शोध आलेख : माध्यमिक विद्यालय के छात्रों की शैक्षणिक उपलब्धि पर उनके पारिवारिक वातावरण एवं सामाजिक वातावरण का प्रभाव / अर्चना कुमारी एवं डॉ. कुमारी स्वर्ण रेखा

 शोध आलेख : माध्यमिक विद्यालय के छात्रों की शैक्षणिक उपलब्धि पर उनके पारिवारिक वातावरण एवं सामाजिक वातावरण का प्रभाव

- अर्चना कुमारी एवं डॉ. कुमारी स्वर्ण रेखा


 

शोध सार : प्रस्तुत शोध के अंतर्गत माध्यमिक विद्यालय के छात्रों की शैक्षणिक उपलब्धि पर उनके पारिवारिक वातावरण एवं सामाजिक वातावरण के प्रभाव का अध्ययन किया है। शोधकर्ता ने विवरणात्मक अनुसंधान प्ररचना का प्रयोग किया गया है। शोध उपकरण के रूप में के० एस० मिश्र द्वारा निर्मित पारिवारिक वातावरण अनुसूची एवं शैक्षणिक उपलब्धि मापनी विद्यार्थियों के कक्षा 9 एवं 10 की परीक्षा के प्राप्तांको को शैक्षिक उपलब्धि के रूप में लिया गया है। न्यादर्श के चुनाव हेतु लॉटरी पद्धति के आधार पर मुजफ्फ़रपुर जिले के मुशहरी प्रखंड के चार माध्यमिक विद्यालयों(दो सरकारी एवं दो गैर-सरकारी) से स्तरित दैव निदर्शन पद्धति के आधार पर चयनित प्रत्येक माध्यमिक विद्यालयों से 50-50 छात्रों अर्थात् कुल 200 छात्रों का उत्तरदाताओं के रूप में चयन किया गया है। आँकड़ों के विश्लेषण हेतु मध्यमान, मानक विचलन एवं टी-परीक्षण आदि सांख्यिकीय प्रविधियों का प्रयोग किया गया। निष्कर्षतः शैक्षणिक उपलब्धि पर पारिवारिक एवं सामाजिक वातावरण का सकारात्मक प्रभाव पड़ता है।

 

 बीज शब्द : शिक्षा, माध्यमिक विद्यालय, शैक्षणिक उपलब्धि, पारिवारिक-सामाजिक वातावरण।

मूल आलेख : शिक्षा राष्ट्र के विकास का सशक्त माध्यम है। शिक्षा सम्पूर्ण जीवन तक चलने वाली प्रक्रिया है। व्यक्ति जन्म से लेकर मृत्यु तक कुछ न कुछ सीखता ही रहता है, नई बातें और नये अनुभवों को प्राप्त करता रहता है। इसलिए यह कहा जाता है कि शिक्षा जीवनभर चलने वाली प्रक्रिया है। शिक्षा एक गतिशील विषय है इसका स्वरूप स्थिर नहीं है। शिक्षा में सरिता का स्वाभाविक प्रवाह होता है। शिक्षा का सम्बन्ध जीवन से होने के कारण उसमें गति और ग्रहण करने की शक्ति है, दूसरे शब्दों में शिक्षा एक जीवन क्रिया है।[1] अपने प्रसिद्ध ग्रन्थ ‘द रिपब्लिक’ में शिक्षा की परिभाषा करते हुए प्लेटो ने कहा है, “सच्ची शिक्षा वह, जो कुछ भी हो, उसे मनुष्यों को उनके परस्पर सम्बन्धों में और जो उनकी सुरक्षा में उनके प्रति सभ्य बनाने और मानवीयकरण की सर्वाधिक प्रवृत्ति रखती होगी।”[2]

 

महात्मा गाँधी ने शिक्षा को सर्वांगीण विकास(शरीर, आत्मा तथा मस्तिष्क के विकास) की प्रक्रिया माना। प्राचीन काल में भारतीय मनीषियों ने ‘सा विद्या या विमुक्तये’ कहकर शिक्षा का लक्ष्य निर्धारित किया था। शिक्षा का महत्त्व इतना अधिक था कि इसे मनुष्य का तीसरा नेत्र कहा गया– ‘ज्ञानं मनुजस्य तृतीय नेत्रं।’[3]

 

डॉ० राधाकृष्णन ने लिखा है– “शिक्षा को मनुष्य और समाज का निर्माण करना चाहिए, इस कार्य को किए बिना शिक्षा अर्नुवर और अपूर्ण है।”[4]

 

श्री अरविन्द के शब्दों में, “बालक की शिक्षा उसमें जो कुछ सर्वोत्तम, सर्वाधिक शक्तिशाली, सबसे अधिक आन्तरिक और सबसे अधिक जागरूक है उसे बाहर लाना है, एक ऐसा साँचा निर्माण करना है जिसमें मानव की क्रिया और विकास चलने चाहिए और जो उसके आन्तरिक गुण और शक्ति के अनुकूल हो। उसे नई वस्तुएँ अर्जित करनी चाहिए किन्तु वह उन्हें सर्वोत्तम रूप से समग्र रूप से अपने विकसित प्रकार और जन्मजात शक्तियों के आधार पर ही प्राप्त कर सकता है।”

 

अतः स्पष्ट है कि शिक्षा बालक को इस योग्य बनाती है कि वह ईश्वर द्वारा प्रदत्त शक्तियों का उपयोग करें और समाज का उपयोगी सदस्य बने। वास्तव में समस्त मानव जीवन ही शिक्षा है और शिक्षा ही मानव जीवन है। शिक्षा का सम्बन्ध जितना व्यक्ति से है, उससे अधिक समाज से है। यदि शिक्षा न हो, तो समाज का जन्म ही न हो। मानव जीवन में जो कुछ भी अर्जित है, वह शिक्षा का ही परिणाम है।[5]

