शोध आलेख : असमिया कहानी में समाज का प्रतिफलन / डॉ. नगेन शइकिया, डॉ. जोनाली बरुवा

असमिया कहानी में समाज का प्रतिफलन
कथाकार डॉ. नगेन शइकिया, डॉ. जोनाली बरुवा

शोध सार : प्रत्येक जागरूक रचनाकार समाज की इच्छा, आकांक्षा, कल्पना, अभाव, दुर्दशा इत्यादि को अपनी रचनाओं के माध्यम से अभिव्यक्त करता है। गतिशील समाज के अनेक रूपों को साहित्य ही मूर्त रूप देता है। नए युगों में सार्वजनीन त्त्व की विद्यमानता शाश्वत है। प्रवाहमान जीवन से कहानीकार की अनुभूति मात्र एक घटना को आहरित करयी है और उस अनुभव के माध्यम से कहानीकार का व्यक्तित्व अभिव्यक्त होता है।

बीसवीं सदी के पचास के दशक से ही कहानी लेखन आरंभ कर साठ के दशक में प्रसिद्धि प्राप्त करने वाले असमिया साहित्य के कथाकार डॉ. नगेन शइकिया की कहानियों का कथ्य और शिल्प जटिल और अनूठा है। मनुष्य की अमूर्त विचारधाराओं को विविध प्रकार से मूर्तमान करने का सफल प्रयास शइकिया की कहानियों में दिखाई देता है। प्रखर समाज सचेतक लेखक नगेन शइकिया की कहानियों में सामाजिक जीवन किस प्रकार प्रतिफलित हुआ है, उसी को देखने का प्रयास इस लेख में किया जाएगा।

बीज शब्द : समाज, समय, जीवन, अमूर्त, स्वार्थ, आकांक्षा, अन्याय, भ्रष्टाचार, मुखौटा, संस्कार, अस्तित्व।

मूल आलेख :

कहानीकार नगेन शइकिया : असमिया कहानी को विविधता प्रदान करने वाले और पाठक समाज को नवीन आह्लाद प्रदान करने वाले कहानीकार नगेन शइकिया की कहानियों में सामाजिक जीवन का अभिन्न अंग पारिवारिक जीवन किस तरह मुखरित हो उठा हैं उसका अध्ययन इस लेख का मुख्य उद्देश्य है।

असमिया गल्प साहित्य में डॉ. नगेन शइकिया जी का अप्रतीम अवदान है। स्कूल में नवीं कक्षा में पढ़ते हुए ही कहानी लेखन का श्रीगणेश करने वाले शइकिया जी साठ के दशक के आरंभ से स्तरीय कहानीकार के रूप में पहचाने जाने लगे। उस समय की असमवाणी, रामधेनु, मणिदीप, नीलांच इत्यादि पत्र-पत्रिकाओं के पन्नों में शइकिया की अनेक कहानियाँ प्रकाशित होने लगीं। डॉ. शइकिया के कहानी संकलन हैं– 1. कुबेर हाती बरुवा, 2. छबि आरु फ्रेम, 3. बंध कोठात धुमुहा, 4. अस्तित्वर शिकलि, 5. माटिर चाकिर जुई, 6. अपार्थिव-पार्थिव, 7. आंधारत निजर मुख और 8. हेमंत कालर एटि सन्धिया।

डॉ. शइकिया के रचनात्मक और कलात्मक सिद्धांत अस्पष्ट अथवा अबूझ नहीं है। शइकिया के रचनात्मक और कलात्मक विचार-विवेक, अनुभूति तथा नवीन कला-कौशल से संपृक्त है।

डॉ. शइकिया कल्पना और वास्तव को समकालीन बोध के साथ शामिल कर सृजन-संसार में डूबते दिखाई देते हैं। शायद यही कारण है कि डॉ. शइकिया की कहानियों में जीवन का कोई अंत नहीं है। नवीन कौशल के साथ कहानी लिखने वाले शइकिया की प्रारंभिक कहानियाँ पारंपरिक कहानियाँ जैसी ही दिखाई देती हैं। लेकिन बाद की कहानियों में अवस्थितिवादी विचारधारा की सक्रियता दिखाई देती है। अवचेतन पृथ्वी की खोज प्रखर रूप में दिखाई देता है। अमूर्त भावनाओं के महत्त्व को प्रतिपादित करते हुए मनोजगत की निरंतर अंधी चीत्कार चरम सत्य के रूप में दिखाई देता है। शइकिया की कहानियों में उनके मौलिक विचार और दृष्टि सुस्पष्ट नजर आता है। अवस्थितिवादी विचारधारा से संपुष्ट नगेन शइकिया की कहानियों में यद्यपि व्यक्ति की निजता को अग्राधिकार प्राप्त है तथापि वह समाज जीवन से कटा हुआ नहीं है। इस संबंध में डॉ. प्रह्लाद कुमार का कथन उल्लेखनीय है:-

