शोध सार : हरियाणा वैदिक काल से ही कला एवं संस्कृति का प्रमुख केंद्र रहा है साथ ही यह क्षेत्र सरस्वती सिंधु सभ्यता और कई ऐतिहासिक घटनाओं का भी केंद्र रहा है। चारों वेद भी यहीं सरस्वती नदी के किनारे रचे गए हैं, जो भारतीय ज्ञान एवं कलाओं का आधार माने जाते हैं। सन् 1966 में पंजाब से अलग होकर हरियाणा एक स्वतंत्र राज्य बना। हरियाणवी बोली, जिसे बांगरु और जाटु भी कहा जाता है, यहां की प्रमुख भाषा है, जो अपनी विशिष्टता और लोक साहित्य के लिए जानी जाती है। हरियाणवी लोक संस्कृति में लोकगीत, नृत्य और सांग (नाटक) का विशेष स्थान है। हरियाणवी सिनेमा की शुरुआत 1968 में 'धरती' फिल्म से हुई लेकिन 1984 में 'चंद्रावल' फिल्म ने इसे व्यापक पहचान दिलाई। यह फिल्म हरियाणवी सिनेमा के लिए मील का पत्थर साबित हुई एवं इसने हरियाणवी सिनेमा को मुख्यधारा में लाने का भी काम किया। इसके बाद 'लाड़ो', 'पगड़ी', और 'दादा लखमी' जैसी फिल्मों ने हरियाणवी संस्कृति को दर्शकों के सामने प्रस्तुत किया और सामाजिक मुद्दों पर भी सबका ध्यान केंद्रित किया। वर्तमान में, हरियाणवी सिनेमा को डिजिटल प्लेटफॉर्म्स, जैसे 'स्टेज एप', ने नई पहचान दिलाई है। OTT प्लेटफॉर्म्स के माध्यम से हरियाणवी कंटेंट को वैश्विक स्तर पर देखा जा रहा है, जिससे क्षेत्रीय सिनेमा को नई दिशा और गति मिली है। हरियाणा सरकार की फिल्म नीति और डिजिटल मीडिया के समर्थन से हरियाणवी सिनेमा का विकास हो रहा है और यह राष्ट्रीय स्तर पर अपनी पहचान बना रहा है।
बीज शब्द : क्षेत्रीय, सिनेमा, हरियाणवी, लोकगीत, बोली, फिल्म, डिजिटल, सामाजिक, संदेश, संस्कृति।
मूल आलेख : हरियाणा 1966 में पंजाब प्रांत से राजनीतिक रूप से अलग होकर के एक स्वतंत्र प्रांत बना; परंतु हरियाणा नाम के इस प्रदेश का वैदिक काल से ही अपना अलग महत्व एवं पहचान रही है। वैदिक युग में यही वह स्थान था जहां पर सरस्वती-सिंधु सभ्यता का चर्मोत्कर्ष रहा। इसी स्थान पर, सरस्वती नदी के किनारे ही भारतीय परंपरा एवं संस्कृति के महत्वपूर्ण ग्रंथों एवं पाण्डुलिपियों की रचना हुई। “मनुस्मृति, महाभाष्य, बौधायन धर्मसूत्र, वशिष्ठ धर्मसूत्र और विनयपिटक आदि में वर्णित मध्य देश तथा आर्यावर्त की पश्चिमी सीमा आधुनिक हरियाणा की पश्चिमी सीमा रही है।”1
सन् 1327 के एक अभिलेख2 में हरियाणा को स्वर्ग के समान कहा गया है और दिल्ली को ‘ढिल्लीका’ नाम से संबोधित करते हुए उसे हरियाणा का ही हिस्सा बताया गया है:- ‘ देशोस्ति हरियाणाख्यः पृथिव्यां स्वर्गसन्निम, ढिल्लिकापुरी यत्र तोमरैरस्ति ह निर्मिता।’
महाभारत में भी अनेकों स्थानों पर ‘हरियाणा’ का जिक्र है तथा महाभारत का युद्ध भी कुरुक्षेत्र में ही हुआ है, जो कि हरियाणा की सांस्कृतिक राजधानी है। अरबों के आक्रमण के बाद से हरियाणा की भूमि अनेकों युद्धों की विशेष रूप से साक्षी रही। तराईन (तरावड़ी ) एवं पानीपत के तीनों युद्ध हरियाणा की स्थली पर ही हुए हैं, जिनके परिणामों ने भारत के आने वाली शताब्दियों की राजनीतिक संरचना गढ़ी। सन् 1857 में यह क्षेत्र विद्रोह का सशक्त केंद्र भी रहा, उदाहरणस्वरूप नसीबपुर की लड़ाई एवं राव तुलाराम का योगदान भी विशेष रूप से स्मरणीय है।
