शोध आलेख : नरक की अवधारणा और दृश्‍यगत अभिव्‍यक्ति / शाहिद परवेज़

नरक की अवधारणा और दृश्‍यगत अभिव्‍यक्ति
शाहिद परवेज़

चित्र संख्या-1 यम का दरबार,   हिमाचल प्रदेश, गुलेर,सन 1800

शोध सार :  मानव जीवन को नियमों और मर्यादाओं के आधार पर अनुशासित करने के प्रयासों ने मृत्‍यु के बाद के जीवन की अवधारणा को जन्‍म दिया। शुभ और अशुभ कर्म,पाप और पुण्‍य का वर्गीकरण और नीयत और ईमान जैसी बातें प्रचलन में आईं। इसी क्रम में मनुष्‍य ने स्वर्ग और नरक की अवधारणाओं को समझने और उनके गहरे अर्थ को खोजने का प्रयास किया है। विभिन्न धार्मिक ग्रंथों में नरक को एक ऐसी जगह के रूप में वर्णित किया गया है जहाँ पाप और अधर्म के लिए दंड दिया जाता है। इस स्थान पर बुरे कर्मों के परिणामस्वरूप व्यक्ति को कठोर यातनाएँ सहनी पड़ती हैं। धार्मिक ग्रंथों में नरक की अवधारणा का विस्‍तार से वर्णन है। नरक की अवधारणा और उसके स्‍वरूप को चित्र के माध्‍यम से व्‍यक्‍त करने पर उसके प्रभाव को अपेक्षाकृत अधिक गहनता प्रदान की जा सकती है। नरक की भयावहता को अपेक्षित ढंग से अंकित करने के लिए माध्‍यम के रूप में चित्रों का चयन एक प्रभावी कदम रहा। चित्र सीधे भावनाओं पर असर डालते हैं और मनोवैज्ञानिक रूप से गहरे प्रभाव छोड़ते हैं, जिससे नरक की स्थिति का अनुभव शब्दों की तुलना में अधिक स्पष्ट रूप से किया जा सकता है। चित्रण की भाषा स्वाभाविक रूप से भावनात्मक और संवेदनशील होती है, जो दर्शक को तुरंत अपनी ओर खींच सकती है। दृश्य चित्रण ने नरक की जटिल अवधारणाओं को बोधगम्‍य बनाया। दृश्‍य की व्‍यापकता और गहराई से विषय की प्रस्‍तुति यथोचित असर पैदा करती है। खासकर उन लोगों के लिए जो ग्रंथों को पढ़ने में असहज हैं या जिनके पास पढ़ने का समय नहीं है। कला, साहित्य और संस्कृति में भी नरक का चित्रण एक महत्वपूर्ण स्थान रखता है, और कई संस्कृतियों में इसे विभिन्न रूपों में जीवंत रूप से उकेरा गया है। प्रस्‍तुत आलेख में विभिन्‍न धर्मों में नरक की अवधारणा के आधार पर बनाए गए चित्रों वस्‍तुपरक और शिल्‍पगत विश्‍लेषण किया गया है। कलाकृतियाँ नरक की अवधारणा को वांछित प्रभावों के साथ अभिव्‍यक्‍त करने में सहायक सिद्ध हुईं हैं। चित्रांकन अपनी विशिष्‍ट शैलियों का यथावत प्रतिनिधित्‍व करता है।


बीज शब्द : नरक, भय, दण्ड-विधान, हिन्दू-धर्म, इस्लाम-धर्म, जैन-धर्म, बौद्ध-धर्म, ईसाई-धर्म, चित्र-शैली, अभिव्यक्ति

मूल आलेख : आदि काल से ही मनुष्य अपने विचारों, भावनाओं, और अनुभवों को चित्रों के माध्यम से व्यक्त करता रहा है। प्राचीन काल में, जब भाषा और लेखन का विकास नहीं हुआ था, तब मनुष्यों ने गुफाओं की दीवारों पर चित्र उकेर कर अपनी जीवन शैली, शिकार के तरीकों और अपने दैनिक जीवन के अन्य महत्वपूर्ण पहलुओं को चित्रित किया।


कालांतर में  विभिन्न संस्कृतियों में चित्रण के  नए रूप और अर्थ उभरने लगे, चाहे  मिस्र की प्राचीन  चित्रकला हो, ग्रीक मूर्तिकला, भारतीय लघुचित्र हों या आधुनिक काल हर युग और संस्कृति में चित्रण मानव अभिव्यक्ति का एक महत्वपूर्ण माध्यम रहा है। ये चित्र मात्र सजावट या सौंदर्य के लिए नहीं बने थे, बल्कि उनके पीछे गहरे अर्थ और संदेश समाहित होते हैं। चित्रात्‍मक अभिव्‍यक्ति के संदर्भ में डॉ. श्याम भारद्वाज, लिखते हैं – 

