‘हिंद महासागर से हिमालय तक’ उपन्यास में सैनिक विमर्श
- विनय कुमार
‘हिंदमहासागर से हिमालय तक’ उपन्यास में सैनिक विमर्श:- यह विमर्शों का समय है। विमर्श का अर्थ है समाज की किसी भी समस्या पर चर्चा-परिचर्चा, संवाद, तर्क-वितर्क आदि। या यूँ कहें कि जब व्यक्ति किसी समूह में किसी विषय पर चिंतन अथवा चर्चा-परिचर्चा करता है तो उसे विमर्श कहा जाता है। जब कोई व्यक्ति किसी विषय को लेकर अकेले में गहन चिंतन, मनन करके किसी समूह में जाकर उस विषय पर अन्य व्यक्तियों से तर्क-वितर्क करता है तो उसे विमर्श कहते हैं। मानक हिंदी कोश में विमर्श का अर्थ इस प्रकार है- सोच विचारकर तथ्य या वास्तविकता का पता लगाना। किसी बात या विषय पर कुछ सोचना-समझना, विचार करना, गुण-दोष आदि की आलोचना या मीमांसा करना। किसी से परामर्श या सलाह करना आदि। आज समाज का हर वह वर्ग जो अधिकारों से वंचित है, ने अपने हक, अधिकार और अपनी अस्मितागत पहचान के लिए निर्णायक लड़ाई छेड़ रखी है। ध्यान देने की बात यह है कि यह लड़ाई किसी के विरूद्ध नहीं, बल्कि अपने या अपने समुदाय के पक्ष में लड़ी जा रही है। इन लड़ाइयों के पीछे एक सुविचारित दर्शन कार्य कर रहा है। हिंदी साहित्य में समाज के ज्वलंत विषयों को कहानी, कविता, उपन्यास, आत्मकथा और अन्य विधाओं के माध्यम से समाज का ध्यान अपनी ओर खींचा जा रहा है। शोषित समाज के हक के लिए लेखन कार्य किया जा रहा है। उल्लेखनीय बात है कि स्त्री विमर्श में वेश्या विमर्श को शामिल नहीं किया जाता। स्त्री विमर्श पर बहुत सारे लेख लिखने वाली लेखिकाएँ भी वेश्या विमर्श पर लिखने से कतराती हैं। वे एक बड़े ऑफिस में बड़े पद पर विराजमान महिला की ज़िंदगी की तकलीफों के बारे में तो खूब लिखती हैं। लेकिन वह महिला जिसे अपने और अपने बच्चों के पेट को पालने के लिए हर रात अपने शरीर का सौदा करना पड़ता है, उसकी ज़िंदगी में उन्हें कोई तकलीफ नज़र नहीं आती। जब भी हम सैनिक शब्द सुनते हैं, हमारे सामने एक बलिष्ठ और ताकतवर पुरुष की छवि सामने आ जाती है। वह पुरुष जो बलवान है और बहुत सी लड़ाइयाँ लड़ चुका है। गाँव की बात करें तो फौजी शब्द सुनते ही घर वालों को एटीएम कार्ड और रिश्तेदारों को कैंटीन से सस्ते में मिलने वाली शराब की बोतलों की याद आती है। हर साल सेना में बहुत सारे सैनिक आत्महत्या कर लेते हैं। लेकिन समाज इस मुद्दे पर आँखें मूँदकर रखता है। समाज की नज़र में एक सैनिक के जीवन और उसकी तकलीफों की कोई कीमत नहीं होती है। हिंदी साहित्य और सिनेमा में अगर किसी सैनिक को दिखाया जाता है तो वह कर्नल या जनरल होता है। सिपाहियों के बारे में तो बस इतना कह दिया जाता है कि दस में से नौ सैनिक मूर्ख होते हैं। ‘हिंदमहासागर से हिमालय तक’ उपन्यास सैनिक विमर्श की पहली कृति है।
