- प्रियंका
शोध सार : भारत एक ऐसा अद्भुत देश है जहाँ की परम्परा, सभ्यता-संस्कृति और ज्ञान की धारा अतिप्राचीन है, इस दृष्टि से अन्य देशों की सभ्यता-संस्कृति की बात करें तो ना जाने कितनी सभ्यताएं और संस्कृतियाँ काल के गाल में समा गईं किन्तु भारतीय ज्ञान परम्परा, सभ्यता, संस्कृति, मानवीय मूल्य और उसके आदर्श पीढ़ी-दर-पीढ़ी हजारों सालों से परम्परा के रूप में नदी की धारा के समान प्रवाहमान हैं जिससे उसमें जीवन्तता बनी हुई है, जब हम भारतबोध की बात करते हैं तो उसमें भारतीय मूल्य और उसके आदर्श ही ध्वनित होते हैं जो कि विश्व कल्याण की अवधारणा पर टिके हैं। ‘सर्वे भवंतु सुखिन:, सर्वे संतु निरामया’ (सभी सुखी हों, सभी रोगमुक्त हों), ‘अयं निज: परोवेति, गणना लघुचेतषाम, उदार चरितानां तु वसुधैव कुटुंबकम्’ (अपना पराया छोटे चित्त्त वाले लोग करते हैं, उदार चित्त वाले पूरे विश्व को अपना परिवार मानते हैं), यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवता (जहाँ स्त्रियों की पूजा होती है, वहां देवता निवास करते हैं) ये सब विचार भारतीय मनीषियों की ही देन हैं और इन विचारों से ही भारतबोध बनता है, बोध मात्र जानकारी भर नहीं होता अपितु वह संस्कार होता है और इस संस्कार को आत्मसात करने वाले को ही भारतबोध हो सकता है, भारतबोध भारत के वे अनुभूत तथ्य और सत्य हैं जिसमें भारतीय मानस की सामूहिक चेतना प्रकट होती है। एक प्रकार से भारतबोध भारतीय परम्परा और संस्कृति का ही चैतन्य विस्तार है। अत: भारतबोध भारत की परम्परा और संस्कृति का ही बोध है, आज भारतीय मानस इस बोध से दूर जा रहा है, ऐसे में हमें यह देखना होगा कि एनीमेशन हिंदी सिनेमा की शुरुआत कैसे हुई?
क्या उसमें भारतीय ज्ञान परम्परा का बोध है ? एनीमेशन सिनेमा भारतीय परिवेश को चित्रित करने में कितना सफल हुआ है? इस शोध लेख में हम भारतीय
परिप्रेक्ष्य में एनीमेशन सिनेमा का अध्ययन करेंगे।
बीज शब्द : सिनेमा, एनीमेशन, परम्परा, संस्कृति, भारत-बोध, आधुनिकता, नैतिक-मूल्य, बाजारवाद, भूमंडलीकरण, ज्ञान, प्रेम, आदि।
मूल आलेख : आज का दौर भूमंडलीकरण का दौर है और इस भूमंडलीकरण के दौर ने विश्वग्राम की ऐसी अवधारणा प्रस्तुत की है जिसमें भारतीय मानस उलझ कर अपनी परम्परा, संस्कृति और ज्ञान की उपेक्षा कर पाश्चात्य संस्कृति की ओर अग्रसर है, उसमें भारतबोध का आभाव है, ऐसे दौर में एनीमेशन सिनेमा ने ऐसी फिल्मों का निर्माण किया है, जिनमें भारतबोध है और वह युवा समाज को अपनी जड़ों से परिचित कराने का प्रयास कर रहा है, आज एनीमेशन सिनेमा ने बच्चों के साथ-साथ बड़ों को भी प्रभावित किया है, भारतीय संस्कृति के दर्शन विभिन्न कलाओं में होते हैं, वासुदेव अग्रवाल के अनुसार -
‘‘भारतीय संस्कृति का दिव्य रूप इस देश के साहित्य, कला, ज्ञान और जीवन के क्षेत्रों में विभिन्नता से प्रकट हुआ है।”1
ठीक उसी प्रकार एनीमेशन सिनेमा में भी भारतीय ज्ञान, परम्परा और संस्कृति के दर्शन होते हैं, जो कि आधुनिक कला का माध्यम है।