हरियाणा प्रदेश जो दिल्ली से पश्चिमी में घग्घर नदी के काठे तक चला गया है, तीन उपभागों में बंटा हुआ है। एक- मूल हरियाणा जो वर्तमान हिसार जिले के पूर्व दक्षिण भाग में घग्घर नदी से पूर्व में फैला हुआ है, जिसके अंतर्गत पूरी हाँसी तहसील, हिसार का पूर्वार्ध भाग और फतेहाबाद का कुछ पूर्वी भाग आता है। दूसरा- बागड़ के नाम से बोला और लिखा जाने वाला भूभाग है। यह ऊंची भूमि है, जो अरब सागर की ओर को बहने वाली तथा बंगाल की खाड़ी की ओर बहने वाली नदियों के बीच जल-विभाजक का काम करती है। तीसरा और सबसे छोटा भाग जमना खादर के नाम से विख्यात है। खादर और बागड़ के बीचों-बीच शेरशाह सूरी द्वारा बनवाया गया ग्रांड ट्रंक रोड है। इन तीनों भू-खंडों को आज हरियाणा के नाम से पुकारा जाता है।
मध्यदेश की शोरसैनी अपभ्रंश से विकसित पाँच बोलियाँ – खड़ी बोली, हरियाणवी, ब्रज, कन्नौजी और बुन्देली पश्चिमी हिंदी के नाम से पुकारी गई हैं। हरियाणवी बोली भारतीय आर्य-भाषाओं की एक प्रमुख बोली है। “इस (हरियाणवी) बोली के स्वरों के उच्चारण की दीर्घता एवं फैलाव (Broadness) इसकी अपनी वस्तु है और अवश्य ही इसकी विशेषता कही जाएगी। हरियाणा प्रदेश की शक्ति सम्पन्न जातियों का बलिष्ठ उच्चारण उनकी वाणी के प्रत्येक स्वर एवं व्यंजन से फूट पड़ता है जो अपनी कर्कशता में भी आकर्षक एवं दीर्घता में भी मधुर है।”3
हरियाणवी बोली को विद्वानों ने बाँगड़ू, जाटु, देसवाली या देसारी तथा चमरवा आदि नामों से पुकारा है। डॉ. सुनीतिकुमार चटर्जी ने इसे दो नाम दिए है – बांगरु और हरियाणवी। डॉ. धीरेन्द्र वर्मा ने इसे तीन नाम – बांगरु, हरियाणवी और जाटु नाम से संबोधित किया है। डॉ. ग्रियर्सन ने इस बोली को इन तीन नामों के अलावा ‘चमरवा’ नाम से संबोधित किया है।
यह एक कहावत के रूप में समाज में प्रचलित है कि ‘दस कोस पर बदले पाणी और बीस कोस पर बदले बाणी’ और यह कहावत हरियाणा पर भी सामान्य रूप से लागू होती है। यहाँ स्थान-स्थान की बोली में पर्याप्त भिन्नता है परंतु इसके बावजूद भी “एक छोर से दूसरे छोर तक वही उच्चारण(लहजा), क्रियाओं के वे ही रूप, विशेषण एवं क्रिया विशेषण बनाने की वही प्रक्रिया बराबर मिलती है। सामाजिक दशा, परंपरा, रीति-रिवाज सब एक ही जैसे हैं।’’4
