एनसीईआरटी पाठ्यपुस्तक में बहुसांस्कृतिक दृष्टिकोण
- मधु, शीलू कच्छप एवं कविता सिंह
बीज शब्द : बहुसांस्कृतिक शिक्षा, एनसीईआरटी, सांस्कृतिक विविधता, विद्यालयी संस्कृति
मूल आलेख : बहुसांस्कृतिक शिक्षा एक ऐसी शिक्षण प्रक्रिया है जो शैक्षिक संस्थानों को विभेदीकरण और दमन जैसी कुरीतियों से बचाते हुए एक सुरक्षित, उत्पादक और समावेशी वातावरण के निर्माण पर बल देती है। नीटो (2000) के अनुसार, यह एक नस्ल-विरोधी, समानाधिकारवादी और समावेशी शिक्षण प्रक्रिया है, जो समीक्षात्मक शिक्षण दर्शन की विचारधारा पर आधारित है। यह केवल एक विचारधारा नहीं, बल्कि एक शैक्षिक आंदोलन भी है, जिसका मुख्य उद्देश्य शैक्षिक संस्थानों की संरचना में ऐसा परिवर्तन लाना है जिससे जेंडर विभेद, विशिष्ट विद्यार्थियों के साथ भेदभाव, प्रजाति और नस्लवाद, तथा भाषायी व सांस्कृतिक विविधता से जुड़ी असमानताओं को समाप्त किया जा सके। इसका लक्ष्य यह सुनिश्चित करना है कि सभी विद्यार्थियों को समान शैक्षिक अवसर प्राप्त हों (बैंक्स, 2004)।
बहुसांस्कृतिक शिक्षा के आयाम और उद्देश्य -
जे. ए. बैंक्स (1993) ने बहुसांस्कृतिक शिक्षा के चार प्रमुख आयाम प्रस्तुत किए हैं -
1. विविध संस्कृतियों की सामग्री का एकीकरण और ज्ञान निर्माण में उनका योगदान सुनिश्चित करना।
2. पूर्वाग्रहों को चुनौती देना।
3. समावेशी शिक्षण विधियों को अपनाना।
4. विद्यालयी संस्कृति का सशक्तिकरण।
इन आयामों का उद्देश्य विद्यार्थियों को ऐसे शैक्षिक अवसर प्रदान करना है, जो उन्हें राष्ट्रीय नागरिक संस्कृति और समुदाय में प्रभावी रूप से कार्य करने के लिए आवश्यक ज्ञान, कौशल और सांस्कृतिक पूंजी उपलब्ध कराएँ। साथ ही, यह विद्यार्थियों को अपनी सांस्कृतिक पहचान बनाए रखने की अनुमति देता है।
भारतीय परिप्रेक्ष्य में बहुसांस्कृतिक अनुभव -
भारत में बहुसांस्कृतिक अनुभव का मूल आधार विविधता में एकता की भावना है। देश के प्रत्येक राज्य और क्षेत्र में धार्मिक समुदायों, भाषाओं, राष्ट्रीयताओं और अल्पसंख्यक आबादी की विविधता पाई जाती है, जो जैविक और सामाजिक दोनों रूपों में एक-दूसरे से जुड़ी हुई है। इस दृष्टि से बहुसांस्कृतिक अनुकूल सिद्धांत भारतीय संस्कृति में स्वाभाविक रूप से समाहित प्रतीत होते हैं, जो राष्ट्रीय सौहार्द्र और सामंजस्य के लिए अत्यंत आवश्यक हैं।
शिक्षाशास्त्री कृष्ण कुमार ने अपनी पुस्तक व्हाट इज़ वर्थ टीचिंग में प्राथमिक कक्षाओं में विभिन्न संस्कृतियों से संबंधित विविधतापूर्ण कहानियों के महत्व पर जोर दिया है। उनका मानना है कि ऐसी कहानियाँ न केवल बच्चों को अच्छा श्रोता, विचारक और समस्या-समाधानकर्ता बनाती हैं, बल्कि उन्हें विद्यालय में स्वीकार्यता और आत्मीयता का अनुभव कराती हैं, जो उनके निरंतर सीखने और बेहतर प्रदर्शन में सहायक होती है।
बहुसांस्कृतिक शिक्षा—एक आंदोलन और दर्शन -
