- मधु सिंह
चित्र संख्या 1.1 |
शोध सार : किसी भी देश की सभ्यता का दर्शन उस देश की कला से होता है जो साहित्य संगीत तथा चित्र कलाओं के रूप में दिखाई देता है, कहा भी गया है कि -
साहित्य संगीत कला विहीनः, साक्षात् पशु पुच्छ विषाणहीनः।
अर्थात् जिस किसी देश, समाज अथवा व्यक्ति के पास उपरोक्त तीनों में से एक का होना होता है उसी का अस्तित्त्व सार्थक माना जाता है नहीं तो उस समाज अथवा व्यक्ति का अस्तित्त्व किसी अर्थ का नहीं रहता।
कलाकार का समाज में महत्त्वपूर्ण स्थान है कोई भी व्यक्ति अपनी भावनाओं, विचारों तथा कल्पनाओं को कला के विविध आयामों के द्वारा प्रकट करता है तथा समाज में प्राचीन तथा समसामयिक तथ्यों को उपस्थित करता है जो दो तरीकों से व्यक्त किया जाता रहा है। सर्वप्रथम दृश्य रूप से जिसे मूर्त रूप कला कहा गया है तथा दूसरा अदृश्य जिसे अमूर्त कला के नाम से जाना जाता है दृश्य अर्थात् मूर्तकला वह विधि है जिसमें चित्रकार निश्चित परमाणु तथा किसी वस्तु या व्यवस्था को चित्रों के माध्यम से कैनवास अथवा भित्ति दीवारों पर उकेरता है तथा दूसरा कला का भाग जिसे अमूर्त कला कहते हैं, इसमें कलाकार स्वतन्त्र रूप से मस्तिष्क में आए हुऐ भावों, विचारों को बिना पैमाने अथवा मापदंड के आधार पर कैनवास अथवा दीवारों पर चित्रित करता है।
धर्म, समाज, आज की पुरातन व्यवस्थाओं और परम्पराओं का विरोध करना तथा उनके स्थान पर नूतन व्यवस्थाओं और परम्पराओं की स्थापना इसका मुख्य उद्देश्य रहा है आज भी इसी उद्देश्य को लेकर अमूर्त कला का क्षेत्र गतिशील है। भारत में अमूर्त कला को ऊँचाईयों पर पहुँचाने वाले कलाकारों की लम्बी कतार है। वर्तमान समय में भी अनेक प्रांतों तथा जनपदों में कलाकारों तथा चित्रकारों की उपस्थिति देखी जा रही है। उनमें महाराष्ट्र प्रान्त के भी कलाकार पीछे नहीं रहे हैं उन्होंने भी अपने हुनर तथा कार्यों द्वारा कला के संसार की कीर्ति ध्वजा को उन्नत किया है और करते आ रहे हैं। उनमें से ही एक महान अमूर्त कलाकार का नाम लेना प्रासंगिक होगा जिन्होंने प्रकृति प्रेम को अपने भावनाओं तथा विचारों के रूप में संजोकर उसका अमूर्त एवं मूर्त रूप में प्रकट करते आ रहे हैं जिनका नाम श्री प्रकाश बाल जोशी है। इनके द्वारा अमूर्त कला के क्षेत्र में अभूतपूर्व योगदान किया जाता रहा है। समकालीन कलाकार श्री जोशी प्राकृतिक विधाओं के तत्त्वों को बहुत प्रभावी ढंग से प्रस्तुत करते रहे हैं। उनके द्वारा किये जा रहे कार्यों से अमूर्त कला जगत नए आयामों को प्राप्त करने तथा नैसर्गिक रहस्यों को उद्घाटित करने में सहायक हो रहा है।
बीज शब्द : कला, कलाकार, समकालीन, अमूर्त, अमूर्त कला, मूर्त कला, समकालीन कला, चित्रकला, दृश्य कला, अमूर्त कलाकार, समकालीन कलाकार, समाज।
