तमिल बाल कथाओं के विविध स्वर
- मधुलिका बेन पटेल

“Yuma Vasuki feels that the children’s literature scene in Tamil is “weak” when compared to languages such as English, Russian, and Malayalam. “I’ve always been drawn to the writing style and narration of Malayalam children’s writers,” he says, adding that in Kerala, there is a collective consciousness to offer children quality literature, as well as an interest in helping them develop into wholesome beings.
“This is lacking in Tamil,” he feels: “We don’t pay attention to children and their world. With a 2,000-year-old tradition, Tamil should have been able to produce an excellent body of work for children. But that is not the case.”[1]
लगभग इसी प्रकार की राय तमिल भाषा में किशोर साहित्य को लेकर है. ‘तमिल में किशोर साहित्य- कुछ नोट्स’में गीता बताती हैं कि तीस या चालीस साल पहले पढ़ने में रूचि रखने वाले बच्चों के लिए तमिल में बहुत सारी किताबें नहीं थीं. हालाँकि, अंबुलिमामा और गोकुलम जैसी पत्रिकाएं छपती रहीं और साप्ताहिक पत्रिकाओं ने किशोरों के लिए विशेष खण्ड प्रकाशित किये, लेकिन इस अवधि के दौरान किशोरों के लिए विशेष रूप से कोई किताब नहीं लिखी गयी. हालाँकि, बच्चों द्वारा पढ़ी जाने वाली और उनमें नैतिकता पैदा करने के लिए लिखी गयी किताबें आती रहीं. लेकिन वे बचपन के अनुभवों या बच्चों की कल्पना और मानसिकता पर ध्यान केन्द्रित नहीं करते हैं. बच्चे के पास कोई भाषा नहीं है. इस श्रृंखला में परमार्थ गुरु और शिष्य वीरपाल कहानियाँ, तेलानी राम कहानियाँ, विक्रमादिथन कहानियाँ, बौद्ध जातक कहानियाँ और अंबुलिमामा और गोकुलम जैसी पत्रिकाओं में प्रकाशित पंचतंत्र कहानियाँ शामिल हैं. 1970 के दशक में मुथुकॉमिक्स, कालकंदु पत्रिका में शंकरलाल की कहानियाँ और 1980के दशक में मायामंद्रक कथा श्रृंखला 10 से 12 वर्ष की उम्र के बच्चों द्वारा पढ़ी जाती थी, लेकिन वे बच्चों के लिए विशेष किताबें नहीं थीं.
तमिल साहित्य की प्राचीनता के सन्दर्भ में जो जानकारी मिलती है वह तमिल बाल गीतों के रूप में प्राप्त होती है. ‘भारतीय भाषाओं में बाल कथा साहित्य के पुरातन स्वरूप का अध्ययन’ लेख में इस बात की जानकारी दी गयी कि प्राचीन तमिल रचनाकारों ने बच्चों के लिए कुछ नीति और कुछ वात्सल्यपूर्ण गीत रचे.
“तमिल बाल गीतों की कवयित्री अब्वैयार ने बालकों को नीति शिक्षा देने के लिए आंति चूड़िकोंडैवेंदम की रचना की. स्वरों के क्रम वार्तालाप शैली में इन्होंनेललित कविताएँ लिखीं. श्री तिरुवल्लुवर के कुछ पद भी वात्सल्यपूर्ण है.इनसे शैशव वर्णन की पिल्लै तमिल साहित्यिक विधा शुरू हुई. बाल पहेलियों के लिए तमिल में पिशी संज्ञा है. कत्विगलै नडक्कुम (चाँद को मुँह में लटकाए पर्वत चला करता है) आरंभिक तमिल रचनाओं में संस्कृत का परिवर्तित प्रभाव देखने को मिलता है. सर्वश्री पेरिय स्वामी तूरन तीर्णकै, उलगनाथन, नमः शिवाय मुदालिनर, सी. आर. चूड़ामणि, कोत्त्मंगलम सिब्बू भारतीदाशन, देशिक विनायक पिल्लै तंबि, श्रीनिवासन, तमिलगन, तिरुचित्र वासुदेवन, रंगराजन, पित्तामूर्ति, नारा नाचियाप्प्न, अखिलम संत दण्डपाणी आदि ने रोचक एवं प्रेरक बाल साहित्य रचा. कुलदै कविंडर (बालकों के कवि) के रूप में श्री ए. एल. वलिय्प्पा ने मधुर सरस गेय गीत लिखे.”[2]
बाद के दिनों में बच्चों के लिए अनुभवों से भरी जानकारियों की ओर लोगों का ध्यान जाने लगा. तमिल भाषा में बाल संसार सिरे से नदारद है, ऐसा नहीं कहा जा सकता. गीता जी ने इसी बात की ओर इशारा किया है. वे कहती हैं कि हम यह नहीं कह रहे कि बच्चों के पढ़ने के लिए किताबें नहीं हैं. बेबसाईट पर अपने बचपन की यादें दर्ज करने वाले कई लोगों ने उल्लेख किया है कि बच्चे, विशेष रूप से 10 वर्ष से अधिक उम्र के बच्चे, कन्निथ आइसलैंड, कुमुधाम के प्रोफ़ेसर मित्रा, कल्कि और सैंथिलियन के ऐतिहासिक उपन्यास , भाक्यम रामासामी के अप्पुसामी और सीतापट्टी देवन के जासूस जैसे कार्टून पढ़ कर बड़े हुए हैं.पुम्बा थन्गादुरई के लेखन, बहुत से लोगों को रंगराजन के काम और उन्होंने जो पढ़ा वो सब याद है.
