शोध आलेख : कुरीतियों और अस्वस्थ परम्पराओं की शिकार होती भारतीय महिलाएँ / डॉ. राशिदा अतहर एवं जितेन्द्र कुमार सरोज

कुरीतियों और अस्वस्थ परम्पराओं की शिकार होती भारतीय महिलाएँ 
डॉ. राशिदा अतहर एवं जितेन्द्र कुमार सरोज

शोध सार : आज हम 21वीं सदी के उस देश में जी रहे हैं जिस देश का संविधान वैज्ञानिक दृष्टिकोण ज्ञानार्जन और सुधार की भावना के विकास की बात करता है और ऐसी प्रथाओं का त्याग करने की बात करता है जो महिला सम्मान के विरुद्ध हैं किन्तु हमारे देश में कुरीतियों और प्रथाओं का इतना प्रभाव है कि हमारे समाज में किसी महिला द्वारा प्रेम करना, प्रेम विवाह करना घृणित कृत्य समझा जाता है जो भी लोग इस प्रकार का विवाह करने की चेष्टा करते हैं, स्वयं उन्ही के परिवार वाले उन्हें मार देते हैं इसी प्रकार जब एक महिला किसी लैंगिक अपराध की शिकार होती है तो समाज के साथ-साथ उसके परिवार वाले उसके साथ इस कदर भेदभाव करते हैं कि वह महिला अपने प्रति हो रहे इस दुर्व्यवहार और अपमान की पीड़ा सहन नहीं कर पाती और आत्महत्या कर लेती है वर्ष 2021 के राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो रिपोर्ट के आंकड़ों के अनुसार, देश में 2021 के दौरान 45,026 महिलाओं ने आत्महत्या की तथा 1559 हत्याएँ अवैध संबंधों और 33 हत्याएँ सम्मान (ऑनर किलिंग) के चलते हुई। प्रस्तुत शोध में सम्मान हत्या और आत्महत्या के लिए जिम्मेदार इन्ही कुरीतियों और इन कुरीतियों को रोकने में कारगर राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय विधियों पर ध्यान केन्द्रित किया गया है 

बीज शब्द : कुरीति, दृष्टिपात, सम्मान के लिए हत्या, आत्महत्या, विवाहेत्तर, समलैंगिक, पूर्वाग्रह। 

मूल आलेख : प्रथाओं और परम्पराओं के अनुपालन में वशीभूत भारतीय समाज का प्रत्येक व्यक्ति अपनी सामाजिक प्रतिष्ठा को बनाए रखना चाहता है, फिर चाहे उसे इसकी कोई भी कीमत क्यों चुकानी पड़े। किन्तु दुःख तब होता है जब प्रतिष्ठा की रक्षा में व्यक्ति स्वयं की या परिवार के सदस्यों की जान ले लेता है। लैंगिक अपराध की शिकार हुई महिला के साथ हर दिन इस ऐसी घटनाएँ समाचार पत्रों एवं अन्य माध्यमों से देखने और सुनने को मिलती हैं। जब कोई महिला इस प्रकार की दुर्घटना की शिकार होती है तो उसे ऐसा लगता है कि उसकी प्रतिष्ठा समाज में गिर गयी है, समाज अब उसे हेय दृष्टि से देखेगा, यदि वह अविवाहित है तो अब उससे विवाह कौन करेगा? इस बात की चिंता उसे सताने लगती है और मानसिक विकृति का शिकार हमारा समाज उस महिला की उपेक्षा करते हुए उसके साथ व्यवहार भी वैसा ही करता है।

विगत कई वर्षों की राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो की रिपोर्टों पर यदि हम दृष्टिपात करते हैं तो पाते हैं कि महिलाओं के विरुद्ध लैंगिक अपराध निरंतर बढ़ रहा है और बढ़ते लैंगिक अपराधों के कारण सामाजिक रूढ़ियों की रक्षा में महिलाओं के विरुद्ध ऑनर किलिंग जैसे अपराध तो बढ़ ही रहें हैं, साथ ही इन्ही रूढ़ियों के कारण इस अपराध की शिकार महिलाएँ समाज और परिवार की उपेक्षा से सहानुभूति और अपनों के बीच वही सम्मान प्राप्त कर पाने के कारण स्वयं आत्महत्या कर ले रही हैं। वर्ष 2021 के राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो रिपोर्ट के आंकड़ों के अनुसार 1559 हत्याएँ अवैध संबंधों और 33 हत्याएँ सम्मान (ऑनर किलिंग) के चलते हुई[i] जहाँ तक बात सम्मान हत्या (ऑनर किलिंग) की है, बीते 8 साल में लगभग 500 हत्याएँ हो चुकीं हैं[ii] संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट में अनुमान लगाया गया था कि हर साल दुनिया में 5 हजार महिलाएँ सम्मान हत्या (ऑनर किलिंग) का शिकार होती हैं।[iii] वर्ष 2021 के राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो रिपोर्ट के ही आंकड़ों के अनुसार, देश में 2021 के दौरान कम से कम 45,026 महिलाओं ने आत्महत्या कीआत्महत्या करने वाली महिलाओं में अधिकतर (23,178) गृहिणियाँ शामिल हैं, इसके बाद छात्राएँ (5,693) और दैनिक वेतन भोगी (4,246) शामिल हैं।[iv] वर्ष 2021 के राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो रिपोर्ट के ही एक अन्य आंकडे के अनुसार वर्ष 2021 में महिलाओं को आत्महत्या करने के लिए दुष्प्रेरित करने के 5386 मामले दर्ज किये गए[v] जो इस बात का स्पष्ट संकेत है कि हमारी सामाजिक एवं न्यायिक व्यवस्था में कहीं कहीं कुछ कमी है ऐसी परिस्थितियों में महिलाओं को न्याय दिलाने के लिए शिक्षा इत्यादि के माध्यम से सिर्फ सामाजिक मानसिकता में आमूलचूल परिवर्तन किए जाने की आवश्यकता है, बल्कि भारतीय न्यायिक प्रशासन में प्रशासनिक अधिकारियों का उत्तरदायित्त्व सुनिश्चित हो सके इस हेतु एक नवीन प्रणाली का विकास किया जाना अत्यंत आवश्यक है जिससे निरंतर बढ़ रहे ऑनर किलिंग और आत्महत्या से महिलाओं को सुरक्षा प्रदान की जा सके।

