आगामी विशेषांक / Special Issue

आगामी विशेषांक 


भक्ति आन्दोलन और हिंदी की सांस्कृतिक परिधि

( यह अंक दिसम्बर 2023 में प्रकाशित किया जाएगा एवं रचना स्वीकारने की अंतिम तिथि 30 सितम्बर 2023 रहेगी )


        भक्ति आंदोलन जैसी सांस्कृतिक प्रक्रिया भारत के इतिहास की एक विशिष्ट उपलब्धि है। अपने प्रसिद्ध निबंध ‘भारतवर्ष में इतिहास की धारा’ के अंतर्गत रविन्द्रनाथ ठाकुर ने रेखांकित किया था कि “भारत के इतिहास में प्राचीन काल से ही देखा गया है कि उसके चित्त ने जड़त्व के विरुद्ध लगातार युद्ध किया है। भारत की समस्त श्रेष्ठ सम्पदा - उसके उपनिषद, उसकी गीता, उसका विश्व प्रेममूलक बौद्ध धर्म - इसी महायुद्ध की जयलब्ध सामग्री है। उसके श्रीकृष्ण और रामचंद्र इसी महायुद्ध के अधिनायक हैं। ऐसा मुक्तिप्रिय भारतवर्ष दीर्घकाल के जड़त्व का बोझ सिर पर लेकर एक ही स्थान पर शताब्दियों तक निश्चल पड़ा रहेगा, यह बात प्रकृतिगत नहीं है। जड़त्व का यह बोझ उसके जीवन का आनंद नहीं है - यह एक बाह्य वस्तु है।” गुरुदेव ने इसी क्रम में भारत के मध्य युग में इस बात के भी दृष्टान्त देखे थे कि, “नानक, कबीर प्रभृत्ति उपदेशकों ने इसी चेष्टा को रूप दिया है। कबीर की जीवनी और रचनाओं में यह स्पष्ट देखा जा सकता कि उन्होंने भारत की समस्त बाह्य आवर्जना का अतिक्रमण करते हुए उसके अन्तःकरण की श्रेष्ठ सामग्री को ही सत्य साधना समझकर उपलब्ध किया था। इसीलिए कबीर के अनुयायियों को विशेष रूप से भारतपंथी कहा गया है। उन्होंने ध्यान योग से स्पष्ट देखा था कि बिखराव और असंग्लगता के बीच भारत किसी निभृत सत्य पर प्रतिष्ठित है। मध्ययुग में एक के बाद एक कबीर जैसे आचार्यों का अभ्युदय हुआ जो बोझ भारी हो उठा था उसे हल्का करना ही उनका एकमात्र प्रयास था। लोकाचार, शास्त्र-विधि और अभ्यास के रुद्ध द्वार पर आघात करके उन्होंने भारत को जगाने का प्रयत्न किया।”

        भारत के सांस्कृतिक इतिहास में यदि अन्धकार युग नहीं है और न ही दूसरों को सताने और गुलाम बनाने वाली मानसिकता तो इसके कारण भक्ति आन्दोलन की हमारी गौरवशाली विरासत में मौजूद है। हमारा देश संतों की महान आत्माओं के प्रकाश से इस तरह दीप्त रहा कि दुर्दांत लुटेरों की एक के बाद एक लगातार सुनामी के बावजूद अपनी अस्मिता को बचा लेने में कामयाब रहा।  प्रेमचन्द को इस बात का गर्व था कि हमारे देश के ईश्वर भी हमारे कवियों की देन हैं। संत कवियों ने ईश्वर बनाया, ऐसा ईश्वर जिसके सर्वाधिक प्रिय सबसे ज्यादा ‘खिन्न’ लोग थे। तुलसी के राम गरीब नेवाज हैं तो इकबाल के इमामे हिन्द। लोहिया जी ने बताया है कि हमारे संत कवियों ने ऐसा राम बनाया जो उत्तर से दक्षिण तक भारत को एक सूत्र में जोड़ते हैं, वहीं दूसरे युग में कृष्ण पूरब से लेकर पश्चिम तक भारत को एक सूत्र में जोड़ते हैं। संतों ने आजीवन यात्राएँ कीं। उनके ईश्वर भी राजभवन तक सीमित नहीं रहे। राजतंत्र के विरुद्ध लोकतंत्र की चिंगारी रामचरितमानस में मौजूद है।

        दिनकर जी ने भक्ति आन्दोलन की सांस्कृतिक परिधि पर विचार करते हुए कहा था कि यह कितने विस्मय की बात है कि, “विद्यापति जितने हिंदी के हैं, उतने ही बांगला के और मीरा बाई जितनी गुजराती की हैं, उतनी ही हिंदी की”। हिंदी की यह सांस्कृतिक परिधि असम के शंकर देव और मराठी के अनेक नामचीन संतों तक विस्तृत है। गाँधी जी सहित भारतीय नवजागरण के तमाम अहिन्दी अग्रदूत यदि स्वाधीनता आन्दोलन के दौर में हिंदी पर भरोसा प्रकट करते हैं तो उसके सूत्र भी भक्ति आन्दोलन में छिपे हुए हैं। गाँधी जी पर नरसी सहित तुलसी, कबीर और मीरा का प्रभाव जगजाहिर है। स्वयं भगत सिंह की चिंता थी कि तुलसी और कबीर की कविता भारत के जन-जन तक जानी चाहिए। बाबा रामचंद्र तुलसी की कविता के जरिये अवध का किसान आन्दोलन संभव कर पाए। आकस्मिक नहीं कि रामविलास शर्मा नवजागरण की अपनी अवधारणा के देशी आधारों की तलाश में ही भक्ति आन्दोलन को लोकजागरण नाम से प्रस्तावित करते हैं।

 

इसी संकल्पना के साथ आपसे इन प्रस्तावित क्षेत्रों पर शोध आलेख आमंत्रित हैं -

 
1. भक्ति आन्दोलन की पूर्वपीठिका 
2.बुद्धजैनसिद्ध और नाथ पंथ का प्रभाव 
3. दक्षिण भारत का दर्शन 
4. मराठी संतों का हिंदी काव्य 
5. असम के संतों का हिंदी काव्य 
6. गुजराती भक्ति साहित्य और हिंदी 
7. बांगला और ओड़िया भक्ति साहित्य के साथ सम्बन्ध 
8. भक्ति और रीति काव्य 
9. लोकजागरण और नवजागरण 
10. स्वाधीनता आन्दोलन पर भक्ति काव्य का प्रभाव 
11. दलित स्त्री और मुस्लिन विमर्श के विशेष सन्दर्भ में भक्ति काव्य 
12. भक्ति काव्य और पाश्चात्य आलोचक 
13. भक्ति काव्य और हिंदी आलोचना 
14. हिंदी की जनपदीय बोलियों के बीच अंतरवर्ती सूत्रों की तलाश 
15.विद्यापति 
16. निर्गुणसूफी और सगुण कवि 
17. वर्गीकरण और इतिहास लेखन की समस्याएँ 
18.परंपरा और इतिहास बोध का प्रश्न 


(शोध नियमावली के लिए https://www.apnimaati.com/p/infoapnimaati.html देखें और विशेषांक से जुड़े समस्त संवाद हेतु सीधे अतिथि सम्पादक से ही करिएगा )

अतिथि संपादक
गजेन्द्र पाठक
प्रोफेसर, हिंदी विभाग / Professor, Department of Hindi
मानविकी संकाय /School of Humanities
हैदराबाद विश्वविद्यालय/University of Hyderabad 
हैदराबाद Hyderabad -500046
दूरभाष : 04066793468, मो. : 8374701410