तमिल भाषा में कथाओं और साहित्य के मद्देनजर एक बात अब कही जा सकती है कि पिछले कई वर्षों इस बात की आवश्यकता महसूस की जाने लगी है. तमिल भाषा में बाल कथाओं की रचना के साथ साथ उनके लिए अनुवाद का काम भी बेहतर ढंग से होने लगा है.गीता जी आगे जानकारी देती हैं कि पिछले बीस वर्षों में किशोर साहित्य की दुनिया में कुछ बदलाव आये हैं. बच्चों की पत्रिकाओं की संख्या में वृद्धि हुई है और निजी स्वयं सेवी समूह और ग़ैर सरकारी संगठन बच्चों में पढ़ने की आदत विकसित करने के लिए काफी प्रयास कर रहे हैं. तमिलनाडु सरकार ने भी पिछले दो वर्षों से ऐसी पहल शुरू की है. बाल श्रम शिविरों और विद्यालयों में शुरू हुए इन प्रयासों के कारण आज अनेक पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं.
तमिल बाल कथाओं की दुनिया में डॉ पी आर वासुदेवन ‘शेष’ की पुस्तक ‘तमिल की बाल कथाएं’ विशेष महत्त्व रखती है. यह अनुदित बाल कथाओं का संग्रह है जिसमें तमिल बाल कथा रचनाकार मोहन चक्रवर्ती, मु. मुरुगेश, देवी नाच्चियप्प्न, सी. राजगोपालचारी एवं स्वयं वासुदेवन ‘शेष’ द्वारा रचित तमिल बाल कथाएं शामिल हैं.इनमें शामिल बाल कथाओं में प्रेरणार्थक कहानियाँ हैं. इन कहानियों में प्रकृति से बच्चों के सामीप्य को भरपूर जगह मिली है. वर्तमान विश्व में लगातार होते बदलाव को भी रेखांकित किया गया है. कोरोना महामारी के दौरान बच्चों के ऊपर पड़ने वाले मानसिक प्रभाव को भी दर्शाया गया है. वृक्षारोपण की आवश्यकता को नये सिरे से रोचक कहानियों में ढाल कर रचा गया है, ताकि बच्चे महसूस कर सकें कि वृक्ष उनके और सम्पूर्ण मानव जाति के लिए कितने महत्वपूर्ण हैं. सोशल मीडिया का बच्चों द्वारा सार्थक प्रयोग किस प्रकार किया जा सकता है यह नए ताने बाने में बुना गया है.
इस संग्रह में कुल 25 तमिल बाल कथाओं को शामिल किया गया है. पहली कहानी ‘पुली वरद...पुली वरद’ कहानी अर्थात ‘बाघ आया...बाघ आया...’ के लेखक मोहन चक्रवर्ती हैं. इसमें अपने मजे के लिए झूठ न बोलने का सन्देश दिया गया है. यह कहानी अपने मूल भाव एवं सन्देश के साथ अन्य भाषाओँ की बाल कहानियों में भी शामिल है.एक अन्य तमिल कहानी ‘विरदक आयतद नम्ब्रकल’ (दोस्तों को दावत में आमंत्रण’ में लेखक ने पशु पक्षियों के चरित्र के सहारे कहानी गढ़ा है. वे जानते हैं कि बच्चों का मन प्रकृति के बेहद नजदीक होता है. इसमें केकड़े और मेंढ़क के गलत इरादों को कोडई मछली द्वारा कैसे नाकामयाब किया गया, यह दिखाया गया है. इस कहानी से बच्चों को यह शिक्षा मिलती है कि किसी के प्रति गलत इरादे नहीं रखने चाहिए. यदि कोई ऐसा कर भी रहा है तो उसे किस प्रकार सतर्कता से भाँप कर नाकामयाब कैसे किया जाता है यह कोडई मछली से सीखने योग्य है. इस कहानी के रचयिता मु. मुरुगेश हैं.