मूल आलेख : कलाकार ‘‘प्रकाश बाल जोशी’’ भारतीय समकालीन कला में महत्त्वपूर्ण स्थान रखते हैं। इन्होंने अपने चित्रों, रेखांकनों व सौन्दर्य सृजनात्मकता के नये आयाम स्थापित किये हैं। भारतीय समकालीन कला में इनका अभूर्तपूर्व योगदान रहा है, जो कला समीक्षकों, कला के छात्रों, कलाकारों के लिए ही नहीं वरन् ऐतिहासिक धरोहर के साथ सामाजिक, धार्मिक एवं आध्यात्मिक क्षेत्र के लिए भी सार्थक सिद्ध होगा।
कलाकार प्रकाश बाल जोशी ने अपने कलात्मक चित्रण द्वारा कला को नये आयाम दिये हैं, जिनका व्यापक दृष्टि से पुनः प्रस्तुतीकरण आवश्यक एवं उपयोगी सिद्ध होगा। श्री प्रकाश बाल जोशी अमूर्त कला के मूर्धन्य विद्वान हैं, उनके कार्यों के प्रस्तुतीकरण की सामाजिक दृष्टि से आवश्यकता भी है जो सभी आधारों, आयामों एवं पक्षों के लिए सार्थक होगा। प्रस्तुत आलेख का चयन श्री प्रकाश बाल जोशी की प्रयोगधर्मिता, मौलिकता व उनको अमूर्त चित्रों की समग्र कलात्मक महत्ता को ध्यान में रखते हुऐ किया गया है। अपनी कलात्मक यात्रा में असंख्य कृतियों की रचना कर आपने एक ऐसी कला धरोहर रची है जिसमें एक पूरे कला युग के मानव जीवन का चित्रात्मक अभिलेखीकरण दृष्टिगोचर होता है। साथ ही इनकी कलाओं का अध्ययन कर उसे आगामी पीढ़ी के लिए सूचीबद्ध एवं सुरक्षित रखना आज के अध्ययन की विशेष महत्ता सिद्ध होगी। उनकी कला की समन्वित विधाओं के अध्ययन, उन्नयन, व्यवहारात्मक प्रतिभान तथा अनुभवजन्य प्रयोगशीलता का अनुसंधान की दशा में यह प्रथम प्रयास है जिससे आगामी पीढ़ियों को न केवल अध्ययन हेतु महत्त्वपूर्ण आधार प्राप्त होगा बल्कि भारतीय चित्रांकन, परम्परा एवं आदर्शों को सतत् एवं प्रभावमान रखने में भी विशेष महत्ता प्राप्त होगी।
श्री प्रकाश बाल जोशी का जन्म 16 अगस्त, 1951 को अमरावती जनपद के अचलपुर गाँव में हुआ था जो कि महाराष्ट्र राज्य में स्थित है। यह एक पुरातन ऐतिहासिक स्थल है जो कि वहाँ प्रसिद्ध एक दिल्ली दरवाजा; अनेक पुरातन हवेलियों; मंदिर; मस्जिद तथा छोटी नदी के किनारे बसा हुआ है। श्री जोशी जी की स्मृतियों में अनेकों बार याद अपने वाले पल, किस्से कहानियो के रूप में संग्रहित हैं। इनकी प्रारंभिक शिक्षा छोटे कस्बे चेरापूँजी जो कि सहाद्री पर्वत माला से घिरा हुआ है में हुई जो एक प्राकृतिक खूबसूरती से ओत-प्रोत बादलों से घिरा हुआ सुन्दर स्थान है। ये बचपन से ही रेखांकन व किताबें पढ़ने के शौकीन थे। इन्होंने बचपन से ही लघु कहानियाँ लिखना प्रारम्भ कर दिया था तथा जिला स्तर पर अनेकों पुरस्कार व प्रोत्साहन प्राप्त किया था। इनकी माता श्रीमती कुसुम जोशी जी एक अध्यापिका तथा उनके लेखन की प्रथम संपादक व रेखा चित्रों की प्रथम समीक्षक भी हुआ करती थी। इनके बड़े भाई जे.जे. स्कूल ऑफ आर्ट में प्रोफेसर हुआ करते थे जो अक्सर जे. कृष्णमूर्ति के कार्यों पर व्याख्यान सभा का आयोजन किया करते थे तथा इनके अध्यापक ने इन्हें जे. कृष्णमूर्ति के कार्यों से अवगत कराया जो कि आगे चलकर उचित साबित हुआ जिससे प्रेरित होकर इन्होंने अपनी कला यात्रा का शुभारम्भ किया।
