आलेख : ओम पुरी : समानान्तर सिनेमा का अद्भूत कलाकार / माधुरी तिवारी

ओम पुरी : समानान्तर सिनेमा का अद्भूत कलाकार
- माधुरी तिवारी
 

        ओम पुरी भारतीय सिनेमा के उन गिने-चुने अभिनेताओं में से एक थे, जिन्होंने अपनी सशक्त अदायगी, बहुआयामी अभिनय शैली और सामाजिक यथार्थवादी किरदारों के माध्यम से हिंदी सिनेमा को नई दिशा दी। उनका जन्म 18 अक्टूबर 1950 को अंबाला, पंजाब (अब हरियाणा) में एक साधारण परिवार में हुआ था। आर्थिक कठिनाइयों के कारण उनका बचपन संघर्षों से भरा रहा, लेकिन अभिनय के प्रति उनके जुनून ने उन्हें राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय (एनएसडी) तक पहुँचाया, जहाँ उन्होंने अभिनय की बारीकियाँ सीखीं। इसके बाद, उन्होंने भारतीय फिल्म और टेलीविजन संस्थान (एफटीआईआई) पुणे से भी प्रशिक्षण प्राप्त किया। 6 जनवरी 2017 को उनका निधन हो गया, लेकिन उनकी विरासत हमेशा जीवंत रहेगी। ओम पुरी की अभिनय शैली भावनात्मक गहराई, वास्तविकता और सहजता से परिपूर्ण थी। उन्होंने समानांतर सिनेमा से लेकर व्यावसायिक फिल्मों तक हर शैली में खुद को साबित किया। वे उन चुनिंदा कलाकारों में से थे, जो अपने किरदार में पूरी तरह ढल जाते थे। उनकी संवाद अदायगी, हाव-भाव और दृढ़ अभिनय ने हर किरदार को जीवंत बना दिया। भारतीय समानांतर सिनेमा में ओम पुरी की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण थी। 1970 और 1980 के दशक में जब हिंदी सिनेमा मुख्यतः व्यावसायिक फिल्मों के इर्द-गिर्द घूम रहा था, तब उन्होंनेआक्रोश” (1980), “अर्ध सत्य” (1983), “तमस” (1987) जैसी फिल्मों में समाज के हाशिए पर खड़े आम आदमी की पीड़ा को पर्दे पर उतारा। उनके अभिनय ने कला सिनेमा को एक नई पहचान दी। ओम पुरी ने केवल भारत में, बल्कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाया।सिटी ऑफ जॉय” (1992), “ईस्ट इज़ ईस्ट” (1999), “चार्ली विल्सन्स वॉर” (2007) और हंड्रेड-फुट जर्नी” (2014) जैसी फिल्मों में उन्होंने बेहतरीन अभिनय किया। ब्रिटिश और अमेरिकी सिनेमा में उनकी पहचान इतनी मजबूत थी कि ब्रुसेल्स फिल्म फेस्टिवल में उन्हें सर्वश्रेष्ठ अभिनेता का पुरस्कार मिला। उनके योगदान को देखते हुए सालून पत्रिका ने एक बार शीर्षक दिया – "क्या ओम पुरी हमारे सबसे महान जीवित अभिनेता हैं?" यह उनके अंतरराष्ट्रीय कद और अभिनय प्रतिभा का प्रमाण है।