युवा कथाकार विनय कुमार की कृति का शिल्प उपन्यासिका का है- न लंबी कहानी और न लघु उपन्यास। बल्कि दोनों के बीच का शिल्प जिसे अंग्रेजी में नॉवलेट और हिंदी में उपन्यासिका कहा जाता है। बी. एफ. सी. प्रकाशन लखनऊ ने इसका प्रकाशन सन् 2024 ई. में किया है। संप्रति, हिंदी साहित्य में कथा लेखन और काव्य लेखन के द्वारा तीन तरह के विमर्श होते हैं- नारी विमर्श (नारी-सशक्तीकरण), दलित विमर्श और आदिवासी विमर्श। यह प्रसन्नता की बात है कि विनय कुमार ने स्वतंत्र रूप से सैनिक-विमर्श प्रस्तुत कर मिथक तोड़ा है। लेखक की यह पहली कृति है किंतु विस्तृत अध्ययन से सम्पूर्ण है। भारत में सेना में अफसर बनना गर्व की बात है। सेना का एक अफसर और उसका परिवार शानदार ज़िंदगी जीते हैं। लेकिन सेना में सिपाही बनना उसका उल्टा है। ग़रीब घर का वह बच्चा जो पढ़ाई में अच्छा नहीं होता, उसके बारे में कहा जाता है कि यह बड़ा होकर फौजी बनेगा। ग़रीब घर के लड़के को सत्रह-अठरह वर्ष की उम्र में आजीविका के लिए सेना में सैनिक के तौर पर भर्ती होना पड़ता है। वहाँ पर उसे अफसरों के घर पर नौकर(बटमैन) जैसे काम करने पड़ते हैं। उसे अफसर के जूते पॉलिस करने से लेकर उसके घरवालों के कपड़े तक धोने पड़ते हैं। एक तरह से अफसर के घर पर वह बंधुआ मज़दूर की ज़िंदगी जीता है। उसे बात-बात पर प्रताड़ित किया जाता है। छोटी उम्र में घर से निकल जाने के कारण घरवालों का उसके प्रति स्नेह खत्म हो जाता है। वे उसे आय का स्त्रोत मात्र समझते हैं। गाँववाले और रिश्तेदार उससे मात्र कैंटीन से मिलने वाली सस्ती शराब के लिए सरोकार रखते हैं। चार लोगों में उसकी बात को कोई तवज्जो नहीं दी जाती, क्योंकि वह एक फौजी है।
फौजी कहकर उसका मजाक उड़ाया जाता है। आलोच्य उपन्यास की प्रस्तावना में लेखक लिखते हैं कि उसे यह उपन्यास लिखने की प्रेरणा महाकवि दंडी द्वारा रचित ग्रंथ ‘दसकुमारचरित’ से मिली। नौसेना में देश के सभी राज्यों के युवा एक साथ एक परिवार की तरह रहते हैं। सेना हमारे देश में ‘विविधता में एकता’ कथन को सार्थक करती है। अपने घरों से दूर सैनिक एक-दूसरे के साथ अपना सुख-दुख साझा करते हैं और एक-दूसरे की खुशियों में शामिल होने के साथ-साथ मुसीबत में एक-दूसरे की मदद भी करते हैं। इस उपन्यास में मैंने नौसैनिकों के विभिन्न किस्सों को कल्पना के सहारे आपस में जोड़कर एक कहानी के रूप में कहने की कोशिश की है। लेखक अपना उपन्यास भारतीय सशस्त्र बलों को समर्पित करता है। विनय कुमार वर्तमान समय में राजकीय महाविद्यालय भोरंज, हिमाचल प्रदेश में सहायक आचार्य हिन्दी के पद पर अपनी सेवाएँ दे रहे हैं। विनय कुमार भारतीय नौसेना के पूर्व पेटी ऑफिसर हैं। विनय कुमार स्वयं एक सैनिक रहे हैं। उन्होंने स्वयं एक सैनिक के जीवन को जीया है। उन्हें सैन्य जीवन का