शोध आलेख : स्टिंग ऑपरेशन और भारतीय पत्रकारिता : अवधारणा एवं औचित्य / अरविंद कुमार एवं प्रो. गोविंद जी पांण्डेय

स्टिंग ऑपरेशन और भारतीय पत्रकारिता : अवधारणा एवं औचित्य
- अरविंद कुमार एवं प्रो. गोविंद जी पांण्डेय

शोध सार : स्टिंग ऑपरेशन खोजी पत्रकारिता की अभिन्न विधा है जिसमें पत्रकार बिना किसी इजाज़त के जाकर सबूत जुटाता है या उस पूरी घटना को इलेक्ट्रोनिक डिवाइस में कैद करता है। हालाकिं स्टिंग को लेकर कई तरह के नैतिक और क़ानूनी सवाल उठते रहे है फिर भी पत्रकारिता में स्टिंग ऑपरेशन बेहद ही लोकप्रिय विधा है। स्टिंग के माध्यम से समाज में छिपे अनछुए मुद्दों को उजागर किया गया है जो कभी जनमानस में या अन्य मीडिया संस्थानों की पहुँच से बाहर थे। भारत में स्टिंग ऑपरेशन को एक खोजी पत्रकारिता को समर्पित पत्रिका तहलकाने लोकप्रिय किया जिससे आम जन मानस मेंस्टिंग शब्द को ख्याति मिली। स्टिंग ऑपरेशन को लेकर मीडियास्कॉलर और पत्रकारो में कई तरह की धारणाएँ हैं। एक वर्ग इसे नागरिकों की निजता का उल्लंघन मानता है और दूसरा वर्ग इसे पत्रकारिता के लिए अभिन्न जरुरत मानता है। इस शोध पत्र में शोधार्थी ने शोध प्रविधि में सुविधाजनक निदर्शन का इस्तेमाल करके साक्षात्कार अनुसूची पद्धति का इस्तेमाल किया गया है। इसके तहत भारतीय मीडिया द्वारा संचालित स्टिंग ऑपरेशन की तर्कसंगतता के प्रति पत्रकारों की अवधारणा को जानने की पड़ताल की गयी है। स्टिंग ऑपरेशन एक बेहद ही संवेदनशील मुद्दा है, एवं  इस विषय पर बहुत ही कम शोध हुए हैं। अतः इस शोध पत्र से मीडिया संस्थानों,पत्रकारों, मीडिया शैक्षणिक संस्थानों तथा पत्रकारिता के विद्यार्थियों को इस विषय के बारे में जानकारी और वैज्ञानिक समझ मिलेगी।

बीज शब्द : स्टिंग, निजता का अधिकार, प्रेस फ्रीडम, अंडरकवर पत्रकारिता, जर्नलिज्म, मीडिया एथिक्स।

मूल आलेख : अंडरकवर जर्नलिज्म यानी स्टिंग ऑपरेशन के माध्यम से भारत में पिछले कुछ वर्षों में पत्रकारों ने कई ऐसे राज फाश किए हैं जिन्हें बगैर स्टिंग ऑपरेशन के माध्यम से समाज के सामने लाना मुश्किल था। स्टिंग ऑपरेशन वास्तव में किसी व्यक्ति द्वारा गैरक़ानूनी तरीके से सबूत जुटाने की एक प्रक्रिया है जिसमें वह व्यक्ति या पत्रकार उसी गतिविधि में शामिल होकर या सहयोगी बनकर सबूत जुटाता है। हालांकि कानूनी तौर पर स्टिंग करने वाले को अपराध का साझेदार नहीं माना जाता है।

1947-1967 के बीच का समय खोजी पत्रकारिता के इतिहास में काला समय (ब्लैक पीरियड) के रूप में माना जाता है, क्योंकि इस समयकाल में पत्रकारिता एक वॉचडॉग के रूप में काम करके स्टेट को समर्पित थी। टाइम्स ऑफ़ इंडिया, हिंदुस्तान टाइम्स, एइंडियन एक्सप्रेस, स्टेट्समैन और हिन्दू आदि उस समय के पांचों बड़े अख़बार आजादी के बाद से ही सरकार के मुखपत्र की तरह काम कर रहे थे।

“1967 तक इन 21 सालों में आजादी के बाद कुछ खास बदलाव मीडिया में नहीं दिखा और ही खोजी पत्रकारिता के क्षेत्र में अधिकतर अख़बार सपर्पित पत्रकारिता कर रहे थे। उस समय कुछ ही पत्रकार वॉचडॉग के रूप में कम कर रहे थे, उनमे कुछ प्रमुख नाम है जैसे कुलदीप नैय्यर, इन्द्र मल्हौत्रा। कुलदीप नैय्यर द्वारा लिखा गया कॉलमबिटवीन दि लाइन्सजो अद्वितीय था और सूचनाओं से भरा हुआ था जिस कारण वह जनमानस में बहुत ही लोकप्रिय था।”1

लेकिन उस समय भारत का राजनीतिक और सामाजिक परिद्रश्य बदल रहा था। साल 1975, जून के महीनें में भारत में उस समय की तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी द्वारा आपातकाल की घोषणा कर दी गयी। उन्होंने कैबिनेट के सलाह के बिना ही राष्ट्रपति को आपातकाल लगाने की सिफ़ारिश कर दी। अतः आपातकाल के कारण मौलिक अधिकार अनुच्छेद-19 को भी समाप्त कर दिया गया जिसके कारण से प्रेस के अधिकार ख़त्म कर दिए गए। अतः उस समय यह  प्रेस की स्वतंत्रता का गला घोटना जैसे था।”2