सिनेमा एक ऐसा कला माध्यम है, जिसने मानव समाज को सबसे अधिक प्रभावित किया है। सिनेमा का आविष्कार मानव समाज के लिए किसी चमत्कार से कम नहीं है। सिनेमा ने मानव की रचनात्मकता को नई दिशा प्रदान की है और उसकी कल्पना को नए पंख दिए हैं, अन्य कला माध्यमों की तुलना में सिनेमा सबसे अधिक सशक्त मनोरंजन का माध्यम बनकर उभरा है, जिसने आम जनमानस से लेकर बड़े-बड़े विद्वानों को भी अपने प्रभाव में लिया है। नीरा जलक्षत्री के अनुसार, “सिनेमा वस्तुत: उन्नीसवीं सदी का महान आविष्कार है, इस खोज ने मानव-जीवन की कल्पना और रचनात्मक सोच को नई उड़ान दी है। सिनेमा विज्ञान होते हुए भी अपनी अभिव्यक्ति में कलात्मक है और इस कारण आज यह समकालीन समस्त कलाओं में सबसे अधिक सशक्त होने के साथ-साथ सबसे अधिक प्रभावशाली है।”2
सिनेमा अनेक कलाओं का संगम है, इसलिए इसे सामूहिक कला भी कहा जाता है। सुप्रसिद्ध आलोचक डॉ.मैनेजर पाण्डेय ने लिखा है, “आज कल कला की कोई भी चर्चा फिल्म को छोड़कर पूरी नहीं हो सकती। वह आज के युग की सर्वाधिक प्रभावशाली और प्रतिनिधि कला है।...उसमें अभिनेता, निर्देशक, कथाकार, फोटोग्राफर, संगीतकार, गायक, वादक, नर्तक और तकनीकी विशेषज्ञों का सामूहिक योगदान होता है।”3
सिनेमा मात्र मनोरंजन का माध्यम नहीं रहा है। उसने समय-समय पर दर्शक को शिक्षित भी किया है। उसने सामाजिक परिवर्तन में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। इस प्रकार सिनेमा सामाजिक, धार्मिक, आर्थिक तथा राजनैतिक अभिव्यक्ति का सशक्त और रचनात्मक माध्यम है। डॉ. गजेन्द्र प्रताप सिंह के अनुसार- “सिनेमा मनोरंजन के साथ-साथ हमारे देश की संस्कृति, सभ्यता और नए युग को प्रदर्शित करती है। फिल्म ही एक ऐसा माध्यम है, जिसके जरिए लोग हर चीज से प्रभावित होते हैं।”4
इस प्रकार सिनेमा को मैनेजर पाण्डेय ने आधुनिक युग की सामूहिक कला नाम से अभिहित किया है और गजेन्द्र जी सिनेमा को संस्कृति और सभ्यता को प्रदर्शित करने वाला मानते हैं। फिल्में कई प्रकार की होती हैं। जैसे - फीचर फिल्म, डॉक्यूमेंट्री फिल्म टेलीफिल्म, एनीमेशन फिल्म, कार्टून फिल्म और विज्ञापन फिल्म। हमारा शोध लेख एनीमेशन फिल्मों पर आधारित है। आगे हम उसी पर चर्चा करेंगे।
एनीमेशन को हिन्दी में गतिकला या अनुप्राणन कहते हैं, जिसका अर्थ जीवन डालना या प्राण संचार करना होता है। ‘एनीमेशन’ शब्द लैटिन शब्द ‘एनिमो’ और
"एनिमेटियो"
से निकला है, जिसका अर्थ “जीवन प्रदान करना” या जीवंत बनाने की क्रिया है। एनिमो का एक अर्थ आत्मा भी होता है। जिस प्रकार आत्मा के होने से शरीर चलता है। ठीक उसी प्रकार कंप्यूटर के माध्यम से किसी भी कैरेक्टर के अंदर मूवमेंट डालना एनीमेशन है। एनीमेशन एक ऐसी कला है, जिसमें निर्जीव वस्तुओं को गतिशील बनाया जाता है। यह कार्य कंप्यूटर ग्राफिक्स के माध्यम से किया जाता है। “एनीमेशन का काम ड्राइंग तथा तकनीक का सम्मिश्रण है।”5