अनुभव है। उन्होंने अपने उपन्यास ‘हिंदमहासागर से हिमालय तक’ में एक भारतीय सैनिक को महिमामंडित करने की कोशिश की है। हिंदमहासागर से हिमालय तक’ उपन्यास में विनय कुमार भारतीय सैनिकों के प्रतिनिधि बनकर उभरे हैं। जब तक शेरों के अपने इतिहासकार नहीं होंगे, शिकार की कहानियों में शिकारी ही महिमामंडित होंगे। एक सैनिक अपने परिवार और देश के प्रति अपने कर्तव्य का पालन करता है, इसका उपन्यास में सुंदर वर्णन किया गया है। नारकीय परिस्थितियों से गुज़रने के बावजूद एक सैनिक अपनी चेतना को जाग्रत रखता है। वह अपने परिवेश के प्रति सचेत रहता है। वह कठिनाइयों का डटकर मुकाबला करता है। उपन्यास के अंत में भारतीय सैनिक एक नायक के रूप में हमारे सामने आता है। हिंदी साहित्य में विनय कुमार चर्चित रचनाकारों में से एक है। बहुमुखी प्रतिभा के धनी विनय कुमार केवल उपन्यासकार के रूप में विख्यात नहीं हुए, अपितु साहित्य की अन्य विधाओं नाटक, कविता, कहानी, व्यंग्य के अतिरिक्त एक अच्छे समीक्षक के रूप में अत्यंत सजगता के साथ सामयिक प्रश्नों को उजागर किया है। इनकी प्रतिभा एकरेखीय नहीं है। बल्कि बहुविध अनुशासनों एवं प्रयोगों के माध्यम से इन्होंने साहित्य की प्रत्येक विधा को नए-नए रत्नों से सजाया संवारा है। विनय कुमार के उपन्यासों का मुख्य विषय सैनिक जीवन रहा है।
‘हिंदमहासागर से हिमालय तक’ उपन्यास एक सैनिक के जीवन की महागाथा है। मौजूदा उपन्यास में उन्होंने सैनिक के जीवन को बड़ी सूक्ष्मता तथा प्रत्येक कोण से अभिव्यक्त किया है। लेखक का उद्देश्य भारतीय सैनिक को भारतीय समाज में वह स्थान दिलाना है, जिसका वह हकदार है। सैनिकों के जीवन पर साहित्य लिखने में चंद्रधर शर्मा ‘गुलेरी’ की परंपरा के अग्रणी लेखक हैं विनय कुमार। समकालीन पात्रों के माध्यम से भारतीय सैनिक के जीवन के गहरे एवं अनसुलझे रिश्तों को इनके अधिकांश उपन्यासों में वर्णित किया गया है। सामाजिक स्तर पर समाज की रक्षा का दायित्व सैनिक पर है। भारत को अंग्रेजों से स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद एक भारतीय सैनिक के दायित्वों व कर्तव्यों में व्यापक परिवर्तन आया है। शिक्षा, रोज़गार, नए विचारों से परिचय के कारण सैनिक के जीवन एवं सोच में व्यापक बदलाव की शुरुआत हुई। उसमें अपनी अस्मिता के प्रति पर्याप्त सजगता आई है। सैनिक जीवन को कई उपन्यासकारों ने अपने उपन्यासों की विषय वस्तु बनाया। सामाजिकता निभाने में सैनिक के सामने काम संबंध एक मुख्य समस्या के रूप में आया। हमें आज हिन्दी साहित्य का एक वृहद भाग सेक्स से ही आच्छादित मिलेगा।