शोध आलेख : मनुष्य के रक्त में प्लास्टिक वनाम प्लास्टिक अपशिष्ट प्रबंधन नियम / अंजली दीक्षित

मनुष्य के रक्त में प्लास्टिक वनाम प्लास्टिक अपशिष्ट प्रबंधन नियम
- अंजली दीक्षित

शोध सार : मनुष्य जीवन एवं पर्यावरण दोनों ही एक दुसरे के पूरक है| किन्तु अभी नीदरलैंड के शोधकर्ताओं के द्वारा एक परीक्षण के दौरान मानव रक्त में पहली बार माइक्रो प्लास्टिक[i] मिलने की बात कही गई, जिसने दुनिया भर के वैज्ञानिकों को गंभीर चिंता में डाल दिया है। मानव रक्त में माइक्रोप्लास्टिक मिलना मानव जीवन के लिए एक बड़े खतरे के रूप में देखा जा रहा है ।  'द प्लास्टिक वेस्ट मेकर्स इंडेक्स'[ii] के अनुसार भारत में प्रति व्यक्ति 4 किलोग्राम प्लास्टिक कचरा पैदा करता है।पृथ्वी पर प्रदूषण गंभीर समस्या है। अगर प्रदूषण के बढ़ने के कारणों का आंकलन करें तो सभी प्रकार के प्रदूषण चाहे वो जल हो भूमि या फिर वायु प्रदूषण हर तरह के प्रदूषण को फैलाने में प्लास्टिक उत्पादों की एक बड़ी भूमिका है। मानव निर्मित प्लास्टिक कचड़ा जो रक्तबीज की तरह है जो किसी न किसी रूप में हर जगह पर्यावरण को निगलने के लिए मुंह बाए खड़ा है । सबसे बड़ी समस्या सिंगल यूज प्लास्टिक को लेकर है। क्योंकि इसका इस्तेमाल बहुत ज्यादा होता है। और रिसाइकल नहीं होने के कारण इन्हें इस्तेमाल के बाद खुले में फेंक दिया जाता है। इससे मिट्टी की उर्वरता घट जाती है। पानी में जाने पर वह भी प्रदूषित हो जाता है। और यदि जला दिया जाए तो जहरीला धुआं बनकर हवा में घुल जाता है।मिट्टी,जल और वायु की बात छोड़ दीजिए अब तो अंतरिक्ष भी प्लास्टिक कचड़े से पटा पड़ा है।भारत में बने कानून भी इस और कुछ विशेष नही कर पाए है किन्तु हाँ नियंत्रण की और प्रयासरत अवश्य है|


    18जनवरी 2022, को पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने एक अधिसूचना[iii] के माध्यम से मसौदा प्लास्टिक अपशिष्ट प्रबंधन नियम, 2022 को अधिसूचित किया है, जिसके माध्यम से इसने भारत में प्लास्टिक निर्माताओं और आयातकों की जिम्मेदारी बढ़ा दी है। नए नियम के अनुसार, "बायोडिग्रेडेबल प्लास्टिक", "पोस्ट-कंज्यूमर प्लास्टिक पैकेजिंग वेस्ट", "रीसाइक्लर्स", "वेस्ट टू एनर्जी" आदि शब्द की परिभाषा को अधिसूचित किया गया है। इसके अलावा, निर्माता, आयातक और ब्रांड के मालिक, समय-समय पर इन नियमों के तहत जारी नियमों के अनुसार प्लास्टिक पैकेजिंग कचरे पर विस्तारित उत्पादकों की जिम्मेदारी को पूरा करेंगे। नियम के अनुसार, कोई भी व्यक्ति कैरी बैग का निर्माण नहीं करेगा या प्लास्टिक या बहुस्तरीय पैकेजिंग को तब तक रीसायकल नहीं करेगा जब तक कि व्यक्ति ने पंजीकरण प्राप्त नहीं कर लिया हो - संबंधित राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड या केंद्र शासित प्रदेश की प्रदूषण नियंत्रण समिति, यदि एक या दो राज्यों या संघ में काम कर रही हो प्रदेशों; या केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड, यदि दो से अधिक राज्यों या केंद्र शासित प्रदेशों में काम कर रहा है। पर्यावरण की गुणवत्ता को बचाने और सुधारने और पर्यावरण प्रदूषण को रोकने, नियंत्रित करने और कम करने के उद्देश्य से, इन नियमों के प्रावधानों का पालन नहीं करने वाले व्यक्ति (व्यक्तियों) पर प्रदूषक भुगतान सिद्धांत के आधार पर पर्यावरणीय मुआवजा लगाया जाएगा।


प्लास्टिक अपशिष्ट

प्लास्टिकशब्द ग्रीक शब्द प्लास्टिकोज और प्लास्टोज से बना है, जिसका अर्थ है जो लचीला है या जिसे ढ़ाला, मोड़ा या मनमर्जी का आकार दिया जा सके। उपयोग की दृष्टि से प्लास्टिक को मोटे तौर पर दो भागों में बांट सकते हैं ... सिंगल यूज और मल्टीपल यूज प्लास्टिक[iv] । रिसायकिल के नज़रिए से भी इसे दो रूपों में देखा जाता है डिलेड बायोडिग्रेडेबल और नॉन-बायोडिग्रेडेबल । डिलेड बायोडिग्रेडेबल का अर्थ है कि इसके नष्ट होने में बहुत समय लगे और नॉन-बायोडिग्रेडेबल का मतलब है कि जो कभी खत्म ही न हो । 1 जुलाई, 2022 से सिंगल यूज प्लास्टिक वस्तुओं के उपयोग पर प्रतिबंध लगाए जाने की घोषणा की जा चुकी है। पर्यावरण मंत्रालय के अनुसार उसके बाद पॉलीस्टाइनिन और एक्सपैंडेड पॉलीस्टाइनिन सहित सिंगल यूज वाले प्लास्टिक के उत्पादन, आयात, भण्डारण, वितरण, बिक्री और उपयोग पर प्रतिबंध रहेगा।


प्लास्टिक अपशिष्ट निवारण एवं संवैधानिक आयाम 

भारतीय संविधान चिर-स्थायी प्राकृतिक संसाधनों की वकालत करता है| ‘धारणीय विकास’ की परम्परा का अनुसरण करते हुए इस सिधांत पर की हम अपने प्राकृतिक संशाधनो का सुनिचित उपयोग करें और अपनी आने वाली पीढ़ी के लिए वेहतर छोड़कर जाएँ जो उनके विकास के लिए सहायक हो|

  • मूल भारतीय संविधान[v] के अनुच्छेद 297(1),(2) और (3) में समुद्रवर्ती संसाधनों के प्रबंधन तथा विनियमन के लिये संसद को विधि निर्माण की शक्ति प्राप्त है।
  • संविधान का 42वाँ संशोधन पर्यावरण सुरक्षा की दृष्टि से अत्यधिक महत्त्वपूर्ण है। इस संशोधन द्वारा अनुच्छेद 48(A) तथा 51(A) को जोड़ा गया और पर्यावरण के संवर्द्धन तथा वन एवं वन्य जीवन की सुरक्षा के लिये राज्य और नागरिकों को उत्तरदायी बनाया गया है।