इस प्रकार एनीमेशन से तात्पर्य निर्जीव वस्तुओं में जीवन देने से है।
एनीमेशन में हम कई सारी इमेज की वीडियो बनाकर उन्हें प्ले करते हैं। उससे एक दृष्टि भ्रम पैदा होता है जिससे हमें ऐसा लगता है जैसे वह चल रहा है। हम कह सकते हैं कि एनीमेशन या अनुप्राणन द्विआयामी(2D)
और त्रिआयामी(3डी) कलाकृतियों की छवियों का भ्रम उत्पन्न करने के लिए तेजी से किया गया सिलसिलेवार प्रदर्शन है। एनीमेशन संवेदनाओं को मूर्त करने की क्षमता रखता है, वह लाइनों और रंगों के माध्यम से भावनाओं और अनुभूतियों को तीव्रता से संप्रेषित करने की ताकत रखता है, विजय वर्मा ने लिखा है-“एनीमेशन फ़िल्में सवाक् हों अथवा अवाक् आपको सामान रूप से प्रभावित करती हैं, आपकी आदिम भावनाओं-प्रेम, करुणा, दया, भय आदि को जगाती हैं।”6
एनीमेशन की शुरुआत पर प्रकाश डालते हुए विजय शर्मा ने लिखा है - “जैसे सिनेमा फिल्म फोटोग्राफिक दृश्यों का संकलन है। ‘दृश्य की निरंतरता’ को कैमरे से पकड़ने के प्रयास के फलस्वरूप एक रोचक प्रयोग के रूप में सिनेमा का आविष्कार हुआ। उसी तरह एनीमेशन का प्रारंभ भी चित्रों को खिसका-खिसकाकर उनका फोटो लेकर और फिर उसे प्रोजेक्ट की सहायता से तेजी से चलाकर दिखाने से हुआ।”7
आज एनीमेशन द्वारा निर्मित फिल्मों का बोलबाला है, वरिष्ठ पत्रकार गुंजन अग्रवाल ने लिखा है- “आज एनीमेशन एक उभरता हुआ उद्योग है। इसने विभिन्न क्षेत्रों, जैसे, ई-शिक्षा, चिकित्सा, मैकेनिकल जानकारी, वास्तुकला-दृश्य, वेब-डिजाइनिंग और मनोरंजन यानी टीवी-प्रसारण, एनीमेटेड फिल्में, कार्टून, कंप्यूटर-गेम, आदि में पैर पसार लिए हैं।”8
भारत में जो एनीमेशन फिल्में बन रही हैं उनमें ज्यादातर फिल्में भारतीय ज्ञान परम्परा और उसकी संस्कृति की संवाहक हैं, भले ही एनीमेशन सिनेमा बच्चों को केंद्र में रखकर बनाया जाता है और मनोरंजन के माध्यम से उन्हें शिक्षा दी जाती है, ऐसे में बचपन से ही वे भारतीय मूल्य दृष्टि को आत्मसात करते चलते हैं,
किन्तु अब एनीमेशन सिनेमा हर
उम्र
के लोगों को प्रभावित करता है । भारत की अपनी एक समृद्ध परम्परा है, उसके अपने आदर्श और नैतिक मूल्य हैं, भारत को यदि समझना है तो हमें पौराणिक ग्रंथों को देखना होगा। रामायण और महाभारत ऐसे ग्रंथ हैं जिनमें भारतीय बोध समाया हुआ है और एनीमेटेड सिनेमा ने पौराणिक कथाओं पर फिल्मों को बनाया है। यह सिनेमा हमें अपनी जड़ो से जोड़ने का प्रयास कर रहा है, इसमें भारत के रहन-सहन, पहनावा, खान-पान, भाषा, मानवीय मूल्य, आदि को सिनेमा के जरिये पर्दे पर उतारा है, संबंधों में मौजूद संवेदनशीलता, बुराई पर अच्छाई की विजय पताका, बंधुत्व की भावना, बड़ो का सम्मान, परिवार, मातृत्व, आदि भारतीय बोध का हिस्सा हैं, आज हम पाश्चात्य संस्कृति से प्रभावित हो रहे हैं ऐसे में एनीमेशन सिनेमा मनोरंजन करते हुए भारतीय ज्ञान परम्परा और उसके नायकों से परिचित कराने का काम कर रहा है।
