शोध आलेख : भारतीय छापाकला में मेज़ोटिन्ट कला का महत्त्व / चंद्रशेखर वाघमारे एवं शशिकांत रेवडे

भारतीय छापाकला में मेज़ोटिन्ट कला का महत्त्व
- चंद्रशेखर वाघमारे एवं शशिकांत रेवडे

चित्र: 1 योहान ज़ॉफ़नी “हैदरबेक”(Hyderbeck)

शोध सार : मेज़ोटिन्ट अपनी टोनल समृद्धि और विस्तृत बनावट के लिए जाना जाता है, वह एक जटिल छापाकला तकनीक है। भारत में एक समृद्ध इतिहास बन रहा है, जो औपनिवेशिक (colonial) काल के दौरान इसकी शुरुआत से संबंधित है। मूल रूप से भारतीय विषयों को पुनरुत्पादित करने के लिए यूरोपीय कलाकारों द्वारा प्रस्तुत की गई, मेज़ोटिन्ट समकालीन भारतीय कला में पुनरुत्थान का अनुभव कर रही है, जो गैर-रासायनिकछापाकला तकनीकों में प्रगति से प्रेरित है। इस शोध पत्र में साहित्य समीक्षा, प्राथमिक डेटा संग्रहण और द्वितीयक डेटा संग्रहण का उपयोग किया गया है। यह शोध पत्र भारत में मेज़ोटिन्ट के ऐतिहासिक संदर्भ, गैर-रासायनिक माध्यमों में इसके परिवर्तन, प्रमुख कलाकारोंऔर पर्यावरण के अनुकूल तरीकों का उपयोग करके मेज़ोटिन्ट प्रिंट बनाने की चरण-दर-चरण प्रक्रिया की जांच करता है।

बीज शब्द : मेज़ोटिन्ट, छापाकला, गैर-रासायनिक छापाकलातकनीक, भारतीय छापाकला, मेज़ोटिन्ट कलाकार, मेज़ोटिन्ट की चरण प्रक्रिया, रॉकर टूल।

अनुसंसाधन विधी : इस शोध पत्र के लिए ऐतिहासिक और गुणात्मक दृष्टिकोण अपनाया गया है। अध्ययन में प्रमुख प्रिंटमेकिंग तकनीकोंमे, विशेष रूप से मेज़ोटिंट की प्रक्रियाओं और उपकरणों की पहचान और विश्लेषण के लिए प्राथमिक और द्वितीयक स्रोतों का सम्यक उपयोग किया गया है। डेटा संग्रहण के तहत प्रमुख कलाकारों के कार्यों का साक्षात्कार, उनके कार्यों का अवलोकन, और संबंधित प्रिंटमेकिंग गतिविधियों का दस्तावेजीकरण किया गया। इसके साथ ही, भारतीय प्रिंटमेकिंग के ऐतिहासिक विकास और समकालीन कलाकारों के योगदान का गहन विश्लेषण भी प्रस्तुत किया गया है, जो इस कला विधा के पुनरुत्थान में सहायक सिद्ध हुआ।

मूल आलेख : भारत में मेज़ोटिंट का संक्षिप्त सर्वेक्षण करें तो इसके सबसे पहले संकेत औपनिवेशिक(colonial) काल में मिलते हैं। कई पश्चिमी कलाकार भारतीय विषयों से प्रभावित हुए और अपने चित्रों को पुनरुत्पादन के लिए मेज़ोटिंट्स के माध्यम से स्थानांतरित किया गया। छापाकला के इंटैगलियो में कई प्रक्रियाएँ होती हैं जिसमेसे आज हम मेज़ोटिंट प्रक्रिया के बारे में जानेगे।

छापाकला की अनेक विधाए है। छापाकला (प्रिंटमेकिंग) एक ऐसी कला है जिसमें विभिन्न सतहों जैसे लकड़ी, धातु, पत्थर, या कपड़े पर डिज़ाइन उकेरनेया चित्र बनाने की तकनीक का उपयोग करके कलाकृतियों की प्रतिलिपियाँ बनाई जाती हैं। यह प्रक्रिया आमतौर पर एक प्लेट, ब्लॉक या स्क्रीन पर डिज़ाइन बनाने के बाद उसे स्याही से रंग कर कागज या किसी अन्य माध्यम पर छापने के लिए की जाती है। छापा कला के विभिन्न प्रकार होते हैं, जैसे लकड़ी पर आधारित वुडकट, धातु पर आधारित एचिंग, लिथोग्राफी और मेज़ोटिंट। यह कला विधा कलाकारों को एक ही डिज़ाइन की कई प्रतियां बनाया जा सकताहै, जो कला के व्यापक प्रसार में मदद करती है।

