शोध आलेख : कला सृजन में ‘स्क्रैप’ का आग्रह; एक विशेष दृष्टिकोण / विजया शर्मा

कला सृजन में ‘स्क्रैप’ का आग्रह; एक विशेष दृष्टिकोण
- विजया शर्मा


शोध सार : मानव ने अपने चारों ओर व्याप्त सौन्दर्य की अनुभूति की है और इस अनुभूति या अनुभव को विभिन्न माध्यमों द्वारा अभिव्यक्त किया है। आदिमानव की कला से लेकर वर्तमान तक अभिव्यक्ति के माध्यम निरंतर परिवर्तनशील हैं। वर्तमान में कलाकार कलाभिव्यक्ति के नए माध्यमों की खोज कर कला सृजन कर रहा है, जिसके अन्तर्गत अनुपयोगी वस्तुओं को पुनः उपयोग में लेते हुए स्क्रैप माध्यम का नवीन अभिप्रयोग हुआ है। स्क्रैप एक तरह से एक संबंध भी प्रस्तुत करता है कि कला और अनुपयोगी वस्तुओं में कैसे एक अनुपयोगी वस्तु को कला का माध्यम बनाते हुए उसे प्रदर्शित किया जाये।

बीज शब्द : स्क्रैप, न्यू-मीडिया, इंस्टॉलेशन, मल्टीमीडिया, कॉन्सेप्ट आर्ट, जंक, मेटल आदि।

मूल आलेख : 
‘‘क्षणे-क्षणे यन्नवतामुपैति तदेव रूपं रमणीयतायाः’’(शिशुपालवधम् 4:17)[1]

महाकवि माघ ने शिशुपालवधम् के चौथे सर्ग के 17 वें श्लोक के अन्तर्गत रमणीयता को परिभाषित किया है। क्षण-प्रतिक्षण सौंदर्य के नये-नये आयाम का सौन्दर्यगत बोध कराने वाली रमणीयता ही असल में लालित्य हैं। वस्तु, कितनी भी सुंदर हो, यदि उसमें बोध का नया आयाम जोड़ने की क्षमता है तो एक विशेष प्रकार का विचारवान सौन्दर्य जन्म लेता है, जो किसी भी कला का मूलभूत तत्व भी होता है। आज समसामयिक कलाकार माध्यमों में वैविध्य लाते हुए सौंदर्यात्मक बोध के नए स्वरूप उजागर करने हेतु व्यग्र भी दिखाई देते हैं।

विभिन्न कलाओं में समयानुसार नवीन माध्यम को लेकर कलात्मक अभिप्रयोग होते रहे हैं। जिसके अन्तर्गत वर्तमान परिदृश्य में अनुपयोगी वस्तुओं को नए सिरे से, नए उद्देश्यों से उपयोगी व सौन्दर्य परख दृष्टि देते हुए स्क्रैप शिल्प का प्रादुर्भाव हुआ है। पर्यावरण को हानि पहुँचाते इन अनुपयोगी व अपशिष्ट को स्क्रैप शिल्प के लिए चयन कर कलाकार ने वातावरण को भी पर्यावरण हितैषी बनाया है। वस्तुओं को जैसी हैं, उस रूप में न देखते हुए बल्कि वे कैसी हो सकती हैं? उस रूप में देखना कलाकार की सृजनात्मकता व कल्पनाशीलता का परिणाम हैं। जिससे स्क्रैप शिल्प के रूप में अभिव्यक्ति का नवीन माध्यम अस्तित्व में आया है।

