जयनंदन की कहानियों में बालपात्र
- रूचि कुमारी

बीज शब्द : मनोदशा, हृदय परिवर्तन, बाल पात्र, संवेदना, बालमन, मनःस्थिति, शोषण, प्रताड़ित, उत्पीड़न, समस्याएं, बीमार, निश्छल व्यवहार, वात्सल्य, विद्यार्थी, कुष्ठ रोग।
मूल आलेख : हिन्दी साहित्य विभिन्न विषय-वस्तुओं से भरा पड़ा है। इसमें धर्म-संप्रदाय, राजनीति, ऊँच-नीच, स्त्री-पुरुष, आदिवासी, मजदूर, वृद्ध आदि विषयों पर बहुत सारे लेखकों ने व्यापक लिखा है। इन रचनाओं में अनेक प्रकार की सामाजिक-आर्थिक समस्याओं का भी चित्रण किया गया है किन्तु प्रेमचंद, जैनेन्द्र, विश्वम्भरनाथ शर्मा कौशिक, हरिकृष्ण देवसरे, सर्वेश्वर दयाल सक्सेना, सृंजय आदि लेखकों ने बच्चों को केंद्र में रख कर कहानियां लिखी हैं। इसी क्रम में बाल साहित्य लेखन में समकालीन कथाकार जयनन्दन ने भी अपना नाम प्रमुख रूप से दर्ज किया है। जयनन्दन विविध विषयों पर डेढ़ सौ से अधिक कहानियां लिख चुके हैं। अपने विविध विषयक कहानियों में लगभग सभी प्रकार के पात्रों को स्थान दिया है। जिनमें बाल पात्र भी प्रमुख हैं।
जयनन्दन प्रेमचंद की परंपरा के कहानीकार हैं। जिस प्रकार प्रेमचंद ने कहानियों और उपन्यासों को मानवीय मूल्य तथा जीवन संघर्ष से जोड़कर समाजोन्मुख बनाया है उसी प्रकार जयनन्दन ने सभी प्रकार के आंदोलनों से मुक्त होकर कहानी को नई दिशा तथा विभिन्न आयाम से जोड़ा। ये सामाजिक यथार्थ के उन मौलिक पक्षों को अपना विषय बनाते हैं जो गहरे सामाजिक सरोकार से जुड़े होते हैं। इनकी कहानियों में स्त्रियाँ, बच्चे, दलित, मजदूर, किसान, वृद्ध सभी गहरी संवेदना के साथ उभरते हैं। जयनन्दन की बाल जीवन से जुड़ी कहानियों में भी समाजिक यथार्थ का चित्रण हुआ है। ‘कायांतरण’, ‘घर निकाला’, ‘गन्नू’, और ‘गाँव का सबसे छोटा आदमी’ कहानियों में बाल चरित्रों को मुख्य पात्रों के रूप में रेखांकित किया गया है, वहीं ‘पानी बीच मीन पियासी’, ‘पाकिस्तानी एजेंट’ कहानियों में सहायक पात्रों के रूप में प्रस्तुत किया है। जयनन्दन ने इन कहानियों में बच्चों की समस्या, मनोदशा, निश्छलता आदि का अत्यंत सुन्दर चित्रण किया है।
प्रेमचंद की कहानी ‘ईदगाह’ के बाल पात्र हामिद की याद दिलाती है जयनंदन की कहानी ‘कायांतरण’। यह कहानी ‘पराजित चोर’ के नाम से बच्चों की पत्रिका ‘पराग’ में प्रकाशित हो चुकी है और इसका संकलन ‘गुहार’ कहानी संग्रह में हुआ है। कहानी का मुख्य पात्र श्लेष आठ वर्ष का बालक है। वह अपने बीमार पिता की सेवा करता है। उसकी माता की मृत्यु हो चुकी है। श्लेष के पिता बहुत दिनों से बीमार हैं और उन्हें कई दिनों बाद नींद आई है तभी रात में उसके घर में चोर आता है चोर का पैर जख्मी हो गया था। श्लेष उससे कहता है। “तुम्हारे पैर जख्मी हो गये हैं, लेकिन तुम दर्द से रोना कराहना नहीं, नहीं तो मेरे पापा की नींद खुल जाएगी। बड़ी मुश्किल से कई दिनों के बाद आज उन्हें नींद आयी है। मैं तुम्हारे लिए मरहम- पट्टी लेकर आता हूँ।”1