आज भारतीय समाज विदेशी मानसिकता के साथ जी रहा है। वह बाजारवाद के चंगुल में फंसा हुआ है। भूमंडलीकरण के नाम पर भारत की संस्कृति को कम आँका जा रहा है, वह भारतीय ज्ञान और परम्परा के तप, साधना, योग, दर्शन आदि को ढोंग मान रहा है, ऐसे लोगों के लिए वासुदेव ने लिखा है - “जो लोग भारतीय दृष्टि-कोण के संबंध में केवल बाहरी ज्ञान रखते हैं उन्हें उसमें केवल अनेक सम्प्रदाय, मत, रूढ़ि-रीतियाँ, तप और साधना के नियम, योग, दर्शन आदि ऐसी अंधविश्वास-पूर्ण, पुराणपंथी वस्तुएँ मिलती है कि वे उनकी ऐहिक-तथा लौकिक- जीवन-सम्बन्धी उपयोगिता को एकाएक समझ नहीं पाते हैं।’’9
आधुनिक पाश्चात्य ज्ञान परंपरा भौतिकवादी और भोगवादी है और भारत का युवा अपनी ज्ञान-विज्ञान की परम्परा से मुंह मोड रहा है और पश्चिमी ज्ञान का अंधानुकरण कर रहा है। आधुनिक पश्चिमी ज्ञान-विज्ञान ने भौतिक दृष्टि से खूब उन्नति की है किन्तु मानसिक रूप से उन्नति करने से वंचित रहा है। मानसिक खुशहाली की चाभी भारत के आध्यात्मिक ज्ञान में है।
आज हमें शिक्षा में भारतीय दृष्टि की आवश्यकता है। भारतीय पुरातन ज्ञान, परम्परा व संस्कृति से समन्वित शिक्षा भारतीय मूल्यों
की वाहक बनेगी क्योंकि “भारतीय ज्ञान परम्परा अद्वितीय ज्ञान और प्रज्ञा का प्रतीक है, जिसमें ज्ञान, लौकिक और पारलौकिक, कर्म और धर्म तथा भोग और त्याग का अद्भुत समन्वय है।”10
वहीं रामधारी सिंह दिनकर ने भारतीय संस्कृति के सन्दर्भ में लिखा है- “भारत की संस्कृति किसी एक जाति या धर्म की संस्कृति नहीं है, वह मिली-जुली संस्कृति है और जिसे हिंदुस्तान में हम सामासिक संस्कृति या कंपोजिट कल्चर कहते हैं।”11
अत: मानव निर्मित समाज में संस्कृति का जन्म हुआ इसलिए संस्कृति समाज की आत्मा एवं उसका व्यक्तित्व होती है। भारतीय परंपरा और संस्कृति विविधताओं का सम्मान करती है और उनमें एकता स्थापित करने का प्रयास करती है।
एनीमेशन और कार्टून फिल्मों का निर्माण बच्चों के लिए किया जाता है। इसका निर्माण करने के लिए आधुनिक तकनीक का सहारा लिया जाता है। ज़्यादातर इनके विषय काल्पनिक कथाएँ, दंत कथाएँ, पुराण, प्राचीन घटनाएँ आदि पर आधारित होते हैं। आज एनीमेशन उद्योग सिनेमा की दुनिया में एक विशाल उद्योग बन गया है। वॉल्ट डिज़्नी की अग्रणी भावना और नवाचार के प्रति प्रतिबद्धता ने एनीमेशन उद्योग में क्रांति ला दी है। ऐसी कई कंपनियाँ हैं जो एनीमेशन फिल्में बनाती हैं। उन कंपनियों में मुख्य रूप से डिज्नी, पिक्सर, स्टूडियो गिबली और विट स्टूडियो का नाम लिया जा सकता है। वॉल्ट डिज़नी कंपनी इंडिया, जिसे केवल डिज़नी इंडिया के नाम से भी जाना जाता है, वॉल्ट डिज़नी कंपनी की भारतीय सहायक कंपनी है जिसका मुख्यालय मुंबई में है। देश के पहले एनीमेशन स्टूडियो को स्थापित करने के लिए और भारतीय एनीमेटरों को प्रशिक्षित करने के लिए फिल्म डिवीजन ऑफ इंडिया ने अमेरिका के डिज्नी स्टुडियो से भारतीय मूल के क्लेयर वीक्स को बुलाया गया था। वर्ष
