शोध आलेख : भारत में नवजागरण का स्वरूप / डॉ. नीतू बंसल

भारत में नवजागरण का स्वरूप
- डॉ. नीतू बंसल

शोध सार : नवजागरण कोई सिद्धांत या विचारधारा नहीं है और न ही इसका कोई बना बनाया स्वरूप है जिसे लेकर निश्चित तौर पर कहा जा सके कि यह भारत का नवजागरण है। यह मध्ययुगीन सीमाओं का अतिक्रमण करने वाली सांस्कृतिक प्रक्रिया है जो परिवेश के तात्कालिक दबावों से औपनिवेशिक आधुनिकताओं की वाहक बनी जिसने राष्ट्रवाद के लिए भी एक वैचारिक पृष्ठभूमि तैयार की। इससे देश में आर्थिक, सामाजिक, राजनीतिक और धार्मिक क्षेत्र में एक नवीन चिंतन का प्रादुर्भाव हुआ। यह पश्चिम की देन न होकर अपनी ही परिस्थितियों के भीतर से फूटा। देश ने पारंपरिक रूढ़िवाद का त्यागकर आधुनिक विचारधारा को ग्रहण किया। इसका प्रारंभ 19वीं सदी के पूर्वार्द्ध में हुआ। इस युग में गद्य का प्रारंभ, पत्र-पत्रिकाओं का चलन तथा दूसरी भाषाओं से उपयोगी सामग्री का अनुवाद, पाठ्य- पुस्तक लेखन आदि संपूर्ण देश में कम या अधिक मात्रा में होने लगा था जिसने नवजागरण को एक नई दिशा दी। इसके केंद्र में 1857 की क्रांति का विशेष महत्व रहा है। जिन प्रदेशों में इस क्रांति का प्रत्यक्ष असर न था, वहाँ क्षेत्रीय स्तर पर अनेक विद्रोह हुए। इसी समय एशिया के सभी देशों में नवजागरण की भावना दिखाई देती है। भारत में नवजागरणकर्ताओं द्वारा सामाजिक क्षेत्र में सती प्रथा, पर्दा प्रथा, अस्पृश्यता जैसी कुरीतियों का विरोध हुआ। आर्थिक और राजनीतिक क्षेत्र में स्वदेशीयता व राष्ट्रीयता की लहर उठी। धार्मिक रूढ़ियों और संकीर्णताओं को त्याग कर सांप्रदायिक सद्भाव, धर्मनिरपेक्षता व धार्मिक उदारता की भावना का विस्तार हुआ। वैचारिकी में वैज्ञानिकता का समावेश तथा साहित्यिक, सांस्कृतिक क्षेत्र में नवीन विषयों के समावेश ने नवजागरण को आगे बढ़ाने में सशक्त भूमिका का निर्वाह किया।
 
बीज शब्द : नवजागरण, हिंदी, भारतीय, वर्तमान, साम्राज्यवाद, परंपरा, ब्राह्मणवाद, संकीर्णता
 
मूल आलेख : नवजागरण एक अभूतपूर्व ऐतिहासिक परिघटना है जिसने भारतीय परिप्रेक्ष्य में परंपरा से आधुनिकता की ओर उन्मुख किया। सांस्कृतिक परंपराएं भारतीयों के लिए गर्व का विषय हैं किंतु ब्रिटिश उपनिवेशवाद ने जैसे ही भारत में अपनी जड़ें गहरानी शुरू कीं, वैसे ही भारतीयों ने ब्रिटिश शासन को दोहरी दृष्टि से देखना आरंभ कर दिया। इस दौर में भारतीयों ने अपनी संपूर्ण परंपरा का मंथन कर आत्म पहचान बनाने का प्रयास किया, जिससे नवजागरण का मार्ग प्रशस्त हुआ। 21वीं सदी के विविध विमर्शों में यह भी एक विमर्श के रूप में उभरा है। यह एक असमाप्त सफर है जिसे शंभुनाथ ने अपनी आलोचनात्मक पुस्तक भारतीय नवजागरण एक असमाप्त सफरमें रेखांकित करते हुए कहा है- ‘‘19वीं सदी का नवजागरण अपने अंतर्विरोधों के बावजूद एक आलोक स्तंभ के रूप में दिखता है। भारत ने एक बड़ा मन लेकर अपना नया सफर शुरू किया था। कहना होगा कि वह सफर समाप्त है, अभी पूरा होना बाकी है।’’ 1 इन्हीं सब को लक्षित करते हुए भारतीय परिप्रेक्ष्य में नवजागरण की प्रक्रिया को समझना आवश्यक है।
 
