शोध आलेख : एक गुलफाम का कथा संसार / डॉ.अनिंद्य गंगोपाध्याय

एक गुलफाम का कथा संसार
- डॉअनिंद्य गंगोपाध्याय

जिलापुरेनियायापूर्णियाअर्थात् कमल पुष्प के इस देश से बहुतेरे जीवित पात्रों को रेणु ने अपनी कथा में स्थान दिया है. रेणु की कथा इसीलिए लोक-माधुर्य से सराबोर है. समकालीन रचनाकार रणेंद्र फणीश्वरनाथ रेणु को कथागायक कहना ही उचित समझते हैं. एक कथागायक ही कथागायन करते हैं और रेणु की कृतियाँ कथागायन हैं, इस बात से मैं भी सहमत हूँ. समर्थन के पीछे कोई आंतरिक मुग्धता नहीं है. यह स्पष्ट है कि कथा तभी गायन के लिए सम्पूर्ण होती है, जब गीतकार कथा-सृजन शब्द, छ्न्द और विषयानुभूतियों से जोड़कर करते हैं, हृदय के अंतस्थल से तब कथा निकलती है. रेणु अपनी माटी से जुड़े रहनेवाले कथाकारों में से हैं बल्कि कहना चाहिए कथागायक हैं.

मैला आँचलउपन्यास में रेणु ने लिखा - “गाँव में यह ख़बर तुरंत बिजली की तरह फैल गयी-मलेटरी ने बहरु चेथरु को गिरफ़्तार कर लिया और लोबिनलाल के कुएँ से बाल्टी खोलकर ले गए हैं”. पाठकमैला आँचलमें पहली बार बहरु चेथरु के नाम से परिचित होते हैं, पर कथागायक रेणु के साथ उनका परिचय बचपन से था. फणीश्वरनाथ रेणु के गाँव का नाम है औराही - हिंगना जो अररिया से लगभग बीस किलोमीटर की दूरी पर है. रेणु जब सिमरबनी स्कूल में पढ़ते थे, बहरु चेथरु उन्हें घर पहुँचाया करते थे. खेत में जाकर रेणु बहरु चेथरु के साथ धान की रोपनी भी करते थे, बरसात में खेत के बीच खड़ा होकर भीगते थे, हरी भरी फसल देखा करते थे. इमर्जन्सी के समय औराही गाँव में रेणु चले आए और तब बहरु चेथरु से फिर उन्हें समय बिताने का अवसर मिला.

             रेणु के पात्र यथार्थ से साहित्य के आँचल में आते हैं. रोजमर्रा की ज़िंदगी में मिले ये चरित्र रेणु की कृतियों में प्रतिलेखन (transcript) की तरह क्षेत्रीय भाषा - बोलियों के साथ उभरते हैं. कथाकार रेणु ने अपनी रचनाओं में छोटे से छोटे कस्बे या गाँव को बड़े से बड़े कैन्वस में शब्द-चित्र के साथ इस तरह प्रस्तुत किया है कि कस्बा या गाँव मानो दुनिया के समक्ष बेहद परिचित लगने लगता है. ‘मैला आँचलउपन्यास के दूसरे भाग के प्रारम्भ में रामलाल बाबू का उल्लेख मिलता है. फ़ारबिसगंज के उत्तर में एक छोटा सा कस्बा  था, जिसका नाम बथनाहा है. वहाँ से थोड़ी दूर पर मड़हर गाँव रामलाल मंडल का गाँव था.  उपन्यासकार ने लिखा है - “बोलता है कि गांधीजी ने रामलाल बाबू को नोआखाली बुलाया है...रामलाल जब गा-गाकर रमैनी पढ़ने लगते हैं तो सुननेवालों की आँखों में वह ख़ुद ही बोर ढरने लगता है.” उपन्यास में लिखी गयी बातें यथार्थ के बहुत नज़दीक है. रामलाल बाबू पूर्णतया राजनैतिक व्यक्तित्व थे. यह भी सच था कि रामलाल बाबू महात्मा गांधी को जेल में रामायण सुनाया करते थे. वे मानते थे कि साहित्यकारों को कभी राजनीति नहीं करनी चाहिए. भावुक-हृदय के अधिकारी साहित्यकार कभी राजनीति के क्षेत्र में दूरदर्शी नहीं बन सकते. रेणु के प्रसंग में भी यही कहा जा सकता है. 1972 के दौरान जब द्विजदेनी चौक पर रेणु राजनैतिक भाषण दे रहे थे तब रामलाल बाबू को देखते ही माइक उनके हाथ में थमाकर उन्हें बोलने का मौका दिया।

