शोध आलेख : माध्यमिक स्तर पर विद्यार्थियों की हिंदी मुहावरे एवं लोकोक्तियों की समझ का विश्लेषण / आरती दुबे एवं सोनिया स्थापक

माध्यमिक स्तर पर विद्यार्थियों की हिंदी मुहावरे एवं लोकोक्तियों की समझ का विश्लेषण

- आरती दुबे एवं सोनिया स्थापक


शोध सार : प्रस्तुत अध्ययन “माध्यमिक स्तर पर हिंदी मुहावरे एवं लोकोक्तियों का भाषिक अध्ययन” विषय पर केंद्रित है| हिंदी भाषा के सौंदर्य, सजीवता, अभिव्यक्ति व रचनात्मकता को बढ़ाने में मुहावरे व लोकोक्तियों की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण है | ये भाषा को प्रभावशाली बनाने के साथ सामाजिक अनुभव, साँस्कृतिक ज्ञान  और  जीवन मूल्यों को भी प्रकट करने में सहजता प्रदान करते हैं |  इस अध्ययन  का मुख्य उद्देश्य माध्यमिक स्तर के विद्यार्थियों  में हिंदी भाषा के अभिन्न अंग मुहावरे एवं लोकोक्तियों के प्रति जागरूकता, समझ व  दृष्टिकोण को ज्ञात  करना है  और यह भी जानना है कि विद्यार्थी  इन्हें  किस हद तक  समझते व प्रयोग करते हैं | प्रस्तुत अध्ययन में सर्वेक्षणात्मक शोध पद्दति का प्रयोग किया गया है, जिसमें प्रश्नावली को माध्यमिक स्तर के विद्यार्थियों के मध्य वितरित किया गया| इस प्रश्नावली के द्वारा विद्यार्थियों के मुहावरे व लोकोक्तियों के ज्ञान,समझ, प्रयोग व अभिरुचि को मापा गया | प्रस्तुत अध्ययन में निष्कर्ष स्वरुप यह ज्ञात हुआ कि अधिकांश विद्यार्थी मुहावरे व लोकोक्तियों के प्रयोग से भलीभाँति परिचित नहीं हैं | यद्यपि पाठ्यपुस्तकों में इनका समावेश किया गया है, फिर भी इनका व्यावहारिक प्रयोग सीमित रह गया है | अध्ययन के निष्कर्ष के आधार पर यह अनुशंसा की जाती है कि  भाषा शिक्षण में  मुहावरे व लोकोक्तियों को रोचक विधियों से पढ़ाया जाए ताकि विद्यार्थी इन्हें समझ कर अपने व्यवहार में प्रयोग कर सकें |  ऐसे प्रयास  विद्यार्थियों की भाषिक  क्षमता को  समृद्ध करके हिंदी भाषा के  विकास में भी सहायता करेंगे |