करीब से देखने पर बहुसांस्कृतिक शिक्षा समानता, सामाजिक न्याय और लोकतंत्र के लिए एक आंदोलन है, साथ ही स्कूल सुधार के लिए एक दर्शन और रणनीति भी। यह विभिन्न सांस्कृतिक समूहों की विविधता को स्वीकारने और उसे शैक्षिक प्रक्रिया में एकीकृत करने पर बल देती है। इसका मूल लक्ष्य यह सुनिश्चित करना है कि सभी विद्यार्थी—चाहे उनकी जाति, लिंग, संस्कृति, भाषा, धर्म या सामाजिक वर्ग कुछ भी हो—समान शैक्षिक वातावरण में शिक्षा प्राप्त कर सकें (काया और आयदिन, 2013)।
शिक्षा में बहुसंस्कृतिवाद का समावेश -
बहुसांस्कृतिक शिक्षा एक ऐसा शैक्षिक सुधार आंदोलन है, जो विभिन्न नस्लों, संस्कृतियों, भाषाओं और धार्मिक विश्वासों के विद्यार्थियों में निष्पक्षता, सहिष्णुता, सामंजस्य, लोकतांत्रिक दृष्टिकोण, मानवतावाद और समावेशिता विकसित करता है (बैंक्स, 2015)। इसके मुख्य उद्देश्य हैं—
1. व्यक्तियों को अपनी संस्कृति में गहरी अंतर्दृष्टि प्रदान करना।
2. विविध पृष्ठभूमि के लोगों को सांस्कृतिक, क्षेत्रीय, राष्ट्रीय और वैश्विक समुदायों में प्रभावी रूप से कार्य करने में सक्षम बनाना (बैंक्स, 2016)।
बैंक्स (2004a, 2004b) का मानना है कि विविधतापूर्ण समाज में अंतर-समूह संबंधों में सुधार हो और सभी विद्यार्थियों को समान शैक्षिक उपलब्धियाँ प्राप्त हो सकें इसलिए बहुसंस्कृतिवाद को पाठ्यक्रम व पाठ्यपुस्तकों में एकीकृत किया जाना चाहिए। वे न केवल ज्ञान के स्रोत हैं, बल्कि विद्यार्थियों के दृष्टिकोण, मूल्य और सामाजिक दृष्टि के निर्माण में भी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। यदि इन पुस्तकों में बहुसांस्कृतिक शिक्षा के तत्व शामिल हैं, तो यह विद्यार्थियों में समावेशी अभिवृत्ति को बढ़ावा देंगे। इसके विपरीत, यदि इन पुस्तकों में सांस्कृतिक विविधता का प्रतिनिधित्व सीमित, एकांगी या पूर्वाग्रहपूर्ण है, तो यह विद्यार्थियों की समझ को संकुचित कर सकती है और सामाजिक असमानताओं को बनाए रख सकती है। इसलिए, पाठ्यपुस्तकों में बहुसांस्कृतिक शिक्षा के आयामों और उद्देश्यों की उपस्थिति का समीक्षात्मक विश्लेषण करना आवश्यक है।
इस प्रकार की खोज और विश्लेषण से -
1. यह पता लगाया जा सकता है कि क्या पाठ्यपुस्तकें विभिन्न सांस्कृतिक, भाषाई, धार्मिक और सामाजिक समूहों का समान व संतुलित प्रतिनिधित्व करती हैं।
2. यह आकलन संभव हो पाता है कि पाठ्य सामग्री विद्यार्थियों को समान शैक्षिक अवसर, सामाजिक न्याय और सहिष्णुता जैसे मूल्यों की ओर उन्मुख करती है या नहीं।
3. यह समझ विकसित होती है कि शिक्षा व्यवस्था, विशेषकर पाठ्यपुस्तकें, समावेशी और बहुसांस्कृतिक समाज के निर्माण में कितनी योगदान कर रही हैं।
अतः, किताबों में बहुसांस्कृतिक शिक्षा के तत्वों की खोज केवल एक अकादमिक अभ्यास नहीं, बल्कि यह एक सामाजिक और शैक्षिक आवश्यकता है, जो आगे के शोध प्रश्न और विश्लेषण की दिशा तय करती है।
शोध प्रश्न - क्या एनसीईआरटी की पाठ्य पुस्तक ‘वितान’ में बहुसांस्कृतिक शिक्षा के तत्वों को समाहित किया गया है?