देश में आपातकाल लगने के बाद सबसे पहले मीडिया को सरकार के खिलाफ कुछ लिखने को बोला गया। उस समय पत्रकारों, मीडिया संस्थानों को ये बताया गया कि यह सरकार का कदम देश के हित में है।

दुर्भाग्यवश प्रेस जिसे लोकतंत्र का चौथा स्तम्भ कहा जाता था, उस समय उसके सभी अधिकार अधिकार ख़त्म कर दिए गए थे। आपातकाल के कारण उस समय के पत्रकारों में प्रमुख कुलदीप नैय्यर, रामनाथ गोयनका, अरुण शौरी आदि ने प्रेस के सेंसरशिप के विरोध में खूब लिखा और आपातकाल के विरोध में मुखर रहे। उनमें से सबसे बड़ा नाम कुलदीप नैय्यर का था जो प्रेस के मूल्यों के लिए हमेशा खड़े रहे और सरकार के कारनामों के खिलाफ लिखते रहे। परिणामस्वरूप उन्हें पत्रकारिता की आजादी के सवाल पर उन्हें जेल जाना पड़ा। मानहानि विधेयक हो या बिहार प्रेस बिल या पत्रकारिता की आजादी पर कोई और हमला, कुलदीन नैयर ने हमेशा उसका जमकर विरोध किया। मानवाधिकारों के मुद्दे और भारत पाकिस्तान के बीच अच्छे रिश्तों को लेकर वह बेहद मुखर थे। इस पर उनकी कलम भी चलती थी और खुद भी सक्रिय रहते थे। कहा जा सकता है कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का दूसरा नाम था कुलदीप नैय्यर।

कुलदीप नैय्यर ने अनेक खोजी रिपोर्टिंग की जैसे मारुति स्कैंडल, आंतरिक सुरक्षा अधिनियम का रख-रखाव, कैदियों का भाग्य और खुफिया संगठनों और पुलिस की भूमिका। उन्होंने आपातकाल के दौरान उनका पत्रकारिता के लिए साहस और सच जानने की चेष्टा ने अन्य समकालीन पत्रकारों को खोजी पत्रकारिता के लिए एक उत्साहवर्धन का काम किया। आपातकाल को बेहतर तरीके से कुलदीप नैय्यर की 1977 में लिखी गयी किताब जजमेंट से समझा जा सकता है। यह किताब मीडिया जगत में एक मील का पत्थर मानी जाती है।”3

अरुण शौरी को मीडिया के क्षेत्र में आपातकाल का ही प्रॉडक्ट माना जाता है। भारत में खोजी पत्रकारिता के पितामह कहे जाने वाले अरुण शौरी ने खोजी पत्रकारिता में नए आयाम जोड़े और खोजी पत्रकारिता को भारतीय मीडिया के परिदृश्य में लाने का काम किया। अरुण शौरी के द्वारा 1981 में उस समय महाराष्ट्र के तत्कालीन मुख्यमंत्री . आर. अंतुले को एक्सपोज किया जो सीमेंट घोटाले में शामिल थे  और उसी समय 1981 में इंडियन एक्सप्रेस के रिपोर्टर अश्विनी सरीन ने मानव खरीद-फरोख़्त का भंडाफोड़ किया जिसमें उन्होंने कमला नाम की लड़की को दो हजार तीन सौ रुपये में खरीदकर उस पूरे ह्यूमन ट्रैफिकिंग रैकेट का पर्दाफाश किया था।

चित्रा सुब्रमनियम भारत की खोजी पत्रकारिता में सबसे अहम नाम है जिन्होने 1987 मेंबोफोर्स इंडियन होवित्ज़र स्कैमका खुलासा किया था। इस खोजी पत्रकारिता के कारण दो महत्त्वपूर्ण मुद्दे उभर कर सामने आये उनमे से एक थाव्हिसिल ब्लोवरकी भूमिका और दूसरा डॉक्यूमेंट की महत्ता, क्योकि उस समय भारत में तो व्हिसिल ब्लोवर एक्ट था और ही सूचना का अधिकार कानून।”4 बाद में व्हिसिल ब्लोवर एक्ट को  2014 में भारतीय संसद द्वारा पारित करके लागू किया गया तथा सूचना का अधिकार को वर्ष 2005 में लागू किया गया।

स्टिंग ऑपरेशन में तकनीक का इस्तेमाल -

एक रिपोर्टर के लिए खोजी पत्रकारिता में प्रिंट के क्षेत्र में सबसे बडा स्र्तोत पेन और नोटबुक होता है और टेलीविजन रिपोर्टर के लिए कैमरा और वीडियो टेप्स होते है। वर्तमान समय में टेक्नोलॉजी में बढ़ोतरी होने से पत्रकारिता के क्षेत्र में बहुत से अच्छे बदलाव आये है जिससे टेक्नोलॉजी ने खोजी पत्रकारिता के करने के तौर तरीकों को एक नयी दिशा दी है। अंडरकवर रिपोर्टिंग ब्रॉडकास्ट रिपोर्टिंग का एक नया प्रारूप बन गया है। यह बदलाव मिनिएचर ऑडियो और वीडियो टेक्नोलॉजी की बदौलत ही संभव हो पाया जिसके कारण रिपोर्टर को इस  क्षेत्र को कम करने में आसानी हुई है।