 

आज शिक्षा का मुख्य उद्देश्य बालकों का समुचित विकास करके उसे राष्ट्र के लिये सफल नागरिक बनाना है। अध्ययन आदत, उपलब्धि प्राप्ति की दिशा में एक प्रेरक घटक है। प्रभावी अध्ययन प्रवृत्ति छात्रों को सफलता हासिल करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है। शैक्षिक समस्याओं के कारण जो बाधाएँ उत्पन्न होती हैं उनके लिए शिक्षा प्रणाली में आज नित नए सुधार किये जा रहे हैं परंतु यह शासन द्वारा किया जाने वाला बाह्य प्रयास मात्र है। विद्यार्थियों के अध्ययन आदत में उनकी अभिवृत्ति तथा उनके पारिवारिक वातावरण का अत्यंत गहरा प्रभाव पड़ता है।

 

किसी भी बालक के विकास में परिवार की भूमिका महत्त्वपूर्ण होती है। बालक के संतोषजनक विकास के लिये विद्यालय और कुटुम्ब में सहयोग आवश्यक है। शिक्षक की सलाह का आदर करते हुए माता-पिता को बालक की देख-रेख करनी चाहिए क्योंकि बालक के परिवार के वातावरण के अनुसार अनेक पारिवारिक गुणों का समावेश बालक में प्रारम्भ हो जाता है, जैसे झूठ, सत्य, शांति, झगड़ा, उदारता, कर्मठता, स्वार्थपरता, आलस्य, त्याग इत्यादि। पारिवारिक वातावरण के कारण वह अनेक वस्तुओं के प्रति प्रिय और अप्रिय भावना रखता है और उसका आचरण इन भावनाओं से प्रभावित होता है। उसका शिक्षा ग्रहण करने का प्रयास इन्हीं भावनाओं की प्रतिक्रिया से प्रेरित होता है। शिक्षा का उद्देश्य बालक की मानसिक शक्तियों का विकास करना है और पारिवारिक वातावरण में ही मानसिक शक्तिओं की नींव पड़ती है। बालक में कई महत्त्वपूर्ण गुण अन्य बालकों के संपर्क में आने पर ही पनपते है जैसे- सहयोग और उदारता की भावनाएँ। पारिवारिक वातावरण का प्रभाव प्रत्येक विद्यार्थी की शैक्षिक उपलब्धि पर पड़ता है। परिवार का प्रभाव न केवल व्यक्तित्व के विकास पर पड़ता है वरन इसका महत्त्व व्यक्तित्व के समायोजन की दृष्टि से भी है। परिवार का वातावरण बालक के जीवन में धैर्य, उत्साह एवं साहस के द्वारा आने वाली कठिनाइयों का सामना करके उच्च समायोजन का परिचय देना है।

‘परिवार’ शिक्षा का सबसे प्रमुख अनौपचारिक तथा औपचारिक साधन दोनों है। बच्चों की शिक्षा में घर या परिवार की मुख्य भूमिका होती है। सामाजिक परिवेश का ज्ञान भी बच्चे परिवार के वातावरण से ही सीख पाते हैं। परिवार के सदस्यों द्वारा निर्मित घर के वातावरण को ही ‘गृह- परिवेश’ कहते हैं। परिवार एक छोटी-सी सामाजिक संस्था है जिसमें रहते हुए बालक माता-पिता के अतिरिक्त भाई-बहनों तथा अन्य संबंधियों के संपर्क में आता है। सभी सदस्य एक दूसरे पर अपना प्रभाव डालते हैं। बालक परिवार के प्रत्येक सदस्य से प्रत्येक क्षण प्रभावित होता है तथा अपने व्यक्तित्व का निर्माण करता है। इस प्रकार परिवार बालक पर अपना स्थायी प्रभाव अंकित करता है। बालक वैसा ही बनता है जैसा उसका घर होता है। घर के वातावरण के कारण गाँधीजी ने प्रेम और सत्य के सिद्धांतों को अपनाया। शिवाजी ने अपनी माता से रामायण और महाभारत की शिक्षा प्राप्त करके ही मराठा राज्य की नींव डाली। भारत में प्राचीन काल से ही बालक की शिक्षा पर घर के प्रभाव को अत्यंत महत्व दिया गया है।

 

वर्तमान काल में परिवार का महत्त्व कम हो गया है परन्तु बालक की शिक्षा कभी भी उचित ढंग से नहीं हो सकती जब तक कि परिवार का सहयोग प्राप्त न हो। एक बालक शिक्षा के लिए विद्यालय जाता है परंतु वह वहाँ चौबीस घंटों में केवल पाँच घंटे ही व्यतीत करता है, शेष समय उसका परिवार के साथ ही व्यतीत होता है। अतः एक बालक की शिक्षा पर जो प्रभाव माता-पिता का हो सकता है, वह किसी और संस्था का नहीं हो सकता है। माता-पिता जितने शिक्षित होंगे बच्चे का विकास उतना ही अच्छा होगा। यही कारण है कि शिक्षा प्रदान करने में माता-पिता का सहयोग आवश्यक है। भावी जीवन की आधारशिला का निर्माण करने के लिए बच्चों को अपनी भाषा एवं उच्चारण का ज्ञान, नैतिक व सामाजिक प्रशिक्षण, दूसरों के साथ अच्छा व्यवहार, मूल्यों एवं आदतों का विकास, पसंद व रूचियों का विकास, प्रेम की शिक्षा, अभिभावक की शिक्षा से सीधे प्रभावित होती है।

           