मेज़ोटिन्ट, एक छापाकला तकनीक जो 17वीं शताब्दी में यूरोप में उभरी,मेज़ोटिंट अपनी गहरी काजल जैसे मखमली काले रंग के लिए जाना जाता है, जिससे हम कई रंग-स्वर छटाये बना सकते हैं। मेज़ोटिंट का आविष्कार सन 1642 में जर्मनी में लुडविंग वॉन सीगेन द्वारा किया गया था। सन 1750 में, अब्राहम ब्लूटेलिंग के इस तकनीक पर व्यापक काम करने के बाद, यह इंग्लैंड में लोकप्रिय हो गई और इसे "ला मैनिएर एंगलाइस" यानी "ब्लैक मैनर" कहा गया। मतलब मखमली काला रंग। इंग्लैंड में मेज़ोटिंट का बड़े पैमाने पर विकास कला और विज्ञान की चित्रों को पुनरुत्पादित करने के एक साधन के रूप में हुआ। वर्तमान समय मेंकई पश्चिमी कलाकार जैसे की डेबोरा लुलु चैपमैन, आर्ट वेरगर, सोनिया मोटियर, मिस्टर गाइ लांगविन और कई प्रिंटमेकर अपने मेज़ोटिंट कार्यों के लिए विश्व स्तर पर प्रसिद्ध हैं।1

पश्चिमी कलाकारों ने भारतीय विषयों पर आधारित कलाकृतियाँ बनाई हैं, जिनमें भारतीय संस्कृति, परंपराएँ, और सामाजिक जीवन की गहरी झलक मिलती है। यह कलाकृति सन 1800 में लंदन में निर्मित, चित्र क्र. 1"हैदरबेक का कलकत्ता में दूतावास"(Hyderbeck)नामक यह मेज़ोटिन्ट एक दुर्लभऔर बड़ा प्रिंट है। यह सन1788 में हुई उस कूटनीतिक यात्रा को दर्शाता है जब अवध राज्य के नवाब ने हैदर बेग नामक अधिकारी को भारत के नए ब्रिटिश गवर्नर-जनरल लॉर्ड चार्ल्स कॉर्नवॉलिस से मिलने के लिए कलकत्ता भेजा। इस प्रिंट की रचना प्रसिद्ध जर्मन मूल के अंग्रेज़ चित्रकार योहान ज़ॉफ़नी द्वारा बनाई गई एक पेंटिंग पर आधारित है, जो उस समय भारत में थे और उन्होंने खुद को भी इस दृश्य में घुड़सवार के रूप में शामिल किया है। इस यात्रा के दौरान यह दृश्य पटना के पास का है, जहां एक हाथी ने अपने चालक को सूंड से पकड़ लिया और उसके पीछे बैठे लोग गिरने लगते हैं। ज़ॉफ़नी के इस चित्रण में भारतीय और यूरोपीय सैनिक, यात्री, हिंदू संन्यासी, सब्ज़ी विक्रेता और भिखारी एक ही मार्ग साझा करते दिखते हैं, कई लोग हाथी द्वारा उत्पन्न इस अराजकता से अनजान हैं।2

योहान ज़ॉफ़नी एक जर्मन मूल के अंग्रेज चित्रकार थे, जो अपने चित्र, इतिहास और शैलीगत चित्रों के लिए प्रसिद्ध थे। सन1783 में वे भारत गए, जहां उन्होंने अपने मित्र विलियम हॉजेस के साथ अमीर संरक्षक की खोज की। ज़ॉफ़नी ने भारत में कोलकाता और लखनऊ में समय बिताया और भारतीय और ब्रिटिश अधिकारियों से आयोग प्राप्त किए। भारत में अपने अनुभवों पर आधारित उनकी कृतियां आज भी दुनिया भर के संग्रहालयों में प्रदर्शित होती हैं, जिनमें कोलकाता के विक्टोरिया मेमोरियल हॉल में उनके कई भारतीय विषयों पर चित्र हैं।3और एक चित्र जो सर डेविड विल्की द्वारा "सर डेविड बर्ड डिस्कवरिंग द बॉडी ऑफ टीपू सुल्तान", सन 1843 मेज़ोटिंट कला प्रिंट भी भारतीय विषय पर आधारित है।

