शोध आलेख : ‘तुलनात्मक साहित्य’ संवर्धन का आधार: अनुवाद / हरीश कुमार सेठी

तुलनात्मक साहित्यसंवर्धन का आधार: अनुवाद
- हरीश कुमार सेठी

आज के युग में अनुवाद मानव जीवन की अनिवार्यता का रूप धारण कर चुका है। विभिन्न भाषाओं औरभाषाभाषियों के बीच संपर्क सेतु का निर्माण अनुवाद से ही संभव होता है। जीवन व्यवहार के प्रत्येक क्षेत्र और स्तर पर अनुवाद की उपस्थिति को किसी भी प्रकार से नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। क्षेत्रीय, राष्ट्रीय एवं भावात्मक स्तर पर ऐक्य-भाव के पल्लवन में अपनी की सार्थक भूमिका सर्वस्वीकार्य है। वैश्विक समाज-संस्कृति से परिचय और अपनी सांस्कृतिक अस्मिता से साक्षात और समृद्धि में अनुवाद की व्याप्ति आधार का काम करती है। साहित्यिक परिदृश्य में देखा जाए तो देश-विदेश की भाषाओं की महान साहित्यिक रचनाओं को अपनी भाषा में लाने में अनुवाद प्रभावी माध्यम का काम करता है।भारतीय साहित्यकी एकता का उद्घाटन-रेखांकन करना हो या फिरविश्व साहित्यकी अवधारणा को मूर्त रूप प्रदान करना, अनुवाद ही निमित्त सिद्ध होता है और अपनी रचनात्मक भूमिका निभाता है। वहीं, तुलनात्मक साहित्य के अध्ययन की संस्कृति के संवर्धन का आधार भी अनुवाद ही है।

तुलनात्मक साहित्य’: अर्थ और स्वरूप -

अपने परिवेश-जगत में रूपाएमान कीतुलनाकरना मनुष्य की सहज प्रवृत्ति है। प्रकृति का नियम है कि कोई भी दो व्यक्ति-वस्तुएँ आदि एक जैसी नहीं हो सकतीं। दूसरी ओर, किन्हीं दो व्यक्तियों या वस्तुओं आदि में इतनी अधिक भिन्नता भी नहीं होती कि उनमें समानता के बिंदु तलाश ही किए जा सकें। इसलिए उनमें परस्पर तुलना करते हुए किसी एक को दूसरे की तुलना में श्रेष्ठ सिद्ध करना और अंततः उसका अनुकरण करना मानवीय प्रकृति की सहज प्रवृत्ति है। इसके आधार पर विषय संबंधी समस्त अंगों-प्रत्यंगों को देखा-परखा जाता है। तुलना, विकसित मस्तिष्क की वह ज्ञान-यात्रा है, जो किसी विषय से संबंधित संपूर्ण और समग्र ज्ञान को प्राप्त करने की पिपासा को पूरा करती है। तुलना वह सशक्त और प्रभावी माध्यम है जिससे विषय-वस्तु से संबंधित नई विशेषताएँ, नए आयामों का बोध संभव हो पाता है, जबकि वह सामान्य अध्ययन के दौरान अप्रकटित रह जाता है। तुलना के अभाव में ज्ञान की परिपुष्टि एवं समृद्धि संभव नहीं हो पाती है। मैक्समूलर ने सही ही कहा है कि सभी उच्चतर ज्ञान की प्राप्ति तुलना पर ही आधारित है। -

“All higher knowledge is gained by comparison and rests on comparison.”

