‘अनारको के आठ दिन’ : यथार्थ से स्वप्न की यात्रा
- पारस सैनी

किताब का पलटता हर पन्ना आपके अंदर एक सवाल छोड़ जायेगा, वह सवाल जिन्हें अनारको अपने माता पिता के माध्यम से हर हाड़ मांस के बने पुतले से पूछ रही है जिन्होंने अपने बच्चे के बचपन को अपने अनुसार ढाला है। अनारको पूछ रही है सवाल हर उस शख्स से जिन्होंने सभ्यता और अनुशासन का चोला ओढ़ा अपने बच्चे के बचपन को कैद कर दिया है। वह सवाल पूछ रही है हर उस इंसान से जिन्होंने बचपन को भय की परिधि तक सीमित कर दिया है। सीधे,सरल और तीखें सवालों के साथ अनारको इस किताब में समाज पर कुछ प्रश्नचिन्ह लगती हुई हमको दिखाई देती है।
किताब में कहानी की शुरुआत अनारको के पहले दिन से होती है और पहले ही दिन अनारको घर वालों की हुक्मबाजी से परेशान होती हुई दिखाई देती है। वह हुक्मबाजी जो आमतौर पर हर घर के बच्चों पर उनके न चाहने पर जबरदस्ती की जाती है जैसे - " अन्नो पानी ले आ, अन्नो धूप में मत जाना, अन्नो बाहर अंधेरा है, कहीं मत जा, बारिश ने भीगना मत।¹
फिर जैसे ही हम कथानक में थोड़ा आगे बढ़ते है तो हम पाते है कि अन्नो जिसके माता पिता ने कभी नहीं बताया कि मंदिर में जल क्यों चढ़ाया जाता है? या जल चढ़ाने से क्या होता है? या फिर उन पंडित जी को देखे जो किसी बच्चे को ईश्वर की अपरंपार शक्ति से राबता कराते हुए दिख रहे है। फिर उसी ईश्वर की अपरंपार शक्ति को लेकर अनारकों अपने मित्र किंकु से सवाल पूछती है। तो यहां पर हमें यह देखने को मिलता है कि हमारे समाज के अभिभावकों को कितनी जल्दी है कि उनका बच्चा समाज की बनी बनाई धारणा में अभ्यस्त हो जाए बिना किसी जिज्ञासा के। लेकिन इसके बाद हम देखते है कि अनारकों अपनी जिज्ञासा को ज्यादा वरीयता देती है और मंदिर जाने की बजाय वह बगीचे चली जाती है। बगीचे में अनारकों कई दृश्य देखती है वह देखती है कि "अम्मी अम्मी होते हुए भी पिताजी लग रही थी और पिताजी पिताजी होते हुए भी अम्मी लग रहे थे।“² इस दृश्य से उसे घर में मम्मी और पापा में से ज्यादा ताकतवर कौन है यह पता चलता है। इसके बाद वह फिर अपने स्कूल का दृश्य देखती है जहां उसे उसके और मास्टरजी के बीच में ताकत के रिश्ते का भास होता है। इसके उपरांत वह अपनी सहेली फूलपत्ती और डॉक्टर के बीच का दृश्य देखती है जिसके बाद उसकी खिलखिलाहट फूट पड़ती है। और अंत तक जाते जाते वह एक सेमल का पेड़ देखती है जिसकी रुई उड़ रही है और वह पाती है कि यह दृश्य पहले देखे दृश्यों से अलग है। अलग होने का मायना स्पष्ट है कि रुई स्वतंत्र है वह एक लंबी उड़ान तय कर सकती है बिना किसी रोक टोक और भय के साथ।
अनारको के दूसरे दिन की कहानी दो सवालों पर जोर देती हुई दिखाई पड़ती है -
१. अभिभावक अपने बच्चों के सवालों से मुकरते क्यों है?
