केदारनाथ सिंह : मामूलीपन में निहित असाधारण कथा कहने वाला कवि
- शिवानी शर्मा
शोध सार : यह शोध आलेख कवि केदारनाथ सिंह की कविताओं में कथात्मकता की उपस्थिति का अन्वेषण और विश्लेषण करता है। प्रचलित धारणा के विपरीत, कि कविता मुख्यतः आत्म-अभिव्यक्ति और गीतात्मकता का माध्यम है, केदारनाथ सिंह की कविताएँ छोटी-छोटी घटनाओं, चरित्रों, संवादों और दृश्यों के माध्यम से एक व्यापक कथा-संसार का निर्माण करती हैं। केदारनाथ सिंह की कविता में कथात्मकता किसी महाकाव्यात्मक विस्तार में नहीं, बल्कि संवादात्मक भाषा, बिम्बात्मकता, दैनिक जीवन के सामान्य प्रसंगों, साधारण चरित्रों और वस्तुओं के विशिष्ट संयोजन में अभिव्यक्त होती है। उनकी कविताओं में कथात्मकता का स्वरुप विचारपरक और लोककथात्मक है। यह शोध लेख उनकी कविताओं में कथा की उपस्थिति तथा कथा-निर्माण की प्रविधियों की पहचान करने की कोशिश में लिखा गया है।
बीज शब्द : केदारनाथ सिंह, कथा-तत्व, कथात्मकता, आख्यान, महाकाव्यात्मक, हिंदी कविता, बिम्ब, अनुभव, प्रामाणिकता, यथार्थ, दृश्यात्मकता, नाटकीयता, बहुध्वन्यात्मकता आदि
मूल आलेख : कविता में कथा की उपस्थिति कोई नई बात नहीं है। आदिकाल से लेकर भक्तिकाल तक, भारतीय काव्य-परंपरा में प्रबंध काव्यों और आख्यानकों की एक लंबी शृंखला मिलती है। वैदिक साहित्य से ही हमें पद्यबद्ध कथाएं देखने को मिलती हैं। हिंदी साहित्य में आदिकाल के रासो काव्य और लौकिक काव्य में, भक्तिकाल में राम तथा कृष्ण चरित काव्य तथा सूफी प्रेमाख्यानात्मक काव्य, रीतिकाल में नायक-नायिका के प्रेम संबंधों पर आधारित श्रृंगारिक काव्य काव्य-रूप में होकर भी विराट कथा-संसार प्रस्तुत करते हैं। हालाँकि, आधुनिक कविता में कथा का स्वरूप बदला है। अब यह महाकाव्यात्मक विस्तार की जगह सूक्ष्म, सांकेतिक रूप में प्रकट होती है।
आधुनिक हिंदी कविता में छायावाद से लेकर प्रगतिवाद और नई कविता तक, कविता का मुख्य प्रयोजन सामान्यतः कवि के आंतरिक भावों, विचारों और सामाजिक यथार्थ पर उसकी भावात्मक प्रतिक्रियाओं को व्यक्त करना रहा है। इस परिदृश्य में 'कथा' या 'आख्यान' को गद्य की विधाओं, विशेषकर कहानी और उपन्यास का क्षेत्र माना गया। कविता और कथा के बीच एक स्पष्ट विभाजन रेखा खींची जाती रही। परंतु केदारनाथ सिंह इस विभाजन रेखा को अपनी काव्य-भाषा और संवेदना से निरंतर धुँधला करने वाले कवि हैं। केदारनाथ सिंह उस दौर के कवि हैं जब अनुभव की प्रामाणिकता और जीवन के यथार्थ को कविता के केंद्र में लाया जा रहा था। केदारनाथ सिंह इस यथार्थ को केवल विश्लेषित या चित्रित नहीं करते, बल्कि उसमें अन्तर्निहित मानवीय कहानियों को ढूंढ कर उन्हें अपनी कविताओं का आधार बनाते हैं। उनकी कविताएँ पढ़ते हुए यह स्पष्ट होता है कि कविता किसी अमूर्त विचार से आरंभ न होकर, किसी दृश्य, घटना, चरित्र या किसी