मोहन चक्रवर्ती की एक अन्य कहानी ‘बुद्धिशाली मान’ जिसका अनुवाद ‘चतुर हिरण’ के नाम से डॉ वासुदेवन ‘शेष’ ने किया है. यह कहानी भी बच्चों को रक्षात्मक ज्ञान देती है. देवी नाच्चीयप्प्न की कहानी ‘मरंगल पेसिनाल’ अद्भुत बाल कहानी है जो प्रकृति के सुरक्षा से जुड़ी है. अपने जीवन के लिए मनुष्य वृक्षों पर ही निर्भर है और अपनी सुविधा के लिए उनका ही लगातार विनाश करता आ रहा है. इस कहानी में इसी बात को रेखांकित किया गया है. अभि अपने पापा से कहता है कि पापा पेड़ों को मैंने बोलते हुए सुना है.
“पहला पेड़ – यह मनुष्य सभी बेचारे हैं इनके घर के चारों तरफ कोई जगह नहीं है और कोई पेड़ भी नहीं है इसलिए सुबह के समय यह देख कर और दौड़ कर हमारे पास आते हैं.
दूसरा पेड़ (थोड़ा क्रोध से)बोला – वे बेचारे क्यों ? हम जैसे कई पेड़ों को काट कर उन्होंने ही नष्ट किया है. वषों शुद्ध वायु न होने के कारण वे यही मनुष्य हैं.
अगला पेड़ – एक ओर वे पेड़ रोपण करते हैं दूसरी ओर स्कूल का विस्तार करने के लिए पेड़ काटते हैं. इन पर विश्वास नहीं किया जा सकता.”[3]
इसी प्रकार एक अन्य तमिल कहानी ‘अंबान अनिल’ अर्थात ‘प्यारी गिलहरी’ जीवों के प्रति दया के भाव को अभिव्यक्त करती है.
“गोकुल ने गिलहरी के जन्में चूजे को हाथ में ले कर पुचकारा. संध्या एक कटोरी में दूध भर लायी साथ ही कपास भी.”[4]
यू ट्यूब के सार्थक प्रयोग को लेकर लिखी गयी कहानी ‘यू ट्यूब कुट्टीस’ (यू ट्यूब के नौनिहाल) वृक्षारोपण के महत्त्व को लेकर लिखी गयी है. सभी सहपाठियों की मदद से वर्ष में 3500 पेड़ लगाने की योजना बनायी गयी है. हम सभी जानते हैं कि पेड़ जीवन के लिए कितने महत्वपूर्ण हैं. बच्चों में बचपन से ही इस बात की जागरूकता होनी चाहिए. यह कहानी इसी बात के मद्देनजर रची गयी है. कहानी ‘आओ मुकाबला करें’प्रतियोगिताएं में हिस्सा लेने के लिए बच्चों को प्रोत्साहित करती है.
इस संग्रह में कोरोना को लेकर कई कहानियाँ लिखी गयी हैं. लॉकडाउन ने बच्चों को भी सतर्क कर दिया गया कि किन बचाव के सहारे सुरक्षित रहा जा सकता है. कहानी ‘किशोर और कोरोना’देवी नाच्चियप्प्न द्वारा लिखी गयी है. इस भयावह महामारी के समय में अस्पतालों में किस प्रकार की स्थिति थी और इन सब स्थितियों के कारण बच्चों की मानसिक अवस्था पर क्या प्रभाव पड़ा था इस बात को भी इस तमिल बाल कहानी में जगह दिया गया है. एक अन्य कहानी ‘कोरोना नल्लद’ में उन बच्चों के बारे में लिखा गया है जिन्हें बाहर आने जाने की मनाही थी. लिहाजा, उन्हें समय काटने के लिए अधिकांश समय टी. वी. पर निर्भर रहने के लिए वे मजबूर हो गये. कहानी का यह हिस्सा बताता है कि लगातार टी. वी. के कारण बच्चों में मानसिक परेशानी बढ़ने लगी थी.