1970 और 1980 के दशक का समय भारतीय सिनेमा में एक महत्वपूर्ण बदलाव लेकर आया, जिसे समानांतर सिनेमा या नए यथार्थवादी सिनेमा के रूप में जाना जाता है। यह सिनेमा मुख्यधारा की पारंपरिक, गीत-संगीत और नायक-नायिका केंद्रित फिल्मों से अलग था और समाज की वास्तविक समस्याओं, अन्याय, वर्ग संघर्ष और मानवीय संवेदनाओं को प्रकट करने का माध्यम बना। इसी दौर में ओम पुरी एक मजबूत अभिनेता के रूप में उभरे और समानांतर सिनेमा के प्रमुख चेहरों में से एक बन गए। ओम पुरी ने गोविंद निहलानी, श्याम बेनेगल और केतन मेहता जैसे सशक्त निर्देशकों के साथ काम किया, जो समानांतर सिनेमा को नई ऊँचाइयों तक ले जा रहे थे। उनकी पहली प्रमुख फिल्म "आक्रोश" (1980) थी, जिसमें उन्होंने भीकू लहाण्या नामक एक पीड़ित दलित युवक की भूमिका निभाई थी। इस फिल्म में ओम पुरी ने बिना ज्यादा संवाद बोले अपनी भावनाओं और दर्द को केवल हाव-भाव और आँखों से व्यक्त किया, जिसने दर्शकों को झकझोर कर रख दिया। यह फिल्म भारतीय न्याय प्रणाली और समाज में व्याप्त जातिगत भेदभाव पर एक तीखी टिप्पणी थी। इसके बाद, "अर्ध सत्य" (1983) में उन्होंने एक ईमानदार लेकिन अंदरूनी संघर्षों से जूझ रहे पुलिस अधिकारी अनंत वेलणकर की भूमिका निभाई। इस किरदार में उन्होंने एक ऐसे व्यक्ति की मनःस्थिति को बखूबी दर्शाया, जो भ्रष्ट व्यवस्था के खिलाफ लड़ते-लड़ते अपने भीतर के द्वंद्व में उलझ जाता है। इस फिल्म के लिए उन्हें राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार से नवाजा गया और यह उनके करियर की सबसे यादगार प्रस्तुतियों में से एक मानी जाती है। ओम पुरी नेतमस” (1987), “पार” (1984) औरमिर्च मसाला” (1987) जैसी अन्य महत्वपूर्ण समानांतर फिल्मों में भी दमदार अभिनय किया। उन्होंने कई फिल्मों में हाशिए पर खड़े, संघर्षशील और शोषित लोगों के किरदार निभाए, जिनमें उनकी सहजता और संवेदनशीलता देखने को मिली। उन्होंने यह साबित किया कि नायक केवल सुंदर चेहरे या शारीरिक आकर्षण से नहीं बनता, बल्कि सशक्त अभिनय से भी सिनेमा में अपनी अलग पहचान बनाई जा सकती है।

1980 के दशक के अंत तक समानांतर सिनेमा का स्वर्णयुग धीरे-धीरे समाप्त हो रहा था, और व्यावसायिक सिनेमा एक नए दौर में प्रवेश कर रहा था। इस बदलाव को देखते हुए ओम पुरी ने भी अपनी अभिनय यात्रा को नई दिशा दी और 1990 के दशक में मुख्यधारा के बॉलीवुड में एक चरित्र अभिनेता के रूप में अपनी पहचान बनाई। हालाँकि उन्होंने पहले भी व्यावसायिक फिल्मों में काम किया था, लेकिन 1990 के दशक में उन्होंने अपनी भूमिकाओं में विविधता लानी शुरू की। उन्होंने "गुप्त" (1997), “नरसिम्हा” (1991) औरमकबूल” (2003) जैसी फिल्मों में प्रभावशाली भूमिकाएँ निभाईं। इन फिल्मों में उन्होंने खलनायक और सशक्त चरित्र भूमिकाओं को इतनी सहजता से निभाया कि वे कहानी के अभिन्न अंग बन गए। "गुप्त" में उन्होंने एक रहस्यमय पुलिस अधिकारी की भूमिका निभाई, जो अंत तक दर्शकों को बांधे रखता है। वहीं, "मकबूल" में उनका किरदार कड़ाई और चालाकी से भरा था, जो फिल्म के कथानक में गहराई जोड़ता है। इसके अलावा, उन्होंनेहेरा फेरी” (2000), "मालामाल वीकली" (2006) औरमेरे बाप पहले आप” (2008) जैसी हास्यप्रधान फिल्मों में भी अपनी प्रतिभा दिखाई। उन्होंने यह साबित किया कि वे सिर्फ गम्भीर या नकारात्मक भूमिकाओं तक सीमित नहीं हैं, बल्कि हास्य अभिनय में भी उतने ही सक्षम हैं। उनकी सहजता और संवाद अदायगी ने उन्हें व्यावसायिक फिल्मों में भी लोकप्रिय बना दिया।