किसी भी प्राणी अथवा वस्तु आदि की एक-दूसरे से तुलना करने की भाँति साहित्य में भी तुलना की जाती है। देश-विदेश की विविध भाषाओं में रचित साहित्यों की परस्पर तुलना करके भाषाओं में व्याप्त विषमता एवं अभेदता-एकरूपता के तत्वों का यथार्थ रूप में निरूपण करके उनका उपयुक्त अभिज्ञान अथवा रसास्वादन संभव हो पाता है, रागात्मक संबंध स्थापित होता है। इससे भाषा-समाज की सांस्कृतिक, साहित्यिक एवं भावात्मक एकता का उद्घाटन एवं स्पष्टीकरण हो जाता है। साहित्य के तुलनात्मक अध्ययन से ज्ञान-विज्ञान, साहित्य, कला आदि अनेकानेक क्षेत्रों का अनुवेक्षण एवं मूल्यांकन किया जाता है। इस प्रकार, तुलनात्मक अध्ययन के माध्यम से भाषा, साहित्य और ज्ञान भंडार के बीच पारस्परिक आदान-प्रदान संभव हो पाता है और उसमें व्यापकता भी आती है।

तुलनात्मक साहित्यके अर्थ और स्वरूप विचार करें तो कहा जा सकता है कि दो शब्दों के मिलकर प्रयुक्त होने वाला यह शब्द एक व्यापक अवधारणा और असीम व्याप्ति की ओर संकेत करता है। लेकिन, ये दोनों ही शब्द अपने अर्थ को स्पष्ट करने की अपेक्षा करते हैं। इनमें से पहला शब्दतुलनात्मकवास्तव मेंतुलना करने योग्यका द्योतक है अर्थात यहतुलनापर आधारित है। डाॅ. हरदेव बाहरी नेतुलनाशब्द को अनेक नामों से दर्शाया है - “तुलना का अर्थ समता, मापित होना, तौल में समान होना, सधकर स्थित होना, सधना, सन्नद्ध या उतारू होना, सादृश्य, बराबरी, मिलान, उपमा, उठाना आदि। इसी परिदृश्य में तुलनात्मक शब्द का अर्थ कई वस्तुओं के गुणों की समानता और असमानता दिखाने वाला”(जैसे तुलनात्मक अध्ययन) आदि। किंतु यह शब्द तक अधूरा है, जब तक कि उसके साथ कोई शब्द जुड़ जाए। जैसे, ‘तुलनात्मक साहित्य’, ‘तुलनात्मक अध्ययन’, ‘तुलनात्मक राजनीति’, ‘तुलनात्मक शिक्षाऔरतुलनात्मक समीक्षाआदि। इस दृष्टि सेतुलनात्मकऔरसाहित्य’, ये दोनों शब्द एक-दूसरे के परिपूरक कहे जा सकते हैं और एक विशिष्ट अर्थ में प्रयुक्त होते हैं।

हिन्दी कातुलनात्मकशब्द अंग्रेजी के ‘Compare’ क्रिया शब्द से विकसित ‘Comparative’ विशेषण शब्द के प्रतिशब्द के रूप में प्रयुक्त होता है। ‘Comparative’ की व्याख्या शब्दकोश में इस प्रकार है - “Compare to bring together or side by side in order to note points of difference and more especially likeness to note and express the resemblance between”.आक्सफोर्ड डिक्शनरी मेंतुलनाशब्द को विश्लेषित करते हुए यह लिखा मिलता है कि तुलना किन्हीं दो वस्तुओं में अर्थ समान गुणों एवं अंतरों का उद्घाटन या प्रस्तुतीकरण, अथवा इन्हीं विशेषताओं का संयोजन है। तुलना कभी-कभी आरंभ में संभावनापूर्ण लग सकती है, परंतु अंततः  इसमें कुछ भी सिद्ध हो सके यह भी होता है- “To compare, to match, to represent, as similar, to mark the differences of, to bringing together for the purpose of nothing these-comparison-comparable condition or character the action or an act of nothing similarities and differences-comparisons may sometimes illustrate but prove nothing”.