संवाद से शुरू होती है, जो स्वयं ही एक कथा-बीज की तरह होता है। उनका काव्य-संसार मनुष्यों, पशुओं, नदियों, शहरों और रोजमर्रा के जीवन में प्रयुक्त विभिन्न निर्जीव वस्तुओं की अनकही कहानियों से भरा हुआ है। आज की कविता में आख्यान की उपस्थिति के विषय में राजेश जोशी लिखते हैं- “इस कविता के आख्यान में सामान्य जीवन का अति सामान्य दृश्य है। उसका अतिपरिचित और अतिसामान्य होना ही शायद उसका असामान्य होना है। उसका सारा विस्मय उसके अविस्मयकारी होने में है।”1
राजेश जोशी का यह कथन केदारनाथ सिंह की कविताओं के सन्दर्भ में एकदम सटीक लगता है। केदारनाथ सिंह की कविता का वैशिष्ट्य तमाम अन्य तत्वों के साथ ही उसमें निहित कथात्मकता में है। वे 'छोटी कहानी' के कवि हैं, जो अपने कवि कौशल से जीवन के बिखरे हुए कथा-सूत्रों को एक संवेदनात्मक एकता प्रदान करते हैं।
लीलाधर मंडलोई केदारनाथ सिंह की कविता के विषय में लिखते हैं- “केदारजी की कविताओं की कुछ विलक्षण खूबियाँ हैं मसलन वे दृश्यात्मक हैं, लोककथा के आस्वाद में पगी, भौतिक-अभौतिक जगत में डूबीं, हिप्नोटाइज करने की ताकत से लैस और आत्मीय सजल भाषा से दीप्त। इन कविताओं में एक मोहक नाटकीय तत्त्व है जैसे ‘धूप में घोड़े पर बहस’ या कि फिर ‘बाघ’ में।”2 यह दृश्यात्मकता और नाटकीयता वास्तव में कथा-तत्व के ही रचनात्मक पहलू हैं। केदारनाथ सिंह की कविता की भाषा बोलचाल की भाषा के करीब होने के फलस्वरूप ही कविता को एक संवादात्मक और किस्सागोई का लहजा प्रदान करने में सफल हुई है। ऐसे ही दृश्यों का संयोजन और अप्रत्याशित मोड़ उनकी कविताओं को एक कथात्मक संरचना प्रदान करने में सहायक होते हैं। केदारनाथ सिंह की कविताएँ बताती हैं कि हर साधारण घटना में एक असाधारण कहानी छिपी होती है और हर कहानी को महाकाव्य होने की आवश्यकता नहीं होती।
केदारनाथ सिंह की आरंभिक कविताएं बिम्ब-बहुल हैं। इन कविताओं में प्रकृति और ग्राम्य-जीवन के चित्र प्रमुख हैं। इन बिम्बों में भी कथा के अंकुर स्पष्ट दिखाई देते हैं। उनके आरंभिक दौर की कविताओं में गाँव के जीवन, उसके संघर्ष और उसकी जिजीविषा की छोटी-छोटी कहानियाँ हैं। उनकी कविता 'पानी में घिरे हुए लोग' एक स्थिर चित्र प्रस्तुत करती है, लेकिन इस चित्र के भीतर बाढ़ की विभीषिका, प्रतीक्षा और संघर्ष की पूरी कहानी छिपी है।
"पानी में घिरे हुए लोग/ प्रार्थना नहीं करते/ वे पूरे विश्वास से देखते हैं पानी को/ और एक दिन/ बिना किसी सूचना के/ खच्चर बैल या भैंस की पीठ पर/ घर- असबाब लादकर/ चल देते हैं कहीं और"3
पानी में डूबे हुए ये लोग एकदम हताश नहीं होते, वे पानी में रहते हुए भी निरंतर एक मदद की उम्मीद के साथ पानी से निरंतर संघर्ष करते हैं। इस कविता में मात्र बिम्ब नहीं हैं। यह कविता बिम्ब के माध्यम से एक भयावह स्थिति और उस स्थिति में निहित पूरी त्रासदी की कथा कहती है। केदारनाथ सिंह की कविता में बिम्बात्मकता के साथ ही गद्यात्मकता भी कथा की बुनावट में सहायक है। कविता की यह गद्यात्मकता निरी सपाटबयानी न होकर एक नाटकीय संबोधन के रूप में है।