२. बच्चे की मनोस्थिति जाने बिना शिक्षकों का आक्रामक व्यवहार।
इस दिन की कहानी में अनारको अपनी मां से सवाल करती है और उसकी मां सवालों के उत्तर देने से बचती है और उत्तर देना का जिम्मा उसके पिता को सौंपती है। फिर जब वह पिता से सवाल करती है तो वह उसके सवालों को उल्टे सीधे सवाल करार देकर उत्तर देने से बचते है और इन सब चीजों को देखकर अंततः अनारकों अपने पिता से कह ही देती है कि "आप जब भी कोई चीज जानते नहीं तो यह क्यों कह देते है कि उल्टा सवाल मत कर?"³ इस दिन की कहानी में जब हम थोड़ा और आगे बढ़ते है तो हम देखिए है हिंदी की कक्षा में मास्टर जी कविता याद करा रहे है और अनारकों का मन उस कविता में रम नहीं रहा है और वह अपने ख्यालों में खोई है तो इस पर मास्टर जी अपनी प्रतिक्रिया देते हुए मास्टर जी अनारकों का कान पकड़ कर दरवाजे के बाहर धकेलकर निकाल देते है बिना अनारकों की मनःस्थिति जाने हुए और ऊपर से हवाला और हिदायत भी देते है कि पढ़ने में मन नहीं लगता, स्कूल मत आना। तो यहां पर एक बहुत बड़ा प्रश्न खड़ा होता हुआ दिखाई देता है हमें पूरे उस शिक्षा तंत्र से जो अपने इश्तिहारों में यह बताता है कि हमारे विद्यालय का माहौल बच्चे के अनुकूल है। जिसके इश्तिहारों में तो बच्चे हंसते और खेलते हुए छपे होते है लेकिन वास्तविकता में उसके क्लासरूम में इतना भय क्यों जहां एक बच्चा अपने ख्यालों में भी न खो सके? फिर इस दिन के अंतिम कथानक में मछलियों की बैठक के माध्यम से हम देखते है कि बच्चों के गले में अनुशासन का पट्टा डालकर उन्हें हम कैसे सर्कस का शेर बनाते है।
अनारको के तीसरे दिन की कहानी में हमें बाल मनोविज्ञान दिखता है। इस कहानी में अनारको अपने मन ही मन में छः बिंदु बनाती है जिसमे से सेमल के नीचे बैठना,स्कूल का काम करना, गोलू से पुनः दोस्ती करना, किंकु के घर जाकर केंचुए का हाल लेना,घर से भाग जाना और बर्तन साफ करने में अम्मी की मदद करना इत्यादि। अब वह एक बिंदु चुनने का जिम्मा एक लूडू के पासे पर सौपती है और पासा उसके लिए घर से भाग जाना बिंदु चुनता हैं। अब यहां पर यह प्रश्न उठता है कि छोटी अनारको के मन में ऐसा बिंदु उपजा क्यों? और यदि यह बिंदु उपजा है तो इसके पीछे जिम्मेदार कौन हैं?