अब हम ‘literature’ शब्द पर विचार करते हैं। हिन्दी में इसके लिएसाहित्यशब्द प्रयुक्त किया जाता है। प्राचीन भारतीय साहित्य अर्थात संस्कृत काव्यशास्त्र के संदर्भ में कहा जाए तो स्थिति यह रही है कि वहाँसाहित्यके अर्थ मेंकाव्यशब्द का प्रयोग किया जाता रहा है। सर्वप्रथम सातवीं शताब्दी में भर्तृहरि नेकाव्यके अर्थ मेंसाहित्यशब्द का प्रयोग किया था। 9वीं शताब्दी में राजशेखर नेसाहित्यशब्द का प्रयोगविद्या’ (knowledge) के लिए किया था। इस तरह, ‘साहित्यशब्द का सीमित और व्यापक अर्थ-संदर्भ में प्रयोग किया जाता है; किसी ज्ञान की शाखा विशेष या रचनात्मक स्वरूप (कहानी, उपन्यास, कविता आदि विधा-विशेष) के लेखन से संबंधित है। वैसे, आज आम तौर पर जन-सामान्यसाहित्यशब्द कोशक्ति के साहित्यअर्थात्सृजनात्मक साहित्यके संदर्भ में ही व्यवहार में लाता है।

संस्कृत काव्यशास्त्र से आए इससाहित्यशब्द का अर्थ है - शब्द और अर्थ कासहित भावअर्थात जिसमें हित का भाव हो, वह साहित्य है। साहित्य में शब्द और अर्थ के यथावत् सहभाव अर्थात्साथ होनेकी जो विशिष्टता है, उससे साहित्यिक सौंदर्य की उत्पत्ति होती है। यहाँ सिर्फ शब्द और अर्थ की अविभाज्यता या अभेदत्व ही नहीं है, बल्कि उनकी अविच्छिन्नता का भी संकेत है। साहित्यकार अपने मनोगत भावों को व्यक्त करने के लिए भाषा में प्रयुक्त शब्द और उसमें निहित अर्थ को स्वर प्रदान करने के लिए उसे सृजनात्मक व्यवहार में लाते हैं। लेकिन, शब्दों के व्यवहार का पैटर्न सभी साहित्यकारों के साहित्य या फिर सभी भाषाओं के साहित्य में एकसमान नहीं होता है। पैटर्न के अलग-अलग होने से रचित साहित्य के साहित्यिक पैटर्न में विविधता आती है, जो प्रत्येक साहित्यकार की अपनी साहित्यिक विशिष्टता की द्योतक बन जाती है। इस विशिष्टता के बोध के लिए अन्य भाषाओं का ज्ञान जरूरी होता है। अन्य भाषा-संस्कृतियों का ज्ञान, तुलनात्मक दृष्टि का उन्मेष का आधार सिद्ध होता है।

यहाँ अंग्रेजी के ‘literature’ शब्द पर भी विचार करना जरूरी है। साहित्य, किसी भी विधा-विशेष में रचित साहित्यकार की सृजनशील अभिव्यक्ति होती है। तुलनात्मक अध्येताओं का मानना है कि ‘Comparative literature’ फ्रांस में 1816 में प्रकाशित संग्रह  ‘Cours de literature comparee’ से लिया गया है। फ्रांस में ‘literature’ का अर्थ है - ‘साहित्यिक अध्ययन इस प्रकार ‘Comparative literature’ का अर्थ है - विभिन्न विधाओं में रचित साहित्यों का परस्पर तुलना करते हुए अध्ययन।वस्तुतः ‘literature’ शब्द के फ्रांसीसी अर्थ के आधार पर अंग्रेजी में ‘Comparative Study’ शब्द प्रयुक्त किया जाना अपेक्षित था। किंतु, इसके स्थान ‘Comparative literature’ शब्द प्रयुक्त किया गया। समय के साथ-साथ अब यह भूल इतनी अधिक प्रचलित हो गई कि इस पक्ष पर चर्चा-परिचर्चा या वाद-विवाद तो हो सकता है, लेकिन स्थायी रूप से बदल पाना असंभव है। शब्दों के अर्थों की मीमांसा करने वाले ऐसी स्थिति को अर्थ-दोष बतलाकर पुनःप्रचलित अर्थ को ही स्वीकार करते हैं। इसलिए ‘Comparative literature’ शब्द ही अधिक व्यवहार्य बन चुका है। अंग्रेजी के कवि मैथ्यू अर्नाल्ड ने सन 1848 में अपने एक पत्र में सबसे पहलेकम्पैरेटिव लिटरेचरपद का प्रयोग किया था।