1956 में मुंबई में पहला एनीमेशन स्टूडियो शुरू हुआ था। भारत ने संयुक्त रूप में
1957 में एनीमेटेड फिल्म 'द बनयान डीयर' बनाई थी। यह फिल्म बौद्ध धर्म की जातक कथा पर आधारित थी। इस कथा द्वारा आत्मा की उदारता, दयालुता और त्याग भावना के महत्व को दर्शाया गया है। यह फिल्म भारतीय मूल्यों को प्रदर्शित करती है। क्लेयर वीक्स ने भारत में एक समूह को एनीमेटेड प्रोडक्शन में सक्षम बनाया। इस समूह में जीके गोखले, राम मोहन, एचआर दोराईस्वामी(कैमरा सहायक), एसएस वर्मा(एनीमेशन कैमरामैन), एसएल बादामी(उप मुख्य निर्माता) और एज्रा मीर(मुख्य निर्माता) शामिल थे। फिल्म के निर्देशक गोविंद सरैया, शांति एस वर्मा और अहमद लतीफ थे। राम मोहन को एनीमेशन के जनक के रूप में जाना जाता है। इसके उपरांत विजया मुले और भीमसेन के निर्देशन में
1974 में ‘एक, अनेक और एकता’ शीर्षक से फिल्म बनी थी। यह फिल्म एकता के मूल्यों पर आधारित थी।
इंडस्ट्री से जुड़े और कंटेट राइटर अभिषेक शुक्ला कहते हैं, “पिछले एक दशक में भारतीय एनीमेशन इंडस्ट्री में बहुत कुछ बदल गया है। पहले कंटेंट का मतलब आउटसोर्सिंग होता था। यानी सुपरमैन, स्पाइडर मैन जैसे आयातित पात्र ही हम भारतीय दर्शकों को परोसते थे। इसकी वजह से उनकी लोकप्रियता एक दायरे तक सीमित थी। लेकिन जब से इंडस्ट्री ने भारतीय पात्रों को कंटेंट का हिस्सा बनाया है, सब कुछ बदल गया है।”12
कहा जाता है कि ‘द बनयान डियर’ भारत की पहली एनीमेशन फिल्म नहीं थी। भारतीय सिनेमा के पिता दादा साहिब फालके ने ही सर्वप्रथम सन्
1915 में ‘अगकाद्यांची मौज’ नाम से एक शॉर्ट एनीमेशन-फिल्म बनाई थी किन्तु अब वह अप्राप्य है। सन्
1934 में गुनमॉय बनर्जी ने ‘द पी ब्रदर्श’ नामक एनीमेशन-फिल्म का निर्माण किया। यह साढ़े तीन मिनट की पहली ब्लैक एण्ड ह्वाइट एनीमेशन-फिल्म थी। इसी वर्ष पूना की प्रभात फिल्म कम्पनी ने ‘जम्बू काका’ नामक एनीमेशन फिल्म बनाई थी। इस अवधि में बनी और भी अनेक एनीमेशन फिल्में हैं। जैसे- कोलापुर सिनेटून्स द्वारा निर्मित बाकम भट्ट, मोहन भवानी द्वारा निर्देशित लफंगा लंगूर(1935),
जी.के. गोखले द्वारा निर्देशित सुपरमैन्स मिथ(1939),
मन्दार मलिक द्वारा निर्देशित आकाश-पाताल(1939)
आदि। भारत की पहली एनीमेटेड टेलीविज़न शृंखला सन्
1986 में ‘गायब आया’ प्रसारित हुई। इसका निर्देशन सुधात्सव ने किया था।
भारतीय ज्ञान के मूल में करुणा, अहिंसा, क्षमाशीलता, आत्म परिष्कार, प्रेम, धर्म और ईश्वर में आस्था, नियति में विश्वास और मृत्युबोध है। ‘द बनयान डियर’ एक ऐसी ही फिल्म थी जसमें करुणा, अहिंसा, क्षमाशीलता और आत्म परिष्कार जैसे भारतीय मूल्यों को प्रदर्शित करने का प्रयास किया गया था, इसका कथानक जातक बौद्ध कथा पर आधारित था जिसमें एक सुनहरा हिरण था जो कि अपने झुंड का नेता था और वह अपने त्याग और समर्पण से राजा का ह्रदय परिवर्तन कर देता है, राजा शिकार का शौकीन था, उसे हिरण का मांस खाना पसंद था,
