कैम्पस डायरी
दो_सान
(01 जनवरी 2025)
जनवरी के आ जाने पर दिसंबर को शांत हो जाना चाहिए था पर दिसंबर उफन रहा है। दिसंबर के पास अपनी कोई ताकत नहीं बची है, जनवरी चाहे तो बीत चुके को बीता हुआ मान सकती है। जनवरी के ऐसा मानने भर से दिसंबर खत्म हो जाएगा। पर जनवरी में ताकत नहीं हैं कि दिसंबर को छोड़ पाए।
(03 फरवरी 2025)
मेरे गाँव के ग्रामदेवताओं ने ईश्वर के ख़िलाफ़ विद्रोह कर दिया है। जैसे युद्ध लड़ा जा रहा हो स्थानीयता का राष्ट्रीय और धार्मिक एकीकरण के ख़िलाफ़। कुंभ सरीखे एकीकृत धार्मिक उत्सव स्थगित करने पड़ेंगे। पूंजीवाद हाथ पैर मारेगा पर बेअसर साबित होगा। एक दिन स्थानीयता स्थानीयता के पास आएगी और एकीकरण भष्म हो जाएगा। एक दिन हम सब अपने में लौट जायेंगे और एक दूसरे को पूर्ण करेंगें।
(गाँव में मुस्लिम पीर की रात्रि जागरण पर)
(12 मार्च 2025)
मेरी कविताओं से बाहर आकर फूल मुझ पर हमला कर दें क्योंकि जिस जगह पर बैठकर लोग प्यार करते थे, जिस जगह पर बैठकर प्यार किया जाना चाहिए था वो जगह सरकार ने अपने कब्जे में ले ली है। दुनिया में जितने भी जीवित लोग दोस्ती नाम के रिश्ते में रह रहे हैं वो सभी हड़ताल में चले जाएं और दोस्ती में रहते हुए आमरण तस्वीर न लेने का प्रण ले लें, यह कहते हुए कि एचसीयू के लोगों ने दोस्ती में रहते हुए जिस जगह पर तस्वीरे ली थीं उस जगह पर सरकार का कब्जा है।
मैं चाहता हूँ कि आज तक भूतों को लेकर जितने भी मिथक रचे गए है वो सभी सच हो जाए और मेरी भुलाई जा चुकी आधे काले, आधे हरे रंग की साइकिल का भूत आधी रात को मुझे उठाकर ले जाए और मशरूम रॉक पर पटक पटक कर मार दे। मेरी कायरता से गुस्सा भूत तब भी पीछा न छोड़े और मेरी आने वाली 17वीं पीढ़ी का जवान आदमी उल्टी करके मर जाए। जब रात को लाश आंगन में रखी हुई हो तब उसकी छोटे बालों वाली प्रेमिका दौड़ती हुई आए और सबसे पहले उस अवधारणा पर थूके कि जवान आदमी की लाश पर जवान स्त्री नहीं आ सकती है। फिर कहे कि अभी-अभी मुझे आधी हरी, आधी काली साइकिल का सपना आया था कि इस आदमी का 17 पीढ़ी पहले का पूर्वज इतना कायर था कि जिस जगह पर बैठकर लोग प्रेम करते थे उस जगह पर जब सरकार ने कब्जा किया तो उसने सिवाए स्टेट्स लगाने के कुछ नहीं किया। सपने की गाथा सुनाते सुनाते वह इतनी इमोशनल हो जाए कि उस लड़की में साइकिल की आत्मा प्रवेश कर जाए और जोर जोर से चीखते हुए साइकिल की आत्मा आदेश दे कि इसे वापिस जिंदा तो कर दूंगी लेकिन इसे अपने कायर पूर्वज की कायरता के बदले में तानाशाह सरकार के खिलाफ लड़ना होगा। फिर लोटे के पानी को सात प्रेमी जोड़े झूठा करके पवित्र करेंगे (लेकिन इसी तरह से हम वोट डालते रहे तो लगभग असंभव होगा कि 17 पीढ़ी बाद सात प्रेमी जोड़े मिल पाएंगे।) उस पानी का जब लाश पर छींटा डाला जाए तो वह लाश (जैसे आज हम सभी लाश है) उठ खड़ी हो और उस जगह के लिए रवाना हो जिस जगह के पेड़ काटकर और पहाड़ तोड़कर मॉल बनाए गए हों। (यह मिथक नहीं सच है कि प्रेमियों की झूठी की हुई दुनिया से ही क्रांति संभव है...)