तुलनात्मक साहित्यबनामतुलनात्मक समीक्षा’ (Comparative Review) -

तुलनात्मक साहित्यके संदर्भ में विचारणीय पक्ष यह भी है कि क्या यहतुलनात्मक समीक्षातो नहीं। साहित्य-समीक्षा के अंतर्गत किसी कृति के कलात्मक उत्कर्ष की खोज एवं रसात्मक बोध का प्रयास करने का भाव अंतर्निहित है। जब एक ही भाषा की परिधि के भीतर दो या या दो से अधिक साहित्यकारों, समान-असमान विधाओं या प्रवृत्तियों का तुलनात्मक विवेचन, तुलनात्मक साहित्य होकरतुलनात्मक समीक्षाहै। मीरा और महादेवी वर्मा की विरह भावना अथवा गीतिकाव्य; उर्दू में मीर और गालिब की संरचना का तुलनात्मक विवेचन वस्तुतःतुलनात्मक समीक्षाहै। स्पष्ट है कि यह किसी रचना का उस परंपरा की पूर्ववर्ती रचनाओं के संदर्भ में तुलनात्मक दृष्टि से किया जाना महत्त्वपूर्ण होता है।तुलनात्मक समीक्षाके मूल में निहित इस भावना के बारे में टी.एस. एलियट का विचार ध्यान देने योग्य है किकोई कवि, किसी कला का कोई कलाकार अकेले अपनी पूरी अर्थवत्ता सिद्ध नहीं कर पाता। उसकी महत्ता, उसका विवेचन मृत कवियों एवं कलाकारों के साथ उसके संबंध का विवेचन है। उस अकेले (कलाकार) का मूल्यांकन आप नहीं कर सकते - तुलना और वैषम्य के लिए आपको उसे भी मृतों (पूर्व कलाकारों) के साथ रखना होगा। इसे मैं केवल ऐतिहासिक वरन् सौंदर्यशास्त्रीय समीक्षा का सिद्धांत भी मानता हूँ। उसकी सुसंगति (सुसंबद्धता) की आवश्यकता एकपक्षीय नहीं हो सकती। नई कलाकृति के सृजन पर जो घटित होता है वह पूर्ववर्ती कृतियों पर भी युगपत् घटित होता है - “No poet, no artist of any art has his complete meaning alone. His significance, his appreciation is the appreciation of his relation to the dead poets and artists. You can not value him alone; you must set him, for contrast and comparison, among the dead. I mean this as a principle of aesthetic not merely historical criticism. This necessity, that he shall, cohere, is not one-sided; what happens when a new work of art is created is something that happens simultaneously to all the works of art which preceded it”.

स्पष्ट है कि तुलनात्मक समीक्षा यह अवधारणा उद्घाटित करती है कि किसी भी नई रचना के सृजन पर जो घटित होता है वह उसी भाषा-विशेष की पूर्ववर्ती कृतियों पर भी घटित होता है। किसी एक भाषा विशेष से संबंधित होने के कारण उसेतुलनात्मक समीक्षाकी परिधि में लिया जा सकता है, लेकिन वहतुलनात्मक साहित्यनहीं है। इस संदर्भ में डाॅ. नगेंद्र के ये विचार विशेष तौर पर ध्यान देने योग्य हैं किकिसी एक भाषा की समान-असमान प्रवृत्तियों का विवेचनतुलनात्मक समीक्षाका एक रूप हो सकता है, किंतुतुलनात्मक साहित्यनहीं कहा जा सकता   