ओम पुरी उन कुछ भारतीय अभिनेताओं में से थे, जिन्होंने केवल बॉलीवुड तक सीमित रहने के बजाय अपनी प्रतिभा को अंतरराष्ट्रीय स्तर तक पहुँचाया। उन्होंने कई ब्रिटिश, अमेरिकी और अन्य विदेशी फिल्मों में अभिनय किया और वहाँ भी अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाया। उनकी पहली अंतरराष्ट्रीय स्तर पर चर्चित फिल्मसिटी ऑफ जॉय” (1992) थी, जिसमें उन्होंने एक गरीब रिक्शा चालक हसन की भूमिका निभाई थी। इस फिल्म में उन्होंने अपने किरदार को इतनी सजीवता से निभाया कि दर्शकों को यह विश्वास होने लगा कि वे वास्तव में कोलकाता की झुग्गियों में रहने वाले एक साधारण व्यक्ति हैं। इसके बाद उन्होंनेईस्ट इज़ ईस्ट” (1999) में एक कठोर लेकिन पारिवारिक मूल्यों को महत्व देने वाले पिता की भूमिका निभाई। यह फिल्म ब्रिटिश-एशियाई प्रवासियों के संघर्षों और पारिवारिक संबंधों पर आधारित थी और ओम पुरी की दमदार अदायगी ने इसे और प्रभावशाली बना दिया। अमेरिकी सिनेमा में उन्होंनेचार्ली विल्सन्स वॉर” (2007) में टॉम हैंक्स जैसे बड़े सितारों के साथ काम किया, और अपनी उपस्थिति को मजबूत बनाया। उनकी अन्य चर्चित अंतरराष्ट्रीय फिल्मों में घोस्ट एंड डार्कनेस” (1996), “ हंड्रेड-फुट जर्नी” (2014) औरमाई सन, फैनैटिक” (1997) शामिल हैं। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर उनके योगदान के लिए उन्हें कई पुरस्कारों से सम्मानित किया गया। ब्रुसेल्स फिल्म फेस्टिवल में उन्हें सर्वश्रेष्ठ अभिनेता का पुरस्कार मिला, जिससे यह सिद्ध हुआ कि उनकी अभिनय प्रतिभा किसी भी सीमा में बंधी नहीं थी।

ओम पुरी की अभिनय शैली उनकी गहरी संवेदनशीलता, सहजता और वास्तविकता से परिपूर्ण थी। वे उन अभिनेताओं में से थे, जो अपने किरदारों की भावनाओं को केवल आँखों और हाव-भाव से व्यक्त करने में माहिर थे। उनके अभिनय की यही विशेषता उन्हें भीड़ से अलग बनाती थी। बिना अधिक संवाद बोले भी वे अपने किरदार की पीड़ा, गुस्से, बेबसी और संघर्ष को प्रभावशाली ढंग से दर्शा सकते थे। उन्होंने अपने करियर में कई ऐसी फ़िल्मों में काम किया जो सामाजिक यथार्थवाद को केंद्र में रखती थीं।आक्रोश” (1980) में उन्होंने एक ऐसे दलित युवक की भूमिका निभाई, जिसकी आवाज़ सदियों के शोषण के कारण दबी हुई थी। इस किरदार की पीड़ा उनके हाव-भाव में साफ झलकती थी, जिसने दर्शकों को अंदर तक झकझोर दिया।तमस” (1987) में उन्होंने विभाजन की त्रासदी को जीते हुए एक अल्पसंख्यक समुदाय के व्यक्ति का किरदार निभाया, जिसमें उनकी अदायगी ने दर्शकों को उस समय की भयावहता से रूबरू कराया।मिर्च मसाला” (1987) में भी उनकी भूमिका एक ऐसे गार्ड की थी, जो नायिका के सम्मान की रक्षा के लिए अपनी जान की परवाह नहीं करता। इन सभी फिल्मों में उन्होंने केवल समाज के शोषित वर्ग की समस्याओं को उठाया, बल्कि अपने किरदारों के माध्यम से सामाजिक व्यवस्था पर एक मजबूत प्रहार भी किया।