सन 1967 से 2021 के दौरान भारत में महिलाओं द्वारा की गयी आत्महत्याओं की संख्या[vi]

क्रम संख्या

वर्ष

महिलाओं की संख्या

क्रम संख्या

वर्ष

महिलाओं की संख्या

1

1967

16192

29

1995

36821

2

1968

16224

30

1996

37035

3

1969

17686

31

1997

39548

4

1970

19582

32

1998

43027

5

1971

17349

33

1999

45099

6

1972

16678

34

2000

42561

7

1973

15576

35

2001

42192

8

1974

18217

36

2002

41085

9

1975

16816

37

2003

40630

10

1976

17373

38

2004

41046

11

1977

16265

39

2005

40998

12

1978

16070

40

2006

42410

13

1979

15237

41

2007

43342

14

1980

17475

42

2008

44473

15

1981

16381

43

2009

45680

16

1982

18212

44

2010

47419

17

1983

19319

45

2011

47746

18

1984

21275

46

2012

46992

19

1985

22351

47

2013

44256

20

1986

23086

48

2014

42521

21

1987

24276

49

2015

42088

22

1988

26515

50

2016

41997

23

1989

28532

51

2017

40852

24

1990

30460

52

2018

42391

25

1991

32126

53

2019

41493

26

1992

32668

54

2020

44498

27

1993

34393

55

2021

45026

28

1994

36443

 

 

 

 

प्रतिष्ठा या सम्मान हत्या (ऑनर किलिंग) - भारतीय समाज में जब किसी व्यक्ति (विशेषतः एक महिला) की हत्या पारिवारिक परम्पराओं, मर्यादाओं के उल्लंघन अर्थात प्रेम विवाह, अंतरजातीय विवाह, परिवार द्वारा निर्धारित व्यक्ति से विवाह किये जाने इत्यादि के कारण उसी के परिवार, वंश, या समुदाय के सदस्यों द्वारा मात्र सम्मान की रक्षा हेतु कर दी जाती है तो पारिवारिक सदस्यों द्वारा की गयी ऐसी हत्या सम्मान हत्या कहलाती है ऑनर किलिंग या सम्मान हत्या विकृत सामाजिक मानसिकता को बढ़ावा देती है जो सामाजिक न्याय के विरुद्ध है[vii]

आत्महत्या  - आत्महत्या अपना जीवन स्वयं समाप्तकरने की क्रिया है।[viii] सन 1897 में दुर्थीम की तीसरी महत्त्वपूर्ण पुस्तक “आत्महत्या फ्रेंच भाषा में Le Suicide के नाम से प्रकाशित हुई, में लिखा है, आत्महत्या शब्द का प्रयोग किसी भी ऐसी मृत्यु के लिए किया जाता है जोमृत व्यक्ति द्वारा किये जाने वाले किसी सकारात्मक या नकारात्मक कार्य का प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष परिणाम होती है[ix] इस प्रकार आत्महत्या एक ऐसा कृत्य है जिसमें किसी व्यक्ति द्वारा मानसिक समस्याओं से जूझते हुए अवसाद से ग्रसित होकर स्वयं की ही जीवन लीला समाप्त की जाती है।

राष्ट्रीय विधिक एवं न्यायिक दृष्टिकोण - भारत में विभिन्न प्रकार की कुरीतियों और मान सम्मान को बचाने में किसी महिला को आत्महत्या के लिए विवश किये जाने के सन्दर्भ में ठोस कानून का अभाव है राष्ट्रीय स्तर पर प्रिवेंशन ऑफ क्राइम इन नेम ऑफ ऑनर बिल, 2010 लाया गया, किन्तु इस पर भी सम्यक् कार्यवाही नहीं हो सकी विधि की इसी कमी को पूरा करने में हमारी सर्वोच्च न्यायपालिका ने अपनी महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा की न्यायपालिका ने एक गैर सरकारी संगठन शक्ति वाहिनीद्वारा दायर की गई याचिका पर सुनवाई के दौरान जिसमें ऑनर किलिंग को विशिष्ट अपराध (organized crime) की श्रेणी में डाले जाने की माँग की गई थी, में महत्त्वपूर्ण दिशानिर्देश जारी किए।

शक्ति वाहिनी बनाम भारत संघ[x] मामले में जारी दिशानिर्देश -

  1. यदि अलग-अलग समुदायों से संबंध रखने वाले 2 वयस्क अपनी मर्जी से शादी का निर्णय करते हैं अथवा शादी करते हैं, तो किसी रिश्तेदार या पंचायत को तो उन्हें धमकाने और ही उन पर किसी प्रकार की हिंसा करने का कोई अधिकार है।
  2. खाप पंचायतों के फैसलों को अवैध करार देते हुए न्यायालय ने कहा कि ऑनर किलिंग के संबंध में लॉ कमीशन की सिफारिशों पर विचार किया जा रहा है। अर्थात् जब तक इस संबंध में नए कानून नहीं बन जाते हैं, तब तक मौजूदा आधार पर ही कार्रवाई की जाएगी।
  3. सर्वोच्च न्यायालय ने ऐसे मामलों की रोकथाम और सज़ा के लिये दिशानिर्देश जारी किया और कहा कि यह दिशानिर्देश तब तक जारी रहेंगा, जब तक नया कानून लागू नहीं हो जाता है।
  4. वर्तमान समय में ऑनर किलिंग के मामलों में आई.पी.सी की धारा के तहत कार्यवाही की व्यवस्था है।

