अप्रैल 2013 अंक
राजीव आनंद,गिरिडीह
इन्डियन नेशन और
हिन्दुस्तान टाइम्स के
ज़रिये मीडिया क्षेत्र का लंबा अनुभव हैं।
परिकथा, रचनाकार डाट आर्ग, जनज्वार,
शुक्रवार, दैनिक भास्कर,
दैनिक जागरण, प्रभात वार्ता में
प्रकाशित हो चुके हैं।
वर्तमान में फारवर्ड प्रेस, दिल्ली से
मासिक हिन्दी-अंग्रेजी पत्रिका में गिरिडीह,
झारखंड़ से संवाददाता हैं।
इतिहास और
वकालात के विद्यार्थी रहे हैं।
सम्पर्क:-
प्रोफेसर कॉलोनी,गिरिडीह-815301
झारखंड़
ईमेल-rajivanand71@gmail.com,
मो. 09471765417
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(1) आंचल
गिर गया स्कूल बस से उतरते हुए
बंटी और बबलू
दौडी उनकी माएं
उठाने उनको
सर से खून रिस रहा था
आंचल का एक कोना फाड़ा
बंटी की मां ने
बांध दी सर पर पट्टी
बबलू की मां ने भी
करना चाहा था ऐसा
पर क्या करती
जीन्स और टॉप में
कहां मिलता आंचल
(2) पिता
पिता बीमार चल रहे है
कई दिनों से
देखते-देखते थक गया है
शिशिर
फुर्सत नहीं है कि बन सके
अपने पिता की लाठी
जो बखूबी बन चुके थे उसके पिता
शिशिर के बचपने में
जब वो चल नहीं पाता था
बिना सहारे के
(3) न्याय
परिभाषा बदल गयी है
न्याय की
दबे-कुचले को नहीं मिलती
खाए-पीए-अघाए
खरीद लेते है
न्याय
सामाजिक न्याय के नाम पर
दिया था जमीन गुही के नाम पर
दशकों बीत गए
ढूढ़ रहा है गुही
जमीन को
धूल चाटती फाइलों के
धूल चाटती फाइलों के
गर्द में
कहां है जमीन पूछा आफिसर ने
यहीं तो मिला था हुजूर
दिन-बरस याद नहीं
बस इतना याद है मालिक
हाथ पकड़ आज जो लाया है मुझे यहां
कागज पर जमीन लेते वक्त
कागज पर जमीन लेते वक्त
हाथ पकड़ लाया था मैं उसे यहां
(4) बापू
बापू कल सपने में आए
कहने लगे
दो अक्टूबर को पूरे देश में
क्यों सन्नाटा था ?
काम पर कोई गया नहीं था !
मैंने कहा
उपलक्ष्य में आपके जन्मदिन के
घोषित राष्ट्रीय अवकाश था
सूना, बापू ने, दुखी हो गये
कहने लगे
कर्म की संस्कृति तुम लोग भूल गए
कब मैंने अवकाश लिया था
आजाद देश कराने में !
(5 )मेहमान
खिला नहीं सकते, पढ़ा नहीं सकते
तो पैदा क्यों किया
चिल्लाया दीनू अपने मॉं-बाप पर
हतप्रभ दोनों क्या कहते
तू भगवान की देन है
वहीं खिलाएगा-पढ़ाएगा तुझे
दीनू फिर चिल्लाया
दो दिन, दो रात
फाके में गुजार दिया
अब पानी भी तर नहीं कर सकती अतड़ियों को
कहां है आपलोगों का भगवान ?
चिंता न कर दीनू, मॉं-बाप ने कहा
वो बस आने ही वाला है
बन के तेरे घर का मेहमान
(6) हिमालय और बंटी
हिमालय तो वही है
हमारे धर्म व दर्शन का
पुरातन साथी
बदला मौसम, बदली जलवायु
ग्रह-नक्षत्र बदल गये
पर नहीं बदला हिमालय से
हमारा रागात्मक संबंध
हमारा बंटी जो है आज का युवा
जोड़ नहीं पाता है हिमालय से
रागात्मक संबंध
हिमालय की वो तासीर है
कि जिसने देखा नहीं हिमालय को पास से
वो भी दूर नहीं हिमालय से
फिर भी दूर है क्यों
हमारा बंटी आज का युवा
हिमालय से ?
(7) फर्ज
पिछले साल इंतकाल कर गए
जुम्मन काका
फुर्सत ही नहीं थी निशार को तिजारत से
कि बालिद के कब्र पर जला आए
एक कंदिल
या फिर एक फूल ही रख आए
पर नहीं भूला था फर्ज
जुम्मन काका का पालतू कुत्ता
कब्र पर आंसू बहाना
घंटो बैठ कर
मानो इंतजार करता
कि अभी बाहर आ जायेगें
कब्र से जुम्मन काका
और प्यार से थपकी देगें
गर्दन पर
दो पैरों पर खड़ा हो गया था
जुम्मन काका का वह पालतू कुत्ता
(8) सबसे बड़ा लोकतंत्र
क्या बचा है मेरे पास
बाहर आकर जेल से
दशकों बाद
न बाप
न मॉं
न बहन
न भाई
न किए जुर्म की सजा काट
पुलिस साबित न कर पायी एक भी बात
गुम हो गयी लंबी अंधेरी रातों में हयात
मां, बाप, बहन, भाई ने छोड़ दिया साथ
कैसा है ये न्याय का तंत्र ?
फंसाकर पुलिस निर्दोष को
रचती है षड़यंत्र
जज साहब एक दशक तक
फैसला सुनाते है
जाओ अब जेल से बाहर
तुम हो स्वतंत्र
क्या गरीब को ऐसी ही
जिंदगी मिलती है भारत में ?
सूना है देश आजाद है
और है
सबसे बड़ा लोकतंत्र !
(9) कारखाना
इंसानियत का कारखाना
अब हो गया है पुराना
नहीं बना पा रहा
ममता, त्याग, प्रेम व करूणा का
औजार
जो जीवित कर सके इंसानों में
मरती हुई इन संवेदनाओं को
औजार घिस गए लगते है
मन-मस्तिष्क के आनंदित उत्पाद
नहीं बना पा रहा है कारखाना
टाटा, बिड़ला और अंबानी से कहो
लगाए वो दूसरा इंसानियत का कारखाना !
(10) भूखमरी रेखा
देश में नयी बनी है
भूखमरी रेखा
कीड़े-मकोड़े की तरह
जो रहते है और
बिलबिलाते है भूख से
उन्हें डाल दिया जाता है
इस रेखा के नीचे
खासियत यह है इसके
नीचे रहने वालों का
उपर उठाना नहीं पड़ता इन्हें
सरकार को
खूद-ब-खूद ये उपर
उठ जाते है