“उसके बारे में कविता करना/ हिमाकत की बात होगी/ और वह मैं नहीं करूँगा/ मैं सिर्फ आपको आमंत्रित करूँगा/ कि आप आयें और मेरे साथ सीधे/ उस आग तक चलें/ उस चूल्हे तक- जहाँ वह पक रही है/......./वह पक रही है/ और आप देखेंगे- यह भूख के बारे में/ आग का बयान है/ जो दीवारों पर लिखा जा रहा है/ आप देखेंगे/ दीवारें धीरे-धीरे स्वाद में बदल रही हैं।”4
इस कविता में एक विचारपरक कथा है। इस कविता में कवि रोटी के माध्यम से व्यक्ति की बढ़ती भूख की ओर इशारा करता है। प्राचीन समय में मनुष्य के पास अपनी भूख के लिए शिकार ही एकमात्र विकल्प हुआ करता था। धीरे- धीरे उसे जंगल में उपलब्ध फूलों, फलों का ज्ञान हुआ और बाद में उसने कृषि आरम्भ की। आज के आधुनिक युग में मनुष्य की भूख(लालच) इतनी बढ़ गयी है कि उसके लिए अब हर चीज़ स्वाद में बदल गयी है और वह झपट्टा मारने के क्रम में आगे बढती जा रही है। यह कविता भूख और रोटी प्रतीकों के माध्यम से मनुष्य को दूसरों की भूख(जरुरत) का सम्मान करने की सीख देती है।
इसी क्रम में केदारनाथ सिंह की लम्बी कविता 'बाघ' उनकी कथा-प्रवृत्ति का चरमोत्कर्ष है। यह लंबी कविता, बाघ के मिथक, उसके आतंक, उसकी उपस्थिति और अनुपस्थिति के माध्यम से सत्ता, भय, प्रकृति और मनुष्य के जटिल संबंधों की एक विराट कथा रचती है।
बाद के संग्रहों में केदारनाथ सिंह की कथा-दृष्टि और भी सूक्ष्म और दार्शनिक हो जाती है। इन कविताओं में वे बड़ी घटनाओं के बजाय स्मृतियों, वस्तुओं और अमूर्त भावनाओं की कहानी कहते हैं। उनकी कविता कपास के फूल एक वस्तुपरक और विचारपरक कथा कहती है। कविता के शीर्षक से लगता है कि किसी वस्तु विशेष पर कविता लिखी गयी है, पर कविता के अंत तक पहुंचते-पहुंचते हम अर्थस्तरों की सघनता को समझ पाते हैं। यह कविता कपास के फूल के माध्यम से हमारे बीच मौजूद ऐसे लोगों की कथा कहती है, जिनकी उपस्थिति हमारे जीवन में बेहद जरुरी और सराहनीय है, पर हम उन्हें भूल जाते हैं। कपास का फूल जिसे किसी ने उपजाया होगा, फिर किसी ने मेहनत से सूत बनाया होगा, किसी ने सी कर वस्त्र बनाये होंगे और इस तरह हम तक पहुंचा अंतिम उत्पाद। और हमें बस वही याद भी रहता है।
“जब फ़ुर्सत मिले/ तो कृपया एक बार इस पर सोचें ज़रूर/ कि इस पूरी कहानी में सूत से सुई तक/ सब कुछ है/ पर वह कहाँ गया/ जो इसका शीर्षक था।”5
शीर्षक से मतलब कपास के फूल से भी हो सकता है और अंतिम उत्पाद की शुरूआती प्रक्रिया और उसमें शामिल लोगों से भी हो सकता है। कविता की यही खासियत होती है कि वह मात्र एक अर्थ ध्वनित नहीं करती। केदारनाथ सिंह की कविताओं की एक विशेषता बहुध्वन्यात्मकता भी है। उनकी कविता की तहों में जाए बिना कविता के सभी अर्थ उजागर नहीं हो सकते।