“कृति अवधारणा के गर्भ में छिपी होती है एक तड़प तथा अभिव्यक्ति की छटपटाहट इसके मूल स्त्रोत हो सकते हैं मन के अन्दर के भावावेश तथा संवेदनाएं भी, और बाह्य जगत की उत्प्रेरक घटनाएँ भी। यथार्थ की अनुभूति भी और कल्पना की उड़ाने भी।(1)यह अभिव्यक्ति न केवल व्यक्तिगत होती है, बल्कि सामूहिक स्तर पर भी समाज के विभिन्न मुद्दों, विचारधाराओं और संघर्षों को दर्शाती है। नियमों और मर्यादाओं के आधार पर  जीवन को अनुशासित करने के प्रयासों ने धार्मिक और आध्यात्मिक संदर्भों में स्वर्ग और नरक की अवधारणा को जन्‍म दिया। शुभ और अशुभ कर्म,पाप और पुण्‍य का वर्गीकरण और नीयत और ईमान जैसी मान्‍यताएँ सांस्कृतिक, दार्शनिक और मनोवैज्ञानिक दृष्टिकोण से भी महत्वपूर्ण है। स्वर्ग और नरक की जिज्ञासा मानवता की गहरी अंतर्दृष्टि को प्रकट करती है कि हम हमेशा से ही अपने अस्तित्व, जीवन के उद्देश्य और मृत्यु के बाद के जीवन के बारे में जानना चाहते हैं। विभिन्न धार्मिक ग्रंथों में नरक के बारे में  विस्तार से लिखा गया है अधिकांश धर्मों में नरक का वर्णन पाप और अधर्म के लिए दंडित होने के स्थान के रूप में किया गया है जिसमें बुरे कर्मों के परिणामस्वरूप मनुष्य को नारकीय यातनाओं को भोगना पड़ता है। ग्रंथों में अक्सर शब्दों के माध्यम से विचार और कल्पना को संप्रेषित किया गया है, लेकिन चित्रण एक दृश्य अनुभव प्रदान करता है। कलाकृतियाँ अपेक्षित संदेश की वा‍हक होती हैं और सायास संदेश देने की स्थिति में कलाकार माध्‍यम के साथ-साथ संदेश के प्रति भी दायित्‍वबोध से घिरा रहता है। सच्चिदानंदसिन्हा कहते हैं - “अधिकांश कलाकृतियों में सन्देश रहता है। लेकिन ये सन्देश संप्रेषित करने के अन्य तरीकों से भिन्न होते हैं, क्योंकि इनके द्वारा संप्रेषित सन्देश चित्ताकर्षक आवरण के अन्दर होतें हैं। कहने की आवश्यकता नहीं कि जिस तरह दवा के ऊपर चीनी का लेप चढ़ा होता है, उसी तरह आकृतियों से सन्देश चिपके होते हैं जिन्हें अलग नहीं किया जा सकता है। कलाकृति बिना किसी जानकारी के भी हमें प्रभावित कर सकती है, क्योंकि,जैसा पूर्व में कहा गया है, छवियों से लगाव मनुष्य का नैसर्गिक गुण है।(2) संभवतः लेखन के साथ साथ अपनी बात को प्रभावी ढंग से संप्रेषित करने हेतु नरक के चित्रण की आवश्यकता अनुभव की गयी क्योंकि चित्रण  मनोवैज्ञानिक और भावनात्मक रूप से बहुत गहरा प्रभाव डाल सकता है, जिससे दर्शकों को नरक की अवस्था का सीधा अनुभव होता है जो शाब्दिक अभव्यिक्ति में अनुभूति का स्‍तर भिन्‍न हो सकता है। “कविता में शब्दों की शक्ति के प्रभाव से अधिक कला में रंग, आकार और इनके संपुजन उच्चविद्धुत – चुम्बकीय शक्ति की तरह हमारी इन्द्रियों को प्रभावित कर जाते हैं तथा इसमें हमारी वैचारिक क्रिया का एक उत्तेजक सिलसिला बनता हैं।”(3) इस प्रकार दृश्य चित्रण नरक की अवधारणाओं को सरलतापूर्वक समझने योग्य बनाता है।


मानव समाज में नैतिकता और अनुशासन बनाए रखने के लिए "नरक" का विचार बहुत महत्वपूर्ण रहा है।विभिन्न धर्मों और संस्कृतियों में नरक की अवधारणा लोगों को अच्छे और बुरे के बीच अंतर करने, सही रास्ते पर चलने,समाज के नियमों का पालन करने, बुरे कर्मों से दूर रहने, स्व-नियंत्रण और आत्म-सुधार के लिए प्रेरित करता है। 

चित्र संख्या-2

हिंदू धर्म में नरक की अवधारणा का विचार कर्म के सिद्धांत पर आधारित है, जो कहता है कि व्यक्ति अपने कर्मों के अनुसार फल प्राप्त करता है। मनुष्य के अच्छे कर्म उसे स्वर्ग की ओर ले जाते हैं, जबकि बुरे कर्म नरक में ले जाते हैं। मृत्यु उपरांत यमराज जो मृत्यु के देवता हैं, आत्माओं का उनके कर्मों के आधार पर फैसला करते हैं, और वे मनुष्य जिन्होंने अपने जीवन में पाप किये हों उनकी पापी आत्माओं को मृत्यु उपरांत नरक में दंड दिया जाता है, चित्रगुप्त प्रत्येक व्यक्ति के कर्मों का लेखा-जोखा रखते हैं। नरक की अवधारणा हिन्दू धर्म के नैतिक और धार्मिक सिद्धांतों को बल देती है, जिससे लोग धर्म और सदाचरण के मार्ग पर चलें, अपने कर्मों का ध्यान रखें और पाप करने से बचें जिससे की उन्हें नरक की यातनाओं से न गुज़ारना पड़े। यह विचार लोगों को अपने कर्मों के प्रति सचेत रहने और नैतिकता का पालन करने के लिए प्रोत्साहित करता है। “नरक कोई स्थायी निवास स्थान नहीं है, बल्कि एक ऐसा क्षेत्र है जहाँ से व्यक्ति नैतिक अशुद्ध कर्मों की सज़ा पूरी होने के बाद वापस लौटता है। पुनर्जन्म के कई क्षेत्र हैं। नरक सबसे खराब जगह का नाम है, सबसे अशुद्ध कृत्यों के लिए सज़ा का स्थान। नरक एक जेल की तरह है। कैदी अपना समय बिताता है और उसके बाद समाज में वापस चला जाता है।(4)दण्डित आत्मा अपने पापों का दंड भोगने के बाद पुनः जन्म लेती है जब तक की आत्मा मोक्ष प्राप्त नहीं करती। हिन्दू धार्मिक ग्रंथ जैसे गरुड़ पुराण, भागवत पुराण और विष्णु पुराण में नरक की विस्तृत व्याख्या मिलती है। भागवत पुराण, विष्णु पुराण और देवी भागवत पुराण में 28 नरकों का वर्णन मिलता है, जैसे रौरव, कुंभीपाक, महारा, कालसूत्र, असिपत्रवन, और तमिस्र आदि। प्रत्येक नरक में अलग-अलग प्रकार के पापों के लिए विशेष दंड निर्धारित किये गए  हैं।