बीज शब्द : मुहावरे, लोकोक्ति |

मूल आलेख : मानव जाति अपने सर्जन से ही स्वयं को अभिव्यक्त करने के लिए तरह-तरह के माध्यमों का प्रयोग करती रही है। ऐसा माना जाता है कि एक-दूसरे के विचारों को समझने के यह प्रयास अभिव्यक्ति के उच्चतम स्तर पर जब पहुंच गए तब भाषा का विकास हुआ। वैसे भाषा के विषय में कहा जाता है कि यह जीवन के अनुभवों को समेटने की कला है (गोस्वामी, 2009) । भाषा एक ऐसा प्रभावी माध्यम है, जिसके द्वारा लोग एक-दूसरे के साथ अपने विचार, अनुभव, भावनाएँ व जानकारी आदि को साझा करते है, इसीलिए मानव के जीवन में भाषा की भूमिका को अत्यंत महत्वपूर्ण माना जाता है। भाषा मानव समुदाय में विशिष्टता का बोध उत्पन्न करने के साथ-साथ समुदाय के सांस्कृतिक चरित्र का भी प्रतिबिंब प्रस्तुत करती है (काण्डपाल, 2022) । किसी समुदाय की पहचान, विचारधारा और अनुभव को व्यक्त करने के लिए भाषा एक माध्यम है, जो कि अपने साथ उस समुदाय की संस्कृति, इतिहास और मूल्यों को अपने अंदर समेटे हुए है। इसके साथ ही भाषाएँ ऐसा माध्यम हैं, जिनसे अधिकतर ज्ञान का निर्माण होता है और इसके प्रयोग से बच्चे अपने आपको विचारों, व्यक्तियों, वस्तुओं तथा अपने आसपास के संसार से जोड़ पाते हैं (भाटिया, 2010) । यह कह सकते हैं कि भाषा ही वह अहम जरिया होता है जिसके द्वारा वो अपने परिवार, समाज और संस्कृति के साथ जुड़ते हैं| हमारा भारत देश विविधताओं का देश है। यहां के अधिकतर लोगों के द्वारा हिंदी भाषा का प्रयोग किया जाता है। यह भाषा भौगोलिक दृष्टि से भारत के एक-तिहाई से भी अधिक भाग के लोगों द्वारा बोली, समझी और पढ़ी जाती है (इंदौरा, 2023)।  भारत जैसे बहुभाषी देश में हिंदी एक अकेली ऐसी भाषा है, जिसके विषय में हमेशा से ही चर्चा और विमर्श होता रहा है। हिंदी के विषय में कहा जाता है कि हिंदी राष्ट्रीय जागरण और भावनात्मक एकता का आधार रही है (व्यास, 2013)। जब देश के लोग राष्ट्रीय एकता के प्रति संवेदनशील होंगे, तभी वे सामाजिक एवं सांस्कृतिक एकता के महत्त्व को समझ सकेंगे और लोगों के बीच भाषा, जाति, धर्म व संस्कृति के आधार पर भेद- भाव नहीं होगा। इसके साथ ही हिंदी विश्व स्तर पर हमारे देश को एक विशिष्ट पहचान दिलाती है और हमारी सांस्कृतिक विरासत, परंपराएं और मूल्यों को दुनिया भर में प्रचारित करती है। ऐसी स्थिति में हिंदी भाषा की ऐतिहासिक भूमिका व महत्त्व को देखते हुए उसकी केंद्रीय स्थिति से इंकार नहीं किया जा सकता है (इंदौरा, 2013)। परन्तु वर्तमान परिदृश्य में देखा जा सकता है कि अँग्रेजी की लोकप्रियता के कारण लोग हिंदी  पढ़ने, बोलने व लिखने में हिचकने लगे है।  वैश्विक और राष्ट्रीय स्तर पर अंग्रेज़ी को एक अंतर्राष्ट्रीय भाषा माना जाता है। विशेषकर व्यापार, शिक्षा और तकनीकी क्षेत्रों में अंग्रेज़ी का अधिक प्रभाव है। इसके परिणामस्वरूप लोग हिंदी को कम प्राथमिकता देने लगे हैं व अंग्रेज़ी में बातचीत करना पसंद करते हैं, जिससे हिंदी का प्रसार सीमित हो रहा है। जबकि एक भाषा के रूप में हिंदी हमारे लिए गौरव का प्रतीक है। भाषा सामाजिक सांस्कृतिक प्रक्रिया के अंतर्गत निर्मित होती है और विकास करती है (भट्ट, 2021)। हिंदी भाषा संस्कृति के संप्रेषक व संवाहक के तौर पर पुराने मूल्यों को हस्तांतरित करने में सहायता करती है। सांस्कृतिक रूप से हिंदी की विरासत बहुत समृद्ध मानी जाती है क्योंकि यह शास्त्रीय साहित्य, दर्शन और वेदों तथा उपनिषदों जैसे महत्वपूर्ण ग्रंथों की भाषा के रूप में जानी जाती है। इसके अंतर्गत विभिन्न प्रकार के साहित्य, मुहावरे, कविता, लोकोक्तियाँ   व रंगमंच आदि आते हैं, जिससे व्यक्तियों को अपने विचारों, भावनाओं को व्यक्त करने में समर्थन मिलता है। मुहावरे व लोकोक्तियाँ भारत की सांस्कृतिक, सामाजिक और भाषायी विरासत को संरक्षित तथा प्रसारित करने, लोगों को उनकी जड़ों से जोड़ने और पहचान की भावना को बढ़ावा देने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते है।