ग्लोबलाइजेशन की शुरुआत के साथ ही कम्प्यूटर, इंटरनेट व डिजिटल सामग्री का उपयोग बढ़ा, जिससे न्यू मीडिया कला माध्यम के रूप में प्रचलन में आया। न्यू मीडिया व वीडियो आर्ट के साथ ही आजकल स्टिल फोटोग्राफी माध्यम का विशेष व महत्त्वपूर्ण स्थान है क्योंकि चलचित्र स्टिल चित्रों से ही बनते हैं। स्टिल फोटोग्राफी द्वारा कई तरह के विविधतापूर्ण दृश्य अनुभवों को बढ़ाया जा सकता है। फोटोग्राफी को पारंपरिक तरीके से उपयोग करने के साथ-साथ कुछ कलाकार ऐसे भी हैं जो इस कला माध्यम के विविध आयामों की खोज कर रहे है।[2]

समसामयिक कला, प्राचीन काल से वर्तमान तक के विभिन्न कलात्मक अभिप्रयोगों को आत्मसात करती आई है और क्षण-क्षण नवीनता की सूचक रही हैं। वर्तमान में कलाकार नित नए प्रयोग कर अपने सृजनात्मक कौशल से कला क्षेत्र में नवीन माध्यमों का आविष्कार कर रहा है। आज कला में अभिव्यक्ति के माध्यम निरन्तर नए-नए रूप में हमारे सामने प्रस्तुत हो रहे हैं, जो कलाकार की सृजनात्मकता का प्रतीक हैं। कागज, कपड़ा, कैनवास, कोलाज आदि सृजन माध्यमों से कहीं आगे आज कला नवीन माध्यमों में सृजित हो रही है।

20 वीं शताब्दी में कला में ‘डिसकार्डेड मटेरियल’ के अभिप्रयोग के प्रति कलाकारों का रूझान बढ़ा। कला में नॉन-आर्ट ऑब्जेक्टस को प्रयोग में लेते हुए कला क्षेत्र के नए आयामों को सृजित किया हैं। फाउण्ड ऑब्जेक्ट जो कलाकारों के हाथों में आते ही एक नया रूप प्राप्त कर लेते हैं। कला क्षेत्र में यह विचारक्रांति और प्रयोगधर्मिता का महत्त्वपूर्ण समय रहा है। पिकासो और ब्राक ने 1912 में पेपर कटिंग, कुर्सी की जाली और अन्य वस्तुओं को सीधे चित्रण सतह पर चिपकाकर नए माध्यम के रूप में कोलाज माध्यम को विकसित किया। ये ऐसे कलाकार रहे जिन्होनें नॉन-आर्ट ऑब्जेक्टस को सर्वप्रथम कला कार्य के रूप में प्रयोग लिया। उसके बाद कुर्ट श्विटर्स जो कि पॉप आर्ट, हैप्पनिंग्स, कॉनसेप्ट आर्ट, मल्टीमीडिया और पोस्टमॉर्डनिज्म के प्रमुख रहे इन्होंने Merz तैयार किया जिसमें न्यूजपेपर, बस के टिकिट्स और पुराने लकड़ी के टुकडों को उपयोग में लिया। जोसेफ करनाल तथा अन्य कलाकारों ने असेम्बलेज कृतियां बनाई।

दादावाद के कलाकार मार्सेल द्युशां ने अपने रेडीमेड आर्ट कन्सेप्ट से कला की प्रकृति को ही बदल कर रख दिया। जहाँ यूरोप में आधुनिक कला संबंधी ये प्रयोग जारी थे। वहीं भारत में भी कलाकार इनसे प्रभावित हुए और भारतीय कला में नवीन अभिप्रयोगों के साथ कला संबंधी नए माध्यम अस्तित्व में आए। भारतीय कला में प्रयोगधर्मिता के अनेक आयाम हैं जो एक ओर राजा रवि वर्मा से जुड़ते हैं वहीं दूसरी ओर अमृता शेरगिल से तथा के. के. हेब्बार, नन्दलाल बोस, रामकिंकर बैज से के. जी. सुब्रहमण्यम, एम. एफ. हुसैन, सतीश गुजराल और गायतोण्डे तक आते हैं। आज के समय में कला में यह प्रयोगधर्मिता कुछ उभरते एवं कुछ कला जगत में विशेष स्थान प्राप्त कलाकारों के सृजन के माध्यम से उत्कृष्टता को प्राप्त कर रही है। इन कलाकारों में विवान सुन्दरम, अतुल डोडिया, सुबोध गुप्ता, वेद नायर, बैजू प्रधान तथा कुछ महिला कलाकारों में अर्पिता सिंह, नलिनी मालिनी, गोगी सरोज पाल, शिल्पा गुप्ता, भारती खेर आदि और भी महत्त्वपूर्ण नाम हैं।