             कथागायन की मधुरता रेणु के भाषण में नहीं मिलती थी. आपातकालीन स्थिति में जब रेणु जेल गए तब रामलाल बाबू रेणु से मिलने जाते थे. जिनसे इतनी आत्मीयता हों, उनका प्रसंग इस उपन्यास में यथार्थ का साहित्यिक स्वरूप ही है. जब भी औराही-हिगंना आते थे, रेणु रामलाल बाबू से मिलने आया करते थे. ऐसा और एक प्रसंग चुन्नी मंडल का भी आता है. महात्मा गांधी के चित्र से वे बात किया करते थे और अंग्रेज़ राज खत्म होने का इंतज़ार करते थे. ऐसे अनगिनत चहरे रेणु के उपन्यास या कहानियों में मिलते हैं, जिनके साथ उनका सम्बंध अपनी माटी की तरह ही जीवन के अंतिम समय तक अटूट रहा. ‘मैला आँचलमें उनके चरित्र के संदर्भ में रामलाल बाबू का कहना था - “मेरा जीवन निजी होकर सार्वजनिक है और इसे रेणु ने अच्छी तरह प्रस्तुत किया है, जिसे मुझे प्रसन्नता होती है”. फ़ारबिसगंज के रामलाल और औराही के फणीश्वरनाथमैला आँचलके पन्नों में आज भी बिछड़े नहीं हैं.

मैला आँचलउपन्यास में जीवित पात्रों की उपस्थिति कथा के विस्तृत आँचल में नया रंग भरती है. रेणु ने गाँव की तस्वीर अपनी पूरी समग्रता के साथ प्रस्तुत किया. इस उपन्यास की तुलना बंगला साहित्य में सतीनाथ भादुड़ी की कृतिढोड़ाई चरित मानससे की जाती है. इस उपन्यास में भी टोलियाँ, पंचायत के प्रसंग है, मैला आँचल का मेरीगंज यहाँ पीरगंज हो गया है. सतीनाथ भादुड़ी का यह उपन्यास सन 1905–1945 के बीच पिछड़े वर्ग की सामाजिक, राजनैतिक चिंतन को व्यक्त करता है. उपन्यासकार ने रेणु की तरह समाज के जीवित पात्रों कोस्वकी महिमा के साथ प्रस्तुत किया है. मैला आँचल की तरह इस उपन्यास में भी बिहार के गँवई जीवन का अंतरंग चित्रण है. जिरानिया शहर से चार मिल की दूरी पर ततमाटोली है. यहाँ के लोग कुएँ से रेत छानने और कुटिया बनाने का काम करते हैं. उस इलाक़े में धांगड़ लोगों की भी टोली है. उस टोली के लोग ईसाई है, साहबों के बग़ीचे में माली और मज़दूरी का काम करते हैं. धांगड़ ततमाओं को कहते हैं - ‘गंदा जानवरक्योंकि वे नहाते नहीं हैं और ततमा धांगड़ों से कहते हैं - ‘बुर्बक ईसाई’. ‘तंत्रिमा टोली, ‘यादव टोली, ‘राजपूत टोली, ‘सिपाही टोली, ‘दुसाध टोलीका उल्लेख मैला आँचल उपन्यास में भी है. ‘ढोड़ाईके प्रसंग में सतीनाथ का कहना है कि उत्तर बिहार के ततमाटोली में ढोड़ाई नाम से वाकई एक व्यक्ति था, ठीक उसी प्रकार रामलाल बाबू, बहरु चेथरु आदि का प्रसंग मैला आँचल में है.

