गेस्ट इन द न्यूज रूम : एक समीक्षात्मक दृष्टिकोण
- अंतरिक्ष श्रीवास्तव
प्रस्तावना : लल्लनटॉप यूट्यूब चैनल का शो ‘गेस्ट इन द न्यूज़ रूम’ आज की डिजिटल पत्रकारिता में एक उल्लेखनीय प्रयोग के रूप में देखा जा सकता है। यह शो लल्लनटॉप की मूल पत्रकारिता शैली को दर्शाता है, जहाँ विषयवस्तु को गंभीरता से, लेकिन आमफहम भाषा में प्रस्तुत किया जाता है। इसमें देश के जाने-माने व्यक्तित्वों को आमंत्रित कर न्यूज़रूम की सेटिंग में संवाद किया जाता है। यह शो पारंपरिक टीवी इंटरव्यूज़ से अलग है, और यही इसकी सबसे बड़ी पहचान है। इस शो का मुख्य उद्देश्य जनप्रतिनिधियों, कलाकारों, विचारकों और विशेषज्ञों को एक ऐसा मंच प्रदान करना है जहाँ वे जनता के असली सवालों का सामना करें और मीडिया से सीधे संवाद कर सकें। यह शो अपने अनोखे अंदाज़ और गहराई से किए गए संवाद के लिए जाना जाता है। साथ ही साथ दर्शकों को देश-समाज, राजनीति, सिनेमा, खेल और साहित्य से जुड़े विविध मुद्दों पर गंभीरता से सोचने के लिए प्रेरित करता है।
बीज शब्द : यूट्यूब, शो, 'गेस्ट इन द न्यूज़ रूम’, डिजिटल हिंदी पत्रकारिता, टीवी इंटरव्यू, न्यूज़रूम, ज़मीनी रिपोर्टिंग, एपिसोड्स, सोशल मीडिया, हाई-प्रोफाइल गेस्ट्स, जर्नलिस्टिक इंटरव्यू शो, सोशल एक्टिविस्ट्स, डिजिटल मीडिया संस्थान, फॉर्मेट, स्क्रिप्टेड, शॉर्ट-क्लिप संस्कृति, कैमरा वर्क और एडिटिंग, ऑडियंस इंटरैक्शन, ट्रोलिंग, प्रोपेगेंडा और जनहित पत्रकारिता, टीआरपी
गेस्ट इन द न्यूज़ रूम’ का इतिहास -
‘गेस्ट इन द न्यूज़ रूम’ लल्लनटॉप यूट्यूब चैनल का एक प्रमुख और विशिष्ट प्रसिद्धि प्राप्त शो है, जिसकी शुरुआत 2018 में हुई थी। इस शो की परिकल्पना भारतीय न्यूज़ इंडस्ट्री के उस एकरस और बनावटी इंटरव्यू संस्कृति को तोड़ने के लिए, लल्लनटॉप के संपादक सौरभ द्विवेदी और उनकी पत्रकारों की टीम के द्वारा की गई थी, जिसमें गेस्ट को सिर्फ “जवाब देने वाला” और एंकर को “नायक” बना दिया जाता है।
आरंभिक वर्षों (2018–2019) में लल्लनटॉप पहले से ही डिजिटल हिंदी पत्रकारिता में अपनी खास भाषा, अनोखे अंदाज़ और ज़मीनी रिपोर्टिंग के लिए लोकप्रिय हो चुका था। इस शो के प्रारंभिक एपिसोड्स में अधिक प्रसिद्धि प्राप्त गेस्ट नहीं बुलाए गए। स्वतंत्र पत्रकार, क्षेत्रीय नेता, लोकल कलाकार, लेखक आदि गेस्ट ही शामिल थे लेकिन जैसे-जैसे इस शो की गुणवत्ता ने आम जनता को प्रभावित किया वैसे-वैसे इसकी लोकप्रियता भी बढ़ी, इसकी प्रभावशाली शैली ने इसे सोशल मीडिया पर चर्चा का विषय बना दिया और परिणामस्वरूप हाई-प्रोफाइल गेस्ट्स भी आने लगे। ‘गेस्ट इन द न्यूज़ रूम’ में आने वाले मेहमानों की विविधता इसकी एक और बड़ी ताक़त है। यहाँ राजनेता, अभिनेता, लेखक, यूट्यूबर, खिलाड़ी और समाजसेवी सभी आते हैं। यह विविधता शो को हर बार नया आयाम देती है। उदाहरण के लिए, जब किसी राजनेता से बात होती है, तो मुद्दा राजनीति, नीति और जनता की अपेक्षाओं पर होता है, वहीं जब कोई कलाकार आता है, तो बातचीत कला, समाज और सिनेमा के प्रभावों पर घूमती है। 