1 फ्रायड के मनोविश्लेषणवाद के अनुसार जीवन के समस्त कार्य-व्यापारों का मूल काम-वासना से प्रभावित होता रहता है। ‘सेतुबंध’ नाटक में प्रभावती एवं कालिदास के प्रेम और यौन संबंधों की अवांछनीयता से उत्पन्न तनाव एवं द्वंद्व के द्वारा स्त्री चेतना को चित्रित किया गया है। प्रभावती अपने पिता के दबाव में आकर वाकाटक नरेश से विवाह कर लेती है परंतु हृदयतल से वह पत्नी नहीं बन पाती। तभी तो प्रभावती कहती है- मेरी भावना आज तक कुमारी है। मैं माँ बनी हूँ, लेकिन पत्नी नहीं।2 ‘हिंदमहासागर से हिमालय तक’ उपन्यास में जगनिक नौसेना में भर्ती होने के बाद जब अपनी पहली रात सेना में गुज़ारता है। उसका लेखक ने दिलचस्प वर्णन किया है। रात को खाना खाने के बाद अब सोने की बारी आती है। सभी को एक बिस्तर और अलमारी दे दी जाती है। लेकिन दरी और चादर अभी तक नहीं मिले हैं। सभी अपने-अपने बिस्तर पर लेट जाते हैं। रात को दस बजे लाइट बंद हो जाती है। लाउडस्पीकर पर ‘पाइप डाउन, पाइप डाउन’ की आवाज़ सुनाई देती है। अभी लाइट बंद हुए पाँच मिनट भी नहीं हुए होते कि रंगरूटों को लगता है कि उनके शरीर पर छोटे-छोटे कीड़े रेंग रहे हैं। तभी एक रंगरूट लाइट जला देता है। उसके शरीर पर खटमल दौड़ रहे होते हैं। सभी रंगरूटों की यही हालत होती है। किसी तरह रात गुज़रती है। सारी रात खटमल उन्हें काटते रहते हैं। वे पूरी रात करवटें बदलते रहते हैं।3
जगनिक के व्यक्तित्व में परिपक्वता आ गई है। वह जानता है कि दुनिया क्या चाहती है और कैसे चलती है। नौसेना में एक कहावत है कि अंधे, लूले, लंगड़े सब फौज में दौड़े। नौसैनिक कितना ही अपरिपक्व हो, नौसेना उसे परिपक्व बना ही देती है। साथ में चालाक भी। तभी वह अपना अस्तित्व बचा पाएगा।4 बरसात के मौसम में समुद्र में ऊँची-ऊँची लहरें उठती हैं। इन लहरों में जहाज़ बहुत ज़्यादा हिला-डुला करते हैं। इससे नौसैनिकों को उल्टियाँ आती हैं। उनके सिर चक्कर खाने लगते हैं। भूख जैसे मिट जाती है। कोई कुछ खा ले तो उल्टी से तुरंत बाहर निकल आता है। समुद्र के पानी को साफ़ करके पीने लायक बनाया जाता है। जगनिक को बहुत ज़्यादा उल्टियाँ होती हैं। रात के नौ बजे के करीब जगनिक फॉकसल पर लेटा हुआ है। जहाज़ बहुत ज़्यादा हिल रहा है। जगनिक का सिर बहुत ज़्यादा चकरा रहा है। जगनिक अपने आप को कोस रहा है कि वह नौसेना में क्यों शामिल हुआ। उसे भारतीय नौसेना पोत चिल्का के दिनों की याद आ जाती है, जहाँ हर प्रशिक्षु अपने आप को नौसेना में शामिल होने के लिए कोसता था। लेकिन क्या करें, फँस तो चुके। हर नौसैनिक की यही इच्छा होती है कि वह पंद्रह वर्ष होते ही नौसेना को अलविदा कह सके। फॉकसल(जहाज़ का अगला हिस्सा) पर लेटा हुआ जगनिक इतने तनाव में है कि उसे लगता है कि कोई उसे गोली मार दे या समुद्र में फेंक दे। बस उसे इस तकलीफ से मुक्ति मिल जाए।