सिनेमा विशेषांक / Cinema Visheshank of Apni Maati

आगामी विशेषांक 

साभार गूगल 
चित्तौड़गढ़ (राजस्थान) से प्रकाशित त्रैमासिक ई-पत्रिका
अपनी स्थापना के 11वें वर्ष में प्रवेश
अपनी माटी
( साहित्य और समाज का दस्तावेज़ीकरण )
UGC Care Listed ( Under List 'Multi Disciplinary' Sr. Nu. 03 )

(ISSN 2322-0724 Apni Maati) अंक-.... नवम्बर 2024


सिनेमा विशेषांक

 सम्पादक


डॉ. जितेन्द्र यादव

असिस्टेंट प्रोफ़ेसर (हिंदी विभाग)
सकलडीहा पी.जी. कालेजसकलडीहा ( उत्तर प्रदेश )
सम्पर्क : jitendrayadav.bhu@gmail.com, 9001092806


सहयोग 

विनोद कुमार

असिस्टेंट प्रोफेसर  (हिन्दी विभाग)
लाल बहादुर शास्त्री पीजी कॉलेज मुगलसराय, चंदौली ( उत्तर प्रदेश )
सम्पर्क : vinodhemayadav@gmail. com, 9621674298

आलेख भेजने की अंतिम तिथि : समाप्त  अंक प्रकाशन की तिथि 15/11/2024  

प्रस्तावना :

सिनेमा एक दृश्य-श्रव्य माध्यम है। हम सब जानते हैं कि केवल दृश्य या केवल श्रव्य के माध्यम की तुलना में दृश्य-श्रव्य माध्यम का प्रभाव अधिक होता है। सिनेमा का समाज से संबंध बहुत गहरा है। सिनेमा में समाज को प्रभावित करने की शक्ति निहित है। दादा साहब फाल्के ने 1913 में देश में जिस सिनेमा का पौधा बोया था। आज वह एक बरगद बन चुका है। उसकी जड़ें चारों तरफ फैल चुकी हैं। सिनेमा के विषय और तकनीकी दोनों में बदलाव दिखाई देता है। हिन्दी सिनेमा के शुरुआती दौर में धार्मिक और पौराणिक विषय पर फ़िल्में अत्यधिक बनी, फिर सामाजिक सोद्देश्यता और रोमांस-प्रेम के विषय लंबे समय तक छाये रहे। देश और दुनिया में सिनेमा मनोरंजन का एक सशक्त माध्यम रहा है। सिनेमा का विषय ऐसा होता है कि अशिक्षित और अनपढ़ जनता भी बहुत शौक से देखती और समझती है।

प्रेम को केंद्र बिन्दु बनाकर ज़्यादातर फिल्में बनी, उसमें मार-धाड़ और एक्शन बहुत ज्यादा होता था और उसे दर्शकों का प्यार भी खूब मिला किन्तु उसके साथ ही ऐसी फ़िल्में भी बनी जो सामाजिक उद्देश्य को पूरा करती थीं। ये समाज के किसी गंभीर विषय को सिनेमा के पर्दे पर प्रदर्शित करती थीं। आरंभ में महबूब खान, विमल राय, गुरुदत्त, सत्यजित रे इत्यादि निर्देशकों ने सिनेमा की इस असीमित संभावना को समझा और अपनी फिल्मों के माध्यम से समाज में नवचेतना जागृत करने का कार्य किया। हिन्दी सिनेमा ने आज सौ साल से ज्यादा का सफर तय कर लिया है। समाज में बदलाव के साथ सिनेमा में भी तेजी से बदलाव हुआ है। हर दौर का सिनेमा अपने तकनीक और विषय को लेकर अलग-अलग है। अब सिनेमा सिर्फ मनोरंजन का माध्यमभर नहीं है बल्कि उसकी सामाजिक उपयोगिता भी है। इसलिए ‘अपनी माटी’ का यह सिनेमा विशेषांक इस बदलाव को समग्र रूप से समझने का प्रयास है। लेखकों और शोधार्थियों से अनुरोध है कि ‘अपनी माटी’ पत्रिका के इस विशेषांक हेतु अपने शोधपरक, आलोचनात्मक एवं विद्वतापूर्ण लेख पत्रिका को भेजें ताकि सिनेमा पर एक सार्थक विशेषांक प्रकाशित किया जा सके।

यह पत्रिका सिनेमा के प्रति समर्पित एक विशेषांक का प्रस्ताव करती है। यह सिर्फ मनोरंजन के साधन से आगे बढ़कर सिनेमा के सामाजिक, सांस्कृतिक और कलात्मक महत्व का गहन विश्लेषण पेश करेगा। यह विशेषांक उन सभी पाठकों के लिए लक्षित है जो सिनेमा में रुचि रखते हैं, चाहे वे शौकिया हों या फ़िल्म के गहन जानकार। इसमें विभिन्न प्रकार के लेख और सामग्री शामिल होंगे जो सभी उम्र और रुचियों के पाठकों को आकर्षित करेंगे। हमें विश्वास है कि यह सिनेमा विशेषांक पाठकों को सिनेमा की दुनिया के बारे में गहन जानकारी प्रदान करेगा और उन्हें मनोरंजन की तरफ प्रेरित करेगा। यह सिनेमा के प्रति उनकी समझ को बढ़ाएगा और उन्हें फिल्मों को एक नए दृष्टिकोण से देखने के लिए प्रोत्साहित करेगा। हम इस विशेषांक को सफल बनाने के लिए आपसे सहयोग और समर्थन का अनुरोध करते हैं।