मिसिंग किड्स नामक एक संगठन है जोकि खोए बच्चों के बचाव और उनकी रक्षा का कार्य करता है। इस संगठन के ब्लॉग कॉलम में Anna Warner एक लेख लिखती है Why kids run away+ how we can help नामक शीर्षक से। इस लेख की शुरुआती पंक्तियां अनारकों के मन में उपजे बिंदु का जवाब देती हुई हमें दिखाई देती है। Anna Warner लिखती है कि " सभी बच्चों को सुरक्षा, संरक्षा और अपनेपन की भावना की अवश्यकता होती है और वे इसके हकदार भी है। घर से भागना इस बात का संकेत हो सकता है कि बच्चों को घर को घर पर ये जरूरतें पूरी नहीं हो रही है।"⁴ आप देखेंगे कि कहानी में यह सिर्फ अनारको के मन की बात नहीं बल्कि किंकु के मन के भी मन की बात है। एक तरफ जहां अनारकों हुक्मबाज़ी से परेशान हो घर छोड़ रही है वही दूसरी तरफ किंकु मम्मी पापा की पिटाई से परेशान होकर घर छोड़ रहा है। और इसी दिन कहानी में आएं किंकु के इस कथन - " अम्मी पापा पीटते है! और पीटना क्या होता है? जब मेरे गाल के बदले मेरे मन को पीटते है,"⁵ और अनारको का यह कथन - " देख किंकु, एक घर उसके बाहर एक घर, फिर उसके बाहर एक और घर... घर ही घर। किंकु, हमें तो लगता है घर से भाग ही नहीं सकते।"⁶ इन दोनों कथनों पर आकर दर्शन, बाल मनोविज्ञान और पाठक की घड़ी कुछ समय के लिए ठहर सी जाती है और कुछ सोचने को मजबूर कर देती है।
चौथे दिन की कहानी में अनारको सपने में खोई हुई दिखती है। और आज के दिन वह जानती है कि सेमल की रुई होना क्या होता है। अनारको आज सेमल की रुई की भूमिका है एक स्वतंत्र और उन्मुक्त होकर बादलों में अपनी उड़ान तय कर रही है। और ऊंचाई से अपना घर,अपना स्कूल पेड़, मैदान देख रही है। अनारको सपने में आज खुलकर अपना बचपन जी रही है और अपनी मर्जी की सारी हरकतें कर रही है लेकिन इस सपने के संसार में खुलकर बचपन जीना,और अपनी मर्जी की सारी हरकतें करने पर भी बड़े बूढ़ों द्वारा ग्रहण लग रहा है। सपनों में समय के सफर पर चलते चलते उसे कुछ समय बाद बूढ़े से कुछ कम उम्र के लोग भी दिखाई देते है। ठीक उसके पिता की उम्र के लोग। उनके संदर्भ में वह कहती है कि "अम्मी रहती तो कहती अन्नो, ये अंकल लोग है, चलो नमस्ते करो! ' अंकल लोगों' को नमस्ते करते करते अनारको की सारी जिंदगी गुजरी थी।"⁷ हमारे समाज में नमस्ते पर्याय है संस्कार का और उस संस्कार से तय होता है कि आपके घर सभ्यता का स्तर कितना है और घर में सभ्यता का स्तर बच्चा तय करता है। अमूमन हर घर में घर बार की मान मर्यादा, इज्जत, प्रतिष्ठा का प्रभार बच्चों के पास ही होता है। घर के बड़ों की जिम्मेवारी बस घर को संचालित करने घर की इज्जत की गठरी ढोते बच्चों को सभ्यता का अनुकरण कराने तक ही सीमित रहती है।