हिन्दू धार्मिक मान्यता के अनुसार व्यक्ति के मरने के बाद यमराज की अदालत में उसकी आत्मा को लाया जाता है। चित्रगुप्त मृत्यु के देवता यमराज को व्यक्ति के कर्मों का लेखा-जोखा सुनाते हैं। इसके बाद यमराज उसे स्वर्ग और नर्क का फैसला सुनाते हैं। फैसले के बाद चारों दिशाओं में बने  द्वार  से यमराज के दूत अच्छे कर्म करने वाले को स्वर्ग ले जाते हैं और बुरे कर्म करने वाले को नरक ले जाते हैं। सन1800 में निर्मित गुलेर शैली के चित्र मृत्यु के देवता यम का दरबार का और वहाँ होने वाली गतिविधियों का सजीव चित्रण किया है। यम-दूतों के रूप में नियुक्त यम-पुरुष सभी प्राणियों की आत्माओं को न्याय के लिए यम के पास लाते हैं जिसमें पुरुष भी हैं और महिलाएँ भी। प्रस्तुत चित्र में केन्द्रीय संयोजन में मुख्य पात्र यमराज को पीत वस्त्रों में बैठे दर्शाया है जो कि अंतिम न्याय सुनते हुए निर्देश देने की मुद्रा में हैं। थोड़े नीचे की तरफ चित्रगुप्त श्वेत वस्त्र पहने कुछ आगे की और झुके हुए घुटनों के बल बैठे है जिनके हाथ में प्रस्तुत व्यक्ति के कर्मों का लेखा जोखा है जिसके आधार पर यम उसका निर्णय करेंगे। शेष चित्र के चारों ओर विभिन्न प्रकार की यातनाएँ देते हुए गहरे रंग के राक्षसों को चित्रित किया है । चित्र की रंग योजना में बहुधा गहरे  और चमकदार रंगों के स्थान पर हल्के रंगों का उपयोग किया है जो प्रचलित नरक के चित्रों की रंग योजना से अलग है।

(चित्रसंख्या-2) हिन्दू धर्म के नरक से सम्बंधित कुछ रोचक पोस्टर भी प्रायः देखने को मिलते है जिनका संयोजन पोस्टर की ही शैली की तरह से है जिसने व्यक्ति द्वारा किये गए पाप और उसके परिणाम स्वरूप भोगने वाले दण्ड को क्रमशः दर्शाया है। जैसे पशु की इन्द्रियों को छेदने के दंड स्वरूप एक दानव द्वारा व्यक्ति की नाक छेदते हुए दिखाया गया है। जिसमें दानव की क्रूरता और दण्डित व्यक्ति के भय को स्पष्ट देखा जा सकता है जहाँ व्यक्ति भय की मुद्रा में अपने को बचाने के लिए पीछे की ओर खिसकते हुए दीखता है इसी प्रकार जलचर को मारने या व्यभिचार के दण्ड के रूप में व्यक्ति को आग में जलाया जा रहा है व्यक्ति बचने का प्रयास कर रहा है परन्तु दानव हथियारों से डराते हुए उन्हें बाहर नहीं आने दे रहा है। चित्रों में ज्यादा डिटेल नहीं है, छाया प्रकाश के अभाव में चित्र काफी समतल दिखाई दे रहा है परन्तु दण्डित मानवाकृतियाँ एवं दण्ड देने वाले राक्षस के हाव – भाव और मुद्राओं में लय एवं गति देखी जा सकती है कुल मिलाकर नरक की यातना की भावाभिव्यन्जना काफी सशक्त प्रतीत होती है।

चित्र संख्या-3

(चित्रसंख्या-3) एक अन्य चित्र में जिसमे कुम्भीपाक नरक को चित्रित किया है जो व्यक्ति जानवरों और पक्षियों को जीवित पकाता है, उसे यहाँ यमदूत उबलते तेल में उतने ही वर्षों तक पकाते हैं, जितने वर्षों तक उनके पशु शिकार के शरीर पर बाल होते हैं। जिसमे दण्डित आत्मा को बड़े तेल से भरे कड़ाहे में तला जा रहा है और तीन राक्षस उन्हें त्रिशुल से भेद रहे है उन्हें कड़ाहे से निकलने नहीं दे रहे है। राक्षसों को काफी वीभत्स चित्रित किया है और आग की लपटें चित्र को और भयावह बना रही है। 

नरक के चित्रों में प्रायः गहरे लाल, काले, और मटमैले रंगों का प्योग होता है। खून, आग, और गंदगी के दृश्य प्रमुख होते हैं, जिनमें तीव्र पीड़ा को दिखाने के लिए खुरदुरे टेक्सचर का प्रयोग होता है। चित्रण में संयोजन कभी केन्द्रीय तो कभी अराजक या  अव्यवस्थित होता है। चित्रों में मानवाकृतियाँ काफी विकृत, अस्वाभाविक, भयावह या अतिमानवीय आकृतियाँ होती हैं, जो पीड़ित प्राणियों की दुर्दशा को दिखाया जिसमें शरीर के अंगों को खींचा, काटा, भेदा या जलाया जाता है, और दण्ड देने वाले प्राणी भयानक रूप में दिखाए जाते हैं जिनके नुकीले दांत, पंजे, और विकृत चेहरें होते हैं “विषय वस्तु के सारतत्व एवं चैतन्य की अभिव्यक्तित तभी संभव हो सकती है जब कलाकार उस के साथ पूरी तरह तादात्म्य स्थापित कर लेता है, आतंरिक सत्य को पूरी तरह से आत्मसात कर लेता है।”(6)  परिणाम स्वरूप चित्र इतना जीवंत हो जाता है कि चित्र देखने वाले में नरक के प्रति भय पैदा हो और वह अपने जीवन में सत्कर्म की ओर अग्रसर हो। 