    भारत में नवजागरण का स्वरूप- भारत में नवजागरण 19वीं सदी के दूसरे दशक में आया। इस काल में एक वैचारिक उद्द्वेलन आरंभ हो चुका था। पुरानी परंपराओं को नये परिप्रेक्ष्य में व्याख्यायित करने की आवश्यकता ने सांस्कृतिक आधुनिकता को जन्म दिया। नवजागरण से पहले लोक जागरण, पुनर्जागरण, 1857 की क्रांति व ब्रिटिश शासन ने इसकी पृष्ठभूमि में एक विशेष भूमिका का निर्वाह किया। शंभुनाथ के अनुसार- भारत में सामाजिक क्रांति की लहरें एक औपनिवेशिक माहौल में आई थीं । प्रायः समूची पृथ्वी पर यूरोपीय शक्तियां और उनकी सभ्यता छा रही थी। निश्चय ही जिन गैर यूरोपीय समाजों में पहले से उच्च परंपराएं मौजूद थीं और भारत एक ऐसा ही देश था, वहाँ आक्रामक यूरोपीय शक्तियों और उनकी सभ्यता से दरअसल बहुस्तरीय रिश्ता बना। यह रिश्ता संपर्क और टकराहट दोनों का था।“ 2 अंग्रेजी ज्ञान विज्ञान के संपर्क में आने से भारतीय साहित्य में एक नई विचारधारा का सूत्रपात हुआ।
 
    वीर भारत तलवार के शब्दों में- यह समझना भ्रामक होगा कि भारतीय नवजागरण से पश्चिमी विचारों के संपर्क की सीधी सरल देन था। वास्तव में यह विचार दृष्टियों की टकराहट से पैदा हुई बेचैनी का नतीजा थी। नई शिक्षा में विकसित होने वाले हर युवा भारतीयों को नए पश्चिमी ज्ञान और अपनी परंपरा जैसा तीखा द्वंद्व महसूस होता था, वैसा पहले कभी किसी भी दौर में नहीं हुआ। कई सुधारकों ने शिक्षा से अपने जीवन में मचने वाली खलबली और उसके क्रांतिकारी प्रभावों की चर्चा की है।” 3
 
    भारत के अलग-अलग प्रांतों में नवजागरण को देखने की अलग-अलग प्रवृत्ति रही है। भारत जैसे बहुभाषिक, बहुसांस्कृतिक देश में एक ही तरह का नवजागरण नहीं रहा। इस देश में एक नहीं कई नवजागरण हैं जिनको एक ही तराजू पर तौलकर किसी को श्रेष्ठ और किसी को हीन घोषित नहीं किया जा सकता।“ 4 विविध प्रांतों की आर्थिक, सामाजिक, राजनीतिक विविधता ने नवजागरण को पूरे देश में अलग-अलग तरह से प्रभावित किया। इसे निम्नतः देखा जा सकता है-
 
