आलेख - दिव्यांग की अवधारणा और
समानता के अवसर
- संगीता कुमार
भारत के माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदीजी ने
विकलांगता को अभिशाप न मानते हुए कहा कि “हम अपनी आँखों से किसी व्यक्ति की
विकलांगता को देखते हैं। परंतु उनसे हमारी बातचीत कहती है कि उनमें विशेष क्षमता
है। तब मैंने सोचा कि हमारे देश में उनके लिए ‘विकलांग’ शब्द की जगह ‘दिव्यांग’ शब्द का इस्तेमाल करना चाहिए। ये वे
व्यक्ति हैं जो विशेष क्षमता से लैस हैं।” प्रधानमंत्री जी की यह पहल नेत्रबाधित,
बधिर, पैर बाधित आदि व्यक्तियों के प्रति आम नज़रिये बदलने की सकारात्मक पहल है।
भारतीय समाज में जहाँ अज्ञानता, रूढ़िवादि सोच, अंधविश्वास का बोलबाला है, वहाँ
शारीरिक रूप से विशेष अंग बाधित व्यक्तियों को हीन भाव से देखा जाता है। इनके लिए
अंधरा, लंगड़ा, लूला, बहरा जैसे शब्दों के प्रयोग हिकारत भाव से किये जाते हैं।
इनके प्रति यह भावना समाज में इनकी भौतिक स्थिति को कमजोर करती ही है, साथ ही इनकी
मानसिकता को भी दुर्बल करती है। भारतीय समाज के साथ संस्कृति पर भी नज़र डाली जाए
तो स्पष्ट होता है कि इन्हें अमंगल, अशुभ के कारक के रूप में देखने का रिवाज़
गहराई से पैठा हुआ है। प्राय: यात्रा पर निकले किसी आम व्यक्ति की नज़र किसी नेत्रबाधित
व्यक्ति पर पड़ जाने से ‘यात्रा खराब हो जाने’ की शंका उसके मन में घुमड़ने लगती है।
आसानी से महसूस किया जा सकता है कि अधिकांश लोगों के मन में यह घर किया हुआ है कि
विकृत शरीर में विकृत मन का वास होता है।अकारण नहीं है कि महाभारत और रामायण जैसे
महाकाव्यों के युद्ध के सूत्रधार खलनायकों को अंगबाधित दिखाया गया है। आधुनिक
जमाने में आधुनिक तकनीकों से सुसज्जितफिल्में भी इस मामले में कम पिछड़ी नहीं हैं।
प्राय:
खलनायक को अधिक खतरनाक़ दिखाने के लिए उसके किसी न किसी अंग में भंग दिखाया जाता
है।प्रसिद्ध फिल्म ‘हीर-रांझा’ का पात्र ‘कायदो’, जिसके पैर टूटे हुए हैं। फिल्म में कायदो को खलनायक के
रूप में प्रस्तुत किया ही गया है साथ ही उसका चरित्र-चित्रण एक नशेड़ी और छीछोरे
के रूप में किया गया है। फिल्म ‘लैला-मजनू’ मेंलैला-मजनू
के प्रेम
के भी दुश्मन के रूप में कज्ज़ाक को दिखाया गया है, जिसकी एक आँख फूटी हुई है। इस
मामले में महानायक कृष्ण का भी चरित्र प्रश्न के घेरे में है। सैकड़ों पटरानियों
को उसके उसी रूप में अपनाने वाले कृष्ण भी कुबरी कुब्जा को उसके उसी रूप में अपना
नहीं पाये। कुब्जा को उन्होंने अपनी अलौकिक शक्ति से सामान्य बनाकर अपनाया।
सामान्य मनुष्यों की भांति कृष्ण भी यहाँ कुब्जा को उसके उसी रूप में केवल आंतरिक
सुन्दरता के आधार पर नहीं अपना पाये।
हालांकि दिव्यांग व्यक्तियों ने विभिन्न क्षेत्रों में
अपनी प्रतिभा दिखाई है। नेत्रहीन सूरदास के कृष्ण के बाल वर्णन के पदों से कौन
परिचित नहीं होगा! दिव्यांग पंडित शुक्ला, गणेश्वरानंद जी के संगीत से कौन अभिभूत