भारतीय मेज़ोटिंट

चित्र:2 देवराज डाकोजी “शीर्षकहिन” (1975)
भारत में कई कलाकारों ने मेज़ोटिंट तकनीक में अपनी किस्मत आज़माने का प्रयास किया, लेकिन शुरुआत में ये प्रयास असफल रहे क्योंकि रॉकर टूलजो इस प्रक्रिया का एक प्रमुख उपकरण है, आसानी से उपलब्ध नहीं था।

 आज,रॉकर टूल भारत में आसानी से उपलब्ध हो चुका है, जिससे नए कलाकार और प्रिंटमेकर मेज़ोटिंट तकनीक के साथ काम करने की कोशिश कर रहे हैं। कई भारतीय कलाकारों ने विभिन्न छात्रवृत्तियों के माध्यम से विदेश जाकर मेज़ोटिंट में प्रशिक्षण प्राप्त किया और इस माध्यम में अपना कार्य शुरू किया, जिससे यह कला अब भारत में फिर से लोकप्रिय हो रही है।

सन 1975के शुरुआती वर्षों में, देवराज डाकोजी मेज़ोटिंट के साथ काम करना शुरू किया।देवराज डाकोजी का जन्म सन 1944 में हैदराबाद, आंध्र प्रदेश में हुआ था। उन्होंने 1965 में हैदराबाद के कॉलेज ऑफ फाइन आर्ट्स एंड आर्किटेक्चर से स्नातक किया और प्रिंटमेकिंग की पढ़ाई के लिए उन्हें एम.एस. यूनिवर्सिटी, बड़ौदा में छात्रवृत्ति प्राप्त हुई। इसके बाद उन्होंने ब्रिटिश काउंसिल की छात्रवृत्ति पर चेल्सी स्कूल ऑफ आर्ट्स में अध्ययन किया।

पिछले तीस वर्षों से डाकोजी न्यूयॉर्क के रॉबर्ट ब्लैकबर्न प्रिंटिंग वर्कशॉप से जुड़े हुए हैं, जहाँ वे पढ़ाते हैं और प्रदर्शनियों में निर्णायक की भूमिका निभाते हैं। अपने पुरस्कारों में, डाकोजी को आंध्र प्रदेश से ग्राफिक्स के लिए गोल्ड मेडल, एल.के.ए. सन1975 में मिला; इसके साथ ही उन्हें सन 1983 में ललित कला अकादमी का राष्ट्रीय चित्रकला पुरस्कार भी प्राप्त हुआ। उन्होंने इस तकनीक के साथ समर्पण के साथ काम किया।सप्टेम्बर 2023में उनके सभी कलाकृति कारेट्रोस्पेक्टिव्ह् प्रदशन नेशनल गैलरी ऑफ मॉडर्न आर्ट, बेंगलुरुमें हुवा था।4

चित्र:3 "मेज़ोट" अंतर्राष्ट्रीय कार्यशाला (2018)

नेशनल गैलरी ऑफ मॉडर्न आर्ट, बेंगलुरु में आयोजित उनके रेट्रोस्पेक्टिव प्रदर्शनी के दौरान मेरी मुलाकात हुई, “जिसमें उन्होंने मेज़ोटिंट कला के बारे में अपने अनुभव साझा किया। लंदन में अध्ययन के समय उनके प्रोफेसर ने उन्हें एक प्रदर्शनी में साथ ले गये, जहाँ पहली बार उन्होंने मेज़ोटिंट प्रिंट्स को देखा। यह अनुभव उनके लिए बेहद प्रेरणादायक था, और यहीं से उन्होंने इस विधा में काम करना शुरू किया। उनके प्रोफेसर ने शुरुआती चरण में उन्हें एक विशेषज्ञ शिक्षक से प्रशिक्षण दिलवाया, जहाँ उन्होंने टूल्स से लेकर प्रिंटिंग तक की पूरी प्रक्रिया को बारीकी से सीखा। इसी दौरान उन्हें जानकारी मिली कि “भारत में सबसे पहले मेज़ोटिंट की शुरुआत मोहम्मद यासीन ने की थी”5, जो हैदराबाद के कलाकार थे। हालांकि, उस समय यह विधा खास सफल नहीं हो पाई थी। देवराज डेकोजी ने इस कला में नवाचार करते हुए तीन प्लेटें तैयार कीं, जिनमें उन्होंने एचिंग और मेज़ोटिंट दोनों तकनीकों का उपयोग किया, ताकि कुछ नया और अद्वितीय खोजा जा सके।”6

