शोध आलेख : ओटीटी प्लेटफार्म और पूर्वी उत्तर प्रदेश पर आधारित वेब सीरीज की प्रासंगिकता / प्रवीण कुमार मिश्र

ओटीटी प्लेटफार्म और पूर्वी उत्तर प्रदेश पर आधारित वेब सीरीज की प्रासंगिकता
- प्रवीण कुमार मिश्र

शोध सार : सिनेमा समाज का आईना होता है, समाज की पृष्ठभूमि पर आधारित कहानियों का जुड़ाव सामाजिक समस्याओं, कुप्रथाओं एवं प्रचलित परंपरा से होता है। शुरुआती दौर से ही भारतीय सिनेमा में नैतिक मूल्यों और बुनियादी समस्याओं को गहरे रूप से उठाया गया। भारतीय फिल्म उद्योग ने केवल हिंदी भाषा बल्कि कन्नड़, मलयालम, तेलगु, मराठी, बंगाली और भोजपुरी भाषा में दंत कथाओं, धार्मिक गाथाओं, सामाजिक सरोकार और ग्रामीण जीवन को परदे पर उतारने का सराहनीय कार्य किया है। समय के परिवर्तन और बदलते सामाजिक परिदृश्यों ने सिनेमा को मनोरंजन एवं व्यापार का साधन बना दिया। अब सिनेमा में नैतिक मूल्यों एवं सामाजिक प्रासंगिकता की जगह, दर्शकों की मांग के अनुसार रोमांस, अश्लीलता, मारधाड़ और अंग प्रदर्शन दिखायी जाने लगी। 21 वीं शताब्दी के दूसरे दशक में सुविधाजनक स्मार्ट फ़ोन एवं ओटीटी प्लेटफॉर्म की सुलभता ने भारतीय सिनेमा के स्वरुप को एक नया आयाम प्रदान किया। डिजिटल सिनेमा ओटीटी के आगमन के साथ ही फिल्मों के स्वरूप में भी परिवर्तन हुआ। ओटीटी की दुनिया में वेब सीरीज ऐसा ही एक प्रयोग है। वेब सीरीज ओटीटी से गहरे रूप से जुड़ा हुआ है। वेब सीरीज आभाषीय पटक का सेंसर मुक्त एक श्रृंखलाबद्ध चलचित्र है, जिसकी कहानी में देश-दुनिया में व्याप्त कुप्रथाओं, जाति व्यवस्था, राजनीति एवं अपराध की दुनिया का काला सच और हिंसात्मक घटनाएं यथार्थ रूप से दिखाई गई हैं। इन कहानियों में अश्लीलता का पुट और अभद्र भाषाओं का प्रयोग इसे एडल्ट सिनेमा बनाता है।

पूर्वी उत्तर प्रदेश का क्षेत्र भौगोलिक रूप से समृद्ध गंगा व सोन नदी का मैदानी क्षेत्र है। यह क्षेत्र धार्मिक एवं सामाजिक रूप से भारतीय संस्कृति का प्रतिनिधि क्षेत्र रहा है। देश की राजनीति में पूर्वी उत्तर प्रदेश का महत्वपूर्ण योगदान रहा है। इस क्षेत्र को आधार बनाकर कई वेब सीरीज बनाई गयीं जो काफ़ी लोकप्रिय हुई। वेब सीरीज ने पूर्वी उत्तर प्रदेश की सामाजिक एवं राजनीतिक को गहनता से उठाने का सराहनीय कार्य किया है, लेकिन विषय यह है कि इन वेब सीरीज का स्थानीय कहानियों, परंपराओं एवं जनसामान्य जीवन से कितना जुड़ाव है! विभिन्न काल्पनिक वेब सीरीज की लोकप्रियता और उसकी विषयवस्तु से स्थानीयता के सम्बंध के बीच तालमेल एक महत्वपूर्ण प्रश्न है। प्रस्तुत शोध लेख में पूर्वी भारत की पृष्ठभूमि पर बनी वेब सीरीज का आलोचनात्मक विश्लेषण और उनकी प्रासंगिकता का उल्लेख किया गया है।

बीज शब्द : ओटीटी, वेब सीरीज, सेंसरशिप, अभिव्यक्ति, यथार्थ, अश्लीलता, प्रासंगिकता, स्वीकार्यता, प्रतिरोध एवं परिवर्तन।