प्लास्टिक अपशिष्ट निवारण एवं भारतीय कानून

केंद्रीय सरकार ने प्लास्टिक कचरे को लेकर नियम[vi] कड़े किए; प्लास्टिक कैरी बैग की न्यूनतम मोटाई 40 माइक्रॉन से बढ़ाकर 50 माइक्रॉन कर दी गई है। सरकार ने पूर्ववर्ती प्लास्टिक कचरा (प्रबंधन एवं संचालन) नियम, 2011 को दरकिनार कर उनके स्थान पर प्लास्टिक कचरा प्रबंधन नियम, 2016 अधिसूचित किये हैं। प्लास्टिक कचरे को लेकर जो नियम पहले नगर निगम के क्षेत्रों तक ही स्वीकार्य थे, उन्हेंर अब सभी गांवों तक बढ़ा दिया गया है|


पर्यावरण (संरक्षण ) अधिनियम, 1986 की धारा 3,6 एवं 25 द्वारा प्रदत्त शक्तियों का प्रयोग करके मसौदा नियमों, अर्थात प्लास्टिक अपशिष्ट (प्रवंध और प्रहस्तन) अधिनियम, 2011 को पारित किया गया था| इस अधिनियम में विभिन्न सरकारी संस्थाओं की भागीदारी निर्धारित नही थी, इसलिए, पुनः भारत सरकार, पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय द्वारा अधिसूचना संख्या 320 (अ) को दिनांक 18 मार्च, 2016 के माध्यम से प्लास्टिक कचरा प्रबंधन नियम 2016 को भारत सरकार द्वारा भारत के राजपत्र में प्रकाशित किया गया था। जिसमे लोकल बॉडीज जैसे की ग्राम पंचायत, एवं उत्पादनकर्ता, निर्यातक और विक्रेता सभी जी जिम्मेदारी तय की गयी|


प्लास्टिक कचरा प्रबंधन नियम, 2016 के उद्देश्य् ये हैं:

  • प्लास्टिक कैरी बैग की न्यूनतम मोटाई को 40 माइक्रॉन से बढ़ाकर 50 माइक्रॉन करना
  • नियमों पर अमल के दायरे को नगरपालिका क्षेत्र से बढ़ा कर ग्रामीण क्षेत्रों तक कर देना, क्योंकि प्लास्टिक ग्रामीण क्षेत्रों में भी पहुंच गया है
  • प्लास्टिक कैरी बैग के उत्पादकों, आयातकों एवं इन्हेंण बेचने वाले वेंडरों के पूर्व-पंजीकरण के माध्यम से प्लास्टिक कचरा प्रबंधन शुल्क के संग्रह की शुरुआत करना


बायोमेडिकल कचरा प्रबंधन नियम, 2016 की मुख्य बातें

अपशिष्ट प्रबंधन नियम-2016 के अनुसार, प्रदूषणकर्त्ता संपूर्ण अपशिष्ट को तीन प्रकारों यथा जैव निम्नीकरणीय, गैर-जैव निम्नीकरणीय एवं घरेलू खतरनाक अपशिष्टों के रूप में वर्गीकृत करके इन्हें अलग-अलग डिब्बों में रखकर स्थानीय निकाय द्वारा निर्धारित अपशिष्ट संग्रहकर्त्ता को ही देंगे[vii]

  • इसके साथ ही स्थानीय निकायों द्वारा निर्धारित प्रयोग शुल्क का भुगतान प्रदूषणकर्त्ता द्वारा किया जाएगा।  ये शुल्क स्थानीय निकायों द्वारा निर्मित विनियमों से निर्धारित किये जाएंगे।
  • इस नियम के अंतर्गत विभिन्न पक्षकारों यथा–  भारत सरकार के विभिन मंत्रालयों जैसे पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय, शहरी विकास मंत्रालय, रसायन एवं उर्वरक मंत्रालय, कृषि एवं कृषक कल्याण मंत्रालय, ज़िला मजिस्ट्रेट, ग्राम पंचायत, स्थानीय निकाय, राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड आदि के कर्तव्यों का उल्लेख भी किया गया है।
  • मानवीय एवं पशु के शारीरिक अपशिष्ट, उपचार एवं अनुसंधान की प्रक्रिया में स्वास्थ्य देखभाल सुविधाओं में प्रयोग किये जाने वाले उपचार उपकरण जैसे सुईयां, सिरिंज और अन्य सामग्रियों को बायोमेडिकल कचरा कहा जाता है।
  • यह कचरा अस्पतालों, नर्सिंग होम, पैथोलॉजिकल प्रयोगशालाए, ब्लड बैंक आदि में डायग्नोसिस, उपचार या टीकाकरण के दौरान पैदा होता है।
  • इस नए नियम का उद्देश्य देश भर की 168869 स्वास्थ्य देखभाल सुविधाओं (एचसीएफ ) से रोजाना पैदा होने वाले 484 टन बायोमेडिकल कचरे का उचित प्रबंध करना है।
  • नियम के दायरे को बढाया गया हाउ और इसमें टीकाकरण शिविरों, रक्तदान शिविरों, शल्य चिकित्सा शिविरों या अन्य स्वास्थ्य देखभाल गतिविधि को भी शामिल किया गया है।
  • क्लोरीनयुक्त प्लास्टिक की थैलियाँ, दस्ताने और खून की थैलियों को दो वर्ष के भीतर चरणबद्ध तरीके से हटा दिया जायेगा।
  • प्रयोगशाला कचरे, सूक्ष्मजीवविज्ञानी कचरे, खून के नमूनों और खून की थैलियों को कीटाणुशोधन या ऑन-साइट विसंक्रमण के जरिये पूर्व उपचार विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) या राष्ट्रीय एड्स नियंत्रण संगठन (एनएसीओ) द्वारा निर्धारित तरीके से किया जायेगा।
  • सभी स्वास्थ्य सेवा कर्मचारियों को नियमित रूप से प्रशिक्षण और टीकाकरण दिया जायेगा।
  • बायोमेडिकल कचरा रखने वाले थैलियों या कंटेनरों को नष्ट करने के लिए बार-कोड प्रणाली बनाई जाएगी।
  • सेकेंडरी चैम्बर में धारण समय के लिए मानकों को प्राप्त करने हेतु मौजूदा भट्टी और दो वर्षों के भीतर डायओक्सिन एवं फ्यूरन्स की व्यवस्था।
  • कचरे को अलग करने की प्रक्रिया में सुधर के लिए बायोमेडिकल कचरे को अब मौजूदा 10 श्रेणियों की जगह ४ श्रेणियों में ही बांटा जायेगा।
  • प्राधिकरण को सरल बनाने की प्रक्रिया के तहत वाले अस्पतालों के लिए ऑटोमेटिक ऑथराइजेशन की अनुमति होगी। बिस्तर वाली स्वास्थ्य सेवा सुविधाओं के लिए प्राधिकरण की वैधता सहमति आदेश की वैधता के समरूप किया गया है।
  • नए नियम में भट्टियों के लिए मानक और सख्त किये गए हैं ताकि पर्यावरण में प्रदूषकों के उत्सर्जन को कम किया जा सके।
  • डाई ऑक्सीन एवं फ्यूरन्स के लिए उत्सर्जन सीमा निर्धारित किये गये।
  • राज्य सरकार आम बायो- मेडिकल कचरा उपचार एवं निपटान सुविधा बनाने के लिए ज़मीन मुहैया कराएगी।
  • अगर आम बायो-मेडिकल कचरा उपचार सुविधा पचहत्तर किलोमीटर की दूरी पर उपलब्ध है तो कोई भी ठेकेदार ऑनसाइट  ट्रीटमेंट या निपटान सुविधा नहीं बनाएगा।
  • आम बायो-मेडिकल कचरा उपचार एवं निपटान सुविधा के संचालक को एचसीएफ से समय पर बायो-मेडिकल कचरा उठाना सुनिश्चित करना होगा और एचसीएफ को प्रशिक्षण आयोजित करने में सहयोग देना होगा।