श्लेष चोर के जख्म पर मरहम पट्टी करता है, उसे खाने को देता है। वह चोर से कहता है “तुम हमारे घर से जो चीजें लेना चाहते हो, ले लो और गेट से चले जाओ। मैं ताला खोल देता हूँ।”2 क्योंकि दीवार पर कांच लगे होने से चोट लग जाएगी। श्लेष के इस व्यवहार से से चोर अचंभित होकर बताता है कि वह चोर है तब श्लेष उस से कहता है “हाँ मैं जानता हूँ, तुम चोर हो। लेकिन मैं चिल्ला नहीं सकता, चूंकि मेरे बीमार पापा को आठ रोज बाद नींद आई है। डॉक्टर अंकल ने कहा है कि इन्हें नींद लगे तो किसी भी तरह बीच में टूट न पाये। तुम चोर हो मगर तुम्हारे पैर जख्मी हो गये हैं, पापा ने मुझे सिखाया है कि आदमी कोई भी हो, कैसा भी हो, अगर वह तकलीफ में है तो उसकी मदद करनी चाहिए।”3
चोर जब चोरी करने से मना करता है तब श्लेष उस से कहता है “चोर अंकल, तुम विश्वास करो, मैं शोर नहीं मचाऊँगा। घर के सामानों से मेरे बीमार पापा की नींद ज्यादा महंगी है। ऐसे भी जहां मम्मी गई हैं, वहाँ पापा को भी चले जाना है और मुझे भी। समान तो यहीं रह जाएगा।”4 श्लेष के निश्चल बाल-वृत्ति से चोर बुरी तरह पराजित हो गया और रोते हुए वात्सल्य से भरकर श्लेष को गोद में बिठाकर बोला “भैया श्लेष ! तुम्हें जो सलूक का ढंग आता है वह तो बड़े-बड़े ऋषि मुनियों को भी नहीं आया होगा। अब मैं इस घर से नहीं जाऊंगा। तुम्हारे पापा जब जाग जाएंगे तो उनसे मैं एक विनती करूंगा। यही कि आपके घर से एक नौकर चोर बनकर भाग गया था और अब एक चोर आकर नौकर बन जाना चाहता है।”5 श्लेष के प्रेम भरे निश्छल व्यवहार के कारण चोर का हृदय परिवर्तित हो जाता है।
जयनन्दन की कहानी ‘घर निकाला’ कुष्ठ रोग से पीड़ित दस वर्षीय अंगद के संवेदनशील मनोदशा की अभिव्यक्ति है। इस कहानी का संकलन ‘दाल नहीं गलेगी अब’ कहानी संग्रह में हुआ है। दस वर्षीय मासूम अंगद को स्कूल से निकाल दिया जाता है क्योंकि उसे कुष्ठ रोग हो गया है। वह अपनी कक्षा का सबसे तेज विद्यार्थी है परंतु उसे उसकी बीमारी के कारण बीच कक्षा से उठा कर घर जाने के लिए हेडमास्टर द्वारा बोला जाता है। उसे स्कूल से निकालने पर उसके हिन्दी के शिक्षक ज्ञानदेव बाबू हेडमास्टर से कहते हैं “लेकिन सर! कुष्ठ ऐसा रोग नहीं कि इससे छूत लगे। ........सर अंगद वर्ग का प्रथम विद्यार्थी है, शिक्षा से इसे वंचित करना अन्याय होगा।”6
अंगद की इस बीमारी के कारण उसके बड़े भाई-भाभी अपने बच्चों को लेकर किराये के घर में चले जाते हैं। मझली दीदी और जीजा भी उससे दूर रहते हैं, कोई भी बच्चा उसके साथ नहीं खेलता। स्कूल न जाने व घर में परिजनों के उपेक्षित व्यवहार के कारण अंगद के मन को बहुत पीड़ा पहुँचती है। उसकी छोटी दीदी की शादी के लिए उसे गोशाला में बंद कर दिया जाता है। लेखक ने इस विकट परिस्थिति में बाल अंगद के आहत मन का सुन्दर वर्णन किया है “ मुझे बीमारी हो गई है दीदी, अब मैं तुम्हारी गोद में नहीं चढ़ सकता। .........