पुणे विश्वविद्यालय से स्नातक करने के बाद सन् 1976 में 20 वर्ष की आयु में ये मुम्बई आ गये तथा कार्य करना प्रारम्भ कर दिया। उस समय जे.जे. आर्ट स्कूल के प्रोफेसर वाई.टी. चौधरी जो कि जर्मनी से ग्राफिक्स में स्नातकोत्तर थे, इनके कार्य से अति प्रभावित तथा इनके कार्य के प्रशंसक भी थे। वाई.टी. चौधरी जी ने ही इन्हें के.एच. आरा से अवगत कराया, जिन्होंने इनके कार्य का बारीकी से निरीक्षण किया और उनकी प्रशंसा भी की तथा इन्हें कैनवास पर कार्य करने के लिए प्रेरित किया। के.एच. आरा की प्रेरणा तथा प्रोत्साहन से इन्होंने कैनवास पर विविध माध्यमों में कार्य करना प्रारम्भ कर दिया। इसके बाद इन्होंने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। श्री प्रकाश बाल जोशी अपने चित्रों, ग्राफिक्स, रेखांकनों की भारत तथा भारत के बाहर अनेक देशों में समूह प्रदर्शनी एवं एकल प्रदर्शनियाँ भी कर चुके हैं तथा अनके सम्मानित, प्रतिष्ठित प्रदर्शनों में अपनी भागीदारी भी कर चुके हैं।
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श्री प्रकाश बाल जोशी जी एक प्रकृति प्रेमी समकालीन प्रयोगधर्मी कलाकार के रूप में विख्यात हैं। श्री जोशी महाराष्ट्र प्रान्त के प्रकृति प्रेमी विख्यात् अमूर्त चित्रकारों में से एक हैं। श्री प्रकाश बाल जोशी जी की कला यात्रा तथा तकनीक दोनों में कई चरण हैं आरम्भ में इन्होंने पहाड़, पेड़ पौधों आदि को रंगों के माध्यम से प्रतीकात्मक ढंग से प्रस्तुत किया है -
बाद में अपने गुरुओं तथा ज्येष्ठ कलाकारों के परामर्श तथा सुझाव के द्वारा कई बदलाव भी किये हैं।
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जोशी जी के चित्रों की श्रृंखलाऐं प्रमुख रूप से हैं -
(i) प्राकृतिक चित्र श्रृंखला (iv) ग्राफिक्स चित्र श्रृंखला
(iii) रेखांकन चित्र श्रृंखला (v) प्रकृति सुरक्षा चित्र श्रृंखला
(iii) मानवीय रेखांकन श्रृंखला (vi) मानवी सृजन चित्र श्रृंखला
चित्रकला संस्थापक एवं ग्राफिक्स के माध्यमों को लेकर श्री प्रकाश बाल जोशी जी ने अनेक प्रयोग किये हैं तथा विभिन्न माध्यमों में कार्य किया है। इन्होंने अपनी कला को अभिव्यक्त करने हेतु रेखांकन, चित्रकला एवं ग्राफिक्स कला आदि माध्यमों के कार्य में उत्तरोत्तर प्रगतिशीलता की प्राप्ति की है तथा नित्य नवीन प्रयोग किये हैं, कला के क्षेत्र में उनके कार्य भी विशेष स्थान रखते हैं।
