा – बुरा की समझ पैदा करता है। वे इस प्रक्रिया से गुजरते हुए उचित- अनुचित सीखते है। उन्हें अच्छे और बुरे कार्यों की सीमाओं का पता चलता है। इस प्रकार वे बुरे ओर गलत कार्य करने से डरते हैं और अच्छे कार्यों को करने के लिए उत्साहित होते हैं। चाचा जी द्वारा हलधर का पीटा जाना और खुद डांट - फटकार खाने से वे जान जाते हैं कि चोरी एक गलत कार्य है। अतः प्रेमचंद जी अच्छा – बुरा, गलत- सही में फ़र्क करने की शक्ति बच्चों के भीतर विकसित करते हैं। इस तरह इस कहानी के माध्यम से लेखक ने बच्चों में नैतिक मूल्यों को पिरोने का कार्य किया है।

बच्चें समय और परिस्थिति के अनुसार अपने आपको ढाल लेते हैं।  परिस्थिति उनमें  गरीबी और अमीरी,जरूरत और शौक में फ़र्क करना सीखा देती है। ईदगाह एक बाल कहानी है जहां हामिद,मोहसिन,महमूद, नूरे आदि बाल पात्रों के जरिए लेखक आख्यान रचता है। इससे उनमें आपस में सीखने – सिखाने, तर्क - वितर्क की प्रक्रिया विकसित होती है। प्रेमचंद की ईदगाह कहानी भी इसी का उदाहरण है जिसमें हामिद को केंद्र रखकर रचा गया है । परिस्थिति ने हामिद को बच्चे से बड़ा बना दिया है,परंतु हामिद को इस बात का भान नहीं हैं। वह विचारो में दूसरे बच्चों से बड़ा और अलग है। शायद उसमें अपने बालपन को छुपाने अथवा त्यागने की प्रवृत्ति उसकी तत्कालीन परिस्थिति है। अभाव और जरूरतें आदमी को समझदार बना देती है। इस स्थिति में ‘शौक’ से मोहब्बत कम, ‘ज़रूरत’ से मोहब्बत ज्यादा होता है। हामिद इसी का प्रतीक था। उसने अपने बाल उम्र में ही अभाव और जरूरतों के साथ सौदा कर लिया है। उसे अपने गरीबी का दायरा पता है। उसे अपने खेल - खिलौने से ज्यादा दादी के हाथ के जलने की चिंता थी, जो रोटियां सेंकते समय जल जाती थी। अतः वह खिलौनों के बजाय चिमटा लेना उचित समझता है। इस सन्दर्भ में मेले का यह प्रसंग हामिद को अन्य बच्चों से बड़ा बना देता है जो इस प्रकार है – “उसे ख्याल आया, दादी के पास चिमटा नहीं है। तवे से रोटियाँ उतारती है, तो हाथ जल जाता है, अगर वह चिमटा ले जाकर दादी को दे दे, तो वह कितनी प्रसन्न होंगी? फिर उनकी उँगलियाँ कभी न जलेगी। घर में एक काम की चीज हो जाएगी। खिलौने से क्या फायदा। व्यर्थ में पैसे खराब होते हैं। जरा देर ही तो खुशी होती है। फिर तो खिलौनों को कोई आँख उठा कर नहीं देखता। या तो घर पहुंचते-पहुँचते टूट-फूट बराबर हो जाएँगे, या छोटे बच्चे जो मेले में नहीं आए हैं जिद करके ले लेंगे और तोड़ डालेंगे। चिमटा कितने काम की चीज है। रोटियाँ तवे से उतार लो, चूल्हे में सेंक लो। कोई आग माँगने आवे तो चटपट चूल्हे से आग निकालकर उसे दें दो।”8 एक तरफ मेले में  खाने वाले चटपटी चीजे और सुंदर सुंदर खेल- खिलौने से आकर्षित होने वाला बाल मन और दूसरी तरफ अभाव, गरीबी  और जेब में केवल तीन पैसे। इस दुविधा में भी वह अपने को श्रेष्ठ साबित करता है और अपने तर्क शक्ति से सबको परास्त कर देता है। उसके साथी उसके तर्कशक्ति से हार जाते हैं और उसके जीत को स्वीकार करते है। हामिद के विजेता का प्रमाण यह है कि उसके  साथियों द्वारा हामिद को सम्मान और सत्कार भी मिला। इस सम्बंध में यह कथन महत्त्वपूर्ण है  “ हामिद ने मैदान मार लिया। उसका चिमटा रुस्तमे-हिन्द है। अब इसमें मोहसिन, महमूद, नूरे, सम्मी किसी को भी आपत्ति नहीं हो सकती। विजेता को हारनेवालों से जो सत्कार मिलना स्वाभाविक है, वह हामिद को भी मिला।औरों ने तीन-तीन, चार-चार आने पैसे खर्च किए; पर कोई काम की चीज न ले सके। हामिद ने तीन पैसे में रंग जमा लिया। सच ही तो है, खिलौनों का क्या भरोसा? टूट-फूट जाएँगे। हामिद का चिमटा बना रहेगा बरसों!”9