चित्र-5 ‘12 बेड वार्ड’ विवान सुन्दरम का इंस्टॉलेशन
‘12 बेड वार्ड’ विवान सुन्दरम का इंस्टॉलेशन

इन महत्त्वपूर्ण परिवर्तनों के फलस्वरूप स्क्रैप को कला में एक स्थान प्राप्त हुआ और समसामयिक कलाकार भी इस माध्यम में रुचि लेने लगे। स्क्रैप एक तरह से एक संबंध भी प्रस्तुत करता है कला और अनुपयोगी वस्तुओं में कि कैसे एक अनुपयोगी वस्तु को कला का माध्यम बनाते हुए उसे प्रदर्शित किया जाये। यह तो कलाकार की कल्पनाशीलता व कौशल पर निर्भर करता है कि कैसे वह शिलाखण्डों को तोड़कर हर बार नई मूर्तियां बना देता है और कैसे अनुपयोगी वस्तुओं को अपने कौशल से एक नया रूप प्रदान करते हैं।

लाईफ मैंगजीन 1955:43 में प्रकाशित आर्टिकल Throwaway Living में Throwaway Society की ओर ध्यान केन्द्रित करती हैं। किसी वस्तु को उपयोग में लेना और जब उसका उपयोग पूर्ण हो जाएं उसे फेंक देना। यह आज के मॉडर्न सोसायटी के वस्तुओं के उपयोग व कचरे में डाल देने की फिलॉसफी की ओर इंगित करता है। इसे हम इस तरह समझ सकते हैं: "जब कोई वस्तु फेंक दी जाती है, तो यह माना जाता है कि उस व्यक्ति या समाज के लिए अब उसका कोई मूल्य नहीं रह गया है, क्योंकि एक बार वह उसके पास थी। एक बार जब कोई अख़बार पढ़ लिया जाता है, या कोका-कोला की बोतल पी ली जाती है, तो उसका मूल कार्य पूरा हो जाता है, और उसे कचरे के रूप में फेंक दिया जाना चाहिए।"(सेर्नी और सेरिफ़, 1996)[3]

इस थ्रोअवे सोसायटी से बिल्कुल विपरीत वर्तमान में कुछ कलाकार ऐसे हैं जो लोगों द्वारा फेंकी गई वस्तुओं को एकत्रित कर स्क्रैप स्कल्पचर की रचना कर रहे हैं। यह प्रकृति को नुकसान पहुंचाती इन वस्तुओं को एकत्रित कर कला और प्रकृति के बीच सहसंबंध को इंगित करते हैं।

"कचरा लोगों की उपभोग प्रथाओं का हिस्सा है। यह शहरी क्षेत्रों से लेकर ग्रामीण क्षेत्रों तक एक बहुत ही आम अवधारणा है। इसे नहीं चाहा जाता, फेंक दिया जाता है, दूर रखा जाता है। इसे बेकार, घृणित, घटिया, अनाकर्षक और लोगों और प्रकृति के लिए हानिकारक माना जाता है। थॉम्पसन (1979:7) नामक पुस्तक रबिश थ्योरी के लेखक ने कहा कि आम दृष्टिकोण के विपरीत, "एक आदमी का कचरा दूसरे आदमी का खजाना है।"[4]