 मुहावरा का उद्भव और विशेषता-

            ‘मुहावरा’ शब्द अरबी भाषा से लिए गए शब्द ‘मुहावर’ से बना है, जिसका अर्थ है- बातचीत करना मुहावरे का शाब्दिक अर्थ होता है अभ्यास (सोनगरा, 2020)। मुहावरा एक ऐसे वाक्यांश को कहा जाता है, जो विशेष अर्थ को प्रकट करता है। जब लेखक अपने भावों की अपेक्षित अभिव्यक्ति में सामान्य प्रयोग या सामान्य भाषा को असमर्थ पाता है तो वह सामान्य प्रयोग की जगह विचलन करता है, इसी विचलन से नये मुहावरे का जन्म होता है, (तिवारी, (1991)। मुहावरा अपने आपमें पूर्ण वाक्य नहीं होता बल्कि इसी कारण से इसका स्वतंत्र रूप में प्रयोग नहीं किया जाता मुहावरों के माध्यम से भाषा को प्रभावशाली बनाया जाता है। ये भाषा को संक्षिप्त व सरल बनाने में सहायता करता है। प्रायः शारीरिक चेष्टाओं, अस्पष्ट ध्वनियों, कहानियों, कहावतों अथवा भाषा के कतिपय विलक्षण प्रयोगों के अनुकरण या आधार पर निर्मित  कोई विशेष अर्थ देने वाले किसी भाषा के बने हुए रूढ़ वाक्य, वाक्यांश या शब्द समूह को मुहावरा कहते हैं (कामेश्वरी, 2016)। मुहावरों के प्रयोग से भाषा सरस, रोचक व प्रभावपूर्ण बन जाती है। मुहावरों में जिन शब्दों का प्रयोग किया जाता है, उन शब्दों का सीधा-साधा अर्थ निकालने की जगह उसके भाव को समझना जरूरी होता है, क्योंकि मुहावरे में व्यक्त शब्द मुहावरे के अर्थ के पर्याय ना होकर उससे भिन्न अर्थ लिए हुए होते हैं, जिन्हें समझना जरूरी होता है। मुहावरे लिंग, वचन और क्रिया के अनुसार वाक्यों में प्रयोग किए जाते है। ये प्रसंग के अनुरूप अर्थ देते है और समाज में रीति-रिवाजों और परंपराओं के निर्माण में सहायक होते है। मुहावरों के साथ जुड़े शब्द बदले नहीं जा सकते, जिसका अर्थ यह हुआ कि मुहावरों का मूल रूप नहीं बदलता यह माना जाता है, कि मुहावरे का शाब्दिक अर्थ ग्रहण करने के स्थान पर उसका भावार्थ ग्रहण करना चाहिए । मुहावरा शब्दों का वह क्रम या समूह है, जिसमें सभी शब्दों का अर्थ एक साथ मिलाकर लिखा जाता है। हिंदी और उर्दू में लक्षणा या व्यंजना के सहयोग से जो वाक्य लिखा जाता है उसे मुहावरा कहते हैं ( सोनगरा,2020)। शब्दों की शक्तियों के आधार पर मुहावरों का निर्माण निम्न प्रकार से होता है, शब्दों की तीन शक्तियां होती हैं- अभिधा, लक्षणा व व्यंजना ।

            मुहावरा पद या पदबंध होता है, वाक्य का अंग बनता है तथा उसका अर्थ शब्दों की लक्षणाशक्ति से निकलता है (कपूर, 2007)। जब किसी शब्द या शब्दों के समूह का प्रयोग सामान्य अर्थ के रूप में प्रयोग किया जाता है, तब इसे अभिधा शक्ति कहते है। अभिधा के द्वारा जिस अर्थ को अभिव्यक्त किया जाता है, उसे अभिधेयार्थ या मुख्यार्थ कहते हैं जैसे – सिर पर चढ़ना का अर्थ होगा किसी चीज को किसी स्थान से उठाकर सिर पर रखना । परंतु जब मुख्यार्थ रुढ़ि या प्रसिद्धि के कारण या किसी विशेष प्रयोजन को सूचित करने के लिए तथा मुख्यार्थ से संबंधित किसी अन्य अर्थ का ज्ञान हो तब इसे लक्षणा शक्ति कहते है। यह शक्ति कल्पित होती है अर्थात इस शक्ति में कल्पना की जाती है। लक्षणा में सिर पर चढ़ने का अर्थ अतिरिक्त आदर देना होगा| परंतु यह भी सत्य है कि लक्षणा के जितने भी उदाहरण हैं उन्हें मुहावरों के अंतर्गत नहीं रखा जा सकता, बल्कि जो चिर अभ्यास के कारण रूढ़ या प्रसिद्ध हो गये हैं ऐसे लक्षणा के उदाहरण ही मुहावरों के अंतर्गत आते है। जब अभिधा व लक्षणा अपना काम करके विरत हो जाती हैं, तब जिस शक्ति से शब्द- समूहों या वाक्यों के किसी अर्थ की सूचना मिलती है, उसे व्यंजना कहते है। मुहावरों में  व्यंग्यार्थ  रहता है, वह किसी एक शब्द के अर्थ के कारण नहीं होता बल्कि सब शब्दों के शृंखलित अर्थों के कारण होता है। यह भी कह सकते हैं कि व्यंग्यार्थ पूरे मुहावरे के अर्थ में रहता है। जैसे कि-सिर पर चढ़ना मुहावरे का व्यंग्यार्थ सिर पर चढ़ने पर निर्भर नहीं करता बल्कि पूरे मुहावरे का अर्थ होता है अनुशासनहीन या ढीठ होना । यह व्यंग्यार्थ अभिधेयार्थ तथा लक्षणा अभिव्यक्ति अर्थ से भिन्न होता है । इसके अतिरिक्त कुछ मुहावरे अलंकारों पर भी आधारित होते हैं, परन्तु इसका अर्थ यह नहीं होता कि प्रत्येक मुहावरा अलंकार होता है या प्रत्येक अलंकारयुक्त वाक्यांश मुहावरा ही होता है। इसी प्रकार से कुछ मुहावरे कथानकों, किंवदंतियों, धर्म कथाओं पर आधारित होते हैं, कुछ अस्पष्ट ध्वनियों, पशु-पक्षी, कीट-पतंगों की ध्वनियों पर, कुछ शारीरिक चेष्टाओं पर आधारित होते है। इनमें से ज्यादा तक मुहावरे किसी न किसी के अनुभव पर आधारित होते है। इसलिए अगर उनमें किसी भी प्रकार का परिवर्तन या उलट फ़ेर किया जाता है, तो उनका अनुभव तत्व नष्ट हो जाता है। जैसे – पानी-पानी होना के स्थान पर जल जल होना प्रयोग नहीं कर सकते।