प्रस्तुत अध्ययन में माध्यमिक विद्यालयों में अध्ययनरत् विदयार्थियों की शैक्षिक उपलब्धि पर पारिवारिक वातावरण एवं सामाजिक वातावरण के प्रभावों का अध्ययन किया जा रहा है जहाँ ‘परिवार’ बच्चे की पहली पाठशाला होती है, वहीं माँ बच्चों की प्रथम शिक्षिका होती है। यदि परिवार के सदस्य शिक्षित, सभ्य एवं सुसंस्कृत होते हैं तो बच्चे पर संस्कार भी अच्छे पड़ते हैं, जो बच्चे के पूरे जीवन को प्रभावित करते हैं। अनपढ़ परिवार के बच्चे ऐसे संस्कारों से वंचित रहे जाते हैं क्योंकि ऐसे परिवार के सदस्य निरक्षर, गवार एवं स्वास्थ्य के नियमों से अनभिज्ञ होते हैं। परिणामस्वरूप बच्चे सामाजिक तौर-तरीकों से वंचित रह जाते हैं।

 

प्रयुक्त पदों की क्रियात्मक परिभाषा -

v  माध्यमिक स्तर- ऐसे विद्यालय जिनमें कक्षा 9 व 10 तक के विद्यार्थियों को शिक्षण करवाया जाता है जो माध्यमिक स्तर कहलाता है।

v  शैक्षणिक उपलब्धि- विद्यार्थी स्कूल में रहकर जो कुछ भी ज्ञान प्राप्त करता है, उसे उसकी शैक्षिक उपलब्धि कहते हैं। यह उपलब्धि किस सीमा तक प्राप्त हुई इसे जानने के लिए जो परीक्षण किए जाते हैं, उसे शैक्षिक उपलब्धि परीक्षण कहा जाता है।

v  पारिवारिक वातावरण- पारिवारिक वातावरण के अन्तर्गत सारे घर का वातावरण आता हैI इसके अन्तर्गत माता-पिता के आपसी सम्बन्ध, माता-पिता व बच्चों के बीच आपसी सम्बन्ध, पूरे परिवार के सदस्यों के बीच तनावपूर्ण अथवा सौहार्द्रपूर्ण व्यवहार, परिवार का व्यावसायिक वातावरण जैसे फौजी, व्यापार अथवा शिक्षक होना आदि बहुत से कारक आते हैं। छात्रों की उपलब्धि उनके वातावरण से प्रभावित होती है।

v  सामाजिक वातावरण- प्रयुक्त शोध कार्य के अंतर्गत सामाजिक वातावरण के रूप में आस-पास के क्षेत्र की स्थिति को दर्शाया गया है।

 

संबंधित साहित्य का पुनरवलोकन - वेडेल (2011)[6] ने अपने शोध में माता-पिता की सहभागी क्रियाकलापों और छात्रों की निष्पत्ति के बीच में सार्थक संबंध की पहचान के अध्ययन में पाया कि समुदाय आधारित माता-पिता की सहभागी क्रियाकलापों, माता-पिता की शैक्षणिक योग्यता, पारिवारिक आय और छात्रों की शैक्षणिक निष्पत्ति के बीच उच्च सार्थक साहचर्य है।

 

संध्या मिश्रा और डॉ० वीना बंबा (2012)[7] अध्ययन कार्य “विज्ञान विषय में माध्यमिक विद्यालय के छात्रों की शैक्षणिक उपलब्धि पर पारिवारिक वातावरण का प्रभाव” के अन्तर्गत प्रस्तुत अध्ययन का उद्देश्य बच्चों की शैक्षिक उपलब्धि पर पारिवारिक वातावरण के प्रभाव का अध्ययन करना था। निष्कर्षतः माध्यमिक विद्यालय के बच्चों के स्कूली प्रदर्शन का समग्र पारिवारिक वातावरण और इसके चार आयामों के प्रति बच्चों की धारणा के साथ महत्त्वपूर्ण और सकारात्मक संबंध पाया गया है।

 

ओवेता, एंथोनी ओ०(2014)[8] ने अपने शोध कार्य के अन्तर्गत पाया कि छात्रों के स्कूल से घर आने पर माता-पिता द्वारा उनके शैक्षिक कार्यों की देख-रेख न करने पर उनकी शैक्षिक उपलब्धि प्रभावित होती है।

 

ओनेस्टो लौमो एण्ड कैशलीमा जे०पी० छावगां (2015)[9] ने अपने शोध कार्य के अन्तर्गत पाया कि चयनित माध्यमिक विद्यालयों के छात्रों के वातावरण और शैक्षिक प्रदर्शन में बड़ा सह-सम्बन्ध पाया गया।

 

राठी (2017)[10] ने अपने शोध माध्यमिक विद्यालय के छात्रों की अध्ययन की आदतों पर घर के वातावरण के प्रभाव का अध्ययन किया एवं पाया कि लड़कों एवं लड़कियों के घर का माहौल अलग-अलग नहीं था लेकिन अध्ययन की आदतों में सार्थक अंतर था।

 

संतोष कुमार यादव (2018)[11] ने अपने शोध कार्य “माध्यमिक स्तर पर अध्ययनरत विद्यार्थियों के पारिवारिक वातावरण के सन्दर्भ में उनके शैक्षिक उपलब्धि का अध्ययन” के अंतर्गत प्रस्तुत अध्ययन के निष्कर्ष में पाया गया कि माध्यमिक स्तर पर अध्ययनरत उच्च, मध्यम एवं निम्न पारिवारिक वातावरण के विद्यार्थियों की शैक्षिक उपलब्धि में सार्थक अन्तर है अर्थात् पारिवारिक वातावरण के सन्दर्भ में शैक्षिक उपलब्धि में सार्थक अन्तर पाया।

 