शोध उद्देश्य - एनसीईआरटी की पाठ्य पुस्तक ‘वितान’ में बहुसांस्कृतिक शिक्षा के तत्वों की जांच करना।
शोधविधि - इस अध्ययन में गुणात्मक शोध पद्धति को अपनाया गया है। विशेष रूप से, सामग्री विश्लेषण तकनीक के माध्यम से पाठ्यपुस्तक का मूल्यांकन किया गया है। यह विधि शिक्षण सामग्री में अंतर्निहित अर्थों, प्रतीकों और वैचारिक संरचनाओं को उजागर करने में सहायक होती है।
अध्ययन सामग्री का चयन - अध्ययन हेतु एनसीईआरटी द्वारा प्रकाशित कक्षा 11 की हिंदी पाठ्यपुस्तक 'वितान' को चयनित किया गया। इस पुस्तक के अध्याय 4: 'भारतीय कलाएं' को विश्लेषण का मुख्य आधार बनाया गया, क्योंकि यह अध्याय विविध भारतीय कला शैलियों, परंपराओं और सांस्कृतिक संकेतों से समृद्ध है।
चयन का औचित्य - यह अध्याय बहुसांस्कृतिक शिक्षा के मूल्य जैसे सांस्कृतिक विविधता, अंतरसांस्कृतिक संवाद, लिंग समावेशन, और सामाजिक न्याय को दर्शाने की पर्याप्त संभावनाएँ प्रस्तुत करता है। इसलिए इस अध्याय को एक प्रातिनिधिक अध्ययन इकाई के रूप में चुना गया।
विश्लेषण की प्रक्रिया - पाठ्यपुस्तक का विश्लेषण जे. ए. बैंक्स (1993, 2004) द्वारा प्रस्तावित बहुसांस्कृतिक शिक्षा के चार आयामों पर आधारित किया गया -
आंकड़ों का विश्लेषण -
1. सामग्री एकीकरण और ज्ञान निर्माण -
इस अध्याय के विश्लेषण से यह उद्घाटित होता है कि इसमें विभिन्न संस्कृतियों से संबंधित विषयवस्तु व कलाओं का एकीकरण किया गया है एवं ज्ञान निर्माण में उनकी भूमिका सुनिश्चित की गई है। उदाहरणस्वरूप—
- पृष्ठ संख्या 59 (चित्र सं. 1): भीमबेटका की गुफा चित्रकला, जिसमें जीवन की रोजमर्रा की गतिविधियाँ, शिकार, नृत्य, संगीत, जानवरों के युद्ध और साज-सज्जा आदि दर्शाई गई हैं। इसके माध्यम से विद्यार्थियों को यह ज्ञान कराया गया कि प्राचीन काल में मनुष्य पशुओं का उपयोग खेती-बाड़ी, व्यवसाय और शिकार में करता था। इससे उनके अंदर बहुसांस्कृतिक जागरूकता और अंतरसांस्कृतिक समझ का विकास होता है।
- पृष्ठ संख्या 61 (चित्र सं. 2): महाराष्ट्र की शैली में बने चित्र और एलोरा की गुफाओं में कैलाश मंदिर की प्रतिमा। यहाँ विद्यार्थियों को बताया गया कि प्राचीन मनुष्य और प्रकृति के बीच गहरा संबंध था, वे पेड़-पौधों से प्राप्त प्राकृतिक रंगों का प्रयोग करते थे, जो आधुनिक रंगों के समान ही प्रभावी थे।
- पृष्ठ संख्या 63 (चित्र सं. 6): रंगोली चित्रकला।
- पृष्ठ संख्या 67 (चित्र सं. 7): असम का सत्रिय नृत्य।
इन उदाहरणों के माध्यम से विद्यार्थियों में सांस्कृतिक विविधता की पहचान, अंतरसांस्कृतिक संवाद, अंतरसांस्कृतिक शिक्षा और बहुसांस्कृतिक जागरूकता विकसित करने का प्रयास किया गया है।
2. समावेशी शिक्षण विधियों को अपनाना -
पुस्तक में इस्तेमाल की गई शिक्षण पद्धतियाँ विविध, लचीली, रचनात्मक, संदर्भ संवेदी होनी चाहिए जो सभी विद्यार्थियों की भागीदारी सुनिश्चित करें और विविध सांस्कृतिक पृष्ठभूमि को सीखने के अनुभव में जोड़ा जाए। पुस्तक के प्रस्तुत अध्याय में शिक्षण को केवल शाब्दिक ज्ञान तक सीमित न रखकर कला, नृत्य, संगीत, चित्रकला आदि के माध्यम से सीखने पर जोर दिया गया है।