सन 2018 में चित्रकार यूसुफ सर ने भारत के सिवान स्थित परिवर्तन और बिहार म्यूज़ियम में "मेज़ोट" के लिए पहली अंतर्राष्ट्रीय कार्यशाला का आयोजन किया, जिसे प्रतिष्ठित क्यूरेटर श्री गाइ लांगविन द्वारा निर्देशित किया गया। इस कार्यशाला में भाग लेने वाले प्रिंटमेकरों ने मेज़ोटिंट तकनीक की विशिष्टता और इसके पुनरुद्धार की संभावनाओं को समझा। यह प्रक्रिया अपनी अनूठी पहचान पहले ही स्थापित कर चुकी है और आज भी प्रासंगिक है, क्योंकि इसमें रासायनिक का उपयोग नहीं होता और यह पूरी तरह गैर-रासायनिक है। इसे सीमित स्थान और न्यूनतम उपकरणों के साथ आसानी से अपनाया जा सकता है, जिससे यह पर्यावरण के प्रति जागरूक और सुरक्षित प्रिंटमेकिंग विधि अपनाने के इच्छुक कलाकारों के लिए अधिक सुलभ हो जाती है।

छापाकलाकार श्री दत्तात्रेय आप्टे, जो गढ़ी स्टूडियो में कार्यरत हैं, उन्होंने अपने कला सफर में एक महत्वपूर्ण अनुभव को साझा उन्होंने प्रारंभ में एचिंग प्लेट पर मेज़ोटिंट तकनीक के साथ प्रयोग करते हुए 7-8 प्लेटों पर काम किया, जिसके बाद रॉकर टूल का उपयोग करके इस विधा में और गहराई से कार्य किया। सिवान में श्री युसूफ द्वारा आयोजित पहली मेज़ोटिंट कार्यशाला में भाग लेने के बाद, श्री आप्टे का दृष्टिकोण बदल गया। इस कार्यशाला में उन्होंने विदेशी कलाकारों से मेज़ोटिंट की जटिल और सूक्ष्म प्रक्रियाओं को समझा और सीखा। इस अनुभव ने उन्हें मेज़ोटिंट कला को और बेहतर ढंग से अपनाने और इस विधा में निपुणता हासिल करने की प्रेरणा दी। उनके इस अनुभव ने उनके कला को एक नई दिशा दी, जिससे वे इस विधा में और भी उत्कृष्ट कार्य कर रहे है।7

चित्र:4 तरुण शर्मा “शीर्षकहिन” (2022)
मेज़ोटिंट की यह टोनल प्रक्रिया रेखीय स्वरों के मुकाबले अधिक सहज मानी जाती है और अभिव्यक्ति के प्रभावी साधन के रूप में उभरती है। आज के प्रदूषित वातावरण में, जहां अधिकांश प्रिंटमेकिंग प्रक्रियाओं में विषैले रसायनों का उपयोग होता है, जो कलाकारों के स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव डालते हैं, ऐसे समय में मेज़ोटिंट एक सुरक्षित और प्रभावशाली विकल्प के रूप में सामने आता है। हालांकि अभी सीमित संख्या में ही कलाकार गैर-विषाक्त सामग्री का उपयोग कर रहे हैं, फिर भी मेज़ोटिंट न केवल कलात्मक अभिव्यक्ति को नए आयाम देता है, बल्कि कलाकारों के स्वास्थ्य के लिए भी बेहद लाभकारी सिद्ध हो सकता है।