कोई भी भाषा एवं बोली अपना उत्कर्ष साहित्य में पाती है। साहित्य उसे संरक्षित, संवर्धित और समृद्ध करता है। हरियाणवी बोली का साहित्य अधिकतर लोक के पक्ष में ही मिलता है। उसका लोक पक्ष ही इतना विशाल एवं समृद्ध है कि परिनिष्ठित साहित्य का लेखन बहुत ही कम हो पाया है। हरियाणवी का साहित्य लोक-गीतों एवं लोक-नाट्य स्वांगों (सांगों) के माध्यम से ही जनता के बीच में उपस्थित है। हरियाणवी बोली के लोक कवि स्वयं को सांगों के माध्यम से ही जनता के सामने उपस्थित करते हैं। इस परंपरा में दादा लखमीचंद , पंडित मांगेराम, दयाचंद मायना, बाजे भगत, फौजी मेहर सिंह इत्यादि का नाम प्रमुखता से लिया जा सकता है। यही सांग की परंपरा हरियाणा में वर्तमान तक चली आ रही है। समय परिवर्तन के साथ-साथ तकनीकी उन्नति की बदौलत कलाओं की अभिव्यक्ति के माध्यमों में भी बदलाव होता चला जाता है। रंगमंच व आधुनिक सिनेमा का निर्माण इसी प्रक्रिया के उदारहण हैं। भारतीय सिनेमा की शुरुआत राजा हरिश्चंद्र से होती है तथा उसके बाद पहली बोलती फिल्म आलम-आरा के माध्यम से वह आज उस मुकाम तक पहुंच गया है, जहां भारतीय सिनेमा पूरे विश्व में देखा जाता है तथा फिल्में एक हजार करोड़ तक का व्यापार करने में सक्षम हो गई हैं।
हरियाणवी बोली में सिनेमा की शुरुआत देर से हुई व हरियाणवी बोली के सिनेमा का श्रीगणेश सन् 1968 में ‘धरती’ फिल्म से हुआ। इसके बाद हरियाणवी बोली की बड़ी फिल्म ‘हरफूल सिंह जाट जुलानी’ के नाम से आई। सन् 1973 में ‘बीरा शेरा’ और सन् 1982 में ‘बहुरानी’ आई। शुरुआती फिल्में महज शुरुआती प्रयोगों के रूप में देखी जा सकती है इस समय तक हरियाणवी फिल्म के लिए अपने पास कोई दर्शक समूह नहीं था; इसी कारण ये तीनों फिल्में बॉक्स ऑफिस पर खास कमाई नहीं कर पाई परंतु हरियाणवी बोली में फिल्मों की शुरुआत का श्रेय इन फिल्मों को ही जाता है। इन फिल्मों के बाद कुछ हद तक एक दर्शक समूह तैयार हुआ। हरियाणवी अभिनेता और गीतकार राजकुमार धनखड़ कहते हैं “यह 1980 के आस-पास का ही समय था जब राज्य फिल्म उद्योग आकार लेने लगा था।”5
हरियाणवी सिनेमा की दार्शनिक पृष्ठभूमि की बात की जाए तो हरियाणवी सिनेमा पर गीता का बहुत प्रभाव है। गीता के भक्ति, कर्म एवं योग दर्शन का गम्भीर प्रभाव स्पष्ट रूप से परिलक्षित होता है। इसलिए इसके गीतों में या रागनियों में भी जीवन की नश्वरता एवं कर्म का उपदेश ही नहीं बल्कि आत्म त्याग के साथ बलिदान को प्रमुखता दी गई है। यह बुद्ध की नहीं युद्ध की भूमि रही है। इसलिए बलिदान की भी धरती रही है। इस वजह से हरियाणवी सिनेमा में वीर रस के गीत तथा रागनियाँ भी सहज व स्वाभाविक रूप से आ गई है।
हरियाणवी सिनेमा के आगे की यात्रा के बारे में बात करें तो 1984 में रिलीज हुई ‘चंद्रावल’ फिल्म; जो हरियाणवी सिनेमा के लिए मील का पत्थर साबित हुई। इस फिल्म में मुख्य भूमिका में जगत जाखड़ व उषा शर्मा थे। पटकथा लेखन देवीशंकर एवं निर्देशन जयंत प्रभाकर के द्वारा किया गया। यह फिल्म मात्र ढाई लाख रुपये में बनकर तैयार हुई और इस फिल्म ने कुल मिलाकर 5 करोड़ रुपये की कमाई की थी। इस साल बॉलीवुड के दिग्गज अभिनेता अमिताभ बच्चन और राजेश खन्ना अभिनीत फिल्मों की औसत कमाई भी इतनी ही थी व ज्यादातर फिल्में 5 करोड़ के नीचे की ही कमाई कर पाई थी। तुलनात्मक रूप से एक क्षेत्रीय बोली की फिल्म का यह शानदार प्रदर्शन था।