- भाषा से परे अभिव्यक्ति (पृ. 59–60) – प्राचीन काल में चित्रकला, नृत्य और संगीत के माध्यम से विचार व्यक्त करने की परंपरा को उदाहरण बनाकर विद्यार्थियों को रचनात्मक अभिव्यक्ति के लिए प्रेरित करना।
- लोककला से शास्त्रीय कला तक का विकास (पृ. 60–61) – यह दिखाना कि संस्कृति समय और संदर्भ के अनुसार बदलती है, जिससे विद्यार्थी लचीलापन और अनुकूलनशीलता सीखते हैं।
- क्षेत्रीय और लोक कलाओं का समावेश (पृ. 63–69) – अलग-अलग राज्यों की कला शैलियों को पढ़ाने से शिक्षण पद्धति संदर्भ-संवेदी बनती है और विद्यार्थियों के अपने परिवेश से जुड़ाव बढ़ता है।
यह दृष्टिकोण विद्यार्थियों को केवल ज्ञानार्जन ही नहीं बल्कि सृजनशील सोच और अनुकूलन क्षमता भी सिखाता है।
3. पूर्वाग्रहों को चुनौती -
विश्लेषित अध्याय में चित्रों और सांस्कृतिक गतिविधियों के माध्यम से लिंग, जाति और वर्ग आधारित रूढ़ियों को चुनौती देने का प्रयास किया गया है।
- पृष्ठ संख्या 67 (चित्र सं. 7): वेश-भूषा, नृत्य और भाव-भंगिमाओं के चित्रों में महिलाओं और पुरुषों को समान रूप से दर्शाया गया है। यह विद्यार्थियों की लैंगिक भूमिकाओं को लेकर बनी पूर्वाग्रहपूर्ण सोच को कम करने और लिंग समानता को प्रोत्साहित करने में सहायक है।
- पृष्ठ संख्या 68 (चित्र सं. 9): मिजोरम का बांस नृत्य, जिसमें महिलाएं और पुरुष एक साथ भाग लेते हैं। यह गतिविधि विद्यार्थियों को यह संदेश देती है कि कला और सांस्कृतिक अभिव्यक्ति में सभी का योगदान समान रूप से महत्त्वपूर्ण है, और लिंग आधारित भेदभाव को समाप्त किया जाना चाहिए।
4. विद्यालय संस्कृति को सशक्त बनाना -
यह आयाम इस बात पर केंद्रित है कि विद्यालय और शिक्षण सामग्री विद्यार्थियों की सांस्कृतिक, भाषाई, धार्मिक और सामाजिक पृष्ठभूमियों का सम्मान करे, उन्हें स्थान दे और उन्हें विद्यालयी अनुभव का स्वाभाविक हिस्सा बनाए। यह केवल “जानकारी देना” नहीं, बल्कि स्वीकार्यता, गर्व और पारस्परिक सम्मान का माहौल बनाना है।
- बूंदी शैली की चित्रकला (पृ. 64):इसमें राग-मेघ, मल्हार जैसे विषय, पारंपरिक वेशभूषा, आभूषण, और नृत्य के दृश्य दिखाए गए हैं। यह केवल कला-प्रदर्शन नहीं, बल्कि यह संदेश है कि विद्यालय में भी क्षेत्रीय सांस्कृतिक पहचान को गर्व से प्रस्तुत किया जाए।
- विभिन्न राज्यों की कलाएँ और नृत्य (पृ. 63–69):जैसे असम का सत्रिय नृत्य, मिजोरम का बांस नृत्य, महाराष्ट्र का लावणी, राजस्थान का गेर, मणिपुर का उरुक आदि। इन सभी को एक साथ प्रस्तुत करके यह दिखाया गया है कि विविधता विभाजन नहीं बल्कि सामूहिकता का आधार है।
- सामूहिक प्रदर्शन और उत्सव (पृ. 67–69): अध्याय में महिला और पुरुष, सभी जाति और वर्ग के लोग एक साथ प्रदर्शन करते दिख रहे हैं, जो विद्यार्थियों के अंदर लैंगिक पूर्वाग्रह को कम करने और रुढ़िवादी सोच को बदलने के प्रयास के रूप मे देखा जा सकता है।
चर्चा व निष्कर्ष :