नवीन माध्यम के प्रयोगों की दृष्टि से ‘इंस्टॉलेशन’ आज बहुचर्चित माध्यम है। वैसे तो हम अपने घरों में, गांवों में, मंदिरों में या अन्य धार्मिक स्थलों पर या मांगलिक अवसरों, मेलों, त्योहारों आदि तथा दैनिक जीवन के कार्यो को करते समय अनेक प्रकार के इंस्टॉलेशन का कोई न कोई रूप देखते ही रहते हैं।[5] भारत में इंस्टॉलेशन आर्ट की झलक शीला गौडा की कलाकृतियों में देखने को मिलती हैं। जिन्होंने रोजमर्रा की वस्तुओं और सामग्रियों जैसे गाय के गोबर, कुमकुम, बाल, धागा, रस्सी आदि को माध्यम के रूप में उपयोग लेते हुए इंस्टॉलेशन बनाये हैं। दूसरी कलाकार जिन्होंने इंस्टॉलेशन के क्षेत्र में विस्तृत कार्य किया हैं, वह हैं हेमा उपाध्याय उनके इंस्टॉलेशन प्रकृति से जुड़े हैं जो बसने, उजड़ने और फिर से बसने के सरोकारों की ओर गहराई से विचार करती हैं। हेमा उपाध्याय ने एक इंस्टॉलेशन का निर्माण किया जिसका टाइटल हैं ‘‘वेयर द बीज सक देयर सक आई’’ इसमें फाइबर ग्लास का औद्योगिक डंपर और सैंकडों लघु झोपड़ियों का प्रयोग किया गया है जिन्हें कार के कबाड़, अल्युमिनियम और प्लास्टिक की चादरों, रेसिन और इनेमल पेन्ट से बनाया गया। अब कलाकार इन्हीं मौलिक तत्वों में नयापन लाते हुए कला सृजन कर रहे हैं।

‘वेयर द बीज सक देयर सक आई’ हेमा उपाध्याय का इंस्टॉलेशन

वहीं मूर्तिशिल्प के क्षेत्र में भी आज पत्थर, लकड़ी, लोहा, कांस्य, प्लास्टर-सीमेंट ही नहीं कोई भी सामग्री या वस्तु मूर्तिशिल्पों के काम आने लगी हैं।[6] जिसके अन्तर्गत घरों का अनुपयोगी सामान को भी माध्यम रूप में चयन कर शिल्पकार कला रचना कर रहा है। नवीन मशीनरी व सुलभ औजारों ने भी समसामयिक शिल्पकारिता को और अधिक समृद्ध किया है।

वर्तमान समय में कलाकार जंक तथा काम में न आ सकने वाले अनुपयोगी वस्तुओं को भी कला माध्यम के रूप में उपयोग में ले रहा है।[7] समसामयिक कलाकार ने ऐसे अनुपयोगी सामान या कहें तो कबाड़ जो कि जहाँ भी हो उस स्थान की सुन्दरता को नष्ट कर देता है उनकों कला माध्यम के रूप में ढालकर ऐसी सौन्दर्यपूर्ण कलासृजना की है कि आम दर्शक इनसे प्रभावित हुए बिना रह ही नहीं सकता। नए उद्देश्यों से अनुपयोगी वस्तुओं को उपयोगी एवं सौन्दर्यपरक दृष्टि देने के अन्तर्गत स्क्रैप शिल्प का प्रादुर्भाव हुआ है। वर्तमान में कलाकार कलाभिव्यक्ति के नए माध्यमों की खोज कर कलाकर्म में सृजनरत है।

यहां स्क्रैप से आशय है - अनुपयोगी वस्तु या वो वस्तु या उपकरण जो अपनी प्रथम मौलिक उपयोगिता को पूर्ण करके एक्सपायरी या समाप्त हो चुका है।

19 synonymous keywords of scrap –

[8] स्क्रैप के कुछ समानार्थी शब्द हैं जिनमें Garbage, trash, rubbish, debris, detritus, waste, junk, refuse, discard, disposal, litter etc. स्क्रैप से संबंधित इन शब्दों की संख्या व्यापक हैं जिनका उल्लेख Rubbish! The Archaeology of Garbage नामक पुस्तक में किया गया है।