इस्लाम धर्म में नरक की अवधारणा को "जहन्नम" कहा जाता है। जहन्नम को न्याय का स्थान माना जाता है जहाँ उन लोगों को दंडित किया जाएगा जिन्होंने इस दुनिया में पाप किए हैं और अल्लाह की आज्ञाओं का पालन नहीं किया है। इस्लाम के अनुसार, कुछ लोग ऐसे होते हैं जो स्थायी रूप से जहन्नम में रहेंगे, जैसे कि मुशरिक (अल्लाह के साथ किसी और को साझी ठहराने वाले) और कुफ़्र (जो अल्लाह और इस्लाम को पूरी तरह से अस्वीकार करते हैं)। वहीं कुछ लोग अस्थायी रूप से दंडित होंगे और बाद में स्वर्ग में प्रवेश करेंगे। इस्लामिक सिद्धांत में यह भी माना जाता है कि नरक एक चेतावनी और शिक्षा का स्थान है, जहाँ से लोग सबक लेकर सुधार कर सकते हैं और अल्लाह की ओर वापस लौट सकते हैं।

 (चित्रसंख्या-4)  नरक में दंड, अहवाल अल-क़ियामा ,16वीं सदी

(चित्र संख्या-5)  सेनेट और सेहेनम। अहवल-एक्यामेत


 (चित्रसंख्या-6) सेनेट और सेहेनम। अहवल-एक्यामेत

इस्लाम धर्म की मान्यतानुसार अंतिम न्याय करने वाला केवल अल्लाह है। यह न्याय क़यामत के दिन होगा, जिसे "यौम अल-क़ियामह" या "यौम अद-दीन" कहा जाता है। इस्लाम में माना जाता है कि हर व्यक्ति के साथ दो फरिश्ते होते हैं जो उसके सभी कर्मों को रिकॉर्ड करते हैं। इन्हें "किरामन कातिबीन" कहा जाता है। ये फरिश्ते न्याय के दिन गवाही देंगे, अच्छे कर्मों और बुरे कर्मों को तौला किया जाएगा। यदि किसी के अच्छे कर्म अधिक होंगे, तो उसे स्वर्ग (जन्नत) में प्रवेश मिलेगा, और यदि बुरे कर्म अधिक होंगे, तो उसे नरक (जहन्नम) में दंडित किया जाएगा।

“कुरान में नरक का वर्णन इस तरह किया गया है कि यह एक ऐसी जगह है जो "आग की झील" से भरी हुई है, यह एक "दुख का जलता हुआ बिस्तर" है जिसमें साँप और यातनाएँ हैं और केवल "उबलता हुआ, बदबूदार पानी" है। नरक के सात द्वार या परतें हैं, जिनमें से प्रत्येक एक अलग तरह के दुष्ट व्यक्ति के लिए आरक्षित है, जिसकी रक्षा शैतान नहीं बल्कि फ़रिश्ते करते हैं। सबसे नीचे एक भयानक पेड़ है जिसे ज़क़्किम कहा जाता है, जिसके फल में शैतानों के सिर होते हैं। पापियों को यह फल खाने के लिए मजबूर किया जाता है जो पिघली हुई धातु की तरह उनके गले और पाचन तंत्र को जला देता है। नरक की कई छवियाँ कुरान से नहीं बल्कि बाद में लिखे गए धार्मिक ग्रंथों से आती हैं। उदाहरण के लिए, 11वीं सदी की पुनरुत्थान की पुस्तक में, नरक के एक फ़रिश्ते के बारे में कहा गया है कि "उसके पास उतने ही हाथ और पैर हैं जितने आग में लोग हैं। प्रत्येक पैर और हाथ से वह लोगों को खड़ा करता है और बैठाता है और उन्हें बेड़ियों और जंजीरों में डालता है जब वह आग को देखता है, तो आग फ़रिश्ते के डर से खुद को भस्म कर लेती है।"(7) इस्लाम में जहन्नम (नरक) के सात स्तरों का उल्लेख किया गया है। हर स्तर उन लोगों के लिए निर्धारित है जिनके पाप और अविश्वास की प्रकृति अलग-अलग होती है। ये सात स्तर निम्नलिखित हैं, जाहन्नम, लज़ा, हुतमा, सईर, सक़र, जहीम, और  हाविया।  

अहवाल अल कियामा में इस्लामी जहन्नम से सम्बंधित काफी प्रभावशाली चित्रण हुआ है जिसमें नरक की यातनाओं को दर्शाया गया है। जिन लोगों ने भी खुदा की नाफ़रमानी की, पाप किये या अपने जीवन में कोई भी ऐसे कर्म किये जिस कारण वे नरक के पात्र बने ऐसे लोगों को नरक की आग में डाला जा रहा है, कुछ लोग पहले से ऐसी यातनाओं को भुगत रहे हैं और कुछ को राक्षस आग की ओर खींच रहा है, दण्डित व्यक्ति अपने आप को बचाने की नाकाम कोशिश कर रहा है उनके चहरे पर भय को स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है। अति मानवीय आकार का राक्षस जिसके हाथ में जलती मशाल है जिससे वह इस आग को कभी बुझने नहीं देता है काफी बलशाली और क्रूर चित्रित है जिसकी भयावह हंसी वातावरण में और भी भय पैदा करती है । काफी गहरे और चमकदार रंगों का प्रयोग किया गया है, गहरी पृष्ठभूमि में चमकीले रंग से चित्रित कभी न बुझने वाली आग पापियों को लील रही हैं।

आग के दरिया में बिच्छू, साँप जैसे नाना प्रकार के ज़हरीले और भयानक जानवर भी है जिन्होंने पापियों को जकड़ा हुआ है, लगातार अपने दंशों से उन्हें घायल कर रहे है, पापियों के विकृत शरीर और इन सब यातनाओं से बचने की नाकाम कोशिश चित्र को और भयावह बना रही है।