रेणु के आँचलिक कथागायन को सतीनाथ के शब्दों से विश्लेषण किया जा सकता है. अपनी डायरी में उन्होंने लिखा - “A story, the nerve of which is the tension of social alignments in upheaval….it has vision, human indignation sometimes lead to great achievements of art.”  मैला आँचल के प्रत्येक पात्र गाँव-गँवई की प्रकृति, मिट्टी की ख़ुशबू, उसकी चंदनवर्णी धूल, उससे जुड़ी संस्कृति, सुख-दुःख में एकत्रित रहकर जीवन बिताते हुए जीवंत किरदार हैं. वास्तव के पात्र लेखक की कल्पनाओं से घुल मिल गए हैं. सतीनाथ भादुड़ी को रेणु अपने साहित्यगुरु मानते थे. विश्वेश्वर प्रसाद कोईराला लिखते हैं - “रेणु हिंदी का ही नहीं बंगला साहित्य का भी मनोयोगी और रसग्राही पाठक था. उन दिनों वह विशेषत: सतीनाथ भादुड़ी की उफनती फड़कती क्रांतिकारी राजनैतिक रचनाओं के प्रति बड़ा ही आसक्त था. उसी ने मुझे सतीनाथजी से मिलाया और उनकी रचनाओं को पढ़-पढ़ाकर रसास्वादन करवाया.”  साहित्य के ज़रिए समाज के प्रति अपने दायित्व को निभाने के साथ साथ ऊँघ रही राजनैतिक और सामाजिक चेतना को जगाने के लिए, उन्होंने अपने साहित्य गुरु को ही अनुसरण किया था. जीवित पात्र साहित्य में मानों और सजीव हो उठे. सतीनाथ भादुड़ी का उपन्यासजागरीऔर रेणु कानेपाल क्रांति कथाइसी बात का द्योतक है.

            सन बायलीस के आंदोलन के समय और बाद में विशेषतया नेपाली क्रांति के समय फेंकन चौधरी के साथ रेणु हमेशा साथ रहे. फेंकन चौधरी का प्रसंग रेणु की कृतिनेपाली क्रांति-कथामें मिलता है. रेणु लिखते हैं - “जोगबनी के भावुक गुरुजी फेंकन चौधरी शुरू से ही कोईराला-परिवार के भक्त और नेपाली कॉग्रेस के सक्रिय सहायक हैं. गेरिलों नेजय नेपालकहकर मार्च किया तो आप भी निहत्ये साथ चल पड़े. टुकड़ी के संचालक भोला चैटर्जी ने आपत्ति की - ‘सुफेद खादी की धोती और वह भी सुफेद गांधी टोपी? घने अंधकार में भी गोली ठीक आपके सिर में लगेगी.” किंतु गुरुजी ने मैथिली-भाषा में कहा- ‘जब गोलिए खाये लेल जायत छी फेर माथ में लागोक चाहे पैर में - एक्के बात...”  

नेपाली क्रांति-कथामेंकोईरालाका प्रसंग आता है. नेपाल और कोईराला परिवार के साथ रेणु का सम्बंध बचपन से था. इस रिपोतार्ज के आमुख-शीर्षकरेणु और मैंमें विश्वेश्वर प्रसाद कोईराला लिखते हैं - “विराटनगर में मेरे पिताजी (स्व. कृष्णप्रसाद कोइराला, जो नेपाल के गांधी कहाते थे और साधारणतया सभी उन्हेंपिताजीकहा करते थे) ने एक स्कूल खोला था जो नेपाल तराई का सर्वप्रथम स्कूल था. उसी स्कूल में रेणु भी दाख़िल हुआ और उसकी प्रारम्भिक शिक्षा वही हुई. मेरे एक छोटे भाई तारिणी प्रसाद कोइराला (अब स्वर्गीय) से रेणु की ख़ूब जमती थी. दोनों में साहित्य के प्रति चाव था. दोनों साहित्य के रसिक प्रेमी यदा-कदा कुछ लिखते रहते थे....तभी से एक समय का नितांत अपरिचित किशोर रेणु कोइराला-परिवार का एक अभिन्न सदस्य जैसा हो गया और जीवन-पर्यन्त रहा.” लक्षणीय है किनेपाल क्रांति कथामें कोइराला-निवास और विराटनगर का जिक्र पटना के दैनिक पत्रों में किया जाता है. जनक्रांति के समर्थन में नेपाली कांग्रेस के सभापति मातृका प्रसाद कोइराला के लिए अभिनंदन सभा का आयोजन किया जाता है. बचपन से लेकर जीवन के अंतिम पर्याय तक रेणु से जुड़े सभी पात्र उनकी कृतियों में और सजीव एवं विश्वसनीयता के साथ मिलते हैं.         