बंगाल का नवजागरण- भारत में नवजागरण की पहली किरण बंगाल में ही दिखी और यहीं से नवजागरण का सूर्योदय हुआ। बंगाल की तुलना यूरोपीय रेनेसां के इटली से की जाती है। सुशोभन सरकार ने बांग्ला नवजागरणमें लिखा है- भारत की आधुनिक जागृति में बंगाल ने जो भूमिका निभायी उसकी तुलना यूरोपीय नवजागरण के परिप्रेक्ष्य में इटली से की जा सकती है।“ 5 यूरोपीय रेनेसां इटली से शुरू होकर धीरे-धीरे समूचे यूरोप में फैल गया, ठीक उसी प्रकार बंगाल की तत्कालीन परिस्थितियों के अनुरूप नवजागरण पूरे भारतवर्ष में फैल गया। यहाँ का नवजागरण भारतीय नवजागरण का प्रणेता बना, इसलिए बंगाल के नवजागरण को समझे बिना भारतीय नवजागरण को समग्रता में नहीं समझ सकते। इसके सूत्रधार राजा राममोहन राय माने जाते हैं। उन्होंने 1815 में आत्मीय सभा का गठन किया जिससे स्त्री शिक्षा पर जोर दिया और सती प्रथा के विरुद्ध आवाज उठाई। उन्होंने 1828 में ब्रह्म समाज की स्थापना कर नवजागरण का श्रीगणेश किया। राजा राममोहन राय के बाद देवेंद्र नाथ ठाकुर ने 1843 में ब्रह्म समाज को पुनर्जीवित कर केशवचंद्र सेन को आचार्य नियुक्त किया। उन्होंने 1839 में तत्वबोधिनी सभा की स्थापना की। वे शोषण के विरुद्ध आवाज उठाते हैं। वे गरीब, किसान, दस्तकारों को संबोधित करते हुए कहते हैं- आप में जो किसान और दस्तकार हैं, एकजुट हों और उठ खड़े हों। अपनी पूरी ताकत लगा दें ताकि अपनी दशा सुधार सकें और काश्तकारों पर होने वाले दमन, निर्दयता तथा अपमान को बलपूर्वक रोक सकें। अब और मत सोओ, अब जागने का वक्त आगया है । आपकी तरफ से बोलने वाला कोई नहीं है।"6
 
    नवजागरण की इस लहर में ईश्वरचंद्र विद्यासागर का विशेष योगदान रहा। विशेषतः स्त्री जीवन के बदरंग पहलुओं को सुधारने में उनका विशेष प्रदेय रहा। रवींद्रनाथ टैगोर के अनुसार विद्यासागर का पहला गुण था कि उन्होंने बंगाली जीवन की जड़ता को तोड़कर अपनी जीवनधारा हिंदुत्व की ओर नहीं, वरण करुणाजन्य मनुष्यत्व की ओर प्रवाहित की।“ 7
 
    इस काल के नवजागरणकर्ताओं में रामकृष्ण परमहंस और उनके शिष्य विवेकानंद का योगदान भी अविस्मरणीय है। इनका वैचारिक फलक बहुत विस्तृत था। विवेकानंद धार्मिक एकता व उदारवादी दृष्टि के पक्षधर थे। उन्होंने अपने विचारों के माध्यम से न केवल अपनी पीढ़ी वरन भावी पीढ़ी को गहरे तक असर डाला। नवजागरण की लहर केवल राजनीति, धार्मिक व सामाजिक क्षेत्र तक ही सीमित न रही वरन इसका व्यापक असर साहित्य पर भी पड़ा। बांग्ला लेखकों में बंकिमचंद्र चटर्जी का महत्वपूर्ण स्थान है।
 
    आनंदमठ उनका प्रसिद्ध उपन्यास है। रामविलास शर्मा के अनुसार- आनंदमठ देशभक्ति के सिद्धांत का उदाहरण बन गया, उसने बंगाल को वंदे मातरम गीत दिया और यह गीत राष्ट्रीयता का मंत्र बन गया, उस रूप में वह बंकिमचंद्र चटर्जी की सबसे जीवंत रचना है।“ 8 बंगाल के नवजागरण की महती उपलब्धि है कि इसने महाराष्ट्र, दक्षिण और हिंदी क्षेत्र को समेटते हुए पूरे भारतवर्ष में नवजागरण की क्रांति का सूत्रपात किया।
 
महाराष्ट्र का नवजागरण- महाराष्ट्र में नवजागरण ब्राह्मणवाद के विरुद्ध और दलित चेतना के रूप में सामने आया। नवजागरणकर्ताओं में महादेव गोविंद रानाडे, दादा भाई नौरोजी, रामकृष्ण गोपाल भंडारकर, गोपालकृष्ण गोखले, बाल गंगाधर तिलक, पंडिता रमाबाई व ज्योतिबा फुले प्रमुख हैं। बंगाल की तुलना में महाराष्ट्र का नवजागरण सीधे तौर पर जनता से जुड़ता है। ब्राह्मणवाद को खुली चुनौती देकर नीचे तबके के लोगों में जागरूकता अभियान चलाता है। पश्चिमी विचारों के माध्यम से वे सामाजिक कुरीतियों का सुधार करना चाहते थे। ज्योतिबा फुले के अवदान को रेखांकित करते हुए शंभुनाथ लिखते हैं- फुले ने ब्राह्मणवाद का खुला विरोध करते हुए शूद्रों की आधुनिक जाग्रति का काम हाथ में लेकर नवजागरण में एक नया आयाम जोड़ा।“ 9 महाराष्ट्र के नवजागरण ने दक्षिण को दिशासूत्र देने का कार्य किया जिसे दक्षिण भारत के नवजागरण में देखा जा सकता है।
 