चित्र के नीचे के बाएँ कोने में एक व्यक्ति आग से बचने की कोशिश कर रहा है व्यक्ति की भागने की मुद्रा और आग का विपरीत दिशा में बहना चित्र को बहुत प्रभावपूर्ण बना रहा है।

ऐसे ही दो अन्य दो चित्रों में आग के साथ लाल और नीले रंग के राक्षस को भी चित्रित किया है जो पापियों को पकड़ कर आग में डाल रहे है साथ ही शेर और ड्रेगन जैसे भयानक जीव भी चित्रित है जो अपने मुंह से आग उगल रहे हैं। चित्र में पापियों को तीखे भालों से छेद कर यातनाये दी जा रही है। सभी चित्रों के संयोजन में बैचेनी, तड़प और भय को स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है।

जैन धर्म में नरक उस  स्थान को कहा गया है जहाँ  आत्मा को अपने बुरे कर्मों के परिणामस्वरूप दण्ड मिलता है। जिसे "नरक" या "नरकगति" के रूप में जाना जाता है, जैन धर्म के अनुसार, आत्मा के कर्म और उनके परिणाम बहुत महत्वपूर्ण हैं, और नरक को उन आत्माओं के लिए बनाया गया है जिन्होंने अपने पिछले जीवन में बुरे कर्म किए हैं। जैन धर्म में कर्म सिद्धांत के अनुसार, बुरे कर्म आत्मा को नरक में ले जाते  है, जहाँ उसे उसके कर्मों के अनुसार दंड भोगना पड़ता है। जैन धर्म में नरक का वर्णन आत्मा के सुधार और शुद्धिकरण के साधन के रूप में किया जाता है, न कि केवल दंड के रूप में। जैन धर्म के धार्मिक ग्रंथ "तत्वार्थसूत्र" और "जैन आगम" में नरक की अवधारणा का वर्णन मिलता है। जैन धर्म में ब्रह्माण्ड को तीन भागों में बाँटा गया है: ऊर्ध्व लोक (स्वर्ग), मध्य लोक (पृथ्वी), और अधो लोक (नरक)। अधो लोक में सात स्तर होते हैं, जिन्हें 'नरक' कहते हैं।

(चित्र संख्या-7) 17वीं शताब्दी 

नरक के सात स्तर हैं जहाँ आत्माओं को अत्यधिक पीड़ा और यातना का सामना करना पड़ता है। वहाँ का वातावरण अत्यंत प्रतिकूल होता है, और आत्माओं को गर्मी, ठंड, भूख, प्यास, और अन्य प्रकार की यातनाओं का सामना करना पड़ता है। जैन धर्म में नरक का दंड अस्थायी होता है। आत्मा अपने कर्मों के परिणामस्वरूप नरक में एक निश्चित अवधि तक रहती है अपने कर्मानुसार नियत दंड भोगती है।नरक में दंड भोगने के बाद, आत्मा पुनः जन्म लेती है और अपने कर्मों के अनुसार नए जन्म का अनुभव करती है। मोक्ष प्राप्त करना जैन धर्म का अंतिम लक्ष्य है, जो आत्मा को जन्म और मरण के चक्र से मुक्त करता है। 

जैन धर्म के नरक को दर्शाते इस चित्र को सात भागों में विभाजित किया है नरक के सात निम्नलिखित स्तर है  रत्नप्रभा, सरकार प्रभा, वालुका प्रभा, पंक प्रभा, धूम्र प्रभा, तमःप्रभा, महात्माःप्रभा जो विभिन्न नरकों को दर्शाते हैं जिसमे पापियों को उनके बुरे कर्मों के अनुसार यथा स्थान दण्ड देने के लिए भेजा जाता है। चित्र के बायीं और उस नरक से सम्बंधित देवता को चित्रित किया है प्रत्येक देवता अपने निश्चित पशुवाहन के साथ है  और दायीं और उस नरक में दी जाने वाली यातनाओं का चित्रण है चित्र की स्पष्टता उसे बहुत ही ग्राह्य बनाती है जिससे व्यक्ति चित्र को देखकर नरक में भोगने वाली पीड़ा को स्पष्तः समझ सके और पुण्य कर्म की और अग्रसर हो सके।

 (चित्रसंख्या-8) डेनियल विल्लफ़्रुएल

रत्न प्रभा नरक में पापियों को गहरे रंगों से चित्रित किया है जिन्हें दंडस्वरूप विभिन्न प्रकार के तीखे शस्त्रों से छेदा जा रहा है, छेदने के बाद जिस तरह से शरीर निढाल हो जाता है उसका चित्रण बड़ी सूक्ष्मता से किया है साथ ही दण्ड से डरते व भागते भी चित्रित है।  एक स्तर पर पापी आत्माओं को पागल हाथी के पैरों तले रोंदा जा रहा है, हाथी ने अपनी सूंड में भी एक आत्मा को जकड रखा है उस जकड़न से होने वाली छटपटाहट को शरीर की विकृति से बहुत जीवंत चित्रित किया है। हाथी के पैरों के नीचे वाले शरीर की पीड़ा को सहज ही देखा जा सकता है। कहीं पापी आत्माओं के शरीर को कुल्हाड़ी से काटा जा रहा है, कहीं उन्हें जानवरों से कटाया चित्रित किया है तो कहीं उन्हें आग में जलाया जा रहा है। पूरे चित्र में छाया प्रकाश का भाव है। विभिन्न स्तरों को लाल एवं हरे रंगों से पृथक किया गया है। एक विशेष बात इन चित्रों को अन्य धर्मों के चित्रों से पृथक बनाती है वो दण्ड देने वालों का आकृति चित्रण जहाँ अन्य चित्रों में उन्हें डरावने राक्षसों के रूप में किया है वहीँ जैन धर्म के चित्र में दण्ड देने वालों को सामान्य मानव के रूप में चित्रित किया है जो उजले रंग के है और धोती व पगड़ी धारण किये हैं। रंगों, टेक्सचर, आकृतियों की विकृति, गति,और संयोजन के माध्यम से यह चित्र न केवल पीड़ा और कष्ट को प्रदर्शित करता है, बल्कि जीवों को धर्म के मार्ग पर चलने और सही कर्म करने की प्रेरणा भी देता है। चित्र की  विशिष्ट शैली, स्पष्टता और सूक्ष्मता इन चित्रों को और भी अधिक प्रभावशाली और अर्थपूर्ण बनाती है।