ये नियम मार्च 2016 में अधिसूचित अन्य कचरा प्रबंधन नियमों के अतिरिक्त है।


अन्य अधिसूचित नियम

अन्य अधिसूचित नियम इस प्रकार है :-

  • प्लास्टिक कचरा प्रबंधन नियम, 2016
  • ई-कचरा प्रबंधन नियम, 2016
  • कंस्ट्रक्शन एंड डेमोलिशन वेस्ट मैनेजमेंट रूल्स, 2016
  • प्लास्टिक अपशिष्ट प्रबंधन संशोधन नियम, 2021


प्लास्टिक अपशिष्ट प्रबंधन (संशोधन) नियम 2018

पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय[viii] ने 27 मार्च, 2018 को प्लास्टिक अपशिष्ट प्रबंधन (संशोधन) नियम 2018 को अधिसूचित किया है। इस संशोधित कानून के द्वारा प्रोडूसर के दायित्व को बढाया गया जो की पूर्व कानूनों में नहीं था| अब यदि उसके उत्पाद से पर्यावण को नुकसान हुआ तो उसकी जबाबदारी तय है|


प्लास्टिक अपशिष्ट प्रबंधन संशोधन नियम, 2021

वर्ष 2022 तक एकल उपयोग वाले प्लास्टिक को चरणबद्ध तरीके से समाप्त करने के प्रधानमंत्री के आह्वान के अनुरूप, भारत सरकार के पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने स्थलीय एवं जलीय इकोसिस्टम पर बिखरे हुए प्लास्टिक के कचरे के प्रतिकूल प्रभावों को ध्यान में रखते हुए प्लास्टिक अपशिष्ट प्रबंधन संशोधन नियम, 2021 को अधिसूचित कर दिया है। यह नियम वर्ष 2022 तक कम उपयोगिता और कचरे के रूप में बिखरने की अधिक क्षमता रखने वाली एकल उपयोग की प्लास्टिक वस्तुओं को प्रतिबंधित करता है।

वर्ष 2019 में आयोजित चौथे संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण सभा में, वैश्विक समुदाय के सामने एकल-उपयोग वाले प्लास्टिक उत्पादों के प्रदूषण से जुड़े बेहद महत्वपूर्ण मुद्दे पर ध्यान केन्द्रित करने की तत्काल जरूरत को स्वीकार करते हुए भारत ने इस प्रदूषण से निपटने से संबंधित एक प्रस्ताव पेश किया था। यूएनईए-4 में इस प्रस्ताव को स्वीकार किया जाना एक महत्वपूर्ण कदम था।

1 जुलाई, 2022 से पॉलीस्टीरीन और विस्तारित पॉलीस्टीरीन समेत निम्नलिखित एकल-उपयोग वाले प्लास्टिक वस्तुओं के निर्माण, आयात, भंडारण, वितरण, बिक्री और उपयोग को प्रतिबंधित किया जाएगा

प्लास्टिक की छड़ियों से लैस ईयर बड्स, गुब्बारों के लिए प्लास्टिक की छड़ियां, प्लास्टिक के झंडे, कैंडी की छड़ियां, आइसक्रीम की छड़ियां, सजावट के लिए पॉलीस्टीरीन [थर्मोकोल];

प्लेट, कप, गिलास, कांटे, चम्मच, चाकू, स्ट्रॉ, ट्रे जैसी कटलरी, मिठाई के डिब्बों    के चारों ओर लपेटी जाने या पैकिंग करने वाली फिल्म, निमंत्रण कार्ड और सिगरेट के पैकेट, 100 माइक्रोन से कम मोटाई वाले प्लास्टिक या पीवीसी बैनर, स्टिरर।

हल्के वजन वाले प्लास्टिक कैरी बैग की वजह से फैलने वाले कचरे को रोकने के लिए 30 सितंबर, 2021 से प्लास्टिक कैरी बैग की मोटाई 50 माइक्रोन से बढ़ाकर 75 माइक्रोन और 31 दिसंबर, 2022 से 120 माइक्रोन कर दी गई है। मोटाई में इस वृद्धि के कारण प्लास्टिक कैरी का दोबारा उपयोग भी संभव होगा।

प्लास्टिक पैकेजिंग अपशिष्ट, जिसे चिन्हित की गई एकल उपयोग वाली प्लास्टिक वस्तुओं के चरण के तहत कवर नहीं किया गया है, को प्लास्टिक अपशिष्ट प्रबंधन नियम, 2016 के अनुरूप निर्माता, आयातक और ब्रांड मालिक (पीआईबीओ) की विस्तारित निर्माता उत्तरदायित्व के जरिए पर्यावरण की दृष्टि से टिकाऊ तरीके से एकत्र और प्रबंधित किया जाएगा। विस्तारित उत्पादक उत्तरदायित्व के कारगर कार्यान्वयन के लिए विस्तारित उत्पादक उत्तरदायित्व से संबंधित दिशानिर्देशों को प्लास्टिक अपशिष्ट प्रबंधन संशोधन नियम, 2021 के जरिए कानूनी शक्ति प्रदान की गई है।

स्वच्छ भारत मिशन[ix] के माध्यम से राज्यों/केन्द्र - शासित प्रदेशों में अपशिष्ट प्रबंधन के बुनियादी ढांचे को मजबूत किया जा रहा है। प्लास्टिक अपशिष्ट प्रबंधन नियम, 2016 के कार्यान्वयन को मजबूत करने और चिन्हित की गई एकल उपयोग वाली प्लास्टिक वस्तुओं के उपयोग को कम करने के लिए भी निम्नलिखित कदम उठाए गए हैं: (i) राज्यों / केन्द्र शासित प्रदेशों से एकल उपयोग वाले प्लास्टिक का उन्मूलन करने और प्लास्टिक अपशिष्ट प्रबंधन नियम, 2016 के कारगर कार्यान्वयन के लिए एक विशेष कार्यबल गठित करने का आग्रह किया गया है। मंत्रालय द्वारा राष्ट्रीय स्तर पर भी एक कार्यबल गठित किया गया है, जोकि चिन्हित की गई एकल उपयोग वाली प्लास्टिक वस्तुओं का उन्मूलन करने और प्लास्टिक अपशिष्ट प्रबंधन नियम, 2016 के कारगर कार्यान्वयन के लिए समन्वित प्रयास करता है।