दक्षिण का नवजागरण- बंगाल और महाराष्ट्र के नवजागरण का प्रभाव दक्षिण भारत के प्रदेशों पर भी पड़ा। दक्षिण में नवजागरण के जनक कंदुकूरि वीरेशलिंगम का नाम अविस्मरणीय है। वीरेशलिंगम ने देवदासी प्रथा के विरुद्ध आंदोलन खड़ा कर दक्षिण भारत में नवजागरण की मशाल जलाई। नारायणगुरु दक्षिण भारत में जातिवाद विरोधी आंदोलन के प्रणेता थे। ये भक्ति काल के संतों की परंपरा के आधुनिक प्रतिनिधि थे। उन्होंने केरल में दलितोद्धार आंदोलन शुरू किया। आज दलित आंदोलन के संदर्भ में ज्योतिबा फुले, नारायणगुर, ई.वी. रामास्वामी का अविस्मरणीय योगदान है।
 
अन्य प्रदेशों में नवजागरण - भारतीय नवजागरण किसी एक या दो प्रदेशों तक ही सीमित नहीं रहा वरन यह समूचे भारतवर्ष में कई अन्तर्धाराओं के साथ प्रविष्ट हुआ। बंगाल, महाराष्ट्र, दक्षिण, उत्तर से होता हुआ तटीय प्रदेशों में पहुंचा। अपनी भाषा के प्रति प्रेम ही आगे चलकर जातीय चेतना की पृष्ठभूमि बना। समाज में घटित हुए परिवर्तन साहित्य के माध्यम से उजागर होने लगे। उड़ीसा के फकीर मोहन सेनापति ने उड़िया भाषा में कार्य किया। लक्ष्मीनाथ बेजबरुआ ने असमिया के माध्यम से समाज को नई दिशा दी। पंजाब में मोहन सिंह वेद, धनीराम चात्रिक, पूर्ण सिंह, तेजासिंह, प्रीत लड़ी आदि लेखकों ने प्रगतिशील विचारधारा को परिपक्व किया। इस तरह नवजागरणकर्ताओं ने अपनी-अपनी भाषा की उन्नति पर बल दिया और कई नई साहित्यिक विधाओं के माध्यम से भाषा व साहित्य को समृद्ध किया।

    वस्तुतः नवजागरण भारत के विभिन्न प्रदेशों में वहाँ की परिस्थितियों के अनुरूप अपनी- अपनी अन्तर्धाराओं के साथ प्रविष्ट हुआ। धार्मिक, सामाजिक सुधार, स्त्री शिक्षा व उत्थान, ब्राह्मणवाद का विरोध, दलित उत्थान, साम्राज्य-सामंतवाद का विरोध जैसी कई धाराओं ने समूचे भारत में नवजागरण की एक क्रांति ला दी, जिसने अन्याय, शोषण, अत्याचार के विरुद्ध एक मुहिम छेड़ दी। औपनिवेशिकता के बावजूद हर क्षेत्र में नवजागरण की शुरुआत हुई। उस समय के धार्मिक, सामाजिक आर्थिक, राजनैतिक, सांस्कृतिक आंदोलनों ने नवजागरण में एक विशेष योगदान दिया।
अब हम हिंदी नवजागरण पर प्रकाश डालेंगे जिसने समूचे भारतीय नवजागरण को एकसूत्र में बांधने का प्रयास किया।
 