विकिलीक्स एक ताजा उदाहरण है जिसने यह साबित किया कि कोई भी देश कितना भी शक्तिशाली क्यों हो, वह भी सुरक्षित नहीं है। पत्रकारिता टेक्नोलॉजी के इस्तेमाल से निजता के कानूनों को लेकर एक नयी बहस शुरू हो गयी है। हालांकि इस मसले पर हमेशा विवाद रहा है कि स्टिंग ऑपरेशन को कानूनी रूप से उचित माना जाए या नहीं। अमेरिका में स्टिंग ऑपरेशन गैर.कानूनी नहीं है। अमेरिका सहित कई देशों में स्टिंग ऑपरेशन की इजाजत है, लेकिन स्वीडन और नीदरलैंड्स सहित कुछ देशों में इसे जालसाजी माना जाता है और यह गैरकानूनी है। स्टिंग ऑपरेशन और जालसाजी के बीच बहुत मामूली अंतर है।

दिल्ली उच्च न्यायालय ने अनुरुद्ध बहल बनाम राज्य केस में स्टिंग पत्रकारिता को भ्रष्टाचार को एक्सपोज करने के लिए सही माना था। कोर्ट द्वारा दिए जजमेंट के कुछ अंश मेरा मानना यह है कि उच्च स्तर तक भ्रष्टाचार को उजागर करने के लिए और राज्य के अधिकारी किस हद तक भ्रष्टाचार में लिप्त है, को पता करने के लिए स्टिंग करने वाले कोई अपराधी नहीं है।”5

तहलका  के स्टिंग के माध्यम से पहली बार भारत में स्टिंग ऑपरेशन और निजता का अधिकार का संघर्ष सामने आया था और उस समय दिल्ली उच्च न्यायालय के निर्णय के परिणामस्वरूप भारत में स्टिंग खोजी पत्रकारिता के एक टूल के रूप में संस्थागत तौर पर मान्य हो गया। 

साल 2001 में तहलका द्वारा किया गया ऑपरेशन वेस्ट एंड भारत के खोजी पत्रकारिता के इतिहास में सबसे बड़ा स्टिंग ऑपरेशन था जो तहलका के दो खोजी पत्रकारों अनुरुद्ध बहल और मैथ्यू सैमुअल के द्वारा किया गया जो आगे चलकर अंडरकवर जर्नलिज्म के पुरोधा बने। ऑपरेशन वेस्ट एंड डिफेंस डील को एक्सपोज करने के लिए किया गया था जिसमें उस समय की तत्कालीन सत्ताधारी राजनीतिक पार्टी के अध्यक्ष और तमाम रक्षा अधिकारियों को घूस लेते हुए ख़ुफ़िया कैमरे में कैद किया गया था। परिणामस्वरुप भारत की राजनीति में एक भूचाल गया था।

इस स्टिंग ऑपरेशन में 105 टेप्स रिकार्ड किए गए थे जिसमे से अधिकतर मैथ्यू सैमुअल के द्वारा रिकार्ड किए गये थे और इस स्टिंग में करीब आठ महीने का समय लगा था। लेकिन दुर्भाग्य की बात यह थी कि यह पूरा तहलका का स्टिंग ऑपरेशन तरुण तेजपाल के नाम से जाना गया।”6 मैथ्यू सैमुअल न्यूज़लांड्री को दिए गए एक इंटरव्यू में बताते है, “मुझे कभी भी सेलिब्रिटी बनने की इच्छा नहीं थी और मेरी कुछ सीमाएँ भी है। मुझसे बहुत से लोग इंटरव्यूज के लिए बोलते है, लेकिन मैं मना कर देता हूँ।इस स्टिंग के लिए सरकारी एजेंसियों के माध्यम से उन्हें प्रताड़ित भी किया, लेकिन सबसे अच्छी बात ये रही कि मैथ्यू सैमुअल ने भारत में खोजी पत्रकारिता का क्षेत्राधिकार बढ़ा दिया।”7

अब इस समय तक बाजार में नए-नए कैमरे चुके थे और खोजी पत्रकारों के लिए स्टिंग किसी भी घटना को एक्सपोज करने में एक बेहतर हथियार बन चूका था। इस समय स्टिंग आपरेशन भारतीय मीडिया संस्थानों खासकर नए मीडिया प्लेटफार्म जैसेतहलकापत्रिका के पत्रकारो में बेहद अहम टूल था। तहलका के द्वारा प्रमुख स्टिंग आपरेशन में मैच फिक्सिंग 2002, ऑपरेशन वेस्ट एंड अपरे, 2021, ट्रुथ गुजरात 2001, मणिपुर फेक इनकाउंटर ,2009, जेसिका लाल मर्डर केस 2006 आदि है।

स्टिंग आपरेशन के द्वारा समाज के छिपे और अनछुए पहलुओं को उजागर किया गया जिस पर किसी कि भी नजर नहीं गयी। इन सभी स्टिंग ऑपरेशन के द्वारा समाज में एक न्याय के लिए एक नयी उम्मीद दिखाई गयी जिसका प्रभाव देश कि राजनीतक, सामाजिक और न्यायिक व्यवस्था पर पड़ा।

भारतीय न्यायालय और स्टिंग ऑपरेशन :

न्यायालय ने कहा प्रेस को अपनी अभिव्यक्ति का मौलिक अधिकार है। समुदाय को जानकारी प्रदान करने का अधिकार है और सरकार का कर्तव्य है कि वह अपने संसाधनों की सीमा के भीतर लोगों को शिक्षित करें।

