शोध आलेख : हिंदी बाल पत्रकारिता का वर्तमान परिदृश्य और बाल भारती / कु. आकांक्षा

हिन्दी बाल पत्रकारिता का वर्तमान परिदृश्य और बाल भारती
कु. आकांक्षा

शोध सार : हिन्दी में बाल पत्रकारिता का इतिहास भारतेन्दु युग से शुरू होता है। भारतेन्दु पहले साहित्यकार थेजिन्होंने यह अनुभव किया कि विभिन्न पत्र- पत्रिकाओं में बाल-सामग्री के कॉलम पर्याप्त नहीं है, इसलिए बच्चों के समग्र विकास हेतु उनकी पत्रकारिता का अलग क्षेत्र होना चाहिए। हिन्दी बाल पत्रकारिता भारतेन्दु से प्रारंभ होकर कभी गिरते और कभी उठते हुए अपने वर्तमान परिदृश्य तक पहुंची है। भारतेन्दु के बाद बाबू शिवचरण लाल, किशोरीलाल गोस्वामी, पं० सुदर्शनाचार्य और उनकी पत्नी गोपाल देवी, देवीदत्त शुक्ल, पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी, सोहनलाल द्विवेदी,रामनरेश त्रिपाठी आदि प्रतिष्ठित साहित्यकारों ने बाल पात्रकारिता को आगे बढ़ाने में अपना योगदान दिया। इसके बाद बाल पत्रकारिता बालशौरि रेड्डी और विकास दवे आदि के माध्यम से विकसित होती हुई अपने वर्तमान परिदृश्य तक पहुंची है। वर्तमान में 24-25 बाल पत्रिकाएँ विभिन्न स्थानों से प्रकाशित हो रही हैं। इसके साथ ही दैनिक और साप्ताहिक समाचार-पत्रों में भी बच्चों के लिए अलग पेज तथा कॉलम निकल रहे हैं। इसी श्रृंखला में हम ‘बालभारती पत्रिका’ को देख सकते हैं जो 1948 के वर्ष से निरंतर प्रकाशित हो रही है। यह मासिक पत्रिका अपनी मनोरंजक शैली और ज्ञानवर्धक सामग्री के कारण बच्चों तथा बड़ों दोनों की प्रिय है। पत्रिका के सभी सामान्य अंकों में समसामयिक घटनाओं, व्यक्तियों तथा सूचनाओं से संबंधित बोधपूर्ण लेखों के साथ-साथ कहानियाँ, कविताएँ, चित्रकथा आदि के विशेष स्तंभ निश्चित रहते हैं। पत्रिका की खूबसूरती यह है कि वह समय के साथ कदमताल करते हुए चल रही है।

बीज शब्द : बालमन, पत्रकारिता, इतिहास, वर्तमान, समाचार, इंटरनेट, मनोरंजन, उत्सुकता, जागरुकता, रचनात्मकता

मूल आलेख : बच्चों का मन निश्छल एवं सहज होता है। जब कोई उनसे संवाद करता है तो उसे उनकी ही भाषा और समझ के स्तर पर जाकर बात करनी होती है, इसीलिए कहा जाता है कि ‘बच्चों के साथ बच्चा बनना होता है’। बच्चे शुरुआत से ही अपने आसपास के परिवेश और लोगों के माध्यम से सीखना शुरू करते हैं लेकिन जैसे-जैसे वे उम्र में आगे बढ़ते हैं उनके साथ उनकी जिज्ञासाएँ भी बढ़ती हैं। पत्र-पत्रिकाओं और संचार के अन्य साधनों के माध्यम से वे अपनी जिज्ञासाओं और प्रश्नों के उत्तर खोजने का प्रयास करते हैं। उनके लिए जानकारी जुटाने और उन्हें उनकी भाषा में समझाने का कार्य बालसाहित्य द्वारा किया जाता है। विभिन्न पत्र- पत्रिकाएँ उनकी समझ के अनुसार उनके लिए साहित्य के माध्यम से सामग्री प्रस्तुत करती हैं। हम जानते हैं कि प्रत्येक साहित्यकार बाल साहित्य नहीं लिख सकता क्योंकि उसके लिए बाल मनोविज्ञान की मूल समझ की आवश्यकता होती है। बाल साहित्य के बारे में डॉ. सुरेंद्र विक्रम और जवाहर ‘इंदु’ कहती हैं कि- “बाल मनोविज्ञान का अध्ययन किए बिना कोई भी रचनाकार स्वस्थ एवं सार्थक बाल साहित्य का सृजन नहीं कर सकता है। यह बिल्कुल निर्विवाद सत्य है कि बच्चों के लिए लिखना सबके वश की बात नहीं है। बच्चों का साहित्य लिखने के लिए रचनाकार को स्वयं बच्चा बन जाना पड़ता है। यह स्थिति तो बिल्कुल परकाया प्रवेश वाली है।”1 बच्चा किस प्रकार बड़ी-बड़ी चीजों को आसानी से समझ और सीख सकता है यह बाल मनोविज्ञान के द्वारा ही समझा जा सकता है। बाल लेखकों और उनके द्वारा रचित साहित्य के बारे में प्रसिद्ध कवि सोहनलाल द्विवेदी जी भी कहते हैं कि- “सफल बाल साहित्य वही है जिसे बच्चे सरलता से अपना सकें और भाव ऐसे हों, जो बच्चों के मन को भाएँ। यों तो अनेक साहित्यकार बालकों के लिए लिखते रहते हैं, किन्तु सचमुच जो बालकों के मन की बात, बालकों की भाषा में लिख दें, वही सफल बाल लेखक हैं।2