अनुसंधान अध्ययन की आवश्यकता एवं महत्त्व - छात्रों की शैक्षिक उपलब्धि एवं बौद्धिक क्षमता पर उनका पूरा भविष्य निर्भर है। प्रत्येक विद्यालय इन उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए अनेक कार्य करते हैं। इन कार्यों में पठन-पाठन के अतिरिक्त विभिन्न भाषाओं और संस्कृतियों का सम्मान एवं अंतरराष्ट्रीय महत्त्व की भाषाओं का ज्ञान मुख्य है। विद्यालय इन कार्यों को तब तक पूरा नहीं कर सकता, जब तक इसके लिए परिवार एवं समाज अपना सहयोग प्रदान नहीं करेंगे। शैक्षिक विकास की दृष्टि से आधुनिक युग की आवश्यकता के अनुसार बच्चों की शिक्षा में परिवार एवं समाज का क्या योगदान है? क्या सभी परिवार अपने बच्चों की शिक्षा पर यथोचित सहयोग देने में सफल हैं? परिवारों की शैक्षणिक योग्यता का प्रभाव छात्रों के शैक्षिक विकास पर पड़ता है? इन्हीं समस्याओं के समाधान के लिए इस शोध की आवश्यकता महसूस की गई है।

 

शोध उद्देश्य

 

परिकल्पना

  • माध्यमिक स्तर के विद्यार्थियों के पारिवारिक वातावरण का उनकी शैक्षिक उपलब्धि पर कोई सार्थक प्रभाव नहीं पड़ता है।
  • माध्यमिक स्तर के विद्यार्थियों के सामाजिक वातावरण का उनकी शैक्षिक उपलब्धि पर कोई सार्थक प्रभाव नहीं पड़ता है।

 

समस्या कथन - प्रस्तुत शोध के अंतर्गत शोधकर्ता ने “मुजफ्फ़रपुर जिला के मुशहरी प्रखंड के माध्यमिक विद्यालय के छात्रों की शैक्षणिक उपलब्धि पर उनके पारिवारिक वातावरण एवं सामाजिक वातावरण का प्रभाव” का अध्ययन किया गया है।

 

अनुसंधान प्ररचना – किसी भी शोध कार्य का महत्त्वपूर्ण अंग शोध विधि होता है। वर्तमान संदर्भ में शिक्षा के विकास को देखने का प्रयास किया जाता है तथा वर्तमान स्थिति से प्राप्त आँकड़ों का विश्लेषण कर भविष्य में सुधार हेतु सुझाव दिया जाता है। प्रस्तुत शोध अध्ययन के अंतर्गत शोधकर्ता ने विवरणात्मक अनुसंधान प्ररचना का प्रयोग किया गया है, जिसमें सर्वेक्षण विधि के माध्यम से प्रश्नावली, साक्षात्कार भरकर तथ्यों का संकलन किया गया है।

 

अनुसंधान उपकरण - प्रस्तुत शोध के सर्वेक्षण स्वरूप के कारण शोधकर्ता द्वारा अध्ययन के उद्देश्यानुरूप शोध सम्बन्धी उपकरणों का चुनाव किया गया है। प्रस्तुत शोध उपकरण के रूप में के० एस० मिश्र द्वारा निर्मित पारिवारिक वातावरण अनुसूची एवं विद्यार्थियों के कक्षा 9 एवं 10 की परीक्षा के प्राप्तांको को शैक्षिक उपलब्धि के रूप में लिया गया है।

 

न्यादर्श चयन विधि - न्यादर्श समूचे समूह(जनसंख्या) में से चुनी गयी कुछ ऐसी इकाइयों का समूह है, जो समूचे समूह का पर्याप्त प्रतिनिधित्व करे तथा इससे प्राप्त निष्कर्षों का सामान्यीकरण व उपयोग समष्टि पर हो सके।  प्रस्तुत शोध अध्ययन के अंतर्गत शोधकर्ता ने समस्या के न्यादर्श के चुनाव हेतु स्तरित दैव निदर्शन पद्धति के आधार पर चयनित प्रत्येक माध्यमिक विद्यालयों से 50-50 छात्रों अर्थात कुल 200 छात्रों को उत्तरदाताओं के रूप में चयन किया गया है।

 

प्रयुक्त जनसंख्या विवरण - उन समस्त जनसंख्या से तात्पर्य समस्त व्यक्तियों से जो उत्तरदाता हो सकते हैं अर्थात् शोध का विषय जिन व्यक्तियों पर केंद्रित है तथा जिसमें से न्यादर्श(Sample) का चुनाव होता है।

प्रयुक्त शोध कार्य में लॉटरी पद्धति के आधार पर मुजफ्फरपुर जिले के मुशहरी प्रखंड के चार माध्यमिक विद्यालयों(दो सरकारी एवं दो गैर-सरकारी) का चयन किया गया है। प्रत्येक विद्यालयों में से 50-50 छात्र अर्थात् कुल 200 छात्रों का चयन किया गया है।

 

तालिका क्र० 1.1

माध्यमिक विद्यालयों की संख्या

4

छात्र की संख्या

25

छात्राओं की संख्या

25

कुल छात्र-छात्राओं की संख्या

200

 

प्रयुक्त चर

·    स्वतंत्र चर- पारिवारिक-सामाजिक वातावरण।

·    आश्रित चर- माध्यमिक स्तर के बच्चे एवं शैक्षणिक उपलब्धि।

 

शोध परिसीम - प्रस्तुत शोध मुजफ्फ़रपुर जिला के मुशहरी प्रखंड के माध्यमिक विद्यालय के छात्रों तक ही सीमित है।

प्रयुक्त सांख्यिकीय विधि - प्रस्तुत शोध में शोधकर्ता द्वारा आँकड़ों के विश्लेषण हेतु मध्यमान, मानक विचलन एवं टी-परीक्षण आदि सांख्यिकीय प्रविधियों का प्रयोग किया गया है।