(31 मार्च 2025)

(5 अप्रैल 2025)
तुम उन लोगों में शामिल हो जिन पर मेरी अतिशयोक्तियाँ उनके अर्थ से कमतर हो जाती है।... तुम उदास रहो, उदास रहो और उदास रहो बस। ....किसी दिन मैं तुम्हारी प्रेमिकाओं/प्रेमियों/दोस्तों से कहूँगा कि क्या अस्तित्ववाद और मार्क्सवाद के अलावा कोई ऑप्शन नहीं है जीने के लिए? और कहूँगा उसने कि तुम्हें ढेर सारा प्रेम करें और फ़िर छोड़ दें। पर अगर तुम जीने के लिए थोड़ा और साहस बटोर पाए तो उनसे कहूँगा कि तुमसे ढेर सारा प्यार करें। तुम्हारी तरह जिया नहीं जा सकता है, पर तुम्हें जीते हुए देखना पसंद है मुझे। तुम प्यार करो और उदास रहो। जो तुम्हें व्यवस्थिति जीवन जीने की बददुआ दे रहे है उनके कहे का असर न हो और मेरी दुआ लगे तुम्हें कि उदास रहो बस।
(गोविंद के जन्मदिन पर)
(3 अप्रैल 2025)
बर्बर राजा की बर्बर पुलिस स्टूडेंट्स को घसीटते हुए जेल लेकर गई, कई घंटों तक गाड़ियों में घुमाती रही। रातोंरात बुलडोजरों की भीड़ से जंगल को साफ कर दिया, जानवर भागते रहे और कुछ मारे गए, पक्षी चिल्लाते रहे। कैंपस में 800 से अधिक पुलिस वाले तानाशाही करने लगे, स्टूडेंट्स की हर गतिविधि पर नजर रखी जाने लगी, ग्रुप में मैसेज करने से भी गिरफ्तारी का खतरा मंडराने लगा। एक कर्मचारी के लड़के ने पोस्ट किया तो उसे घर से ही उठा लिया गया। लाइव आने पर पुलिस नोटिस भेजने लगी। बर्बरता से लाठी चार्ज। एक लड़का जो ग्रेजुएशन के प्रथम वर्ष में था, कुछ दिन पहले ही स्कूली जीवन छोड़कर आया था, उससे यह सब देखा नहीं गया और भूख हड़ताल पर बैठा तो पुलिस जबरदस्ती अपहरण करके हॉस्पिटल लेकर गई। उसके परिवार वालों को बुलाया गया और परेशान किया गया।... गिरफ्तारी, एफआईआर, निगरानी, लाठीचार्ज के बावजूद स्टूडेंट्स लड़ते रहे, पूरी ताक़त से लड़ते रहे। बाहर के लोगों ने लड़ाई में साथ दिया और आधा जंगल कटने के बाद ही सही बुलडोजर को रोकने में कामयाब हो गए। बर्बरता के खिलाफ जीत गए। आगे की लड़ाई के लिए तैयार हैं।
(13 अप्रैल 2025)

मैं निकल आया हूँ रैली के चित्रों से आगे। अब खड़क खाली है, मेरी साइकिल बिना किसी की भावनाएँ आहत किए चल रही है। खुद से ही यह जानकर अच्छा लगा कि मुझे पता नहीं है कि जाना कहां है, मेरे घूमते रहने का धर्म अभी खतरे से बाहर है...