लोकोक्तियों का परिचय-

            इसी प्रकार से मनुष्य समाज में अपनी बात की पुष्टि करने के लिए, अपनी बात को समाज में स्वीकृत कराने के लिए प्रमाण के रूप में समाज में प्रचलित कुछ कथनों का प्रयोग करता है, इन्हें ही लोकोक्ति या कहावतें कहा जाता है। लोकोक्ति लोक जीवन में प्रचलित ऐसा पूर्ण या अपूर्ण वाक्य होता है, जिसमें किसी के अनुभव या ज्ञान, उपदेश का सार या निचोड़, या किसी भी प्रकार के मूल्य व नैतिक शिक्षा होती है। अनुभव का सागर जब कुछ शब्दों की गागर में समा जाता है तो लोकोक्ति बन जाता है (तिवारी, 1995)। लोकोक्ति को सामान्यतः अधिक प्रचलित और लोगों के मुंह चढ़े वाक्य के रूप में जाना जाता है। इनकी उत्पत्ति एवं रचनाकार के विषय में ज्ञात नहीं होता| लोकोक्ति में जनता के अनुभवों का सार होता है इसलिए यह कहा जाता है कि ये जनमानस के अनुभवों पर आधारित होते है। लोकोक्तियों को समझने के लिए किसी माध्यम की आवश्यकता नहीं होती है (कामेश्वरी,2016)। लोकोक्तियाँ आम लोगों द्वारा अपने प्रतिदिन की परिस्थितियों एवं सन्दर्भों से उत्पन्न ऐसे वाक्य होते हैं, जो किसी विशेष वर्ग, समूह, सभ्यता, उम्र, स्थानीय बोली के क्षेत्रीय दायरे में प्रयोग किया जाता है। इसमें उस स्थान विशेष के भूगोल, संस्कृति, भाषाओं का मिश्रण देखने मिलता है। ये लोक जीवन की गुणवत्ता किसी भी घटना या अन्तरकथा से जुड़ी रहती है। इनका जन्म ही लोक जीवन में होता है इसलिए ये लोगों के जीवन का अभिन्न अंग होती है। प्रत्येक लोकोक्ति समाज में प्रचलित होने से पहले अनेक बार लोगों के अनुभवों की कसौटी पर कसी गयी होती है और सभी लोगों के अनुभव उस लोकोक्ति के साथ एक जैसे रहे होते हैं तब ही वह कथन एक सर्वमान्य कथन के रूप में आज हमारे सामने है। लोकोक्तियाँ समाज का सही मार्गदर्शन करने में सहायक होती हैं| इनके द्वारा धार्मिक और नैतिक उपदेश प्राप्त होता है। इसके साथ ही लोकोक्तियों का प्रयोग हास्य व मनोरंजन में भी किया जाता है| ये सर्वव्यापी और सर्वग्राही होती है, अर्थात्‌ प्रत्येक समाज में इनके अर्थ समान रहते है। ये जीवन के सभी पहलुओं को स्पर्श करती हैं और लोगों के वास्तविक अनुभवों पर आधारित होती है इसलिए जीवनोपयोगी बातों के बारे में सुझाव देती है। यह कहा जा सकता है कि लोकोक्तियाँ दिखने में छोटी लग सकती हैं, परंतु उसमें भाव अधिक रहता है। इसमें बहुत ही छोटे कथन के आधार पर बहुत ही प्रभावपूर्ण बात बोली जा सकती है। इनके प्रयोग से रचना में भावगत विशेषता आ जाती है। यह कह सकते है कि लोकोक्तियाँ वाक्य में घुलती नहीं है, ये अपने मूल अर्थ को कभी नहीं छोड़ती लोकोक्तियों के प्रयोग से हम थोड़े से शब्दों में अधिक भावों तथा विचारों को समाविष्ट कर सकते है। शहर हो या गांव, हर जाति, वर्ग, समुदाय, समाज, देश के लोग लोकोक्तियों का प्रयोग करते है। मुहावरे के समान ही कहावत या लोकोक्ति का हिंदी भाषा में बोलचाल व लेखन दोनों में अधिकाधिक प्रयोग होता है। यह भी भाषा में वही विशिष्टता लाती है जो मुहावरा लाता है मगर मुहावरे से भिन्न इसके प्रयोग का उद्देश्य कथन के औचित्य को सिद्ध करना होता है। इसके बावजूद दोनों में अर्थ, विशेषता और प्रयोग आदि में बहुत अन्तर होता है।