नगेन शइकिया की कहानियों की अपारंपरिक शैली कहानी को ऐसा स्वरूप प्रदान करती है कि कई बार अनेक पाठक यह समझ ही नहीं पाते कि कहानीकार दरअसल क्या कहना चाहते हैं। शायद यही कारण है कि पाठक सहजता से इस बात का अनुमान नहीं लगा सकते कि नगेन शइकिया एक प्रखर समाज सचेतक लेखक हैं या उनकी कहानियों में प्रखर समाज चेतना दिखाई देती है। कारण अन्य परंपरावादी लेखकों की तरह नगेन शइकिया ने समाज सचेतनता को कहानी अथवा चरित्र निर्माण के अध्ययन से अभिव्यक्त नहीं किया है। बल्कि उन्होंने अपनी कहानियों में आवेगपूर्ण उक्ति, प्रत्युक्ति, उत्तेजनापूर्ण वातावरण का निर्माण कर उसके अध्ययन से समाज के व्यभिचारी चरित्रों की आलोचना की है।छबि आरु प्रेम’, ‘तारुण्यर आत्महत्या’, ‘एन्दूर आरु एन्दूरआदि कहानियों को देखने से यह सहज ही अनुमान लगाया जा सकता है कि नगेन शइकिया की कहानियों में प्रखर समाज चेतना विद्यमान है1

कहानी केवल अपने एक वक्तव्य को अभिव्यक्त करती है। अनावश्यक व्याप्ति का अवसर इसमें नहीं होता। गतिशील जीवन से कहानीकार की अनुभूति महज कोई एक घटना आहरित करती है। कहानी कई घटनाओं को अनभिव्यक्त छोड़कर पाठक के दिलो-दिमाग को झकझोर जाने के लिए कुछ पहेलियाँ छोड़ जाती है। पाठक समाज स्वयं ही इन पहेलियों का हल निकालता है। नगेन शइकिया की प्रखर समाज चेतना को समझने के लिए उनकी कहानियों में छिपे कला-कौशल को समझना आवश्यक है।

शइकिया की कहानियों में पारिवारिक जीवन :व्यंजनापूर्ण और काव्यिक भाषा से समृद्ध शइकिया की कहानियों में सामाजिक जीवन का अभिन्न अंगपरिवारके अनेक दृश्य दिखाई देते हैं। परिवार का आर्थिक चित्र और निम्न मध्य वर्ग के चरित्रों के क्रियाकलापों की अभिव्यक्ति में विशेष ज़ो दिया गया है। वैवाहिक जीवन की परेशानियों से युवावस्था की कल्पनाओं का अंत और प्रत्येक क्षेत्र में नपुंसत्व उतर आने का चित्र भी दिखाई देता है।बंधकोठात धुमुहानामक पुस्तक में संकलित कहानीमई एटा जेठीये कैछोंनामक कहानी के नायक की मृत्यु एक मोटर दुर्घटना में हो जाती है और वह एक छिपकली में रूपांतरित हो जाता है। इसके बाद कहानी रूपात्मक स्वरूप में जाती है और पत्नी, मित्र आदि सभी के दर्शन होते हैं।

माटिर चाकिर जुईसंकलन की कई कहानियाँ में पारिवारिक परिवेश का चित्रण है। 1967 में प्रकाशितपुतला घोरानामक कहानी में एक रीब पिता की दुर्दशा का चित्रण है। आर्थिक रूप से कमजोर, अल्प वेतन प्राप्त करने वाले एक पिता की असहाय अवस्था और विवशता ही कहानी की मूल संवेदना है। 1967 में रामधेनु में प्रकाशितरोगमुक्तिकहानी का उल्लेख भी इस संदर्भ में किया जा सकता है। बाद में इस कहानी का शीर्षक बदलकरमृत्युर उत्तापतरखकर इसेआंधारत निजर मुखनामक पुस्तक में संकलित किया गया। इस कहानी का मूल विषय गोलाप नामक एक रीब शिक्षक की आर्थिक दुरवस्था का वर्णन है जिसके माध्यम से धनवान समाज का मुखौटा उजागर करने का प्रयास किया गया है। गोलाप की गरीबी के कारण तथाकथित अभिजात्य की पोशाक पहनने वाले ससुर के परिवार में उसकी उपेक्षा की जाती है। आदमी में चाहे जितने भी अच्छे गुण या प्रतिभा हो, पैसे के वगैर सब व्यर्थ है। ससुर के परिवार के अन्य सदस्यों से उपेक्षित होने के बावजूद गोलाप की पत्नी ने कभी उसका तिरस्कार नहीं किया, कभी भी उसका अपमान नहीं किया। धनी परिवार की बेटी होने के बावजूद गरीब गोलाप की पत्नी के रूप मेंमाकनीख़ु है, सुखी है। अभिजात्य का व्यर्थ दिखावा वह नहीं चाहती। इस प्रकार, इस कहानी में धनी-रीब का सदा से चला रहा टकराव दिखाया गया है।कुबेर हाति बरुवामें संकलित कहानीबृंतच्युतामें एक विधवा नारी के प्रति समाज की उपेक्षा दिखाई गई है। पति की मृत्यु के बाद एक नारी के जीवन में कैसे दयनीय परिस्थितियाँ उतर आती हैं, इसी तथ्य का जीवंत वर्णन इस कहानी में किया गया है।