पुस्तकों के बाद बाल पत्र-पत्रिकाओं के माध्यम से ही साहित्य बच्चों तक पहुँचता है, इसलिए बाल साहित्य के विकास में इन पत्र-पत्रिकाओं का महत्व अक्षुण्ण है। हिन्दी में बाल पत्रों को जन्म देने वाले भारतेन्दु हरिश्चंद्र थे। भारतेन्दु की विशेष प्रेरणा से सर्वप्रथम इलाहाबाद से 1882 ईo में ‘बाल दर्पण’ नामक पत्रिका का प्रकाशन आरंभ हुआ।इसके बाद 1891 में बच्चों के लिए लखनऊ से ‘बाल हितकर’ नामक पत्र निकलना शुरू हुआ लेकिन कुछ ही समय बाद बंद हो गया। सन् 1906 में बाबू शिवचरण लाल ने अलीगढ़ से ‘छात्र-हितैषी’ निकाला था।1906 में ही किशोरीलाल गोस्वामी के संपादन में बनारस से ‘बाल प्रभाकर’ निकलना आरम्भ हुआ। 1911 ईo में मेरठ से ‘बालहितैषी’ का प्रकाशन आरम्भ हुआ जो 1961 के बाद बंद हो गया। 1912 में नरसिंहपुर से ‘मानीटर’ का प्रकाशन आरम्भ हुआ, यह ज्यादा न चल सका और महज चार साल में ही बन्द हो गया। 1915 में ‘शिशु’ नामक पत्र का प्रकाशन शुरू हुआ। यह 1950 तक निकला। इसने बाल साहित्य के विकास में विशेष योगदान दिया। 1917 में ‘बालसखा’ नामक पत्र का प्रकाशन आरम्भ हुआ। इसके संपादक पंo बदरीनाथ भट्ट थे, बाद में पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी और सोहनलाल द्विवेदी आदि ने भी इसका संपादन किया।1931 में रामनरेश त्रिपाठी ने भी ‘वानर’ मासिक पत्रिका का प्रकाशन प्रयाग से किया था। आजादी के बाद पत्र- पत्रिकाओं के प्रकाशन में तेजी आई जिससे बाल पत्रकारिता को भी नई दिशा मिली। आजादी के एक वर्ष बाद(1948से) भारत सरकार के प्रकाशन विभाग, दिल्ली से बच्चों के लिए ‘बाल भारती’ नामक पत्रिका निरंतर निकल रही है। स्वतंत्रता के बाद बाल पत्रकारिता का अच्छा परिदृश्य खड़ा हुआ लेकिन पाठकों तक सीधी और सुगम पहुँच न होने के कारण अधिकांश पत्रिकाएँ सीमित क्षेत्र और कम समय में ही बंद होती रहीं। स्वतंत्रता के बाद से अब तक के इतिहास की स्थिति के बारे में कृष्णकुमार अष्ठाना लिखते हैं- “स्वातंत्र्योत्तर भारत में अनेक बाल पत्रिकाएँ प्रकाशित हुईं लेकिन उनमें से कुछ ही दीर्घजीवी बन सकीं। सन् 1951 में ‘नन्हीं दुनिया’ और ‘विज्ञान प्रगति’, सन् 1955 में ‘शिक्षा’, 1958 में ‘राजा बेटा’, 1960 में ‘विज्ञान लोक’, 1962 में ‘ज्ञान भारती’ और ‘मनोरंजन’ पत्रिकाएँ निकलीं।“3

