आलेख : जिले की चिट्ठी : संचार का सहज स्‍वर / रघु आदित्‍य

जिले की चिट्ठी : संचार का सहज स्‍वर

- रघु आदित्‍य


यही
कोई 90 के दशक की बात रही होगी। मैं नवभारत टाइमस में बूंदी जिला संवाददाता था और उन दिनों आकाशवाणी जयपुर से रोज शाम को प्रादेशिक खबरों से पहले जिले की चिट्ठी प्रसारित होती थी। उन दिनों रेडियो पर आनेवाले कार्यक्रमों को सुनने का लोगों मेंजबरदस्त चाव रहता था। संचार के अन्‍य साधन भी सीमित थे और प्रिंट मीडिया के प्रभाव के रास्‍ते में साक्षरता भी एक कसौटी थी।  

            केबल टीवी के आने से पहले की बात है गाँवों में चौपाल पर लोग शाम को रेडियो पर प्रादेशिक भाषा राजस्थानी की खबरें सुनने के लिए जमा हो जाते थे। इससे पहले किसी किसी जिले की चिट्ठी भी आती ही थी, इसके बाद वे उस जिले के कामकाज से अपने जिले की तुलना करते तो सहज भाव में आम बहस शुरू हो जाती थी इसी दौरान वे विकास में पिछडऩे पर नेताओं को कोसने लगते तो बढिय़ा काम करने वाले अफसरों की तारीफ करते भी नहीं थकते थे।

उन दिनों रेडियो पर फरमाइशी गीतों का कार्यक्रम भी आता था, तो उन्हें अपना नाम रेडियो पर सुनने का जबरदस्त उतावलापन रहता था। इसी बीच यदि उन्होंने जिले की चिट्ठी में आपका नाम सुन लिया तो उन्हें तब तक चैन नहीं आता था, जब तक किसी भी माध्यम से वे आप तक अपना संदेश पहुँचा दे, इस आग्रह के साथ कि अगली बार हमारे गाँव की समस्या का भी आप इसमें जिक्र करें...और इसी के साथ शुरू हो जाता था एक माह बाद आनेवाली जिले की चिट्ठी का इंतजार। तब स्थानीय अखबारों में भी खबर छपती थी कि आज शाम 7 बजे आकाशवाणी जयपुर से बूंदी जिले की चिट्ठी प्रसारित होगी।

लोगों से मिलनेवाले फीडबैक के आधार पर मैंने जिले की चिट्ठी के आलेख को केवल लोकरुचि का बनाया, बल्कि इसमें नवाचार करनेवाले लोगों को भी उनके योगदान के साथ उल्लेखित करना शामिल किया। यह पहल बहुत सराही गई और बूंदी जिले की चिट्ठी का शिल्‍प भी लोकप्रिय होता गया। बूंदी जिले की चिट्ठी लोकमानस के बहुत करीब थी और उसके आलेख और प्रस्‍तुति दोनों में भावनात्‍मक रूप से श्रोताओं को बांधे रखते थे। जबकि ज्यादातर जिलों की चिट्ठी में सरकारी योजनाओं, उनकी उपब्धियों और लक्ष्‍य- प्राप्ति के आंकड़ों का हिसाब-किताब ज्‍यादा होता था। जिले के जन-सम्‍पर्क अधिकारी के प्रेस-नोट को ज्‍यों का त्‍यों रेडियो के हवाले करने से चिट्ठी बहुत बेजान हो जाती है। बूंदी जिले के लिए मैंने इस रुखी परिपाटी को तोड़ा और आलेख के अतिरिक् परिश्रम किया।  इससे लोगों का जिले की चिट्ठी सुनने के प्रति ज्यादा रुझान बढ़ा। इस बात का अहसास तब होता था, जब मैं किसी गाँव में समाचार संकलन के सिलसिले में जाता था और लोगों को मेरे आने का पता चलता था तो वे इतना अपनत्व लुटाते थे कि आँखें भर आती थी।