तुलनात्मक साहित्यबनामतुलनात्मक अध्ययन’: शब्द-प्रयोग के परिपाश्र्व में -

तुलनात्मक साहित्यका संबंध साहित्य के तुलनात्मक अध्ययन से है। यह साहित्य के अध्ययन की वह पद्धति है जिसका आधार तुलना है। इसलिएतुलनात्मक साहित्यकोई स्वायत्त सर्जनात्मक विधा नहीं है, बल्कि विभिन्न साहित्यों की पारस्परिक तुलना करने की विशेष दृष्टि है। इस कारण कतिपय विद्वानतुलनात्मक साहित्यके स्थान परतुलनात्मक अध्ययनशब्द को प्रयुक्त करना उपयुक्त मानते हैं। इसके अलावा, कतिपय विद्वानों ने अन्य शब्दों का भी प्रयोग किया है। जैसे, बोसवेल ने इसेतुलनात्मक व्युत्पत्तिनाम दिया तो जर्मनी के फ्लेचर नेसाहित्य का तुलनात्मक विज्ञानशब्द को प्रयुक्त किया। वहीं, पासनेस और प्रो. लेन कूपर नेतुलनात्मक साहित्यशब्द को ही स्थायित्व प्रदान किया। वैसे, परवर्ती विद्वानों ने अपने इस संवाद को मुख्यतःतुलनात्मक साहित्यऔरतुलनात्मक अध्ययनपर ज्यादा फोकस किया है।

तुलनात्मक साहित्यशब्द प्रयोग में भ्राँति भी है। डाॅ. इंद्रनाथ चौधरी ने इस प्रश्न पर विचार करते हुए लिखा है - “तुलनात्मक साहित्य अंग्रेजी केकम्पैरेटिव लिटरेचरका हिन्दी अनुवाद है। एक स्वतंत्र विद्याशाखा के रूप में विदेश के विभिन्न विश्वविद्यालयों में इसके अध्ययन-अध्यापन के कार्य को आजकल विशेष महत्त्व दिया जा रहा है। अंग्रेजी के कवि मैथ्यू अर्नाल्ड ने सन 1848 में अपने एक पत्र में सबसे पहलेकम्पैरेटिव लिटरेचरपद का प्रयोग किया था (मैथ्यू अर्नाल्ड के पत्र 1895, 1, 9 सं.जी.डब्ल्यू.. रसल) परंतु प्रारंभ में ही इसके शाब्दिक अर्थ को लेकर विवाद रहा, क्योंकि साहित्य यदि कहानीकार, कवि आदि की सृजनशील कलात्मक अभिव्यक्ति है तो वह किसी तरह भी तुलनात्मक नहीं हो सकता। हमने आज तक ऐसा कोई कवि नहीं देखा जो तुलनात्मक कविता, कहानी या उपन्यास लिखता हो। साहित्य की प्रत्येक कृति अपने आपमें पूर्ण होती है और साहित्य सृष्टि में कहीं दूसरे साहित्य के साथ तुलना की जरूरत नहीं होती।तुलनात्मकशब्द साहित्य सृष्टि के संदर्भ में प्रयोग में नहीं लाया जा सकता

स्पष्ट है कि तुलनात्मक साहित्य कोई स्वायत्त सर्जनात्मक विधा होकर एक या विभिन्न भाषाओं में रचित साहित्य के अध्ययन की एक विशेष दृष्टि मात्र है, अध्ययन की पद्धति है। किंतु, अपनी इस स्वीकृति के बावजूद डाॅ.चौधरीतुलनात्मक साहित्यशब्द का ही चयन करते हैं। इसीलिए उन्होंने अपनी पुस्तक का नामतुलनात्मक साहित्य की भूमिकारखा है और इसे परिभाषित करते हुए कहा है - “भारत जैसे बहुभाषी देश की स्थिति को ध्यान में रखते हुए तुलनात्मक साहित्य की परिभाषा मात्र यही हो सकती है कि तुलनात्मक साहित्य विभिन्न साहित्यों का तुलनात्मक अध्ययन है तथा साहित्य के साथ प्रतीति एवं ज्ञान के दूसरे क्षेत्रों का भी तुलनात्मक अध्ययन है।