5 नौसैनिक कई दिनों की समुद्री यात्रा की थकान को तटीय शहरों की रौनक और चमक-धमक में खोकर मिटा दिया करते हैं। नौसैनिकों की ज़िंदगी ऐसे ही गुज़रती है। अगर तूफानी समुद्र एक कुशल नौसैनिक बनाता है तो शहरों की आत्मीयता एक ज़िम्मेदार नागरिक नौसैनिकों को बनाती है।6 अधिकारी नौसैनिकों को थोड़ी बहुत भी अहमियत नहीं देते। अधिकारी नौसैनिकों का मजाक उड़ाते हैं और उन्हें इस्तेमाल किया जाने वाला सामान समझते हैं। जगनिक ने ऑफिस में पढ़ाई करते समय अधिकारियों की बातें सुनकर ज़िंदगी का सबसे बड़ा सबक सीखा कि हर कोई अपने फ़ायदे के लिए दूसरे की पीठ में छूरा घोंपना चाहता है। चाहे दूसरा व्यक्ति घनिष्ठ मित्र या सगा भाई क्यों न हो।7 सेना में जब कोई सैनिक तनाव का शिकार हो जाता है तो उसकी मदद नहीं की जाती है। उसे तंग करके उसके तनाव को और बढ़ाया जाता है।8 ‘हिंदमहासागर से हिमालय तक’ उपन्यास के रचनाकार ने सैनिक चरित्र को मनोवैज्ञानिकता के आधार पर रचा है। उन्होंने सैनिक जीवन की विवशता, दैन्य और असमर्थता को इस उपन्यास के माध्यम से अभिव्यक्त किया है। वस्तुतः उन्होंने जगनिक को आधुनिक युग के सैनिक के रूप में चित्रित किया है। जो नायक है, वही समय की ज़रूरत के अनुरूप खलनायक बन जाता है। दूसरे को लूट लेना इंसानी फितरत है। जब किसी व्यक्ति को किसी का शोषण करने का मौक़ा मिलता है तो वह व्यक्ति कभी नहीं चूकता।9
रचनाकर ने उपन्यास में जगनिक के माध्यम से एक भारतीय सैनिक की विभिन्न प्रवृत्तियों को दिखाने का प्रयास किया है। उपन्यासकार ने इस उपन्यास में भारतीय सेना में जीवन-यापन करने वाले सैनिक की अर्थ प्राप्ति की दिशा में उलझे जीवन को अभिव्यक्ति दी है। इस उपन्यास में सैनिक चेतना की बात ही नहीं बल्कि एक सैनिक के विविध रूपों को दिखाया है। इस उपन्यास में रचनाकार की दृष्टि वर्तमान भारतीय समाज के नागरिक-सैनिक के बीच पारस्परिक मतभेद, मनभेद, घृणा और दुख की स्थिति को अभिव्यक्त करने की रही है। उन्होंने इसके लिए उपन्यास को साहित्यिक विधा का सबसे सफल प्रयोग के रूप में दर्शाने का कार्य किया है। इस उपन्यास के माध्यम से सैनिक जीवन की वेदना को सफल अभिव्यक्ति प्रदान की है। उपन्यास में सैनिक चेतना को लेकर चर्चा हुई है। यह आधुनिक बोध की जीवन दृष्टि के धरातल पर चित्रित है। भारतीय समाज एक ऐसा समाज है जो आवरण एवं मुखौटों के साथ जीता है और यथार्थ का सामना नहीं करना चाहता। हिंदी साहित्य में सैनिक के जीवन पर बहुत सारी पुस्तकें लिखी गई हैं। परंतु अधिकांश पुस्तकों में उनकी वीरता और बलिदान को ही चित्रित किया गया है। सैनिकों को सिर्फ़ महान योद्धाओं के रूप में दिखाया गया है। एक मनुष्य के रूप में उनकी ज़िंदगी में आने वाली कठिनाइयों का वर्णन करने की बहुत कम कोशिश की गई है। एक सैनिक पूरा वर्ष अपने परिवार से दूर रहकर किस मनःस्थिति से गुज़रता है, इसको दिखाने का बहुत कम प्रयास किया गया है। एक तरफ़ तो उसे