अपनी कविता फसल में वे किसान के जीवन के संघर्ष, उनके जीवन की छोटी- छोटी खुशियों तथा प्रकृति और किसान के शाश्वत पारस्परिक सम्बन्ध की कथा कहते हैं। केदारनाथ सिंह अपनी कविता में कहते हैं कि किसान के जीवन में उसके पुरखे तो शामिल हैं ही, साथ ही वे सब भी शामिल हैं जो अभी पैदा नहीं हुए हैं। ये जो अभी पैदा नहीं हुए हैं, वे विचारों के रूप में हमेशा किसान के साथ रहे हैं। यह कविता एक अप्रत्याशित और नाटकीय मोड़ के साथ समाप्त होती है और अंत में पाठक के समक्ष एक प्रश्न छोड़ जाती है कि भारत की अर्थव्यवस्था का अधिकांश हिस्सा कृषि पर निर्भर होने के बावजूद भी किसानों को अपनी फसल के उचित मूल्य के लिए क्यों संघर्ष करना पड़ता है? क्यों आज भी किसान आत्म हत्या करने के लिए विवश हैं? कृषि क्षेत्र में हुए तमाम नवाचारों के बावजूद भी किसान आज अपनी आजीविका के लिए संघर्षरत क्यों है? कैसी विडम्बना है कि जिसकी दिन-रात की मेहनत के परिणामस्वरूप हमें अपनी थाली में भोजन मिलता है, वह मेहनतकश किसान अपने परिवार के लालन-पालन में, उन्हें जरुरी सुविधाएँ मुहैया कराने में स्वयं को असमर्थ महसूस करता है! यह असमर्थता केवल इसलिए है क्योंकि उसे उसकी मेहनत का उचित मूल्य नहीं मिलता।
“इधर पिछले कुछ सालों से/ जब गोल-गोल आलू मिट्टी फोड़कर/ झाँकने लगते थे जड़ों से/ या फसल पककर/ झुक जाती थी हवा में/ तो न जाने क्यों/ वह हो जाता था चुप/ कई-कई दिनों तक/ बस यहीं पहुंचकर अटक जाती थी उसकी गाड़ी/ सूर्योदय और सूर्यास्त के/ विशाल पहियों वाली”6
हम सभी समाज में हो रहे अन्याय, अमानुषिक कृत्यों और समाज में फैलती कुरीतियों से अवगत हैं। समाज के जिम्मेदार नागरिक होने के रूप में यह हमारा कर्तव्य बनता है कि हम इन सभी कुरीतियों के खिलाफ अपनी आवाज़ बुलंद करें। पर आवाज़ उठाने की बजाय समाज में चुप्पियाँ बढ़ती गईं। केदारनाथ सिंह की कविता चुप्पियाँ आज समाज में फैली विसंगतियों के विरुद्ध कुछ न कर पाने की कथा है।
“चुप्पियाँ बढ़ती जा रही हैं/ उन सारी जगहों पर/ जहाँ बोलना जरुरी था/......./और आश्चर्य कि किसी को वह गड़ता तक नहीं/.............../ ऐसे में मित्रो,/ अगर बोलता है एक कुत्ता/ बोलने दो उसे/ वह वहाँ बोल रहा है/ जहाँ कोई नहीं बोल रहा।”7
यह कविता हम मनुष्यों के सामर्थ्य पर व्यंग्य करती है। हम सोचते हैं कि हमारे अकेले के कुछ करने से क्या ही प्रभाव पड़ेगा। या किसी कृत्य के प्रति मन में घोर अस्वीकृति होने के बावजूद हम हमेशा इस प्रतीक्षा में रहते हैं कि उसके खिलाफ़ बोलने की शुरुआत कोई और करे, बस इसी के परिणामस्वरूप चुप्पियाँ बढ़ती जा रही हैं। इसी सन्दर्भ में प्रेमचंद का एक कथन उद्धृत करना आवश्यक है- “आदमी अकेले भी बहुत कुछ कर सकता है। अकेले आदमियों ने ही आदि से विचारों में क्रांति पैदा की है। अकेले आदमियों के कृत्यों से सारा इतिहास भरा पड़ा है।”8 यह कथन प्रेरणा देता है कि मनुष्य की सामर्थ्य- सीमा के घेरे में बहुत कुछ आता है। वह चाहे तो, संसार में उसके लिए, सब कुछ संभव है।
