शोध आलेख : पंकज मित्र की कहानियों में भूमंडलोत्तर बाजार जनित परिदृश्य / दिनेश कुमार शर्मा

           शोध आलेख : पंकज मित्र की कहानियों में भूमंडलोत्तर बाजार जनित परिदृश्य / दिनेश कुमार शर्मा 

शोध सार :

भूमंडलीकरण के बाद देश की आर्थिक नीतियों में ग्लोबल गाँव की अवधारणा के अनुरूप संशोधन किया गया। नये अर्थतन्त्र ने गाँव-कस्बों के रोजी रोटी के साथ सामाजिक सम्बन्धों को प्रभावित किया है। पंकज मित्र की कहानियों में भारतीय समाज के वर्तमान की गहरीपड़तालकी गई है। भूमंडलीकरण और उन्मुक्त पूंजीवाद के बाद परिवार से बाजार तक रिश्तों के बदलते समीकरणों पर लेखक ने ध्यान केन्द्रित किया है। इनकी कहानियों में अपने स्वभाव और बचे-खुचे जीवन के लिए जिद करते स्वप्नमय बाबू, कर्ज की दहशत और उसके लोलुप आकर्षण के मारे बिलौटी महतो, ऊलजुलूल जीवन में उलझे बंटी, बबली, विचित्र विस्थापन के शिकार अनिकेतन बाबूबे ला का भू का तेजतर्रार बेचूलाल या हुड़ुकलुल्लु का महाकाल सब अपने स्वाभाविक रूप में स्थितियों की मार झेलते अपने समय से टकराकर लहूलुहान होते चरित्र है। कहानियों में विशेष रूप से कस्बा अपनी सम्पूर्ण हलचलों के साथ उपस्थित हुआ है। भूमंडलोत्तर बाजारवाद के संवेदनहीन विस्तार से मानवता की हत्या की मीमांसा क्विजमास्टर, बिनु पानी डॉट कॉम, बोनसाई और पड़ताल कहानियों में की गई है। इस तरह पंकज मित्र ने भूमंडलोत्तर बाजार के भारतीय परिवेश पर होने वाले प्रभाव को रेखांकित किया है।            

बीज शब्द : भूमंडलोत्तर परिदृश्य, पूंजीवाद, वैश्वीकरण, बाजारवाद, शहरीकरण, अर्थतन्त्र।

मूल आलेख :

          पूंजीवादी व्यवस्था में पूंजी अपने प्रसार के असीमित विकल्पों का चुनाव करती है। इस व्यवस्था में बाजार की अहम् भूमिका होती है। बाजार भी ऐसा जिस पर किसी प्रकार नियंत्रण नहीं हो। भूमंडलोत्तर परिदृश्य में मुक्त बाजार की संकल्पना प्रमुख थी। पूंजीवादी देशों द्वारा अपने लाभार्थ तीसरी दुनिया के संसाधनों पर अधिकार एवं तैयार माल को खपाने के लिए बाजार की आवश्यकतापूर्ति ने वैश्विक दुनिया के एकीकरण की अवधारणा को प्रस्तुत किया। क्योंकि बाजारवादी व्यवस्था में संसाधनों के उपयोग की एक सीमा बाद सीमान्त उपयोगिता का नियम लागू होने पर ह्रासमान लाभ अर्जित होने लगता है। इस ह्रासमान लाभ से बचने एवं पूंजी के केन्द्रीकरण की अभिलाषा ने पश्चिम राष्ट्रों के पुरोधाओं में विश्व कल्याण की आड़ में भौतिक संसाधनों पर अधिकार जमाने की प्रतिस्पर्धा होने लगी। भारत में वैश्वीकरण, उदारीकरण, निजीकरण की प्रक्रिया इसी का परिणाम है। वैश्वीकरण के साथ ‘वैश्विक गाँव’ की अवधारणा ने विश्व बाजार को भारतीय शहरों से लेकर सुदूर गांवों तक अपनी पहुँच को सुनिश्चित किया है जिससे प्राकृतिक और मानवीय संसाधनों पर अधिकार किया जा सके। मुनाफा प्रेरित बाजार ने भारतीय गांवों के आर्थिक, सामाजिक, सांस्कृतिक स्वरूप में परिवर्तन किया है। समकालीन कथाकार पंकज मित्र ने अपने कथा साहित्य में इस परिवर्तन को चिह्नित किया है।