मूल आलेख : 21 वीं शताब्दी के दूसरे दशक में वैश्विक महामारी के दौर में जब सिनेमाघर और मल्टीप्लेक्स सोशल डिस्टेंसिंग की वजह से बंद पड़े थे तो मनोरंजन का पूरा स्वरूप ही बदल गया। बेहतरीन तकनीकी सुविधाओं और सस्ते डेटा सर्विस की वजह से ओटीटी जैसे डिजिटल प्लेटफार्म का विस्तार काफ़ी तेज गति से हुआ। ओटीटी का शाब्दिक अर्थ, 'ओवर द टॉप' है। मतलब इस प्रकार की डिजिटल मीडिया सेवा जो दर्शकों को सीधे सार्वजनिक इंटरनेट के माध्यम से प्रदान की जाती है। इसके लिए किसी प्रकार की एयर, केबल या सैटेलाइट-आधारित प्रदाता की जरूरत नहीं है। यह स्मार्टफोन, स्मार्ट टीवी, डेस्कटॉप और लैपटॉप में ओटीटी सेवा प्रदाता नेटफ्लिक्स, अमेज़ॉन प्राइम, डिजनी हॉटस्टार, जी फाइव के माध्यम से मासिक छमाही एवं वार्षिक सदस्यता शुल्क के साथ उपलब्ध है।

वैश्विक महामारी कोविड-19 के दौर में सोशल डिस्टेंसिंग (सामाजिक दूरी) का पालन किया गया। ऐसी स्थिति में आवासीय बाध्यता ने मनोरंजन की वैकल्पिक सुविधा के रूप में ओटीटी को एक मजबूत आधार प्रदान किया। जिसके परिणामस्वरूप लॉकडाउन के दौरान सदस्यता दरों में लगातार वृद्धि हुई। एक रिपोर्ट के अनुसार, वित्त वर्ष 2020 में ओटीटी सब्सक्रिप्शन में 47 प्रतिशत की वृद्धि हुई। 2011 से 2018 तक कुल बॉक्स ऑफिस के मामले में भारत दुनिया के शीर्ष दस देशों में शामिल था। भारत में औसतन 721.54 मिलियन इंटरनेट ग्राहक हैं। ग्राहक प्रति माह औसतन 730 मिनट इंटरनेट सेवा का उपयोग करता है। लॉक डाउन के समय भारत चीन के बाद दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा इंटरनेट उपयोगकर्ता बन गया। भारत में, अधिकांश सामग्री हिंदी या अंग्रेजी में उपलब्ध है, और इसे स्थानीय दर्शकों के लिए क्षेत्रीय भाषाओं में अनुवादित किया जाता है। फिर भी, इसका मतलब यह नहीं है कि ओटीटी इंडस्ट्री टीवी कंटेंट की दर्शकों की संख्या छीन लेगी। टीवी एक ऐसा माध्यम है जो पूरे परिवार का एक साथ मनोरंजन करता है और यह वर्तमान में उनकी दिनचर्या का हिस्सा है। ओटीटी प्लेटफॉर्म के लिए टीवी की जगह लेना मुश्किल है।

ओटीटी सेंसरशिप: 2021 में ओटीटी पर प्रसारित होने वाली 'वेब श्रृंखला' या अन्य कार्यक्रमों की सामग्री के विनियमन के संदर्भ में दिव्या गणेशप्रसाद गोंटिया ने एक जनहित याचिका (पीआईएल) दायर की थी। नग्नता या अश्लील दृश्यों का प्रसारण के संदर्भ में वेब सेवा प्रदाताओं के खिलाफ उचित कार्रवाई करने के लिए संबंधित अधिकारियों को निर्देश देने की मांग की।" प्रतिक्रिया स्वरूप न्यायमूर्ति भूषण धर्माधिकारी और एम.जी बिराडकर की खंडपीठ ने सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय, केंद्रीय इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय और नागपुर पुलिस आयुक्त को नोटिस जारी कर जवाब मांगा है।

भारत में, ओटीटी प्लेटफार्मों पर सेंसरशिप को सूचना और प्रसारण मंत्रालय (एमआईबी) द्वारा विनियमित किया जाता है, जिसके पास डिजिटल सामग्री प्रदाताओं के लिए दिशानिर्देश और नियम जारी करने का अधिकार है। भारत सरकार ने इंटरनेट और मोबाइल एसोसिएशन ऑफ इंडिया (आईएएमएआई) को सामग्री स्व-विनियमित करने और निगरानी करने की शक्ति भी दी है, परिणामस्वरूप, आईएएमएआई ने स्व-विनियमन के लिए एक डिजिटल सामग्री शिकायत परिषद (डीसीसीसी) की स्थापना की थी। डीसीसीसी शिकायतों की जांच करेगी और यदि स्ट्रीमिंग प्लेटफॉर्म आईएएमएआई द्वारा निर्धारित दिशानिर्देशों का उल्लंघन करते पाए गए तो उनके खिलाफ कार्रवाई करने का प्रावधान है।