राज्यों/ केन्द्र शासित प्रदेशों की सरकारों और संबंधित केन्द्रीय मंत्रालयों/विभागों से एकल उपयोग वाले प्लास्टिक के उन्मूलन और प्लास्टिक अपशिष्ट प्रबंधन नियम, 2016 के कारगर कार्यान्वयन और इस कार्यान्वयन को समयबद्ध तरीके से पूरा करने के लिए एक व्यापक कार्य योजना बनाने का अनुरोध किया गया है। पर्यावरण (संरक्षण) अधिनियम, 1986 की धारा 5 के तहत सभी राज्यों/केन्द्र - शासित प्रदेशों को प्लास्टिक अपशिष्ट प्रबंधन (पीडब्लूएम) नियम, 2016 के प्रवर्तन को मजबूत करने के लिए संस्थागत तंत्र स्थापित करने के निर्देश जारी किए गए हैं[x]


नए नियमों के तहत प्रावधान:

प्लास्टिक का वर्गीकरण:

श्रेणी 1: कठोर प्लास्टिक पैकेजिंग।

श्रेणी 2: सिंगल लेयर या मल्टीलेयर की लचीली प्लास्टिक पैकेजिंग (विभिन्न प्रकार के प्लास्टिक के साथ एक से अधिक परत), प्लास्टिक शीट और प्लास्टिक शीट से बने कवर, कैरी बैग, प्लास्टिक पाउच या पाउच आदि ।

श्रेणी 3: बहु-स्तरीय प्लास्टिक पैकेजिंग (प्लास्टिक की कम-स-कम एक परत और प्लास्टिक के अलावा अन्य सामग्री की कम-से-कम एक परत) को इस श्रेणी में शामिल किया गया है।

श्रेणी 4: पैकेजिंग के लिये उपयोग की जाने वाली प्लास्टिक शीट या कंपोस्टेबल प्लास्टिक से बने कैरी बैग इस श्रेणी के अंतर्गत आते हैं।

प्लास्टिक की पैकेजिंग:

पैकेजिंग हेतु प्लास्टिक सामग्री के उपयोग को कम करने के दिशा-निर्देशों में कठोर प्लास्टिक पैकेजिंग सामग्री का पुन: उपयोग अनिवार्य किया गया है।

EPR के तहत एकत्रित प्लास्टिक पैकेजिंग कचरे के पुनर्चक्रण की प्रवर्तनीय विधि के साथ-साथ पुनर्नवीनीकरण प्लास्टिक सामग्री के उपयोग से प्लास्टिक की खपत में कमी आएगी और प्लास्टिक पैकेजिंग कचरे के पुनर्चक्रण में मदद मिलेगी।

विस्तारित निर्माता उत्तरदायित्व प्रमाणपत्र:

ये दिशानिर्देश अधिशेष विस्तारित उत्पादक उत्तरदायित्व प्रमाणपत्रों की बिक्री एवं खरीद की अनुमति देते हैं। इससे प्लास्टिक कचरा प्रबंधन हेतु एक बाजार तंत्र विकसित होगा।

केंद्रीकृत ऑनलाइन पोर्टल:

सरकार ने 31 मार्च, 2022 तक प्लास्टिक पैकेजिंग कचरे के उत्पादकों, आयातकों और ब्रांड-मालिकों, प्लास्टिक कचरा प्रसंस्करणकर्त्ताओं हेतु वार्षिक रिटर्न दाखिल करने के साथ-साथ पंजीकरण के लिये केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (CPCB) द्वारा एक केंद्रीकृत ऑनलाइन पोर्टल स्थापित करने का भी आह्वान किया है।

यह प्लास्टिक कचरा प्रबंधन नियम, 2016 के तहत प्लास्टिक पैकेजिंग के लिये EPR के कार्यान्वयन से संबंधित आदेशों एवं दिशा-निर्देशों के संबंध में एकल डेटा भंडार के रूप में कार्य करेगा।

पर्यावरण मुआवज़ा:

पर्यावरण की गुणवत्ता की रक्षा एवं सुधार तथा पर्यावरण प्रदूषण को रोकने, नियंत्रित करने एवं कम करने के उद्देश्य से उत्पादकों, आयातकों और ब्रांड मालिकों से लक्ष्यों को पूरा न करने के संबंध में प्रदूषक भुगतान सिद्धांत के आधार पर पर्यावरणीय मुआवज़ा लिया जाएगा।

प्रदूषक भुगतान सिद्धांत भुगतान का दायित्त्व[xi] एक ऐसे व्यक्ति पर डालता है, जो पर्यावरण को प्रदूषित करता है, इससे पर्यावरण को हुए नुकसान की भरपाई की जा सकेगी।

केन्द्रीय प्रदुषण नियंत्रण बोर्ड संघ सरकार एवं राज्य सरकारों द्वारा तय की गयी बाध्यताओं को पूरा करने में उत्पादकों, आयातकों, और ब्रांड मालिको, के लिए समय समय पर अधिसूचनाओं के माध्यम से क्षतिपूर्ति के अधिरोपण और संग्रहण करेगा|

उपायों की सिफारिश करने हेतु समिति:

CPCB अध्यक्ष की अध्यक्षता में गठित एक समिति EPR के प्रभावी कार्यान्वयन हेतु पर्यावरण मंत्रालय को उपायों की सिफारिश करेगी, जिसमें विस्तारित निर्माता उत्तरदायित्व (EPR) दिशा-निर्देशों में संशोधन भी शामिल हैं।

EPR पोर्टल पर वार्षिक रिपोर्ट:

राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (SPCBs) या प्रदूषण नियंत्रण समितियों (PCCs) को राज्य/केंद्रशासित प्रदेश में उत्पादकों, आयातकों और ब्रांड-मालिकों एवं प्लास्टिक कचरा प्रसंस्करणकर्त्ताओं द्वारा इसकी पूर्ति के संबंध में ईपीआर पोर्टल पर एक वार्षिक रिपोर्ट प्रस्तुत करने का काम सौंपा गया है।

दिशा-निर्देशों का महत्त्व:

यह प्लास्टिक के नए विकल्पों के विकास को बढ़ावा देगा और व्यवसायों को सतत् प्लास्टिक पैकेजिंग की ओर बढ़ने हेतु एक रोडमैप प्रदान करेगा[xii]

दिशा-निर्देश प्लास्टिक पैकेजिंग कचरे की चक्रीय अर्थव्यवस्था को मज़बूत करने के लिये एक ढांचा प्रदान करते हैं।

एक चक्रीय अर्थव्यवस्था क्लोज़्ड-लूप सिस्टम निर्मित करने, संसाधनों के उपयोग को कम करने, अपशिष्ट उत्पादन, प्रदूषण और कार्बन उत्सर्जन को कम करने हेतु संसाधनों के पुन: उपयोग, साझाकरण, नवीनीकरण, पुन: निर्माण और पुनर्चक्रण पर निर्भर करती है।