2020 के बाद इस शो में देश के प्रमुख नेताओं को बुलाया गया। इनके अतिरिक मनोज बाजपेयी, पंकज त्रिपाठी, राजकुमार राव, स्वानंद किरकिरे जैसे कलाकार भी इस शो का हिस्सा बने। इस दौरान यह शो यूट्यूब के सर्वश्रेष्ठ हिंदी जर्नलिस्टिक इंटरव्यू शो में गिना जाने लगा। आधुनिकता के स्पष्ट प्रभाव से वर्तमान समय में इस शो की पहुँच अंतरराष्ट्रीय विषयों तक हो गई है। अब क्षेत्रीय भाषाओं के नेताओं, यूट्यूबरों, सोशल एक्टिविस्ट्स को भी बुलाया जाने लगा। इस शो के माध्यम से दर्शकों को भारत की राजनीतिक बहसों और जन-संवाद के उच्चतम स्तर से जोड़ने की कोशिश की जाती है। यूट्यूब पर करोड़ों व्यूज़, हजारों कमेंट्स और एक्टिव कम्युनिटी इसे प्रमाणित करती है कि यह शो भारत की युवा और जागरूक जनता को सीधा संबोधित करता है। इसकी नकल अब कई दूसरे डिजिटल मीडिया संस्थानों ने भी करने की कोशिश की है।
शो की संरचना और प्रस्तुति -
‘गेस्ट इन द न्यूज़ रूम’ एक संवादात्मक शो है, जहाँ लल्लनटॉप के संपादक सौरभ द्विवेदी मुख्य होस्ट की भूमिका निभाते हैं। जो एक तेज़-तर्रार, स्पष्टवादी और तथ्यपरक पत्रकार हैं, जिनकी भाषा, व्यंग्य और तर्कशक्ति दर्शकों को बांधे रखती है। सौरभ न सिर्फ सवाल पूछते हैं, बल्कि जवाबों को चुनौती देने, गहराई में जाने और संवाद को नए आयाम देने में भी सक्षम हैं। उनका यह दृष्टिकोण संतुलित होते हुए भी तीखा होता है, जो न तो गेस्ट को बेवजह लपेटता है, न ही बिना वजह रियायत देता है। साथ ही दूसरी तरफ वे अपनी टीम के साथ मिलकर अतिथि का स्वागत करते हैं और फिर न्यूज़ रूम के माहौल में बातचीत होती है। यह बातचीत किसी स्टूडियो के चमचमाते सेटअप में नहीं, बल्कि एक जीवंत न्यूज़रूम में होती है, जहाँ पत्रकार काम कर रहे होते हैं, कैमरे के सामने और पीछे बातचीत चल रही होती है, और यही इस शो को असली पत्रकारिता से जोड़ता है। शो की प्रस्तुति में कोई बनावटीपन नहीं होता। होस्ट और गेस्ट के बीच होने वाला संवाद अकसर तीखा, गहन और विचारोत्तेजक होता है। यह एक प्रेस कॉन्फ्रेंस, चर्चा और इंटरव्यू तीनों का मिला-जुला रूप है । इस शो की सबसे बड़ी विशेषता इसका फॉर्मेट है। आमतौर पर टेलीविज़न इंटरव्यूज़ में एक औपचारिकता होती है, जहाँ सवाल-जवाब एक तयशुदा ढर्रे पर चलते हैं। लेकिन 'गेस्ट इन द न्यूज़ रूम' एकदम अलग है। शो का न्यूज़ रूम के बीचोंबीच होना, संवादों का खुला, तीखापन और रिसर्च पर आधारित होना, होस्ट के अतिरिक्त अन्य पत्रकारों का सवाल करना, गेस्ट को विशेष प्रकार के आरामदेह वातावरण में अपनी बात कहने का पूर्ण अवसर देना इत्यादि इस शो की मुख्य विशेषताएं हैं। यह वातावरण बातचीत को अधिक सहज, मानवीय और विश्वसनीय बनाता है।