ओटीटी प्लेटफार्म पर पूर्वी उत्तर प्रदेश पर आधारित प्रमुख वेब सीरीज -

रंगबाज: रंगबाज़ 2018 में ओटीटी प्लेटफॉर्म GEE5 (ज़ी 5) पर रिलीज एक प्रमुख वेब सीरीज है। रंगबाज गोरखपुर विश्वविद्यालय के एक ऐसे युवक की कहानी है जिसने अपराध की दुनिया में अपनी एक अलग पहचान बनाई। रंगबाज सीजन 1 में गोरखपुर के कुख्यात गैंगस्टर श्रीप्रकाश शुक्ल की कहानी दिखाई गयी है। रंगबाज़ जैसे शो आपराधिक व्यवहार और हिंसा का वास्तविक और बिना किसी फ़िल्टर के चित्रण करके दर्शकों के साथ जुड़ते हैं, क्योंकि वे एक कुख्यात गैंगेस्टर के जीवन का वर्णन करते हैं। पात्रों की प्रामाणिकता और वास्तविक घटनाओं का बिना किसी फ़िल्टर के चित्रण दर्शकों को कथानक में आकर्षित करता है, जिससे सहानुभूति और जिज्ञासा दोनों पैदा होती है। भाव धुलिया के निर्देशन में बनी इस कहानी को एडिट नन्दकिशोर ने किया है। यह कहानी 90 के दशक में पूर्वी उत्तर प्रदेश की सामाजिक-राजनीतिक पृष्ठभूमि को दर्शाती है। अपराध की दुनिया में प्रवेश करने सामान्य युवा श्री प्रकाश शुक्ल को बाद में कुख्यात बाहुबली के रूप में भी जाना जाता है। सामान्य बोलचाल में बनी यह वेब सीरीज सामाजिक शांति के पीछे छिपे काले कारनामों को बखूबी रूप से दर्शाती है। सच्ची घटनाओं पर आधारित विभिन्न सीरीज़ इस जिज्ञासा और आकर्षण को भुनाते हुए दर्शकों को बांधे रखने वाली आकर्षक कहानी पेश करती हैं।

मिर्ज़ापुर: ओटीटी की दुनिया में अगर किसी वेब सीरीज ने सबसे ज्यादे दर्शकों को आकर्षित किया है तो वह मिर्ज़ापुर वेब सीरीज है। अपराध-रोमांच आधारित यह भारतीय वेब श्रृंखला, रितेश सिधवानी और फरहान अख्तर के एक्सेल एंटरटेनमेंट द्वारा निर्मित यह वेब सीरीज ओटीटी के अमेज़न प्राइम वीडियो पर प्रदर्शित हुई। इनसाइड एज और ब्रेथ के बाद यह अमेज़न प्राइम वीडियो की तीसरी भारतीय मूल वेब शृंखला है। इस वेब की अभी तक तीन श्रृंखला और कुल 29 एपिसोड आ चुके हैं। पहली श्रृंखला 16 नवंबर 2018 को ओटीटी प्लेटफार्म अमेज़ॉन प्राइम पर रिलीज हुई थी। दूसरी श्रृंखला 23 अक्टूबर 2020 और तीसरी श्रृंखला 5 जुलाई 2024 को रिलीज हुई। मिर्ज़ापुर वेब सीरीज की पटकथा करण अंशुमान ने पुनीत कृष्णा और विनीत कृष्णा के साथ मिलकर लिखी है। तीसरी श्रृंखला की पटकथा अपूर्व धर बड़गैयां, अविनाश सिंह तोमर और विजय नारायण वर्मा ने लिखी है। अंशुमान ने सीरीज़ के पहले सीज़न का निर्देशन किया। गुरमीत सिंह और मिहिर देसाई ने दूसरे सीज़न का निर्देशन किया। तीसरे श्रृंखला का निर्देशन गुरमीत सिंह और आनंद अय्यर ने साथ मिलकर किया।

मिर्ज़ापुर वेब श्रृंखला में अभिनय करने वाले पात्र पंकज त्रिपाठी (अखण्डानन्द त्रिपाठी), अली फज़ल (गुड्डू पण्डित), विक्रान्त मैस्सी (बबलू पण्डित), श्वेता त्रिपाठी (गजगामिनी गुप्ता उर्फ गोलू), श्रिया पिलगांवकर (स्वीटी), रसिका दुग्गल (बिना त्रिपाठी) हर्षिता गौर (डिम्पी) दिव्येंदु शर्मा (फूलचंद त्रिपाठी उर्फ मुन्ना भईया), कुलभूषण खरबंदा (सत्यानंद त्रिपाठी), राजेश तैलंग (रमाकांत पण्डित),और शीबा चड्ढा (वसुधा पंडित) ने वेब शृंखला में मुख्य भूमिकाएं निभाई हैं। वहीं दूसरी वेब श्रृंखला में जहाँ विक्रांत मैस्सी, श्रिया पिलंगावकर के अभिनय को ब्रेक दिया गया तो उसमें नए पात्र विजय वर्मा (बड़ा और छोटा त्यागी) प्रियांशु पेनयुली (रोबिन), ईशा तलवार (माधुरी यादव) और अंजुम शर्मा (शरद शुक्ला) का नाम जुड़ गया। तीसरे श्रृंखला में दिव्येंदु शर्मा (मुन्ना त्रिपाठी), कुलभूषण खरबंदा (सत्यानंद त्रिपाठी) को ब्रेक दिया गया है।