मूर्तिशिल्प सृजन के रूप में भारतीय समसामयिक कला में स्क्रैप शिल्प एक नवीन माध्यम है। जिसमें अनुपयोगी, अपशिष्ट वस्तुओं जैसे- टाइपराइटर पार्ट्स, ऑटोमोबाइल स्पेयर पार्ट्स, टूटे हुए इलेक्ट्रिकल पॉल्स, मेटल बेंच, एंगल्स, पुराने पाईप, क्लच प्लेट, इंजन स्पेयर पार्ट्स, साईकिल चेन, कार रिम्स, इलेक्ट्रिकल मेटल वायर, नट-बोल्ड जैसे बहुत कुछ, जिसमें अनुपयोगी वस्तुओं को पुनः अनुपयोगी बनाते हुए कलाकार ने स्क्रैप शिल्प के रूप में कला में अभिव्यक्ति का एक नया माध्यम जोड़ा है। अनुपयोगी वस्तुएं जो कि अपशिष्ट कचरे के रूप में डाल दी जाती हैं उनका रिसाइकल कर रियूज करना और साथ ही साथ पर्यावरण को हानि पहुंचाते इन अनुपयोगी व अपशिष्ट सामग्री को कलाकार ने स्क्रैप शिल्प के लिए चयन कर वातावरण को भी पर्यावरण हितैषी बनाया है, जिससे सम्पूर्ण वातावरण भी सौन्दर्यपूर्ण व कलामयी हो जाता है।

भारत की राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली में स्क्रैप शिल्प के उभरते स्वरूप को देख सकते हैं, जहाँ विश्व के सात आश्चर्य की स्क्रैप से प्रतिकृतियां बनाकर एक थीम पार्क को विकसित किया है, जिसका नाम है ‘वेस्ट टू वंडर थीम पार्क’। इस थीम पार्क में दुनिया के सात आश्चर्य शामिल हैं- यूएसए की स्टैच्यू ऑफ लिबर्टी की प्रतिकृति, ब्राजील के क्राइस्ट द रिडीमर की प्रतिकृति, पेरिस एफिल टॉवर की प्रतिकृति, ताजमहल की प्रतिकृति, रोम के सबसे बड़े एम्फीथिएटर कोलेसियम की प्रतिकृति, पीसा के लीनिंग टावर की प्रतिकृति, मिस्त्र के गीजा पिरामिड की प्रतिकृति। इस थीम पार्क को देखने के लिए देश-विदेश से दर्शक आते हैं और यहाँ बने इन स्क्रैप शिल्प को बहुत सराहते हैं। आम दर्शक को यह शिल्प बड़े कौतूहल का विषय लगते हैं कि कैसे वेस्ट मटेरियल को कलाकार ने अपने कलात्मक कौशल से इतनी सुन्दरता से ढाला है। अनुपयोगी और बेकार टूटी-फूटी वस्तुओं का प्रयोग करते हुए नेकचंद सैनी ने चंडीगढ़ में एक रॉक गार्डन का निर्माण किया। कहते हैं कि सम्पूर्ण जगत में कला ही एक ऐसा माध्यम है जिसके द्वारा कलाकार अपनी कल्पनाओं से एक आश्चर्य जनक लोक सृजित कर देता है, कुछ ऐसा ही कला रचना का संसार सृजित किया हैं- चंडीगढ़ के नैकचंद सैनी ने रॉक गार्डन सृजित कर।

चंडीगढ़ रॉक गार्डन में नेकचंद सैनी द्वारा निर्मित स्क्रैप कलाकृतियां
  
(दिल्ली के ‘वेस्ट टू वंडर थीम पार्क’ में स्क्रैप से निर्मित ताजमहल की प्रतिकृति) (दिल्ली के ‘वेस्ट टू वंडर थीम पार्क’ में यूएसए की स्टेच्यू ऑफ लिबर्टी की प्रतिकृति)