यह देश में फैले प्लास्टिक कचरे से होने वाले प्रदूषण को कम करने की दिशा में एक महत्त्वपूर्ण  कदम है[xiii]

भारत में सालाना लगभग 3.4 मिलियन टन प्लास्टिक कचरा उत्पन्न होता है। संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम का लक्ष्य वर्ष 2024 तक भारत के 100 शहरों में उनके प्लास्टिक अपशिष्ट प्रबंधन को लगभग तिगुना करना है।

प्लास्टिक कचरे का संचय पर्यावरण के लिये हानिकारक है और जब यह कचरा समुद्र में जाता है तो जलीय पारिस्थितिक तंत्र को भी बड़े स्तर पर नुकसान पहुँचाता है।


प्लास्टिक कचरे पर अंकुश लगाने हेतु अन्य पहलें:

1.  स्वच्छ भारत मिशन (SBM): SBM (G) चरण- II को फरवरी 2020 में जल शक्ति मंत्रालय द्वारा अनुमोदित किया गया था। यह चरण I के तहत प्राप्त की गई उपलब्धियों की स्थिरता और ग्रामीण भारत में ठोस/तरल और प्लास्टिक अपशिष्ट प्रबंधन (SLWM) के लिये पर्याप्त सुविधाएँ प्रदान करने पर ज़ोर देता है[xiv]

  • इंडिया प्लास्टिक पैक्ट: इंडिया प्लास्टिक पैक्टभारतीय उद्योग परिसंघ (CII) और वर्ल्ड वाइड फंड फॉर नेचर (WWF) के सहयोग से एशिया में पहली बार सितंबर में लॉन्च किया जाएगा। प्लास्टिक सर्कुलर गैप को बंद करने पर प्रकाशित एक रिपोर्ट ने सुझाव दिया कि प्लास्टिक कचरे के प्रबंधन हेतु बड़े पैमाने पर वैश्विक हस्तक्षेप करने की सख्त आवश्यकता है।


2.  प्लास्टिक पैक्ट:

§  प्लास्टिक समझौते, व्यवसाय के नेतृत्त्व वाली पहलें हैं और सभी प्रारूपों एवं उत्पादों के लिये प्लास्टिक पैकेजिंग मूल्य शृंखला को बदलते हैं।

§  समझौते व्यावहारिक समाधानों को लागू करने के लिये प्लास्टिक मूल्यशृंखला से संबंधित सभी लोगों को एक साथ लाते हैं[xv]


§  सभी समझौतों के चार साझा लक्ष्य हैं:

o    रिडिज़ाइन और इनोवेशन के ज़रिये अनावश्यक और समस्याग्रस्त प्लास्टिक पैकेजिंग को खत्म करना;

o    यह सुनिश्चित करना कि सभी प्लास्टिक पैकेजिंग पुन: प्रयोज्य हों,

o    प्लास्टिक पैकेजिंग के पुन: उपयोग, संग्रह और पुनर्चक्रण को बढ़ाना,

o    प्लास्टिक पैकेजिंग में पुनर्नवीनीकरण सामग्री को बढ़ाना।

§  पहला प्लास्टिक समझौता वर्ष 2018 में यूके में लॉन्च किया गया था।


प्रमुख बिंदु

§  इंडिया प्लास्टिक पैक्ट एक महत्त्वाकांक्षी, सहयोगात्मक पहल है जिसका उद्देश्य संपूर्ण मूल्य शृंखला में व्यवसायों, सरकारों और गैर-सरकारी संगठनों को एक साथ लाना है ताकि प्लास्टिक को कम करने के लिये समयबद्ध प्रतिबद्धताएँ निर्धारित की जा सकें।

§  जब इंडिया प्लास्टिक पैक्ट भारत में सक्रिय होगा तो यह विश्व स्तर पर अन्य प्लास्टिक संधियों के साथ जुड़ जाएगा।

§  यह समझौता मार्गदर्शन हेतु एक रोडमैप विकसित करेगा, जिसके आधार पर सदस्यों के साथ मिलकर एक्शन ग्रुप बनाया जाएगा और इनोवेशन प्रोजेक्ट शुरू होगा।

o    इसके तहत महत्त्वाकांक्षी लक्ष्यों और वार्षिक डेटा रिपोर्टिंग के माध्यम से सदस्यों की जवाबदेही सुनिश्चित की जाती है।

§  इंडिया प्लास्टिक पैक्ट का विज़न, लक्ष्य और महत्त्वाकांक्षा एलेन मैकआर्थर फाउंडेशनकी न्यू प्लास्टिक इकाॅनमीके सर्कुलर इकाॅनमीसिद्धांतों के अनुरूप है।

लक्ष्य:

§  संधि का उद्देश्य वर्तमान रैखिक प्लास्टिक प्रणाली को एक सर्कुलर प्लास्टिक अर्थव्यवस्था में बदलना है, अन्य उद्देश्य हैं:

o    समस्याग्रस्त प्लास्टिक का उपयोग कम करना,

o    अन्य उत्पादों में उपयोग के लिये अर्थव्यवस्था में मूल्यवान सामग्री को बनाए रखना,

o    भारत में प्लास्टिक प्रणाली में रोज़गार, निवेश और अवसर पैदा करना।

§  इसका उद्देश्य सार्वजनिक-निजी सहयोग को बढ़ावा देना है जो प्लास्टिक को खत्म करने वाले समाधानों को सक्षम बनाता है, पैकेजिंग डिज़ाइन में नवाचार लाता है और हमारे द्वारा उपयोग किये जाने वाले प्लास्टिक मूल्यों को ग्रहण करता है।


परिणाम:

§  यह फ्रेमवर्क सरकार के विस्‍तारित उत्‍पादक जवाबदेहिता ढाँचे का समर्थन करेगा और स्वच्छ भारत अभियान में परिकल्पित ठोस अपशिष्ट प्रबंधन में सुधार करेगा।

§  समझौते के फ्रेमवर्क का अभिन्न अंग अनौपचारिक अपशिष्ट क्षेत्र की भागीदारी है जो उपभोक्ता के बाद के अलगाव, प्लास्टिक कचरे के संग्रह और प्रसंस्करण के लिये महत्त्वपूर्ण है।

§  समाज और अर्थव्यवस्था को लाभ के अलावा, लक्ष्यों को पूरा करने से प्लास्टिक के पुर्नचक्रण में वृद्धि होगी और प्रदूषण से निपटने में मदद मिलेगी।

§  वे ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में उल्लेखनीय कमी करेंगे।

3.  यू. एन.-प्लास्टिक कलेक्टिव (Un-Plastic Collective)

यू.एन.-प्लास्टिक कलेक्टिव (UPC) संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम, भारतीय उद्योग परिसंघ और WWF-भारत द्वारा शुरू की गई एक स्वैच्छिक पहल है।

यह संगठन हमारे ग्रह के पारिस्थितिक और सामाजिक स्वास्थ्य पर प्लास्टिक जनित दुष्प्रभावों को कम करने का प्रयास करता है[xvi]