मिर्ज़ापुर वेब श्रृंखला की कहानी पूर्णतः काल्पनिक है। वेब श्रृंखला में व्यापार, तस्करी, अपराध, व्यभिचार और राजनीति को एक साथ समायोजित करके दिखाया गया है। पूरी कहानी पूर्वांचल पर आर्थिक और राजनीतिक पकड़ को लेकर संघर्ष करते दो बाहुबली और उनके बीच वर्चस्व की लड़ाई एक गद्दी के इर्द-गिर्द घूमती है, जिसका केंद्र मिर्ज़ापुर को दिखाया गया है। मिर्ज़ापुर में जहाँ एक ओर बाहुबलियों के बीच विश्वासघात, वफ़ादारी राजनीति व्यापार एवं प्रशासन के बीच तालमेल की तिकड़ी को दिखाया गया है वहीं दूसरी ओर मध्यमवर्गीय समाज से आने वाले दो युवाओं की कहानी है जो इस जाल में अपनी मजबूरी के कारण फंस जाते हैं और पूरी परंपरागत आपराधिक समीकरण को बदल देते हैं। द्विवेन्दु द्विवेदी द्वारा निभाया गया मुन्ना भईया का किरदार युवाओं को खूब पसंद आया। एक ऐसा लड़का जो अपने पिता की निग़ाहों में अपनी योग्यता साबित करने के लिए प्रयास करता रहता है। दूसरी ओर अली फजल द्वारा निभाया गया गुड्डू पण्डित का किरदार भी दर्शकों को खूब पसंद आया। एक मध्यमवर्गीय परिवार का लड़का जिसके लिए अपराध एक शौक़ और आकर्षण बन चुका है। वहीं विक्रांत मैसी द्वारा निभाई गयी बबलू पण्डित का एक समझदार लड़के का किरदार है जो न चाहते हुए भी अपराध की दुनियाँ से जुड़ा हुआ था। बिहार के सिवान और नेपाल के साथ हथियार और अफीम तस्करी को लेकर जुड़ाव दिखाया गया है।

मिर्ज़ापुर वेब सीरीज में पूर्वांचल की राजनीति में अपराध की भूमिका को बखूबी दिखाया है। पूर्वांचल वैसे भी इसी प्रकार की राजनीति का केंद्र रहा हैं, जहाँ रक्त और राजनीति आपस में जुड़ी हुई है। अश्लीलता चित्रण और अभद्र भाषा का प्रयोग इसे एक एडल्ट वेब सीरीज बनाता है। मिर्ज़ापुर एक व्यापारिक शहर रहा है, और वह अपने कालीन के उद्योग के लिए जाना भी जाता है। मिर्ज़ापुर वेब सीरीज में लोक भाषा और लोक संस्कृति की बात करें तो यह पूर्णतः काल्पनिक होने के साथ-साथ निराधार भी है। ऐसी कोई भी कहानी मिर्ज़ापुर से नहीं जुड़ी हुई है। मिर्ज़ापुर एक शांत और प्राकृतिक संपदा सम्पन्न पुरापाषाण कालीन महत्व का एक व्यापारिक और धार्मिक शहर है। अंग्रेजों के द्वारा इस शहर की स्थापना की गई। पहले यह बनारस डिवीजन का हिस्सा हुआ करता था। वर्तमान में यह विंध्याचल मंडल के अंतर्गत आता है। इसके बावजूद मिर्ज़ापुर वेब सीरीज की लोकप्रियता कहीं न कहीं बदलते हुए सिनेमाई शौक को दर्शाता है।

रक्तांचल: रक्तांचल पूर्वांचल की पृष्ठभूमि पर बनी एक और महत्वपूर्ण वेब सीरीज है। 1980 के दशक के दो प्रसिद्ध माफियाओं के वास्तविक जीवन को आधार बनाकर यह वेब सीरीज बनाई गयी। पिनाका स्टूडियो प्राइवेट लिमिटेड और महिमा प्रोडक्शंस के बैनर तले चित्रा वकील शर्मा, चांदनी सोनी, प्रदीप गुप्ता, शशांक राय, महिमा गुप्ता द्वारा इसे निर्मित किया गया है। रक्तांचल वेब सीरीज का निर्देशन रीतम श्रीवास्तव ने किया है। सीरीज का प्रीमियर 28 मई, 2020 को ओटीटी प्लेटफॉर्म एमएक्स प्लेयर पर किया गया था। दूसरा सीजन 11 फरवरी, 2022 को ओटीटी प्लेटफॉर्म एमएक्स प्लेयर पर प्रीमियर किया गया था। दूसरे सीजन का निर्माण अर्जुन सिंह बरन और कार्तिक डी. निशानदार ने जीसीम्स के बैनर तले किया है। इस सीरीज़ में क्रांति प्रकाश झा और निकितिन धीर के साथ चित्तरंजन त्रिपाठी (बेचन सिंह) , विक्रम कोचर, प्रमोद पाठक, सौंदर्या शर्मा , रोन्जिनी चक्रवर्ती और दया शंकर पांडे ने मुख्य भूमिका निभाई है।