        समकालीन युवा कथाकारों में विशिष्ट पंकज मित्र का प्रथम कहानी संग्रह हुड़ुकल्लु है जो 2008 में प्रकाशित हुआ है। इस संग्रह की कहानियों में आज, कल, परसों तक...’, ‘बैल का स्वप्न’, ‘फ़ीमेल आईडी’, ‘लकड़िया पीर और ड्रिफ्टवुड’, ‘हरी पुत्तर और गज़ब खोपड़ी’, ‘बे ला का भू’, ‘निकम्मों का कोरस’, ‘हुड़ुकलुल्लु आदि है। इन कहानियों में अस्सी के दशक के बाद होने वाले आर्थिक परिवर्तनों के परिणाम स्वरूप गाँव-कस्बों की परिधि, रोजी-रोटी के साधन, रिश्ते-सम्बन्धों आदि के स्वरूप में व्यापक बदलाव को रेखांकित किया है। संग्रह की कहानियों में भी विद्रूपता एवं विडम्बना का एक खेल चलता रहता है और इस खेल में खुद कथाकार भी खिलंदड़ा हो जाता है पर कथ्य के रचाव या चरित्रों के विकास में वह हस्तक्षेप कभी नहीं करता। चरित्र अपनी तमाम क्षुद्रताओं के साथ कथ्य में उतरते हैं और विडम्बना के सधे प्रयोग द्वारा पंकज उनके मानवीय बोध को सामने ले आते हैं1 पंकज मित्र का दूसरा कहानी संग्रह क्विज़ मास्टर और अन्य कहानियाँ 2011 में प्रकाशित हुआ है। इस संग्रह में क्विज़मास्टर’, ‘बिन पानी डॉट कॉम’, ‘अपेंडिसाइटिस’, ‘एक अधूरी दास्तान’, ‘बोनसाई’, ‘लकड़सुघा’, ‘अफसाना प्रदूषण का... आदि कहानियाँ है। पंकज मित्र का तीसरा कहानी संग्रह ज़िद्दी रेडियो 2014 में प्रकाशित हुआ है। इस संग्रह में ज़िद्दी रेडियो’, बिलौती महतो की उधारफिकिर’, कस्बे की एक लोककथा बतर्ज बंटी और बबली’, जोगड़ा’, प्रो. अनिकेतन का निकेतन’, चमनी गञ्झू की मुस्की’, एक चुप्पे की चुपकथा’, पप्पू कांट लव सा...., बिजुरी महतो की अजब दास्तान’, सेंदरा आदि कहानियाँ संग्रहित है। इस संग्रह की कहानियों में भूमंडलीकरण और उन्मुक्त पूंजीवाद के बाद परिवार से बाजार तक रिश्तों के बदलते समीकरणों पर लेखक ने अपना ध्यान केन्द्रित किया है2 ज़िद्दी रेडियो में जहां उदारीकरण के पश्चात तकनीक और बैंकिंग विकास ने पूंजी प्रवाह को सरल बनाया है वहीं भारतीय ग्रामीण परिवारों में पीढ़ी टकराहट को बढ़ाया है।