अब हम वर्तमान में निकलने वाली बाल पत्र-पत्रिकाओं के बारे में जानेंगे और इसके बाद ‘बाल भारती’ पत्रिका की वर्तमान स्थिति को देखते हुए उसके स्वरूप और बाल साहित्य के विकास में इसके योगदान पर चर्चा करेंगे।

बाल पत्रकारिता का वर्तमान परिदृश्य -

बाल पत्रकारिता की वर्तमान स्थिति पर बात करें तो आज पूरे भारत में 24-25 बाल पत्रिकाएँ निकल रही हैं। जिनमें से कुछ पत्रिकाओं का संक्षिप्त परिचय देखा जा सकता है। ‘बाल अखबार’ नामक यह पत्र बच्चों द्वारा संपादित किया जाता है। यह पत्र राजेंद्र नगर, पटना, बिहार से छपता है।‘अपना बचपन’ एक मासिक पत्रिका है, जो पिछले सात साल से लगातार छप रही है। इसके संपादक महेश सक्सेना हैं।‘स्पेक्ट्रम’ नई दिल्ली से छपने वाली एक पाक्षिक पत्रिका है जो नई दुनिया नामक अखबार के साथ मुफ़्त दी जाती है। इसके संपादक आलोक मेहता हैं। ‘बाल भास्कर’ एक पाक्षिक पत्रिका है जो द्वारका सदन प्रेस कॉम्प्लेक्स, भोपाल से छपती है।‘बाल प्रहरी’ एक त्रैमासिक पत्रिका है। यह अल्मोड़ा(उत्तराखंड) से प्रकाशित होती है। इसके संपादक उदय किरौला हैं। ‘अभिनव बालमन’ एक त्रैमासिक पत्रिका है। यह पाँच सालों से अलीगढ़ से प्रकाशित हो रही है। इसके संपादक निश्चल हैं। ‘बाल साहित्य समीक्षा’ एक मासिक पत्रिका है जो कानपुर से निकलती है। इसे बच्चों के जानेमाने बाल साहित्यकार डॉ.राष्ट्रबंधु प्रकाशित करते हैं। ‘बालस्वर’ एक मासिक पत्रिका है जो पिछले 21 साल से नियमित छप रही है। ‘बाल बाटिका’ एक मासिक पत्रिका है जिसे राजस्थान से डॉ. भीरुलाल गर्ग प्रकाशित करते हैं। ‘बालवाणी’ एक द्वैमासिक पत्रिका है जो उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान द्वारा अनिल मिश्र जी के संपादन में निकल रही है। ‘देवपुत्र’ संवाद नगर, इंदौर से निकलने वाली महत्वपूर्ण पत्रिका है। यह चालीस साल से लगातार छप रही है। इसके संपादक विकास दवे जी हैं। यह विश्व की सबसे अधिक संख्या में छपने वाली पहली बाल पत्रिका है। ‘चंदामामा’ मुंबई से छपने वाली एक महत्वपूर्ण बाल पत्रिका है। वर्तमान में प्रशांत मुलेकर इसके संपादक हैं। चंदामामा की तरह ‘चंपक’ भी एक महत्वपूर्ण पत्रिका है। नई दिल्ली से निकलने वाली इस पत्रिका के वर्तमान संपादक परेशनाथ जी हैं। आप पत्रिकाओं की किसी भी दुकान पर नज़र डालिए, चंपक वहाँ जरूर दिखाई देगी। ‘लोटपोट’ नामक पत्रिका दिल्ली से निकलती है जिसके वर्तमान संपादक प्रमोद कुमार बजाज हैं। ‘नन्हे सम्राट’ नामक पत्रिका आनंद दीवान के संपादन में नई दिल्ली से निकल रही है। ‘नंदन’ नामक मासिक पत्रिका हिंदुस्तान टाइम्स द्वारा पिछले 50 सालों से निकल रही है। भारत में ही नहीं विदेशों में भी हिन्दी में बाल पत्रिका प्रकाशित हो रही हैं। ‘बालसखा’ मॉरिशस से निकलने वाली हिन्दी बाल पत्रिका है। इसके अलावा कुछ समाचार पत्र भी नियमित रूप से अपने पत्र में बाल साहित्य को स्थान देते हैं। ‘अमर उजाला’ नामक दैनिक समाचार पत्र में प्रत्येक रविवार ‘कच्ची धूप’ शीर्षक से एक पेज बच्चों के लिए निकलता है जिसमें बच्चों के लिए तथा बच्चों द्वारा बनाई गई चित्रकारी, कहानी और कविता आदि को जगह दी जाती है। ऐसे ही दैनिक जागरण आदि समाचार पत्रों में भी बच्चों के लिए स्तंभ सुरक्षित रहते हैं। इस प्रकार वर्तमान में बाल पत्रिकाओं की एक समृद्ध श्रृंखला मौजूद है, जिसके माध्यम से बच्चों के सर्वांगीण विकास के प्रयास किए जा रहे हैं।