अनारको का पांचवा आज के समय में सर्वाधिक प्रचलित उस होड़ को रेखांकित करता है जिस होड़ में आपका बच्चा कैसा है इस प्रश्न का निर्धारण आपके बच्चा पढ़ने में कैसा है इस बात से होता है। फेल और पास जैसे शब्दों पर बच्चों का जीवन और घर की अस्मिता लटकी हुई है। अनारको इस दिन की कहानी में अपनी अम्मी से कई तरह के प्रश्न करती हुई दिखाई देती है जिसमें से एक महत्वपूर्ण प्रश्न यह भी करती है कि "अच्छा ये बताओ कि ये तय करना क्यों जरूरी है कि कोई पास होगा और कोई फेल?"⁸ इस प्रश्न का उत्तर देती हुई अनारको की अम्मी कहती है "ताकि ये पता चले कि कौन बढ़िया है।"⁹ कौन बढ़िया है कौन घटिया इस बात को एक परीक्षा या परीक्षाफल कैसे निर्धारित कर सकता है? इसी प्रश्न का उत्तर देती हुई अनारको जब अपनी अम्मी को जंगल की कहानी सुनाती है तब दिखाई देती है कि कैसे एक अयोग्य बगुला अपनी सहूलियतों का ध्यान रखकर जंगल का सबसे बढ़िया जानवर का चुनाव करता है। इस उत्तर से उसकी अम्मी भी चकरा जाती है।
अनारको के छठे दिन की कहानी में हमें निर्भय रूप में अनारको दिखाई देती है। निर्भय ऐसी कि भूतों को देखने की जिज्ञासा है तो रात में उसे भूत देखने जाना है। अनारको का एक दोस्त है गोलू, जिसके पास भूतों की तमाम कहानियां है और उन कहानियों को सुनने के बाद अनारकों के मन में भूतों को।देखने जिज्ञासा उत्पन्न होती है। वैसे वह गोलू के मुंह से पहली बार भूतों के बारे में नहीं सुन रही है उससे पहले वह अपनी अम्मी के मुंह से दाढ़ीवाला बुड्ढे के बारे में सुन चुकी थी जिसे हमेशा उसकी अम्मी उसे सोने से पहले सुना देती थी। अब अनारको थोड़ी बड़ी हो चुकी है लेकिन दादीवाले बुड्ढे का भय अभी भी उसके मन में व्याप्त है लेकिन एक रात अम्मी को।अनुपस्थिति में वह इस भय से पर्दा उठा देती है। एक रात वह सपने में यह भी देखती है। कि उसका स्कूल का गेट बड़ा सा मुंह बन गया है और मास्टर साहब उस मुंह के दांत। और बच्चे एक के एक उसमें समा रहे है। ज्यादा संभावना है कि इस सपने के पीछे का सबसे बड़ा कारण स्कूल और मास्टर जी है जिनके बुरे बर्ताव ने अनारको के मन में ऐसा सपना उपजने की जमीन दी। भूतों को देखने में अनारकों को बहुत मजा आता है इसके बाद वह इमली वाला भी भूत देखती है जिसे देखने के बाद उसे भय और आनंद दोनों को अनुभूति होती है लेकिन इस दिन के कथानक के अंत का भूत सर्वाधिक डरावना उसे दिखता है और उसे देखते हुए उसे मजा भी नहीं आता है और वह भूत है पिता का भूत। पिता का भूत उसके लिए अन्य भूतों की अपेक्षा अधिक डरावना लगा। जिनके सिर्फ पैर दिख रहे है वह पैर जिनके तले एक बचपन कुचला जा रहा था। जिनके तले उन तमाम जिज्ञासा और प्रश्नों का अंत हो रहा था जो अनारको के बाल मन में पनप रहे थे।
अनारको के सातवें दिन की कहानी प्रधानमंत्री के दौरे से संबंधित है। वह 10 से ज्यादा दिनों से सुन रही है कि एक पुल का उद्घाटन करने प्रधानमंत्री आ रहे है। प्रधानमंत्री और उनके दौरे को लेकर अनारको के मन में अनेक प्रकार के प्रश्न उभार रहे है जिन्हें वह बारी बारी से अपने पिता के सामने रख रही है। उसके प्रश्नों का उत्तर देते देते अंततः उसके पिता खीझ जाते है और उसे पढ़ने की नसीहत देते है। अनारको अपने तमाम प्रश्नों को मन में दबाएं पढ़ने बैठ जाती है और फिर स्कूल चल देती है। अब आगे की कहानी में हमें तीन तरह के मास्टर साहब देखने को मिलते है। एक गणित के जिनका ब्लैक बोर्ड पर चित्र किंकु ने बनाया और उनकी चप्पल की आवाज सुनकर उसे मिटा दिया दूसरे ड्राइंग के जिनके द्वारा बोर्ड पर बनाए गए लटका हुआ आम के संदर्भ में फूलपत्ती अनारको को समझाती है "कि पेड़वाले आम और बोर्ड के आम में फर्क होता है।"