ओम पुरी को अक्सर गंभीर और यथार्थवादी भूमिकाओं के लिए जाना जाता है, लेकिन उन्होंने व्यंग्य और हास्य अभिनय में भी अपनी गहरी छाप छोड़ी। उनकी कॉमिक टाइमिंग और संवाद अदायगी इतनी स्वाभाविक थी कि उन्होंने हर तरह के हास्य किरदार को जीवंत बना दिया।जाने भी दो यारों” (1983) भारतीय सिनेमा की सबसे प्रतिष्ठित व्यंग्यात्मक फ़िल्मों में से एक है, जिसमें ओम पुरी ने आहूजा नामक भ्रष्ट बिल्डर का किरदार निभाया। उनका संवादधारू पी के टाइट है बे!” आज भी सिनेमा प्रेमियों के बीच लोकप्रिय है। उन्होंने इस किरदार को सिर्फ कॉमेडी तक सीमित नहीं रखा, बल्कि समाज में फैले भ्रष्टाचार की एक झलक भी प्रस्तुत की। इसके अलावा, “हेरा फेरी” (2000) में खड़क सिंह, “मालामाल वीकली” (2006) में लालच और कंजूसी से भरा किरदार और "मेरे बाप पहले आप" (2008) में एक मज़ाकिया बुजुर्ग की भूमिका ने उनकी हास्य अभिनय क्षमता को साबित किया। ओम पुरी की खासियत यह थी कि वे गंभीर और हास्य भूमिकाओं में शानदार संतुलन बनाए रखते थे। वे चरित्र में इस तरह घुल जाते थे कि दर्शकों को हमेशा वास्तविकता का अनुभव होता था। उनकी कॉमिक टाइमिंग कभी भी जबरदस्ती नहीं लगती थी, बल्कि परिस्थितियों के अनुरूप होती थी। यही कारण है कि वे गंभीर और हास्य दोनों तरह के अभिनय में समान रूप से सफल रहे।

अगर हम समानांतर सिनेमा के अन्य अभिनेताओं से तुलना करें, तो ओम पुरी का करियर नसीरुद्दीन शाह, स्मिता पाटिल, शबाना आज़मी जैसे कलाकारों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर चला। इन सभी कलाकारों ने कला सिनेमा को मुख्यधारा के समानांतर खड़ा करने में महत्वपूर्ण योगदान दिया। हालाँकि, जहाँ नसीरुद्दीन शाह ने बाद में व्यावसायिक फिल्मों में भी अपना दबदबा बनाया, वहीं ओम पुरी ने मुख्य रूप से यथार्थवादी सिनेमा से जुड़े रहकर अपनी अलग पहचान बनाई। मुख्यधारा के बॉलीवुड अभिनेताओं की तुलना में ओम पुरी ने कभी ग्लैमर और स्टारडम के पीछे भागने के बजाय अपने अभिनय को प्राथमिकता दी। वे हमेशा अपनी भूमिकाओं की गुणवत्ता पर ध्यान देते थे, भले ही वह छोटे बजट की फिल्में क्यों हों। यही कारण था कि उन्हें बॉलीवुड में सुपरस्टार का दर्जा नहीं मिला, लेकिन उनके अभिनय को हमेशा उच्चतम श्रेणी में रखा गया। यह भी सवाल उठता है कि क्या ओम पुरी को उनकी असली प्रतिभा के अनुरूप सम्मान मिला? जहाँ कई व्यावसायिक सितारों को बड़े-बड़े पुरस्कारों और पहचान से नवाजा गया, वहीं ओम पुरी जैसे कलाकारों को वह प्रसिद्धि नहीं मिली, जिसके वे हकदार थे। फिर भी, उन्होंने कभी इसके लिए शिकायत नहीं की और पूरी लगन से अपने काम में जुटे रहे। उनकी यही विशेषता उन्हें बॉलीवुड के अन्य कलाकारों से अलग बनाती है।