अपने परिवार की याद आती है तो दूसरी ओर उसे अपने देश के प्रति अपने कर्तव्य और दायित्व का निर्वाह भी करना होता है। सैनिक अपने कर्तव्य का सफलतापूर्वक निर्वाह करते हैं। सैनिकों की ज़िंदगी पीड़ा और कुंठा से भरी होती है। वर्तमान साहित्य में सैनिक जीवन की पीड़ा और कुंठा को अभिव्यक्ति देने की आवश्यकता है। हम जब भी कोई विमर्श करते हैं तो हमें पहले चेतना के बारे में पता होना चाहिए। चेतना क्या होती है? दिन की खूबसूरती को देखने में सक्षम होना, यही चेतना की परिभाषा है। पुरुष शराब क्यों पीते हैं? यह प्रश्न स्त्रियों के सामने सदा से रहा है। स्त्रियाँ इसे नशा मानती रही हैं। शराब नशा नहीं है। देवताओं से लेकर बुद्धिजीवी तक शराब क्यों पीते हैं? जब यह एक नशा है और नशा करना संसार की सबसे गंदी आदत है। क्योंकि शराब पुरुषों की चेतना को जागृत कर देती है। वे दिन की खूबसूरती को महसूस करने लगते हैं और उसमें डूब जाते हैं। शराब मनुष्य की चेतना को कम नहीं करती बल्कि उसे और प्रखर करती है। मैं शराब पीने का समर्थन नहीं कर रहा। मैं सिर्फ़ ज़िंदगी की खूबसूरती को महसूस करने की बात कर रहा हूँ। भारतीय नौसेना पोत वलसूरा में जगनिक अब ‘तीर’ डिविजन में है। ‘तीर’ डिविजन का आफिसर इंचार्ज लेफ्टिनेंट स्वामी मस्तमौला व्यक्ति है। लेफ्टिनेंट स्वामी कहा करता था कि शराब पीने वाले सदा खुश रहते हैं। वे अपने जीवन की उधेड़बुनों को छोड़कर और ऑफिस के काम के तनाव की परवाह न करके इसी सोच-विचार में लगे रहते हैं कि शाम को दोस्तों के साथ कहाँ शराब पी जाए। शराब के साथ खाने में क्या होना चाहिए। सिगरेट का पैकेट आज कौन लाएगा? तनाव और चिंता शराबी को छू भी नहीं सकती। शराबी संसार में सबसे ज़्यादा खुश रहने वाला व्यक्ति है।10 परेड मैदान में परेड का आयोजन होता है। परेड मैदान में धूप अधिक होने के कारण कमानाधिकारी की सेक्रेटरी चक्कर खाकर गिर जाती है। सेक्रेटरी एक सुंदर लड़की है। उसे उठाने के लिए सारे कमांडर दौड़ पड़ते हैं। कुल मिलाकर बारह कमांडर उसे उठाकर एंबुलेंस तक पहुँचाते हैं। यह देखकर कमानाधिकारी सहित सारी परेड हँस पड़ती है। परेड मैदान में दो महीने पहले परेड करते समय चक्कर खाकर एक नौसैनिक गिर गया था तो, उसे उठाने आगे कोई नहीं आया था। ऐसी घटनाएँ नौसेना में होती रहती हैं।11
सैनिक देश की रक्षा करने के लिए अपने घरों से दूर सीमा पर तैनात रहते हैं। वे अपने घर की देखभाल घरवालों को पैसे भेजकर करते हैं। कोई मुसीबत आने पर उनके परिवार को संभालने वाला कोई नहीं होता। प्रत्येक मुसीबत को केवल पैसे से नहीं निपटाया जा सकता। उसका स्वयं जाकर सामना करना पड़ता है। लेकिन स्वयं घर जाने के लिए सैनिकों को समय पर छुट्टी नहीं मिलती। मुसीबत ऐसा जख्म दे जाती है कि जिससे सैनिक मन ही मन घुटते रहते हैं। वे तनाव का शिकार हो जाते हैं। कुछ सैनिक इस तनाव का सामना नहीं कर पाने के कारण या तो पागल हो जाते हैं या अपनी ही राइफल से स्वयं को गोली मार लेते हैं। कई बार बदला लेने के उन्माद में वे अपने ही साथियों को गोली मार देते हैं। जगनिक के बगल वाले जहाज़ में एक कनिष्ठ नौसैनिक आत्महत्या कर लेता है।