¹⁰ और फिर आते है सामाजिक ज्ञान वाले जिनके तेवर अचानक से बदल जाते है और उनके व्यवहार में बदलाव आ जाता है। यह तीन मास्टर सिर्फ मास्टर भर नहीं है बल्कि उस श्रेणी के मास्टरों के प्रतिनिधि है जिनका भय छात्रों के अंदर विद्यमान है और जिनका भय नहीं विद्यमान है वह भी अपना भय विद्यमान करने की जुगत में लगे हुए है। दरअसल छात्रों के अंदर किसी शिक्षक का भय तस्दीक करता है इस बात कि स्कूल में उसका वर्चस्व कितना है। और सभी शिक्षक अपने अपने वर्चस्व को बनाएं रखने के लिए संघर्षरत है। लेकिन वह जिन बच्चों के आगे अपना वर्चस्व स्थापित करने की कोशिश कर रहे है वह तो आगे की। कहानी में प्रधानमंत्री को भी चुनौती देते हुए दिखाई दे रहे है।
अनारको के आठवें दिन की कहानी में अनारको अफ्रीका देश की यात्रा करना चाहती है और उसके मन में यात्रा करने का विचार भूगोल की किताब पढ़कर आता है। वह वहां जाकर यह देखती चाहती है कि क्या वहां भी ठीक हमारे कैसे ही मम्मी पापा है या यहां से भिन्न। वहां की सामाजिक स्थिति से वह रूबरू होना चाहती है। वह इस संदर्भ में अपने अम्मी पापा और गांव के लोगों से मदद मांगती है लेकिन सभी लोग उसे बच्चा समझकर उसकी उम्मीदों पर पानी फेर देते हैं। अंततः वह निराश होती है और सभी के चाहने के बारे में सोचने लगती है कि सभी का का कुछ न कुछ चाहना है और उसका भी कुछ चाहना है लेकिन उसके चाहने और बड़ों के चाहने में इतना अंतर क्यों है। वह कहती है "प्रमोशन,नौकरी,दुकान... ये भी कोई चाहना हुआ, सब आलतू फालतू बातें। कोई अफ्रीका जाना क्यों नहीं चाहता,जैसा कि वह खूब खूब चाह रही थी।"¹¹ घर से लेकर बाहर तक अनारको को ऐसा कोई भी व्यक्ति नहीं मिला जो झूठ ही उसकी अफ्रीका की ख्याली यात्रा का सहयात्री बन जाता। सब प्रमोशन,नौकरी,दुकान के पीछे भाग रहे है लेकिन कोई भी उसके साथ जाने को तैयार नहीं है। अपने लोगों से निराशा पाकर वह अंततः कबीले के लोगों के बारे में सोचने लगती है कि "जब कबीले के लोग खूब खूब चाहते होंगे तो क्या चाहते होंगे?"¹² क्या वह चाहते होंगे कि एक बच्चे के प्रश्नों को वैसे ही दरकिनार कर दिया जाएं जैसे उसके अम्मी पापा और मास्टर जी करते है। क्या वह भी चाहते है कि बच्चों की जिज्ञासाओं का अंत ठीक वैसे ही कर देना चाहिए जैसे अनारको की जिज्ञासाओं का अंत हुआ। क्या वैसे ही हुक्मबाज़ी वह लोग भी अपने बच्चों पर करना चाहते है जैसी हुक्मबाज़ी से अनारको और किंकु परेशान है।