अचल टकानामक कहानी में एक पिता की परंपरागत सोच को अभिव्यक्ति मिली है। माधव बरुवा नामक एक पिता पुराने संस्कारयुक्त मानसिकता वाले हैं। लेकिन अंत में यह पिता नई विचारधाराओं को अपनाने के लिए विवश हो जाता है। पुराने संस्कारों को पूर्ण रूप से दरकिनार कर नई विचारधारा को अपना लेता है। माधव बरुवा यह चाहते थे कि उनका पुत्र गौतम संस्कृत में एम. कर संस्कृत साहित्य का विद्वान हो और उनके घर का एक कोना प्राचीन साहित्य के शोध का केंद्र बने। लेकिन पुत्र ने अंग्रेजी साहित्य का अध्ययन किया और प्रशासनिक अधिकारी बन गया। पिता चाहता है कि उसकी संतान प्रत्येक कार्य में उसकी राय ले। लेकिन संतान जैसे पिता को दिखाते हुए अपनी मनमानी करते हैं। फिर भी वे पिता होने का अपना अधिकार खोना नहीं चाहते और बेटे को थप्पड़ मार सकने की क्षमता व्यक्त करते हैंवह अधिकारी बन गया तो क्या हुआ। वह नहीं जानता अब भी वह उसे पकड़कर थप्पड़ लगा सकने की क्षमता रखते हैं।2

......इस उम्र में बूढ़े पिता को एक के बाद एक दो आघात तुमने दिए? एक महीने पूर्व डाक से भेजी थी वह पुस्तक। पुस्तक लिखने के लिए तुम्हें कोई और विषय नहीं मिला? फ्रायड इन इंडियन लिटरेचर युवक-युवतियों का दिमा राब कर रहे हो, सेक्सॉलॉजी की बात खुल्लमखुल्ला लिखा है, लिखते रहो। जानबूझकर पिता को क्यों भेजी? पिता को समर्पित करने के पूर्व क्या उनसे अनुमति ली थी? इतनी भी समझ नहीं है कि किसी के नाम पर पुस्तक को समर्पित करने के पूर्व उसके लिए एक अनुमति ले ली जाए। इससे गौतम क्या कहना चाहता है? क्या वे पेड़ के ठूंठ हैं?3

माधव बरुवा की अनुमति के गैर ही पुत्र ने शादी कर ली। इस बात से वे उत्तेजित हो गए। स्वर्गीय पत्नी का स्मरण हो आया। ऐसे किसी मित्र की खोज में उनका मन हाहाकार कर उठता है जो उन्हें समझ सके। मित्र रामेश्वर के पास जाकर वे अपना जी हल्का करते हैं। वे महसूस करते हैं कि मूल्यवान होने पर भी सोने-चाँदी की मुद्राओं का नए सिक्कों के समय में कोई मोल नहीं है। रामेश्वर उन्हें समझाते हुए कहता है

देखो, मैंने गौतम से कह दिया है। हम असमर्थ हैं इसका मतलब यह नहीं है कि तुम हमारी असमर्थता का उपहास करो, हमें दु: होता है। वह बेचारा नहीं समझता, अभी बच्चा है।

बरुवा ने कहावह कहता था कि घर को सजाएगा। यह घर अब काफ़ी पुराना हो गया है। इस बार चाहता हूँ कि वे अपनी पसंद से ही इसे बनाए।4

इस प्रकार देखा जा सकता है कि बरुवा बेटे की सोच, अभिरूचियों को अपना लेने का प्रयास करते हैं।

नदीर पारत मोर अस्तित्वनामक कहानी का नायक एक सेवानिवृत्त व्यक्ति है जो अतीत की यादों में विचरण करता है। पुत्री के लिए सुयोग्य वर की तलाश, बाज़ा की वस्तुओं की कीमतों का हिसाब, मित्रों के अलग-अलग बार आदि कहानी को जीवंत बनाते हैं। नारी की डांट-डपट भी कहानी को यथार्थ के रीब ले जाती है। प्रत्येक माता-पिता की यह इच्छा होती है कि बेटी का विवाह उपयुक्त समय में हो जाए, इस बात को भी कहानी में स्थान दिया गया है।