    हिंदी नवजागरण - हिंदी नवजागरण का मुख्य लक्ष्य साम्राज्यवाद व सामंतवाद से मुक्ति पाना था। हिंदी क्षेत्र में सामाजिक, धार्मिक स्तर पर कोई ऐसा आंदोलन नहीं हुआ जैसा कि बंगाल, महाराष्ट्र व दक्षिण के क्षेत्रों में हुए । यहाँ साहित्य से जुड़े लोगों ने ही अपना प्रभाव छोड़ा है। इन लेखकों की लेखनी ने आगे चलकर राष्ट्रवाद का आधार ग्रहण कर स्वतंत्रता का मार्ग प्रशस्त किया। डॉ0 नामवर सिंह के शब्दों में- जिस प्रकार अन्य देशों के अन्यत्र के नवजागरण एक वृहत्तर मानवतावाद या मानवतावाद के अग्रदूत रहे हैं, उसी प्रकार यह हिंदी नवजागरण भी उसी मानवतावाद का अग्रदूत रहा है।’’ 10
 
    साहित्य के माध्यम से भारतेंदु हरिश्चंद्र, महावीर प्रसाद द्विवेदी, प्रेमचंद, निराला जैसे अनेक महत्वपूर्ण साहित्यकारों ने सामाजिक कुरीतियों, विद्रूपताओं की तीखी आलोचना कर नवजागरण में अपना अमूल्य योगदान दिया। हिंदी नवजागरण के संदर्भ में पहली अवधारणा डॉ0 रामविलास शर्मा ने प्रस्तुत की। डॉ0 रामविलास शर्मा ने अपनी पुस्तक महावीर प्रसाद द्विवेदी और हिंदी नवजागरणमें हिंदी नवजागरण नाम दिया। उन्होंने हिंदी नवजागरण की चार मंजिलें तय की। पहली मंजिल 1857 का प्रथम स्वतंत्रता संग्राम, दूसरी मंजिल भारतेंदु युग, तीसरी द्विवेदी युग चौथी छायावाद में निराला के साहित्य को माना है। हिंदी नवजागरण की सैद्धांतिकी प्रस्तुत करते हुए उन्होंने कहा कि जो नवजागरण 1857 के स्वाधीनता संग्राम से आरंभ हुआ वह भारतेंदु युग में और भी व्यापक बना, उसकी साम्राज्य विरोधी, सामंत विरोधी प्रवृत्तियाँ द्विवेदी युग में और भी पुष्ट हुईं फिर निराला के साहित्य में कलात्मक स्तर पर तथा इनकी विचारधारा क्रांतिकारी रूप में प्रकट हुई। कर्मेंदु शिशिर के अनुसार- पहली बार 1857 के स्वाधीनता संग्राम में हमारे समाज का पौरुष पूरे वैभव के साथ प्रभावशाली रूप से आया और सशस्त्र विद्रोह का सिलसिला लगातार दो वर्षों तक चलता रहा।’’ 11 1857 के संग्राम को डॉ0 रामविलास शर्मा ने गौरवशाली गदर कहा है जिसे छोटे-बड़े, हिंदू-मुस्लिम, सवर्ण -दलित सभी एकजुट होकर साम्राज्यवादी ताकतों के खिलाफ खड़े हुए।
 
    भारतेंदु युग हिंदी नवजागरण की दूसरी मंजिल है। हिंदी प्रदेश में नवजागरण के सूत्रधार भारतेंदु हरिश्चंद्र थे। उन्होंने एक ओर ब्रिटिश उपनिवेशवादियों के आर्थिक शोषण को रेखांकित किया, वहीं उन्होंने भारतीय उद्योगों, कृषि को सशक्त बनाने तथा समाज सुधार के लिए जागरण का अभियान चलाया। भारतेंदु हिंदी नवजागरण को मात्र आर्थिक और सामाजिक समस्याओं तक सीमित नहीं मानते वरन भाषा को भी उतना ही महत्व देते हैं। वे बहुमुखी प्रतिभा संपन्न साहित्यकार थे। आधुनिक हिंदी साहित्य की लगभग सभी विधाओं का सूत्रपात भारतेंदु युग में हुआ। उन्होंने नाटकों के माध्यम से देशभक्ति की भावना जगाने और चरित्र निर्माण करने का साधन बनाया । ‘‘भारतीय जनता को चेतना संपन्न करने तथा ब्रिटिश हुकूमत के विरुद्ध जनता को खड़ा करने के लिए भारतेंदु ने नाटक की भांति सशक्त व्याख्यान दिया।” 12
 