तो कुछ इस प्रकार अनारको के आठ दिन का वर्णन हमें इसे किताब में मिलता है। अनारको इस पूरी कहानी में उस बगीचे में लगे सेमल के उस पेड़ की रुई बनना चाहती है जिसके नीचे वह अक्सर बैठती थी। वह उस रुई की भांति ही एक स्थान से दूसरे स्थान अपने सपने अपने ख्यालों में गोता लगाते हुए डूबना और आज़ाद पक्षी की तरह उड़ना चाहती थी। वह आज़ाद पक्षी जिसे सिर्फ अपनी लंबी उड़ान भरना है बिना लोक लाज, बिना किसी भय के। लेकिन इसी लंबी उड़ान में बाधा बनता है घर और स्कूल जो उसे सिर्फ अपने तक ही सीमित रखना चाहता है। यह कहानी महज अनारको की कहानी नहीं है यह अनारको जैसे लाखों बच्चों की कहानी है जो अपने हर बढ़ते दिन के साथ अपने पीछे कुछ प्रश्न छोड़ जा रहे है। ठीक वैसे ही जैसे अनारको इस किताब के हर पलटते पन्ने के साथ पदचिन्ह के रूप में प्रश्न छोड़ रही है। इन सभी प्रश्नों की जवाबदेही बनती है पूरे उस समाज से जिन्होंने बच्चों को कभी उम्र से बढ़ सोचने का मौका नहीं दिया। उनके हर प्रश्न को पहले उम्र के तराजू पर तौला फिर उसे उत्तर देने योग्य न समझ उससे किनारा पकड़ा। जवाबदेही बनती है उस पूरे शिक्षा तंत्र से जिन्होंने बचपन को फलने की बजाय बचपन को भय की घुटी पिलाई ताकि बच्चा तर्क न कर सके। अंततः जवाबदेही बनती है हम सबसे कि हम बच्चों के लिए कैसे परिवेश का निर्माण कर रहे है।
"अनारको के आठ दिन" बाल साहित्य से जुड़ी एक महत्वपूर्ण किताब है। जो कि पाठक को प्रभावित करती है।और कई बिंदुओं पर उसे सोचने को मजबूर करती है। किताब के लेखक सत्यु ने इस किताब के कथानक को जिस प्रकार गढ़ा है वह काबिले तारीफ है। किताब की भाषा सरल और सहज और आम बोलचाल की भाषा है। खड़ी बोली हिंदी के साथ साथ उर्दू और अंग्रेजी के शब्दों का भी समावेश है। लेखक का यह प्रयोग उपन्यास की भाषा में तारतम्यता और प्रवाहमयता लाता है। चित्रकार चंचल द्वारा चित्रित चित्र बालमन को लुभाने वाले है व किताब को और रोचक बनाते है।
संदर्भ :
1. सत्यु,अनारको के आठ दिन,राजकमल प्रकाशन,नई दिल्ली,संस्करण 2022, पृष्ठ सं० 07
2. सत्यु,अनारको के आठ दिन,राजकमल प्रकाशन,नई दिल्ली,संस्करण 2022, पृष्ठ सं०12
3. सत्यु,अनरको के आठ दिन,राजकमल प्रकाशन,नई दिल्ली,संस्करण 2022, पृष्ठ सं० 21
5. सत्यु,अनरको के आठ दिन,राजकमल प्रकाशन,नई दिल्ली,संस्करण 2022, पृष्ठ सं० 38
6. सत्यु,अनरको के आठ दिन,राजकमल प्रकाशन,नई दिल्ली,संस्करण 2022, पृष्ठ सं० 41
7. सत्यु,अनरको के आठ दिन,राजकमल प्रकाशन,नई दिल्ली,संस्करण 2022, पृष्ठ सं० 49-50
8. सत्यु,अनरको के आठ दिन,राजकमल प्रकाशन,नई दिल्ली,संस्करण 2022, पृष्ठ सं० 59-60
9. सत्यु,अनरको के आठ दिन,राजकमल प्रकाशन,नई दिल्ली,संस्करण 2022, पृष्ठ सं० 60
10. सत्यु,अनरको के आठ दिन,राजकमल प्रकाशन,नई दिल्ली,संस्करण 2022, पृष्ठ सं० 89
11. सत्यु,अनरको के आठ दिन,राजकमल प्रकाशन,नई दिल्ली,संस्करण 2022, पृष्ठ सं० 103
12. सत्यु,अनरको के आठ दिन,राजकमल प्रकाशन,नई दिल्ली,संस्करण 2022, पृष्ठ सं० 104
पारस सैनी
परास्नातक छात्र,इलाहाबाद विश्वविद्यालय,प्रयागराज
बाल साहित्य विशेषांक
अतिथि सम्पादक : दीनानाथ मौर्य
चित्तौड़गढ़ (राजस्थान) से प्रकाशित पत्रिका
अपनी माटी (ISSN 2322-0724 Apni Maati) अंक-56, नवम्बर, 2024 UGC CARE Approved Journal
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