इसी श्रृंखला में हम ‘बाल भारती’ पत्रिका के महत्व को रेखांकित कर सकते हैं। भारत सरकार की ओर से निकलने वाली यह पत्रिका एक सचित्र मासिक बाल पत्रिका है। वर्तमान में इसके प्रधान संपादक राकेश रेणु जी हैं। एक वर्ष के भीतर पत्रिका के 12 सामान्य प्रकाशित होते हैं। विशेष उद्देश्यों को ध्यान में रखते हुए पत्रिका विशेषांक भी प्रस्तुत करती है। पत्रिका अपने कलेवर में संपूर्णता को समाहित करने का उद्देश्य लेकर चल रही है। पत्रिका का उद्देश्य वाक्य है- “भरपूर ज्ञान,भरपूर मनोरंजन और बच्चों की संपूर्ण पत्रिका बालभारती”।4 इस प्रकार पत्रिका केवल संपूर्णता का दावा ही नहीं करती बल्कि इसे भलीभाँति पूरा करने का प्रयास भी करती है। पत्रिका के सभी सामान्य अंकों में समसामयिक घटनाओं, व्यक्तियों तथा सूचनाओं से संबंधित बोधपूर्ण लेखों के साथ-साथ कहानियाँ, कविताएँ, चित्रकथा आदि के विशेष स्तंभ निश्चित रहते हैं। चूँकि हम पत्रिका के वर्तमान स्वरूप पर बातचीत कर रहे हैं इसलिए पिछले वर्ष (2023) के सभी उपलब्ध 11 अंकों(एक संयुक्तांक) के साथ हम इसके स्वरूप को रेखांकित करने का प्रयास करेंगे-

पत्रिका की शुरुआत संपादक की अपनी बात से होती है जिसका शीर्षक रहता है ‘हमारी बात’। हमारी बात वह संपादकीय टिप्पणी है जिसके माध्यम से संपादक प्रत्येक माह और उससे संबंधित मुद्दों को सामने रखकर उसको बच्चों के जीवन से जोड़ता है। यह देखने योग्य है कि जब वह फरवरी में वसंत के आगमन और उल्लास की बात करता है तो उसे यह ध्यान है कि इसी समय बच्चे अपनी परीक्षा की तैयारी में लगे होते हैं। वह कहता है कि अब हमें सर्दी की तरह ठहराव में नहीं रहना है बल्कि वसंत की तरह उल्लास से भरकर नई कोपलें खिलानी हैं। संपादक अपनी ओर से लिखता है- “वसंत ऋतु में प्रकृति नव सृजन में तत्पर है और हमारे सभी नन्हे साथी भी आगामी परीक्षाओं की तैयारी में जुट चुके हैं। जब हरी-भरी कोपलें अपने नवाकार में वृक्षों की शोभा बढ़ा रही होंगी। हमारे नन्हे साथी भी अपने सामर्थ्य अनुसार परीक्षा के नतीजे पाकर नई कक्षाओं में जाने का आनंद उठा रहे होंगे। कुछ समय का ठहराव जीवन में प्रगति नहीं रोक सकता। सर्दी के बाद वसंत से हमें यह सीखना चाहिए।“5 बच्चों के आसपास और पीछे उनके स्वयं द्वारा महसूस की जाने वाली चीजों से जोड़कर उनके आगे आने वाले अनुभवों को चित्रित करने की यह अपनी विशेषता है जो हमें बालभारती की संपादकीय टिप्पणियों में दिखाई देती है।