सौरभ द्विवेदी की भूमिका -
शो के केंद्र में हैं सौरभ द्विवेदी– एक निर्भीक, प्रखर और बौद्धिक पत्रकार। वे केवल सवाल नहीं पूछते, बल्कि जवाबों की परतें उधेड़ते हैं। उनका ज्ञान, खासकर राजनीति, इतिहास, समाज और साहित्य पर गहरी पकड़ दर्शकों को बांधे रखती है। वे व्यंग्य और कटाक्ष का प्रयोग भी कुशलता से करते हैं, लेकिन किसी भी सवाल में व्यक्तिगत हमला या बदनीयती नहीं होती। सौरभ की शैली कुछ लोगों को थोड़ी तीखी लग सकती है, लेकिन यह तीखापन पत्रकारिता के उस पक्ष को सामने लाता है जहाँ संवाद केवल औपचारिक नहीं, बल्कि सच्चाई के करीब होता है।
शो की प्रमुख विशेषताएँ -
यह शो एक औपचारिक स्टूडियो के बजाय न्यूज़ रूम में होता है, जिससे बातचीत अधिक स्वाभाविक और मानवीय लगती है। दर्शक ऐसा महसूस करते हैं कि वे भी संवाद का हिस्सा हैं। कोई स्क्रिप्टेड या रटा-रटाया प्रश्न नहीं। हर सवाल ताज़ा, गहन और विश्लेषणात्मक होता है। इसके अतिरिक्त केवल होस्ट ही नहीं अपितु न्यूज़रूम में काम कर रहे एडिटर, रिसर्चर्स, रिपोर्टर भी सवाल पूछते हैं, जिससे यह शो एक सामूहिक प्रयास बन जाता है, जो पारंपरिक एक-व्यक्ति आधारित इंटरव्यू से अलग है। इसमें राजनीति, सिनेमा, समाज, खेल, साहित्य– हर क्षेत्र के लोगों को आमंत्रित किया जाता है, जिससे दर्शकों को व्यापक दृष्टिकोण मिलता है। शो के दौरान सौरभ द्विवेदी अपने तीखे, तथ्यों पर आधारित सवालों के लिए जाने जाते हैं। वे किसी भी विचारधारा या पद पर बैठे व्यक्ति को चुनौती देने से नहीं कतराते, जिससे शो की गरिमा बनी हुई है। शो की भाषा आम जनमानस की हिंदी है– उसमें हिंदी की विविध शैलियों (खड़ी बोली, अवधी, भोजपुरी, आदि) का प्रयोग इसे देसी स्वाद देता है, जो दर्शकों को और भी करीब लाता है। जिसमें स्थानीयता और जीवन का स्पर्श है। इससे दर्शक जल्दी जुड़ जाते हैं। यहाँ गेस्ट को समय दिया जाता है। उन्हें अपने विचार विस्तार से रखने का मौका मिलता है, जो आज के शॉर्ट-क्लिप संस्कृति में दुर्लभ है। शो में आम लोगों के सवाल भी शामिल किए जाते हैं, जिससे दर्शक खुद को इससे जुड़ा महसूस करते हैं।
शो की संभावित आलोचनाएँ -