रक्तांचल की कहानी पूर्वांचल के भू-माफिया और टेंडर माफिया वसीम खान (निकितिन धीर) और विजय सिंह (क्रांति प्रकाश झा) के बीच द्वंद और वर्चस्व की लड़ाई है। यह दोनों किरदार टेंडर के साथ ही हथियार और गोलाबारूद की तस्करी में भी शामिल थे। कहानी में विजय सिंह एक ऐसे युवा की कहानी है जो नैतिक विचार रखता था साथ ही सिविल सेवक बनना चाहता था। विजय सिंह के पिता वीरेंद्र सिंह (ज्ञान प्रकाश) की हत्या खान गिरोह द्वारा कर दी गयी। इसके बाद विजय सिंह अपराध की दुनियाँ में कदम रखते हैं। विजय सिंह और वसीम खान लगातार एक-दूसरे से झगड़ते रहते हैं। यह कहानी बनारस-गाजीपुर के बीच केंद्रित हिंसा और अपराध की पृष्ठभूमि पर आधारित है।

पंचायत वेब सीरीज: ओटीटी डिजिटल प्लेटफार्म पर एक ओर राजनीति, अपराध, कामुकता, अभद्र भाषाओं का प्रयोग देखने को मिलता है, वहीं दूसरी ओर पंचायत जैसी वेब सीरीज भी हैं। पंचायत भारतीय वेब सीरीज की दुनियाँ में एक अनोखा प्रयोग है। दीपक कुमार मिश्रा के निर्देशन में बनी पंचायत वेब सीरीज ओटीटी, अमेज़ॉन प्राइम वीडियो पर प्रसारित है। इसे वायरल फीवर नामक कंपनी ने बनाया है। अभी तक इस वेब सीरीज के कुल 24 एपिसोड और 3 तीन सीजन रिलीज हो चुके हैं। पहला 3 अप्रैल, 2020, दूसरा 18 मई, 2022 और तीसरा 28 मई, 2024 को प्रसारित हुआ। वेब सीरीज के निर्माता अरुनभ कुमार, कहानीकार चंदन कुमार और सिनेमोआटोग्राफर अमिताभ सिंह द्वारा किया गया है। पंचायत वेब सीरीज की कहानी ग्रामीण पृष्ठभूमि से जुड़ी हुई है। बलिया जिले के फुलेरा ग्राम को कहानी का आधार बनाया गया है, जबकि इसकी शूटिंग मध्य प्रदेश के सीहोर जिले के महोदिया गांव में किया गया है।

पंचायत वेब सीरीज के पहले सीजन में सचिव की भूमिका में जितेंद्र कुमार अभिषेक त्रिपाठी नजर आए, प्रधान की भूमिका में नीना गुप्ता ने मंजू देवी का अभिनय किया और प्रधान पति की भूमिका में रघुबीर यादव ने बृजभूषण दुबे के नाम से भूमिका निभाई। इसी प्रकार उप-प्रधान की भूमिका में फैजल मलिक, प्रहलाद पांडे के रूप में दिखाई देते हैं, वहीं सहायक सचिव की भूमिका में चंदन राय ने विकास नाम से अभिनय किया है। प्रधान की बेटी की भूमिका में सांविका रिंकी के रूप में दिखाई देती हैं तो, वहीं प्रधान के प्रतिद्वंद्वी के रूप में दुर्गेश कुमार ने भूषण की भूमिका में काम किया है। गाँव के सदस्य के रूप में अशोक पाठक ने विनोद की भूमिका में अभिनय किया है और पंकज झा विधायक चन्द्रकिशोर की भूमिका में नजर आते हैं। इसके अतिरिक्त कुल तीनों सीजन में कुछ पात्र और है जो जुड़ते चले जाते हैं जैसे, रवीना (आँचल तिवारी), बंग बहादुर (अमित कुमार मौर्या), कांति देवी (सुनीता रजवार), छोटन सिंह (गौरव सिंह), माधव (बुल्लू कुमार) और अंतिम सीजन में एक एपिसोड में एक बूढ़ी दादी के रूप में सराहनीय भूमिका में आभा शर्मा ने दमयंती देवी के रूप में काम किया है।