.....सुनती हो, एक अच्छे लड़के की खबर मिली है। एक्ज्यूक्यूटिव इंजीनियर, उम्र भी कम है, खानदान अच्छा है, लाएबिलिटी कम है, धन-दौलत, रूपए पैसे वाले लोग हैं।5

..... जानते हो, बाज़ा की वस्तुओं में जैसे आग लग गई है। नहीं, नहीं; ऐसे नहीं रह सकते, रुपयों को चबाकर आदमी जीवित नहीं रह सकता। तुम्हारा बेटा डॉक्टर है, सो दो पैसे अर्जित कर रहा है; लेकिन अगर मेरी तरह स्कूल कॉलेज की मास्टरी करनी पड़तीतो खाते माँस-मछली।6

          पत्नी की डाँट-डपट के बीच छिपा रहता है अकृत्रिम प्रेम। इस ठिठुरन भरी सर्दी में बाहर जाना क्या ज़रूरी है? लोग पूरे शरीर को कपड़े से ढककर अलाव के सामने बैठकर भी परेशान हैं और आप हैं कि गंजे सर का प्रदर्शन करते हुए जाड़े में घूम रहे हैं। भगवान करे कि कोई अनहोनी हो जाए।7

पर्दानामक एक कहानी में एक दंपत्ति के मनोजगत का सुंदर और यथार्थ चित्रण है। जालीदार पर्दे की जगह मोटा पर्दा लगाने की घटना के माध्यम से एक पति-पत्नी के मनोजगत का सुंदर चित्र अंकित किया गया है।पर्दाकहानी में कहानीकार की गंभीर सोच को अभिव्यक्ति मिली है। इस तरह मध्यवर्ग के परिवार के पारिवारिक द्वन्द्व, कलह, क्षोभ, प्रेम, ख़ुशी, आँसू सब कुछ शइकिया जी की कहानियों में देखने को मिलता है।

शइकिया जी की कहानियों में सामाजिक अन्याय, शोषण और भ्रष्टाचार : चेतनास्रोत रीति प्रयोग की कहानियाँ लिखने वाले शइकिया जी कीअपार्थिव पार्थिवपुस्तक में संकलितसि तार संधानतकहानी में सामाजिक जीवन के कई पहलुओं को अभिव्यक्ति मिली है। इस कहानी में अनंत नामक एक युवक मानवीय मूल्यबोध और सदाचार से आस्था खोने के बाद, दिशाहीन हो जाने के बावजूद उसके मन में प्रेम की क्षीण आशा विद्यमान है और उसी के सहारे एक नौकरी के लिए साक्षात्कार में उपस्थित होता है। अनंत के अनुसार समाज की रीति-नीति, अभ्यास परंपरा द्वारा शृंखलाबद्ध जीवन हास्यास्पद और निरर्थक है। चेतना स्रोत रीति एक लेखक के समाज जीवन को अति सूक्ष्म रूप से देखने का अवसर प्रदान करता है। अनंत का समाज के प्रति अनास्था का कारण है दुर्नीति में ध्वस्त मानवीय मूल्यबोध और बढ़ता हुआ भ्रष्टाचार। चौधुरी ठेकेदार की पत्नी देखने में कितनी सुंदर है, कितनी प्यारी बातें करती है। चेहरे में हमेशा मुसका बनी रहती है। लेकिन पुत्री वंदनाजिसे हमबटरफ्लाईकहते हैंउस पुत्री के साथ प्रेम में प्रतिस्पर्धा करती है8

लत तरीक़े से धन उपार्जित करने के कारण चौधुरी भी ग्लानि का अनुभव करते हैं। आदमी सारे दोषों, सभी दुर्बलताओं, सारे लत तरीक़ों, ठगी-चोरी से वास्तव में अच्छा जीवन बिताना चाहता है।9

प्रदीप का उद्देश्य सप्लाई इन्सपेक्टर बनने और सप्लाई का काम करते हुए अवैध रूपया अर्जित कर पत्नी के लिए नए गहने खरीदने, पत्नी के नाम में गाड़ी लेने का था।10

शैक्षिक संस्थानों में बढ़ रहे भ्रष्टाचार का चित्रण इस प्रकार हुआ हैकॉलेज के फंक्, एक्सकर्सन, भाषा आंदोलनयही सब करते हुए समय निकल गया, इसलिए प्रिंसिपल को भी कहा थाहॉल-सेट की अनुमति दें तो परीक्षा में बैठेंगे, अन्यथा नहीं।11