इसके साथ ही साथ कुछ विधिक प्रावधान हैं जो इस समस्या से लड़ने में अपनी अहम भूमिका अदा कर रहे हैं

कुरीतियों एवं परम्पराओं के विरुद्ध भारतीय संविधान में वर्णित प्रावधान – भारतीय संविधान में कुरीतियों से लड़ने हेतु सबसे प्रमुख अनुच्छेद 13 है, क्योंकि यह अनुच्छेद कुरीतियों के माध्यम से महिलाओं को बचाने हेतु एक प्रहरी के रूप में हमेशा खड़ा रहा इस अनुच्छेद ने जहाँ एक तरफ संविधान पूर्व प्राचीन कुरीतियों को असंवैधानिक घोषित किया[xi] तो वही संविधान निर्माण के बाद ऐसी किसी परम्परा को पनपने नहीं देने में उच्चतम न्यायालय का सहयोग किया[xii] इस संबंध में विधि को परिभाषित करते हुए इसी अनुच्छेद में कहा गया है कि, “जब तक कि संदर्भ से अन्यथा अपेक्षित होविधिके अंतर्गत भारत के राज्यक्षेत्र में विधि का बल रखने वाला कोई अध्यादेश, आदेश, उपविधि, नियम, विनियम, अधिसूचना, रूढ़ि या प्रथा है।[xiii]

विधि के अंतर्गतप्रथाको भी शामिल किया गया है ध्यातव्य है कि हम इस तथ्य से भलीभांति परिचित हैं कि किस प्रकार दकियानूसी सोच पर आधारित प्रथाओं के नाम पर सदियों से महिलाओं का शोषण हुआ है, क्योंकि सभी रूढ़ियों के पीछे युक्तियुक्त तार्किक कारण नहीं होता है केवल अन्धानुकरण द्वारा उन्हें स्वीकार किया जाता है यही कारण है कि भारतीय संविधान के इस अनुच्छेद का सहारा लेते हुए माननीय न्यायालय और संसद द्वारा अनेक प्रथाओं पर रोक लगा दी गयी।

भारतीय संविधान के भाग 4(A) में वर्णित मौलिक कर्तव्यों के माध्यम से भारतीय लोगों से यह अपेक्षा की गयी है कि वे ऐसी प्रथाओं का त्याग करें जो स्त्रियों के सम्मान के विरुद्ध है।[xiv] साथ ही  “वैज्ञानिक दृष्टिकोण, मानववाद और ज्ञानार्जन तथा सुधार की भावना का विकास करें[xv]

इस प्रकार हम देखते हैं कि भारतीय संविधान ने जहाँ एक तरफ अनुच्छेद 13 के माध्यम से ऐसी प्रथाओं को शून्य घोषित कर दिया जो महिला मानवाधिकारों के विरुद्ध हैं तो वहीं दूसरी तरफ मौलिक कर्तव्यों के माध्यम से वैज्ञानिक दृष्टिकोण, मानववाद और ज्ञानार्जन तथा सुधार की भावना का विकास करने की बात की साथ ही साथ ऐसी प्रथाओं का त्याग करने की मार्मिक अपील भी की जो स्त्रियों के सम्मान के विरुद्ध है।

कुरीतियों एवं परम्पराओं के विरुद्ध भारतीय दण्ड संहिता में उपबंधित प्रावधान - ब्रिटिश शासन के दौरान अनेक अधिनियम पारित हुए, उन्ही अधिनियमों में भारतीय दण्ड संहिता 1860 एक है इस अधिनियम के माध्यम से अनेक कुप्रथाओं पर रोक लगायी गई। इस अधिनियम के द्वारा हत्या[xvi], सदोष मानव वध,[xvii] आत्महत्या के लिए दुष्प्रेरण[xviii], कन्या भ्रूण हत्या,[xix] मानव दुर्व्यवहार पर,[xx] उनका शोषण,[xxi] दासों का अभ्यासिक व्यवहार,[xxii] वेश्यावृत्ति आदि के प्रयोजन के लिए अप्राप्तवय को बेचना,[xxiii] वेश्यावृत्ति आदि के प्रयोजन के लिए अप्राप्तवय का खरीदना,[xxiv] विधिविरुद्ध अनिवार्य श्रम,[xxv] द्विविवाह,[xxvi] ससुराल में ससुराल के लोगों द्वारा क्रूरता,[xxvii] जैसी कुरीतियों को समाप्त करने का प्रयास किया गया।

          प्रिवेंशन ऑफ क्राइम इन नेम ऑफ ऑनर बिल, 2010 के अध्याय 2 की धारा 4 में ऑनर किलिंग से सम्बधित अपराध गठित किये जाने पर इसी अधिनियम के तहत दण्डित किये जाने का प्रावधान किया था, किन्तु दुर्भाग्यवश इस संबंध में आगे कार्यवाही नहीं की जा सकी।

इसी प्रकार घरेलू हिंसा (निवारण) अधिनियम 2005, यौन अपराधों से बालकों का संरक्षण (पोक्सो) अधिनियम, 2012, कार्यस्थल पर महिलाओं के साथ यौन उत्पीड़न (रोकथाम, निषेध और निवारण) अधिनियम, 2013, औषधि और चमत्कारिक उपचार (आक्षेपणीय विज्ञापन) अधिनियम, 1954, आर्य विवाह वैधता अधिनियम 1937, विशेष विवाह अधिनियम 1954 इत्यादि अधिनियमों के माध्यम से भी महिला अधिकारों की रक्षा करने का प्रयास किया गया है।