वर्तमान में, भारत में कई प्रमुख कलाकार मेज़ोटिंट तकनीक के माध्यम से कला जगत में महत्वपूर्ण बदलाव ला रहे हैं। गोवा के हनुमान कांबली, मुंबई से दिलीप शर्मा,हैदराबाद के चिप्पा सुधाकर, बड़ौदा के विजय बगोदी और सुनील दर्जी इस क्षेत्र में अपनी कार्य का प्रदर्शन कर रहे हैं। और भी प्रतिभाशाली छापा कलाकार अतिन बसक, पी. डी. धुमाल, सुशांत गुहा, आनंदमोय ब्यानर्जी ने शिवान कार्यशाला में मेज़ोटिन्ट विधि में कार्य किया। नई दिल्ली के गढ़ी स्टूडियो में तरुण शर्मा और तुषार सहाय भी मेज़ोटिंट के क्षेत्र में सक्रियता से योगदान दे रहे हैं। तरुण शर्मा युवा कलाकारएक दृश्य कला के साधक हैं, जिनका काम हमारे आस-पास रोज़मर्रा में होने वाली छोटी-छोटी चीजों से प्रेरित है। उन्होंने नई दिल्ली, भारत के कॉलेज ऑफ़ आर्ट से एमएफए की डिग्री प्राप्त की है और ललित कला अकादमी (राष्ट्रीय कला अकादमी) 2019-20 से प्रिंटमेकिंग में शोध छात्र रहे है। उनके कार्यों में चित्र, पेंटिंग, मेज़ोटिंट प्रिंट, वुडकट प्रिंट और इंस्टॉलेशन शामिल हैं। उन्होंने न्यूयॉर्क के मैनहैटन ग्राफ़िक्स सेंटर से मेज़ोटिंट में उन्नत प्रशिक्षण प्राप्त किया है।8
चित्र:5 चंद्रशेखर वाघमारे “द ड्रीम कलेक्टर (The Dream Collector)” (2024)

विशेष रूप से युवाओं में नवाचार की एक प्रेरणादायक मिसाल प्रस्तुत करते हुए, विनय गुसैन्न ने स्वयं रॉकर टूल की निर्माण प्रक्रिया को सफलतापूर्वक पूरा किया, जिसे 'मेडवा' (चित्र क्र.5) नाम दिया गया। यह पहल मेज़ोटिंट के अभ्यास में एक महत्वपूर्ण योगदान है, क्योंकि इससे नए युवा कलाकारों को कम लागत में आवश्यक टूल्स उपलब्ध हो सकते हैं। विदेश में उपलब्ध 'ईसीलिओन' नामक रॉकर टूल्स महंगे होने के कारण, 'मेडवा' की उपलब्धता स्थानीय कलाकारों के लिए एक बड़ा लाभ साबित हो सकती है।नागपुर के ओरेंज अतेलिएर में स्वं मैं भी मेज़ोटिंट तकनीक में अपने कार्य के माध्यम से इस कला के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं। इन सभी कलाकारों की सक्रियता और नवाचार मेज़ोटिंट कला की पुनरावृत्ति और विकास में सहायक हो रही है, जिससे इस कला रूप को भारत में नई पहचान मिल रही है।

तकनीक और प्रक्रियाएं:

मेज़ोटिन्ट में एक विशिष्ट उपकरण जिसे रॉकर (चित्र क्र.7) कहा जाता है, का उपयोग करके एक तांबे या स्टील प्लेट पर टोनल ग्रेडेशन बनाने की एक सूक्ष्म प्रक्रिया शामिल होती है। प्लेट को स्याही रखने के लिए रॉकर माध्यान से खुरेदा जाता है, और फिर कलाकार विभिन्न टोन प्राप्त करने के लिए क्षेत्रों को चयनात्मक रूप से चिकना करता है, जिससे मुद्रित होने पर एक समृद्ध बनावट वाली छवि बनती है। यह श्रम-गहन तकनीक धैर्य और कौशल की मांग करती है, जिससे प्रत्येक मेज़ोटिन्ट प्रिंट एक अनूठा कलाकृति बन जाती है, जिसकी विशेषता इसकी मखमली काले और सूक्ष्म संक्रमण होती है।

मेज़ोटिन्ट प्रिंट बनाने की विधि

चित्र:6 विनय गुसैन्न “मेडवा” (२०२४)

मेज़ोटिन्ट एक परिष्कृत इंटाग्लियो प्रिंटमेकिंग तकनीक है जो अपने समृद्ध काले और सूक्ष्म टोनल विविधताओं के लिए जानी जाती है। यह विधि मेज़ोटिन्ट प्रिंट बनाने की व्यवस्थित प्रक्रिया का विवरण देती है, जिसमें आवश्यक सामग्री और प्रत्येक चरण को विस्तार से बताया गया है।