हठात् चलंत रेलतनामक कहानी में समाज के उच्च श्रेणी के लोगों की जीवन-शैली का चित्रण देखा जा सकता हैतुम्हारा राजनीति में जाना- तुम्हारा छोटे-बड़े उद्योगपतियों के साथ संबंधतुम्हारा घर और मीन जायदाद, गाड़ी बंगला आदि सब-कुछ की बर मुझे है। तुम्हारा बेटा अमेरिका में, लड़की लंदन में है। तुम्हारी पत्नी महिला समिति मेंमैं सब कुछ जानता हूँ। यह भी कि हवाईजहाज के पायलटों के हड़ताल के कारण तुम्हें रेल में यात्रा करना पड़ रहा हैजिसे तुम अपमानजनक समझ रहे हो, वह भी जानता हूँ।12

समाज जीवन के विभिन्न चित्र शइकिया जी की कहानियों में देखने को मिलते हैं। निम्न मध्य वर्ग की आर्थिक कठिनाई, जीवन-चक्र, द्वन्द्व आदि का शइकिया ने बारीकी से चित्रण किया है।

निस्तब्धता भागि याय़कहानी में सामाजिक जीवन के कई पक्ष उजागर होते हैंआग समझे, आग लग गई है। एक किलो मछली का मूल्य बीस रूपए, क्या कभी आपने सुना था। मैंने तो घर में बोल दिया हैयह भूल जाओ कि मछली जैसी कोई ची भी इस दुनिया में होती है।13

..... और यह दफ्तर जैसे एक अड्डा बन गया है। मे में फ़ाइलों का अंबार लग गया हैटॉप प्रायोरिटी, प्रायोरिटी, इमिडिएट, अर्जेंट। लेकिन ये सारी फाइलें कई महीने तक अर्जेंट ही बनी रहती हैं। कारण प्रायोरिटी केवल पैसे से निर्धारित होता है। यह जैसे कोई बाज़ा है।14

          शइकिया की कहानियों में समाज में निहित अन्याय, शोषण, भ्रष्टाचार आदि के प्रति तीव्र क्षोभ दिखाई देता है।मोक शुबलै दियाकहानी में इस बात को देखा जा सकता है

तुम जंगल की लकड़ियाँ काटकर उसे बरबाद करोगे? एक हजार क्यूबिक लकड़ी सप्लाई कर दस हजार क्यूबिक लकड़ी का मूल्य अर्जित करोगे? क्या इसलिए तुम कारखाने और जंगल में मेहनत करने वाले दूरों को भरपेट खाना भी नहीं दोगे। क्या इसलिए तुम जंगल के बीच बने शिविर में सप्ताह में दो दिन किसी कुमारी का सतीत्व नष्ट करोगे और सप्ताह के शेष पाँच दिन आदर्श पिता, आदर्श पति, आदर्श दाता, आदर्श व्यापारी बनकर जीवन यापन करोगे?15

हमारे समाज में कलाकार को उचित सम्मान नहीं मिलता। एक नाट्यशिल्पी अपने अभिनय कौशल के बल पर आजीवन दर्शकों को आनंद प्रदान कर सकने के बावजूद अपने परिवार को आर्थिक रूप से सबल नहीं कर पा सकने की बात नई नहीं है। उनके प्रति सरकारी उपेक्षा भी पीड़ादायक है। शइकिया कीछबि आरु फ्रेमकहानी में यह सच्चाई उजागर होती है। एक अभिनेता अभिनय कौशल को किस रूप में लेता है और समाज उसके प्रति कितना उदासीन होता है यह स्पष्ट किया गया हैअचानक अपनी जगह से खड़े होकर हरिश्चंद्र रूपी मुकुंद बरुवा ने महिम की ओर घूरकर देखा और कहातुम लोग अबोध हो, यह कभी नहीं समझ सकते कि अभिनय ही मेरे प्राण हैं, नहीं जानते कि अभिनय नहीं किया होता तो मैं जीवित नहीं रहता, नहीं जानते कि इस मंच को बनाने के लिए मैंने कितना कष्ट उठाया था।

जानता हूँसब जानता हूँ चाचा। तुम केवल नाटक में ही राजा बनकर हुक्म चला सकते होलेकिन हरिश्चंद्र का यह पोशाक तुम्हारे घर में रोटी की जुगाड़ नहीं कर सकता, चाची के शरीर को ढकने के लिए एक कपड़े का इंतजाम नहीं कर सकता, जितू को नहीं बचा सकता।16