जस्टिस मैथ्यूज ने यूपी राज्य बनाम राज नारायण के मामले में फैसला सुनाया, इस देश के लोगों को हर सार्वजनिक कार्य को जानने का अधिकार है। वह सब कुछ जो उनके सार्वजनिक पदाधिकारियों द्वारा सार्वजनिक रूप से किया जाता है। उनके जानने का अधिकार अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की अवधारणा से लिया गया है।”8 एसपी गुप्ता बनाम भारत संघमें कोर्ट ने यह कहा कि कोई भी लोकतांत्रिक सरकार जवाबदेही के बिना जीवित नहीं रह सकती है और जवाबदेही का मूल सिद्धांत यह है कि लोगों को सरकार के कामकाज के बारे में जानकारी होनी चाहिए।”9

प्रभा दत्त बनाम भारत संघ में सुप्रीम कोर्ट ने प्रेस द्वारा बंदियों के साक्षात्कार के लिए दावा किए गए, अधिकार को बरकरार रखा जहाँ पर प्रेस द्वारा दावा किया गया अधिकार किसी विशेष विचार या राय को व्यक्त करने का अधिकार नहीं था, बल्कि साक्षात्कार के माध्यम से सूचनाओं को कैदियों से निकालना प्रेस का अधिकार है, नही कि निजता का उल्लंघन।”10

इंडियन एक्सप्रेस समाचार पत्र बॉम्बे प्राइवेट लिमिटेड और अन्य बनाम भारत संघ और अन्य मेंन्यायालय ने इस बात पर जोर दिया कि मानवाधिकारों की प्राप्ति के लिए प्रेस और सूचना की स्वतंत्रता महत्त्वपूर्ण थी। अदालत ने मानवाधिकारों की सार्वभौम घोषणाएँ 1948 के अनुच्छेद 19 को जरुरी बताते हुए यह निर्णय दिया।”11

समय-समय पर हमारी न्यायपालिका ने मौलिक अधिकारअभिव्यक्ति की स्वतन्त्रताकी रक्षा करती आई है। स्टिंग ऑपरेशन को पत्रकारिता का एक बेहद अभिन्न अंग माना है। किसी भी लोकतंत्र में पत्रकार लोकतंत्र का प्रहरी माना गया है

शोध की तार्किकता :

इस अध्ययन को करने के कई कारण हैं, पहला स्टिंग ऑपरेशंस से सम्बंधित साहित्य की बेहद कमी है और इस विषय पर शोध की भी कमी है। अभी तक जो अध्ययन किए गए हैं, वे मुख्य रूप से खोजी तकनीकों या खोजी रिपोर्टिंग पर ध्यान केंद्रित करते हैं।” 12 ( ऑप्ट एंड डेलानेए 2000, विलनैट एंड वीवर 1998 )दूसरा यह अध्ययन महत्त्वपूर्ण सैद्धांतिक योगदान दे सकता है। तीसरा यह अध्ययन पत्रकारिता शिक्षा के लिए मूल्यवान होगा जो इस बात पर प्रकाश डालता है कि कौन सी परिस्थितियाँ पत्रकारों की सबसे अच्छी हो सकती हैं। शोध में मीडिया द्वारा संचालित स्टिंग ऑपरेशन की तार्किकता के प्रति  पत्रकारों  की अवधारणा को समझने का प्रयास किया है। इस प्रकार इस अध्ययन के परिणाम दर्शकों के दृष्टिकोण में  स्टिंग ऑपरेशन के बारे में बेहतर समझ और अकादमिक बहस को समृद्ध करने  में मदद कर सकता है  

शोध उद्देश्य :

1-    इस शोध के माध्यम से स्टिंग ऑपरेशन की तार्किकता को जानने का प्रयास किया है।

2-    इस शोध पत्र के माध्यम से स्टिंग ऑपरेशन के बारे में पत्रकरों की अवधारणा को जानने का प्रयास किया है  

3-    इस शोध पत्र में निजता के अधिकार और राईट टू प्रेस के टकराव को भी समझने का भी प्रयास किया गया है  

शोध प्रविधि :

प्रस्तुत शोध समस्या के निराकरण के लिए समस्या के अनुरूप गुणात्मक पद्धति का इस्तेमाल किया गया है जिसके तहत उद्देश्यपूर्ण सैम्पलिंग का उपयोग किया गया है। इस शोध के लिए शोधार्थी ने उद्देश्यपूर्ण  सैम्पलिंग का इस्तेमाल करते हुए 20 पत्रकारों का सैम्पल साइज़ रखा, लेकिन अंत में उनमें से 10 पत्रकारों की उपलब्धता और अध्ययन की प्रासंगिकता के आधार पर चुना गया। इस शोध पत्र में चुने गए खोजी पत्रकारों का चुनाव उनके पत्रकारीय अनुभव और विषय की समझ के आधार पर किया गया हैं, ताकि शोध की सभी शर्तों को पूरा किया जा सके। अतः शोध की विषयवस्तु के आधार पर हमने उन्ही पत्रकारों को अपने साक्षात्कार के लिए लिया है जिनका पत्रकारिता में 10 साल से ऊपर का अनुभव है। 

अनुसंधान डिजाइन :