आवश्यक सामग्री: मेज़ोटिन्ट प्रिंट बनाने के लिए आपको निम्नलिखित सामग्री की आवश्यकता होगी: तांबे की प्लेट,रॉकर टूल (जैसे 45, 50, 65, 85,100, 150 दांत प्रति इंच), स्क्रेपर(चित्र क्र.7), बर्निशर, पेंसिल,कार्बन या ट्रांसफर पेपर, रोलर, स्याही (प्रिंटिंग इंक), बटर पेपर या तारलतान कपड़ा, एचिंग प्रेस, गीला कागज इत्यादि

  
चित्र:7 ऑरेंज अतेलिएर “रॉकप्लेट”(२०२१)      चित्र:8 ऑरेंज अतेलिएर “रॉकर,बर्निशर,स्क्रेपर”(२०२१)

विधि 1: तांबे की प्लेट तैयार करने के लिए उसे अच्छी तरह से साफ करके शुरू करें। प्लेट के किनारों को हल्का बेवेल करें, इसके लिए बेवेल या स्क्रेपर टूल का इस्तेमाल करें। रॉकर टूल के वांछित बनावट के अनुसार, 45 से 100 दांत प्रति इंच के रॉकर टूल का चयन करें। रॉकर टूल को 45-55 डिग्री के आरामदायक कोण पर रखें, कलाई की ओर लहरदार हिस्सा हो। प्लेट पर समान दबाव डालते हुए, गोलाकार गति में रॉकर टूल को चलाएं, सुनिश्चित करें कि सभी जगह समान रूप से कवर हो। प्रत्येक पास के बाद प्लेट को घुमाएं और प्रक्रिया को तब तक दोहराएं जब तक कि प्लेट पर जालीदार पोत जैसी सतह (ग्राउंड) बन जाए।

चित्र:9 ऑरेंज अतेलिएर “रॉकर कोण”(2021)
विधि 2: छवि का ट्रेसिंग, जब प्लेट पूरी तरह तैयार हो जाए, तब अपनी छवि को उस पर ट्रेस या ट्रांसफर करने के लिए पेंसिल या कार्बन/ट्रांसफर पेपर का उपयोग करें। फिर, प्लेट के उन हिस्सों को खुरेदना (ट्रिम) होगा और प्रकाश व छाया के क्षेत्रों को परिभाषित करने के लिए स्क्रेपर का इस्तेमाल करें, ध्यान से नियंत्रित दबाव लगाते हुए। रॉकर टूल द्वारा बनाए गए गहरे कट्स को हल्का करने से, प्लेट पर ऐसी बनावट बनती है जो स्याही को पकड़ती है। स्क्रेपर की कुशलता से उपयोग करने से कलाकार प्लेट पर छाया से लेकर प्रकाश तक हल्के टोनल प्रभावों तक का नियंत्रण प्राप्त कर सकता है।

विधि 3: प्रूफ प्रिंट,प्रिंटिंग से पहले छवि का मूल्यांकन करने के लिए एक प्रूफ प्रिंट बनाएं। इसके लिए प्लेट की सतह पर रोलर का उपयोग करके स्याही लगाएं, ताकि यह समान रूप से फैले। फिर, बटर पेपर या तारलतान कपड़े से हल्के से थम्बिंग या वाइपिंग करके अतिरिक्त स्याही को हटा दें। ध्यान रहे कि सतह को अत्यधिक वाइप न करें ताकि वह क्षतिग्रस्त न हो और अतिरिक्त स्याही न रह जाए।

विधि 4: अंतिम प्रिंटिंग,प्लेट को पोंछने के बाद, कागज को पानी में भिगोएं ताकि वह मुलायम हो जाए। फिर, एचिंग प्रेस का उपयोग करते हुए अत्यधिक दबाव डालें, जिससे स्याही कागज पर स्थानांतरित हो जाए। इस प्रक्रिया से मेज़ोटिंट प्रिंट तैयार होता है, जिसमें गहरे काले रंग और नाटकीय चियारोस्कुरो (प्रकाश और छाया) प्रभाव उत्पन्न होते हैं। अंत में प्रिंट को सूखने के लिए रखना जरुरी होता है।9