इसलिए वह उनका शिकार करता था, सभी हिरण उससे भयभीत रहते थे, एक दिन जब एक हिरण को मारने की बारी आती है तो सुनहरा हिरण उसे बचाने के लिए स्वयं के प्राण त्यागने को कहता है, इस पर राजा कहता है कि तुम ऐसा क्यों कर रहे हो ? इस पर हिरण कहता है- “मैं एक माँ को उसके बच्चे से अलग नहीं कर सकता और किसी को तो जीवन देना होगा तो क्यों न मैं दूँ।”13
उसके त्याग से राजा का ह्रदय परिवर्तन हो जाता है।
भारतीय ज्ञान परम्परा त्याग और समर्पण जैसे मूल्यों को आत्मसात करती है।
सच यह भी है कि आज हम अपनी ज्ञान परंपरा और संस्कृति को भूलते जा रहे हैं और यह सब पाश्चात्य की बाजारवाद केन्द्रित मूल्यों के कारण हुआ है,
समाजशास्त्री ल्योतार ने कहा है कि, “संस्कृति में उच्च मानव मूल्यों के प्रति उपेक्षा-भाव बाजारवाद की देन है।“14
तिब्बती आध्यात्मिक गुरु दलाई लामा ने कहा था कि आधुनिक भारतीय प्राचीन विचारों की उपेक्षा कर रहे हैं। आधुनिक भारतीय बहुत पश्चिमी हैं। भारतीयों को भारत के प्राचीन ज्ञान पर अधिक ध्यान देना चाहिए। आधुनिक भारतीयों को अपने ज्ञान को नहीं भूलना चाहिए। संस्कृति किसी समाज में गहराई तक व्याप्त गुणों के समग्र रूप का नाम है जो उस समाज के सोचने, विचारने, कार्य करने, खाने-पीने, बोलने, नृत्य, गायन, साहित्य, कला, वास्तु आदि में परिलक्षित होती है। संस्कृति का वर्तमान रूप किसी समाज के दीर्घ काल तक अपनाई गई पद्धतियों का परिणाम होता है। भारत इस धरती पर एकमात्र देश है जो आधुनिक शिक्षा, विज्ञान और प्रौद्योगिकी को जोड़ सकता है। हमें धार्मिक विश्वास को छुए बिना शिक्षा, प्राचीन भारतीय ज्ञान के आंतरिक मूल्यों को शामिल करना चाहिए। आर्य भट्ट, चरक, कनाद, नागार्जुन, हर्षवर्धन, अगस्त्य, भारद्वाज ऋषि, शंकराचार्य, आचार्य अभिनव गुप्त, स्वामी विवेकानंद के साथ सैकड़ों महापुरुष हुए हैं जिन्होंने अपने ज्ञान से विश्व की ज्ञान परम्परा को समृद्ध किया है। हमारी प्राचीन भारतीय संस्कृति समूचे विश्व की संस्कृतियों में सर्वश्रेष्ठ और समृद्ध संस्कृति है।
भारत के पौराणिक पात्रों को आधार बनाकर कई फिल्में बनाई गई हैं। इस दृष्टि से देखा जाए तो हनुमान, बाल गणेश, कृष्ण, भीम, राम, घटोत्कच, अर्जुन जैसे पात्र भारतीय एनीमेशन इंडस्ट्री के असली नायक हैं। बच्चों को इन पात्रों ने प्रभावित भी खूब किया है। इन फिल्मों को देखकर बाल-मन अपनी संस्कृति को समझता भी है और उसका सम्मान भी करता है। ऐसी अनेक एनीमेटेड फिल्में हैं जो भारतीय संस्कृति की वाहक हैं। सन्
1992 में जापान के सहयोग से ‘रामायण : द लेजेण्ड ऑफ प्रिंस राम’ निर्मित हुई थी। यह फिल्म ‘रमायाण’ को आधार बनाकर बनाई गई थी। इस फिल्म के निर्देशक और निर्माता यूगो साको थे। रामायण और महाभारत भारतीय ज्ञान परम्परा और संस्कृति के सबसे प्रसिद्ध और लोकप्रिय ग्रंथ हैं। पहली भारतीय थ्री-डी कंप्यूटर एनीमेटेड फिल्म उमा गणेश राजा द्वारा निर्देशित ‘पाण्डव : द फाइव वॉरियर्स’ थी। यह वर्ष