UPC पहल के एक हिस्से के रूप में कंपनियाँ निम्नलिखित समयबद्ध, सार्वजनिक लक्ष्य निर्धारित करती हैं:

§  प्लास्टिक के अनावश्यक उपयोग को खत्म करना।

§  परिपत्र अर्थव्यवस्था के माध्यम से प्लास्टिक का पुन: उपयोग और चक्रण।

§  प्लास्टिक का साधारणीय विकल्प या पुनर्नवीनीकरण प्लास्टिक से प्रतिस्थापन।

§  सार्थक और औसत दर्जे की कार्रवाई के लिये प्रतिबद्धताओं को निश्चित करना।


समाधान:

प्लास्टिक अपशिष्ट प्रबंधन कम करें:

§  प्लास्टिक कचरे को कम करने में पहला कदम इसके एकल उपयोग को कम करना है, प्लास्टिक की थैलियों पर कर का समर्थन करके, प्लास्टिक के विनिर्माण पर संयम और प्लास्टिक या बायोडिग्रेडेबल प्लास्टिक के विकल्पों का उपयोग करना।

उदाहरण के लिये खादी और ग्रामोद्योग आयोग (KVIC) द्वारा शुरू की गई परियोजना REPLAN (प्रकृति में पुनरुद्धार के लिये खड़ा है) का उद्देश्य अधिक टिकाऊ विकल्प प्रदान करके प्लास्टिक की थैलियों की खपत को कम करना है।


पुन: उपयोग:

§  प्लास्टिक का पुन: उपयोग नए प्लास्टिक की मांग को कम कर सकता है, इसलिये यह प्लास्टिक निर्माण पर प्राकृतिक प्रतिबंध के रूप में कार्य कर सकता है।

§  रीसाइ कल: प्लास्टिक पुनर्चक्रण अपशिष्ट या स्क्रैप प्लास्टिक को पुनर्प्राप्त करने और इसे उपयोगी उत्पादों में पुन: परिवर्तित करने की प्रक्रिया है। यह कई लाभ प्रदान करता है जैसे:

o    मूल्यवर्धन के कारण आर्थिक लाभ

o    रोजगार सृजन।

o    भूमि भराव की समस्याओं को कम करना।

o    प्लास्टिक के पुनर्चक्रण के लिये कम ऊर्जा की आवश्यकता होती है


रिकवरी:

§  यह गैर-नवीनीकृत प्लास्टिक को उद्योग के लिये ऊर्जा और रसायनों के उपयोगी रूपों की श्रेणी में परिवर्तित करने की प्रक्रिया है। चूंकि प्लास्टिक में मुख्य रूप से कार्बन और हाइड्रोजन होते हैं, अतः डीज़ल जैसे पारंपरिक ईंधन के समान, ऊर्जा सामग्री के साथ इनका उपयोग ईंधन के एक संभावित स्रोत के रूप में किया जा सकता है।

    1. प्रोजेक्ट रिप्लान(Project REPLAN): परियोजना “REPLAN” (प्रकृति में प्लास्टिक को कम करना) खादी और ग्रामोद्योग आयोग (KVIC) द्वारा शुरू की गई थी।
      इस परियोजना में, प्लास्टिक कचरे को इकट्ठा किया जाता है, साफ किया जाता है, काटा जाता है, और इसे उपचारित किया जाता है।
      इसके बाद इसे कच्चे पदार्थ के साथ मिलाया जाता है,अर्थात 80% (कपास लुगदी) और 20% (प्लास्टिक अपशिष्ट) के अनुपात में मिलाया जाता है[xvii]
    2. ग्लोलिटर पार्टनरशिप प्रोजेक्ट

o    इसे अंतर्राष्ट्रीय समुद्री संगठन’ (IMO) और संयुक्त राष्ट्र खाद्य एवं कृषि संगठन’ (FAO) द्वारा लॉन्च किया गया है और इसका प्रारंभिक वित्तपोषण नॉर्वे सरकार द्वारा किया गया है।

o    उद्देश्य: शिपिंग और मत्स्य पालन उद्योग से होने वाले समुद्री प्लास्टिक कचरे को कम करना।

o    साथ ही यह विकासशील देशों को समुद्री परिवहन और मत्स्य पालन क्षेत्रों से प्लास्टिक कचरे को कम करने में भी सहायता करता है।

o    साथ ही यह प्लास्टिक के पुन: उपयोग और पुनर्चक्रण के अवसरों की पहचान भी करता है।

o    समुद्री कचरे से निपटने की इस वैश्विक पहल में भारत समेत 30 देश शामिल हैं।

§  विश्व पर्यावरण दिवस, 2018 की मेजबानी भारत द्वारा की गई थी, जिस दौरान वैश्विक नेताओं ने प्लास्टिक प्रदूषण को हरानेऔर इसके उपयोग को पूरी तरह से समाप्त करने का संकल्प लिया था[xviii]


§  भारत के लिये विशिष्ट:

o    प्लास्टिक कचरा प्रबंधन नियम, 2016 के मुताबिक, प्लास्टिक कचरे के पृथक्करण, संग्रहण, प्रसंस्करण और निपटान के लिये बुनियादी ढाँचे की स्थापना हेतु प्रत्येक स्थानीय निकाय को उत्तरदायी होना चाहिये।

o    प्लास्टिक अपशिष्ट प्रबंधन (संशोधन) नियम 2018 के माध्यम से विस्तारित उत्पादक उत्तरदायित्व’ (EPR) की अवधारणा पेश की गई थी।

o    भारत को वर्ष 2022 तक सिंगल यूज़ प्लास्टिकसे मुक्त करने के लिये देश में सिंगल यूज़ प्लास्टिकपर पूर्ण प्रतिबंध लगा दिया गया है।


प्लास्टिक कचरे से निपटने के लिए आगे के प्रयास

  1. सतत् विकल्प: आर्थिक रूप से किफायती और पारिस्थितिक रूप से व्यवहार्य ऐसे सतत् विकल्प को अपनाना, जो आवश्यक संसाधनों पर बोझ नहीं डालेंगे और उनकी कीमतें भी समय के साथ कम होंगी तथा मांग में वृद्धि होगी।

o    कपास, खादी बैग और बायोडिग्रेडेबल प्लास्टिक जैसे विकल्पों को बढ़ावा देने की ज़रूरत है।

o    सतत् रूप से व्यवहार्य विकल्पों की तलाश के लिये और अधिक अनुसंधान एवं विकास’ (R&D) और वित्त की आवश्यकता है।