भाषिक अध्ययन – 

            भाषा के मूलतः मौखिक रूप का अध्ययन भाषा का वैज्ञानिक अध्ययन कहलाता है (वर्मा, 2009) | भाषिक अध्ययन का तात्पर्य है कि भाषा के अध्ययन से जुड़ी हुई प्रक्रिया, जिसमें भाषा से संबंधित सभी पहलुओं और दृष्टिकोणों का अध्ययन किया जाता है | इसमें भाषा प्रयोग से संबंधित विषयों का गहराई से अध्ययन किया जाता है | भाषिक अध्ययन के अंतर्गत व्याकरण, ध्वनि विज्ञान, शब्द विज्ञान, शब्द संरचना, अर्थ, समाज में भाषा का प्रयोग और भाषा की विभिन्नता आते हैं | इसके साथ ही  इसमें भाषा और संस्कृति के संबंध के बारे में भी विचार किया जाता है कि भाषा किस प्रकार से संस्कृति को प्रभावित करती है तथा संस्कृति कैसे भाषा के विकास में सहायक होता है | मुहावरे व लोकोक्तियाँ किसी भी भाषा के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण व उपयोगी है | भाषिक अध्ययन के अंतर्गत इनकी सार्थकता देखी जाती है कि किसी मुहावरे में उसका शाब्दिक अर्थ और उसका साँस्कृतिक व सामाजिक सन्दर्भ में भिन्नता हो सकती है | उदाहरणस्वरुप-  आग में घी डालना मुहावरे का शाब्दिक अर्थ आग में घी डालना ही होगा परंतु सामाजिक संदर्भ में अगर देखें तो इसका अर्थ किसी समस्या को और बढ़ाना होगा | भाषिक अध्ययन के माध्यम से भाषा की संरचना के ज्ञान के साथ संस्कृति को भी जाना जा सकता है |

शोध पद्धति-

            किसी भी भाषा को समझने के लिए उसके भाव को जानना अत्यंत आवश्यक है। इसमें हिंदी मुहावरे और लोकोक्तियाँ एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते है। इनके माध्यम से संप्रेषण को अत्यंत प्रभावशाली बनाया जा सकता है। परंतु समय के साथ अंग्रेज़ी के बढ़ते प्रभाव के कारण आज हिंदी मुहावरे व लोकोक्तियों का प्रयोग कम होता जा रहा है। हिंदी मुहावरे और लोकोक्तियों के प्रति विद्यार्थियों की जागरूकता व दृष्टिकोण को जानने के लिए शोधार्थी द्वारा माध्यमिक स्तर के विद्यार्थियों  द्वारा मुहावरे एवं लोकोक्तियों के प्रयोग का सर्वेक्षण किया गया। इसके लिए शोधार्थी ने विद्यालयी स्तर पर विद्यार्थियों के मुहावरे एवं लोकोक्तियों के अवबोधन को समझने के लिए एक प्रश्नावली गूगल फॉर्म के माध्यम से निर्मित और वितरित की, जिसका मुख्य उद्देश्य माध्यमिक स्तर के विद्यार्थियों द्वारा मुहावरे एवं लोकोक्तियों के प्रयोग के विषय में जानकारी एकत्र करना था । इस प्रश्नावली में शोधार्थी ने कुल दस पदों का प्रयोग किया है, यह ज्ञात करने हेतु कि विद्यार्थी मुहावरे एवं लोकोक्तियों से कितना परिचित हैं व अपने दैनिक जीवन में इनका कितना प्रयोग करते है। इन प्रश्नों का गुणात्मक रूप से विश्लेषण निम्न प्रकार है |