 

v  उत्तरदाताओं की जनसांख्यिकीय रूपरेखा

   प्रस्तुत भाग, उत्तरदाताओं की जनसांख्यिकीय रूपरेखा के विवरण से संबंधित है। अध्ययन में छात्रों की शैक्षणिक योग्यता, आयु, लिंग, जाति, पारिवारिक स्वरूप, मुखिया शिक्षा योग्यता एवं मुखिया व्यवसाय इत्यादि जनसांख्यिकीय तथ्यों का संग्रह शामिल है।

 

तालिका क्र० 1.2 आयु के आधार पर उत्तरदाताओं का चयन

 

आवृत्ति

प्रतिशत

मान्य प्रतिशत

संचित प्रतिशत

 

 

वैध

15-16 वर्ष

48

24.0

24.0

24.0

16-17 वर्ष

81

40.5

40.5

64.5

17-18 वर्ष

71

35.5

35.5

100.0

कुल

200

100.0

100.0

 

 

लेखाचित्र 1.1 आयु के आधार पर चयनित छात्र-उत्तरदाताओं की संख्या का प्रतिशत

उपर्युक्त तालिका 1.2 एवं लेखाचित्र 1.1 के माध्यम से शोधकर्ता ने अपने अध्ययन में चयनित छात्र-उत्तरदाताओं का आयु के आधार पर विश्लेषण किया तथा स्पष्टतः उल्लेखित है कि 200 छात्र-उत्तरदाताओं में से, 48(24 प्रतिशत) छात्र 15-16 वर्ष की मध्य आयु वर्ग के, 81(40.5 प्रतिशत) छात्र 16-17 वर्ष की मध्य आयु वर्ग के, 71(35.5 प्रतिशत) छात्र 17-18 वर्ष की मध्य आयु वर्ग के है।

तालिका क्र० 1.3 लिंग के आधार पर उत्तरदाताओं का चयन

 

 

आवृत्ति

प्रतिशत

मान्य प्रतिशत

संचित प्रतिशत

वैध

छात्र

127

63.5

63.5

63.5

छात्राएँ

73

36.5

36.5

100.0

कुल

200

100.0

100.0

 

 

लेखाचित्र 1.2 लिंग के आधार पर उत्तरदाताओं की संख्या का प्रतिशत

      उपर्युक्त तालिका 1.3 एवं लेखाचित्र 1.2 के माध्यम से शोधकर्ता ने अपने अध्ययन में चयनित उत्तरदाताओं का लिंग के आधार पर विश्लेषण किया तथा स्पष्टतः उल्लेखित है कि 200 उत्तरदाताओं में से, 127(63.5 प्रतिशत) विद्यार्थी छात्र एवं 73(36.5 प्रतिशत) विद्यार्थी छात्राएँ है।

तालिका क्र० 1.4 जाति के आधार पर उत्तरदाताओं का चयन

 

 

आवृति

प्रतिशत

मान्य प्रतिशत

संचित प्रतिशत

वैध

सामान्य वर्ग

24

12.0

12.0

12.0

अनुसूचित जाति

60

30.0

30.0

42.0

अनुसूचित जन जाति

52

26.0

26.0

68.0

अन्य पिछड़ा वर्ग

64

32.0

32.0

100.0

कुल

200

100.0

100.0

 

 

लेखाचित्र 1.3  जाति के आधार पर उत्तरदाताओं की संख्या का प्रतिशत

उपर्युक्त तालिका 1.4 एवं लेखाचित्र 1.3 के माध्यम से शोधकर्ता ने अपने अध्ययन में चयनित छात्र-उत्तरदाताओं का जाति के आधार पर विश्लेषण किया तथा स्पष्टतः उल्लेखित है कि 200 छात्र-उत्तरदाताओं में से, 24 (12 प्रतिशत) छात्र सामान्य वर्ग से, 60 (30 प्रतिशत) छात्र अनुसूचित जाति वर्ग से, 52 (26 प्रतिशत) छात्र अनुसूचित जनजाति वर्ग से तथा शेष 64(32.0 प्रतिशत) छात्र अन्य पिछड़ा वर्ग से है।

   

तालिका क्र० 1.5 माता-पिता की शैक्षिक योग्यता के आधार पर उत्तरदाताओं का चयन

 

 

आवृति

प्रतिशत

मान्य प्रतिशत

संचित प्रतिशत

वैध

अशिक्षित

118

59.0

59.0

59.0

शिक्षित

82

41.0

41.0

100.0

कुल

200

100.0

100.0

 

 

लेखाचित्र 1.4 माता-पिता की शैक्षिक योग्यता के आधार पर उत्तरदाताओं की संख्या का प्रतिशत

उपर्युक्त तालिका 1.5 एवं लेखाचित्र 1.4 के माध्यम से शोधकर्ता ने अपने अध्ययन में चयनित छात्र-उत्तरदाताओं का माता-पिता की शैक्षिक योग्यता के आधार पर विश्लेषण किया तथा स्पष्टतः उल्लेखित है कि 200 छात्र-उत्तरदाताओं के माता-पिता में से 118 (59.0 प्रतिशत) शिक्षित, 82 (41.0 प्रतिशत) अशिक्षित है।

 

तालिका क्र० 1.6 परिवार के स्वरूप के आधार पर उत्तरदाताओं का चयन

 

 

आवृति

प्रतिशत

मान्य प्रतिशत

संचित प्रतिशत

वैध

सयुंक्त

88

44.0

44.0

44.0

एकांकी

112

56.0

56.0

100.0

कुल

200

100.0

100.0

 

 

लेखाचित्र 1.5 परिवार के स्वरूप के आधार पर उत्तरदाताओं की संख्या का प्रतिशत

उपर्युक्त तालिका 1.6 एवं लेखाचित्र 1.5 के माध्यम से शोधकर्ता ने अपने अध्ययन में चयनित छात्र-उत्तरदाताओं का परिवार के आधार पर विश्लेषण किया तथा स्पष्टतः उल्लेखित है कि 200 छात्र-उत्तरदाताओं में से, 88(44.0 प्रतिशत) छात्र सयुंक्त परिवार से, 112(56.0 प्रतिशत) छात्र एकाकी परिवार से हैं।