  1. सर्कुलर अर्थव्यवस्था: प्लास्टिक प्रदूषण को कम करने के लिये देशों को प्लास्टिक मूल्य शृंखला में सर्कुलर और सतत् आर्थिक प्रथाओं को अपनाना चाहिये।
    • एक सर्कुलर इकाॅनमी एक क्लोज़्ड-लूप सिस्टम बनाने, संसाधनों के उपयोग को कम करने, अपशिष्ट के उत्पादन, प्रदूषण और कार्बन उत्सर्जन को कम करने के लिये संसाधनों के पुन: उपयोग, साझाकरण, मरम्मत, नवीनीकरण, पुन: निर्माण और पुनर्चक्रण पर निर्भर होती है।
  2. व्यवहार परिवर्तन: नागरिकों के व्यवहार में बदलाव लाना और उन्हें अपशिष्ट पृथक्करण तथा अपशिष्ट प्रबंधन के लिये प्रोत्साहित करना आवश्यक है।
  3. विस्तारित निर्माता उत्तरदायित्व: नीतिगत स्तर पर विस्तारित निर्माता उत्तरदायित्व’ (EPR) की अवधारणा, जो पहले से ही वर्ष 2016 के नियमों के तहत उल्लिखित है, को बढ़ावा देना होगा।
    • विस्तारित निर्माता उत्तरदायित्व’ (EPR) एक नीतिगत दृष्टिकोण है, जिसके तहत उत्पादकों को पोस्ट-कंज़्यूमर उत्पादों के उपचार या निपटान का महत्त्वपूर्ण दायित्व- वित्तीय और/या भौतिक सौंपा जाता है।


§  उत्पाद डिज़ाइन करना: प्लास्टिक की वस्तुओं की पहचान करना जिन्हें गैर-प्लास्टिक, पुनर्चक्रण योग्य या बायोडिग्रेडेबल सामग्री से बदला जा सकता है, पहला कदम है।

o    देशों को प्लास्टिक मूल्य शृंखला में सतत् आर्थिक प्रथाओं को अपनाना चाहिये।

  • प्रौद्योगिकी और नवाचार: शहरों में प्लास्टिक अपशिष्ट की मात्रा को मापने और निगरानी करने में सरकारों की सहायता के लिये उपकरण और प्रौद्योगिकी विकसित करना।
    • भारत को एशिया-प्रशांत के लिये संयुक्त राष्ट्र का आर्थिक एवं सामाजिक आयोग की 'क्लोज़िंग द लूप' परियोजना जैसी परियोजनाएँ शुरू करनी चाहिये जो समस्या से निपटने हेतु अधिक आविष्कारशील नीति समाधान विकसित करने में शहरों की सहायता करती हैं।


अन्तर्राष्ट्रीय प्रयत्न

पांचवीं संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण सभा में 175 देशों ने प्लास्टिक प्रदूषण पर ऐतिहासिक संकल्प जिसे वैश्विक प्लास्टिक संधि[xix]के नाम से जानते है को अपनाया| नैरोबी में 28 फरवरी 2022 से 2 मार्च 2022 तक आयोजित पांचवीं संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण सभा (यूएनईए 5.2) के फिर से शुरू होने वाले सत्र में प्लास्टिक प्रदूषण से निपटने के लिए तीन मसौदा प्रस्तावों पर विचार किया गया था।भारत के आग्रह पर, प्लास्टिक प्रदूषण से निपटने के लिए कार्रवाई करते समय राष्ट्रीय परिस्थितियों और क्षमता के सिद्धांत को संकल्प के पाठ में शामिल किया गया ताकि विकासशील देशों को उनके विकास पथ का अनुसरण करने की अनुमति मिल सके।

इस समय विश्व के 40 से अधिक देशो ने प्लास्टिक के आंशिक या पूर्ण प्रतिवंध के प्रावधान किये हैं।

  • बांग्लादेश में 1998 के उपरान्त सरकार ने प्लास्टिक पर [प्रतिबन्ध का फैसला लिया।
  • केन्या में प्लास्टिक पर पूर्ण प्रतिबन्ध है।
  • ऑस्ट्रेलिया में प्लास्टिक से जुड़े नियमो के उलंघन पर अर्थदंड का प्रावधान है।
  • स्वीडन में प्लास्टिक को रिसाइकल कर विजली बनाने की तकनीक है।

प्लास्टिक प्रदूषण एवं न्यायपालिका

अनुकूलन का सिद्धांत जिसे अस्तित्व सिद्धांत या योग्यतम के अस्तित्व के रूप में भी जाना जाता है जीव के पर्यावरण में परिवर्तनों को आत्मसात करने और समय के बीतने के अनुसार अनुकूलन करने की क्षमता है।परन्तु इसका यह अर्थ नही की हम पर्यावरण के साथ में छेड़छाड़ करें और उसका दोहन करें| एहतियाती सिद्धांत[xx] के तहत प्रदूषक का यह दायित्व है कि वह सिद्ध करे कि उसका उद्योग या उसके द्वारा की गई कोई गतिविधि स्वास्थ्य या पर्यावरण, किसी के लिए भी हानिकारक नहीं है। दूसरी ओर प्रदूषक भुगतान करेगा सिद्धांत के दो अनिवार्य तत्व हैं। पहला यह कि प्रदूषण करने वाला उद्योग पर्यावरण को होने वाली क्षति के लिए स्वयं निरपेक्ष रूप से उत्तरदायी होगा। और दूसरा यह कि पर्यावरण की क्षति की भरपाई पर आने वाली लागत के लिए प्रदूषक ही उत्तरदायी होगा। 

पर्यावरण के संरक्षण के लिए न्यायपालिका ने अनेक सिद्धान्तों का प्रतिपादन किया। प्रदूषक को भुगतान करने का सिद्धान्त, सावधानी सिद्धान्त, पूर्ण दायित्व का सिद्धान्त, सम्पोषणीय विकास की अवधारणा और पीढ़ियों के बीच समानता का सिद्धान्त जैसे नए सिद्धान्तों और अवधारणाओं का उपयोग कर न्यायालयों ने आलस्यमयी कार्यपालिका को झकझोर कर अनेक पर्यावरणीय संकटों में हस्तक्षेप किया। ऐसे कुछ वैधानिक, नियामक और नीतिगत आधारभूत सिद्धान्त हैं जिनका उपयोग प्लास्टिक प्रदूषण की रोकथाम के लिए हो सकता है| सावधानी का सिद्धान्त/दृष्टिकोण वह आधारशिला है जिस पर यूएनएफसीसी और क्योटो समझौता टिका हुआ है। सावधानी का सिद्धान्त कहता है कि जहाँ गम्भीर और अपरिवर्त्य क्षति का खतरा हो वैज्ञानिक निश्चितता के अभाव को पर्यावरणीय विकृति को रोकने के उपायों को टालने के कारण के रूप में नहीं किया जाना चाहिए| यही बात सुप्रीम कोर्ट के द्वारा वेल्लूर सिटीजंस वेलफेयर फोरम बनाम यूनियन ऑफ इण्डिया, एफआईआर, 1996 एससी 2715 में भी कही गयी थी|

वही इण्डियन कौंसिल फॉर  एनवायरो- लीगल एक्शन बनाम यूनियम ऑफ़ इण्डिया, एआईआर 1996 एससी 1446 में सुप्रीम कोर्ट ने कहा की  जोखिम  भरे और खतरनाक गतिविधियों को अंजाम देने वाले व्यक्ति को उस व्यक्ति की क्षतिपूर्ति करनी होगी, जिसको उसके कार्यों से नुकसान हुआ हो, भले ही उस कार्य में उचित सावधानी बरती गई हो।शुद्ध पर्यावरण एक मानवाधिकार है| इस बात का प्रयास सबसे पहले अमेरिका में हुआ| अमरीका के मानवाधिकार आयोग में वर्ष 2005 में अमरीका और कनाडा के इन्यूइट के एक गठबन्धन द्वारा यह तर्क देते हुए दायर की गई याचिका कि अमरीका इन्यूइट के मानवाधिकारों का हनन कर रहा है|