पंचायत वेब सीरीज में एक गाँव की प्रशासनिक व्यवस्था के प्रतिमान पर ग्रामीण राजनीति के ऊर्ध्वाधर स्वरूप को दिखाया गया है। एक प्रधान के रूप में व्यक्तिगत पद और प्रतिष्ठा को बरकरार रखने की सोच ग्राम सचिव के दायित्व से इस प्रकार घुल मिल गई है कि सार्वजनिक हित के कार्य भी राजनीतिक हित को साध कर किया जाता है। पंचायत की पटकथा इस रूप में पिरोइ गई है कि मानों घटनाएं एकदम अगल-बगल होती हुई नजर आती हैं। पंचायत का हर छोटा-बड़ा फैसला आपसी सहमति और सौहार्द को ध्यान में रखकर लिया जाता है, लेकिन सरकारी कामों को सफलतापूर्वक करवा कर ग्राम प्रधान व्यक्तिगत स्वार्थ की सोच से सारा श्रेय खुद ही लेना चाहता है। यहाँ एक पढ़े-लिखे सचिव हैं जो अपनी नौकरी से संतुष्ट नहीं हैं और एमबीए की तैयारी करते हुए अपना काम कर रहे हैं, कैरियर के दबाव और गाँव के फालतू मामलों में उनको उलझा हुआ दिखाया गया है। प्रधान की बेटी से छुपा हुआ प्रेम मानों वेब सीरीज में परस्पर चलने वाली एक अलग ही कहानी है। पंचायत में दूसरी ओर भूषण, विनोद, कांति देवी और माधव जैसे किरदार भी हैं जो गाँव के हर छोटे-बड़े मामलों में हस्तक्षेप कर रहे हैं। पहले सीजन में तो यह स्थिति कम थी लेकिन आखिरी सीजन तक कहानी ही पूरा प्रधानी के चुनाव की पूर्व स्थिति को केंद्र में रखकर लिखा गया है। विधायक चन्द्रकिशोर और फुलेरा की बदनाम सड़क के निर्माण के बीच का फासला प्रधान और विधायक के मध्य विवादों की डोर में फंस हुआ दर्शाया गया है। जहाँ एक ओर पंचायत अपनी पटकथा और पात्रों के शानदार अभिनय के लिए ओटीटी की लोकप्रिय वेब सीरीजों में सुमार है वहीं पर पंचायत वेब सीरीज की बहुत सी आलोचनाएं भी हैं। फुलेरा को एक ब्राम्हण वर्चस्व का गाँव दिखाया गया है, जिसमें प्रधान, उप-प्रधान, सचिव और सहायक सभी एक जाति के दिखाये गए हैं। वहीं, डी.एम. कुसुम शास्त्री भी ब्राह्मण हैं। वेब सीरीज में विनोद का भूषण के सामने नीचे बैठना और प्रहलाद पांडेय के खाट के नीचे जगमोहन का बैठना यह सब जातिगत भाव हैं जिनकी आलोचना भी खूब हुई, लेकिन सचिव और प्रहलाद द्वारा जगमोहन की माँ की सहायता करना भी दूसरा पक्ष है।

निष्कर्ष : पूर्वांचल उत्तर भारत का वह क्षेत्र है जहाँ न केवल हिन्दी भाषा बल्कि हिन्दी साहित्य का भी सबसे ज्यादा विकास हुआ है। भारतेन्दू हरिश्चंद्र ने प्रारंभिक हिन्दी के उत्थान में महत्वपूर्ण योगदान दिया तो प्रेमचंद और जयशंकर प्रसाद ने अपनी कहानियों के माध्यम से लोक अभिव्यक्ति को उजाकर किया। रंगभूमि उपन्यास की पृष्ठभूमि हो या कर्मभूमि का मैदान हो पूर्वांचल की भूमि ने हमेशा धरातलीय यथार्थ को चित्रित किया है। पांडेय बेचन शर्मा 'उग्र' ने सबसे पहले 'चॉकलेट' नामक कहानी श्रृंखला के माध्यम से होमोसेक्सुअलिटी (समलैंगिकता) जैसे मुद्दे को साहित्य के माध्यम से उठाया। बुधुआ की बेटी नामक यथार्थवादी उपन्यास में दलित विमर्श की नींव रखी। लेकिन समय बदल रहा है, लोग आज सिनेमा से समाज को देखने की जद्दोजहद में अपने यथार्थवादी साहित्य को पढ़ना भूल गए हैं। ओटीटी डिजिटल प्लेटफार्म इक्कीसवीं शताब्दी का सबसे बड़ा परिवर्तन है जिसने सिनेमा के परिदृश्य को ही बदल दिया। इसमें वेब सीरीज की महत्वपूर्ण भूमिका रही है। वेब सीरीज को अब संचार कानूनों द्वारा नियंत्रित करने का लगातार प्रयास किया जा रहा है लेकिन वह आज भी सेंसर के कठोर नियमों से मुक्त है। फ़िल्म निर्माता और समीक्षकों का एक बड़ा वर्ग अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के आधार पर वेब सीरीज का भरपूर समर्थन कर रहा है तो वहीं दूसरा वर्ग ऐसा भी है जो डिजिटल प्लेटफार्म पर चरित्र हनन, हिंसा और अश्लीलता फैलाने के आधार पर कठोर नियम बनाने की मांग कर रहा है। ऐसे में वेब सीरीज की लोकप्रियता बनी रहे और उसके विषयवस्तु की प्रासंगिकता बनी रहे इसपर विचार होना चाहिए।