तालिका क्र० 1.7 निवास स्थान के क्षेत्र के आधार पर उत्तरदाताओं का चयन

 

 

आवृति

प्रतिशत

मान्य प्रतिशत

संचित प्रतिशत

वैध

ग्रामीण

57

28.5

28.5

28.5

शहरी

143

71.5

71.5

100.0

कुल

200

100.0

100.0

 

 

लेखाचित्र 1.6 निवास स्थान के क्षेत्र के आधार पर उत्तरदाताओं की संख्या का प्रतिशत

उपर्युक्त तालिका 1.7 एवं लेखाचित्र 1.6 के माध्यम से शोधकर्ता ने अपने अध्ययन में चयनित छात्र-उत्तरदाताओं का निवास स्थान के क्षेत्र के आधार पर विश्लेषण किया तथा स्पष्टतः उल्लेखित है कि 200 छात्र-उत्तरदाताओं में से, 57(28.5 प्रतिशत) छात्र ग्रामीण क्षेत्र से, 143(71.5 प्रतिशत) छात्र शहरी क्षेत्र से हैं।

 

तालिका क्र० 1.8 पारिवारिक मुखिया के व्यवसाय की प्रकृति के आधार पर चयनित छात्र-उत्तरदाताओं की संख्या का विवरण

 

 

आवृति

प्रतिशत

मान्य प्रतिशत

संचित प्रतिशत

वैध

कृषक/ श्रमिक

20

10.0

10.0

10.0

सरकारी नौकरी

63

31.5

31.5

41.5

निजी नौकरी

53

26.5

26.5

68.0

अन्य

64

32.0

32.0

100.0

कुल

200

100.0

100.0

 

 

लेखाचित्र 1.7 पारिवारिक मुखिया के व्यवसाय की प्रकृति के आधार पर चयनित उत्तरदाताओं की संख्या का प्रतिशत

उपर्युक्त तालिका 1.8 एवं लेखाचित्र 1.7 के माध्यम से शोधकर्ता ने अपने अध्ययन में चयनित छात्र-उत्तरदाताओं का पारिवारिक मुखिया के व्यवसाय की प्रकृति के आधार पर विश्लेषण किया तथा स्पष्टतः उल्लेखित है कि 200 छात्र-उत्तरदाताओं के मुखिया की व्यवसाय की प्रकृति में, 20(10.0 प्रतिशत) कृषक/ श्रमिक से, 63(31.5 प्रतिशत) सरकारी नौकरी एवं 53(26.5 प्रतिशत) निजी नौकरी से, शेष अन्य 64(32 प्रतिशत) (जैसे- दुकानदार, व्यापार एवं ठेकेदारी सम्मिलित है) व्यवसाय से है।

उत्तरदाताओं का विश्लेषण

परि० 1 माध्यमिक स्तर के विद्यार्थियों के पारिवारिक वातावरण का उनकी शैक्षणिक उपलब्धि पर सार्थक प्रभाव पड़ता है।

तालिका क्र० 1.9

विवरणात्मक सांख्यकीय

 

संख्या

माध्य

मानक विचलन

पारिवारिक वातावरण

200

24.1950

3.01870

शैक्षणिक उपलब्धि

200

24.2950

2.95323

 

लेखाचित्र 1.8 अध्ययन के माध्य और मानक विचलन को निम्न आकृति में प्रस्तुत किया गया है-

उपर्युक्त तालिका 1.9 एवं लेखाचित्र 1.8 के माध्यम से यह स्पष्ट किया जा सकता है कि वर्णनात्मक सांख्यिकी के तथ्यों के विश्लेषण के आधार पर माध्यमिक स्तर के विद्यार्थियों के पारिवारिक वातावरण का उनकी शैक्षिक उपलब्धि का माध्य और मानक विचलन का प्रतिनिधित्व करती है। शोध में आश्रित कारकों के आधार पर विद्यार्थियों के पारिवारिक वातावरण का औसत स्कोर 24.1950 है, जबकि शैक्षिक उपलब्धि का औसत स्कोर 24.2950 है तथा मानक विचलन क्रमशः विद्यार्थियों के पारिवारिक वातावरण का 3.01870 एवं शैक्षिक उपलब्धि का 2.95323 है।

तालिका क्र० 1.10

सहसंबंध सांख्यकीय

 

 

पारिवारिक वातावरण

शैक्षणिक उपलब्धि

पारिवारिक वातावरण

पियर्सन सहसंबंध

1

.905

महत्व मान (Sig.)

 

.000

संख्या

200

200

शैक्षणिक उपलब्धि

पियर्सन सहसंबंध

.905

1

महत्व मान (Sig.)

.000

 

संख्या

200

200


उपर्युक्त तालिका क्र० 1.10 में 200 छात्र-उत्तरदाताओं के माध्यम से माध्यमिक स्तर के विद्यार्थियों की शैक्षिक उपलब्धि एवं उनकी पारिवारिक वातावरण के मध्य सम्बन्ध को दर्शाया गया है, अर्थात् माध्यमिक स्तर के विद्यार्थियों के पारिवारिक वातावरण का उनकी शैक्षिक उपलब्धि पर पड़ने वाले प्रभावों का अध्ययन किया गया है। उपर्युक्त तथ्यों के माध्यम से यह अनुमान लगाया गया है कि छात्रों की समग्र शैक्षणिक उपलब्धि और शैक्षणिक उपलब्धि के बीच सहसंबंध गुणांक .905* है, जो सकारात्मक है और .01 स्तर पर भी महत्त्वपूर्ण है। महत्त्व मान 0.000 पाया गया अर्थात् महत्त्व मान का स्तर 5 प्रतिशत से कम पाया गया। यह इंगित करता है कि शैक्षणिक उपलब्धि और सामाजिक वातावरण के बीच एक महत्त्वपूर्ण संबंध है। इसलिए परिकल्पना की स्वीकृति के आधार पर यह निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि विद्यार्थियों की शैक्षणिक उपलब्धि का पारिवारिक वातावरण पर प्रभाव पड़ता है।

