आलेख: रामचरितमानस का सामाजिक संदर्भ/ डॉ. स्नेहलता नेगी

रामचरितमानस का सामाजिक संदर्भ

भक्तिकालीन हिन्दी रामभक्तिधारा के सर्वश्रेष्ठ प्रतिनिधि कवि गोस्वामी तुलसीदास हिन्दी साहित्य के शीर्ष कवियों में एक हैं। इनका काव्य हिन्दी साहित्य का गौरव है। यद्यपि तुलसीदास से पूर्व रामभक्ति का उदय हो चुका था और रामकाव्य-सृजन की परंपरा भी हिन्दी में विष्णुदास आदि रचनाकारों की रचनाओं से प्रचलित हो चुकी थी, पर रामभक्ति काव्य-धारा की समस्त विशेषताओं और प्रवृत्तियों के प्रतिष्ठापन का वास्तविक श्रेय तुलसीदास जी को ही जाता है।

        ‘रामचरितमानसतुलसीदास का सबसे वृहद् सर्वश्रेष्ठ महाकाव्य है। यह न केवल रामकाव्य धारा की सर्वश्रेष्ठ काव्य है। न केवल हिन्दी-साहित्य का सर्वश्रेष्ठ महाकाव्य है, अपितु विश्वसाहित्य में शीर्षस्थान का अधिकारी महाकाव्य है। इसके अलावा विनयपत्रिका, दोहावली, कवितावली, रामगीतावली, रामाज्ञाप्रश्नावली अन्य बड़ी रचनाएँ हैं। जानकी मंगल, पार्वतीमंगल, बरवैरामायण, वैराग्यसंदीपनी, कृष्णगीतावली और रामललान्हछू छोटी रचनाएँ हैं।

        तुलसी का भक्तिभावना लोकमंगलमयी और लोकसंग्रहकारी है। तुलसीदास की रचनाओं में विशेषतः रामचरितमानस ने समग्र हिंदू जाति और भारतीय, समाज को राममय बना दिया तुलसी के रामचरितमानस पंडित और निरक्षर दोनों में अपनी-अपनी महत्व है जो आत्म से होकर व्यापक समाज तक जाता है। तुलसीदास के काव्य का अमिट प्रभाव न केवल भक्तिकाल की रामकाव्य धारा पर पड़ा अपितु वर्तमान काल के समूचे हिन्दी साहित्य पर उनका व्यापक प्रभाव दृष्टिगोचर होता है।
        तुलसीदास को इतिहासकारों ने अकबर के समकालीन स्वीकारा है। उस दौर में आम आदमी की क्या स्थिति थी वह तुलसी के काव्य में दृष्टव्य है-

                                        ‘जीविकाविहीन लोग सिद्धमान सोचबल
                     कहे एक एकन सो कहाँ जाई का करी।’1

            हम भक्तिकाल को भले ही स्वर्णकाल कहें किन्तु मुगल शासन के दौर में आमजन दो वक्त की रोटी के लिए तरस रही थी इसका संकेत तुलसी के काव्य में दिखाई देता है। तुलसी राजा और प्रजा के बीच की दूरी को देख समझ रहे थे-

                                                        ‘‘जासु राज प्रिय प्रजा दुखारी,
                          सो नृप अवनि नरक अधिकारी।’’2

तुलसी अपने काव्य में सर्वजन हितायः, सर्वजन सुखायः का भाव रखते हैं लेकिन उनका समाजहित वाला भाव उनके भक्ति भाव के सामने थोड़ा संकुचित हो जाता है।  तुलसी ने समसामयिक सामाजिक परिवेश जीवन मूल्यों की वास्तविकता पर अपनी रचनाओं से प्रकाश डाला है और उनकी भक्ति भावना और धार्मिक विश्वासों के आधार पर कहा जा सकता है कि धर्म का मुख्य काम आमजन की सेवा और उनके दुःखों का निवारण करना था। आचार्य शुक्ल लिखते हैं- ‘‘धर्म जितने ही अधिक विस्तृत जनसमूह के सुख-दुःख से संबंध रखने वाला होगा उतनी ही उच्च श्रेणी का माना जाएगा। धर्म के स्वरूप की उच्चता उसके लक्ष्य की व्यापकता के अनुसार समझी जाती है।