        2017 में पंकज मित्र का नया कहानी संग्रह वाशिंदा@तीसरी दुनिया प्रकाशित हुआ। इस संग्रह में वाशिंदा@ तीसरी दुनिया’, सहजन का पेड़’, अजबलाल एम. डी. एम.’, कांझड़ बाबा का थान’, जलेबी बाई डॉट कॉम’, अधिग्रहण’, फेसबुक मेन्स पार्लर’, कफन रिमिक्स’, सोहर भुइया की बकरियाँ’, मनेकि लबरा नाई की दस्तान’, द इवेंट मैनेजर आदि कहानियाँ संग्रहित है। वाशिंदा@तीसरी दुनिया कहानी में विकसित राष्ट्रों द्वारा समय के साथआउट ऑफ टाइमहोती तकनीक को विकासशील राष्ट्रों में मदद के रूप हस्तांतरित किया जा रहा है। अधिग्रहण औरकांझड़ बाबा थानमें रियल स्टेट व्यवसाय के सामाजिक प्रभाव को रेखांकित किया गया है। संग्रह की अन्य कहानियों में भूमंडलीकरण और विज्ञापन के भंवर में भारतीय सामाजिक-आर्थिक परिदृश्य में परिवर्तन को संकेतित किया गया है।  

        पंकज मित्र की कहानी जिद्दी रेडियो वैश्विक गाँव की अवधारणा के पश्चात भारतीय ग्रामीण एवं कस्बाई जीवन में परिवर्तित सामाजिक संरचना एवं सांस्कृतिक प्रभाव का मार्मिक अंकन करती है। जिद्दी रेडियो में स्वपन बाबू जो टाईपराइटर की मामूली नौकरी से अपने परिवार का निर्वाह कर रहे है। उनकी आवश्यकताएं अधिक नहीं है, लेकिन सीमित आय में सामाजिक नैतिकता एवं खुशहाली का जीवन जी रहे है। वहीँ बेटा पैसों के लिए बैंक रिकवरी एजेंट के नाम पर अपने ही लोगों को डराने-धमकाने तथा नैतिक संवेदना को फालतू मानता है। बाजार सर्वप्रथम आपको सपने दिखाता है और उस सपने को पूरा करने के लिए आपको उकसाता है। बाजारवादी व्यवस्था इस सपने को पूरा करने में सामाजिक नैतिकता को राह का रोड़ा समझ कर पहले इसे मस्तिष्क से बाहर निकालती है। बाजार आपको दिखाता है कि पढाई-बढाई से साला कुछ नहीं होता, असल बात है पैसा कमाना – वोलिवुडीय शब्दावली में कहा था – रोकडा होना मांगता समझा क्या ?3 और इस रोकडा माँगने के सपने में ही वह रिकवरी एजेंट बना। दूसरी तरफ घोष दा है जो अपने सामजिक कल्याण के लिए लोन पर कम्प्यूटर सेंटर खोलते है और वे रिकवरी एजेंट बाबू का हाल बयाँ करते है– तीसरे ही महीने ईएमआई का दैत्य पीछे पड़ गया। घोष दा भागते जाते पसीने पसीने होकर हांफते–हांफते ईएमआई का दैत्य पीछे पीछे, साथ में बाइक्स का हॉरर म्यूजिक।”4 इस स्थिति में देखने वाली बात यह है कि बाजार अपने तैयार माल के लिए किस तरह ग्राहक ढुंढता है। वह आपको कहता है कि आप सामान ले जाए तथा थोड़ी थोड़ी किश्तों में पैसा दे बिना किसी अतिरिक्त भुगतान के। बाजार की छल-प्रपंच से दूर ग्रामीण सहज जीवन उससे प्रभावित होता है और संसाधन खरीदने की आसान राह ही उसके जीवन से मौत का कारण बनती है। बाजार छल प्रपंच के द्वारा तीसरी दुनिया की सामजिक-सांस्कृतिक व्यवस्था में घुसपैठ करता है। कहानी ‘जिद्दी रेडियो’ में इसे आसानी से समझा जा सकता है। जहां स्वप्नबाबू और घोष दा सामंती सामाजिक व्यवस्था के अंग रहे थे वहीँ बाबू बाजारवादी व्यवस्था के पुर्जे के रूप में अपने ही लोगों का विरोध करता है।   