 कुरीतियों से लड़ने में राष्ट्रीय महिला आयोग का योगदान  - राष्ट्रीय महिला आयोग का गठन राष्ट्रीय आयोग के तहत जनवरी 1992 में एक संवैधानिक निकाय के रूप में किया गया था। यह आयोग महिलाओं के सुरक्षा हितों को देखते हुए कई मामलों में स्वत: संज्ञान ले सकता है। महिला आयोग बाल विवाह मुद्दे को भी देखता हैं। आयोग को राष्ट्रीय महिला आयोग अधिनियम, 1990 के तहत यह अधिकार है कि वह महिला लोक अदालत लगाए और दहेज प्रतिषेध अधिनियम, 1961, पी.एन.डी.टी. अधिनियम 1994 के रूप में, भारतीय दण्ड संहिता 1860 जैसे कानून की समीक्षा कर उन्हें कठोर और अधिक प्रभावी बनाए जिससे महिलाओं की सुरक्षा सम्भव हो सके।

महिला अधिकारों के संरक्षण हेतु भारत की अंतर्राष्ट्रीय बाध्यताएँ - संपूर्ण विश्व को इस बात का भान है कि कुरीतियाँ एवं अन्धविश्वास महिला मानवाधिकारों के हनन का मूल है महिलाओं के विरुद्ध भेदभाव की समाप्ति की घोषणा[xxviii] (Declaration on the Elimination of Discrimination Against Women) को अंगीकार किया और घोषणा में प्रस्तावित सिद्धांतों के कार्यान्वयन के लिए महिलाओं के विरुद्ध सभी प्रकार के भेदभाव की समाप्ति पर अभिसमय (Convention on the Elimination of All Forms of Discrimination Against Women) 18 दिसम्बर, 1979 को महासभा द्वारा अंगीकार किया

वर्ष 1993 में वियना सम्मेलन के माध्यम से राज्यों से यह आग्रह किया गया है कि वे महिलाओं के विरुद्ध हिंसा को दण्डनीय अपराध घोषित करें तथा इसकी समाप्ति के मार्ग में आने वाली बाधाओं से बचने के लिए किसी भी रीति रिवाज, परम्परा या धार्मिक विश्वासों के आगे नहीं झुकें।[xxix]

          7 अक्टूबर 1999 को महिलाओं के विरुद्ध सभी रूपों में भेदभाव की समाप्ति लिए अभिसमय पर ऐच्छिक नयाचार को अंगीकार किया जिसके माध्यम से लैंगिक भेदभाव, यौन-शोषण एवं अन्य दुरुपयोग से पीड़ित महिलाओं की स्थिति को मजबूती प्रदान करने का प्रयास किया गया।[xxx]

बीजिंग सम्मेलन में किसी भी ऐसे संघर्ष की समाप्ति की अपेक्षा की गयी है जो महिलाओं के अधिकारों एवं कतिपय परम्परागत या रूढ़िगत प्रचलन,[xxxi] सांस्कृतिक पूर्वाग्रहों एवं धार्मिक अतिवादियों के बीच उत्पन्न होते हैं।  

          महिला अधिकारों के क्षेत्र में मापुटो प्रोटोकॉल का महत्त्वपूर्ण योगदान है इस प्रोटोकॉल को 11 जुलाई, 2003 में अगीकृत किया गया था यह प्रोटोकॉल एक महिला अधिकार संधि है जिसमें महिलाओं के प्रति हिंसा की सशक्त और मजबूत परिभाषा को शामिल किया गया है और स्पष्ट रूप से इसमें वास्तविक हिंसा तथा ऐसे कार्यों जिनका परिणाम हिंसा में होता है, दोनों को शामिल किया गया है। इस प्रोटोकॉल द्वारा महिला अधिकारों की सुरक्षा गारंटी दी गई है। 

संधारणीय विकास लक्ष्य (Sustainable Development Goals) को अपनाने का फैसला संयुक्त राष्ट्र शिखर सम्मेलन में लिया गया था इस संबंध में महासभा की बैठक न्यूयार्क में 25 से 27 सितंबर, 2015 में आयोजित की गयी थी इसी बैठक में अगले 15 साल के लिए “17 लक्ष्यतय किये गये थे जिनको 2016 से 2030 की अवधि में हासिल करने का निर्णय लिया गया था इस बैठक में 193 देशों ने भाग लिया था 17 लक्ष्यों में 5वां लक्ष्य लैंगिक समानता स्थापित करने का लिया गया है इसमें पूरी दुनिया में महिलाओं और लड़कियों के प्रति किसी भी प्रकार की लैंगिक असमानता को दूर करने का प्रण लिया गया है। महिलाओं और लड़कियों के खिलाफ किसी भी प्रकार की हिंसा चाहे वह तस्करी या यौन प्रताड़ना का मामला हो, उसे पूरी तरह से खत्म किये जाने की बात की गयी है। इसके अलावा बाल विवाह या जबरन शादी को भी खत्म करने का लक्ष्य तय किया गया है। इसी प्रकार 10वें लक्ष्य के रूप में असमानता को कम करना लिया गया है इसमें 2030 तक दुनिया के सबसे निचले पायदान पर खड़े 40 फीसदी लोगों की आय को राष्ट्रीय औसत से ऊपर करने का लक्ष्य है। इसके लिए आयु, लिंग, असमानता, जाति, उद्भव, धर्म, आर्थिक या अन्य प्रस्थिति को भुलाते हुए सभी को विकास की दौड़ में शामिल होने का मौका दिए जाने की बात की गयी है।[xxxii] यदि इस लक्ष्य को प्राप्त कर लिया जाता है तो ऑनर किलिंग जैसे अपराध रोके जा सकते हैं, क्योंकि प्राय: हमने देखा है कि बड़े-बड़े घरानों में विवाह के समय किसी भी प्रकार के जाति धर्म की बात नहीं की जाती है।