डाॅ. नगेंद्र भीतुलनात्मक साहित्यपद का प्रयोग करते हुए उसे तुलनात्मक अध्ययन का वाचक पद मानते हैं। वे लिखते हैं - “तुलनात्मक साहित्य जैसा कि उसके नाम से स्पष्ट है, साहित्य का तुलनात्मक दृष्टि से अध्ययन प्रस्तुत करता है। यह नामपद वास्तव में एक प्रकार का न्यून पदीय प्रयोग है और साहित्य केतुलनात्मक अध्ययनका वाचक है

वहीं, डाॅ. .. राजूरकर अपने वाचक अर्थ मेंतुलनात्मक अध्ययनशब्द को ठीक मानते हुए यह विचार व्यक्त करते हैं कि विषय को साहित्यिक क्षेत्र तक सीमित करने के कारणतुलनात्मक साहित्यपद को मान्यता मिली हो लेकिन साहित्येतर विषयों के तुलनात्मक अध्ययन कोतुलनात्मक साहित्यके क्षेत्र से बाहर मानना ही उचित होगा। इसलिएतुलनात्मक अध्ययनकोतुलनात्मक साहित्यके अर्थ में ग्रहण करने के बारे में विचार व्यक्त करते हुए वे कहते हैं कितुलनात्मक अध्ययन - विषय के विस्तृत फलक से संबंध रखता है। इसके आधार पर विषय से संबंधित सब अंगों को देखा-परखा जाता है। और यदितुलनात्मक अध्ययनकी सीमाओं में साहित्य मात्र का ही अध्ययन किया जाता हो इससे साहित्य की सार्वभौमिक संकल्पना समझने-समझाने में सहायता मिलती है। साहित्य का सृजन अनेक भाषाओं में होता रहा है और हो रहा है। भाषा-भेद के कारण हमें अंतराल बना हुआ है। इस अंतराल को दूर करने मेंतुलनात्मक अध्ययनकी भूमिका का अपना महत्व है। भाषाएँ भिन्न होने पर भी भाषाओं में लिखे गए साहित्य में समानता है। यह समानता विषय-वस्तु और प्रयोजन को पहचानने पर ज्ञान हो सकती है। इस पहचान को बढ़ाने के लिएतुलनात्मक अध्ययनकी आवश्यकता है।

वस्तुतः फ्रांसीसी मेंसाहित्यिक अध्ययनके अर्थ में प्रयुक्त होने वाले शब्द को अंग्रेजी भाषा में स्वीकार तो कर लिया गया, किंतु उसके अर्थ-संदर्भ की ओर विशेष देने के कारण ‘Comparative study’ शब्द के स्थान पर ‘Comparative literature’ ही चलन में गया। हिन्दी में इसे शाब्दिक धरातल पर अंतरित करते हुएतुलनात्मक साहित्यशब्द प्रयुक्त किया जाने लगा। वास्तव मेंतुलनात्मक साहित्यऔरतुलनात्मक अध्ययनएकसमान अर्थ के दृष्टिकोण से स्वीकृत पद है।तुलनात्मक साहित्यशब्द में वही तात्पर्य निहित है, जोतुलनात्मक अध्ययनमें है। इसलिए ये दोनों पद एक-दूसरे के पर्याय हैं और इनका प्रयोग इसी रूप और संदर्भ में एक-दूसरे के पर्याय के तौर पर किया जाता है। वैसे, इनके प्रयोग की तुलना की जाए तो यह स्वीकार किया जाता है कितुलनात्मक साहित्यपद अधिक प्रचलित है।