हामिद अपने तर्कों से अपने सभी मित्रों को पराजित करके अपने को श्रेष्ठ साबित करता है। जिससे इस कहानी के माध्यम से लेखक ने बच्चों में तर्कशक्ति की प्रकृति को पोषित करने का प्रयास किया है। साथ ही उनमें दूसरे के सुख - दुःख और वेदना को समझाने की कवायद भी करते हैं। हामिद का अपनी दादी मां के कष्टों को पहचानना और उनके दुखों में शामिल होना हामिद के संवेदनशीलता का प्रमाण है। उसके संवेदनशीलता का परिचय दादी अमीना और हामिद के बीच हुए संवाद से समझा जा सकता है।

“यह चिमटा कहाँ था?’

‘मैंने मोल लिया है।‘

‘कै पैसे में?’

‘तीन पैसे दिए।‘

अमीना ने छाती पीट ली। यह कैसा बेसमझ लड़का है कि दोपहर हुई, कुछ खाया न पिया। लाया क्या यह चिमटा ! ‘सारे मेले में तुझे और कोई चीज न मिली, जो यह लोहे का चिमटा उठा लाया?’

हामिद ने अपराधी भाव से कहा तुम्हारी उँगलियाँ तवे से जल जाती थीं, इसलिए मैंने इसे ले लिया। बुढ़िया का क्रोध तुरन्त स्नेह में बदल गया,”10 इस तरह हामिद के माध्यम से लेखक ने बच्चों के भीतर संवेदनशीलता और तर्कशक्ति को मजबूत करने का प्रयास किया है। 