‘चंद्रावल’ फिल्म में एक दुखद प्रेम कहानी दिखाई गई है। हरियाणा के एक जाट जाति के युवक को गाड़िया लुहार समुदाय की एक युवती से प्रेम हो जाता है। वह दोनों अपने प्रेम को पाने में नाकामयाब होते हैं। दोनों को किस तरह जाति-प्रथा जैसी कुरीति से जूझना पड़ता है, इसको भी गहराई से दिखाया गया है। फिल्म में दिखाया गया है कि हरियाणवी समाज के अंदर अंतरजातीय विवाह को किस प्रकार दोनों परिवार अपने इज्जत एवं सम्मान से जोड़ लेते हैं। अंतरजातीय विवाह के लिए वहाँ कोई भी स्थान नहीं है, किस प्रकार समाज युवक व युवती दोनों के प्रति क्रूर हो सकता है और इसका अंत दोनों की मृत्यु से करता है, फिल्म में बड़ी गंभीरता से दिखाया गया है। फिल्म एक शानदार कथानक के साथ-साथ एक सामाजिक संदेश देने में भी अपार सफलता हासिल करती है। ‘चंद्रावल’ की सफलता के पीछे एक और बड़ा कारण इसका संगीत था। फिल्म का हर गाना हिट था। फिल्म में हरियाणा के लोक-गीतों को जगह दी गई थी। इस फिल्म के गीत बच्चे, बूढ़े व जवान सबके मुंह से आज भी सुने जा सकते है। फिल्म में -
“जीजा तू काला मैं गोरी घणी,
फ़ोटो खिंचवावा दोनों जणी
तथा
गाड़े आली गजबन छोरी, बहादरगढ़ का बम्ब,
बिजली सी टूट पड़ी, मारे गए हम
और
नैन कटोरे काजल डोरे, मैं तो तन मन वार गया,
तेरे रूप का जादू गौरी, बंजारे न मार गया”6

सन् 1990 और 2000 के दशक में कई फिल्मों ने अच्छा प्रदर्शन किया और सामाजिक मुद्दों को उठाया, लेकिन उनमें से कोई भी ‘चंद्रावल’ की सफलता की बराबरी नहीं कर सकी। सन् 2000 में ‘लाड़ो’ फिल्म आई, जिसने भी खूब सुर्खियां बटोरी। इसके बाद के वर्षों में हरियाणवी सिनेमा कुछ ज्यादा प्रदर्शन कर नहीं पाया एवं कुछ खास दर्शकों के दायरे तक ही सीमित रह गया। सन् 2014 में ‘पगड़ी: द ओनर’ फिल्म आई, जिसने कई राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार जीते। हालांकि यह समय हरियाणवी सिनेमा के लिए तो इतना खास नहीं रहा परंतु इस दौरान हरियाणवी बोली, कहानियों, पात्रों एवं अभिनेताओं को बॉलीवुड सिनेमा में भरपूर स्थान दिया जाने लगा। जिसने एक बड़े दर्शक समूह को हरियाणवी सिनेमा की ओर आकर्षित किया।
हरियाणवी अभिनेता रणदीप हुड्डा ने स्वयं बॉलीवुड में मुख्य किरदार के रूप में कई फिल्मों में भूमिका अदा की एवं उनकी फिल्म 'लाल रंग' हरियाणवी पृष्ठभूमि पर आधारित है। फिल्म की कहानी खून का गैरकानूनी धंधा करने वाले शंकर पर आधारित है। शंकर की भूमिका रणदीप ने निभाई थी। यह फिल्म सन् 2016 में रिलीज हुई थी। साल 2016 में ही रिलीज हुई आमिर खान की फिल्म 'दंगल' हरियाणा के पहलवान महावीर सिंह फोगाट और उनकी बेटियों की सच्ची कहानी पर आधारित थी। फिल्म में आमिर ने महावीर का रोल निभाया था, जो बेटियों को वैश्विक स्तर का पहलवान बनाने के लिए अनेक