प्रदत्तों का विश्लेषण - 

            प्रश्नावली का पहला पद ‘आँखों का तारा होना’ मुहावरे के अर्थ से संबंधित था, जिसमें विद्यार्थियों की प्रतिक्रिया के रूप में लगभग सभी विद्यार्थियों के द्वारा हाँ में उत्तर देकर सही अर्थ बताया गया जैसे बहुत प्रिय होना, सबसे प्यारा होना, किसी के लिए बहुत खास होना जो कि मुहावरे का सही अर्थ है। इसलिए यह कहा जा सकता है कि विद्यार्थी इस मुहावरे का अर्थ व सन्दर्भ जानते हैं क्योंकि मुहावरे का अर्थ हमेशा शब्दों के सीधे अर्थ से अलग होता है| प्रश्नावली का दूसरा पद ‘कदम पर कदम रखना’ मुहावरे के प्रयोग से संबंधित था कि विद्यार्थियों ने इस मुहावरे का प्रयोग कभी किया है या नहीं, जिसकी प्रतिक्रिया के रूप में लगभग 53% विद्यार्थियों ने कहा कि उन्होंने इस मुहावरे का प्रयोग किया है और 47% विद्यार्थियों ने कहा कि उन्होंने इस मुहावरे का प्रयोग नहीं किया है। इसलिए यह माना जा सकता है कि 53% विद्यार्थी इस मुहावरे से परिचित हैं और उन्होंने इस मुहावरे के विषय में पहले सुना हुआ है| यह दर्शाता है कि ऐसे मुहावरों का साँस्कृतिक या व्यावहारिक संपर्क अधिक होता है, ये दैनिक जीवन में ज्यादा प्रयुक्त होते हैं| प्रश्नावली का तीसरा पद ‘अंधों में काना राजा’ लोकोक्ति के वाक्य प्रयोग से संबंधित था, इसकी प्रतिक्रिया के रूप में मिश्रित उत्तर प्राप्त हुए कुल विद्यार्थियों में 5.9% विद्यार्थियों ने भिन्न-भिन्न वाक्य प्रयोग करके दिखाया, जो कि लोकोक्ति के सही वाक्य प्रयोग प्रतीत होते हैं, वहीं 11.8%विद्यार्थियों ने वाक्य प्रयोग में असमर्थता जतायी। इस तरह यह कह सकते हैं कि 5.9% विद्यार्थी इस लोकोक्ति का अर्थ जानते हैं, उनमें लोकोक्ति का वाक्य प्रयोग करने के लिए भाषा पर पकड़ और भाव की समझ मौजूद है तभी वे सही वाक्य प्रयोग करने में सफल हुए, 11.8% विद्यार्थी इस लोकोक्ति का अर्थ नहीं जानते, इस कारण से उन्हें सही वाक्य प्रयोग करने में कठिनाई हुई लगभग 82% विद्यार्थियों ने इस प्रश्न के विभिन्न उत्तर दिये हैं जिससे यह ज्ञात होता है कि उन्हें लोकोक्ति के विषय में ज्ञान नहीं है, वे भाषा का रचनात्मक प्रयोग नहीं कर पा रहे हैं| प्रश्नावली का चौथा पद ‘कभी घी घना तो कभी मुट्ठी चना’ लोकोक्ति से संबंधित था कि विद्यार्थी इस लोकोक्ति से परिचित हैं या नहीं, इसकी प्रतिक्रिया के रूप में 44% विद्यार्थियों ने कहा कि उन्होंने इस लोकोक्ति के विषय में नहीं सुना है और लगभग 17.5% विद्यार्थियों ने माना कि उन्होंने इस लोकोक्ति के विषय में सुना हुआ है, जिसका अर्थ यह हुआ कि यह उन विद्यार्थियों के भाषायी साँस्कृतिक परिवेश की समृद्धि का प्रमाण है, जबकि अधिकतर 44% विद्यार्थी इस लोकोक्ति से अनभिज्ञ है जिसका अर्थ यह हुआ कि उनका भाषायी परिवेश सीमित है। प्रश्नावली का पांचवां पद ‘चिकना घड़ा होना’ मुहावरे से संबंधित था, इसकी प्रतिक्रिया के रूप में मिश्रित उत्तर प्राप्त हुए 26.1%विद्यार्थियों ने मुहावरे के वाक्य प्रयोग में असमर्थता जतायी, लगभग 29.4% विद्यार्थियों ने सही वाक्य प्रयोग किया तो 16.8%विद्यार्थियों के द्वारा सही अर्थ तो बताया गया परंतु किया गया वाक्य प्रयोग सटीक प्रतीत नहीं होता, ऐसा लगता है जैसे कि उन्हें केवल रटंत ज्ञान है, वे रचनात्मक प्रयोग करने में सक्षम नहीं है। प्रश्नावली का छठवाँ पद ‘ना सावन सूखा ना भादों हरा’ मुहावरे से संबंधित था, इसकी प्रतिक्रिया के रूप में लगभग 42.4% विद्यार्थियों ने कहा कि वे इस मुहावरे का प्रयोग नहीं कर पायेंगे, जो कि उनके भाषा प्रयोग के प्रति झिझक को दर्शाता है| 42.2% विद्यार्थियों ने भिन्न-भिन्न उत्तर दिये, जो कि सही है, उन्होंने भाषा को अभ्यास और अनुभव के स्तर पर समझा है| प्रश्नावली का सातवां पद ‘अच्छा चेहरा उजाड़ना’ मुहावरे को अपने आसपास के लोगों द्वारा प्रयोग करने से संबंधित था, इसकी प्रतिक्रिया के रूप में 48.3%विद्यार्थियों ने कहा कि उन्होंने कभी भी अपने आसपास के लोगों द्वारा इस मुहावरे का प्रयोग करते नहीं सुना है, इसका अर्थ हुआ कि उनके परिवार या समाज में मुहावरे जैसे साँस्कृतिक तत्वों का प्रयोग नहीं किया जाता है। 51.4% विद्यार्थियों ने कहा कि उन्होंने आसपास के लोगों द्वारा इस मुहावरे का प्रयोग करते सुना है, जिसका अर्थ यह हुआ कि इस मुहावरे का प्रयोग रोज़मर्रा के जीवन में होता है तथा विद्यार्थी जीवंत साँस्कृतिक माहौल में पले बढ़े हैं| प्रश्नावली का आठवां पद ‘कभी घर बैठे गंगा आना’ लोकोक्ति के प्रयोग से संबंधित था, जिसकी प्रतिक्रिया के रूप में लगभग 55.7% विद्यार्थियों ने माना कि उन्हें लोकोक्ति का अर्थ नहीं पता है, इस कारण से वे प्रयोग करने में सक्षम नहीं हैं, 41%विद्यार्थियों ने लोकोक्ति का सही अर्थ बताकर उसका सही प्रयोग करके बता दिया, जो कि उनके गहन भाषा-बोध और रचनात्मक लेखन को प्रदर्शित करता है। प्रश्नावली का नौवां पद विद्यार्थियों के द्वारा पिछले कुछ दिनों में उनके द्वारा प्रयुक्त मुहावरे एवं लोकोक्तियों से संबंधित था, इसकी प्रतिक्रिया के रूप में 15.3% विद्यार्थियों ने कहा कि उन्होंने किसी भी मुहावरे और लोकोक्ति का प्रयोग नहीं किया, 83.7% विद्यार्थियों ने ईद का चांद होना, अपने मुंह मियाँ मिट्ठू बनना, आँख के अंधे नाम नैनसुख, नाच ना आवे आँगन टेढ़ा, उल्टा चोर कोतवाल को डांटे, तिल का पहाड़ बनाना, दांत खट्टे होना जैसे समाज में प्रचलित मुहावरे और लोकोक्ति का प्रयोग किया है। इसलिए कहा जा सकता है कि अधिकतर विद्यार्थी ऐसे मुहावरे एवं लोकोक्तियों का प्रयोग करते हैं जिनका बोल चाल की भाषा में अधिक प्रयोग किया जाता है। प्रश्नावली का दसवां पद विद्यार्थियों द्वारा अपने रोज़मर्रा के जीवन में मुहावरे और लोकोक्तियों के प्रयोग से संबंधित था, इसकी प्रतिक्रिया के रूप में मिश्रित उत्तर प्राप्त हुए 6.3%विद्यार्थियों ने माना कि वे अपने रोज़मर्रा के जीवन में मुहावरे और लोकोक्तियों का प्रयोग नहीं करते, 58.1% विद्यार्थियों ने कहा कि वे अपने रोज़मर्रा के जीवन बहुत कम या थोड़ा बहुत ही मुहावरे एवं लोकोक्तियों का प्रयोग करते हैं, 20.3% विद्यार्थियों ने कहा कि वे मुहावरे एवं लोकोक्तियों का प्रयोग जरूरत पड़ने पर करते हैं।