        तुलसीदास की ख्याति श्रीरामचरितमानससे है जो काव्य सृजन से अधिक लोकहित की चिंता के कारण है जो आम व्यक्ति का सुख-दुःख से जुड़ा था। इसलिए तुलसी ने इसे संस्कृत में न रच कर जन सामान्य की बोल-चाल की भाषा में लिखा। विश्वनाथ त्रिपाठी इस संदर्भ में लिखते हैं कि ‘‘तुलसीदास की लोकप्रियता का कारण यह है कि उन्होंने अपनी कविता में अपने देखे हुए जीवन का बहुत गहरा और व्यापक चित्रण किया है। उन्होंने राम के परंपरा प्राप्त रूप को अपने युग के अनुरूप बनाया है। उन्होंने राम की संघर्षकथा को अपने समकालीन समाज और अपने जीवन की संघर्ष कथा के आलोक में देखा है।’’4

        भारतीय जनमानस पर रामचरितमानस का सकारात्मक प्रभाव पड़ा है, जिसका कारण तुलसी की लोक चिंता थी इनके काव्य में हिन्दी समाज की विभिन्न प्रयासों, संस्कारों का सुन्दर वर्णन मिलता है। उन्होंने श्रीराम के चरित्र के द्वारा आदर्श समाज को स्थापित किया है- एक आदर्श पुत्र, आदर्श मित्र, आदर्श राजा और आदर्श पति का उदाहरण दिया है। तुलसीदास ने श्रीरामचरितमानसके द्वारा लोककल्याण की कामना करते हुए समाज को नैतिकता एवं सदाचार का अविस्मरणीय पाठ पढ़ाया है। रामविलास शर्मा तुलसीदास की सार्थकता सिद्ध करते हुए कहते हैं- ‘‘जिस सामन्ती व्यवस्था ने तुलसी जैसे सहृदय कवि को अपार कष्ट दिये थे, उसकी तरफ कभी तटस्थ न रहना चाहिए। जनता की एकता हमारा अस्त्र है, संघर्ष हमारा मार्ग और ऐसा समाज हमारा लक्ष्य हो जिसमें पीड़ित और अपमानित मनुष्य को हताश होकर रहस्यमय देव की तरफ फिर हाथ न उठाना पड़े। इस कार्य में एक चिरन्तन प्रेरणा की तरह तुलसीदास हमेशा हमारे साथ रहेंगे।’’5

        तुलसीदास ने तत्कालीन सामाजिक, राजनीतिक एवं धार्मिक विकृतियों को दृष्टिगत रखकर आदर्श समाज रामराज्य की परिकल्पना की जिसके लिए समाज को संघर्ष करने की प्रेरणा दी। इसका एक उदाहरण हमें सीता हरण के समय लंका पर आक्रमण के लिए वहीं की जनता को संगठित कर उनमें चेतना और साहस पैदा कर आम जन में नेतृत्व की क्षमता को उजागर किया है। राम चाहते तो अयोध्या से सेना मंगवा सकते थे लेकिन राम ने ऐसा नहीं किया। इस संदर्भ में रामविलास शर्मा का कथन उल्लेखनीय है- ‘‘तुलसीदास की रचनाएँ हमारी जनता में साहस और आत्मविश्वास भरती है। वे उसे अपना भाग्य स्वयं अपने हाथों बनाना सिखाती है। तुलसीदास ने जिस न्यायपूर्ण और सुखी समाज की कल्पना की थी, वह एक नये रूप में पूरा होगा। समूचे देश के साथ हिन्दी प्रदेश की जनता भी आगे बढ़ेगी। जातीय एकता के लिए जिसके अग्रदूत गोस्वामी तुलसीदास थे, दासता और दरिद्रता का अंत करने के लिए, जिसके विरुद्ध तुलसीदास ने संघर्ष किया था तुलसीदास की अमर वाणी हमारे साथ है, वह नये भविष्य की तरफ बढ़ने के लिए जनता को बुलावा देती है।’’6

        तुलसीदास का काव्य इस प्रकार आज भी व्यक्ति के लिए समाज के लिए, राष्ट्र के लिए, नैतिकता के लिए साहित्य और मानवता के उत्थान के लिए महत्वपूर्ण है।

संदर्भः-
1.      रामचरित मानस – तुलसीदास
2.      वही
3.      रामचन्द्र शुक्ल प्रतिनिधि संकलन, सं. निर्मला जैन, नामवर सिंह
4.      लोकवादी तुलसीदास, विश्वनाथ त्रिपाठी
5.      परंपरा का मूल्यांकन, रामविलास शर्मा
6.      विराम चिन्ह, रामविलास शर्मा

(डॉ. स्नेहलता नेगीसहायक प्रो. हिन्दी विभागदिल्ली विश्वविद्यालय)
अपनी माटी(ISSN 2322-0724 Apni Maati) वर्ष-4,अंक-27 तुलसीदास विशेषांक (अप्रैल-जून,2018)  चित्रांकन: श्रद्धा सोलंकी

Post a Comment

और नया पुराने