प्रकार के सामाजिक व आर्थिक अवरोधों का सामना करता है। इस फिल्म को दर्शकों ने तो सराहा ही व समीक्षकों ने भी तारीफ की। इस फिल्म ने विशेष रूप से बॉलीवुड का ध्यान हरियाणा की ओर आकर्षित किया और इसी वर्ष हरियाणवी पृष्ठभूमि पर आधारित बहुत सी फिल्में रिलीज हुई, जिनमें से एक थी सलमान खान की फिल्म 'सुल्तान', जिसने बॉक्स ऑफिस पर खूब कमाई की। इस फिल्म की कहानी हरियाणा के एक पहलवान की है, जिसका नाम सुल्तान अली खान है। फिल्म में सुल्तान की व्यक्तिगत और एक खिलाड़ी के तौर पर जिंदगी के कई उतार-चढ़ाव दिखाए गए हैं। 'सुल्तान' में सलमान के साथ अनुष्का शर्मा ने भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।

हरियाणवी फिल्मों की सूची9
हाल ही के वर्षों में हरियाणा सरकार द्वारा अपनी संस्कृति एवं कला के संरक्षण हेतु 26 अक्तूबर, 2017 को प्रदेश की पहली फिल्म नीति को लागू किया गया। नीति में महत्वपूर्ण बिंदुओं जैसे “प्रदेश एवं बाहर की फिल्मों हेतु शूटिंग स्थलों का विकास तथा फिल्म निर्माण के लिए सुरक्षा व्यवस्था, एवं फिल्मों का अवैध रूप से प्रदर्शन एवं वीडियो पायरेसी पर निषेध तथा प्रत्येक वर्ष प्रोत्साहन हेतु हरियाणा फिल्म राज्य पुरस्कार आयोजित करना, हरियाणवी फिल्मों को प्रोत्साहन एवं संरक्षण एवं दर्शक विकास कार्यक्रम आदि को भी शामिल किया गया है। निश्चित रूप से आने वाले डिजिटल युग में यह नीति प्रदेश एवं यहाँ की बोली तथा संस्कृति के संरक्षण में अपनी महत्ती भूमिका का निर्वहन करेगी।”10
OTT प्लेटफ़ॉर्म का भी हाल ही के वर्षों में दर्शक समूह से गहरा परिचय हुआ है। OTT प्लेटफ़ॉर्म ने जनता को सिनेमा में आने-जाने, टिकट न मिलने आदि के संकट से छुटकारा दिया है। यह बहुत कम खर्चीला है तथा पूरे का पूरा सिनेमा आपके घर तक खींच लाता है। कोरोना महामारी के समय, जब सिनेमा बंद थे तो फिल्म व वेब सीरीज उद्योग को OTT प्लेटफ़ॉर्म ने ही संजीवनी दी थी। कोरोना महामारी तमाम OTT प्लेटफ़ॉर्म के लिए आपदा में अवसर साबित हुई। इन सभी प्लेटफ़ॉर्म के साथ 1 नवंबर, 2019 को लॉन्च हुआ ‘स्टेज एप’, हरियाणवी बोली व कलाकारों के लिए एक सशक्त मंच साबित हो रहा है। यह शुरू में केवल हरियाणवी बोली के साथ शुरू हुआ व अभी राजस्थान की स्थानीय बोलियों को भी साथ जोड़ रहा है। वर्तमान मैं यह 1000 से ज्यादा स्थानीय कलाकारों को रोजगार प्रदान कर रहा है। स्थानीय बोलियों के सिनेमा संरक्षण हेतु काम कर रहा ऐसा ही OTT एप ‘चौपाल’ भी है। इस तरह के OTT प्लेटफ़ॉर्म के माध्यम से हरियाणवी को पूरे देश व दुनिया में देखा व सुना जा रहा है।
निष्कर्ष : किसी भी बोली को समृद्धि प्रदान करते हैं उसे बोलने वाले लोग व बोली को लेकर उनका लगाव। कई बोलियां मिलकर भाषा के शब्दभंडार को बढ़ाती है। बोलियों के बिना भाषा भी जल्द ही क्षीण हो जाती है। ये बोलियां ही लोक साहित्य को सदियों-सदियों से आश्रय देती आई हैं। बोलियों के माध्यम से ही किसी भी समाज को गहराई से जाना व परखा जा सकता है।