कईबार सौरभ द्विवेदी के तीखे सवाल और बात काटने की आदत गेस्ट को असहज कर देती है। इससे संवाद में असंतुलन पैदा हो सकता है। वहीं दूसरी तरफ एक एपिसोड अक्सर 1 से 2 घंटे तक का होता है, जो हर दर्शक के लिए व्यावहारिक नहीं है। आज की तेज़ रफ्तार जिंदगी में इतना लंबा कंटेंट सभी को आकर्षित नहीं करता। कुछ आलोचक मानते हैं कि कुछ एपिसोड्स में गेस्ट की विचारधारा के अनुरूप या विरोध में सॉफ्ट कॉर्नर या कठोरता देखी जा सकती है। हालांकि, यह धारणा दर्शकों की निजी राजनीति से भी प्रभावित हो सकती है। शो का कैमरा वर्क और एडिटिंग जानबूझकर सरल रखा गया है, लेकिन कुछ दर्शकों को यह गुणवत्ता कमतर लग सकती है, खासकर जो हाई-एंड प्रोडक्शन के आदी हैं। कुछ एपिसोड में यह महसूस किया गया है कि होस्ट ने गेस्ट को ज्यादा स्पेस दिया, लेकिन जब वही गेस्ट दूसरे विचारधारा से होते हैं, तो उनसे ज्यादा टकराव किया जाता है। हालांकि न्यूज़ रूम में रिपोर्टर सवाल करते हैं, लेकिन आम जनता से लाइव संवाद की गुंजाइश कम होती है। यह शो का थोड़ा सीमित पक्ष है।
‘गेस्ट इन द न्यूज़ रूम’ का दर्शकों पर प्रभाव -
लल्लनटॉप का शो ‘गेस्ट इन द न्यूज़ रूम’ केवल एक इंटरव्यू सीरीज़ नहीं है, बल्कि यह दर्शकों के सोचने, समझने और सवाल करने के नज़रिए को बदलने वाला एक सशक्त माध्यम बन चुका है। डिजिटल युग में जहाँ कंटेंट की भरमार है, वहाँ यह शो एक सोचने-विचारने वाला स्पेस तैयार करता है। इसका प्रभाव कई स्तरों पर देखा जा सकता है-
इस शो में जब राजनेता आते हैं, तो उनसे ज्वलंत मुद्दों पर सवाल पूछे जाते हैं— जैसे बेरोज़गारी, शिक्षा, किसान, धर्म, आरक्षण, विकास आदि। इन विषयों पर खुली बातचीत से दर्शकों को अपने सवाल पहचानने और राजनीतिक समझ विकसित करने में मदद मिलती है। प्रभावस्वरूप दर्शक केवल प्रचार या नारेबाज़ी के शिकार नहीं होते, बल्कि मुद्दों को विश्लेषण करने लगते हैं। युवाओं में राजनीति को लेकर गंभीरता बढ़ी है। शो में हर विचारधारा के लोगों को बुलाया जाता है— दक्षिणपंथी, वामपंथी, उदारवादी, निर्गुट। यह संतुलन दर्शकों को यह सिखाता है कि हर सोच को सुना जाना चाहिए, चाहे आप उससे सहमत हों या नहीं। प्रभावस्वरूप ट्रोलिंग और नफ़रत से ऊपर उठकर संवाद को प्राथमिकता देने का संदेश मिलता है। साथ ही साथ असहमति के साथ सह-अस्तित्व की संस्कृति को बल मिलता है। शो की भाषा, शैली और मुद्दों का चयन की बात की जाए तो इसका चयन इस तरह किया जाता है कि उत्तर भारत के छोटे शहरों और गांवों के लोग भी खुद को उससे जुड़ा महसूस करते हैं। 'लखनऊ के छोरे', 'गोरखपुर के लड़के', 'बिहार की बेटी' जैसे संदर्भ और देसी अंदाज़ दर्शकों को अपनापन देता है। प्रभावस्वरूप हिंदी भाषी क्षेत्र के आम दर्शक को लगता है कि उसकी भाषा, संस्कृति और समस्याओं को मुख्यधारा मीडिया में जगह मिल रही है। यह शो शहरों और गांवों के बीच संवाद का पुल बनता है।