जब मैं विश्वविद्यालय से 15 किमी दूर साइकिल से चला जा रहा हूँ तब क्यों नहीं यहाँ आस-पास किसी का बर्थडे हो। मैं जाऊँ सर पर बर्थडे वाली गोल टॉपी पहनकर, उसका केक काटा जाए। मैं उसके गले मिलूं तो वह सच में मुझे गले लगा ले। थोड़ा आगे निकलूं तो कोई तेलंगानावासी आए और यह जानकर कि मैं हैदराबाद विश्वविद्यालय से हूँ, मेरे कंधे पर हाथ रखे और कहे तुम अपनी लड़ाई जारी रखो। कब्जा भले ही रेवंत रेड्डी या किसी और का हो लेकिन अगर हम लोकतंत्र में है। सरकार हम लोगों की हैं, हम सब विश्वविद्यालय की ज़मीन विश्वविद्यालय को दिला कर रहेंगे। और अगर लोकतंत्र में नहीं है तो लड़कर लौटेंगे लोकतंत्र में और जंगल को जंगल बना रहने देंगे। मेरे चेहरे की चिंता समझकर वह कहे कि अभी तुम लौट जाओ आधे बच चुके अपने कैंपस की ओर, तुम्हारे किसी दोस्त की तुम्हारी तरफ पुकार हुई तो तुम जल्दी पहुँच पाओगे उसकी तरफ़। हैदराबाद शहर भी घूमने के लिए तुम्हारा ही है घूम सकते हो पर याद रखना अगर लड़ने की हिम्मत सलामत रही तो मशरूम रॉक के पास ज्यादा दिनों तक पुलिस का पहरा रहेगा नहीं। मन बिगड़ने पर तो जा सकते हो साइकिल से हेलीपेड पर चक्कर लगाने ताकि पहली पुकार में ही लौट पाओ। भले ही अब तुम पर किसी का विश्वास रहा नहीं है, कोई पुकारता नहीं है। पर तुम्हें पहली पुकार पर ही पहुँचने की दूरी पर रहना चाहिए।
(19 अप्रैल 2025)
वह गाना जो कहता है-
"It's gonna be okay
Everyone needs a bad day
Remember you told me
You're not alone, just pick up the phone
And call me..."
वह गाना बारिश ने दो_सान जैसे लड़कों के लिए ही गाया होगा। बिना पुकारे ही, पहली सी उदासी में बारिश दौड़ पड़ती है, दोस्ती निभाने के लिए। बीते तीन दिनों से उदासी पर बारिश टपक रही है। पहले दिन हल्की उदासी थी तो हल्की बारिश हुई, फ़िर उदासी बढ़ी तो बारिश गाढ़ी होती गई। जैसे घनघोर उदासी में आता है कोई दोस्त और रखता है कंधे पर हाथ। उदासी में दोस्त का पास होना, उदासी के न होने जैसा है। पर उस दोस्ती से ज्यादा कुछ हो महत्वपूर्ण तो उदासी में कंधे पर हाथ रखने वाले दोस्त को हम झिड़क देते है। गुस्से से चीखते हैं- दफ़ा हो जाओ।
मतलब कि हैदराबाद की बजाए अभी मैं गाँव में होता और बारिश होती तो बर्दाश्त नहीं कर पाता। हैदराबाद में इस समय की बारिश पकाती होगी आमों को पर गाँव में अभी की बारिश पीलुओं (रेगिस्तान फल) को झाड़ देती। जाळ बाकी पेड़ो से ज्यादा लिबरल है, वह पक्के हुए पीलुओं पर मजबूती से पकड़ रखती नहीं हैं। नन्हा सा दो_सान जब कमर में लौटा बांधकर चढ़ता है जाळ पर और पीलुओं के झूम्बे (गुच्छे) को छूता है तो उस झूम्बे के पीलू आ जाते है दो_सान के हाथ में। हाथ से लोटे में, लोटे से बाल्टी में। बाल्टी में अंतिम लौटा पीले रंग के सेड़ीए पीलुओं का और उसके ऊपर रुमाल। भरी दोहपरी में प्यासे दो_सान के हाथ में रुमाल से ढकी पीलुओं की बाल्टी के इंतज़ार में होते हैं घर वाले।