केदारनाथ सिंह की कविताओं का विषय बेहद साधारण रहा है। और यही साधारणता उनकी कविताओं को लोकप्रिय बनाती है। वे अपने आस-पास की ही छोटी-छोटी कहानियों को कविता में जगह देते हैं। अपनी कविता लौटते हुए बगुले में वे बगुलों के माध्यम से मजदूरों की व्यथा और सरकार द्वारा उनके हित में लागू की गयी रोजगार योजनाओं की कथा कह देते हैं।
“सुबह के गए/ शाम को लौट रहे थे/ जाने कौन से मालिक के खेत में/ करके निराई/ मनरेगा का ज़माना है/ सो, पूछने का मन हुआ/ क्या मिल गयी मजूरी/ पाई-पाई/ इधर तो हाल यह कि स्त्री आधा/ (बच्चे चौथाई!)/ पुरुष पूरा/ पर इस पूरे का रेट भी/ अलग-अलग खित्तों में/ अलग-अलग/......../गए थे जाने कितनी दूर/ और कीड़ा-केंचुआ/ जो भी मिल गया/ उसी की गठरी भीतर संभाले/ शाम को लौट रहे थे/ खेत मजूर...”9
केदारनाथ सिंह की कविताओं में कथा के सन्दर्भ में राजेश जोशी लिखते हैं- “जरुरी नहीं कि उनकी लोककथात्मकता का तार किसी परिचित-अपरिचित लोककथा से जुड़ा ही हो। कई बार वे स्वयं ऐसी छोटी-छोटी कहानियां कविता में रचते हैं जिसका स्वाद हमें अपनी लोक-परंपरा से जोड़ देता है।”10
केदारनाथ सिंह की कविताओं में कथात्मकता की शिनाख्त करने के लिए उनकी कविताओं को बारीकी से पढ़ने की जरुरत है। उनकी कविताएं कथा के धागे का शुरूआती सिरा मात्र पाठक को पकड़ाकर उसके अंत तक पहुँचने की मेहनत की अपेक्षा पाठक से रखती हैं। यह अपेक्षा कविता को दुरूह नहीं बनाती, बल्कि पाठक को पंक्तियों के बीच कही बात को भी समझने का अवकाश देती है। केदारनाथ सिंह की कई कविताएं ऐसी हैं, जो छोटी- छोटी कथाएं हमारे समक्ष प्रस्तुत करती हैं। ‘मंच और मचान’, ‘वह बांग्लादेशी युवक जो मुझे मिला था रोम में’, ‘पानी की प्रार्थना’, ‘पानी था मैं’, ‘पिता के जाने पर’, ‘इब्राहिम मियाँ ऊँट वाले’ उनकी ऐसी ही कथात्मक कविताएं हैं, जिनकी कथा स्पष्ट न होते हुए भी गहन है। राजेश जोशी लिखते हैं- “कथात्मक वर्णन-शैली के अपने खतरे होते हैं। कई बार इसमें ऐसे वर्णन बढ़ने लगते हैं जो कविता को आगे बढ़ाने के बजाय व्यर्थ के विस्तार की बोझिलता भी देते हैं और कई बार विवरण मात्र सजावटी भी होने लगते हैं। लेकिन कविता से जब जीवन के चित्रों का लोप होने लगता है, ऐसे जोखिम उठाना बहुत अर्थवान हो जाता है। केदारजी में जो मितव्ययिता है वह उन्हें व्यर्थ के विस्तार से बचाती है और हमारे जन-जीवन के अलक्ष्य किये जा रहे चित्रों को एक बार पुनः कविता में स्थापित करती है। ये कविताएँ ‘हाँ’ के नमक और ‘ना’ के लोहे से बनी हैं।”11