मानवअधिकारों की सार्वभौमिक घोंषणा (UDHR 1948) इस घोंषणा के माध्यम से महिलाओं के अधिकारों की रक्षा के लिए अनेक कदम उठाये गए। अनुच्छेद 3,4,7,16, और 26 अप्रत्यक्ष रूप से महिला अधिकारों की बात करते हैं।[xxxiii]

सिविल तथा राजनीतिक अधिकारों पर अंतर्राष्ट्रीय प्रसंविदा( ICCPR 1966) इसमें कुल 53 अनुच्छेद हैं जो 6 भागों में विभक्त हैं भाग एक, दो और तीन में विभिन्न अधिकारों और स्वतंत्रताओं का उल्लेख किया गया है जो किसी किसी माध्यम से महिलाओं के अधिकारों की रक्षा में महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा करते हैं।

आर्थिक, सामाजिक तथा सांस्कृतिक अधिकारों पर अंतर्राष्ट्रीय प्रसंविदा (ICESCR 1966) इस प्रसंविदा में कुल 31 अनुच्छेद हैं जिन्हें 5 भागों में बांटा गया है जिसमें अनुच्छेद 10 मातृत्व तथा बाल्यावस्था, विवाह तथा कुटुम्ब से सम्बन्धित अधिकार प्रदान करता है।[xxxiv]

इस प्रकार हम देख रहे हैं कि भले ही सम्मान हत्या और आत्महत्या को रोकने के लिए कोई मजबूत एवं केन्द्रीय कानून नहीं है, किन्तु फिर भी महिलाओं के विरुद्ध हो रहे इन अपराधों को रोकने के लिए राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर विधि एवं न्यायिक विनिश्चयों के माध्यम से अनेक प्रयास किये गए हैं। किन्तु फिर भी हमारे समाज में प्रतिष्ठा और मान सम्मान से संबंधित रूढ़ियाँ आज भी विद्यमान हैं जो निरंतर महिला मानवाधिकारों का हनन कर रही हैं।

प्रतिष्ठा और मान सम्मान से संबंधित रूढ़िया - व्यक्ति की प्रतिष्ठा उसकी सम्पत्ति से भी अधिक मूल्यवान होती है प्रत्येक व्यक्ति अपनी इस प्रतिष्ठा को किसी भी कीमत पर बनाये रखना चाहता है और कानून इस अधिकार को मान्यता भी प्रदान करता है भारतीय दण्ड संहिता प्रतिष्ठा को चोट पहुँचाने वाले को दण्डित भी करती है[xxxv] किन्तु क्या झूठी शान की खातिर किसी महिला की हत्या की जा सकती है? और किसी महिला के अधिकारों का हनन किया जा सकता है? निश्चित तौर पर इसका उत्तर नहीं में होगा किन्तु भारत में जब कोई महिला अपनी पसंद के किसी भी व्यक्ति से प्रेम करती है, विवाह करती हैं, यहाँ तक कि ऐसे प्रेम अथवा विवाह में सहयोग देने में अपनी भूमिका अदा करती है तो हमारे समाज में उसे मौत के घाट उतार दिया जाता है दूसरी तरफ इससे भी घृणित कृत्य तब होता है जब किसी लैंगिक अपराध की शिकार महिला के साथ समाज और स्वयं उसके परिवार के सदस्यों द्वारा भेदभाव किया जाता है जिसकी पीड़ा उसके मन और मस्तिष्क को इतना प्रभावित करती है कि वह स्वयं ही आत्महत्या कर लेती है उपर्युक्त दोनों ही अवस्थाओं के निम्नलिखित कारण जिम्मेदार हैं

(). स्त्रियों को इज्जत, मान सम्मान आदि के पैमाने का मानक माने जाने की परम्परा- यह दुर्भाग्य है कि हमारे समाज में स्त्रियों को इज्जत मापने का पैमाना माना जाता है, अर्थात यदि किसी महिला ने स्वयं की मर्जी से विवाह कर लिया तो परिवार की इज्जत चली जाती है किसी महिला के विरुद्ध लैंगिक अपराध हो जाता है तो उसे अपराध पीड़िता समझकर इज्जत गंवाने वाली महिला समझा जाता है और उसके विरुद्ध इस प्रकार के अपराध से केवल उसके परिवार की, बल्कि जिस समाज से उसका संबंध है, उसकी इज्जत चली जाती है परिवार की बहू घर से बाहर जाकर कार्य करे तो इज्जत चली जाती है यहाँ तक कि यदि कोई महिला किसी पुरुष की यौन याचना को अस्वीकार कर दे तो उस व्यक्ति की इज्जत चली जाती है और वह उस महिला के प्रति हिंसक हो जाता है, इत्यादि आखिर यह इज्जत है क्या जिसके खोने और पाने का पैमाना महिला होती है? यह एक विचरणीय प्रश्न है जिसका उत्तर हमें शीघ्र ही खोजना होगा, अन्यथा इसके गम्भीर परिणाम देखने को मिलेंगे।

()  निज धर्म, जाति, कुल इत्यादि की श्रेष्ठताआज जब हम इक्कीसवीं सदी के आधुनिक ज़माने में जी रहे हैं, तब भी यह पुरानी परम्परा हमें प्रभावित कर रही है। आज भी यदि कोई व्यक्ति एक ही वर्ग, जाति, कुल, धर्म इत्यादि में विवाह नहीं कर रहे हैं तो उन्हें समाज में हेय दृष्टि से देखा जाता है। इसमें सबसे अधिक महिलाएँ प्रताड़ित होती हैं। उन्हें अपने परिवार से संबंध विच्छेद करना पड़ जाता है और जिस घर में वह विवाह कर के आती हैं, वहाँ भी उन्हें उचित सम्मान प्राप्त नहीं होता है। ऑनर किलिंग के बढ़ते अपराधों में इस प्रकार के विवाह की अधिकता है। ज्यादातर ऑनर किलिंग की घटनाएँ इसी कारण होती है।[xxxvi] लव जेहाद का मुद्दा इसका ज्वलंत उदाहरण है जिसमें जो महिला अथवा पुरुष विपरीत धर्म के होकर अपनी इच्छा से भी विवाह के बंधन में बध जाते हैं, उन्हें भी लव जेहाद का मुद्दा बनाकर प्रताड़ित किया जाता है और ऐसे में देखने को मिला है कि कभी-कभी परिवार और समाज के दबाव में आकर दोनों में संबंधों का विच्छेद भी हो जाता है।