ईसाई धर्म में नरक की अवधारणा एक ऐसे स्थान के रूप में की जाती है जहाँ पापियों को उनके पापों के लिए अनंतकाल तक दंडित किया जाता है। यह अवधारणा बाइबल में और विभिन्न ईसाई धर्मशास्त्रियों की शिक्षाओं में विस्तृत रूप से वर्णित है। नरक को एक भौतिक स्थान और एक आध्यात्मिक स्थिति दोनों के रूप में समझा जा सकता है। ईसाई धर्म में विश्वास किया जाता है कि मृत्यु के बाद एक न्याय का दिन आएगा, जब सभी मृतकों को पुनर्जीवित किया जाएगा और उनके कर्मों के आधार पर न्याय किया जाएगा। जो लोग धार्मिक जीवन जीते हैं उन्हें स्वर्ग (हेवेन) में स्थान मिलेगा, जबकि पापियों को नरक में भेजा जाएगा। बाइबल में नरक के कई विवरण मिलते हैं। नए नियम में, यीशु मसीह ने नरक को "जहाँ कीड़ा नहीं मरता और आग नहीं बुझती" (मरकुस 9:48) के रूप में वर्णित किया है। इसके अलावा, मत्ती 25:41 में इसे "अनन्त आग" के रूप में वर्णित किया गया है। नरक की अवधारणा ईसाइयत के नैतिक और धार्मिक सिद्धांतों को बल देती है, जिससे लोग पाप से बचें और धार्मिक जीवन जिएँ। यह उन्हें भगवान में विश्वास और यीशु मसीह में उद्धार की आवश्यकता की याद दिलाती है।

 (चित्रसंख्या-9 जान वान आइक द लास्ट जजमेंट 1441ईस्वी 

 नरक को एक ऐसा स्थान माना जाता है जहाँ आत्मा को शारीरिक और आत्मिक रूप से अत्यधिक पीड़ा सहनी पड़ती है। इसे अनन्त आग, अंधकार, और भगवान से अलगाव के रूप में वर्णित किया गया है। ईसाई मान्यताओं के अनुसार, नरक का दंड अनन्त होता है। जो लोग भगवान में विश्वास नहीं करते, पापी होते हैं, या मसीह के उद्धार को अस्वीकार करते हैं, उन्हें नरक में अनन्त काल तक दंडित किया जाता है।

ईसाई धर्म की शिक्षा के अनुसार, सभी मनुष्य पापी हैं और केवल यीशु मसीह के माध्यम से उद्धार और मुक्ति पा सकते हैं। मसीह में विश्वास करने वाले और उनके आदेशों का पालन करने वाले स्वर्ग में प्रवेश करते हैं, जबकि उन्हें अस्वीकार करने वाले नरक में जाते हैं।

 डेनियल विल्लफ़्रुएल द्वारा चित्रित नरक के इस चित्र में नरक का एक भीड़ भरा मंद प्रकाश वाला दृश्य दिखाया गया है जहाँ भयानक राक्षस द्वारा लोगों को पीड़ा देने के लिए आग में जलाया जा रहा है, खौलते पानी में उबला जा रहा है, कहीं उन्हें उल्टा लटका कर नीचे से आग और धुआं दिया जा रहा है। चित्र के नीचे वाले हिस्से में लोगों को बाँधकर मुँह में जलते अंगारे डाले जा रही हैं या नुकीले हथियारों से छेदा जा रहा है। पूरा दृश्य निराशा और भय का वातावरण प्रस्तुत कर रहा है। अक्सर चित्रों में केंद्रीय संयोजन योजना का पालन करते हुए चित्र की मुख्य घटना को चित्रित किया है जिसमे एक बड़े गोल कड़ाहे में लोगों को यातना दी जा रही है। शेष क्रिया-कलापों को इस के आसपास चित्रित किया है, आग की लपटें, दण्डित प्राणियों की पीड़ा और दण्ड से बचने का संघर्ष, उनके विकृत शरीर चित्र को गतिशील बनाते हैं। गहरे और मटमैले रंग जैसे काला, गहरा लाल, गहरा नीला, और मटमैला भूरे रंगों का प्रयोग अंधकार, हिंसा, असुरक्षा और पीड़ा को और अधिक प्रभावशाली रूप से प्रस्तुत कर रहा हैं। चित्र में प्रकाश और छाया का प्रस्तुतीकरण बहुत प्रभावशाली है जो पीड़ा और डर के भाव को जागृत कर रहा है। पीड़ित प्राणियों के चेहरों और उनके शरीर की विकृतियों  से पीड़ा और दुख का भाव स्पष्ट होता है। ये चित्र दुःख, चीखें, और निराशा को व्यक्त करते हैं, जिनमें विकृत चेहरे, टूटे हुए शरीर, तेल के कड़ाहों में तलते लोग, तीखे हथियारों से भेदे जाते जैसी कई भयावह एवं दर्दनाक परिस्थितियों का चित्रण होता है। चित्र में मानवाकृतियों के रूप में राक्षस और राक्षसी जैसी वीभत्स आकृतियों का चित्रण है, जो व्यक्तियों को नाना प्रकार की पीड़ा देते हुए एवं उनके पापों की सजा देते हुए चित्रित होते हैं। चित्रों के संयोजन में सामान्यतः अराजकता, उथल-पुथल, और असंतुलन को दर्शाया है, यह निराशा, भय, बैचेनी और असहनीय पीड़ा के भाव को उत्पन्न करता है। “किसी कलाकृति को समझने के लिए उस पर दोनों अंगों और दोनों पार्श्वों से विचार किया जाना चाहिए। एक अंग सिद्धांत विचार अर्थात अनुभव सूत्र की शब्द चैतन्य के मार्फ़त अनुभूति, जिससे दृश्य रूप समझा जा सकता है। यह नाट्यशास्त्र सरीखे अन्य ग्रंथों में उपलब्ध है। दूसरा अंग तकनीक है जो सिद्धांत का ही मूर्तरूप है और साध्य साधन इत्यादि बातों के ज़रिये समझा जा सकता है। इसी तरह पहला पार्श्व अमूर्तन का है जो संवेदनरूप है और सिद्धांत विचार के माध्यम से व्यक्त होता है। दूसरा पार्श्व मूर्त है जो अवकाश में वस्तुरूप,चित्र, शिल्प के माध्यम से आकार रूप में व्यक्त होता है। उपर्युक्त अनुभूति का अनुसरण कर जो कलाकृति “रचता”है, वह गड़ता नहीं।”(9) उपर्युक्त दोनों अंगों का समुचित समावेश चित्र में दिखता है जो इसे जीवंत  व भावपूर्ण बनाता है।