ओम पुरी की विरासत आज भी भारतीय सिनेमा में देखी जा सकती है। उन्होंने जिस तरह से बिना किसी बनावट और अतिरिक्त नाटकीयता के वास्तविक जीवन के किरदारों को पर्दे पर प्रस्तुत किया, वह आज के कई अभिनेताओं को प्रेरित कर रहा है। पंकज त्रिपाठी, नवाजुद्दीन सिद्दीकी, इरफान खान जैसे कलाकारों की अभिनय शैली पर ओम पुरी का गहरा प्रभाव देखा जा सकता है। इन अभिनेताओं ने भी यथार्थवादी और दमदार चरित्र भूमिकाओं को प्राथमिकता दी और यह साबित किया कि बिना पारंपरिक स्टारडम के भी एक सफल करियर बनाया जा सकता है। ओम पुरी ने अपने करियर में व्यावसायिक और कला सिनेमा के बीच संतुलन बनाए रखा। उन्होंने यह दिखाया कि एक अच्छा अभिनेता किसी भी शैली की फिल्म में प्रभावशाली हो सकता हैचाहे वह समानांतर सिनेमा हो, कॉमेडी हो, एक्शन हो या फिर अंतरराष्ट्रीय स्तर का सिनेमा। उनकी फ़िल्में आज भी अभिनय सीखने वालों के लिए एक पाठशाला की तरह काम करती हैं। इसके अलावा, ओम पुरी ने भारतीय अभिनेताओं को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर स्वीकार्यता दिलाने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उन्होंने ब्रिटिश और अमेरिकी फिल्मों में अभिनय कर यह सिद्ध किया कि भारतीय कलाकार भी पश्चिमी सिनेमा में अपनी जगह बना सकते हैं।सिटी ऑफ जॉय”, “ईस्ट इज़ ईस्टऔर "चार्ली विल्सन्स वॉर" जैसी फिल्मों में उनकी मौजूदगी ने भारतीय अभिनेताओं के लिए वैश्विक मंच तैयार किया। ओम पुरी केवल एक अभिनेता नहीं थे, बल्कि एक प्रेरणा थे, जिन्होंने अपने दमदार अभिनय से भारतीय और अंतरराष्ट्रीय सिनेमा को समृद्ध किया। उनकी विरासत आने वाले समय में भी जीवंत रहेगी और उनके योगदान को कभी भुलाया नहीं जा सकेगा।

निष्कर्ष : ओम पुरी ने अपने सामाजिक यथार्थवाद और बहुमुखी अभिनय से भारतीय सिनेमा में एक नई पहचान स्थापित की। उन्होंने आम आदमी के संघर्ष, शोषण और सामाजिक अन्याय को अपनी फिल्मों में इतनी सजीवता से प्रस्तुत किया कि दर्शक उनके किरदारों से सीधे जुड़ाव महसूस करने लगे। चाहे वह समानांतर सिनेमा हो, व्यावसायिक बॉलीवुड हो या अंतरराष्ट्रीय फ़िल्में, उन्होंने हर मंच पर अपनी छाप छोड़ी। हालाँकि, यह बहस का विषय है कि क्या उन्हें वह सम्मान मिला जिसके वे वास्तविक हकदार थे। व्यावसायिक सितारों की तुलना में उन्हें लोकप्रियता कम मिली, लेकिन अभिनय जगत में उनका योगदान बेमिसाल है। उनकी फ़िल्में आज भी समाज की वास्तविकताओं को दर्शाती हैं और आधुनिक दर्शकों के लिए प्रासंगिक बनी हुई हैं। निस्संदेह, ओम पुरी भारतीय सिनेमा के सबसे बेहतरीन अभिनेताओं में से एक थे, जिनकी विरासत आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणा बनी रहेगी।

संदर्भ :

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माधुरी तिवारी
शोध छात्रा, मीडिया अध्ययन संस्थान
श्री रामस्वरूप मेमोरियल यूनिवर्सिटी, लखनऊ-देवा रोड, उत्तर प्रदेश
madhuri2014tiwari@gmail.com, 9170071000

सिनेमा विशेषांक
चित्तौड़गढ़ (राजस्थान) से प्रकाशित पत्रिका
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  अपनी माटी (ISSN 2322-0724 Apni Maati) अंक-58, दिसम्बर, 2024
सम्पादन  : जितेन्द्र यादव एवं माणिक सहयोग  : विनोद कुमार

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