()  विवाह पूर्व अथवा पश्चात् विवाहेत्तर संबंध - हमारा समाज विवाह पूर्व अथवा पश्चात् विवाहेत्तर संबंधों को अनैतिक मानता है और यही कारण है जब कोई महिला विवाह पूर्व किसी व्यक्ति के साथ अथवा वैवाहिक संबंधों से खुश होकर विवाह पश्चात् पति के अतिरिक्त किसी अन्य व्यक्ति के साथ किसी प्रकार का अनैतिक कहा जाने वाला संबंध रखती है या गर्भधारण करती है तो सम्मान और इज्जत की खातिर उसकी हत्या कर दी जाती है। जहाँ तक बात विवाहेत्तर संबंधों की है, निश्चित रूप से व्यभिचार एक अनैतिक कृत्य है किन्तु इस मामलें में माननीय उच्चतम न्यायालय का दृष्टिकोण अब बदल गया है माननीय न्यायालय ने जोसेफ शाइन बनाम भारत संघ[xxxvii] के मामले में स्त्री को पति की सम्पत्ति के रूप में देखा और अपने पूर्ववर्ती निर्णय यूसफ अब्दुल अजीज बनाम बॉम्बे स्टेट,[xxxviii] सौमित्री विष्णु बनाम भारत संघ[xxxix] और वी रेवती बनाम भारत संघ में दिए गए निर्णय को पलटते हुए भारतीय दण्ड संहिता की धारा 497 जो जरता अर्थात व्यभिचार से संबंधित थी को असंवैधानिक घोषित कर दिया। माननीय न्यायालय ने तो अपना दृष्टिकोण बदल दिया, अब देखना यह है कि हमारा समाज इस बात को कब स्वीकार करता है कि पत्नी पति की सम्पत्ति नहीं होती जिसका पति जब चाहे अनन्य उपभोग करे और उसे प्रताड़ित करता रहे उसे स्वेच्छा से जीवन जीने का पूरा हक़ है और इस हक़ से उसे कोई भी वंचित नहीं कर सकता।

(सामाजिक संगठनों अथवा पंचायतों का प्रभावहमारे समाज की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि यह औपचारिक विधिक नियमों की अपेक्षा संगठनों अथवा पंचायतों के रूढ़िगत नियमों से नियंत्रित होता है गैर जातीय अथवा गैर धार्मिक विवाह, पर पुरुषों से संबंध अथवा विवाह पूर्व संबंधों को पंचायतें अपराध मानती हैं यही कारण है कि पंचायतों के निर्णय के प्रकोप से बचने के लिए ऑनर किलिंग जैसी घटनाएँ घटित होती हैं। लता सिंह बनाम उत्तर प्रदेश[xl] और शफीन जहाँ बनाम अशोक के.एम (2018) के मामले में उच्चतम न्यायालय ने 'अपनी पसंद के व्यक्ति से विवाह के अधिकार को भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत प्राप्त अधिकारों का हिस्सा बताया। उच्चतम न्यायालय के अनुसार, संविधान किसी भी व्यक्ति के अपनी पसंद का जीवन जीने या विचारधारा को अपनाने की क्षमता/स्वतंत्रता की रक्षा करता है। इसके अलावा उच्चतम न्यायालय ने के. एस. पुट्टास्वामी बनाम भारतीय संघ (2017) मामले का फैसला सुनाते हुए कहा कि पारिवारिक जीवन के चुनाव का अधिकारएक मौलिक अधिकार है। अतः एक व्यक्ति द्वारा अपनी पसंद के किसी व्यक्ति से विवाह करने का अधिकार संविधान के अनुच्छेद-21 का अभिन्न अंग है। एक महिला की स्वायत्तता उसका अपना अधिकार है। किसी भी माता-पिता, रिश्तेदार या राज्य तंत्र को उससे इस स्वायत्तता को छीनने का अधिकार नहीं दिया जाना चाहिए।

() पारिवारिक और सामाजिक दायित्यों का बोझ -

सदियों से अपनी इच्छाओं पर अंकुश लगाकर घर के अंदर ही रह कर संसार को संभालती हुई भारतीय नारी आज जब खुली हवा में सांस लेना शुरू कर दी है तो समाज में बहुत से लोगों को यह रास नहीं रहा है। समाज, घर से बाहर निकल कर नौकरी इत्यादि करने वाली महिलाओं को हमेशा इस बात की याद दिलाता रहता है कि वे बाहर रहकर भी घर की जिम्मेदारियों से बधीं हैं। वे किसी की बेटी, बहू, पत्नी और माँ हैं। घर और समाज उनसे सारे दायित्वों का निर्वाह करने की मांग करता है। महिलाओं को घर और बाहर दोनों का दायित्व संभालना पड़ता है। अक्सर दायित्वों की इस चक्की में पिसते हुए उनकी स्थिति ऐसी हो जाती है कि उनको आत्महत्या करना बेहतर विकल्प नजर आने लगता है। उन्हें महसूस होता है कि उनके जीवन का कोई महत्त्व या उद्देश्य नहीं है। हमारा समाज समय के साथ सुधरा नहीं है, बस उसकी परिभाषाएँ और हालातों को देखने का नजरिया बदल गया है।[xli]