जिला एक प्रशासनिक इकाई है, लेकिन जिले की चिट्ठी उसे सांस्‍कृतिक इकाई में बदल देती थी।  एक बार मैं लाखेरी गया तो मैंने वहाँ रेडियों के प्रति बड़ी दीवानगी देखी। पूरे कस्बे में प्रादेशिक खबरें फरमाइशी राजस्थानी गीत सुनाने के लिए नगरपालिका ने लाउड स्पीकर लगा रखे थे। संयोग से उसी दिन मेरी लिखी बूंदी जिले की चिट्ठी प्रसारित होनेवाली थी। नगर पालिका चेयरमैन इब्राहिम गाँधी ने लाउड स्पीकर पर अनाउंस करवा दिया कि आज शाम 7 बजे बूंदी जिले की चिट्ठी प्रसारित होगी और चिट्ठी  के प्रसारण के दौरान इसके लेखक वरिष्ठ पत्रकार रघु आदित्य आज लाखेरी में हमारे बीच मौजूद रहेंगे। दरअसल लाखेरी नगरपालिका ने गणगौर पर्व के अवसर पर एक कवि सम्‍मेलन का आयोजन किया था, उसी की करवरेज के लिए मैं लाखेरी गया था। लोगों ने शाम को जिले की चिट्ठी सुनीं और रात को कवि सम्‍मेलन खूब जमा। कवि सम्‍मेलन के दौरान ही मंच पर मुझे बुलाकर चेयरमैन इब्राहिम गांधी ने सबसे मेरा परिचय कराया और स्मृति चिंह देकर सम्‍मानित किया। सही मायने यह वह दौर था, जब रेडियो पर आनेवाले कार्यक्रमों की जबरदस्त पहुँच थी और डिमांड भी उतनी ही थी।  गणपतलाल डांगी के गीतों को तो लोग गुनगुनाते थे और राजस्थानी भाषा में खबरों को सुनकर फूले नहीं समाते थे। फिर आकाशवाणी की पहुँच भी गाँव-ढाणी तक थी तो लोग साइकिल पर भी रेडियो टाँगकर चलते थे और खेत या दुकान में काम करते हुए भी इसके कार्यक्रमों को सुनते रहते थे।

जिले की चिट्ठी के आलेख शब्‍दों और समय की सीमा निर्धारित थी, इसलिए उसी दायरे में इसे समेटना होता था। फिर डाक से इस अनुमान के साथ रवाना करना होता थी कि  प्रसारण के नियत शेड्यूट से एक दिन पहले आकाशवाणी केंद्र तक पहुँच जाए। कई बार तो ऐसे भी मौके आए जब चिट्ठी भेजने के बाद कोई विशेष घटनाक्रम या बड़ा आयोजन हो गया और सप्लीमेंट्री आलेख भेजकर इसे प्रसारित होने वाली चिट्ठी में जोडऩे का अनुरोध किया गया। आकाशवाणी के स्तर पर इसका संपादन भी काबिलेतारीफ होता था। कम शब्‍दों में पूरी बात कैसे कही जाए, यह मैंने इसके संपादित आलेख से ही सीखा। आज भी मुझे लगता है कि जिले की चिट्ठी का आलेख लिखना किसी ऐसी पुस्तक की भूमिका लिखने से कम नहीं, जिसमें महीनेभर का पूरा लेखा-जोखा देना होता है और उसमें निर्धारित मानदंडों का भी पूरा ध्यान रखना है।  इसे और भी रुचिकर बनाया जा सकता है, यदि इसमें उस जिले की होनहार प्रतिभाओं, वहां होने वाले धार्मिक सामाजिक आयोजनों आमजन के नवाचारों को शामिल किया जाए। इससे सरकारी योजनाओं के साथ श्रोताओं को उन सकारात्मक कार्यों की भी जानकारी मिलेगी, जो उन्हें बदलाव लाने के लिए प्रेरित करेगी। अपरिहार्य कारणों से वर्तमान में जिले की चिट्ठी का प्रसारण बंद है।

रघु आदित्‍य

वरिष्‍ठ पत्रकार, दैनिक भास्‍कर समाचार पत्र समूह

अपनी माटी (ISSN 2322-0724 Apni Maati) मीडिया-विशेषांक, अंक-40, मार्च  2022 UGC Care Listed Issue

अतिथि सम्पादक-द्वय : डॉ. नीलम राठी एवं डॉ. राज कुमार व्यास, चित्रांकन : सुमन जोशी ( बाँसवाड़ा )

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