एमसी मेहता बनाम कमल नाथ (1997) एससीसी 388 मामले[xxi] में न्यायालय ने अनुच्छेद 21 में अंतर्निहित जन न्यास एवं पारिस्थितिकी सिद्धांत की व्याख्या की है, जिसके अनुसार राज्य का यह वैधानिक दायित्व है कि वह एक न्यासी के रूप में संसाधनों का संरक्षण करे, न कि उनके स्वामी के रूप में। बॉम्बे डाइंग एंड मैन्युफैक्चरिंग कंपनी लिमिटेड बनाम बॉम्बे एनवायर्नमेंटल एक्शन ग्रुप (2006) 3एससीसी 434 मामले में यह स्पष्ट रूप से कहा गया कि पर्यावरण की सुरक्षा और परिरक्षण की संवैधानिक योजना संवैधानिक नीति पर आधारित है और राज्य पर इसे क्रियान्वित करने की बाध्यता है।  यह निर्विवाद है कि राज्य द्वारा धारणीय विकास की नीति को लागू करने के दौरान विकास की आवश्यकता और पर्यावरण के बीच संतुलन स्थापित किया जाना चाहिये[xxii]

न्यायालय ने बहुचर्चित गंगा प्रदूषण वाद एमसी मेहता बनाम भारत संघ (1987) 4एससीसी 463 में यह स्पष्ट कहा है कि लोगों के लिये उनका जीवन, स्वास्थ्य और पारिस्थितिकी अपेक्षाकृत अधिक महत्त्वपूर्ण हैं[xxiii]

 


भारतीय प्रयास

02 अप्रैल, 2022, नाल्सा, द्वारा आयोजित लीगल अवेरनेस प्रोग्राम जिसकी थीम थी, ‘Say No To Plastics, Save Environment and Issues Relating To Unorganized Labour’ में न्यायमूर्ति श्री उदय उमेश ललित जी ने कहा की प्लास्टिक प्रवंधन में हमे तीन चीजे ध्यान में रखनी होंगी – प्लास्टिक खपत को कम करना, प्लास्टिक सामग्री का पुनः उपयोग करना एवं प्लास्टिक खपत को यथासम्भव कम करना[xxiv]

भारतीय वैज्ञानिकों ने पिछले कुछ वर्षों में ऐसी हरित और पर्यावरण हितैषी प्रौद्योगिकीयों का विकास है, जो प्लास्टिक प्रदूषण की समस्या को कम करने में मददगार साबित हो रही हैं। चेन्नई स्थित केन्द्रीय प्लास्टिक्स इंजीनियरिंग और प्रौद्योगिकी संस्थान (सिपेट) ने प्लास्टिक्स वेस्‍ट रिसाइक्लिंग सेवाओं के क्षेत्र में महत्वपूर्ण कार्य करते हुए इलेक्ट्रिकल और इलेक्ट्रोनिक्स उपकरणों से निकलने वाले अपशिष्टों के पुनर्चक्रण के लिए पर्यावरण हितैषी प्रौद्योगिकी का विकास किया है। गुजरात के भावनगर में स्थित केन्द्रीय नमक एवं समुद्री रसायन अनुसंधान संस्थान के वैज्ञानिकों को भी पोलिमर्स से रिवर्स ओसमिस तकनीक की मदद से मेम्ब्रेन तत्वों की जीवन-अवधि बढ़ाने में सफलता मिली है।



[i]  https://www.noaa.gov/
[ii]मिन्देरो फाउंडेशन द्वारा जारी रिपोर्ट,  https://www.minderoo.org/plastic-waste-makers-index/
[iii] पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय द्वारा जारी अधिसूचना, https://pib.gov.in/PressReleasePage.aspx?PRID=1745538
[iv] https://www.csircmc.res.in/hi
[v] एम् पी जैन, भारत का संविधान, LexiNexis; Eighth edition (4 February 2018)
[vi]  https://www.gyanodayaindia.com/policy-on-e-waste-management-and-single-use-plastic/
[vii] https://swachhbharatmission.gov.in/SBMCMS/writereaddata/Portal/Images/pdf/brochure/PWM_Brochure_Hindi.pdf
[viii] पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय, https://pib.gov.in/PressReleasePage.aspx?PRID=1745538
[ix] स्वच्छ भारत मिशन, Urban 2.0 Making Cities Garbage free - Operational Guidelines- October 2021
[x] Amendment - https://static.pib.gov.in/WriteReadData/specificdocs/documents/2021/aug/doc202181311.pdf
[xi] https://hindi.mongabay.com/2021/04/15/recycling-alone-would-solve-not-plastic-pollution-a-plethora-of-measures-need-to-be-taken-in-tandem-with-draft-plastic-rules/
[xii] Counter Measures Project - https://www.npcindia.gov.in/NPC/Uploads/file%20upload/Annexure-%20I.pdf
[xiii] Service Level Benchmarks - http://cpheeo.gov.in/upload/uploadfiles/files/Handbook.pdf
[xiv] https://swachhbharatmission.gov.in/SBMCMS/index-hi.htm
[xv] https://www.indiaplasticspact.org/
[xvi] http://un-plasticcollective.in/
[xvii] https://www.civilsdaily.com/news/pib-project-replan/
[xviii] https://www.imo.org/en/OurWork/PartnershipsProjects/Pages/GloLitter-Partnerships-Project-.aspx
[xix] https://pib.gov.in/PressReleasePage.aspx?PRID=1802659
[xx] इंडियन काउंसिल फॉर एनविरो-लीगल एक्शन बनाम भारत संघ (1996) 3एससीसी 212
[xxi] एमसी मेहता बनाम कमल नाथ (1997) एससीसी 388
[xxii]  जल और अपशिष्ट जल मूल्य निर्धारण: एक सूचनात्मक अवलोकन (पीडीएफ) (रिपोर्ट)। ईपीए। 2003. ईपीए-832-एफ-03-027
[xxiii] एमसी मेहता बनाम भारत संघ (1987) 4एससीसी 463
[xxiv] https://www.latestlaws.com/latest-news/nalsa-s-new-module-on-say-no-to-plastics-save-environment-and-issues-relating-to-unorganised-labour-186131/


अंजली दीक्षित
असिस्टेंट प्रोफेसर, फैकल्टी ऑफ़ ज्युरीडिकल साइंसेसरामा विश्वविद्यालयकानपुर
anjalidixitlexamicus@gmail.com8840088697


  अपनी माटी (ISSN 2322-0724 Apni Maati)  अंक-43, जुलाई-सितम्बर 2022 UGC Care Listed Issue
सम्पादक-द्वय : माणिक एवं जितेन्द्र यादवचित्रांकन : धर्मेन्द्र कुमार (इलाहाबाद)

Post a Comment

और नया पुराने