रेणु की कहानीतीसरी कसममें टप्पर गाड़ी चलानेवाला हीरामन वास्तव में कुसुमलाल उर्फ़ कुसुमा है. कहानी में हीराबाईमथुरामोहन नौटंकी कम्पनीछोड़ रात के अंधेरे  में  फ़ारबिसगंज मेले  कीदी रौता संगीत नौटंकी कम्पनीजाने के लिए हीरामन की गाड़ी में सवार हुई. रेणु को सिमराहा स्टेशन से औराही-हिंगना छोड़ आते थे कुसुमलाल. नाम बदले गए लेकिन कल्पना-स्रोत कुसुमा ही है. कुसुमलाल की रेणु के जीवन में बहुविध भूमिकाएँ थीं. टप्पर गाड़ी से गाँव में पहुँचाने के अलावा वे हलवाहा थे, चरवाहा भी थे और रेणु को मालिश भी किया करते थे.  रेणु की कहानीलफड़ामेंडायना गेस्ट हाउसका उल्लेख है. दरअसल मुंबई के बांद्रा इलाक़े में घोड़बंदर रोड पर स्थितमेरिना गेस्ट हाउसकी ओर संकेत किया गया है. इसके छह नम्बर कमरे में रेणु रहा करते थे. रेणु ने लिखा - “यों, लफड़े तो सदाबहार होटल के भी एक से एक दिलचस्प हैं. लेकिन डायना गेस्ट हाउस के किस्से दिलचस्प होने के साथहॉटभी है....गोआनीज लेडी का नाम लेते ही मेरी आँखों के सामने गर्मागमस्पाइस्ड-पोर्कका एक प्लेट जाता है!” गोआनीज लेडी असल में एक विधवा सिंधी महिला जोडायना गेस्ट हाउसकी मालकिन थीं. ‘लफड़ाकहानी की कथावस्तु मेंडायना गेस्ट हाउसवस्तुत एक ऐसी जगह है, जहाँफ़िल्म-इंडस्ट्री, ‘यूनिट, ‘प्रोडक्शन हाउसआदि शब्द मानो स्थान और कथा के अनुरूप हैं. यह वही गेस्ट हाउस है, जहाँ संगीत, सिनेमा, शिल्पकला साहित्य-संस्कृति की दुनिया के प्रसिद्ध व्यक्तित्व राजेंद्र कुमार, अली अकबर खान, मोहन राकेश, दिनेश ठाकुर, मृणाल सेन आदि रहा करते थे.

अगिनखोरकहानी मेंसूतपुत्रदरअसलशारदेयका चरित्र है. पटना के युवा कवि आलोकधर्मा और शारदेय दोनों के चरित्र मिलाकरसूतपुत्रका जन्म हुआ. सूतपुत्र के अनुसार उसका कवि नामआइक-स्ला-शिवलिंगहै. ‘आइक-स्लाशारदेय का कथन दोष है. 1950-60 के दौरान युवावर्गआइक-स्लाऔरचिरकटआदि गालियाँ झाड़ने में अभ्यस्त थे. वह कहता है - “...मेरे कई नाम हैं. कोई नाम छद्म नहीं, सभी असली नाम. अभी मैं आपसे अपने सूतपुत्र नाम के अनुसार बातें कर रहा हूँ.” वह एक ओरआइडियल प्लेस फ़ॉर आत्मरतिकी बात भी करता है, दूसरी ओर उसकीअंग्री यंग मैनका चरित्र भी सामने आता है. वास्तव में शारदेय कभी ऐसा नहीं थे. ‘लफड़ाकहानी में कल्पना और वास्तव की उपजसूतपुत्रका चरित्र है.