दूसरा स्तंभ लेखों का रहता है जिसमें वर्तमान मुद्दों से संबंधित तीन-चार लेख शामिल किए जाते हैं। जैसे अप्रैल2023 की ‘मन की बात’ कार्यक्रम में प्रधानमंत्री जी ने ‘प्रधानमंत्री संग्रहालय’ के बारे में बातचीत की तो पत्रिका अपने मई के अंक में उसे शामिल करती है,ताकि बच्चे समसामयिक मुद्दों से जुड़े रहें और उन्हें अपने देश में घटित हो रही चीजों के बारे में जानकारी हो सके। इन लेखों के माध्यम से पत्रिका महापुरुषों के जन्मदिन आदि पर उनके जीवन से संबंधित प्रेरक सामग्री भी प्रस्तुत करती है ताकि बच्चे उनसे प्रेरणा ग्रहण करके आगे बढ़ सकें। अप्रैल2023 के अंक में छपे अंबेडकर और सिक्खों के पाँचवे गुरु अर्जुन देवजी पर छपे लेख ऐसे ही उदाहरण हैं। लेखों की ही श्रेणी में ही पत्रिका हाल के उत्कृष्ट व्यक्तियों के साक्षात्कार भी शामिल करती है ताकि बच्चे सीधे उस व्यक्ति के विचारों को सुनने-समझने का अनुभव प्राप्त कर सकें। जैसे अपने अमृत विशेषांक के अंतर्गत वह नीरज चोपड़ा का साक्षात्कार देती है ताकि बच्चे उनके खेल और उनके विचारों से सीधे परिचित हो सकें-“बाल भारती के पाठकों को मैं यह संदेश देना चाहता हूँ कि खेल और पढ़ाई दोनों में बैलेंस करके चलो। बच्चों के माँ- बाप से कहना चाहूँगा कि जरूरी नहीं कि सिर्फ पढ़ाई के पीछे लगाओ या सिर्फ खेल के पीछे।“6

पत्रिका का तीसरा स्तंभ कहानियों का होता है। इनमें बच्चों के आसपास घटित होने वाली छोटी-छोटी घटनाओं को पिरोकर बच्चों के लिए मार्मिक और प्रेरक कहानियों का सचित्र वर्णन किया जाता है। अगस्त 2023 के अंक में छपी ‘कंजूसीलाल का मोबाइल’ ऐसी ही कहानी है जिसमें हँसी-हँसी में ही बच्चों को बड़ी सीख दे दी गई है कि हमें किसी को धोख़ा देकर खुद को बुद्धिमान नहीं मान लेना चाहिए।क्या पता शेर को किसी दिन सवा शेर मिल जाए। ‘महारानी का जन्मदिन भी’ ऐसी ही कहानी है जिसमें भारती वन के सभी जानवर साथ मिलकर उनका काम बिगाड़ने आए विरोधियों को अच्छा मज़ा चखाते हैं। अंत में महाराजा शेर सिंह ने कहा- “हमें दूसरों से ईर्ष्या नहीं, अपितु उनकी भलाई या मदद करनी चाहिए। संपादक मोनू खरगोश ने कहा ‘कल यह समाचार छप जाएगा। चैनल संपादक जैकी रीछ ने कहा, महाराज मैंने वीडियो बना ली है, कल हमारे चैनल पर यह समाचार प्रसारित होगा। आप भी देख लेना।“7 यहाँ जानवर भी बच्चों की तरह नई- नई तकनीकि से लैस दिखाए गए हैं ताकि वे उन्हें अपनी दुनिया में शामिल अनुभव हों, न कि 300 साल पुरानी किसी जंगली कहानी की तरह। इससे कहानी रोचक और सहज बन गई है। बाल भारती इसी प्रकार रोचकता से भरपूर कहानियों के माध्यम से बच्चों को शिक्षित-संस्कृत करने के प्रयास में संलग्न है।

बालभारती का एक विशेष स्तंभ है ‘महान कवि: महान कविताएँ’। प्रत्येक अंक में तो नहीं लेकिन अधिकांश अंकों में यह स्तंभ देखने को मिल जाएगा। इसके अंतर्गत हिन्दी के सुप्रसिद्ध कवियों की वे कविताएँ छपती हैं जो बच्चों के मन को सहज समझ में आ जाएं लेकिन गहरी सीख छोड़कर जाएं। इस स्तंभ में सुभद्रा कुमारी चौहान, अज्ञेय, महादेवी वर्मा, हरिवंश राय बच्चन आदि कवियों की कविताएँ देखने को मिलती हैं। इस स्तंभ के अंतर्गत सरोजनी नायडू की कविता ‘भारत देश है हमारा बहुत प्यारा’ देखिए-