2000 में रिलीज हुई थी। इसी प्रकार क्रिएटिव डायरेक्टर रोजर डोंडिस की द एडवेंचर्स ऑफ तेनालीराम(2003),
वीजी सामंत द्वारा निर्देशित ‘हनुमान’(2005),
शंभू एस फाल्के की ‘दी लेजेण्ड ऑफ बुद्ध’(2006),
पंकज शर्मा की
‘बाल हनुमान : रिटर्न ऑफ द डेमोन’(2010),
बाल हनुमान 2 :
रिटर्न ऑफ द डेमोन’, बाल हनुमान 3: रिटर्न ऑफ द डेमोन’बाल हनुमान, बाल गणेश(2007),
बाल गणेश-2(2009),
विजय एस. भानुशाली की बाल गणेश-3
(2017), अनुराग कश्यप की ‘रिटर्न ऑफ हनुमान’(2007),
विमल शाह की दशावतार(2008),
सिंगीतम श्रीनिवास राव की घटोत्कच : दी मैजिक ऑफ मास्टर(2008),
धवला सत्यम की लव-कुश : दी वॉरियर ट्विन्स(2010),
चेतन देशाई की ‘रामायण : द इपिक’(2010),
अर्णव चौधरी की ‘अर्जुन : दी वॉरियर प्रिंस(2012),
कौशल कांतिलाल गदा एवं धवल जयन्तीलाल गदा की ‘महाभारत’(2013),
विजय एस. भानुशाली और सुमिता मारू की घटोत्कच-2(2013),
हैरी बावेजा की ‘चार साहिबज़ादे’(2014),रोहित वैद की ‘महायोद्धा राम’(2016),
रुचि नारायण की ‘हनुमान : द दमदार’(2017),
राजीव चिलका की 'हनुमान वर्सेज महिरावण'(2018),
शरद देवराजन, जीवन जे. कांग और चारुवी पी. सिंघल की 'द लीजेंड ऑफ हनुमान' आदि एनीमेशन-फिल्में उल्लेखनीय हैं।
‘रामायण : द लेजेण्ड ऑफ प्रिंस राम’ राम के जीवन पर आधारित फिल्म है, राम भारतीय मूल्यों और आदर्शों का मूर्त रूप हैं, भारतीय ज्ञान परम्परा पहले विनय करती है, इसलिए राम भी पहले रावण से विनय करते हैं और जब वह विनय से नहीं मानते हैं तो अपना शौर्य बतलाते हुए उसका वध भी करते हैं, दाम्पत्य प्रेम का आदर्श रूप हमें राम और सीता के जीवन में दिखाई देता है। भारतीय ज्ञान परम्परा में परिवार, एक दूसरे के प्रति अपार स्नेह, संवेदनशीलता, अपने बड़ों का सम्मान है जबकि आधुनिक पश्चिमी सभ्यता स्व केन्द्रित है, इस संदर्भ में कृष्ण दत्त पालीवाल ने लिखा है-“आधुनिक पश्चिमी सभ्यता दो सिद्धांत वाक्यों- ‘जिसकी लाठी उसकी भैंस’(माइट इज राइट) और ‘समर्थतम का अस्तित्व’(सर्वाइवल आफ दि फिटेस्ट) पर टिकी है।”15
जबकि भारतीय ज्ञान परम्परा परोपकारी है, उसमें छीना-झपटी नहीं है, उसमें नैतिकता का बल है, जो कि आत्मबल बनकर उभरता है। भारतीय ज्ञान परम्परा के नायक राम, कृष्ण या हनुमान हमें नैतिकता का पाठ पढ़ाते हैं, वे शूरवीर हैं किन्तु परोपकारिता के मूल्य के संवाहक भी हैं, उनमें अहम् लेश मात्र भी नहीं है।
कृष्ण के जीवन पर आधारित अनेक एनीमेटेड फिल्म बनी हैं, इन फिल्मों के माध्यम से भारतीय बालमन महानायक राम और कृष्ण के जीवन से परिचित होते हैं, इस दृष्टि से ‘कृष्ण : द बर्थ’(2006),
‘कृष्ण माखन चोर’(2006),
‘कृष्ण कंस वध’(2007),
‘कृष्ण बलराम: कल्वक्र शृंखला’, ‘कृष्ण इन वृंदावन’(2007)
आदि फिल्मों को देखा जा सकता है, इनके निर्देशक राजीव चिल्का हैं और ‘कृष्ण और कंश’(2012)