            इस लेख के प्रारम्भ में ही कथागायकी का उल्लेख किया था. हिंदी के गद्य साहित्य को रेणु ने संगीत के स्तर पर उन्नत किया है. क्षेत्रीय बोलियों से, अधूरे वाक्यों से, शब्द संकेतों से, ध्वनियों से, दृश्यों से और जीवित पात्रों से समन्वित रेणु की कृतियाँ केवल पढ़ने के लिए नहीं, एकसाथ देखने, सुनने, स्पर्श करने और निरंतर अनुभव करने के लिए है. चरित्र का प्रतिलेखन (Transcript of character) इसे कहा जा सकता है. दुनिया के बहुतेरे प्रसिद्ध साहित्यकारों ने जीवन की राह चलते परिचित जनों को साहित्य में उकेरा है. ‘ऐलिस इन वंडरलैंडके रचनाकार लुइस कार्रलऐलिस लीडलके पारिवारिक मित्र थे. लुइस के मन में उपन्यास की ऐलिस वहीं से आयी. ऐल्फ़्रेड हिचकॉक की कृतिसाइकोके बारे में कोई कैसे भूल सकता है. उपन्यास का प्रमुख पात्रनॉर्मन बेट्सदरअसल प्लेनफ़ील्ड, विस्कोंसीन में रहनेवाला ख़ूनी, मानसिक रूप से बीमारएड गेनका ही चरित्र है. बंगला साहित्य में बंकिमचंद्र चट्टोपाध्याय की कृतिकपालकुंडलामें डकैत भवानी पाठक जैसे चरित्र का उल्लेख इतिहास के पन्नों में भी मिलता है. बंगाल में धनियाखाली के समीप रायदीघि इलाके से उन्हें  ब्रिटिश पुलिस ने रात के अंधेरे में गिरफ़्तार किया गया था. वास्तव में भवानी पाठक एक स्वतंत्रता सेनानी थे. उपन्यास में डकैत के चरित्र की आड़ में उनका वही रूप उभर आता है.

             हिंदी साहित्य में भी ऐसी बहुतेरी कृतियाँ मिलती हैं. महादेवी वर्मा के रेखाचित्रअतीत के चलचित्रमें ऐसे बहुतेरे जीवित पात्रों के ही प्रतिलेखन हैं. कथाकार संजीव के उपन्यास में किसान आत्महत्या का जो प्रसंग मिलता है, वह स्वयं देहात से जुड़े न होते तो यथार्थ का सजीव चित्रण करना सम्भव न होता. संजीव देहाती जीवन में पले बढ़े और वह स्वयं देहाती संस्कृति के शिकार हैं. ‘पोस्ट बॉक्स नं. 203 नाला सोपाराउपन्यास का प्रमुख चरित्रविनोदउर्फ़बिन्नीउर्फ़विमलीया अपनी माँ का लाडलाडिकराकी मुलाक़ात लेखिका चित्रा मुदगल के साथ ट्रेन में होती है. लेखिका के घर विनोद रहता भी है. पत्र-शैली में लिखा गया इस उपन्यास में विनोद अपनी माँ वंदना को पत्र लिखता है. नाला सोपारा में रहनेवाला किन्नर-संतान विनोद वस्तुत: चित्रा मुदगल के उपन्यास में जीवित पात्र का ही सजीव प्रतिलेखन है. प्रकाश मनु का उपन्यासगोलू भागा घर सेका प्रमुख चरित्र गोलू स्वयं प्रकाश मनु है. घर से भागकर घरेलू नौकर के रूप में जूठे वर्तन माँजना, सफ़ाई का काम करना, छोटे बच्चे को भी खिलाने पिलाने और टहलाने का काम करना, बहुत मामूली तनखा पर एक फैक्टरी में काम करना, बहुत तंग सी कोठरी में जीवन जीना, यहाँ तककि एक बार अपराधियों के चंगुल में भी गोलू का फँसना आदिस्वकी सही पहचान देता है. ऐसे अनगिनत उदाहरण मिलते हैं, जहाँ कथाकारों ने अपने कृतित्व को जीवित पात्रों के संदर्भ में चित्रित किया. औराही-हिंगना के रेणु इनके सिरमौर रहे. 