    डॉ0 रामविलास शर्मा ने हिंदी नवजागरण की तीसरी मंजिल महावीर प्रसाद द्विवेदी के समय को निर्धारित किया है। द्विवेदी जी ने सरस्वती पत्रिका के माध्यम से हिंदी नवजागरण में महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वाह किया है। सरस्वती के संपादक बनने के बाद द्विवेदी जी ने लेखकों का ऐसा दल तैयार किया जो नवीन ज्ञान चेतना के प्रसार में उनकी सहायता करें। हिंदी भाषा व साहित्य के साथ- साथ द्विवेदी जी ने राजनीति, अर्थशास्त्र के साथ आधुनिक विज्ञान से भी परिचय प्राप्त कर इतिहास समाजशास्त्र का गहराई से अध्ययन किया । सामाजिक चेतना से संपन्न द्विवेदी जी ने हिंदी नवजागरण में महती भूमिका का निर्वाह किया।

    छायावाद हिंदी नवजागरण की अगली कड़ी है। डॉ0 रामविलास शर्मा के अनुसार हिंदी नवजागरण की चेतना को आगे बढ़ाने का कार्य निराला के साथ प्रेमचंद और आचार्य रामचंद्र शुक्ल ने किया है। प्रेमचंद अपने समय के यथार्थ को अपने कथा साहित्य में उतारते हैं। उन्होंने गोदान में होरी के माध्यम से समाज के कटु सत्य का उद्घाटन किया है।


    हिंदी नवजागरण के संदर्भ में प्रोफेसर मैनेजर पांडेय ने अपनी पुस्तक साहित्य और इतिहास दृष्टिमें डॉ0 रामविलास शर्मा के महत्व को रेखांकित किया है- ‘‘उनके हिंदी नवजागरण संबंधी लेखन के फलस्वरुप हिंदी नवजागरण को स्वतंत्र विचारणीय विषय के रूप में मान्यता मिली, कुछ समय पहले या तो भारतीय नवजागरण की बात होती थी या बंगाल के नवजागरण की।’’ 13
     
    हिंदी नवजागरण में जिस चेतना का प्रसार हो रहा था, वह अखिल भारतीय नवजागरण के आंदोलन का ही एक हिस्सा था, लेकिन उसकी अपनी विशिष्टताएं भी थीं जो अन्य प्रांतों के नवजागरण से अलग करती हैं। बंगला, मराठी मलयालम, तेलुगु आदि का नवजागरण जहाँ अंग्रेजों से प्रभावित था, वहीं हिंदी नवजागरण स्वतंत्र रूप से विकसित हुआ। अहिंदी प्रांतों में जहां कई समाज सुधारक हुए, वहीं हिंदी में यह कार्य मुख्य रूप से दयानंद सरस्वती व उनके आर्य समाज ने किया। दूसरी ओर यह कार्य हिंदी लेखकों ने किया। हिंदी नवजागरण में मुख्य भूमिका समाज सुधारकों की न होकर लेखकों की है। ‘‘जिस जमाने में धार्मिक कट्टरवादी संगठन जहर फैला रहे थे, सांप्रदायिक सौहार्द की भावना जड़ें पकड़ रही थीं। भारतेंदु हिन्दू और मुसलमान के बीच जिठानी-देवरानी का रिश्ता बना रहे थे।’’ 14
 
    वस्तुतः हिंदी नवजागरण अखिल भारतीय नवजागरण का स्वरूप धारण करते हुए अन्य प्रांतों के नवजागरण से इसकी भिन्न प्रकृति रही है। यहाँ साम्राज्यवाद और सामंतवाद का तीखा विरोध किया गया। हर प्रांत में अपने अपने स्तर से की गई मुक्ति कामना एक प्रबल जन विरोध के रूप में स्वाधीनता आंदोलन की सफल परिणति हुई।
 