बालमन तो आखिर बालमन ही होता है। उन्हें अपनी गलती का एहसास नहीं होता है। वे नादान और मासूम होते हैं। वे अपनी नादानी में कई गलतियां कर जाते है।  नादानी में ही गड़ेरिया का लड़का जो  मालिक के डर से रात के अंधेरे में गाय को खोजने घने जंगलों में चला जाता है तो वहीं मुरली अपनी मां के मना करने के बावजूद  पागल हाथी को मनाने चला जाता है। इस बालपन की नादानी में केशव और श्यामा चिड़िया के बच्चों का हितैषी बनने के चक्कर में चिड़िया के अंडे का सत्यानाश करा देते हैं। बच्चें अपने भावनाओं को छिपाने में असफल होते हैं। बच्चों की सारी कारस्तानिया उनके चेहरे की शिकन से पकड़ ली जाती है। जरा सा डराकर और घुड़कियां देकर सारी बातें उगलवा ली जाती है। इसी तरह केशव और श्यामा ने भी अपनी मां के पूछने पर सारी बातें बता दी। इसके बाद उनकी मां उन्हें बिगड़ते हुए समझाती हैं कि “तू इतना बड़ा हुआ, तुझे अभी इतना भी नहीं मालूम के छूने से चिड़ियों के अंडे गंदे हो जाते हैं। चिड़िया फिर उन्हें नहीं सेती।” श्यामा ने डरते-डरते पूछा, “तो क्या चिडिया ने अंडे गिरा दिए हैं, अम्मा जी?” मां, “और क्या करती। केशव के सिर इसका पाप पड़ेगा। हाय, हाय, तीन जानें ले लीं दुष्ट ने!”11 इसी प्रकार शेर और लड़का कहानी में मलिक की डर से गड़ेरिया का लड़का गाय ढूंढते हुए जंगल में चला जाता है और उसे डर लगने लगता है “जब शाम होने को आयी तो उसने अपने जानवरों को इकट्ठा किया, मगर एक गाय का पता न था। उसने इधर-उधर दौड़-धूप की, मगर गाय का पता न चला। बेचारा बहुत घबराया। मालिक मुझे जीता न छोड़ेंगे। इस वक्त ढूंढ़ने का मौका न था, क्योंकि जानवर फिर इधर-उधर चले जाते, इसलिए वह उन्हें लेकर घर लौटा और उन्हें बाड़े में बांधकर, बिना किसी से कुछ कहे हुए गाय की तलाश में निकल पड़ा। उस छोटे लड़के की यह हिम्मत देखो ! अंधेरा हो रहा है, चारों तरफ सन्नाटा छाया हुआ है, जंगल भांय-भांय कर रहा है, गीदड़ का हौवाना सुनाई दे रहा है, पर वह बेखौफ जंगल में बढ़ा चला जा रहा था। कुछ देर तक तो वह गाय को ढूंढ़ता रहा, लेकिन जब अंधेरा हो गया तो उसे डर मालूम होने लगा।”12 इस दौरान वह जंगल में फंस जाता है और शेर से अपनी जान बचाने के लिए तीन दिन पेड़ पर ही चढ़ा रहता है । लेखक अपने कहानियों के द्वारा बच्चों को इन्हीं नादानियों से दूर रखने का कार्य करते है ताकि स्वयं या किसी दूसरे का अहित न कर सकें। बच्चों को बिना सोचे - समझे कोई भी कार्य करने से बचना चाहिए। इस संदेश को लेखक बच्चों के बीच प्रसारित करने में सफल होते हैं।

खेल हमेशा बच्चों के शारीरिक विकास के साथ मानसिक विकास और आपसी संबंधों को मजबूत करता है। लोग एक दूसरे से जुड़ते है और आपस मे घुल मिल जाते है। यह खेल की खासियत है कि वे किसी से भेद नहीं करता। गुल्ली - डंडा कहानी आपसी सम्बन्धों को मजबूत करने के उद्देश्य से लिखी गई कहानी है। खेल जात - पात नहीं देखता। खेल हमेशा सबको एक में जोड़कर रखता है। यह खेल ही था जो जात- पात को दूर करता है वरना क्या मजाल की एक दलित समाज का लड़का गया चमार एक  उच्च जात के लड़के को हाथ लगाता। यह खेल ही ऐसा माध्यम जहां सबको बराबर झुकना पड़ता है। खेल बराबर की बात करता है नहीं तो मार खाने के बाद उच्च समाज का लड़का अपमान का घूंट पीकर भी चुप रहा। यह खेल ही था जो उसे चुप रखा था । जब दांव देने की पारी आई तो दोनों के बीच का दृश्य देखने योग्य है –“ मैं हाथ छुड़ाकर भागना चाहता था। वह मुझे जाने न देता था! मैंने गाली दी; उसने उससे कड़ी गाली दी, और गाली नहीं दो एक चाटा जमा दिया। मैंने उसे दांत काट लिया। उसने मेरी पीठ पर डंडा जमा दिया। मैं रोने लगा। गया मेरे इस अस्त्र का मुक़ाबला न कर सका। भागा। मैंने तुरन्त आंसू पोंछ डाले, डंडे की चोट भूल गया और हंसता हुआ घर में जा पहुंचा! मैं थानेदार का लड़का एक नीच जात के लौंडे के हाथों पिट गया, यह मुझे उस समय भी अपमानजनक मालूम हुआ; लेकिन घर में किसी से शिकायत न की।”13  इसी प्रकार खेल के महत्त्व को बड़े भाई साहब कहानी में भी दिखाया गया है।खेल बच्चों के मानसिक विकास के लिए बहुत आवश्यक है। बच्चों के मस्तिष्क को उर्वर बनाने के लिए खेल का अहम योगदान होता है। शायद बड़े भाई साहब अपने बाल जीवन में जितना पढ़ाई को महत्त्व देते उतना खेल को देते तो उनकी यह दुर्दशा न होती। वही उनके छोटे भाई खेल में मस्त होते हुए भी  दो दर्जे के फासले को ख़त्म कर दिया और बड़े भाई साहब से केवल एक दर्जे का अंतर रह गया। इस प्रकार खेल जात – पात को खत्म करने के साथ मानसिक थकान को दूर करने और ग्रहण करने की क्षमता को बढ़ाने का कार्य करते हैं जिसे प्रेमचंद जी अपने कहानियों में प्रस्तुत करते हैं।