“भारत देश है हमारा बहुत प्यारा,
सारे विश्व में है यह सबसे न्यारा,
अलग- अलग हैं यहाँ सभी के रूप रंग,
पर सुर सब एक ही गाते,
झंडा ऊँचा रहे हमारा”8

बालभारती हमेशा बच्चों के लिए विश्व साहित्य की महान कृतियों के अनुवाद का स्तंभ भी छापती रही है। इन कृतियों के माध्यम से बच्चे दूसरे देश की परंपरा और वहाँ के रहन-सहन से परिचित होते हैं। उनके मन में मनुष्यता की वृहद भावना बनाने के लिए यह साहित्य मददगार साबित होता है। ऐसे ही लोकप्रिय पुस्तकों के लेखक ‘जैक लंदन’ के उपन्यास ‘कॉल ऑफ द वाइल्ड’ का हिन्दी अनुवाद पत्रिका में छपता रहा है। थार्नटन और उसके प्यारे कुत्ते बक के बारे में कहानी बताती है कि-“थार्नटन सचमुच भला आदमी था। वह बक को अपने बच्चे की तरह प्यार करता था। वह बक का सिर दोनों हाथों से पकड़कर अपना सिर भी वहाँ रख देता और धीरे- धीरे बक को सहलाने लगता। थार्नटन उससे ऐसे बातें करता जैसे बक उसकी बातें समझता हो। स्नेह की भाषा कौन- सा पशु नहीं समझता।“9

हम जानते हैं कि वर्ष 2023 मिलेट वर्ष घोषित किया गया। इसके उपलक्ष्य में पत्रिका ने बच्चों के मन में मिलेट के प्रति उत्साह जगाने के लिए पूरे वर्ष भर अलग- अलग मोटे अनाजों के बारे में चित्रकथाएं प्रस्तुत कीं। इन चित्रकथाओं के माध्यम से उन्हें न केवल मोटे अनाज के बारे में विस्तृत जानकारी मिली बल्कि मोटे अनाज को अपने भोजन में शामिल करने का उत्साह जगा होगा।दादाजी कहते हैं-“बाजरे की रोटी हड्डियों की मजबूती के लिए भी अच्छी होती हैं। इससे खिचड़ी, लड्डू और अन्य कई स्वादिष्ट पकवान भी बनते हैं।“10 ऐसे ही गोलू जो सुबह के समय नाश्ते से दूर भागता था जिसके कारण वह काफी दुबला होता जा रहा था। वह नाना जी के घर गया तो उन्होंने उसे सेब खिलाते हुए यह पाठ पढ़ाया-

“सुबह का नाश्ता अच्छा
तो सारा दिन होगा सुखकर,
सुबह नाश्ता सही नहीं तो,
दिन भर सिर खाए चक्कर।“11

इस प्रकार की सामग्री से पता चलता है कि पत्रिका बच्चों को केवल बुद्धिमान बनने के रास्ते ही नहीं दिखाती बल्कि अपने शारीरिक स्वास्थ्य के प्रति सचेत होने को भी प्रेरित करती है।

पत्रिका बच्चों के लिए एक विशेष कॉलम ‘आईडिया बॉक्स’ भी निकालती है जिसके माध्यम से वह महत्वपूर्ण मुद्दों पर बच्चों की राय और विचारों को आमंत्रित करती है। जैसे- “भविष्य में देश की चतुर्दिक प्रगति के लिए आपकी निगाह में क्या-क्या किया जाना चाहिए।आपके चुने गए विचारों और लेखों को बाल भारती के अगले अंकों में प्रकाशित किया जाएगा और उचित मानदेय भी दिया जाएगा।”12 इस प्रकार की रचनात्मक गतिविधियों से बच्चों का न केवल मनोबल बढ़ता है बल्कि उन्हें पुरस्कारों आदि से प्रसन्नता भी मिलती है। यह उनकी सक्रियता है जो पढ़ने के साथ- साथ उनमें लेखन कला को विकसित करने में मदद करती है।

हम जानते हैं कि बच्चे जितने सीधे और निश्छल होते हैं उतने ही चपल और शैतान भी होते हैं। उनके खुराफाती दिमाग को कभी शांत बैठना नहीं आता। बच्चों की इसी चुलबुलाहट और शैतानी दिमाग को दर्शाने वाला कॉलम है-‘निकी, बंटी और पिंटू’। यह आपको हँसी और शैतानी के गुब्बारे में एक साथ लपेट लेगा-

“बंटी मैं आ रहा हूँ डॉक्टर के पास से

डॉक्टर के पास?क्यों निकी??