जीवित पात्रों कोस्वकी पहचान देनेवाला साहित्यकार फणीश्वरनाथ रेणु की मृत्यु से लेखन की दुनिया में एक अजीब सूनापन छा गया था. रेणु से साहित्यकार निर्मल वर्मा दो-तीन बार ही मिले. निर्मल वर्मा लिखते हैं - “...आज भी आँखें मूँदकर उनका चेहरा हू--हू याद कर सकता हूँ - उनके लम्बे झूलते बाल, एक संक्षिप्त सी मुस्कराहट जो सहज और अभिजात्य सौजन्य में भीगी रहती थी...किंतु जिस चीज़ ने सबसे अधिक मुझे अपनी तरफ़ खिंचा, वह उनका उच्छ्ल हल्कापन था. वह छोटे छोटे वाक्यों में सन्यासियों की तरह बोलते थे और फिर शरमाकर हँसने लगते थे. उनकाहल्कापनकुछ वैसा ही था, जिसके बारे में चेखव ने एक बार कहा था, ‘कुछ लोग जीवन में भोगते सहते हैं-ऐसे आदमी ऊपर से बहुत हल्के और हँसमुख दिखायी देते हैं. वे अपनी पीड़ा दूसरे पर नहीं थोपते, क्योंकि उनकी शालीनता उन्हें अपनी पीड़ा का प्रदर्शन करने से रोकती है’.”  शायद रेणु ने कसम खायी थी कि अपने इर्द गिर्द केजाने-अनजाने अनचिन्हेचहरे को उनके रचना संसार में इस तरह शामिल करेंगे ताकि हर पल हमें लम्बे झूलते बालवाले सहज मुस्कान भरे गुलफाम की उपस्थिति का अहसास होता रहे और उनके सृजन का परम आस्वाद मिलता रहे.

सन्दर्भ :
1. मैला आँचल - फणीश्वरनाथ रेणु, राजकमल प्रकाशन,नई दिल्ली
2. रेणु की सम्पूर्ण कहानियाँ - सम्पादक मधुकर सिंह, साहित्य संसद, दिल्ली
3. तीसरी कसम : स्वप्न भंग और लोक संस्कृति की विदाई - डॉ. रविभूषण
4. फणीश्वर रेणु की कहानियाँ : शिल्प और सार्थकता - हरिकृष्ण कौल
5. रेणु स्मृति संस्मरण खंड : सारिका पत्रिका
6. बीसवीं शती : हिंदी की कालजयी कृतियाँ - नित्यानंद तिवारी
7. हिंदी का गद्य साहित्य - रामचंद्र तिवारी, विश्वविद्यालय प्रकाशन, वाराणसी
8. रेणु संचयिता - सम्पादक : सुवास कुमार, महात्मा गांधी अन्तर्राष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय, मेधा बुक्स, नई दिल्ली
9.  निर्मल वर्मा : पहचान और परख - सम्पादक छबिल कुमार मेहेर, नयी किताब प्रकाशन 

डॉअनिंद्य गंगोपाध्याय
विभागाध्यक्ष, हिंदी विभाग, प्रेसीडेंसी विश्वविद्यालय, कोलकाता
anindya.hindi@gmail.com, 9433436855

अपनी माटी (ISSN 2322-0724 Apni Maati)  फणीश्वर नाथ रेणु विशेषांकअंक-42, जून 2022, UGC Care Listed Issue
अतिथि सम्पादक : मनीष रंजन
सम्पादन सहयोग प्रवीण कुमार जोशी, मोहम्मद हुसैन डायर, मैना शर्मा और अभिनव सरोवा चित्रांकन मीनाक्षी झा बनर्जी(पटना)

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