समकालीन कलाकार प्रकाश बाल जोशी की कला का माध्यम मुख्यतः जलरंग रहा है। जलरंग माध्यम वैश्विक स्तर पर प्रमुखता से प्रचलित है। बंगाल स्कूल ने जलरंगों को एक नयी प्रतिष्ठा दी थी और अनेकों स्त्री कलाकारों अर्पिता सिंह, नीलिमा शेख, माधवी पारेख, नलिनी मलाली आदि ने विशेष रूप से जलरंगों में काम किया है। श्री जोशी जी के कार्यों में हम मिनिएचर चित्रों की एक स्मृति भी पाते हैं। भारतीय दैनिक जीवन के यथार्थ को इन्होंने लघु आकारों में झलका कर जैसे उसका एक निचोड़ सा प्रस्तुत किया है।
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प्रकाश बाल जोशी जी एक समकालीन प्रयोगधर्मी प्रकृति प्रेमी कलाकार हैं। एक प्रकृति ही तो है जो हृदय के उल्लास तथ कोमल अभिव्यक्ति की साथी है। प्रकृति ने समाज को सम्पन्न बनाया है और इस धरोहर को मनुष्य ने, कलाकारों ने सँवारा है। कलाकारों ने अपनी कला के माध्यम से प्रकृति के प्रति सबके जुड़ाव का प्रयास किया है।
मनोभावों की अभिव्यक्ति को किसी विशेष शैली, माध्यम या रंग सीमित करना सम्भव नहीं है। अनुभव संवेदना या प्रबल मनोवेग अपनी अभिव्यक्ति के लिए अपना सहज माध्यम स्वयं ही खोज लेते हैं। कलाकार उसका एक जरिया बन जाता है। कलाकार प्रकाश बाल जोशी जी ने भी नदियों, पहाड़ों, पर्वत शृंखलाओं आदि के प्रति अपने सहज आकर्षण की अभिव्यक्ति के लिए कला को ही माध्यम चुना। जिसमें जल रंगों द्वारा अविरल अनन्त तथा विशाल नदियों के प्रति आन्तरिक प्रेम को कैनवास पर “द रिवर रिटर्न” नामक शृंखला के माध्यम से प्रस्तुत किया है। इसमें उन्होंने मुख्यतः नीले रंग को प्रधानता दी है।
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सर्वप्रथम इन्होंने आर्काइवल पेपर पर जल रंगों से काम किया। प्रकाश बाल जोशी जी के अनुसार जब नदी अपनी अविरल, अन्नन्त यात्रा करते हुये समुद्र में समाहित होती है यहीं से उसका पुनर्जन्म होता है। स्मृतियों के अन्नन्त आवेग, असंख्य मनोभावों, सीमाओं को जब एक सीमित माध्यम (कैनवास) पर उकेरते हैं तो वो एक प्रेरणादायी अमरता को प्राप्त करता है। जोशी जी ने नदियों के, प्रकृति के यथार्थ रूप को ही चित्रित नहीं किया; वरन् आदर्श रूप को भी प्रस्तुत किया है। इस प्रकार जीवन का कला पर और कला का जीवन पर व्यापक प्रभाव पड़ता है। कलाऐं सामाजिक, सांस्कृतिक, भौगोलिक एवं प्राकृतिक तथ्यों के प्रति सदैव उत्तरदायी रही हैं। एक कलाकार समाज में एक कनेक्टर के रूप में, प्रेरणा के रूप में आदि महत्त्वपूर्ण भूमिकाऐं निभाता है।
श्री प्रकाश बाल जोशी जी को अनेक कारक प्रभावित करते हैं जैसे सामाजिक कारक, प्राकृतिक कारक, सांस्कृतिक कारक आदि। जीवन में हम जो कुछ भी देखते और अनुभव करते है वह अप्रत्यक्ष या प्रत्यक्ष रूप से हमारी कला को प्रभावित करता है। कलाकार की आत्मा, जो उनके अनुभवों से निर्मित होती है, जो शैली के सबसे बड़े कारकों में से एक है। जोशी जी के अनुसार ‘‘एक कलाकार को ड्रॉइंग और रचना जैसे तकनीकी कौशल सीखने के साथ-साथ अनुभव इकट्ठा करने की भी उतनी ही आवश्यकता होती है।’’ यह केवल विषय वस्तु के लिए नहीं है; यह उस व्यापक भावना और क्षमताओं के लिए भी है जो उसके काम को सूचित कर सकती है।