शइकिया की कहानियों में समाज का राजनीतिक चित्र भी देखा जा सकता है।मजिद छार ढूकाल’, ‘आंधारत निजर मुख’, ‘निर्वासनआदि कहानियों में राजनीतिक वातावरण का चित्र अंकित किया गया है। राजनीतिक दलों की प्रत्येक छोटी-बड़ी खबर प्रचार माध्यमों में अग्राधिकार पाती है। एक सफल शिक्षक की मृत्यु का समाचार राजनीतिक दलों के चटपटी खबर से कभी भी अधिक महत्त्वपूर्ण नहीं हो सकता।मजिद छार ढूकालनामक करूण कहानी में इस सच्चाई का सुंदर चित्रण किया गया है।

......खेल में अब मजा रहा हैएक ओर विभिन्न दलों के नेता किसे समर्थन देंगे और किसका विरोध करेंगे, इसी को लेकर खींचातानी चल रही है। कोई एक दल दूसरे दल के विरुद्ध दुर्नीति का आरोप लगा रहा है, कहीं संपत्ति हड़पने की बात उठाते हैं, बेटे और बहुओं के नाम में मीन जायदाद और घर खरीदने की बात कहते हैं और किसी अभियंता या ठेकेदार द्वारा घर का सारा खर्च उठाने की बात कहते हैं।17

राजनीतिक पार्टियों की घोषणाओं को प्रकाशित करना ही होगा। जि सर जैसे एक साधारण शिक्षक की खबर का कोई महत्त्व नहीं है, यही सच्चाई है। कारण विपुल और कुछ अन्य छात्रों के अलावा जि सर का कोई महत्त्व नहीं है। रिश्वत नहीं ले सकने के कारण नौकरी से त्यागपत्र देने वाले मजिद सर ने अपना सारा जीवन शिक्षक के रूप में समर्पित किया। समाचार पत्र के कार्यालय में नौकरी करने वाला विपुल द्वन्द्व का शिकार है। प्रधान मंत्री का पदत्याग, राजनीतिक संवाद आदि महत्त्वपूर्ण बरों के बीच सरल, शांत, कर्मनिष्ठ और चरित्रवान मजिद सर का आज के समाज में कोई मूल्य नहीं है।

असम आंदोलन की पृष्ठभूमि में लिखी गई एक पठनीय और सार्थक कहानी हैस्टाफ फोटोग्राफारर छबिजिसमें तत्कालीन समय के आंदोलन का एक यथार्थ चित्र अंकित करने में शइकिया जी सफल हुए हैं। कहानी का मुख्य चरित्र भागवती एक समाचार पत्र का स्टा फोटोग्रा है। आंदोलन के समय का जीवंत दृश्य कहानी में दिखाई देता है। स्कूल कॉलेज के छात्र-छात्राएँ, पुलिस, सेना के जवानों का बर्बर अत्याचार आदि का चित्रण इसमें देखा जा सकता है। मानवीय संवेदनाओं से युक्त इस कहानी में गणतांत्रिक आंदोलन को जीवित रखने के लिए सरकारी प्रयासों का भी चित्रण किया गया है।

.......एक ओर से गावों में आग लगा दिया गया है, घर-खेत, खलिहान, कष्टोपार्जित संपत्ति, पेड़ पौधे सब कुछ आग के लपटों में बदल गए हैं। बड़ी निर्ममता से लोगों की हत्या की जा रही हैछोटे बच्चों को आग की लपटों के हवाले किया जा रहा हैमहिलाओं का बलात्कार हो रहा है। बुजुर्गों को पैरों से कुचल रहे हैं। सुनने में आया है कि बाहर के प्रशिक्षण प्राप्त योद्धा छद्मवेष में घुस आए हैं और हत्या के साथ-साथ लूटपाट भी मचा रहे हैं। स्थानीय पुलिस चौकी या तो मौन दर्शक है या अक्षम।18

प्रत्येक घटना समाचार पत्र के लिए महत्त्वपूर्ण नहीं होती यह ठीक है लेकिन धर्मपरायण महिला की मृत्यु, सरकारी कार्यालय में भ्रष्टाचार, छात्र की करूण मृत्यु आदि घटनाऐं भी उस समय अर्थहीन होकर कूड़ेदान में जगह पाने लगीं। जब तक किसी खबर में कोई राजनीतिक रंग चढ़ जाए तब तक वह महत्त्वपूर्ण नहीं होती। प्रत्येक ताजा बर में राजनीतिक रंग दिखाई देता है। दो संवाददाताओं का कथोपकथन इस संदर्भ में उल्लेखनीय है महंत, मेलन्यूट्रिसन का एक समाचार और फ़ोटो क्या दिया जा सकता है? मेल न्यूट्रिसन, नहीं; नहीं होगा। महंत फिर व्यस्त हो गया। लेकिन अंतरराष्ट्रीय शिशु वर्ष आयोजन के समय में केवल एक देश में लाखों शिशु.....