के निर्देशक विक्रम वेटुरी हैं, इन सभी फिल्मों में कृष्ण के जीवन का सिंहावलोकन मिलता है, प्रेम का आदर्श रूप तो कृष्ण और राधा का जीवन है, जिसमें त्याग की पराकाष्ठ है। हम देख रहे हैं कि फिल्मों में आज कल अश्लीलता बढती जा रही है, जो कि भारतीय मानस पर नकारात्मक असर डाल रही है, ऐसे में एनीमेशन सिनेमा एक उम्मीद बनकर उभरा है, जिसने बच्चों को मनोरंजन के साथ भारतीय ज्ञान परम्परा का बोध कराया है, बच्चे देश का भविष्य हैं, ऐसे में यदि वे अपनी जड़ों से जुड़े रहेंगे तभी वे अपनी ज्ञान परम्परा से परिचित हो पाएंगे और उसका सम्मान कर पाएंगे।
निष्कर्ष : ऊपर जिन फिल्मों की चर्चा की गई है उनमें भारतीय ज्ञान परंपरा का बोध है। भारत की संस्कृति और ज्ञान की परम्परा सदैव समाज केन्द्रित रही है। समाज कल्याण उसका मुख्य ध्येय रहा है। एनीमेशन फिल्मों
में भारत की परम्परा और मान्यताओं का पुनरुत्थान नजर आता है। उसमें हमारे प्राचीन संस्कारों व संस्कृति की झलक दिखाई देती है। ऐसे में भारतीय ज्ञान-विज्ञान की परम्परा को स्थापित करने का प्रयास एनीमेटेड सिनेमा कर रहा है। भारतीय ज्ञान वैज्ञानिक दृष्टि पर आधारित है। भारतीय ज्ञान की समस्त प्राचीन परम्पराएँ जैसे तिलक लगाना, कर्णवेध, मुंडन, संस्कार, गंगा में अस्थि विसर्जन, श्मशान जाने के उपरांत स्नान करना, आरती करना, घंटी बजाना, यज्ञ में अग्नि प्रज्वलित करना, शिखा रखना, चरण स्पर्श करना, हाथ जोड़ना आदि सभी के पीछे वैज्ञानिक मान्यताएँ हैं। जो एनीमेटेड फिल्में हैं उनमें ये सभी विशेषता नजर आती हैं।
भारतीय ज्ञान परम्परा का हजारों वर्षों का इतिहास है। इस ज्ञान परम्परा में आधुनिक विज्ञान के बीज भी मौजूद हैं। भारतीय ज्ञान परम्परा ने दर्शन, भाषा, व्याकरण, खगोल विज्ञान, अर्थशास्त्र, वास्तुशास्त्र, सांख्य दर्शन, तर्क विज्ञान, आयुर्वेद, ज्योतिशास्त्र, संगीत आदि क्षेत्र में जो कीर्तिमान स्थापित किए हैं वे आज भी विश्व के लिए आकर्षण का केंद्र बने हुये हैं। ज्ञान और गौरवशाली संस्कृति के कारण ही भारत को विश्व गुरु की संज्ञा से अभिहित किया जाता है। भारत की वैदिक काल की परम्परा तक्षशिला, नालंदा और विक्रमशिला विश्वविद्यालय के रूप में दिखाई देती है। ये सभी भारत की ज्ञान परम्परा के उच्चस्तरीय ज्ञान के केंद्र रहे हैं। इसके साथ ही रामचरितमानस, भगवतगीता जैसे ग्रन्थ भारतीय ज्ञान परम्परा और संस्कृति के वाहक हैं और इन्हीं की प्रतिध्वनि एनीमेटेड सिनेमा में सुनाई देती
है।
सन्दर्भ :
9. वासुदेव अग्रवाल, देश का भारतवर्ष नाम, कल्पना पत्रिका, अगस्त-अक्टूबर 1950, हैदराबाद, पृ. 10
13. https://youtu.be/O-wNQZA3Zx8?si=ms504_o05v74Yprz
14. कृष्णदत्त पालीवाल, दलित साहित्य बुनियादी सरोकार, वाणी प्रकाशन, संस्करण-2021, पृ.82
शोधार्थी, हिन्दी विभाग, डॉ. बी. आर. अंबेडकर विश्वविद्यालय, दिल्ली
priyankabhakuni456@gmail.com, 8470850657
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