“अरे...मैं आप को बोलता हूँ – टी. वी. बंद करो. सुबह से रात तक शोर शराबे को सुन-सुन कर मेरे कान में दर्द होता है ...अभिनय ने कविता से कहा.”[5]
देवी नाच्चियप्प्न की अन्य कहानी ‘अम्बउडन आसियरक’ (आदरणीय अध्यापक जी को ...) भी कोरोना में बच्चों की मनः स्थिति को दर्शाने वाली बाल कहानी है. अपने भाषा-भाषी क्षेत्र में न होने के कारण बच्चों को कितनी समस्याओं का सामना करना पड़ा यह इस कहानी से पता चलता है.इसमें एक बच्चा अपने अध्यापक को पत्र लिखता है जिसमें वह स्कूल खुलने का इन्तजार कर रहा होता है.उस समय सब कुछ बंद होने के कारण खाने-पानी की भी समस्या से लोग जूझ रहे थे.
“हमारे विद्यालय में पढ़ने वाले विद्यार्थी भी स्नेही बने. जब वे इतने खुश हुए तो कहीं से अदृश्य कोरोना आ गया. जलिया एक हप्ते से स्कूल से दूर है. फिर बहुत बोरिंग. मैं यह जानने के लिए उत्सुक था कि स्कूल कब खुलेगा...मैं हिंदी पढ़ लिख नहीं सकता. यहाँ कोई तमिल स्कूल नहीं है . दोपहर का भोजन भी नहीं है.” [6]
इसी प्रकार इस संग्रह में ‘ फोटो प्रतियोगिता’, वर्षा के विचार’, ‘मूक प्राणी’, ‘कुचुपालयम के बच्चे’, ‘सच्चा दोस्त’, ‘मुल्ले वंददा’, ‘आयुदगल पूजै’(आयुध पूजा), ‘उन्मेयान नम्बन (सच्चा दोस्त), ‘मुत्तुओडै कदै’ (मोती कथा’, ‘सौदरगल औडे दोषम (संगति का दोष), निखिल की परीक्षा , मोंटी और बंटी का पिकनिक तमाशा, सच्चा शिष्य’ आदि अन्य तमिल कथायें हैं जिनके लेखक सी राजगोपालचारी, देवी नाच्चियप्प्न और वासुदेवन जी हैं . इन सब में बच्चों के मनोरंजन के साथ ज्ञान का भी पूरा ध्यान रखा गया है. इस पुस्तक की भाषा हिंदी रखी गयी है. यह मूल तमिल भाषा में रचित कहानियों का हिंदी अनुवाद है. इसमें कहीं-कहीं अंग्रेजी भाषा के शब्दों का भी प्रयोग है. बच्चों के लिए कुट्टी (तमिल) का भी प्रयोग है. इसके अनुवाद के सन्दर्भ में भूमिका में स्वयं अनुवादक वासुदेवन जी लिखते हैं, “तमिल की इन बाल कथाओं को दूसरे प्रदेश के पाठक वृन्द भी पढ़ कर आनंद ले सकेंगे और दो भाषाओं में साहित्यिक आदान प्रदान भी कायम हो सकेगा.”[7]कुल मिला कर यह संग्रह पठनीय है. इससे तमिल भाषा में रचित बाल कथाओं की जानकारी मिलती है.
सन्दर्भ :
[1]‘Tamil writer Yuma Vasuki on why children’s literature in Tamil needs more magic’ Published 19 june 2024 AkilaKannadasanhttps://www.thehindu.com/children/tamil-writer-yuma-vasuki-on-why-childrens-literature-in-tamil-needs-more-magic/article68303271.ece
[2]‘भारतीय भाषाओं में बाल कथा साहित्य के पुरातन स्वरूप का अध्ययन’- अनुपमा तिवारी डॉ ओम प्रकाश द्विवेदी Review of Research, Volume -12 Issue-3 December-2022
[3]डॉ पी आर वासुदेवन : तमिल की बाल कथाएं, रूह से पब्लिकेशन, सं 2022 पृष्ठ संख्या 25
[4]वही, पृष्ठ संख्या 28
[5]वही, पृष्ठ संख्या 46
[6]वही, पृष्ठ 52, 54
[7]वही, सं भूमिका
मधुलिका बेन पटेल
बाल साहित्य विशेषांक
अतिथि सम्पादक : दीनानाथ मौर्य
चित्तौड़गढ़ (राजस्थान) से प्रकाशित पत्रिका
अपनी माटी (ISSN 2322-0724 Apni Maati) अंक-56, नवम्बर, 2024 UGC CARE Approved Journal
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