हाजरिका का वाक्य पूरा भी नहीं हो सका। गोगोई ने कहाअभी शिशु-फिशु की बात छोड़ दीजिए। हम दरअसल मानव समस्याओं में अभी सर नहीं खपा सकते। अभी हमें चाहिए केवल राजनैतिक गर्म खबर और आंकड़े।

हाजरिका ने अंतिम प्रयास कियाकिंतु हमारे सारे समाचार तो मानव समस्याओं को लेकर ही हैं।

टू सम एक्सटेंट महंत ने बात आगे बढ़ाते हुए कहामानव समस्याओं का जब तक राजनीतिकरण नहीं हो जाता तब तक उनका कोई न्यूज वैल्यू नहीं है। हाँ, अगर आप यह दिखा सकते हैं कि मेल-न्यूट्रिसन के नाम में इतने लाख या करोड़ रूपयों का घोटाला हुआ है और साथ में अगर पीड़ित शिशु की तस्वीर दे सकते हैं, तब यह एक सनसनीखेज समाचार हो सकता है।

हमारे लिए आदमी क्या केवल एक आंकड़ा या राजनीतिक शतरंज का मोहरा मात्र है।19

आंदोलन में भाग लेने जाने वाले युवक युवतियों के ऊपर आक्रमण करने वाले उन्मत्त, हिंस्र पुलिस दल को भागवती ने देखा। एक आठ वर्षीय असहाय बच्चे को पुलिस की प्रचंड लाठी से बचाने के लिए भागवती तीव्र वेग से आगे बढ़े। उस समय अपना कैरियर, पत्नी का भविष्य, महत्त्वपूर्ण बरों की तसवीरें, संपादक की प्रशंसा आदि सब कुछ वे भूल गए। भागवती स्वयं तो तसवी नहीं ले सके लेकिन अन्य किसी के कैमरे में भागवती बंदी हो गए। अगले दिन समाचार पत्र का शीर्षक थाउन्मत्त पुलिस के हाथों से बच्चों को बचाने गए संवाददाता का निधन।20

अस्तित्वर शिकलीके अंतर्गतनिर्वासननामक कहानी में आंदोलन का चित्र देखा जा सकता है। उनके आक्रमण की अग्नि में व्यापारियों के गोदाम लूट लिए गए अथवा जला दिए गए। तथाकथित एरिस्टोक्रेट की गाड़ी जला दी गई। राजमार्ग युद्धक्षेत्र में परिवर्तित हो गया है। दुकानें, घर की खिड़कियाँ दरवाजे बंद हो गए हैं; राजमार्ग सुनसान हो गया है। पुलिस और सेना के जवानों के जूतों की आवा के अलावा सबकुछ शांत है। एक भयानक उत्तेजना में लोगों का मन थर-थर कांप रहा है।21

अंतिम अपेक्षानामक कहानी के कथ्य में भी आंदोलन को शामिल किया गया है। गतिशील और मननशील विचारों से परिपूर्ण इन कहानियों में शइकिया जी की समाज सचेतनता बड़ी स्पष्टता के साथ दिखाई देती हैं। 

निष्कर्ष: समग्र रूप से यह कहा जा सकता है कि शइकिया जी की कहानियों का मुख्य केंद्र व्यक्ति चेतना के विभिन्न स्तरों का अनुसंधान होने के बावजूद उसमें बाह्य जगत भी पूरी आस्था के साथ दिखाई देता है। डॉ. शइकिया अपनी कहानियों में स्वकीयता बचाए रखने के लिए प्रयत्नशील दिखाई देते हैं। शइकिया ने अपने समय के समाज को बड़ी ही सूक्ष्म दृष्टि से देखा है। अत: उन्हें समाज सचेतन लेखक कहा जा सकता है। जीवन की गहरी अनुभूतियों के साथ-साथ विभिन्न अवस्था या विभिन्न समय में घटित होने वाली छोटी-छोटी घटनाएँ अथवा आनुषंगिक घटनाओं के सरस वर्णन के कारण उनकी कहानियाँ रुचिकर, पठनीय तथा आकर्षक बन पड़ी हैं। मानव मनोजगत के पक्ष को समेटते हुए विभिन्न चरित्रों के वर्णन में शइकिया जी सिद्धहस्त हैं। यद्यपि उनकी कहानियों में पाश्चात्य का प्रभाव देखा जाता है तथापि कुछ अन्य लेखकों की तरह यह प्रभाव प्रत्यक्ष नहीं है। फ्रैंज काफ्का अथवा जेम्स जोयेस जैसे लेखकों की आधुनिक शैली का प्रभाव इनमें दिखाई देता है। शायद इसीलिए पारंपरिक लेखन शैली के बीच भी आवेगमय वातावरण तैयार करने में आप समर्थ हैं।छबि आरु फ्रेम’, ‘एंदूर आरु एंदूरआदि कहानियों में वैयक्तिकता का छाप दिखाई देता है। शोषक, उत्पीड़क, दुर्नीतिग्रस्त राजनेता, ठेकेदार, तथाकथित बड़े लोगों का असली रूप उजागर करने में नगेन शइकिया सिद्धहस्त हैं।22