इस अध्ययन की अनुसन्धान डिज़ाइन अन्वेषणपरख है। प्रस्तुत शोध में गुणात्मक आंकड़ों का संग्रहण करने के लिए साक्षात्कार अनुसूची का उपयोग किया गया जिसमें खुली प्रश्नावली के द्वारा उतरदाताओं से प्रश्न पूछे गए, ताकि शोध के उद्देश्यों को प्राप्त किया जा सके। इनसे में से 7 साक्षात्कार शोधार्थी ने खुद जाकर लिए है और बाकि के 3 साक्षात्कार शोधार्थी ने वर्चुअल (ज़ूम एप से) माध्यम से किए है। साक्षात्कार अंग्रेजी और हिंदी भाषा में थे। अतः शोधार्थी ने अंग्रेजी के साक्षात्कारों को शब्दशः हिंदी में अनुवादित किया है। शोधार्थी ने इस शोध में प्रतिभागियों (पत्रकारों) के नाम और उनसे जुड़ी जानकारियों को गोपनीय रखा है।

शोध परिणाम और विश्लेषण :

प्रतिभागी 1 के अनुसार, “स्टिंग ऑपरेशन सावधानी से किया जाना चाहिए। यदि आप किसी विधायक से कॉलोनी के गंदे नाले में भ्रष्टाचार के बारे में पूछताछ कर रहे हैं तो आपको हिडन कैमरे की आवश्यकता नहीं है, क्योंकि आप खराब गुणवत्ता वाली सामग्री की टेंडर की प्रति, गवाहों के बयान आदि से भी अपनी खबर की पुष्टि कर सकते हैं। हानिकारक सामग्री फैलाने में राजनीतिक दल और मीडिया के छिपे हुए सांठ-गांठ को उजागर करना जो सार्वजनिक जीवन को नुकसान पहुँचा सकता है, तब  स्टिंग ऑपरेशन करना उचित है , क्योंकि इस तरह की सांठ-गांठ करने वाले कोई भी कागजी निशान नहीं छोड़ते हैं।

प्रतिभागी 2 केअनुसार,स्टिंग ऑपरेशन निजता बनाम व्यापक जनहित का सवाल है, इसको हमें केस दर केस देखना चाहिए। अगर कुछ राजनितिक पार्टियाँ या लोग रक्षा सौदों की खरीद में किसी को रक्षा सौदों का ठेका दिलाने के लिए घूस लेता है तो यह देश की राष्ट्रीय सुरक्षा और अखंडता के लिए गंभीर खतरा है। ऐसे मामलो में इन  लोगो को एक्सपोज किया जाना चाहिए। खोजी पत्रकार ऐसे तत्वों को उजागर करने के लिए बाध्य होते हैं जो राष्ट्रीय सुरक्षा के साथ खिलवाड़ कर रहे हैं। तहलका  ने एक ऐसा ही  स्टिंग 2001 मेंऑपरेशन वेस्ट एंडनाम से किया था। कभी-कभी हमें तय करना पड़ता है कि लार्जर पब्लिक इंटरेस्ट और नेशनल पब्लिक इंटरेस्ट  क्या है।  तहलका द्वारा किए गए स्टिंग ऑपरेशनऑपरेशन वेस्ट एंडमें एक राष्ट्रीय पार्टी के अध्यक्ष को स्टिंग के माध्यम से ही घूस लेते हुए पकड़ा गया था। बाद में दिल्ली उच्च न्यायालय ने उस राजनीतिक दल के अध्यक्ष को दोषी माना तथा देश की सर्वोच्च न्यायालय ने भी दिल्ली उच्च न्यायालय के उस फैसले को ही सही माना। वह आगे बताते है कि निजता के अधिकार और मीडिया के अधिकार के बीच एक बहुत ही महीन लाइन है, इसे मीडिया और न्यायालय को तय करना होगा।

खोजी पत्रकारिता के लिए समर्पित पत्रिका तहलका द्वारा वर्ष 2001 में किया गया, ऑपरेशन वेस्ट एंड भारत का पहला स्टिंग ऑपरेशन थाजो डिफेंस डील को एक्सपोज करने के लिए किया गया था जिसमें तत्कालीन सत्ताधारी राजनितिक पार्टी के अध्यक्ष और तमाम रक्षा अधिकारियों को घूस लेते हुए कैमरे में कैद किया गया था। परिणाम स्वरुप भारत की राजनीती में एक भूचाल गया था।”13

प्रतिभागी 3 के अनुसार, “स्टिंग ऑपरेशन खोजी पत्रकारिता का एक अभिन्न अंग है। वह बताते है कि  2013 में उत्तर प्रदेश के दंगों पर एक स्टिंग ऑपरेशन  किया था जिसके द्वारा यह पता करने का प्रयास किया गया था कि उन दंगों के पीछे किसका हाथ था और उसके कारण क्या थे। लेकिन उस स्टिंग के बाद वहाँ तत्कालीन सरकार के एक मंत्री के द्वारा उन्हें बहुत परेशान किया गया। मेरा मानना है कि आज के इस दौर में जहाँ सरकार से सूचनाएँ निकलना और भ्रष्टाचार में शामिल लोगों से जानकारियों को निकालना बहुत ही मुश्किल हो गया है, अतएव स्टिंग ऑपरेशन के माध्यम से सभी क़ानूनी जानकारियों को संज्ञान में रखते  हुए स्टिंग ऑपरेशन किया जाना चाहिए

प्रतिभागी 4 के अनुसार, “लोकतंत्र में नागरिकों की निजता सबसे महत्त्वपूर्ण होती है। उसके साथ किसी भी प्रकार से समझौता नहीं होना चाहिए। जब तक कि वह मुद्दा बहुत ही जनहित से जुडा हो। जिस चीज का आप स्टिंग कर रहे है और वह जनहित को बहुत ही बड़े स्तर पर नकारात्मक रूप से प्रभावित कर रहा हो, तब ही इसे किया जाना चाहिए। अतः हम कह सकते है कि स्टिंग ऑपरेशन पत्रकारिता का एक अभिन्न अंग है। इसको तब इस्तेमाल में लाना चाहिए, जहाँ कोई भी मुद्दा जनहित से जुडा हो और  एक आम पत्रकार के लिए सूचना के सभी स्त्रोत बंद हो चुके हो