मुझे अब कोई प्यार नहीं करता दीदी.......... कोई मुझे छूना नहीं चाहता।”7 शादी के दौरान लोगों से नजरे बचाकर उसकी माँ, पिता और बड़ी दीदी ही उससे मिलने आते हैं। लेखक ने अकेले बंद कमरे में अंगद की स्थिति का चित्रण किया है “एक बंद कमरे में अंगद अकेला होता है तो उसका समय मानो ठहर जाता है। एक बेचैनी और खुजलाहट समा जाती है पूरे शरीर में। मानो दवा उसे जितना फायदा पहुँचा रही है, लोगों का उसके प्रति उपेक्षा-भाव, क्षुद्र दृष्टिकोण और बंद कमरा उससे ज्यादा हानि पहुँचा रहा है। वह हमेशा ललक भरे मन से देखना चाहता है बाहर की चहल पहल।”8
कहानी बाल अंगद के मन की पीड़ा को उद्घाटित करती है। अंगद का बालमन कभी-कभी दीवार की फांक से झांक कर देखता है और सोचता है “कुछ बच्चे बरगद के नीचे क्रिकेट खेल रहे हैं। कौन-कौन है? शायद रामू, गुड्डन, दीपू.........सभी उसके क्लास फ्रेंड ........... अब तो वार्षिक परीक्षा भी हो गई होगी।। इस बार मेरी जगह गुड्डन ने ले ली होगी।। सेकेंड करता था अबकी फर्स्ट कर गया होगा। बुलाकर पुछ लें.......नहीं-नहीं......... उन्हें तो मेरे पास आने से घरवालों ने मना कर दिया होगा।”9 यह कहानी उपेक्षित अंगद के मर्मांहत पीड़ा को बयां करती है। उसके हिन्दी के मास्टर ज्ञानदेव बाबू उसके इलाज के लिए नए आश्रम के कुष्ठ चिकित्सा-केंद्र की जानकारी उसके पिता को देते हैं और उनसे कहते हैं “दवा असर करे इसके लिए जरूरी है कि मन से हीन भावना निकाल कर इलाज के प्रति आस्था पैदा की जाए। यह कोई ऐसा शाप नहीं जिसके कारण पढ़ा-लिखा न जाए.........खेल-कूदा न जाए........ घूमा-फिरा न जाए।”10
अंगद पर दवा का असर होता है और वह धीरे-धीरे ठीक हो जाता है। वह अपना जीवन कुष्ठ रोगी की सेवा में समर्पित करता है। यह कहानी कुष्ठ रोग से पीड़ित, बेचैन और अपमानित मासूम अंगद के मनःस्थिति पर प्रकाश डालता है साथ ही कुष्ठ रोग के प्रति भी जागरूकता पैदा करते हुए रोगी के प्रति प्रेमपूर्ण आत्मीय व्यवहार की पैरवी करता है।
‘गन्नू’ कहानी ‘मंत्री क्या बने लाट हो गये’ कहानी संग्रह में संकलित है। यह कहानी गाँव में उचित शिक्षा व्यवस्था न होने के कारण एक दस वर्ष के बच्चे का अपने माता-पिता से दूर रह कर पढ़ने की समस्या को केंद्र में रख कर लिखी गयी है। गन्नू पाँचवी कक्षा की पढ़ाई करने के बाद आगे की पढ़ाई के लिए अपने चाचा के पास शहर जाता है। उसके गाँव में प्राथमिक विद्यालय से आगे पढ़ने का साधन नहीं है। वह अपने पिता की इच्छा से अपने चाचा-चाची के पास टाटा चला जाता है परंतु उसकी चाची और चचेरे भाई तरेंगन को उसका आना अच्छा नहीं लगता है। वे उसे समझाते हैं कि घर का कोई भी चीज वह न छूए और उसे जो चाहिए अपने चाचा से मांग ले। उसकी चाची ने उसे पढ़ने के लिए बालकनी में जगह दी है। वह छठी कक्षा के वार्षिक परीक्षा में कक्षा में अव्वल आता है जिस कारण उसके चाची और भाई उससे चिढ़ने लगते हैं। एक दिन तरेंगन का मोबाईल गायब हो जाता है। उसकी चाची उसे दोष देती है। उसे एक तमाचा मार कर स्टोर रूम में बंद कर देती है और कहती है-“जब तक बताओगे नहीं भूखे-प्यासे बंद रहोगे। जानते ही हो की तुम पर दया बरसाने वाले तुम्हारे मेहरबान चाचाश्री यहाँ नहीं हैं।”