परि० 2 माध्यमिक स्तर के विद्यार्थियों के सामाजिक वातावरण का उनकी शैक्षणिक उपलब्धि पर कोई सार्थक प्रभाव पड़ता है।

तालिका क्र० 1.11

विवरणात्मक सांख्यकीय

 

संख्या

माध्य

मानक विचलन

सामाजिक वातावरण

200

24.2475

2.91643

शैक्षणिक उपलब्धि

200

24.2376

2.92237

 

लेखाचित्र 1.9 अध्ययन के माध्य और मानक विचलन को निम्न आकृति में प्रस्तुत किया गया है।

उपर्युक्त तालिका 1.11 एवं लेखाचित्र 1.9 के माध्यम से यह स्पष्ट किया जा सकता है कि वर्णनात्मक सांख्यिकी के तथ्यों के विश्लेषण के आधार पर माध्यमिक स्तर के विद्यार्थियों के पारिवारिक वातावरण का उनकी शैक्षिक उपलब्धि का माध्य और मानक विचलन का प्रतिनिधित्व करती है। शोध में आश्रित कारकों के आधार पर विद्यार्थियों के सामाजिक वातावरण का औसत स्कोर 24.2475 है, जबकि शैक्षिक उपलब्धि का औसत स्कोर 24.2376 है तथा मानक विचलन क्रमशः विद्यार्थियों के सामाजिक वातावरण का 2.91643 एवं शैक्षिक उपलब्धि का 2.92237 है।

तालिका क्र० 1.12

सहसंबंध सांख्यकीय

 

 

पारिवारिक वातावरण

शैक्षणिक उपलब्धि

सामाजिक वातावरण

पियर्सन सहसंबंध

1

.925

महत्त्व मान (Sig.)

 

.000

संख्या

200

200

शैक्षणिक उपलब्धि

पियर्सन सहसंबंध

.925

1

महत्त्व मान (Sig.)

.000

 

संख्या

200

200

 

उपर्युक्त तालिका क्र० 1.12 में 200 छात्र-उत्तरदाताओं के माध्यम से माध्यमिक स्तर के विद्यार्थियों की शैक्षिक उपलब्धि एवं उनकी सामाजिक वातावरण के मध्य सम्बन्ध को दर्शाया गया है, अर्थात् माध्यमिक स्तर के विद्यार्थियों के सामाजिक वातावरण का उनकी शैक्षिक उपलब्धि पर पड़ने वाले प्रभावों का अध्ययन किया गया है। उपर्युक्त तथ्यों के माध्यम से यह अनुमान लगाया गया है कि छात्रों की समग्र शैक्षणिक उपलब्धि और शैक्षणिक उपलब्धि के बीच सहसंबंध गुणांक .925* है, जो सकारात्मक है और .01 स्तर पर भी महत्वपूर्ण है। महत्त्व मान 0.000 पाया गया अर्थात् महत्त्व मान का स्तर 5 प्रतिशत से कम पाया गया। यह इंगित करता है कि शैक्षणिक उपलब्धि और सामाजिक वातावरण के बीच एक महत्त्वपूर्ण संबंध है। इसलिए परिकल्पना की स्वीकृति के आधार पर यह निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि विद्यार्थियों की शैक्षणिक उपलब्धि का सामाजिक वातावरण पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है।

निष्कर्ष :

  • माध्यमिक स्तर के विद्यार्थियों की शैक्षणिक उपलब्धि पर पारिवारिक वातावरण का सार्थक प्रभाव पड़ता है।
  • माध्यमिक स्तर के विद्यार्थियों की शैक्षणिक उपलब्धि पर सामाजिक वातावरण का सकारात्मक प्रभाव पड़ता है।

सुझाव - जब हम बालक का शारीरिक विकास, सामाजिक व्यावहारिक मूल्यों, शैक्षिक उपलब्धि, बौद्धिक विकास, आर्थिक स्तर, समायोजन क्षमता को ज्ञात करते हैं तो पाते हैं कि बालक सबसे ज्यादा अपने माता-पिता से प्रभावित होता है। बालक के विकास में माता-पिता की भूमिका सबसे अहम् होती है क्योंकि घर ही उसकी प्रथम पाठशाला है। अभिभावकों के संवेगों का बच्चों पर प्रभाव पड़ता है। यह प्रभाव उसकी बुद्धि तथा सीखने की क्षमता पर भी पड़ता है। अतः माता-पिता को अपने बच्चों की गतिविधियों एवं शिक्षा-दीक्षा पर विशेष ध्यान की आवश्यकता है।

 