 जान वान आइक द लास्ट जजमेंट 1441ईस्वी(10) (चित्रसंख्या-9) इसी प्रकार इसाई धर्म से सम्बंधित नरक का चित्र तेल चित्रकार जान वैन आइक ने एक डिप्टीच के दाहिने आधे हिस्से पर “अंतिम निर्णय “ शीर्षक से चित्रित किया है। जिसमें ऊपर के भाग में क्रूस पर चढ़ाई का चित्रण भी शामिल है। अंतिम निर्णय पैनल वैन आइक के नरक के भड़कीले चित्रण के कारण हड्डियों को कंपा देने वाला भयानक दृश्य प्रस्तुत किया  है,  एक विशाल और खतरनाक कंकाल की फैली हुई भुजाओं के नीचे शापित आत्माओं का समूह चित्रित है, जिनमें से प्रत्येक को एक अलग तरह की सजा दी जाती है। एक कोने में, एक आदमी दर्द से चीखता है क्योंकि एक सांप द्वारा उसका पेट फाड़ दिया जाता है। सभी नग्न दण्डित आत्माओं को दण्ड से उपजी असहनीय पीड़ा से करहाते देखा जा सकता है चित्र का नज़दीक  से अवलोकन करने पर आत्मा सिहरा देने वाली भयानकता, हिंसा, भय और पीड़ा को सहज ही देखा जा सकता है। कंकाल के चेहरे पर प्रायः दिखने वाला खौफ़ नहीं है परन्तु उसकी कुटिल हंसी उसे और भी भयानक दर्शा रही है उसने अपने हाथ पैर ऐसे फैला रखे है जैसे वो किसी को भी इस असहनीय पीड़ा देने वाले स्थान से बाहर नहीं निकलने देगा। दण्ड देने वाले राक्षसों का काफी वीभत्स चित्रण है कोई आदमी को नोंच रहा है कोई पूरा का पूरा आदमी निगल रहा है उनकी खा जाने वाली आँखे दृश्य को और डरावना बना रही है। आकृतियों के संयोजन में काफी उथल-पुथल है अराजकता है जो उनकी पीड़ा को जीवंत कर रही है छाया प्रकाश का चित्रण चित्र में निराशा और भय का वातावरण प्रस्तुत कर रहा है।

बौद्ध धर्म में नरक की अवधारणा को "नरक" या "नरक लोक" के रूप में जाना जाता है। बौद्ध धर्म में नरक का संबंध आत्मा के कर्मों से होता है। यदि कोई व्यक्ति अपने जीवन में बुरे कर्म करता है, तो उसकी आत्मा मरने के बाद नरक लोक में जन्म लेती है, जहाँ उसे अपने बुरे कर्मों का फल भोगना पड़ता है। नरक का दंड अस्थायी होता है ।नरक का दंड समाप्त होने के बाद आत्मा फिर से जन्म ले सकती है और अपने कर्मों के अनुसार अन्य लोकों में जा सकती है। बौद्ध धर्म का अंतिम लक्ष्य निर्वाण (मुक्ति) प्राप्त करना है। 

बौद्ध धर्म में नरक के विभिन्न स्तर होते हैं, एक "ठंडे नरक" इनमें अत्यधिक ठंड से दी जाने वाली यातनाएँ शामिल होती हैं, जैसे कि अर्बुद (फोड़े) नरक, जहाँ आत्मा को जमाने वाली ठंड का सामना करना पड़ता है और दुसरे "गर्म नरक" इनमें अत्यधिक गर्मी और जलन की यातनाएँ शामिल होती हैं, जैसे कि अवीचि (अव्यावारिक) नरक, जहाँ आत्मा को लगातार जलाया जाता है। 

चित्र संख्या-10 शोसई 19वीं सदी


बौद्ध धर्म के धार्मिक ग्रंथ जैसे कि "त्रिपिटक" में नरक की विस्तृत व्याख्या मिलती है। इनमें नरक के प्रकार, यातनाओं की प्रकृति, और आत्मा के उद्धार के मार्ग का वर्णन है। बौद्ध मान्यता में आठ मुख्य नरक होते हैं: संजीव नरक, कालसूत्र नरक, रौक नरक, महौ रौक नरक, घात नरक, तपन्त नरक, प्रतापन्त नरक, अविचि नरक।

नरक की अवधि अनन्त नहीं है, जब आत्मा अपने कर्मों का फल भोग लेती है, तब उसे पुनः जन्म लेने का अवसर मिलता है। इसलिए, नरक का अनुभव एक प्रकार का शुद्धिकरण माना जाता है जहाँ आत्मा को उसकी गलतियों का एहसास कराना और उसे पुनः जन्म के लिए तैयार करना है।(11)   