पाठ्यपुस्तक 'वितान' के अध्याय ‘भारतीय कलाएं’ का विश्लेषण से यह जाहीर होता है कि इसमें बहुसांस्कृतिक शिक्षा के चारों प्रमुख आयामों की उपस्थिति है। इन सभी आयामों को मिलाकर देखा जाए तो यह अध्याय केवल कला और संस्कृति की जानकारी देने वाला पाठ नहीं है, बल्कि यह—
- ज्ञान निर्माण में सांस्कृतिक एकीकरण का उदाहरण है,
- समावेशी और लचीली शिक्षण पद्धतियों को प्रोत्साहित करता है,
- पूर्वाग्रहों को चुनौती देकर समानता को स्थापित करता है,
- और विद्यालयी संस्कृति को सामूहिकता और सम्मान की दिशा में सशक्त बनाता है।
इस तरह की सामग्री विद्यार्थियों में बहुसांस्कृतिक जागरूकता, अंतरसांस्कृतिक संवाद क्षमता, सृजनात्मक सोच, और सामाजिक समरसता—ये सभी 21वीं सदी के शिक्षार्थी के लिए आवश्यक गुण का विकास करती है। पाठ में भारत की विविध कलात्मक परंपराओं को इस प्रकार प्रस्तुत किया गया है जिससे विद्यार्थियों में विविधता के प्रति सम्मान, जिज्ञासा और समझ का विकास हो सके। अध्याय में कलाओं की भाषाई, धार्मिक, भौगोलिक और लिंग आधारित विविधता को मान्यता दी गई है, जो पाठ्यचर्या को समावेशी और उत्तरदायी बनाती है। इसके अतिरिक्त, कलात्मक प्रस्तुतियों के माध्यम से यह भी दिखाया गया है कि संस्कृति स्थिर नहीं होती, बल्कि यह सतत विकासशील प्रक्रिया है जो विद्यार्थियों को आलोचनात्मक दृष्टिकोण अपनाने में सहायक होती है।हालाँकि, विश्लेषण यह भी उजागर करता है कि बहुसांस्कृतिक शिक्षा की प्रस्तुति मुख्यतः चित्रों और वर्णनों तक सीमित रही है। पाठ्यपुस्तक में विद्यार्थियों के लिए स्पष्ट गतिविधियाँ, आत्मचिंतन या संवाद आधारित प्रश्नों की कमी है जो बहुसांस्कृतिकता को अनुभव में बदलने के लिए आवश्यक हैं।
सन्दर्भ :
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- Banks, J. A. (2004a). Teaching Strategies for Ethnic Studies (7th ed.). Boston: Allyn & Bacon.
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- Nieto, S. (2000). Affirming Diversity: The Sociopolitical Context of Multicultural Education. New York: Longman.
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- Kalita, P. (2022). The Relevance of Multicultural Education in Contemporary Society. Journal of Emerging Technologies and Innovative Research, 9(12), 262–269.
मधु, एम. एड.
शीलू कच्छप
असिस्टेंट प्रोफेसर, शिक्षाशास्त्र विभाग, इलाहाबाद विश्वविद्यालय
कविता सिंह
असिस्टेंट प्रोफेसर, शिक्षाशास्त्र विभाग, इलाहाबाद विश्वविद्यालय
7258810514, singhkavita.bhu@gmail.com
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( साहित्य और समाज का दस्तावेज़ीकरण )
चित्तौड़गढ़ (राजस्थान) से प्रकाशित त्रैमासिक पत्रिका
Peer Reviewed & Refereed Journal , (ISSN 2322-0724 Apni Maati) अंक-61, जुलाई-सितम्बर 2025
सम्पादक माणिक एवं जितेन्द्र यादव कथेतर-सम्पादक विष्णु कुमार शर्मा चित्रांकन दीपिका माली

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