प्रतिभागी 5 बीबीसी हिंदी से जुड़े रहे है और उत्तर प्रदेश में दशकों से पत्रकारिता करते रहे हैं। वे बताते हैं कि स्टिंग ऑपरेशन ने हमारी नागरिक की निजता से कहीं कहीं समझौता किया है और इसे प्रायः सही नहीं माना जाता है। अगर किसी भी खबर को निकालना चाहते है तो स्टिंग का सहारा लिया जाता है। यह नैतिक आधार पर और क़ानूनी आधार पर भी सही नही होता है इसलिए जो स्टिंग ऑपरेशन करते हैं तो वह बहुत संभाल कर करते हैं। अगर जरा भी कोई गड़बड़ी हुई तो कोई भी व्यक्ति मानहानि का दावा कर सकता है और जब मानहानि का दावा करते है तो बहुत सारे क़ानूनी मामले आते है। लेकिन होता क्या है, जब आप स्टिंग ऑपरेशन के माध्यम से जनहित से जुडी कोई ऐसे ख़बर निकाल कर रख देते है तो और सारी बातें गौण हो जाती है और जो आप परिणाम निकाल कर लाते हैं, वह प्रमुख हो जाता है। नैतिकता तथा क़ानूनी आधार पर ये सही नहीं माना जाता है और यह निजता का तो उल्लंघन है ही। यहाँ किसी को बता कर तो यह किया नहीं जाता है। इसलिए इसे भरोसे का भी उल्लंघन माना जाता है।

परन्तु  कुछ अच्छा करने के लिए कुछ बुरा भी करना पड़ता है। दर्शन में  कहा जाता है किसाध्य की पवित्रता और साधन की पवित्रतायानि अगर आपका साध्य पवित्र है तो साधन में कोई गड़बड़ी हो तो वह मान्य हो जाता है और यहाँ साध्य की पवित्रता मायने रखती है।

मेरा मानना है कि आप बहुत अच्छे काम को अंजाम दे रहे है तो ये उतनी भी ख़राब विधा नहीं है  कि आप इसे बहुत सारे मानदंडो पर इसे गलत ठहराएँगे, लेकिन अच्छे काम के लिए कुछ गलत चीजों की उपेक्षा की जा सकती है।

प्रतिभागी 6 के अनुसार, मानते है कि स्टिंग ऑपरेशन तभी करते है जब बेहद ही जरुरी हो, लेकिन क्या होता है कि मान लीजिए कि आपका किसी के साथ बहुत अच्छे सम्बन्ध हैं। राजनेताओं से अधिकारयों से या अन्य लोगों से जो आप पर भरोसा करते है, धोखा नहीं करना चाहिए किसी के विश्वास के साथ। लेकिन स्टिंग करने चाहिए। जैसे गाँव के चुनावों में वोटिंग के बदले घूस लेते है तो लोगों को पता तो चला अस्पतालों में कैसे घूस ली जाती है या फिल्मों में कैसे लड़कियां कैसे कॉस्टिंग काउच का शिकार होती है तो उनके स्टिंग होने से लोगों को पता तो चला ... स्टिंग करते समय यह ध्यान रखना चाहिए कि स्टिंग की विश्वसनीयता बनी रहनी चाहिए। पत्रकारिता के सिद्धांतों  का पालन करना चाहिए।

प्रतिभागी 7 जो कि इंडियन एक्सप्रेस से जुड़ी रही है, मैं नहीं  मानती हूँ कि स्टिंग नहीं किए जाने चाहिए। एस्टिंग का अपना एक अलग मोडस अपरेंडी होता है। यह ठीक वैसे है कि जैसे पुलिस  करती है। लेकिन अगर में अपनी बात करूं तो मैं इसमें फिट नहीं हूँ। मैं स्टिंग नहीं कर सकती हूँ या यह मेरे  पत्रकारिता करने के तरीकों में शामिल नहीं है। मैं रिपोर्टिंग के दोनों पक्षों के जनता के सामने रखूंगी और जनता ही इसे तय करेगी कि क्या सही है और क्या गलत। स्टिंग ऑपरेशन पत्रकारिता का एक बेहद ही अभिन्न हिस्सा है जिससे जनता को जागरूक करने के लिया जाता है, लेकिन हाँ, नागरिकों की निजता का उलंघन भी होता है। मुझे नहीं लगता है कि यह गलत है, लेकिन बहुत ही जरुरी है तो ही इसे बहुत ही सावधानी से किया जाना चाहिए। स्टिंग को हमें पत्रकारिता के उसूलों को ध्यान में रख कर ही किया जाना चाहिए।