नहीं होगा! तमिल
साहित्य में भक्त अंध कवि वीराग्वा मुदालियर और मांबला कविराय के भक्तिमय गीत
किसके हृदय में भक्ति पैदा नहीं कर सकता है! न केवल भारतीय संस्कृति, साहित्य और
मिथक, बल्कि रोमन और ग्रीक जैसी सभ्यताएँ दिव्यांगों के योगदानों से भरी हैं।
जाहिर है समान अवसर मिलने पर दिव्यांगों ने अपनी प्रतिभा से समाज को अभूतपूर्व
योगदान दिया है। आज जरूरत न केवल समान अवसर उपलब्ध कराने के हैं, बल्कि लोगों के
मस्तिष्क में दिव्यांगों के प्रति बैठी हीन भावना को भी समाप्त करने की है,
क्योंकि ऐसी भावनाएँ इनके आत्मविश्वास और मनोबल को तोड़ देती है। भारत एक विशाल
लोकतांत्रिक देश है, जिसकी आत्मा समता और बंधुता में बसती है। भारत अपने सभी
नागरिकों को समान विकास के अवसर और पूर्वाग्रहमुक्त समाज देने के लिए प्रतिबद्ध
है। भारत सरकार ने इसी भावना के तहत् आर्थिक और समाजिक आयोग के द्वारा एशिया और प्रशांत
महासागर के क्षेत्रों के दिव्यांग की पूरी समानता के लिए आयोजित बैठक में दिव्यांग
(बराबरी के अवसर, अधिकारों की सुरक्षा और पूर्ण भागीदारी) कानून, 1995 को अपनाया।
यह कानून केन्द्र सरकार, राज्य सरकारों और स्थानीय प्राधिकारियों को दिव्यांगता की
पहचान और रोकथाम, दिव्यांगों के लिए शिक्षा, रोजगार, सहायता और उपकरणों के
प्रावधान, सार्वजनिक स्थानों पर सुलभ पहुँच, परिवहन आदि की व्यवस्था का दायित्व
सौंपता है। इसमें शोध और मानवसंसाधन विकास, सामाजिक सुरक्षा और शिकायतों के
निपटारे के लिए तंत्र विकसित करने और दिव्यांगों के लिए आवंटित निधि के उपयोग की
निगरानी के प्रावधान हैं।
ऊपरोक्त कानून के
अंतर्गत भारत सरकार अपने सभी निगमों, उपक्रमों, कार्यालयों की नियुक्तियों में 3
प्रतिशत दिव्यांगों के लिए आरक्षित करती है। साथ ही इनके सर्वांगीण विकास के लिए
निम्न प्रावधान करने के लिए प्रतिबद्ध है –
- दिव्यांगों के लिए प्रशिक्षण
कल्याणकारी योजनाएँ
- अधिकतम आयु में छूट
- दिव्यांगों के स्वास्थ और सुरक्षा
के उपाय करना और कार्यस्थल पर इनके लिए बाधामुक्त माहौल बनाना।
- इनसे संबंधित कल्याणकारी योजनाओं
के संचालन के लिए पर्याप्त राशि आवंटित करना।
- योजनाओं के मुकम्मल कार्यान्वयन की
जिम्मेदारी लिए प्राधिकारी का गठन करना।
यह कानून केन्द्र सरकार, राज्य सरकार तथा सभी स्थानीय
निकायों को दायित्व सौंपती है कि वे सभी गरीबी उन्मूलन योजनाओं में दिव्यांगों के
उत्थान के लिए किसी भी सूरत में तीन प्रतिशत से कम आरक्षण का प्रावधान नहीं
करेंगे। साथ ही सरकारी तथा गैर सरकारी दोनों प्रकार के संगठन दिव्यांगों को
प्रोत्साहित करेंगे ताकि उनके यहाँ कुल मानव संसाधन का कम से कम पाँच प्रतिशत
हिस्सा दिव्यांग जनों के लिए सुनिश्चित हो सके।