निष्कर्ष : कहा जा सकता है कि कला हमारे जीवन को बदल सकती हे। जब हम कला से जुड़ते हैं तो अंततः हम अपने भीतर से जुड़ रहे होते हैं। समकालीन कलाकार प्रकाश बाल जोशी जी की कला में निहित विभिन्न तथ्यों को एक सूत्र में बाँधकर, प्रकृति पहाड, नदियों तथा घाटियों की एक भाषा को अमूर्त कला के विभिन्न आयामों तथा नवीन पक्षों की जानकारी तथा वर्तमान परिपेक्ष में प्रस्तुत किया है। वर्तमान समय में मानव भौतिक संसाधनों को एकत्रित करने की उहापोह में मानवीय नैतिक जिम्मेदारियों तथा मूल्यों से दूर होता जा रहा है। वह वर्तमान की समस्याओं से बचने के लिए भविष्य की पीढ़ियों को हाने वाले प्राकृतिक संकटों के प्रति गैर जिम्मेदार व्यवहार करता जा रहा है। ऐसे प्राकृतिक और मानवीय मूल्यों के संरक्षण के लिए किन्हीं सार्थक पहलुओं के द्वारा पुनर्जागरण तथा जन जागरण अति आवश्यक हो गया है। इसी कड़ी में श्रीमान् प्रकाश बाल जोशी ऐसे चित्रकार हैं जो कि अपने कार्यों से मानव समाज को जागरूक होने के लिए दिशा प्रदान करने की ओर कोशिश कर रहे हैं। जिससे हम सभी के लिए सौन्दर्यात्मक तथा नैसर्गिक प्राकृतिक वातावरण में सार्थक प्रयास करने का अवसर मिले तथा कला जगत नए आयामों को प्राप्त कर सके। श्री प्रकाश बाल जोशी जी अमूर्त कला के मूर्धन्य विद्वान है, उनके कार्यों का प्रस्तुतीकरण आवश्यक है जो सभी आधारों, आयामों एवं पक्षों के लिए सार्थक रहेगा। एक कलाकार संसार के साधारण व्यवहार से ऊपर उठकर अपना अस्तित्त्व प्रकट करता है जो कि कुछ क्षणों या माह में होने वाला कार्य नहीं वरन् उसके पीछे जीवन में हर पल का प्राकृतिक प्रेम के कारण योगदान निहित होता है। बाल्यकाल से ही श्री प्रकाश बाल जोशी जी में कलात्मक अभिव्यक्ति का गुण विद्यमान था, इस गुण का प्रमाणीकरण इन्होंने विभिन्न माध्यमों से दिया।
कलाकार जब प्रकृति के कोई दृश्य या भावना से प्रेरित होता है तो वह उसका हू-ब-हू अनुकृति का निर्माण नहीं कर डालता है। कलाकार की प्रेरणा के साथ-साथ उसके अवचेतन में छिपे संस्कार और कल्पना का संयोग होता है। कलाकार अवचेतन मन को अपनी कलाकृतियों के माध्यम से अभिव्यक्त करता है। विभिन्न तकनीकी माध्यमों के प्रयोग से उसमें विशिष्ट सौन्दर्य दृष्टि विकसित करता है। समकालीन कलाकृतियों में कभी-कभी ऐसे रहस्यात्मक तत्त्वों की उत्पत्ति होती है जो साधारणतया असंभव है। समकालीन कलाकार अमूर्त कला बनाते रहते हैं और कला की सीमाओं को आगे बढ़ाते रहते हैं।