          उपर्युक्त के अतिरिक्त परिवार द्वारा सुझाएँ गए वैवाहिक रिश्तों को मना करना, शिक्षा का अभाव, समलैंगिक संबंध, बांझपन इत्यादि अन्य कारणों से ऑनर किलिंग और आत्महत्या जैसी घटनाएँ होती है।

निष्कर्ष : जिसे लोगों की सहानुभूति प्रेम और स्नेह की जरूरत थी, उसे उपेक्षा और उलाहना का दंश झेलना पड़ रहा है। अपमान, अपयश के भयवश जो पूरी तरह से टूट चुका हो उसके साथ खड़े होकर जिस समाज और परिवार के लोगों को उसका हौसलाअफजाई करना चाहिए था, वही समाज और परिवार यदि उसका साथ छोड़ दे तो निश्चित ही वह व्यक्ति जीवन जीने की इच्छा का परित्याग करना ही श्रेयष्कर समझेगा। इससे भी दु:खद यह बात है कि परिवार के लोग ही निज सम्मान के कारण इस प्रकार की शिकार महिला की हत्या कर देते हैं। जब हमें अपराधी से घृणा करनी थी तो हमने पीड़िता से घृणा किया और जब दोषी को सजा दिलानी थी तो दु:खी को ही सजा दी, जब तक समाज में यह मानसिक बीमारी व्याप्त हैं। स्त्रियाँ कभी भी सुरक्षित नहीं रह सकेंगी। स्थिति और भी अधिक शोचनीय एवं दयनीय तब हो जाती है जब दकियानूसी सोच के चरम पराकाष्ठा पर पहुँचा भारतीय समाज इस हद तक गिर जाता है। जब कोई लैंगिक उत्पीड़न की शिकार महिला अपने विरुद्ध हिंसा का प्रतिरोध करती है और ऐसे अपराधियों के विरुद्ध लड़ने का विचार अपने मन में ठानती है तो लोग ऐसी महिलाओं को भी बदचलन इत्यादि उलाहनाओं से प्रताड़ित करते हैं।

यह सुखद है कि हाल के वर्षो में समाज में इन कुरीतियों के प्रति नई पीढ़ी का मोह भंग हुआ है। नई पीढ़ी इन परम्पराओं के प्रति इतनी उत्साहित नहीं नजर आती है और खाप पंचायतों या इसी प्रकार के अन्य संगठनों से स्वयं को मुक्त करना चाहती है। आने वाली पीढ़ी में और अधिक बदलाव की उम्मीद है। हमारी संसद भी इस क्षेत्र में कानून बनाने में लगातार प्रयासरत है, साथ ही वर्तमान समय में समय-समय पर इस प्रकार की कुरीतियों से लड़ने की हिम्मत प्रदान करने में हमारी उच्चतम न्यायपालिका दिशा निर्देश जारी करती रहती है। आशा है शीघ्र ही हम इस समस्या से निजात पा लेंगे। इस समस्या से लड़ने में निम्नलिखित सुझाव महत्त्वपूर्ण साबित हो सकेंगे

सुझाव

  1. जन-जागरूकता और सामाजिक व्यवस्था में परिवर्तन ही एक मात्र प्रभावकारी माध्यम है जिससे हम इस बुराई से निजात पा सकेंगे, क्योंकि इस बुराई का सीधा संबंध हमारी सामाजिक व्यवस्था से है और सामाजिक व्यवस्था एक दिन में निर्मित नहीं होती।
  2. लैंगिक हमले की शिकार पीड़िता और स्वयं से अपना जीवन साथी चुनने वाली महिला के प्रति हमें दया और सहानुभूति का दृष्टिकोण रखना होगा, कि हेय का जिससे वह समाज में स्वयं को अपमानित महसूस करें।
  3. खाप पंचायतों की निरंकुशता पर पाबन्दी लगाने हेतु ठोस एवं प्रभावकारी उपाय करने होंगे तथा जब तक इस विषय पर विधि का निर्माण नहीं हो जाता, माननीय उच्चतम न्यायालय द्वारा दिए गए दिशा निर्देशों को अमल में लाना होगा। 
  4. समाज में इज्जत, मान मर्यादा या प्रतिष्ठा जैसे शब्दों को नए ढंग से गढ़ना और परिभाषित करना होगा।
  5. हमें अपने इस दृष्टिकोण में परिवर्तन लाना होगा कि लैंगिक हमले की शिकार महिला और स्वयं से अपना जीवन साथी चुनने वाली महिला से, स्वयं उस महिला या परिवार या समाज के अन्य किसी व्यक्ति की मान मर्यादा या इज्जत कम होती है। 
  6. समाज के विभिन्न समुदायों की भागीदारी इस समस्या से निजात दिलाने में अपनी अहम भागीदारी निभा सकता है। इसके लिए सभ्य समाज (सिविल सोसाइटी) को आगे आना होगा।
  7. महिला अधिकारों की लड़ाई लड़ने वाले गैर-सरकारी संगठनों को समय-समय पर सरकार द्वारा पुरस्कृत किया जाना चाहिए।
  8. महिला शिक्षा हेतु बजट में अतिरिक्त प्रावधान किया जाना चाहिए।  
  9. यथा शीघ्र संसद द्वारा इस विषय पर ठोस कानून का निर्माण किया जाना चाहिए।
संदर्भ :