परंपरागत मीडिया को लेकर दर्शकों में अविश्वास की भावना रही है। लेकिन ‘गेस्ट इन द न्यूज़ रूम’ की पारदर्शिता, तैयार सवाल, रिसर्च और तीखे संवाद दर्शकों को भरोसा दिलाते हैं कि पत्रकारिता अभी भी ज़िंदा है। प्रभावस्वरूप दर्शक "प्रोपेगेंडा" और "जनहित पत्रकारिता" में फर्क करना सीखते हैं। स्वतंत्र मीडिया को लेकर रुचि और समर्थन बढ़ता है। शो का अंदाज़ ऐसा है कि कॉलेज जाने वाला युवा भी इससे जुड़ाव महसूस करता है। वह देखता है कि सवाल पूछना जरूरी है, रिसर्च करना जरूरी है, और हर जवाब को आंख मूंदकर नहीं मानना चाहिए। प्रभावस्वरूप युवाओं में मीडिया, राजनीति और समसामयिक विषयों पर रुचि बढ़ी है। कई युवा लल्लनटॉप और इस शो को देखकर पत्रकारिता को करियर के रूप में अपनाने की प्रेरणा पा रहे हैं। शो केवल इंटरव्यू नहीं है, बल्कि तर्क और तथ्य का आदान-प्रदान है। गेस्ट चाहे जितने बड़े हों, उनसे सवाल किए जाते हैं। दर्शक इस प्रक्रिया को देखकर खुद भी अपने जीवन में ज़्यादा सोचने और विश्लेषण करने लगते हैं। प्रभावस्वरूप सामाजिक मीडिया पर होने वाली बहसों में गंभीरता आई है। "भीड़ के साथ चलने" की बजाय लोग "सोच समझकर राय बनाने" लगे हैं।
निष्कर्ष : ‘गेस्ट इन द न्यूज़ रूम’ का इतिहास केवल एक शो की विकास यात्रा नहीं है, बल्कि यह हिंदी डिजिटल पत्रकारिता के लोकतंत्रीकरण की कहानी है। इससे स्पष्ट है कि पत्रकारिता केवल टीआरपी या विवाद पैदा करने का माध्यम नहीं है बल्कि वास्तविक और विश्वसनीय संवाद, सवाल और ज़िम्मेदारी का मंच भी है। ‘गेस्ट इन द न्यूज़ रूम’ का दर्शकों पर प्रभाव केवल मनोरंजन तक सीमित नहीं है। यह एक जनचेतना का माध्यम है, जो नागरिकों को सोचने, पूछने और सवाल करने की ताक़त देता है। यह शो पत्रकारिता के उस पक्ष को सामने लाता है जो लोकतंत्र के चौथे स्तंभ को मजबूती देता है। यह कहना अतिशयोक्ति नहीं होगी कि यह शो आज के समय में जनसंवाद का एक आईना बन चुका है– जो न केवल दर्शकों को सूचित करता है, बल्कि उन्हें जागरूक नागरिक भी बनाता है।
संदर्भ :
हाल के कुछ महत्वपूर्ण एपिसोड्स
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अंतरिक्ष श्रीवास्तव
शोधार्थी, दिल्ली विश्वविद्यालय, दिल्ली
antarikshsrivastava2857@gmail.com, 7398046575
अपनी माटी
( साहित्य और समाज का दस्तावेज़ीकरण )
चित्तौड़गढ़ (राजस्थान) से प्रकाशित त्रैमासिक पत्रिका
Peer Reviewed & Refereed Journal , (ISSN 2322-0724 Apni Maati) अंक-61, जुलाई-सितम्बर 2025
सम्पादक माणिक एवं जितेन्द्र यादव कथेतर-सम्पादक विष्णु कुमार शर्मा चित्रांकन दीपिका माली

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