भारत एक जीवंत और विविधतापूर्ण समकालीन कला परिदृश्य का घर है, जहाँ विभिन्न कलाकार विभिन्न माध्यमों और शैलियों में काम करते हैं। समकालीन कलाकार कला के माध्यम से समाज में होने वाले बदलावों को दर्शाते हैं। समकालीन कला परिदृश्य का सबसे रोमांचक पहलू यह है कि यह लगातार विकसित और विकसित हो रहा है। नये समकालीन कलाकार हर समय उभर रहे हैं। समकालीन कलाकार सिर्फ समकालीन दृश्य कला तक ही सीमित नहीं है। ये साहित्य, संगीत और रंगमंच में भी काम करते हैं। इसी कड़ी में समकालीन अमूर्त चित्रकार श्री प्रकाश बाल जोशी भी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं। इनके कामों में अक्सर प्रकृतिवादी धार होती है। इनकी कला में एक व्यक्तिगत भाषा है, जहाँ उनके चित्र लंबे और प्रकृति से जुड़े हुऐ दिखाई देते है, जिसमें चित्रित करने के लिए महान् कहानियाँ हैं।
कला के बृहद इतिहास के विघ्ंगम अवलोकन पश्चात्, उसे आत्मसात कर उसका सार्थक विश्लेषण करने तथा उसके प्रमाणों का सही प्रस्तुतीकरण कर पाने की क्षमता, कितने लोगों में है, यह एक महत्त्वपूर्ण प्रश्न है। किसी भी विषय के अंतस्थ मूल्यों को समझने के लिए, उसके कारक को समझने के लिए, एक विशेष अनुभवसिक्त दृष्टि होने के उपरान्त ही उस विषय के आन्तरिक प्रवाह को भली प्रकार विश्लेषित किया जाता है। भारतीय समकालीन कला, दर्शन और साहित्य में निहित अपरिमित वैचारिक तथ्यों का अध्ययन एवं अनुशीलन अपने आप में एक गम्भीर अभ्यासीय प्रक्रिया है जिसमें बाह्य प्रकृति जन्य किसी भी प्रकार के उल्कापातों का कोई स्थान नहीं है।
सन्दर्भ :
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2. समकालीन कला, पत्रिका नवम्बर 1886/मई 1987, पृष्ठ 7-8
3. समकालीन कला, पत्रिका नवम्बर 1886/मई 1987, पृष्ठ 52
4. नाग, डॉ. शशि कान्त: कला एवं सौन्दर्य शास्त्र शृंखला, भाग-चतुर्थ
5. राठी, रामानंद: कला के सरोकार रचना, जयपुर प्रकाशन, 1985
6. जोशी, प्रकाश बाल: मिरर इन द हॉल
7. मिश्रा, अवधेश, कला दीर्घा, 2010, अंक 20 अप्रेल, जयपुर
8. मिश्रा, अवधेश, कला दीर्घा, 2008, अंक 16 अप्रेल, जयपुर
9. www.outlookindia.com
10. Abstraction : Documents of Contemporary Art by Maria Lind, Page 182-189
11. शरण, सुधा: कला सिद्धान्त एवं परम्परा, प्रकाश बुक डिपो, बरेली, 1986
12. कलिंगवुड, आर.जी.: कला के सिद्धान्त, राजस्थान हिन्दी ग्रन्थ अकादमी, जयपुर
13. दास, श्री कृष्ण: भारतीय चित्रकला का संक्षिप्त परिचय, पृष्ठ 142-147
14. आधुनिक चित्रकला का इतिहास, राजस्थान हिन्दी ग्रन्थ अकादमी, जयपुर, 2005
15. www.contemporaryindiaart.com
16. कला दीर्घा, ललित कला अकादमी, दिल्ली, पृष्ठ 82
17. कला दीर्घा, ललित कला अकादमी, दिल्ली, पृष्ठ 52
शोधार्थी (चित्रकला) ललित कला संकाय, वनस्थली विद्यापीठ, राजस्थान, भारत
madhuchaudhary62@gmail.com, 9785753520
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