मेरी आँखों में कोई समस्या है। शायद मुझे भी तुम्हारी तरह चश्मा मिल जाए।...

निकी तब तो मेरी किस्मत खुल गई। अब मुझे पढ़ने स्कूल जाने की कोई जरूरत नहीं। सब चश्मे से हो जाएगा!

बंटी मुझे चश्मा लग गया और सबकुछ साफ- साफ दिखने लग गया। नहीं दिखने का बहाना भी नहीं बना सकती थी। मुझे तो अब चश्मे के कारण और अधिक पढ़ना पड़ता है निकी!”13

पत्रिका के प्रत्येक अंक में बिलकुल शुरुआत में छपी ऐसी हास्य मिश्रित चित्रकथा बच्चों को चहलपहल से भर देती होगी जो उनमें पूरी पत्रिका पढ़ने के दौरान उत्साह बनाए रखती होगी।

पत्रिका न केवल राष्ट्रीय मुद्दों पर अपनी बात रखती है बल्कि अंतरराष्ट्रीय घटनाओं और हलचलों से भी बच्चों को अवगत कराने का प्रयास करती है। वह विश्व फलक पर भारत की नई सफलता को बच्चों के समक्ष लाती है जिससे बच्चे भी उत्साहित अनुभव करें। पत्रिका जुलाई से लेकर सितंबर तक की चंद्रयान-3 की समस्त गतिविधियों को सचित्र माध्यम से बच्चों के समक्ष रखती है-“23 अगस्त 2023- शाम 6 बजकर 4 मिनट पर चाँद के साउथ पोल पर चंद्रयान ने सुरक्षित एवं सॉफ्ट लैंडिंग की और इतिहास रच दिया। मैं अपनी मंजिल तक पहुँचा और आप भी: चंद्रयान-3 बधाई हो भारत!”14 इस प्रकार की विज्ञान से जुड़ी जानकारियाँ जब बच्चों के सामने आती हैं तो वे भी आविष्कारों के प्रति उत्साहित होते हैं। बाल भारती विभिन्न वैज्ञानिकों और उनके आविष्कारों को रोचक शैली में बच्चों के समक्ष प्रस्तुत करती रही है।

पत्रिका की रंगशैली और भाषा को देखें तो यह बच्चों को आकर्षित करने में पूर्णतः सक्षम है। हम जानते हैं कि रंग बच्चों को बहुत भाते हैं।जिस माह में जो रंग जरूरी होता है पत्रिका उसको अपने पृष्ठों पर लाने का प्रयास करती है। आजादी के रंग पूरी पत्रिका में दिखाई देते हैं इसी प्रकार होली पर पूरी पत्रिका विभिन्न रंगों से सुसज्जित होती है। इसी प्रकार भाषा पर ध्यान दिया जाए तो पत्रिका बच्चों के स्तर पर जाकर उनसे उनकी ही भाषा में बतियाती है। बच्चे कुछ बेतरतीब और शब्दों के गड़बड़ क्रम में ही बात करते हैं। यही उनकी सहज भाषा होती है, पत्रिका यही भाषा अपनी कहानियों और लेखों में उपयोग में लाती है-“शाश्वत ओ शाश्वत, जल्दी आ खेलने पार्क में नहीं चलना क्या?.. आ रहा हूँ दोस्त!”15 यह बच्चों की सहज भाषा है।

पत्रिका का सबसे अच्छा पक्ष यह है कि वह अपने पाठकों की प्रतिक्रियाओं को नियमित तौर पर जगह देती है। इससे न केवल उसकी गुणवत्ता का पता चलता है बल्कि पाठकों के सुझावों को शामिल करके पत्रिका में और सुधार लाया जा सकता है। एक नन्हा पाठक बाल भारती को लिखता है- “बाल भारती बहुत ही सजीली, सुंदर और रंगीन पत्रिका है। इसके रेखाचित्र बहुत ही आकर्षक होते हैं। मैं उनको अपनी ड्राइंग बुक में बनाने का प्रयास करता हूँ। मैं उससे और रेखाचित्र बनाऊँगा और एक दिन बाल भारती में छपूंगा।“16