केदारनाथ सिंह ने कविता में जीवन को, जीवन के साधारण प्रसंगों को पुनर्स्थापित करने का ये जोखिम उठाया और भरपूर उठाया। उनकी कविताओं में केवल साधारण लोग ही शामिल नहीं हुए बल्कि जीवन में असाधारण महत्व रखने वाली साधारण वस्तुएं भी कविता के केंद्र में आईं। ‘रोटी’, ‘नमक’ आदि उनकी ऐसी ही कविताएं हैं, जो शीर्षक से तो मामूली लगती हैं पर जीवन की समस्त नाटकीयता को कथा रूप में कविता के केंद्र में ले आती हैं। केदारनाथ सिंह की कविताएं किसी सीमित परिदृश्य की कविताएं नहीं हैं। उनकी कविताएं सब तक पहुँचने के साहस से भरी हुई हैं। वे अपनी कविताओं से दुनिया का सामना करने का आग्रह करते हुए कहते हैं-
“अब जाओ मेरी कविताओं/ सामना करो तुम दुनिया का/........./ भरने दो अपने शब्दों में/ सारे शहर की खाक-धूल/ इस यात्रा में वापसी नहीं/ बस चलते जाना है अकूल”12
निष्कर्ष : केदारनाथ सिंह की कविताओं में कथा की उपस्थिति पारंपरिक आख्यान-पद्धति से भिन्न है। वे एक कुशल कथाकार की तरह दृश्य स्थापित करते हैं और उसे कथारूप में विकसित करने की कुछ सम्भावना पाठक के लिए भी छोड़ देते हैं। वे अपनी कविताओं में कथा सूत्र का लंबा-चौड़ा विवरण नहीं देते, एक-दो मार्मिक पंक्तियों से ही कविता के प्रसंग पाठक के समक्ष कथा रूप में उजागर होने लगते हैं। उनकी कविताओं में मुख्यतः विचारपरक कथा देखने को मिलती है। उनकी भाषा में जो किस्सा कहने का लहजा है, वह अत्यंत सहज और बोलचाल के करीब है। उनकी भाषा पाठक से सीधे संवाद करती है और उससे कविता की गहनता में उतरने की अपेक्षा रखते हुए उसे भी अपनी कथा का हिस्सा बना लेती है।
सन्दर्भ :
- राजेश जोशी, एक कवि की नोटबुक, राजकमल प्रकाशन, 2004, पृ. 89
- लीलाधर मंडलोई, कविता में वही पुरबिहा: केदारनाथ सिंह, इन्द्रप्रस्थ भारती, नवम्बर-दिसम्बर 2018, पृ. 81
- केदारनाथ सिंह, पानी में घिरे हुए लोग, इन्द्रप्रस्थ भारती, नवम्बर-दिसम्बर 2018, पृ. 26
- केदारनाथ सिंह, रोटी, इन्द्रप्रस्थ भारती, नवम्बर-दिसम्बर 2018, पृ. 8
- केदारनाथ सिंह, सृष्टि पर पहरा, राजकमल प्रकाशन, 2023, पृ. 14
- वही, पृ. 30
- वही, पृ. 76
- https://nag.re/a/1ke6/2
- केदारनाथ सिंह, सृष्टि पर पहरा, राजकमल प्रकाशन, 2023, पृ. 89
- राजेश जोशी, एक कवि की नोटबुक, राजकमल प्रकाशन, 2004, पृ. 78
- वही, पृ. 82
- केदारनाथ सिंह, ताल्स्ताय और साइकिल, राजकमल प्रकाशन, 2019, पृ. 136
शिवानी शर्मा
(शोधार्थी), हिंदी एवं अन्य भारतीय भाषा विभाग, डी. एस. बी. परिसर, कुमाऊँ विश्वविद्यालय नैनीताल
ssharmakashti@gmail.com 8979557674
अपनी माटी
( साहित्य और समाज का दस्तावेज़ीकरण )
चित्तौड़गढ़ (राजस्थान) से प्रकाशित त्रैमासिक पत्रिका
Peer Reviewed & Refereed Journal , (ISSN 2322-0724 Apni Maati) अंक-61, जुलाई-सितम्बर 2025
सम्पादक माणिक एवं जितेन्द्र यादव कथेतर-सम्पादक विष्णु कुमार शर्मा चित्रांकन दीपिका माली


एक टिप्पणी भेजें