  1. NCRB Report: प्रेम संबंध की वजह से उत्तर प्रदेश, तो अवैध रिश्ते के चलते महाराष्ट्र में सबसे ज्यादा हत्याएं Available at:https://www.amarujala.com/india-news/ncrb-report-data-crimes-in-india-2021-murder-case-explained-in-hindi?pageId=3 visited on 08/02/2022 at 16:11
  2. अकेली नहीं है आयुषी... 'इज्जत' के नाम पर 8 साल में 500 हत्याएं, जानें कितनी बड़ी है ऑनर किलिंग की समस्या? Available at: https://www.aajtak.in/explained/story/ayushi-yadav-murder-case-honor-killing-statistics-in-india-girls-killed-in-honor-killing-worldwide-ntc-1581168-2022-11-22 visited on 08/02/2022 at 14:55
  3. ]वही
  4. 2021 में 45,026 महिलाओं ने की आत्महत्या : एनसीआरबी आंकड़े available at:https://navbharattimes.indiatimes.com/india/45026-women-committed-suicide-in-2021-ncrb data/articleshow/93877388.cms visited on 31/08/2022 at 15:45
  5. Available at : https://ncrb.gov.in/sites/default/files/CII-2021/CII_2021Volume%201.pdf visited on 08/02/202 at 14:55
  6. Available at: https://ncrb.gov.in/sites/default/files/7ADSI2021H1967%E0%A4%B8%E0https://navbharattimes.indiatimes.com/india/45026-women-committed-suicide-in-2021-ncrb%20data/articleshow/93877388.cms%20visited%20on%2031/08/2022%A5%872021.pdf visited on 08/02/2022 at 14:55
  7. जी.एल. शर्मा सामाजिक मुद्दे (रावत पब्लिकेशन्स जयपुर प्रथम संस्करण 2015) पृष्ठ 71-75 
  8. Stedman's medical dictionary (28th ed.) Philadelphia: Lippincott Williams & Wilkins 2006. आई.एस.बी.एन. 978-0-7817-3390-8
  9. आत्महत्या | आत्महत्या का अर्थ एवं विशेषताएं Available at: https://www.informise.com/meaning-and-definition-of-suicide-in-hindi/ visited on 31/08/2022 at 21:29
  10.  (2018) 7 SCC 192
  11. भारत का संविधान 1950 अनुच्छेद 13(1)
  12. वही अनुच्छेद 13(2)
  13. वही अनुच्छेद 13(3)a
  14. वही अनुच्छेद 51()()
  15.  वही अनुच्छेद 51(A)h
  16. भारतीय दण्ड संहिता 1860 (1860 का अधिनियम सं 45) की धारा 302
  17. वही धारा 304
  18. वही धारा 306
  19. वही धारा 312 -318
  20. वही धारा 370
  21. वही धारा 370 A
  22. वही धारा 371
  23. वही धारा 372
  24. वही धारा 373
  25. वही धारा 374
  26. वही धारा 394-395
  27. वही धारा 398A 
  28. महासभा प्रस्ताव 2263 (xxii) दिनांक 7 नवंबर 1967
  29. तपन विसवाल, मावाधिकार, जेंडर एवं पर्यावरण: ( मैकमिलन पब्लिशर्स इंडिया लि. प्रथम संस्करण 2010) पृष्ठ 280  
  30. डॉ एच. . अग्रवाल, अंतर्राष्ट्रीय विधि एवं मानवाधिकार सेन्ट्रल लॉ पब्लिकेशन 10वां सं 2008 पृष्ठ 706    
  31. ममता मेहरोत्रा, महिला अधिकार: (राधा कृष्णा प्रकाशन प्रथम सं 2017) पृष्ठ 31
  32. United Nations: संयुक्त राष्ट्र ने पूरी दुनिया के सामने रखे हैं ये 17 गोल, जानें भारत इस रेस में कहाँ Available at: https://navbharattimes.indiatimes.com/india/what-are-united-nation-sustainabale-development-17-goals-and-how-india-is-performing/articleshow/90858704.cms visited on 08/02/2022 at 16:11
  33. डॉ एच. . अग्रवाल अंतर्राष्ट्रीय विधि एवं मानव अधिकार पृष्ठ  653-654
  34. वही पृष्ठ 663-664
  35. भारतीय दण्ड संहिता 1860 (1860 का अधिनियम सं 45) की धारा 499, 500
  36. ऑनर किलिंग का जारी रहना: भारतीय समाज की एक गंभीर समस्या Available at:  https://dhyeyaias.com/hindi/current-affairs/perfect-7-magazine/the-menace-of-honour-killing visited on 02/05/2022 at 19:48
  37. (2019) 3 SCC 39
  38. 1954 क्रि. ला जा. 886 एस.सी
  39. AIR 1985 SC 1618
  40. AIR 2006 SC 2522
  41. विश्व आत्महत्या रोकथाम दिवस: क्यों भारत में महिला आत्महत्या की दर है ज्यादा? क्या हो सकती है इसकी रोकथाम? Available at: https://helloswasthya.com/maansik-swasthya/women-suicide-prevention-in-india/ visited on 30/08/2022 at 21:29

 

डॉ. राशिदा अतहर
एसोसिएट प्रोफेसर, मानवाधिकार विभाग, बाबासाहेब भीमराव अम्बेडकर (केंद्रीय) विश्वविद्यालय, लखनऊ (उत्तर प्रदेश)
rashidaather.bbau@gmail.com, 9451070946
 
जितेन्द्र कुमार सरोज
शोध छात्र, मानवाधिकार विभाग, बाबासाहेब भीमराव अम्बेडकर (केंद्रीय) विश्वविद्यालय, लखनऊ (उत्तर प्रदेश)
jksaroj89@gmail.com, 8932985139

                                                  

  अपनी माटी (ISSN 2322-0724 Apni Maati)  अंक-46, जनवरी-मार्च 2023 UGC Care Listed Issue
सम्पादक-द्वय : माणिक व जितेन्द्र यादव 
चित्रांकन : नैना सोमानी (उदयपुर)

2 टिप्पणियाँ

  1. Very informative and useful for research purpose for law student. It describes how women's are affected by this bad practices and destroy their lives .

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