        भूमंडलीकरण के बाद आर्थिक क्षेत्र में हुए परिवर्तनों ने जहां व्यवसाय और रोजगार के नए अवसर पैदा किए है, वहीँ नए व्यवसायिक मूल्यों का सर्जन भी किया है। कमीशन एजेंट को किसी जमाने भले ही दलाल या दल्ला जैसे अपमानजनक शब्दों से संबोधित किया जाता रहा हो लेकिन नए व्यवसायिक माहौल में यह एक सम्मानजनक पेशा है। बल्कि सच तो यह है कि खुली अर्थव्यवस्था में पारिश्रमिक और प्रतिफल का एक बड़ा हिस्सा कमीशन के रूप में ही दिया-लिया जाता है। पंकज मित्र की कहानी ‘बे ला का भू’ का मुख्य पात्र बेचू लाल गुप्ता इसी तबके का प्रतिनिधि चरित्र है। जिसकी जिन्दगी उन्मुक्त बाजार की उमगती-इठलाती चाल से इतनी बुरी तरह प्रभावित है कि अपनी साख खोकर अपने आस-पास के लोगों से मुँह चुराता हुआ वह जीते-जी भूत बन गया है। बेचुलाल जो हाड़तोड़ परिश्रम के बदौलत शनै:-शनै: तरक्की की सीढियाँ चढ़ रहा था। ओ.पी. सर द्वारा दिखाए तथाकथित बड़े सपनों के मायाजाल में ऐसा फंसता है कि क्या पड़ौसी क्या रिश्तेदार एक दिन वह खुद से भी दूर जा बैठता है, इतनी दूर जहां लोगों की पकड़ में आ जाने का भय उसे जीवित ही भूत बनने को मजबूर कर देता है। यह नई व्यवस्था पहले रिश्ते-नातेदारों की बलि मांगती है फिर खुद की। तभी तो एक दिन उत्साह में ओ.पी.सर को भईया कह जाने पर ओ.पी. बेचू से कहता है– दिस इस बिजनेस। यहाँ भैया, चाचा ये सब नहीं चलता है। गीता पढ़ी है तुमने। कोई किसी का नहीं है। सब अपना काम करने आए है। सो कॉल मी ओनली ओ.पी. और ओ.पी. सर, अंडरस्टैंड।5

        भूमंडलीकरण के बाद के व्यावसायिक परिदृश्य में सपनों के व्यापार का एक ऐसा सिलसिला चल पड़ा है जिसने क्या शहर, क्या महानगर यहाँ तक कि छोटे-छोटे गाँव-कस्बों के लोगों तक की आँखों में स्वप्न और यूटोपिया के नाम पर येन-केन प्रकारेण रातों रात करोड़पति बन जाने की एक अंतहीन महत्वाकांक्षा के बीज रोप दिए हैं। जिसके लिए हर व्यक्ति एक प्रॉफिट सेंटर तथा हर रिश्तेदार एक पोटेंशियल कस्टमर होता है। सपनों की खरीद-फरोख्त का यह धंधा दरअसल पूंजी और उसके निर्माण का एक ऐसा खेल है जिसकी गिरफ्त में बेचू लाल जैसे बेरोजगार और निरीह लोग आसानी से आ फंसते हैं।