जो जाळ रखती है पक्के हुए पीलुओं पर कंट्रोल, वह बान्धण कहलाती है। जाळ के लिए बान्धण कहलाने से बुरा कुछ भी नहीं। कमर में लौटा बांधे हुए पसीने से भीगे हुए झुण्ठ के बच्चे जाळ पर लटकते पीलुओं के झूम्बे देखकर अपनी बाल्टियाँ, बरनियाँ और बोतलें लटकाते हैं जाळ के ऊंचे हिस्से में और चढ़ते है ऊपर तभी बड़ा लड़का कहता है- “उतरो यह जाळ तो बान्धण (पीलू टूट नहीं रहे हैं, टूटने पर फट रहे हैं) है”। खुश हुए चेहरों का उदास होना जाळ को बुरा तो लगता होगा।
पीलू झड़ते हैं तो बकरिया खा जाती हैं, नहीं खा पाती हैं तो सूखकर कोकड़ बन जाते हैं। रेगिस्तान के फल सड़ते नहीं हैं। संगरी पक कर सूखती है तो खोखा बन जाती है। पीलू सूखकर कोकड़ बन जाते हैं। सूख जाना, सड़ जाने से कहीं ज्यादा बेहतर होता है। पीलुओं को याद करके मैं दो_सान को खबरदार करता हूँ कि रिश्ते भी सड़ न पाएँ, सूख पाएँ, टूट जाए पर सड़ नहीं पाएँ।
बचपन में जब आम के रंग जैसी पीली तो नहीं लेकिन अपने तरह के पीले रंग में रंगी हुई चीभड़ी को सुखाकर उसकी लातरी बनाई जाती थी तो नन्हा दो_सान सोचता था कि आम भी चिभड़ियों के जितने होते और उनकी भी लातरिया बनाई जाती तो उनका स्वाद कैसा होता। अभी हैदराबाद में चिभड़िया तो नहीं हैं पर नर्सरी से चुरा कर लाए हुए आम तो रूम में रखे है। जिसके साथ रहते है उनपर प्यार तो लुटाना बनता है (सच यह है कि जिन पर प्यार आता है उन्हीं के साथ रह पाते है, भले ही कुछ दिनों के लिए)। मैं चिभड़ियों का प्यार आमों पर लुटा रहा हूँ।
(6 मई, 2025)
साइकिल और मेरा रिश्ता अब उस पुरानी कहानी के प्रेमी प्रेमिका की तरह हो गया है जिसमें दोनों अब बात नहीं करते है लेकिन हल्की सी ही उदासी होने पर प्रेमी पहुँच जाता है प्रेमिका के घर, सेक्स के लिए... सच साबित होने में पुरानी कहानियाँ नई कविताओं से कम खतरनाक नहीं है।
मुझे अपनी दुनिया से खदेड़ने के बाद लोगों से कहना कि "आखिर तक ख़ुद सा बना रहा।" अगर मुझसे भी यही वाक्य कहना हो तो साथ में बुरी तरह से हँस भी देना ताकि मैं यह झूठ न कह पाऊं कि "आखिर तक खुद जैसा बने रहने का सुख तो बचा ही रहा।"
मुझसे कहा जाता था कि तुम अपने बारे में छिपा कर रखते हो पर अब जब प्रोफ़ेसर अपने बारे में सब कुछ बता देने वालों का मज़ाक उड़ाते हुए, छिपाए रखने वालों की तारीफ़ कर रहे थे तब उनके विरुद्ध मेरी प्रतिक्रिया में आक्रोश था। अब मैं सबकुछ सबके लिए जानने के लिए रख देता हूँ।
देखो ! यह बात कहने में मैं हिचकिचा नहीं रहा हूँ। अपनी हरकतों पर मुग्ध हूँ।
दो_सान
हैदराबाद विश्वविद्यालय
jaswantsinghsodha53@gmail.com, 9001222953
अपनी माटी
( साहित्य और समाज का दस्तावेज़ीकरण )
चित्तौड़गढ़ (राजस्थान) से प्रकाशित त्रैमासिक पत्रिका
Peer Reviewed & Refereed Journal , (ISSN 2322-0724 Apni Maati) अंक-60, अप्रैल-जून, 2025
सम्पादक माणिक एवं जितेन्द्र यादव कथेतर-सम्पादक विष्णु कुमार शर्मा छायाचित्र दीपक चंदवानी
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