निष्कर्ष: मेज़ोटिंट तकनीक, अपनी अद्वितीय टोनल गहराई और बारीक बनावट के कारण, भारतीय प्रिंटमेकिंग में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही है। इस कला का इतिहास औपनिवेशिक युग से जुड़ा है, जब इसे भारतीय विषयों के चित्रण के लिए इस्तेमाल किया गया। आज, इस विधा का पुनरुत्थान भारतीय कलाकारों द्वारा पर्यावरण के अनुकूल और गैर-रसायनिक प्रिंटमेकिंग तकनीकों की ओर रुझान के कारण हुआ है। मेज़ोटिंट की प्रक्रिया, जिसमें विषैले रसायनों का प्रयोग नहीं होता, न केवल पर्यावरण की दृष्टि से सुरक्षित है, बल्कि यह कलाकारों के स्वास्थ्य के लिए भी अत्यधिक लाभकारी साबित हो रही है। यह तकनीक गहन धैर्य और कुशलता की मांग करती है, परंतु आधुनिक प्रिंटमेकिंग में आवश्यक उपकरणों की उपलब्धता ने इसे अधिक सुलभ बना दिया है। देवराज डाकोजी और अन्य भारतीय कलाकारों के योगदान ने इस विधा को नए सिरे से जीवंत किया है, जिससे यह समकालीन भारतीय कला में पुनः प्रतिष्ठित हो रही है। मेज़ोटिंट की टोनल विशेषताएं और इसकी अनूठी प्रस्तुति, कलाकारों और कला प्रेमियों को एक नया दृष्टिकोण प्रदान करती हैं, एवं मेज़ोटिंट विधि की जानकारी नविन कलाकरो के लिए उपयोगी सिद्ध होगी,जिससे यह कला विश्व स्तर पर भी पुनः अपनी जगह बना रही है।

संदर्भ
1 Wax, C. (1990). The Mezzotint: History and Technique. Published by Thames & Hudson, Ltd.,.
4Devraj Dakoji PAST EXHIBITION at Blackburn 20|23, E. R. (2023, September 7). Efa Robert Blackburn Studio. Retrieved from https://www.rbpmw-efanyc.org/armory-2023
5Wghamare, C. (2023). Interview od Master Printer Devraj Dakoji [Recorded by D. Dakoji]. Banglore.
6Dakoji, D. (2023, september 12). Master Printer Devaraj Dakoji. (C. Waghmare, Interviewer)
7Apte, D. (2024, Jan 22). Apte Printmaking. (C. Waghmare, Interviewer)
8Sharma, T. (2023). Google. Retrieved from https://mail.google.com/mail/u/0/#inbox
9 Skolozynski, J. N. (2019). Retrieved from https://youtu.be/jikAwCcc0uI

चित्र सूची :
  1. ज़ॉफ़नी, योहान। (1800). हैदरबेक [प्रिंट]. प्राप्त किया गया: https://www.georgeglazer.com/wpmain/wp-content/uploads/2018/11/embassy-hyderbeck.jpg
  2. डाकोजी, देवराज। (1975). शीर्षकहिन [प्रिंट]. प्राप्त किया गया: https://www.rbpmw-efanyc.org/armory-2023
  3. (n.d.). छवि [फोटो]. प्राप्त किया गया: https://www.facebook.com/share/p/r1vdrTTcyGLvDbNC/?mibextid=oFDknk
  4. शर्मा, तरुण। (2022). शीर्षकहिन [प्रिंट]. निजी ईमेल के माध्यम से प्राप्त।
  5. वाघमारे, चंद्रशेखर। (2024). The Dream Collector [प्रिंट]. निजी संग्रह।
  6. गुसैन्न, विनय। (2024). छवि [फोटो]. व्हाट्सएप के माध्यम से प्राप्त।
  7. अतेलिएर, ऑरेंज। (2021). रॉकप्लेट [फोटो]. निजी संग्रह।
  8. अतेलिएर, ऑरेंज। (2021). रॉकर, बर्निशर, स्क्रेपर [फोटो]. निजी संग्रह।
  9. अतेलिएर, ऑरेंज। (2021). रॉकर कोण [फोटो]. निजी संग्रह।

चंद्रशेखर वसंतराव वाघमारे
शोधार्थी (ललित कला विभाग), राष्ट्रसंत तुकडोजी महाराज नागपुर विश्वविद्यालय, नागपुर

शशिकांत रेवडे
प्रिंसिपल श्री कला महाविद्यालय अंजी, वर्धा
srewade@gmail.com, 7709019533



दृश्यकला विशेषांक
अतिथि सम्पादक  तनुजा सिंह एवं संदीप कुमार मेघवाल
चित्तौड़गढ़ (राजस्थान) से प्रकाशित पत्रिका 
  अपनी माटी (ISSN 2322-0724 Apni Maati) अंक-55, अक्टूबर, 2024 UGC CARE Approved Journal

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