स्क्रैप मटेरियल को उपयोग में लेते हुए मोहनलाल सुखाड़िया विश्वविद्यालय के दृश्य कला विभाग में भी स्क्रैप मूर्ति शिल्प कला शिविर का आयोजन किया गया। इस कला शिविर के अन्तर्गत विश्वविद्यालय परिसर में स्क्रैप मूर्ति शिल्प का निर्माण किया गया। परिसर में बने एवं स्थापित ये स्क्रैप शिल्प आमजन को आकर्षित करते हैं। चैन्नई में भी रेलवे से प्राप्त स्क्रैप मटेरियल से ‘चैन्नई रेल म्यूजियम’ का निर्माण किया गया जिसमें मोहनजोदडों की नृतकी की मूर्ति से प्रेरणा लेते हुए स्क्रैप शिल्प का निर्माण किया गया। भुवनेश्वर में भारत का पहला ‘ऑपन एयर वेस्ट टू आर्ट म्यूजियम’ का निर्माण किया गया है जिसमें स्क्रैप शिल्प की रचना की गई हैं। साथ ही प्रयागराज के महाकुंभ क्षेत्र में शिवालय पार्क बनाया गया है। इस पार्क को वेस्ट एंड वंडर थीम पर तैयार किया गया है। जहां भारत के नक्शे के भीतर देश के सभी प्रमुख मंदिर और 12 ज्योतिर्लिंग मंदिरों की रिप्लिका स्क्रैप मेटल से बनाई गई है।

बहुत सी सामग्रियां ऐसी होती हैं, जिन्हें उपयोग में लेकर फेंक दिया जाता है। अपशिष्ट पदार्थ या अनुपयोगी वस्तुओं का पुनः उपयोग करना एक आश्चर्यजनक और रुचिपूर्ण अनुभव होता है।[9] वस्तुओं को जैसी हैं उस रूप में नहीं बल्कि वह और कैसी हो सकती हैं उस रूप में देखने की कल्पनाशीलता, सृजनात्मकता, कौशल एवं योग्यता से हम सुन्दर स्क्रैप शिल्प की सृजना कर सकते हैं।

आज के कलाकारों का माध्यमों में नवीनता लाने, विषय-वस्तु का दायरा बढ़ाने और विविधतापूर्ण सृजनकर्म से अभिव्यक्ति की नई कला शैलियां अस्तित्व में आ रही हैं। आज कलाकारों के पास सृजन के लिए विविध माध्यम उपलब्ध हैं जिनके प्रयोग से वह अपनी संवेदनाओं को अभिव्यक्त कर सकता है।

एक तथ्य और, आज की कला समसामयिक जीवन के विभिन्न पहलुओं से संबंधित भी हैं। इसलिए समसामयिक कलाकृति में निहित अभिव्यक्ति को समझना भी तभी संभव होगा, जब दर्शक अपनी दृष्टि को भी समसामयिक परिवेश के साथ तात्कालिक परिस्थितियों से तादात्मय कर कला अवलोकन करें। इसके वैविध्य को दूर से नहीं समझा जा सकता, इसे जानने के लिए पास आना आवश्यक है तभी हम इसकी सरलता को समझ, खोज या अनुभव कर सकते हैं।[10] एक बार जब दर्शक कला के माध्यम से प्रस्तुत किए जा रहे अनुभव को समझ लेता है तो बाद में वह कला के इस अनुभव से चमत्कृत होकर कलादर्शन में लीन हो जाता है। तब कला जीवन का एक अंग न रहकर जीवन जीने का एक तरीका बन जाती है।[11]

निःसन्देह, समसामयिक कला हमेशा प्रासंगिक बनी रहेगी, माध्यमों की नई खोज व प्रयोगधर्मिता पर आधारित जो आज भी कला के नवीन माध्यमों की खोज में अग्रसर है और आगे भी अनवरत रूप से जारी रहेगी। दर्शक भी रूढ़िवादी आग्रह का त्याग कर समसामयिक कला स्थिति में एक नव्य दृष्टि को प्राप्त कर सकता है।