हरियाणवी बोली को भी उसके सिनेमा के माध्यम से अभिव्यक्ति मिली है। ‘चंद्रावल’ एवं ‘दादा लखमी’ जैसी फिल्में जहां एक और सामाजिक संदेश देती नजर आती हैं, वहीं दूसरी ओर हरियाणवी समाज, संस्कृति एवं लोक को सभी तक पहुँचाने का काम भी करती दिखती है। हरियाणवी सिनेमा की शुरुआत भले से ही धीमी रही हो, परंतु समय से उसने अपनी रफ्तार को पा लिया है। निश्चित रूप से आने वाले समय में हरियाणवी बोली व उसका सिनेमा स्वयं को भारत व वैश्विक स्तर पर प्रदर्शित करता नजर आएगा।
चित्र आभार - Google
संदर्भ:
- इंडियन एंटीक्वेरी, 1605, पृ. 176 पर कविराज शेखर पर नोट
- यह शिलालेख सुल्तान मुहम्मद बिन तुगलक के समय का है, जो दिल्ली से 5 मील दूर दक्षिण स्थित ‘सारबन’ नाम के गाँव से मिला है और इस समय दिल्ली के म्यूजियम बी. 6 में रखा हुआ है।
- यादव, डॉ. शंकरलाल, हरियाणा प्रदेश का लोक साहित्य, हिन्दुस्तानी एकेडेमी, इलाहाबाद, प्रथम संस्करण, पृ 73
- यादव, डॉ. शंकरलाल, हरियाणा प्रदेश का लोक साहित्य, हिन्दुस्तानी एकेडेमी, इलाहाबाद, प्रथम संस्करण, पृ 62
- https://www-hindustantimes-com.translate.goog/gurgaon/the-fall-and-rise-of-haryanvi-cinema/story-Wh2vC3WJ9phh9Gr4xzBuXP.html?_x_tr_sl=en&_x_tr_tl=hi&_x_tr_hl=hi&_x_tr_pto=tc
- फिल्म चंद्रावल के गीत (फिल्म- चंद्रावल, रिलीज– मार्च 1984, निर्देशक- जयंत प्रभाकर, निर्माता- उषा शर्मा व देवी शंकर प्रभाकर)
- https://www-hindustantimes-com.translate.goog/gurgaon/the-fall-and-rise-of-haryanvi-cinema/story-Wh2vC3WJ9phh9Gr4xzBuXP.html?_x_tr_sl=en&_x_tr_tl=hi&_x_tr_hl=hi&_x_tr_pto=tc
- इंडिया टुडे से हुई जयदीप अहलावत की बातचीत के एक अंश का अनुवाद (https://www.indiatoday.in/binge-watch/story/jaideep-ahlawat-on-playing-the-lead-in-pataal-lok-it-s-a-huge-responsibility-you-represent-a-team-1677492-2020-05-13)
- हरियाणा फिल्म प्रमोशन बोर्ड, हरियाणा सरकार, हरियाणवी सिनेमा का इतिहास (https://filmcell.prharyana.gov.in/aboutfilmhistory.html)
- हरियाणा फिल्म नीति, 2017 (http://filmcell.prharyana.gov.in/docs/Film%20Policy%20Hindi.pdf)
रोबिन
शोधार्थी, हरियाणा केंद्रीय विश्वविद्यालय, महेंद्रगढ़- 123031
rbnvalley@gmail.com, 9996321346
बीर पाल सिंह यादव
अध्यक्ष एवं आचार्य, हिंदी विभाग, हरियाणा केंद्रीय विश्वविद्यालय, महेंद्रगढ़- 123031
bpshv20@gmail.com8055290240
सिनेमा विशेषांक
चित्तौड़गढ़ (राजस्थान) से प्रकाशित पत्रिका
UGC CARE Approved & Peer Reviewed / Refereed Journal
अपनी माटी (ISSN 2322-0724 Apni Maati) अंक-58, दिसम्बर, 2024
सम्पादन : जितेन्द्र यादव एवं माणिक सहयोग : विनोद कुमार
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