प्रतिभागी 8 जो कि खोजी पत्रकारिता से जुड़े हैं बताते हैं कि स्टिंग ऑपरेशन खोजी पत्रकारिता के लिए सबसे उपयुक्त टूल है जिसके द्वारा हमने बहुत सारे एक्सपोज किए है जिन्हें मेनस्ट्रीम मीडिया भी नहीं कर पाई। टेक्नोलॉजी और इन्टरनेट के आने के बाद से स्टिंग करना और भी आसान हो गया है, जैसे माइक्रो कैमरें, स्मार्टफोन के माध्यम से आजकल बहुत से स्टिंग हो रहे हैं। वे आगे बताते हैं कि स्टिंग ऑपरेशन के माध्यम से जिन्हें न्याय नहीं मिला पाया, उन्हें दिलाने के लिए किए गये स्टिंग मीडिया में केस स्टडी होते है। आज वर्तमान दौर में पत्रकारिता के उसूलों में कमी आई है, जहाँ व्यक्तिगत हित बड़े अहम् हो गए हैं। जिस कारण स्टिंग ऑपरेशन किसी व्यक्ति या संस्थान की इज्जत को ख़राब करने के लिए भी इस्तेमाल किए गए हैं ऐसे स्टिंग ऑपरेशन  मीडिया के प्रति  नकारात्मकता बढ़ाने का काम  करते हैं।

प्रतिभागी 9 जो कि एक वरिष्ठ पत्रकार है, आपके अनुसार, ब्रॉड कास्ट मीडिया में स्टिंग की बात करे तो यहाँ पर जब किसी भी प्रकार के स्टिंग करने की बात आती है तो हमारे संस्थान में एक बेहद जटिल प्रकिया होती है। एडिटोरियल बोर्ड के निर्णय के बाद ही निर्णय लिया जाता है कि स्टिंग करना है या नहीं या इसे ब्रॉडकास्ट करना है या नहीं, क्योकि बड़े संस्थानों की अपनी एक विश्वसनीयता और साख होती है, इसलिए यहाँ बहुत ही कम स्टिंग को करने के लिए बोला जाता है।

जहाँ तक स्टिंग की बात है तो मेरे अनुसार स्टिंग के दो पहलू है, एक तो सकारात्मक पहलू जिसमें आप किसी भी जनहित के मुद्दे को जनता के सामने उसे लाते है जिससे समाज और जनता का भला होता है और दूसरा पहलू यह है कि बहुत सारे स्टिंग ऑपरेशन अभिप्रेरित होते है जिससे किसी की साख मिट्टी में मिला दी जाती है। अतएव स्टिंग ऑपरेशन  बेहद ही जरुरी परिस्थितिओं में ही किए जाने चाहिए।

प्रतिभागी 10 जो कि एक वरिष्ठ पत्रकार है, मैं स्टिंग ऑपरेशन  के खिलाफ हूँ। आप किसी के साथ  विश्वासघात करके सूचनाएँ निकालते है या उसका स्टिंग करते है तो यह उसकी निजता के अधिकारों का उल्लंघन है। रिपोर्टिंग करने के और भी बहुर सारे तरीके है। उनके माध्यम से भी उनको एक्सपोज किया जा सकता है। प्रिंट में हमने दस्तावेजों के माध्यम से तमाम ऐसे रिपोर्टिंग की है जो जनता के सरोकारों से जुड़ी हुई थी। नागरिक की निजता सर्वोपरि है। उसका यह मौलिक अधिकार है जो उसे भारत का संविधान देता है। उसकी निजता का उल्लंघन नही किया जाना चाहिए।” 

निष्कर्ष : उपर्युक्त विश्लेषण से यह निष्कर्ष निकल कर सामने आए हैं कि मीडिया द्वारा किए गए स्टिंग ऑपरेशन की तार्किकता के प्रति पत्रकारों की अवधारणा बहुत ही संतुलित है। अधिकतर विशेषज्ञ यह मानते है कि स्टिंग किए जाने चाहिए, लेकिन तब किए जाने चाहिए जब बहुत जरूरी हो। क्योंकि कभी-कभी आपको कोई भी सुराग नहीं मिलता है। अतः कुछ अच्छा करने के लिए कुछ चीजों के साथ समझौता करना पड़ता है, लेकिन जहाँ तक हो इसका इस्तेमाल कम ही किया जाना चाहिए। आज की पत्रकारिता सिर्फ प्रेस ब्रीफिंग और सरकार की हाँ में हाँ मिलाने तक सीमित रह गयी है। समाज के जरुरी मुद्दे मीडिया की टाइमलाइन से लगभग गायब ही हो चुके हैं। जनसरोकार की पत्रकारिता में जहाँ पर जरुरी मुद्दों की बात होनी चाहिए, वह नहीं होती है। इससे वर्तमान में मीडिया की साख और विश्वसनीयता में कमी आई है।

समय-समय पर होने वाले स्टिंग ऑपरेशन के माध्यम से होने वाली खोजी पत्रकारिता समाज में होने वाले भ्रष्टाचार को उजागर करती है जिससे लोगों का भरोसा मीडिया पर बढ़ता है। आज ऐसी पत्रकारिता गाहे-बगाहे ही देखने को मिलती है। स्टिंग ऑपरेशन बहुत ही चुनौतीपूर्ण और एक साहसिक कार्य है जिसमें जानमाल और तमाम खतरे है। अगर इसको करने में जरा भी लापरवाही हुई तो परिणाम बहुत ही बुरे होते है। सच्चे पत्रकारों को मानहानि का मुकदमा, क़ानूनी फर्जी मुक़दमें, पुलिस की प्रताड़ना, ऑनलाइन उत्पीड़न और जेल जाना जैसी तमाम तरह की चुनौतियों का समाना करना पड रहा है।