निष्कर्ष : समसामयिक कला माध्यमों की नवीन खोज व प्रयोगधर्मिता पर आधारित है। स्क्रैप माध्यम समसामयिक कला का उभरता हुआ एक नवीन क्षेत्र है, जिसमें अनुपयोगी वस्तुओं को पुनः उपयोगी बनाते हुए कलाकार ने कला क्षेत्र में एक नवीन आयाम जोड़ा है। अनुपयोगी वस्तुएं जो अपशिष्ट, कचरे के रूप में डाल दी जाती हैं या जिन्हें उपयोग में लेकर फेंक दिया जाता है, कलाकार अपने कलात्मक दृष्टिकोण से इन वस्तुओं को सौन्दर्यपूर्ण आकार देते हुए कला रचना कर रहे हैं। कला अभिव्यक्ति के नए माध्यम की खोज में आज भी अग्रसर हैं और आगे भी अनवरत रूप से जारी रहेगी। कलाकार द्वारा नए-नए प्रयोग कर कला क्षेत्र में विविधतापूर्ण सृजनकर्म से अभिव्यक्ति की नई कला शैलियां अस्तित्व में आ रही हैं। आज कलाकारों के पास सृजन के लिए विविध माध्यम उपलब्ध हैं जिनके प्रयोग से वह अपनी संवेदनाओं को अभिव्यक्त कर सकते हैं।

सन्दर्भ :
  1. महाकवि माघकृत: शिशुपालवधम्, अनुवादकः श्रीरामप्रताप त्रिपाठी,शास्त्री, 2001, 4.17
  2. राजीव लोचन: आँखें और मस्तिष्क: समसामयिक भारतीय कला नये अंदाज में,भारत संदर्श खंड 24 अंक 6,2010, पृ़‐9
  3. İLHAN MUSTAFA : TRANSFORMING TRASH AS AN ARTISTIC ACT , A Master’s Thesis, January 2016,page no.14
  4. वहीं, पृ. 58
  5. अवधेश मिश्र का आलेख, न्यू मीडियाः समकालीन कला का कल,अभिव्यक्ति(कला संवाद)
  6. राजीव लोचन: आँखें और मस्तिष्क: समसामयिक भारतीय कला नये अंदाज में, भारत संदर्श खंड 24 अंक 6/2010 पृ़‐9
  7. प्रयाग शुक्ल: आजादी के बाद की भारतीय कला, कला का सौन्दर्य,वाणी प्रकाशन, 2001,पृ. 129
  8. Bradshaw Alice : Investigating the relationship between value and the use of rubbish in art practice, April 2015,page.122
  9. https://www.resource.co./article/waste management
  10. राजीव लोचन: आँखें और मस्तिष्क: समसामयिक भारतीय कला नये अंदाज में,भारत संदर्श खंड 24 अंक 6/2010 पृ़‐37
  11. वहीं, पृ.37

विजया शर्मा
शोधार्थी, दृश्यकला विभाग, मोहनलाल सुखाड़िया विश्वविद्यालय, उदयपुर

अपनी माटी
( साहित्य और समाज का दस्तावेज़ीकरण )
  चित्तौड़गढ़ (राजस्थान) से प्रकाशित त्रैमासिक पत्रिका
Peer Reviewed & Refereed Journal , (ISSN 2322-0724 Apni Maati) अंक-59, जनवरी-मार्च, 2025
सम्पादक  माणिक एवं जितेन्द्र यादव सह-सम्पादक  विष्णु कुमार शर्मा छायाचित्र  विजय मीरचंदानी

18 टिप्पणियाँ

  1. बेनामीमई 05, 2025 8:57 am

    स्क्रैप आर्ट की शोध परख जानकारी युवा पीढ़ी के लिए प्रेरणास्पद है। - आर्टिस्ट किशन शर्मा

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  2. बेनामीमई 05, 2025 9:14 am

    Great!! You proven that nothing is scrap everything is ART.