11 वे दो दिन तक उसे स्टोर रूम में बंद रखती है। चाचा आते हैं तो उसे स्टोर रूम से निकालते हैं। वे गन्नू को उसके पिता से फोन पर बात करवाते हैं। पिता के वात्सल्य भरे सुरीली आवाज ‘बोलो सोना’ सुनते ही वह रोने लगता है। उसके पिता पूछते हैं “तू रो रहा है गन्नू?”12 गन्नू अपने पिता से कहता है “बापू, अब हम बड़ा हो गये हैं, शहर ने हमको होशियार बना दिया है। मँजौर में जा सकते हैं पढ़ने। जैसा भी स्कूल होगा, हम वहाँ भी अच्छा पढ़ लेंगे। आपका, माई का और गोली का विछोह हमसे सहा नहीं जाता।”13 यह पंक्ति मासूम गन्नू के खिन्न मनोदशा का वर्णन करती है जब उसे अपने ही परिवार के लोग प्रताड़ित करते हैं। कहानी बालमन की पीड़ा का सुंदर चित्रण करती है।
‘गाँव का सबसे छोटा आदमी’ कहानी का बाल पात्र ‘जुम्मा’ है। यह कहानी बाल यौन शोषण, दलित उत्पीड़न और व्याभिचार पर केंद्रित है। कथानायक लोटन डोम गाँव के अस्पताल में मेहतर का काम करता है। वह अपने बेटे जुम्मा को युग-युग की हिकारत, दुरदुराहट तथा शोषण से मुक्त करने के लिए डाक्टर बनाना चाहता है। वह रोज जुम्मा को स्कूल भेजता है और गाँव के सवर्ण शिक्षकों से विनती करता है कि उसके बेटे की पढ़ाई पर ध्यान दें। बाल जुम्मा कुछ दिन बाद स्कूल जाने से मना करते हुए कहता है “अब हमको स्कूल मत भेजो मैया......अब हम नहीं पढ़ेंगे.......जो काम कहोगे, हम करेंगे।”14 इस कारण लोटन उसे बहुत मारता है। वह स्कूल न जाने का कारण बताते हुए अपना खून से रंगा पैंट पिता के समक्ष रख देता है “जुम्मा विवश हो गया .....कई रोज से चेहरे पर जमी झिझक अब पिघल गयी। वह बहुत बोझिल कदमों से चल कर अपने मड़ई के भीतर पहुंचा और गूदड़ वाले एक थैले से एक कपड़ा निकाला, फिर उसे लाकर लोटन के सामने फैला दिया और फुट-फुटकर रो पड़ा, अपनी जिद दोहराते कि अब हमें स्कूल मत भेजो बाऊ.....अब हमें स्कूल मत भेजो।”15 इससे लोटन सन्न रह जाता है। जुम्मा का यौन शोषण उसके स्कूल के मास्टर टिका मिसिर करते हैं “यही टिका मिसिर रोज बगल के गाँव के मंदिर में जा कर एक घंटा पूजा किया करता था और गोल टिका ललाट में लगा दिनभर पंडित बना फिरता था। कितना ढोंगी और जालिम सिद्ध हुआ यह साधु दिखने वाला चेहरा !......और फिर कितनी गूंगी है वह देवता की मूरत, जिसकी रोज आराधना के नाम पर पाखंड कर रहा था वह पापी ! एक सर्वशक्तिमान के आँखों में धूल झोंके और उसकी कोई सजा नहीं !”16 यह कहानी बच्चों के साथ होने वाली यौन शोषण की घटनाओं के प्रति सचेत करते हुए समाज में हो रहे यौन हिंसा का उद्घाटन करती है। जयनन्दन द्वारा लिखित बाल कहानियां बालकों को केंद्र में रखकर उनके मनोविज्ञान को समझने का प्रयास करने के साथ बच्चों को नैतिक मूल्य की शिक्षा भी देती है।