परिणामों की विवेचना -  

            सर्वेक्षण के समग्र परिणाम से यह स्पष्ट होता है कि वर्तमान समय में मुहावरे एवं लोकोक्तियों का प्रयोग उल्लेखनीय रूप से कम हो गया है | विद्यार्थियों में इनके प्रति बुनियादी समझ तो है, परंतु प्रयोगात्मक और रचनात्मक उपयोग में वे अभी भी कमजोर हैं | अधिकांश विद्यार्थी मुहावरे एवं लोकोक्तियों का अर्थ पहचानने में सक्षम हैं, परंतु सन्दर्भ के अनुसार उनका प्रयोग करने में असमर्थ दिखायी देते हैं | पहले लोग अपने विचारों की अभिव्यक्ति व सामाजिक सम्बन्धों में इनका प्रयोग सहज रूप से करते थे, पर अब इनका प्रभाव सीमित होता जा रहा है | वैश्वीकरण व पश्चिमी प्रभाव के कारण हिन्दी भाषा तथा उससे जुड़ी अभिव्यक्तियों का महत्त्व घटा है | भट्ट (2021) ने मातृभाषा हिंदी के प्रति घटते रुझान के कारणों में अभिभावकों के मन में अंग्रेजी माध्यम में अपने बच्चों को भेजकर स्वयं को प्रतिष्ठित साबित करने की चाह को सर्वोपरि पाया, उनके अनुसार जीवन स्तर से अंग्रेजी के जुड़ने के कारण हिंदी की मान्यता घटी है | परिणामों का अध्ययन करने पर मुहावरे एवं लोकोक्तियों के ज्ञान की कमी से विद्यार्थियों में भाषा की संक्षिप्तता देखने को मिली, ये गहराई से अपने विचारों को व्यक्त करने में सक्षम नहीं हैं | अतः यह कहा जा सकता है कि विद्यार्थियों में मुहावरे एवं लोकोक्तियों की पहचान तो है, परन्तु प्रयोग में सुधार की आवश्यकता है और शिक्षा के दौरान उन्हें और अधिक व्यावहारिक अभ्यास की आवश्यकता होगी|