        उदारीकरण के बाद कर्ज व्यवसाय को जैसे अनगिनत पंख लग गए हैं। मध्यमवर्गीय महत्वाकांक्षाओं को पूरा करने के लिए बैंको के बीच उधार बांटने के लिए जैसे होड़-सी लगी है। कर्ज लेने से ज्यादा बांटने और बेचने की चीज हो गई है। आप सपने देखिए और आपके सपनों के पीछे देश और दुनिया के तमाम सरकारी और निजी बैंक अकल्पनीय सुविधाओं के चमचमाते रैपर में लपेट कर अपने लोन स्कीम के नए-नए प्रोडक्ट्स लेकर आपकी सेवा में हाजिर मिलेंगे। लेकिन बिना वसूली के कर्ज एक अपूर्ण उत्पाद है। नए जमाने ने जहां नए-नए तरह के कर्जों को हमारे सामने पेश किया है वहीँ उनकी उगाही के लिए नई-नई तकनीकें भी विकसित की है। परिणामस्वरूप रिकवरी मैनेजमेंट यानी वसूली प्रबंधन आज एक नए व्यवसायिक अनुशासन के रूप में हमारे समक्ष मौजूद है। कहानी ‘मित्र की उदासी’ इसी नए व्यवसाय की बारीकियों और उससे उत्पन्न नई बिडंबनाओं को उजागर करती है। 

        अपने उत्पाद को बेचने के लिए नए जमाने के व्यवसायी किस तरह दर्शन को एक ‘सेल्स टेकनीक’ की तरह उपयोग में लाते है। बे ला का बू’ में बेचू लाल को उसकी दुविधाओं से उबारने के लिए ओ. पी. जहां गीता के निष्काम कर्म और निरपेक्ष सम्बन्ध के सूत्रों की दुहाई देता है वहीँ ‘मित्र की उदासी’ में रिकवरी एजेंट बना सलोने सिंह अयोध्या प्रसाद के प्रश्न ‘कहाँ से लाए पैसा’ के जवाब में बेहद आत्मीय ढंग से ठंडी और डरावनी सलाह देते हुए कहता है – अयोध्या बाबू, ये जीवन क्षण भंगुर है। योगिनी का जीवन जियो। जो आज है, कल नही रहेगा। फिर क्यों ये घर रखे हों? सादा जीवन उच्च विचार। किराए का कमरा लो और मस्त रहो। तुम क्या लेकर आए थे, जो तुमने खो दिया। स्त्री नरक का मार्ग है, परित्याग करो, खर्च कम हो जाएगा। श्वर में विश्वास करो6 घर का सपना दिखा कर कर्ज देने के बाद ब्याज का भय दिखा कर घर त्याग देने की यह दार्शनिक सलाह दरअसल एक खतरनाक धमकी है और सलोने के रूप में खड़ा यह रिकवरी एजेंट बैंको के चिकने काउंटर पर लोन बाँटते खूबसूरत सेल्स रिप्रजेंटेटिव्स का प्रतिलोम। भूमंडलीकरण के समानान्तर सूचना और संचार क्रांति का उल्लेखनीय विस्तार आर्थिक, सामाजिक और राजनैतिक स्तर पर एक बड़े बदलाव की भूमिका लिखता है। नई-नई सूचनाओं और नए-नए उत्पादों के बीच हम मनुष्य से उपभोक्ता में तब्दील होने लगते हैं या कि कर दिए जाने लगते हैं। ज्ञान और जानकारी के खुलते नए गवाक्षों के बीच बाजार हमारी संवेदना को लगभग अपनी मुट्ठी में कैद कर लेता है।7       