उपसंहार

        बालक परिवार के व्यवहार, आचार-विचार, नैतिकता आदि अपने परिवार की मान्यताओं के अनुसार निर्मित एवं विकसित करता है। शिक्षा का उद्देश्य बालक का सर्वांगीण विकास करना हैं परन्तु इसमें गृह-वातावरण की भूमिका मुख्य है। विद्यार्थियों की शैक्षिक उपलब्धि सबसे अधिक उसके पारिवारिक वातावरण से प्रभावित होती है। अतः अभिभावकों का कर्तव्य है कि वे घर में बालकों के लिए ऐसे वातावरण का निर्माण करें कि बच्चों का सर्वांगीण विकास संभव हो सके। अभिभावकों को चाहिए कि वह अपनी संतानों चाहे वह लड़के हों या फिर लड़कियाँ दोनों को शिक्षा प्रदान करने हेतु समान अवसर उपलब्ध करवाएँ। अभिभावकों को अपनी संतानों को सुरक्षित, विश्वस्त और सहयोगी पारिवारिक वातावरण प्रदान करना चाहिये जिससे कि उनमें अपने मित्रों एवं पारिवारिक सदस्यों के साथ समायोजन की भावना पनपे। अतः निष्कर्ष के आधार पर कहा जा सकता है कि ‘माता-पिता द्वारा अपने बच्चों के साथ स्वच्छंदता एवं स्वतंत्रता की भावना रखनी चाहिए।’[12]  माध्यमिक स्तर के विद्यार्थियों के आत्म-प्रकटीकरण पर रोक नहीं लगाना चाहिए साथ ही साथ उनकी बातों को सुनना चाहिए तथा उनकी बातों पर गौर करना चाहिए जिससे वे बेझिझक अपनी बातों को माता-पिता के साथ कह सके, जिससे उनका व्यक्तित्व विकास एवं संवेगात्मक बुद्धि प्रभावित न हो सके। माता-पिता को बच्चों के साथ उन सृजनात्मक गतिविधयों को अधिकाधिक प्रोत्साहन प्रदान करना जिससे उनमें सामाजिक संवदेनशीलता और मानवीय चेतना से सम्बन्धित शीलगुण में परिवर्तनकामी अभिलक्षण विकसित हो सकें। इसके अलावा अध्ययन से पता चलता है कि शहरी छात्रों के पास बेहतर घर का माहौल है, इसलिए यह निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि शहरी पृष्ठभूमि स्कूली छात्रों के घर के माहौल पर अपना प्रभाव डालती है। यह इस तथ्य के कारण हो सकता है कि शहरी क्षेत्र में माता-पिता बच्चों के विकास के लिए अधिकतम सुविधाएँ प्रदान करने के लिए जागरूक हैं जबकि ग्रामीण माता-पिता इन सुविधाओं के महत्त्व से अनभिज्ञ हैं।

 

सन्दर्भ :


[1] शमीम आरा हुसैन : माता-पिता का संतान से सम्बन्ध तथा उनके सामाजिक-आर्थिक स्तर के मध्य सहसम्बन्ध का अध्ययन, एशियन जर्नल ऑफ एजुकेशनल रिसर्च एंड टेक्नोलॉजी, वॉल्यूम 3/2, (2013), पृ० 338-341

[2] प्लेटो : दा रिपब्लिक, जोवेट, हार्वड युनिवर्सिटी प्रेस, लंदन (1807), पृ० 416

[3] Biswas, P. : Mahatma Gandhi’s views on peace education. Education Journal, (2015), 4(1), 10-12.

[4]Dahal, M. : RADHAKRISHNAN: HIS PHILOSOPHY OF LIFE AND EDUCATION AS A TEACHER AND DEVELOPMENT, (2017), 7(13), 113.

[5] डॉ० मनवीर सिंह : माध्यमिक विद्यालयों के विद्यार्थियों की बुद्धि, सृजनात्मकता और आकांक्षा स्तर पर उनके शिक्षा बोर्डों के प्रभाव का अध्ययन, इंटरनेशनल जर्नल ऑफ रीर्सच इन ऑल सब्जेक्ट इन मल्टी लेंगवेज़, वॉल्यूम 2/4, (2014), पृ० 24-31

[6] वेडेल, एन॰ : माता पिता की सहभागी क्रियाकलापों और छात्रों की निष्पति के बीच-में सार्थक संबंध की पहचान, लधु शोध प्रबंध, शोध सारिका अंतर्राष्ट्रीय 72(12), (2011)

[7] Mishra, S., & others : Impact of Family Environment on Academic Achievement of Secondary School Students in Science. International Journal of Research in Economics & Social scciences, (2012), 42-49.

[8] एंथोनी, 0 ओवेटा : होम इनवायरमेण्टल फैक्र्टस इफेक्टिंग स्टूडेन्ट्स, एकेडेमिक परफार्मेन्स इन एबिया स्टेट, नाइजीरिया, रूरल इनवायरमेण्ट, एजूकेशन पर्सनाल्टी-जेलगावा, 7-8-02-2014, (2014). पृ0 141-179

[9] ओनेस्टो, लौमो एवं आदि : इन्फ्लुएन्स ऑफ होम इनवायरमेण्ट ऑन स्टूडेन्ट्स एकेडेमिक परफार्मेन्स इन सेलेक्टेड सेकेण्डरी स्कूल्स इन अएसा म्यूनिस्पिलटी, जर्नल ऑफ नोबेल एप्लाइड साइंसेसं, 15, (2015), पृ0 1049-1054

[10] https://www.worldwidejournals.com/indian-journal-ofapplied-research-(IJAR)/fileview/April_2017_1491815651 _.164pdf

[11] यादव, संतोष कुमार : माध्यमिक स्तर पर अध्ययनरत् विद्यार्थियों के पारिवारिक वातावरण के सन्दर्भ में उनके शैक्षिक उपलब्धि का अध्ययन,  इंटरनेशनल जर्नल ऑफ़ एडवांस्ड एजुकेशनल रिसर्च, खंड 3; अंक 2; मार्च 2018; पृष्ठ संख्या 295-297।

[12] https://ijsrst.com/paper/5957.pdf

 

अर्चना कुमारी

शोधार्थी , ललित नारायण मिथिला विश्वविद्यालय, दरभंगा, बिहार

डॉ. कुमारी स्वर्ण रेखा

शोध निर्देशक 

archanakri2502@gmail.com, 6200904870

 अपनी माटी (ISSN 2322-0724 Apni Maati) अंक-39, जनवरी-मार्च  2022

UGC Care Listed Issue चित्रांकन : संत कुमार (श्री गंगानगर )

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