यह कानून कार्यस्थलों पर दिव्यांगों के लिए उनके अनुकूल आधारभूत संरचनाएँ विकसित करने के भी निर्देश देता है, जैसे कि व्हीलचेयर उपयोग करनेवालों के लिए फुटपाथ, ढ़लान आदि जगहों पर व्हीलचेयर की सुगमता के लिए कट और स्लोव बनाना। सार्वजनिक भवनों में रैम्प का निर्माण कराना, एलिवेटर और लिफ्ट में ब्रेली चिन्ह और श्रवण संकेत की व्यवस्था करना। साथ ही इस कानून को संज्ञान में लेते हुए भारत सरकार यह विधान करती है कि यदि कोई कर्मचारी किसी कारणवश अपनी सेवाकाल के दौरान दिव्यांगता का शिकार हो जाता है तो अमुक कर्मचारी को हटाया नहीं जाएगा, न ही उसके पद को कम किया जाएगा। यदि अमुक कर्मचारी दिव्यांगता के कारण कार्य कर रहे पद परसेवा देने में असमर्थ हो जाता है तो उन्हें सामान्य वेतनमान और सेवालाभों सहित उस पद को सौंपा जाएजिस पर वे अपनी सेवा देने में समर्थ हों। यदि अमुक व्यक्ति संस्था में उपलब्ध किसी भी पद पर सेवा प्रदान करने की स्थिति में नहीं हैं तो उनके लिए उचित पद उपलब्ध होने तक उन्हें अतिरिक्त पद पर रखा जाए। भारतीय संविधान के अनुरूप समाज-निर्माण की दिशा में दिव्यांग से संबंधित धारायह भी निर्देश देती है कि केवल दिव्यांगता के आधार पर किसी भी कर्मचारी की प्रोन्नति नामंजूर नहीं की जा सकती है। परंतु यह कि समुचित सरकार, किसी स्थापन में किए जा रहे कार्य के प्रकार को ध्यान में रखते हुए, अधिसूचना द्वारा और ऐसी शर्तों के अधीन रहते हुए, यदि कोई हो, जो ऐसी अधिसूचना में विहित की जाए किसी स्थापन को इस धारा के उपबंधों से छूट दे सकेगी।
दिव्यांगों के उत्थान के लिए यह कानून निर्देशित करता है कि सरकारें इनके लिए घर बनाने के लिए रियायती दरों पर भूमि का आवंटन करे। साथ ही सामाजिक सुरक्षा के विविध पहुलुओं पर भी गौर फरमाने जैसे कि समुचित सरकार अपने नि:शक्त कर्मचारियों के फायदे के लिए बीमा योजना बनाए। किसी बात के होने की स्थिति में समुचित सरकार कोई बीमा योजना बनाने के बदले अपने नि:शक्त कर्मचारियों के लिए एक आनुकल्पिक सुरक्षा योजना बना सकेगी। जाहिर है कि नि:शक्त व्यक्ति (समान अवसर, अधिकार संरक्षण और पूर्ण भागीदारी) अधिनियम, 1995 दिव्यांगों की सशक्तिकरण की दिशा में एक ठोस कदम है। आवश्यकता है भारत सरकार के विभिन्न सरकारी-गैर सरकारी संस्थाओं में इसके अनुपालन की। 2011 की जनगणना के अनुसार भारत में विभिन्न दिव्यांगताओं से ग्रसित कुल 268.10 लाख व्यक्ति हैं। सपनों, रूचि और क्षमताओं से भरे हुए ये हमारे देश के लिए एक बड़ा मानव संसाधन हैं। यह सरकार और समाज पर निर्भर करता है कि इनके पंख को कितना परवाज़ दे सकते हैं ताकि इनकी उड़ान से पूरा मानव समुदाय लाभान्वित हो सके।
संदर्भ :
नि:शक्त व्यक्ति (समान अवसर, अधिकार संरक्षण और पूर्ण भागीदारी)
अधिनियम, 1995
संगीता कुमारी, सहायक शिक्षिका
बालिका उच्च विद्यालय भुरकुंडा, रामगढ़, झारखंड
sangeetasingh2020@gmail.com, 9718614962
अपनी माटी (ISSN 2322-0724 Apni Maati)
अंक-39, जनवरी-मार्च 2022 UGC Care Listed Issue चित्रांकन : संत कुमार (श्री गंगानगर )