फलस्वरूप पत्रकारों के लिए उपयुक्त माहौल मिलना चाहिए जिससे वह बिना किसी भय के अपना पत्रकारिता के प्रति दायित्व निभा पाए और साथ हीव्हिसिल ब्लोवर एक्टको मजबूती के साथ लागू  किया जाए जिससेव्हिसिल ब्लोवरको सुरक्षा मिले तथा सूचना देने वालों को कोई भी दिक्कत हो। स्टिंग ऑपरेशन  हमें  यह बात याद दिलाते  है कि खोजी पत्रकारिता को अभी लम्बा रास्ता तय करना है। जनता को सच दिखाने वाले पत्रकार तब भी सत्ताधीशों और आपराधिक प्रवृत्ति के लोगों के निशाने पर थे और अब भी हैं, लेकिन पत्रकारिता की गरिमा को बनाये रखना परम् आवश्यक तथा इस पेशे का धर्म है।

सन्दर्भ :
1-    RajinderPuri, A Crisis of Conscience. Orient Paperbacks,New Delhi,1971
2-    कुलदीपनैय्यर, बियॉन्ड लाइन्स: एन ऑटोबायोग्राफी,रोली बुक्स,नई दिल्ली, 2012
3-    आलोक मेहता,अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का दूसरा नाम था कुलदीप नैय्यर अमर उजाला, 23अगस्त, 2018,https://www.amarujala.com/india-news/the-second-name-of-freedom-of-expression-was-kuldeep-nayyar
4-    चित्रा सुब्रमण्यम,बोफोर्सरू खबरों के पीछे की कहानी,वाइकिंग पब्लिशर्स,नई दिल्ली,1993
5-    सम्यक जैन, Legality of private sting operation in India, Law Insider,13सितम्बर 2021,https://www.legalserviceindia.com/article/l166-Sting-Operation.html
6-    MadhuTrehan, Tehelka as Metaphor. New Delhi: Roli Books,2005
7-    A Sekhari,Newslaundry,NL interview with Mathew Samuel [video],YouTube,8 June 2012, https://www.newslaundry.com/2012/06/08/nl-interviews-mathew-samuel
8-    Mahima Sharma, Is sting operation legal method in law enforcement India,Pleaders.in,16 oct 2020 ttps://blog.ipleaders.in/sting-operation-legal-method-law-enforcement-india/
9-    Ibid.
10- Mahima Sharma, Is sting operation legal method in law enforcement India,Pleaders.in,16 oct 2020 ttps://blog.ipleaders.in/sting-operation-legal-method-law-enforcement-india/
11- Ibid.
12- S. K Opt,.,&T. A.  Delaney, Investigative reporting: Reconsidering the public view. Atlantic Journal of Communication, 9(1),2001,pg. 76-87
13- CharanjitAhuja,Investigative journalism reclaimed, Tehelka,31July 2020
tehelka.com/investigative-journalism-reclaimed/
14- मनोरमासिंह, स्टिंग ऑपरेशन, सचिन प्रिंटर्स, नई दिल्ली, 2007
15- अरुण शोरी,फासीवाद के लक्षण, विकास पब्लिशिंग हाउस प्राइवेट लिमिटेड,नई दिल्ली, 1978
16- मार्क टली, भारत धीमी गति में, पेंगुइन बुक्स, ग्रेट ब्रिटेन2002
17- कुलदीप नैय्यर, जजमेंट इनसाइड स्टोरी ऑफ इमरजेंसी इन इंडिया,विकास पब्लिशिंग हाउस प्राइवेट लिमिटेड, नई दिल्ली, 1977
18- निर्मला लक्ष्मण (संपा),राइटिंग नेशनएन एँथोलॉजी ऑफ इंडियन जर्नलिज्म, रूपा एंड कंपनी,नई दिल्ली, 2007
19- जनार्दन ठाकुर,सभी प्रधान मंत्री के आदमी,विकास पब्लिशिंग हाउस प्राइवेट लिमिटेड, नई दिल्ली,1977
Website and YouTube –
1.    भाषा,एजेंसी, स्टिंग ऑपरेशन समाज का महत्त्वपूर्ण हिस्सा है : उच्च न्यायालय,नवभारत टाइम्स, 6मई, 2019
https://navbharattimes.indiatimes.com/india/sting-operations-are-a-key-part-of-the-society-/articleshow/69204836.cms
 
2.    YogendraAldak, Sting Operation :To be or not be in India, legal service in India
https://www.legalserviceindia.com/article/l166-Sting-Operation.html
3.    RohinDubey, Are private sting operation legal in India,Bar and Bench,  21may2022
https://www.barandbench.com/columns/are-private-sting-operations-legal
4.    SiddharthNegi ,Investigative Journalism in India: Case studies of prominent Journalistshttps://www.alliance.edu.in/ijls/ijls-2017/assets/documents/Investigative-Journalism-in-India.pdf
 

 

अरविंद कुमार,
शोधार्थी, पत्रकारिता एवं जनसंचार विभाग, बाबा साहेब भीमराव अम्बेडकर केंद्रीय विश्वविद्यालय, लखनऊ
arvindbbau2@gmail.com
 
प्रो0 गोविंद जी पांण्डेय,
पत्रकारिता एवं जनसंचार विभाग, बाबा साहेब भीमराव अम्बेडकर केंद्रीय विश्वविद्यालय, लखनऊ
govindbbau@gmail.com, 9580803904

अपनी माटी (ISSN 2322-0724 Apni Maati)  अंक-46, जनवरी-मार्च 2023 UGC Care Listed Issue
सम्पादक-द्वय : माणिक व जितेन्द्र यादव 
चित्रांकन : नैना सोमानी (उदयपुर)

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