निष्कर्ष : परिणामों के आधार पर यह निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि माध्यमिक स्तर के विद्यार्थी मुहावरे एवं लोकोक्ति से अपेक्षाकृत कम परिचित है, उन्हें इनके सन्दर्भगत प्रयोग की जानकारी भी सीमित है, जिसके कारण वे इन्हें अपने रोज़मर्रा के जीवन में भी कम ही उपयोग करते हैं | मुहावरे व लोकोक्तियों के अध्ययन से विद्यार्थियों की भाषा दक्षता, शब्दावली व अभिव्यक्ति क्षमता सुदृढ़ होती है, जिससे संवाद में स्पष्टता, प्रभावशीलता तथा रचनात्मकता का विकास होता है | जैसा कि हम पहले चर्चा कर चुके हैं कि मुहावरे एवं लोकोक्तियाँ केवल भाषा का हिस्सा नहीं हैं, इसके साथ ही ये समाज की सोच, संस्कार तथा परंपराओं का दर्पण हैं इसलिए जब विद्यार्थी इनका अध्ययन करेंगे तो वे समाज के मूल्य, आदर्श, नैतिकता व संस्कृति से भी जुड़ाव महसूस करेंगे | मालाकार (2019) के अनुसार मुहावरे न केवल भाषा की प्रभावशीलता को बढ़ाते हैं, बल्कि भाषा विज्ञान और संगणकीय दृष्टिकोण से भी मुहावरों का अध्ययन और विश्लेषण महत्त्वपूर्ण होता है | मुहावरों व लोकोक्तियों का ज्ञान विद्यार्थियों की रचनात्मक क्षमता, कल्पनाशीलता व लेखन कौशल को समृद्ध करता है, जिसके कारण उन्हें विचारों की अभिव्यक्ति के लिए सशक्त माध्यम मिलता है तथा वे समाज व जीवन के विविध पहलूओं से अवगत होते हैं जिससे उनमें सामाजिक संवेदना व समझ विकसित होती है | इस प्रकार हिंदी मुहावरों व लोकोक्तियों का ज्ञान विद्यार्थियों के भाषिक, रचनात्मक और साँस्कृतिक विकास के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण स्थान रखता है |

            विद्यार्थियों में मुहावरों व लोकोक्तियों के प्रति नीरसता समाप्त करके रुचि जाग्रत करने हेतु पाठ्यक्रम में इन्हें रचनात्मक व सन्दर्भपरक रूप से शामिल किया जाना चाहिए | विद्यालयों में इनसे संबंधित प्रतियोगिताएं व साँस्कृतिक कार्यशालाएं आयोजित की जा सकती है, जिससे विद्यार्थी इनके महत्त्व को समझ सकें तथा प्रयोग में आत्मविश्वास अर्जित करें | सोशल मीडिया जैसे मंचों पर भी इनका प्रचार – प्रसार विद्यार्थियों की सहभागिता से किया जा सकता है |

            अतः यह कहा जा सकता है कि हिंदी मुहावरों और लोकोक्तियों का ज्ञान न केवल भाषा शिक्षण के लिए आवश्यक है, साथ ही यह विद्यार्थियों की रचनात्मकता, सामाजिक समझ व साँस्कृतिक चेतना को भी समृद्ध करता है, जिसे शिक्षा के माध्यम से जीवित रखना हमारी भाषिक और साँस्कृतिक विरासत के संरक्षण का एक सशक्त माध्यम है |

संदर्भ :

  • आचव, एम. आर. वाई. (2016). हिन्दी और गुजराती की कहावतें एवं मुहावरों का तुलनात्मक अध्ययन. (शोध प्रबंध) गुजरात विश्वविद्यालय. 

https://hdl.handle.net/10603/215242 

  • भाटिया, आर. पी.(2010). शिक्षा, भाषा और बच्चों का मानसिक विकास. भारतीय आधुनिक शिक्षा, vol no. 03 pp: 18-23.

  • भट्ट, एस. (2021). शिक्षा के माध्यम के रूप में मातृभाषा हिन्दी के प्रति घटते रुझान के कारणों का अध्ययन. प्राथमिक शिक्षक पत्रिका, vol no. 03, pp: 53-61.

  •  चित्ररेखा. (2021). राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 और अनुभव आधारित अधिगम. भारतीय आधुनिक शिक्षा, vol no. 01, pp: 17-25.

  • द्विवेदी, ए. वी. (2021). लैंग्वेज एंड आईडेंटिटी : लिंगविस्टिक स्टडी आफ वुमन- सेंट्रिक हिंदी प्रोवर्ब .अकादमिया एडु.

https://www.academia.edu/103364196/Language_and_Identity_A_Linguistic_Study_of_Women_Centric_Hindi_Proverbs

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आरती दुबे
शोधार्थी, शिक्षाशास्त्र विभाग, इलाहाबाद विश्वविद्यालय
artidubey768@gmail.com

सोनिया
स्थापक, सह आचार्य, शिक्षाशास्त्र विभाग, इलाहाबाद विश्वविद्यालय
soniasthapak@allduniv.ac.in

अपनी माटी
( साहित्य और समाज का दस्तावेज़ीकरण )
  चित्तौड़गढ़ (राजस्थान) से प्रकाशित त्रैमासिक पत्रिका
Peer Reviewed & Refereed Journal , (ISSN 2322-0724 Apni Maati) अंक-61, जुलाई-सितम्बर 2025
सम्पादक  माणिक एवं जितेन्द्र यादव कथेतर-सम्पादक  विष्णु कुमार शर्मा चित्रांकन दीपिका माली

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