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  3. देवीलाल राजोरामई 05, 2025 9:24 am

    स्वर्णाभूषण तो खुद बेशकीमती होते है।

    कचरे को कीमती बनाने वाला ही असली कलाकार होता है।
    परम पिता परमेश्वर से मैं बिटिया के उज्ज्वल भविष्य की कामन करता हूं ।

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  4. स्क्रैप से कला का निर्माण एक बेहतर भविष्य की कल्पना एवं संसाधनों का सुनियोजित व अन्तिम रुप है। बधाई!!

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  5. विजिया शर्मा का लेख सारगर्भित है, इसके लिए बधाई 🙏

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  6. विकास कुमार अग्रवालमई 05, 2025 12:56 pm

    सृजन को लेकर युवा मन की अभिव्यक्ति कई मायनों में नए आयाम के मार्ग प्रशस्त करती दिखती है। स्क्रैप आर्ट से कला की बारीकियों को शब्दों के माध्यम से तय करना चुनौतियों पर खरा उतरना है और आप इसमें सफल रहीं है। ये आलेख निसंदेह इस क्षेत्र के विद्यार्थियों के लिए मिल का पत्थर साबित होगा।

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  7. लेख कला सृजन का परिचायक हैं, बधाई

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  8. विजया शर्मा द्वारा प्रस्तुत लेख में स्क्रैप आर्ट पर सारगर्भित एक अनोखी और रचनात्मक कला की जानकारी साझा की है जिसमें बेकार या अनुपयोगी वस्तुओं को नए और अनोखे तरीके से उपयोग किया जाता है। इस शोध परक जानकारी से हम अपने आसपास की दुनिया में मौजूद वस्तुओं को नए दृष्टिकोण से देख सकते हैं और उन्हें रचनात्मक तरीके से उपयोग कर सकते हैं।

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  9. शोध परख लेख के लिए बहुत बहुत बधाई

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  10. स्क्रैप आर्ट का लेख अच्छा लगा युवा पीढ़ी के लिए अनुकरणीय है

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  11. स्क्रैप आर्ट एक बहुत ही अच्छी कला है। जिसमें काफी चीजें जिनको उपयोग में लेकर फेंक दिया जाता है। अनुपयोगी वस्तुओं का पुनः उपयोग करना एक आश्चर्यजनक और रुचिपूर्ण अनुभव होता है।
    स्क्रैप कला शोध लेख के लिए बहुत बहुत बधाई।

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  12. आपकी रचनात्मकता और समर्पण सराहनीय है। इस तरह का काम पर्यावरण के लिए भी बहुत उपयोगी है और आपने इसका बहुत अच्छे से इस्तेमाल किया है।

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  13. It's very nice creation using scrap.. It's great method to motivate for save nature and utilization of scarp. Thanks to share

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  14. The great initiative towards saving planet by using this innovative idea.Good luck .Keep it up Kudos

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  15. डॉ मामराज अग्रवालमई 05, 2025 5:29 pm

    अत्यंत सुंदर

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  16. डॉ मामराज अग्रवालमई 05, 2025 5:34 pm

    लेखक ने एक गंभीर समस्या का गहन विवेचन किया है ।कचरा निस्तारण में कचरे को पुनः प्रयोग में लेना एक प्रभावी हल है ।
    कचरे से कलाकृति का निर्माण अत्यंत सुंदर एवं प्रभावी उपाय है ।
    लेखक ने अत्यंत सुंदर भाषा में विषय के बारे में गहराई से विचार कर उक्त आलेख लिखा है ।
    लेखक को बहुत-बहुत साधुवाद ।

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  17. बेनामीमई 05, 2025 11:10 pm

    An artist is identified by his art. It's beautiful thought, all the best for your bright future.

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