जयनन्दन ने अपनी कहानियों में बाल जीवन का चित्रण सामाजिक यथार्थ के आधार पर किया है। गाँव में स्कूल न होने के कारण माँ-बाप बच्चों को मजबूरीवश शहर में किसी रिश्तेदार के पास भेज देते हैं। जहां उसके साथ सौतेला व्यवहार होता है। लेखक ने इस सामाजिक सत्य को ‘गन्नू’ कहानी के माध्यम से चित्रित किया है, जिसे अपनी चाची के माध्यम से प्रताडित होना पड़ता है। बाल यौन शोषण आज के समाज की एक कड़वी सच्चाई है। लेखक ने समाज के इस भयावह सच्चाई का उजागर ‘गाँव का सबसे छोटा आदमी’ कहानी के जुम्मा के माध्यम से किया है। बालक जुम्मा का यौन शोषण विद्या के दाता अर्थात उसके मास्टर द्वारा ही किया जाता है। यह कहानी बच्चों के साथ होने वाले अन्याय, शोषण और उत्पीड़न का विरोध करते हुए उनपर विशेष ध्यान देने का आग्रह करती है। ‘घर निकाला’ कहानी कुष्ठ रोगी अंगद की समाज व परिवार द्वारा किए जा रहे उपेक्षा का चित्रण करती है। अंगद की समस्या को सुलझाने के बजाय सभी उसे घृणित दृष्टि से देखते हैं। जिससे अंगद उपेक्षित महसूस करता है। ‘कायांतरण’ कहानी एक मासूम बच्चे श्लेष के शालीन व्यवहार द्वारा हृदय जीतने की कथा है।
निष्कर्ष : बच्चे किसी भी समाज या देश का भविष्य होते है। उनकी परवरिश अच्छे से की जानी चाहिए। जयनन्दन अपनी कहानियों के माध्यम से बालकों के मानसिक-सामाजिक उत्थान पर विचार करते हुए समय और समाज के परिप्रेक्ष्य में बालमन को समझने, उनके परवरिश, विकास, आकांक्षा व अधिकारों के प्रति हमें सचेत करते हैं।
संदर्भ :
- जयनन्दन, गुहार, रे माधव प्रकाशन, गाजियाबाद, 2008, पृष्ठ संख्या-114.
- वही, पृष्ठ संख्या-115.
- जयनन्दन, गुहार, रे माधव प्रकाशन, गाजियाबाद, 2008, पृष्ठ संख्या-114.
- वही, पृष्ठ संख्या-115.
- वही, पृष्ठ संख्या-116
- जयनन्दन, मायावी क्षितिज, प्रलेक प्रकाशन प्राइवेट लिमिटेड, मुंबई, 2021, पृष्ठ संख्या-65
- वही, पृष्ठ संख्या-69
- वही, पृष्ठ संख्या-70
- जयनन्दन, मायावी क्षितिज, प्रलेक प्रकाशन प्राइवेट लिमिटेड, मुंबई, 2021, पृष्ठ संख्या-72
- वही, पृष्ठ संख्या-72
- जयनन्दन, मंत्री क्या बने लाट हो गये, नयी किताब प्रकाशन, दिल्ली, 2021, पृष्ठ संख्या-19
- वही, पृष्ठ संख्या-20
- जयनन्दन, मंत्री क्या बने लाट हो गये, नयी किताब प्रकाशन, दिल्ली, 2021, पृष्ठ संख्या-20
- जयनन्दन, सन्नाटा-भंग, दिशा प्रकाशन नई दिल्ली, 1993, पृष्ठ संख्या-178
- वही, पृष्ठ संख्या-179
- जयनन्दन, सन्नाटा-भंग, दिशा प्रकाशन नई दिल्ली, 1993, पृष्ठ संख्या- 180-181
रूचि कुमारी
बाल साहित्य विशेषांक
अतिथि सम्पादक : दीनानाथ मौर्य
चित्तौड़गढ़ (राजस्थान) से प्रकाशित पत्रिका
अपनी माटी (ISSN 2322-0724 Apni Maati) अंक-56, नवम्बर, 2024 UGC CARE Approved Journal
बहुत-बहुत बधाई रुचि- अमित कुमार हिन्द
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