इस प्रकार बाल भारती पत्रिका बाल साहित्य को समृद्ध कर रही है और व्यावसायिकता से दूर एक उत्कृष्ट पत्रिका बनी हुई है। व्यावसायिकता के इस युग में पत्रिका के महत्व को रेखांकित करती हुई डॉ. विजयलक्ष्मी सिन्हा लिखती हैं-“भारत सरकार के प्रकाशन- विभाग द्वारा प्रेषित ‘बाल भारती’ अनेक कठिनाइयों के बावजूद प्रकाशित हो रही है। इसमें नए तथा पुराने दोनों विषयों का उचित सामंजस्य दिखाई पड़ता है। वस्तुत: यह पत्रिका व्यावसायिकता के मोह से दूर रह कर सही अर्थों में हिन्दी बाल साहित्य की सेवा में संलग्न है।”17 इस प्रकार हिन्दी बाल पत्रकारिता के क्षेत्र में बाल भारती एक उत्कृष्ट पत्रिका बनी हुई है।

निष्कर्ष : उपरोक्त विवेचन के आधार पर हम देख सकते हैं कि हिन्दी बाल पत्रकारिता का इतिहास साहित्य के अन्य क्षेत्रों की तरह समृद्ध नहीं रहा। इसके बावजूद भारतेन्दु युग से जहाँ अन्य विधाओं ने पाँव पसारे वहीं बाल साहित्य भी विकास की ओर अग्रसर हुआ। अनेक प्रसिद्ध साहित्यकारों ने बाल साहित्य को अपनाया और बाल पत्र-पत्रिकाओं ने उन्हें आगे बढ़ाया। इस प्रकार भारतेन्दु युग से प्रारंभ हुई बाल पत्रकारिता अपने वर्तमान स्वरूप तक पहुँची है। अब बाजारीकरण के युग में यह भी बाजार की जद में है लेकिन कुछ पत्रिकाएँ अपने महत्व को बनाए और बचाए हुए हैं। यही पत्रिकाएँ बालमन को सींच रही हैं और उनकी दुनिया को रंगीन किए हुए हैं। हिन्दी बाल जगत को बाल भारती जैसी अन्य पत्रिकाओं की जरूरत है जो अपनी गुणवत्ता के कारण बच्चों तथा बड़ों दोनों के बीच लोकप्रिय बनी रहें। सोशल मीडिया के अत्यधिक प्रभाव के इस दौर में अच्छे पत्र-पत्रिकाएँ ही बच्चों में जागरूकता और रचनात्मकता ला सकती हैं ताकि वे भविष्य में उन्नत मार्ग की ओर अग्रसर हों।

संदर्भ :
  1. राष्ट्रबंधु, बाल साहित्य समीक्षा, बाल कल्याण संस्थान, कानपुर,1988,पृ. सं.6
  2. हरिकृष्ण देवसरे, हिन्दी बाल साहित्य:एक अध्ययन, राजपाल एण्ड सन्स,नई दिल्ली,1969, पृ.सं.7
  3. देशबन्धु समाचार पत्र, बाल साहित्य एवं बाल पत्रकारिता,रायपुर, o6/09/2013, पृ. सं.4
  4. बाल भारती पत्रिका, प्रकाशन विभाग;भारत सरकार, नई दिल्ली,अंक: जनवरी2023, पृ.सं.6
  5. वही,अंक:फरवरी2023,पृ.सं.4
  6. वही,अंक:जून- जुलाई2023,पृ.सं.34
  7. वही,अंक:अगस्त2023,पृ.सं.40
  8. वही, अंक:फरवरी2023,पृ.सं.28
  9. वही,अंक:अगस्त2023,पृ. सं. 48
  10. वही,अंक:जनवरी2023,पृ.सं.53
  11. वही,अंक:जनवरी2023,पृ. सं.50
  12. वही,अंक:अप्रैल2023,पृ.सं.21
  13. वही,अंक:अप्रैल 2023, पृ.सं.5
  14. वही,अंक:अक्टूबर 2023,पृ.सं.30
  15. वही,अंक:अक्टूबर 2023,पृ.सं.14
  16. वही, अंक:फरवरी 2023,पृ.सं.5
  17. डॉ. विजयलक्ष्मी सिन्हा, आधुनिक हिन्दी में बाल साहित्य का विकास, साहित्यवाणी, इलाहाबाद,1986,पृ.सं.279-280
 कु. आकांक्षा
शोधार्थी, हिन्दी विभाग, काशी हिन्दू विश्वविद्यालय

बाल साहित्य विशेषांक
अतिथि सम्पादक  दीनानाथ मौर्य
चित्तौड़गढ़ (राजस्थान) से प्रकाशित पत्रिका 
  अपनी माटी (ISSN 2322-0724 Apni Maati) अंक-56, नवम्बर, 2024 UGC CARE Approved Journal

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