शइकिया जी की कहानियों में समाज-व्यक्ति, सरकार-राजनीतिक दल, मानव-सभ्यता, कालसापेक्ष और कालातीत, मृत्यु-मृत्युहीनता आदि के बीच के द्वंद्व की तुलना में मनुष्य  का स्वयं से होने वाला द्वंद्व अधिक प्रखर है। समाज जीवन का द्वंद्व, विरोध आदि ने व्यक्ति के मन-गह्वर के द्वंद्व को अधिक शक्तिशाली बना दिया है। शइकिया जी के कहानियों के चरित्र सामाजिक अन्याय, शोषण आदि के अर्थहीन वृत्त की परिधि से बाहर निकलना चाहते हैं, शोषणहीन और अन्यायविहीन कल्पनालोक की प्रतीक्षा करते हैं। व्यक्ति जीवन को छोड़कर समाज जीवन गठित नहीं हो सकता। जीवन को छोड़ दें तो किसी भी चीज की तलाश और प्रतीक्षा संभव नहीं होगी। शइकिया जी की कहानियों की शैली पारंपरिक धारा से कुछ अलग होने के बावजूद उनकी कहानियों में मनुष्य के अंतर्मन का सत्य उद्घाटित हुआ है। समाज के शोषक, अत्याचारी, राजनीतिज्ञों का छल-प्रपंच तथा पाखंड आदि की यथार्थ आलोचना शइकिया जी की कहानियों में दिखाई देता है। शइकिया जी की समाज चेतना को समझने के लिए, डॉ. प्रह्लाद कुमार बरुवा के शब्दो में ही कहना होगा कहानियों के केवल आंगिक कौशल के मायाजाल को भेद कर उसके पार जाना होगा।

सन्दर्भ :

  1. डॉ. प्रह्लाद कुमार बरुवा, असमिया चुटिगल्पर अध्ययन, पृ: 310
  2. डॉ. नगेन शइकिया, कुबेर हातीबरुवा, पृ: 53
  3. डॉ. नगेन शइकिया, कुबेर हातीबरुवा, पृ: 53
  4. डॉ. नगेन शइकिया, कुबेर हातीबरुवा, पृ: 57-58
  5. डॉ. नगेन शइकिया, स्व-निर्वाचित गल्प, पृ: 61
  6. डॉ. नगेन शइकिया, स्व-निर्वाचित गल्प, पृ: 61
  7. डॉ. नगेन शइकिया, स्व-निर्वाचित गल्प, पृ: 61
  8. डॉ. नगेन शइकिया, अपार्थिब-पार्थिब, पृ: 129
  9. डॉ. नगेन शइकिया, अपार्थिब-पार्थिब, पृ: 129
  10. डॉ. नगेन शइकिया, अपार्थिब-पार्थिब, पृ: 129
  11. डॉ. नगेन शइकिया, अपार्थिब-पार्थिब, पृ: 129
  12. डॉ. नगेन शइकिया, हेमंतर कालर एटा गधूलि, पृ: 6
  13. डॉ. नगेन शइकिया, अस्तित्वर शिकलि, पृ: 34
  14. डॉ. नगेन शइकिया, अस्तित्वर शिकलि, पृ: 34
  15. डॉ. नगेन शइकिया, अस्तित्वर शिकलि, पृ: 40
  16. डॉ. नगेन शइकिया, आंधारत निजर मुख, पृ:
  17. डॉ. नगेन शइकिया, आंधारत निजर मुख, पृ:
  18. डॉ. नगेन शइकिया, आंधारत निजर मुख, पृ:
  19. डॉ. नगेन शइकिया, आंधारत निजर मुख, पृ: 106-107
  20. डॉ. नगेन शइकिया, आंधारत निजर मुख, पृ: 114
  21. डॉ. नगेन शइकिया, अस्तित्वर शिकलि, पृ:86
  22. डॉ. नगेन शइकिया, जीवन आरु कर्म, हेम बोरा, पृ: 36-37

 

डॉ जोनाली बरुवा
विभागाध्यक्ष एवं एसोसिएट प्रोफेसर, मरिधल महाविद्यालय धेमाजी, असम
jonaliboruah7@gmail.com, 9957835688, 9864108413

  अपनी माटी (ISSN 2322-0724 Apni Maati)  अंक-46, जनवरी-मार्च 2023 UGC Care Listed Issue
सम्पादक-द्वय : माणिक व जितेन्द्र यादव 
चित्रांकन : नैना सोमानी (उदयपुर)

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