विशेषांक का उद्देश्य :

  • पाठकों को सिनेमा के इतिहास, विभिन्न शैलियों, तकनीकी पहलुओं और सामाजिक प्रभाव से परिचित कराना।
  • पुरस्कार विजेता फिल्मों, समीक्षकों द्वारा प्रशंसित फिल्मों और दर्शकों द्वारा पसंदीदा फिल्मों सहित विभिन्न प्रकार की फिल्मों जानकारी प्राप्त करना।
  • सिनेमा के विभिन्न क्षेत्रों के विशेषज्ञों, जैसे कि निर्देशकों, अभिनेताओं, पटकथा लेखकों, छायाकारों और संपादकों के साथ साक्षात्कार प्रस्तुत करना।
  • सिनेमा से संबंधित विभिन्न विषयों पर गहन लेख और विश्लेषण प्रकाशित करना, जैसे कि सेंसरशिप, हाशिए के स्वर का प्रतिनिधित्व,  और विभिन्न सामाजिक मुद्दे।
  • क्षेत्रीय सिनेमा, स्वतंत्र फ़िल्म निर्माण और वृत्तचित्रों पर प्रकाश डालना।
  • पाठकों को फिल्मों की समझ विकसित करना

संभावित विषय :

  1.  सिनेमा का इतिहास: शुरुआती दिनों से लेकर वर्तमान सिनेमा तक( शुरुआती दौर (1913-1947), स्वर्ण युग (1947-1960), नया सिनेमा (1960-1980), मसाला सिनेमा (1970-1980), समकालीन सिनेमा (1980-वर्तमान)
  2.  विभिन्न शैलियों का अन्वेषण: एक्शन, रोमांस, कॉमेडी, ड्रामा और थ्रिलर
  3.  सेंसरशिप की बहस: अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता बनाम सामाजिक जिम्मेदारी
  4.  सिनेमा और समाज: विभिन्न सामाजिक मुद्दों को संबोधित करना
  5.  समानान्तर सिनेमा
  6.  प्रतिरोध का सिनेमा : विभिन्न विमर्श दलित ,स्त्री ,आदिवासी,अल्पसंख्यक इत्यादि   
  7.  बाल सिनेमा
  8.  हिन्दी सिनेमा और गीत-संगीत  
  9.  भूमंडलीकरण के दौर में हिन्दी सिनेमा
  10.  साहित्य आधारित फिल्मों का अध्ययन
  11.  राष्ट्रवाद और हिन्दी सिनेमा
  12.  सांप्रदायिकता और हिन्दी सिनेमा
  13.  सिनेमा की दृष्टि में भारत विभाजन
  14.  पटकथा लेखन
  15.  डिजिटल सिनेमा,ओटीटी प्लेटफॉर्म्स
  16.  तकनीकी क्रांति: स्पेशल इफेक्ट्स, एनीमेशन और 3डी सिनेमा
  17.  मुख्य धारा  सिनेमा बनाम कला सिनेमा
  18.  रूपहले पर्दे का आकर्षण और कलाकारों के संघर्ष की कहानियाँ
  19.  रीमेक फ़िल्में
  20.  शॉर्ट सिनेमा
  21.  भारतीय सिनेमा पर विदेशी सिनेमा का प्रभाव
  22. अंतर्राष्ट्रीय फ़िल्म महोत्सव और भारतीय फ़िल्में
  23. अंतर्राष्ट्रीय सिनेमा में भारतीय कलाकार
  24.  चर्चित व्यक्तित्व साक्षात्कार : प्रसिद्ध निर्देशकों, अभिनेताओं और फ़िल्म निर्माताओं के साथ बातचीत

·    प्रमुख व्यक्तित्व : सत्यजित रे, राजकपूर, श्याम बेनेगल, हृषिकेश मुखर्जी, ओमपुरी, दिलीप कुमार ,बलराज साहनी, के. एल. सहगल ,मीना कुमारी ,वहीदा रहमान, स्मिता पाटिल, गुरुदत्त, विमल राय, नसीरुद्दीन शाह, इरफान खान, राजकुमार हिरानी, श्याम बेनेगल, अनुराग कश्यप, विशाल भारद्वाज, गोविन्द निहलानी, गुलज़ार, मणिरत्नम, इम्तियाज अली, विधु विनोद चोपड़ा, आमिर खान, इत्यादि  पर लेख।

 फ़िल्म समीक्षा :

o   पुरानी एवं नवीनतम, समीक्षकों द्वारा प्रशंसित फ़िल्में और दर्शकों की पसंदीदा फिल्मों का पर लेख।

 क्षेत्रीय सिनेमा :

o   भारत के विभिन्न क्षेत्रों से उत्कृष्ट फिल्मों पर लेख

 स्वतंत्र फ़िल्म निर्माण :

o   मुख्यधारा सिनेमा से हटकर बनी फिल्मों पर प्रकाश डाला जाना

v वृत्तचित्र :

    • सामाजिक, राजनीतिक और पर्यावरणीय मुद्दों पर आधारित वृत्तचित्रों का प्रदर्शन 

(नोट : विशेषांक के बारे में केवल अतिथि संपादक से सम्पर्क : jitendrayadav.bhu@gmail.com पर ही संवाद करिएगा. )


( यह अंक नवम्बर, 2024 में प्रकाशित किया जाएगा )

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