12 समुद्री जहाजों में नौसैनिकों का जीवन बहुत कठिन होता है तो वहीं जमीनी नौसैनिक अड्डों में आरामदायक होता है। यही कारण है कि प्रत्येक नौसैनिक जहाज़ से जमीनी अड्डे में स्थानांतरित होना चाहता है।13 हिंदमहासागर में मालदीव के पास अमरीका की नौसेना का सातवाँ बेड़ा जगनिक के जहाज़ के साथ-साथ चलता है। अमरीकी नौसेना का सातवाँ बेड़ा सद्भावना यात्रा पर मुंबई जा रहा होता है। बेड़ा भारत की सद्भावना यात्रा पर आया हुआ है। बेड़ा कमांडर स्वयं ध्वजपोत पर सवार होता है। कैप्टन जगनिक से- "सन् 1971 में अमरीका की नौसेना का सातवाँ बेड़ा पाकिस्तान की तरफ से हमसे लड़ने हिंदमहासागर में आया था। आज समय कितना बदल गया है। आज यही बेड़ा भारतीय नौसेना की सद्भावना यात्रा पर है। हम तरक्की करते हुए मजबूत और ताक़तवर होते जा रहे हैं। कल जो हमारे दुश्मन थे, आज वे हमसे दोस्ती करना चाहते हैं। आज हमारी नौसेना ‘हरे पानी की नौसेना’ से ‘नीले पानी की नौसेना’ बन गई है।14
जगनिक परेशान हो जाता है। जगनिक को घर पर बहुत ज़रूरी काम है। उसका छुट्टी लेकर घर जाना ज़रूरी है। जगनिक तनावग्रस्त हो जाता है। जगनिक को स्वेट मार्टिन की पंक्तियाँ याद आती हैं कि ‘चिंता मुसीबत को कम नहीं करती बल्कि मुसीबत से लड़ने की हमारी योग्यता को कम करती है। इसलिए कभी भी भयग्रस्त नहीं होना चाहिए और न ही चिंता करनी चाहिए। आपके भयग्रस्त होने से दुश्मन या मुसीबत थोड़े तुम्हें बख्श देगी। जो होना हो वो होगा। अगर हम न ही भयग्रस्त होते हैं और न ही चिंता करते हैं तो हम मुसीबत और शत्रु का सामना हिम्मत और बुद्धिमता से कर सकते हैं, जिससे मुसीबत और शत्रु हमारा कम नुकसान कर पाएंगे।’ इन पंक्तियों ने जगनिक के जीवन की दिशा बदल दी थी। जगनिक बिना चिंता किए इस परिस्थिति पर विचार करता है। इससे मुसीबत का हल निकल आता है।15 सिख रेजिमेंट का सैनिक जगनिक से- ‘नौसेना की नौकरी तो जेल काटने जैसी है। एक लोहे के डिब्बे में रात-दिन काटो। ऊपर से डिब्बा हिलता रहता है। अच्छा हुआ कि मैं नौसेना की जगह सेना में भर्ती हुआ।’16 डॉल्फिन पर्वत का प्राधिकारी कहा करता था कि जब हम नौसेना में सभी चीज़ों की जानकारी इकट्ठा करते हैं तो इस चीज़ की जानकारी भी इकट्ठा करनी चाहिए कि नाविकों में खुशी का स्तर क्या है।