पूर्वांचल का अपना इतिहास रहा है और इस क्षेत्र की अपनी संस्कृति भी रही है। पूर्वांचल लोक संस्कृति और लोक गीतों के लिए भी जाना जाता है। बिना सेंसरशिप के अगर अश्लीलता को दिखाया जा सकता है तो लोक संस्कृति और लोक गीतों को भी प्रचारित किया जा सकता है। ओटीटी प्लेटफार्म पर अभी तक पूर्वांचल की राजनीति, प्रतिस्पर्धा और गैंगवार को आधार बनाकर वेब सीरीज बनाया गया है। मिर्ज़ापुर, रंगबाज़ और रक्तांचल जैसे वेब सीरीज के द्वारा पूर्वांचल के सड़क, बाज़ार और नदी को बख़ूबी दिखाया गया है लेकिन पूर्वांचल की संस्कृति को आधार बना कर ऐसा कुछ नहीं किया गया। पंचायत वेब सीरीज इस घटना क्रम में एक अपवाद है। पंचायत की लोकप्रियता देखकर यह कहा जा सकता है कि हिंसा, अश्लीलता और अपराध के बिना भी एक रोचक वेब सीरीज बनाया जा सकता है। पूर्वांचल की ग्राम संस्कृति और लोकगीत सोहर को पंचायत वेब सीरीज में सम्मलित किया गया, जिसपर मीम भी खूब बन रहे हैं और सोहर लोकगीत खूब प्रसिद्ध हुआ। विलुप्त होते लोक संस्कृति एवं उसकी परंपरा को संजोने का ओटीटी बड़ा प्लेटफॉर्म बन सकता है। कोविड 19 के बाद से भारतीय सिनेमा एवं टेलीविजन में बड़ा बदलाव देखने को मिलता है। ओटीटी इस व्यापक बदलाव का सार्थक पर्याय और जनमानस के लिए प्रासंगिक बन सकता है।