तुलनात्मक साहित्यअध्ययन का क्षेत्र -

विभिन्न साहित्यों का परस्पर तुलना करते हुए अध्ययन से संबंधिततुलनात्मक साहित्यके बारे में उल्लेखनीय यह भी है कि यह तुलना सिर्फ किसी एक भाषा, साहित्य, साहित्यकार अथवा  राष्ट्र तक सीमित नहीं होती; देश-विदेश की सीमाओं का अतिक्रमण कर इसका विस्तार विविध देशों के साहित्य और साहित्यकारों तक हो सकता है। सिर्फ इतना ही नहीं, इसके संदर्भ मेंसाहित्यकेवल कहानी-उपन्यास आदि सृजनात्मक साहित्य तक ही सीमित नहीं है। तुलनात्मक साहित्य की व्याप्ति, ज्ञान के अन्य क्षेत्रों के तुलनात्मक अध्ययन तक भी है। इसके अंतर्गत अन्य कलाओं एवं ज्ञान-अनुशासनों के शास्त्रों के परिप्रेक्ष्य में भी साहित्य का आकलन किया जा सकता है। इस संदर्भ में हेनरी एच.एच. रेमाक का यह विचार रेखांकित करने योग्य है कि रेमाक का कहना है कि तुलनात्मक साहित्य एक विशेष राष्ट्र के साहित्य की परिधि से परे दूसरे राष्ट्रों के साहित्य के साथ तुलनात्मक अध्ययन है। सिर्फ साहित्य ही नहीं, यह ज्ञान एवं विश्वास के अन्य क्षेत्रों (जैसे चित्रकला, मूर्तिकला, वास्तुकला, संगीत) के बीच संबंधों का अध्ययन तो है ही, साथ ही दर्शन, इतिहास और सामाजिक विज्ञान (जैसे राजनीति, अर्थशास्त्र, समाजशास्त्र), विज्ञान और धर्म आदि के बीच आपसी संबंधों का भी अध्ययन है - Comparative Literature is the study of literature beyond the confines of one particular country, and the study of the relationships between literature on the one hand and other areas of knowledge and belief, such as the arts (e.g. painting, sculpture, architecture, music) philosophy, history, the social sciences (e.g. politics, economics, sociology), the science, religion etc. on the other.

 रेमाक के विचारों के आलोक में डाॅ. नगेंद्र का भी यही कहना है कितुलनात्मक अध्ययन एक भाषा के अंतर्गत हो सकता है, द्विभाषीय या भारत जैसे देश में अनेक भाषाओं के साहित्य तक व्याप्त हो सकता है, या फिर देश-विदेश की सीमाओं का अतिक्रमण कर विविध देशों के साहित्य तक अपने क्षेत्र का विस्तार कर सकता है - अथवा अपनी परिधि के बाहर भी अन्य कलाओं एवं शास्त्रों के परिप्रेक्ष्य में साहत्य का आकलन कर सकता है।इन विचारों को उद्घाटित करते हुए डाॅ. नगेंद्र जब यह कहते हैं किअपनी परिधि के बाहर भी अन्य कलाओं एवं शास्त्रों के परिप्रेक्ष्य में साहित्य का आकलन कर सकता है।तो वहाँ उनका सीधा या यह अभिप्राय है कि सृजनात्मक साहित्य की विविध विधाओं से इतर गणनीय ज्ञानात्मक साहित्य की कला, दर्शन, धर्मशास्त्र, मनोविज्ञान, इतिहास तथा राजनीतिशास्त्र आदि के पारस्परिक संबंधों का विवेचन भी उसके अंतर्गत सकते हैं। 

वस्तुतःतुलनात्मक साहित्य’, ज्ञान के विभिन्न क्षेत्रों से संबंधितज्ञानात्मक साहित्यअथवा कहानी, उपन्यास, कविता आदि विधा-विशेष के रूप में रचनात्मक लेखन से संबंधितसृजनात्मक साहित्यके तुलनात्मक अध्ययन से संबंधित है। इस आधार पर, तुलनात्मक साहित्य का अध्ययन