17 जगनिक निशानेबाजी में बहुत अच्छा है। स्नाइपर राइफल का प्रशिक्षक सभी नौसैनिकों को संबोधित करते हुए कहता है- "स्नाइपर राइफल चलाने में महारत हासिल करना प्रत्येक नौसैनिक के लिए गर्व की बात है। एक स्नाइपर का सबसे बड़ा गुण है संयम। स्नाइपर को प्रत्येक परिस्थिति में अपने ऊपर संयम रखना चाहिए। किसी भी टकराव में गोली चलाना आखिरी विकल्प होता है।" प्रशिक्षक नौसैनिकों को कश्मीर का किस्सा सुनाता है कि कैसे नौजवान स्नाइपर सीमा पार निहत्थे नागरिकों को गोली मार देते हैं। उन्होंने स्नाइपर राइफल से निशाना लगाने का प्रशिक्षण लिया होता है। उनमें स्नाइपर राइफल से किसी को गोली मारने का उन्माद सवार होता है। अपने इस उन्माद को पूरा करने के लिए वे सीमा पर निहत्थे किसानों को गोली मार देते हैं। हमें बस इसी उन्माद पर संयम रखना है।18 हिन्दी साहित्य में दलित विमर्श, स्त्री विमर्श, आदिवासी विमर्श, किन्नर विमर्श के बाद अब सैनिक विमर्श की धमक सुनाई देने लगी है। वैसे आजकल जिस तरह नई पीढ़ी, युवा पीढ़ी की चर्चा ज़ोरों पर है, उसे देखते हुए सैनिक विमर्श का होना भी उचित ही लगता है।
‘हिंदमहासागर से हिमालय तक’ उपन्यास में सैनिकों की असहायता, अकेलापन, आत्मसंघर्ष, मानसिक द्वंद्व तथा नई पीढ़ी की बदलती सोच दिखाई देती है। भारतीय सैनिक अपना सामाजिक अस्तित्व तलाशता हुआ स्वतंत्र अस्मिता की तलाश में है। जब भी भारतीय सेना का ज़िक्र हो तो कर्नल, जनरल के अलावा सिपाहियों के जीवन की चर्चा भी होनी चाहिए। भारतीय सेना के चेहरे का एक पक्ष जो कर्नलों और जनरलों के आलीशान जीवन का है, उसके साथ-साथ भारतीय सेना के चेहरे के दूसरे पक्ष जो कि एक सिपाही और उसके संघर्षमय जीवन का है, उसे भी साहित्य में जगह मिलनी चाहिए। ‘हिंदमहासागर से हिमालय तक’ उपन्यास एक सैनिक के जीवन के संघर्ष को उभारने में सफल रहा है।
संदर्भ :
(1) डॉ नगेंद्र, आधुनिक हिंदी नाटक, नेशनल पब्लिशिंग हाउस, दिल्ली, प्रथम संस्करण - 1998, पृ-29
(2) सुरेंद्र वर्मा, तीन नाटक (सेतुबंध), वाणी प्रकाशन दिल्ली, संस्करण - 2005, पृ-35
(3) विनय कुमार, उपन्यास - हिंदमहासागर से हिमालय तक, बी एफ सी प्रकाशन लखनऊ, 2024, पृ - 26
(4) वही, पृ-34
(5) वही, पृ-38
(6) वही, पृ-39
(7) वही, पृ-49
(8) वही, पृ-75
(9) वही, पृ-67
(10) वही, पृ-56
(11) वही, पृ-67
(12) वही, पृ-75
(13) वही, पृ-84
(14) वही, पृ-95
(15) वही, पृ-96
(16) वही, पृ-97
(17) वही, पृ-99
(18) वही, पृ-103
विनय कुमार
सहायक प्रोफेसर हिंदी, राजकीय महाविद्यालय भोरंज, हमीरपुर, हिमाचल प्रदेश
vinayrana0050@gmail.com, 7876196399
अपनी माटी
( साहित्य और समाज का दस्तावेज़ीकरण )
चित्तौड़गढ़ (राजस्थान) से प्रकाशित त्रैमासिक पत्रिका
Peer Reviewed & Refereed Journal , (ISSN 2322-0724 Apni Maati) अंक-60, अप्रैल-जून, 2025
सम्पादक माणिक एवं जितेन्द्र यादव कथेतर-सम्पादक विष्णु कुमार शर्मा छायाचित्र दीपक चंदवानी