संदर्भ :
  1. https://www.abhidhvajlawjournal.com/censorship-of-ott-platforms-a-boon-or-bane/
  2. दर्शन श्रीधर मिनी, “वेयर इज सिनेमा”, इंडिया इंटरनेशनल सेंटर, वॉल्यूम.47, अंक, 3/4, 2020-22, पृष्ठ.116. https://www. jstor.org/stable/10.2307/27130901
  3. डॉ. एस के मुजिबर रहमान, डॉ. सुदीप्ता मंडल, “ओटीटी मीडिया सर्विस एंड यूज ऑफ इंटरनेट इन इंडिया ड्यूरिंग कोविड-19 पैंडमिक: ए स्टडी ऑफ नेटफ्लिक्स”, इंटरनेशनल जर्नल ऑफ मल्टीडिस्पेनरी रिसर्च एंड ग्रोथ एवोल्यूशन, वॉल्यूम.03, अंक.05, सितंबर-अक्टूबर 2022, पृष्ठ.82.
  4. वहीं, पृष्ठ.82.
  5. क्षामली संजय सोनकट्टे, “ट्रेंड इन ओटीटी प्लेटफार्म यूसेज ड्यूरिंग कोविड-19 लॉकडाउन इन इंडिया,” जर्नल ऑफ साइंटफिक रिसर्च, बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी, वॉल्यूम. 65, अंक.08, मई 2021, पृष्ठ.112-13
  6. https://www.britannica.com/topic/Central-
  7. https://aishwaryasandeep.in/censorship-of-web-series-pros-cons/
  8. https://www.abhidhvajlawjournal.com/censorship-of-ott-platforms-a-boon-or-bane/
  9. कृतिका शर्मा, पल्लवी मिश्रा, “ए स्टडी ऑन इंवेस्टिगेटिंग दी सोइटल इम्पैक्ट ऑफ रियल लाइफ नैरेटिव इन इंडियन वेब सीरीज,” एजुकेशनल एडमिनिस्ट्रेशन: थ्योरी एंड प्रैक्टिस, वॉल्यूम.29, अंक.04, 2023, पृष्ठ.611-617.
  10. वहीं, पृष्ठ 611-617
  11. https://www.researchgate.net/publication/350669991
  12. अभिरुप भद्रा, अमित कुमार सिंह, “ए रिव्यू ऑफ मिर्ज़ापुर सीजन वन, शोविंग हाऊ मीडिया फ्रेमस गन कल्चर एंड एब्यूजिंग लैंग्वेज,” ग्लोबल मीडिया जर्नल, वॉल्यूम.20, अंक.48, सित. 2022, पृष्ठ.87.
  13. वही, पृष्ठ.86.
  14. प्रतीक खन्ना, मयंक मालवीय, “आइडेंटिफिकेशन ऑफ सक्सेस फैक्ट्री फ़ॉर मिर्ज़ापुर वेब सीरीज,” सैंलेक्स इंटरनेशनल जर्नल ऑफ मैनेजमेंट, वॉल्यूम.07,अंक.03, पृष्ठ.05.अक्टूबर 2020,पृष्ठ.66.
  15. डॉ. गजला भोजे, महवास नवीद पटेल, “ओटीटी मीडिया सर्विस: ए चेंज इन ट्रडिशनल टेलीविजन एक्सपीरियएस एक्सपीरियंस,” इंटरनेशनल जर्नल ऑफ इनोवेटिव रिसर्च इन मल्टीडिस्प्लेनरी फील्ड, वॉल्यूम.08, अंक.03 मार्च 2022, पृष्ठ.43-44.
  16. वही, पृष्ठ.
  17. एमएस सीपी रश्मि, डॉ. ऋतु एस.शूद, “पोर्टट्रायल ऑफ वीमेन इन इंडियन क्राइम वेब सीरीज: ए नरेटिव एनालाइज एंड सर्वे,” तुर्किश ऑनलाइन जर्नल ऑफ क्वालिटेटिव इन्क्वायरी, वॉल्यूम.12, अंक. 09, अगस्त 2021, पृष्ठ. 2115.
  18. डॉ. अर्चना चानुवाई नरहरी, श्रीमती सोनाली मुखर्जी, “इफ़ेक्ट ऑफ क्राइम रिएलटी शो ऑन इंडियन व्यूवर, ए स्टडी,” आइ.जे.सी.आर.टी, वॉल्यूम.06, अंक.01, जून 2018,पृष्ठ.19
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  20. विनोद एस कोरावी,”एनालाइज ऑफ वैरियस इफ़ेक्ट ऑफ वेब सीरीज स्ट्रीमिंग ऑनलाइन ऑन इंटरनेट ऑन इंडियन यूथ,” इंटरनेशनल जर्नल ऑफ रिसर्च अंडर लिटेरर एक्सेस, वॉल्यूम.02, अंक.01, जनवरी 2019,पृष्ठ.52.
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  22. https://www.rozanaspokesman.com/entertainment/bollywood/170624/panchayat-web-series-real-story-phulera-village-is-actually-real.html
  23. धीरेंद्र कुमार साहू, अनिरुद्ध जेना, “पंचायत: कॉस्टिज्म एंड मोनार्की इन दी नेम ऑफ ह्यूमर,” इकोनॉमिक एंड पोलिटिकल वीकली, वॉल्यूम.58, अंक.17, अप्रैल 2023, पृष्ठ.65-66.
  24. https://pure.jgu.edu.in/8069/1/Panchayat%20and%20Phulera_%20What%20Urban%20Indian%20Dreams%20Are%20Made%20Of.pdf
  25. विपुल तिवारी, “इम्पैक्ट ऑफ वेब सीरीज, ओटीटी कंटेंट ऑन लैंग्वेज एंड सोसाइटी, एन एम्पीरिकल स्टडी,” जर्नल ऑफ क्रिटिकल रिव्यू, वॉल्यूम.06, अंक.02, 2019, पृष्ठ.256.
  26. डॉ. पॉल. टी. बेंजीकर, के. बी शंकरनारायण, "स्टडी ऑन दी इफ़ेक्ट ऑफ वेब सीरीज ऑन युथ थॉट थ्रू ओटीटी मीडिया,” इंटरनेशनल जर्नल ऑफ एडवांस एंड इनोवेयटीव रिसर्च, वॉल्यूम.08,अंक.10,मार्च 2021-22, पृष्ठ.35.
  27. नीरज बुनकर, “पंचायत: रूलर दलित इन सवर्ण फैंटेसी,” राउंड टेबल इंडिया, 31 मई 2022. https://www.roundtableindia.co.in/panchayat-rural-dalit-in-savarna-fantasy/
प्रवीण कुमार मिश्र
शोध छात्र, इतिहास विभाग, सामाजिक विज्ञान संकाय काशी हिन्दू विश्वविद्यालय, वाराणसी,221005
praveenishra@gmail.com, 902647342

सिनेमा विशेषांक
चित्तौड़गढ़ (राजस्थान) से प्रकाशित पत्रिका
UGC CARE Approved  & Peer Reviewed / Refereed Journal 
  अपनी माटी (ISSN 2322-0724 Apni Maati) अंक-58, दिसम्बर, 2024
सम्पादन  : जितेन्द्र यादव एवं माणिक सहयोग  : विनोद कुमार

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