प्रस्तुत चित्र पापात्माओं को नरक में दण्डस्वरुप दिए जाने वाली पीडाओं को दिखाता है। जिसमें लाल या मटमैले हरे रंग की त्वचा वाले भयानक अर्ध-नग्न राक्षसों द्वारा पापात्माओं को विभिन्न प्रकार के दण्ड दिए जा रहे है। उदाहरण के लिए, ऊपरी बाएँ कोने में एक हरा-चमड़ी वाला राक्षस नग्न आकृतियों को पीट रहा है। पास में, एक और असहाय आत्मा एक पेड़ से उलटी बंधी हुई है, जो डर कर देख रही है और अपनी सजाका इंतजार कर रही है। दूसरी ओर, राक्षस आत्माओं को पिघले हुए लावा के एक कुंड में ले जाते हैं। चित्र के निचले तीसरे भाग में एक दृश्य में कब्रिस्तान में लोगों का एक समूह दिखाया गया है, जिनमें से कुछ एक राक्षस से बचने का प्रयास कर रहे हैं। कुछ लोग दया की भीख माँग रहे हैं । पेंटिंग के ऊपरी भाग में नरक के राजा के सामने घुटने टेकते हुए व्यक्ति दिखाई देते हैं, जो एक बड़ी मेज पर बैठे हैं। उनके दोनों ओर परिचारक हैं जो मृतक द्वारा उसके पिछले जीवन में किए गए विभिन्न पापों का आकलन करते हैं।


नरक के चित्रों का आम इंसान पर कई तरह से प्रभाव पड़ता है, जो उनके मनोवैज्ञानिक, भावनात्मक, और सामाजिक दृष्टिकोण पर निर्भर करता है। नरक के चित्र अक्सर भयावहता और पीड़ा को चित्रित करते हैं, जिससे दर्शकों में भय और चिंता उत्पन्न होती  है। चित्रों की विकृत आकृतियाँ जिसमे कई बार सिर और धड अलग अलग जीव से बने होते है, “कभी दो या दो से अधिक भिन्न आकार मिलकर उसी में से एक नया आकार ग्रहण कर लेते हैं। ऐसे में दोनों के अपने–अपने आकार के मूल अर्थ विलुप्त हो जाते हैं अथवा समान प्रमाण के साथ नए अर्थ में संतरित हो जाते हैं।”(12)और अवास्तविक परिदृश्य दर्शकों को मानसिक रूप से अस्थिर और भ्रमित कर दर्शकों में सहानुभूति और दया की भावना उत्पन्न कर सकता है। ये चित्र भय, चिंता, अपराधबोध, और अवसाद पैदा करते हैं, लेकिन साथ ही सहानुभूति, आध्यात्मिक प्रेरणा, और सामाजिक जागरूकता का भी माध्यम हो सकते हैं। इसलिए, इन चित्रों को सही संदर्भ और संवेदनशीलता के साथ समझना और मूल्यांकन करना महत्वपूर्ण है। नरक का चित्रण एक प्रकार की चेतावनी के रूप में कार्य करता है, जो बुरे कर्मों के परिणामस्वरूप मिलने वाले दंड से आमजन को अवगत करता है एवं सत्कर्म करने को प्रेरित करता है।

निष्कर्ष : चित्रांकन की विविध शैलियों के साथ नरक की अवधारणा का प्रस्‍तुतिकरण धर्म की वांछित चेतावनियों और नियमों को अत्‍यंत प्रभावी रूप में व्‍यक्‍त करता है। कलाकारों ने शाब्दिक वर्णन को चित्राकृतियों के माध्‍यम से अपेक्षित प्रभाव उत्‍पन्‍न करने में सफलता प्राप्‍त की है। आरेखन और रंग-संयोजन के आधार पर कलाकारों ने नरक की विविध दशाओं और दण्‍ड-विधान को व्‍यक्‍त किया है। नरक की भयावहता और दण्‍ड की प्रक्रिया प्राणियों को नैतिक और अनुशासित जीवन जीने के लिए प्रेरित करती है। 


सन्दर्भ :
1. डॉ. श्याम भारद्वाज,  समकालीन कला अंक 35, ललित कला अकादमी नई दिल्ली, 2008, पृष्ठ 31
2. सच्चिदानंद सिन्हा, अरूप और आकार, ललित कला अकादमी नई दिल्ली, 2012, पृष्ठ 39 
3. अवधेश मनन, समकालीन कला अंक 17, ललित कला अकादमी नई दिल्ली, 1996, पृष्ठ 15
4. https://www.jstor.org/stable/27793797
5. https://asiasociety.org/new-york/events/symposium-hell-and-back
6. ब्योहार राम मनोहर सिन्हा,  समकालीन कला अंक 17, ललित कला अकादमी नई दिल्ली, 2008, पृष्ठ 26
7. http://factsanddetails.com/world/cat55/sub358/item1449.html
8. File:Lisboa-Museu Nacional de Arte Antiga-Inferno-20140917.jpg - Wikimedia Commons
9. हंसोज्ञेय सहदेव ताम्बे, कला भारती खंड -2, ललित कला अकादमी नई दिल्ली, 2010, पृष्ठ 242
10. https://www.artsy.net/article/artsy-editorial-11-nightmarish-depictions-hell-art-history
11. https://www.metmuseum.org/art/collection/search/826900
12. प्रभाकर बर्वे, कोरा केनवास, ललित कला अकादमी नई दिल्ली , 2016, पृष्ठ 34

शाहिद परवेज़,
सहायक आचार्य, दृश्यकला विभाग, मोहनलाल सुखाडिया विश्विविद्यालय, उदयपुर(राज.)
shahidparvez1970@gmail.com


दृश्यकला विशेषांक
अतिथि सम्पादक  तनुजा सिंह एवं संदीप कुमार मेघवाल
चित्तौड़गढ़ (राजस्थान) से प्रकाशित पत्रिका 
  अपनी माटी (ISSN 2322-0724 Apni Maati) अंक-55, अक्टूबर, 2024 UGC CARE Approved Journal

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