निष्कर्ष : भारत के विभिन्न प्रांतों में नवजागरण के अपने-अपने उद्देश्य थे, परंतु ये उद्देश्य ही एक बड़े सामाजिक, राजनीतिक परिवर्तन की ओर संकेत कर रहे थे। धीरे-धीरे परिवर्तन की यह प्रक्रिया तीव्र होती गई और स्वाधीनता आंदोलन में इसकी परिणति हो गई। हिंदी प्रदेश का नवजागरण अपनी प्रकृति में साहित्यिक था। यहाँ साहित्य और पत्रकारिता दोनों एक साथ नवजागरण के मूलभूत तत्वों को जनसाधारण तक संप्रेषित करते हैं। नवजागरण की सबसे बड़ी उपलब्धि आजादी थी और उसमें निर्णायक भूमिका का निर्वाह हिंदी क्षेत्र ने ही किया। नवजागरण सभी प्रदेशों में जातीय चेतना का आधार ग्रहण करते हुए अखिल भारतीय राष्ट्रीयता का स्वरूप धारण करता है। आगे चलकर यह विश्व प्रेम और मानव प्रेम के रूप में परिलक्षित होता है । निष्कर्षतः भारतीय नवजागरण अपने स्वरूप में ऐतिहासिक महत्व को समेटे आधुनिकता की ओर अग्रसर होने की वह प्रक्रिया है जो अपने तमाम अंतर्विरोध के बावजूद विकास की ओर उन्मुख है।
 
संदर्भ ;
1. शंभुनाथ, भारतीय नवजागरण एक असमाप्त सफर, वाणी प्रकाशन, प्रथम संस्करण 2022,पृष्ठ 35
2. शंभुनाथ, सामाजिक क्रांति के दस्तावेज, भाग-1, वाणी प्रकाशन,नयी दिल्ली संस्करण 2004,पृष्ठ 15
3. वीरभारत तलवार, रस्साकशी, सारांश प्रकाशन, दिल्ली 2012, पृष्ठ 120-121.
4. शंभुनाथ, सामाजिक क्रांति के दस्तावेज, भाग-1, वाणी प्रकाशन, नयी दिल्ली, संस्करण 2004, पृष्ठ 18
5. सुशोभन सरकार, बंगला नवजागरण, अनुवाद एस.एन. कानूनगो, प्रथम हिंदी संस्करण, 1997, ग्रंथ शिल्पी (इंडिया)
प्राइवेट लिमिटेड दिल्ली, पृष्ठ 03
6. कर्मेंदु शिशिर, भारतीय नवजागरण और वर्तमान संदर्भ, नई किताब, 2013, पृष्ठ 37
7. कर्मेंदु शिशिर, भारतीय नवजागरण और वर्तमान संदर्भ, नई किताब, 2013, पृष्ठ 43
8. रामविलास शर्मा, स्वाधीनता संग्राम के बदलते परिप्रेक्ष्य, पुनर्मुद्रण 2003, हिंदी माध्यम
कार्यान्वयन निदेशालय, दिल्ली विश्वविद्यालय, पृष्ठ 72
9. शंभुनाथ, सामाजिक क्रांति के दस्तावेज, भाग-1,वाणी प्रकाशन, नयीदिल्ली, संस्करण 2004,
पृष्ठ 35
10. महेंद्र राजा जैन, नामवर विचार कोश, नई किताब, नवीन शाहदरा दिल्ली, 2012, पृष्ठ 392
11. कर्मेंदु शिशिर, हिंदी नवजागरण और जातीय गद्य परंपरा, आधार प्रकाशन, पंचकूला 2008,
पृष्ठ18
12. शंभुनाथ,अशोक जोशी, भारतेंदु और भारतीय नवजागरण, वाणी प्रकाशन, नई दिल्ली, पृष्ठ105
13. मैनेजर पांडेय, साहित्य और इतिहास दृष्टि, आवृत्ति संस्करण 2009, वाणी प्रकाशन, नई
दिल्ली, पृष्ठ 190
14. शंभुनाथ, हिंदी नवजागरण भारतेंदु और उनके बाद, वाणी प्रकाशन, प्रथम संस्करण 2022,
 
डॉ. नीतू बंसल
सहायक आचार्या(हिंदी विभाग), राजकीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय, सेक्टर 11,चंडीगढ़
bansalnitu1883@gmail.com, मोo 9359365789

  अपनी माटी (ISSN 2322-0724 Apni Maati)  अंक-43, जुलाई-सितम्बर 2022 UGC Care Listed Issue
सम्पादक-द्वय : माणिक एवं जितेन्द्र यादवचित्रांकन : धर्मेन्द्र कुमार (इलाहाबाद)

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