बच्चों को जो शिक्षा और संस्कार का पाठ पढ़ाया जाए वे वैसा ही व्यवहार करते हैं। प्रेमचंद की कहानियां भी  बच्चों में अच्छे संस्कार और अच्छे मूल्यों को बात करती हैं। ये बाल कहानियां बच्चों के  जिज्ञासा को शांत करते हुए उनमें प्रेम, सत्य, न्याय, तर्क ,करुणा  सहयोग और संवेदनशीलता की भावना को पोषित करने का कार्य करते हैं ।इस प्रकार प्रेमचंद जी बाल साहित्य के  क्षेत्र में भी बच्चों के बीच अपने लेखन कार्य से जाने जाते हैं और बाल पाठकों व बाल श्रोताओं के बीच एक सफ़ल लेखक के रूप में प्रतिष्ठित हैं।

संदर्भ :

  1. बाल साहित्य का अर्थ, परिभाषा एवं अवधारणा, Https://www.scotbuzz.org,2023/04
  2. देवसरे,हरिकृष्ण(संकलन एवं सम्पादन), प्रेमचंद की तेरह बाल कहानियां, भारतीय पुस्तक न्यास, नई दिल्ली, पहला संस्करण:2006, अठारहवी आवृत्ति:2022, पृष्ठ संख्या – 1,3
  3. मुंशी, प्रेमचंद, प्रेमचंद की श्रेष्ठ बाल कहानियां, हिन्द पॉकेट बुक्स, पेंगुइन रैंडम हाउस,2022, पृष्ठ – 38
  4. प्रेमचंद, लाटरी और अन्य कहानियां,(मानसरोवर खंड – 5), लोक भारती प्रकाशन,प्रयागराज,संस्करण:2022, पृष्ठ - 104
  5. वही, पृष्ठ – 103
  6. वही, पृष्ठ – 77
  7. वही, पृष्ठ – 77,78
  8.  अमृतराय, (चयन एवं सम्पादन) प्रेम मंजूषा, हंस प्रकाशन, प्रयागराज, आठवां संस्करण: अप्रैल, 2024,पृष्ठ – 38
  9. वही,पृष्ठ – 40
  10. वही, पृष्ठ – 42
  11. देवसरे, हरिकृष्ण(संकलन एवं सम्पादन), प्रेमचंद की तेरह बाल कहानियां, भारतीय पुस्तक न्यास, नई दिल्ली, प्रथम संस्करण:2006, अठारहवी आवृत्ति:2022, पृष्ठ – 79,80
  12. वही, पृष्ठ - 08
  13. अमृतराय(चयन एवं सम्पादन), प्रेम मंजूषा, हंस प्रकाशन, प्रयागराज, आठवां संस्करण:अप्रैल,2024, पृष्ठ – 44,45

 

चंद्रकांत यादव
हिंदी एवं आधुनिक भारतीय भाषा विभाग, इलाहाबाद विश्वविद्यालय, प्रयागराज
9125042735

दीनानाथ मौर्य
सहायक आचार्य, हिन्दी एवं आधुनिक भारतीय भाषा विभाग, इलाहाबाद विश्वविद्यालय, प्रयागराज

बाल साहित्य विशेषांक
अतिथि सम्पादक  दीनानाथ मौर्य
चित्तौड़गढ़ (राजस्थान) से प्रकाशित पत्रिका 
  अपनी माटी (ISSN 2322-0724 Apni Maati) अंक-56, नवम्बर, 2024 UGC CARE Approved Journal

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