        भूमंडलोत्तर परिदृश्य में जहां शहरी जीवन सूचना, संचार, तकनीक से लाभान्वित हुआ है, वहीं ग्रामीण-कस्बाई लोगों का सहज जीवन आक्रान्त हो रहा है। तकनीक के विस्तार के कारण ग्रामीण जीवन बैंक आकर्षण के साथ अपना सब कुछ खो देने की पीड़ा भी झेल रहा है। बिलोती महतो की उधार–फिकिर’ कहानी में बिलोती महतो एटीएम मशीन के आकर्षण में अपने अर्जित धन को बैंक में जमा कराते है जिसको मौका पाकर उनका ही बेटा मोटरसाइकिल खरीदने के लिए निकलवा लेता है। दुर्घटना में बाबू की मृत्यु के साथ बैंक जमा भी शून्य होती है। दूसरी तरफ वैश्विक निगमों के भ्रमित विज्ञापनों के शिकार किसान हो रहे है। यही हरी चमक दिखी उन बीजों के पैकेटों पर भी इंडों यू.एस. हाइब्रिड – सीधे खेत में ही जमा दी थी दूकान। लाल नीली बडीसी छतरी। टेबल पर लाल हरी फसलों वालें बीजों के पैकेट.. लाल टमाटरों की नयनाभिराम छवियाँ....... चुग्गी दाडीवाला बोला, अंकल गारंटी लेता हूँ। आप लगाकर तो देखिए। नाइंटी परसेंट मतलब सौ में से नब्बे पौधा तो निकलना ही है। पढ़ना जानते है। पढ़िए नाइंटी परसेंट जर्मिनेशन।8 वैश्विक निगमों द्वारा बीजों के नाइंटी परसेंट जर्मिनेशन की गारंटी के विज्ञापन द्वारा किसानों को आकर्षित किया जाता है और गौर करने वाली बात यह है कि इस ठगी में भागीदारी निभाने वाले अपने ही लोग है। बीजों के जर्मिनेशन नहीं होने पर बिलोती महतो चुग्गी दाढ़ीवाले से गारंटी के लिए पूछते है तो जबाव मिलता है– हम अब उसमें कहाँ है महतो जी कंपनी छोड़े तो दो महीना हो गया। अब तो क्रेसेंटो में चले गए हैं। तनख्वाह ज्यादे मिला तो जम्प मार दिया। धान के बीज चाहिए तो बोलियेगा, अब इसका गारंटी देंगे।9 कोरपोरेट संस्कृति के लाभ एवं तनख्वाह बढ़ाने के लिए जंप करने की प्रवृति ने यहाँ के लोगों में अविश्वास, अस्थिरता, धोखा, क्षुद्र लालच में अपने ही लोगों को शिकार करने को बढ़ावा दिया। इससे अधिकतर गाँवों एवं कस्बों में आपसी भाईचारे के संबंधों में टकराहट होने लगी है। बाजार के नियन्ता बहुराष्ट्रीय निगम अपनी संस्कृति में सर्वप्रथम विक्रेता और क्रेता के मध्य उपभोक्ता या क्लाइंट का सम्बन्ध को बढ़ावा देते हैं, जिससे मुनाफे में बाधित रिश्ते-संबंधों को दूर किया जा सके। दिस इज बिजनेस। यहाँ भइया, चाचा ये सब नहीं चलता है। गीता पढ़ी तुमने? कोई किसी का नहीं है। सब अपना काम करने आये हैं।10 इसी मंत्र से प्रेरित होकर बेचुलाल ने अपने ही लोगों को शिकार बनाना शुरू किया। कोई दादा, भैया, चाचा नहीं, सब तुम्हारे क्लाइंट है।11    

        बाज़ार के नए स्वरूप के विस्तार में सहायक सूचना-संचार क्रांति के सहारे वैश्विक पूंजी ने अपने रास्ते बाज़ार के माध्यम से बनाने शुरू किए है, जिसमें ठगी के शिकार हुए मध्यम वर्ग के लोग। यह सब कुछ के बिकने की आतुरता वाला नया अर्थशास्त्र है। बाजार अब नशा है। बाजार अब शक्ति नियंत्रण केंद्र है जहाँ चीजों और चीजों की जरुरत के साथ-साथ महत्त्वाकांक्षाएं और सपने भी बेचे जाते है।12 रियल एस्टेट के विज्ञापन ‘अपना भी तो कोई परमानेंट एड्रेस होना चाहिए’ से प्रभावित होकर कहानी ‘प्रो. अनिकेतन का निकेतन’ में प्रो. अनिकेतन अपनी जमापूंजी के साथ कर्ज तथा कर्ज न चुका पाने की विवशता में सबकुछ खो देता है, क्योंकि पूंजी के महादानवों के शिकार गडहा-ढोडहा, नाली-गली, श्मशान-कब्रिस्तान हर जगह बन रहे थे बस परमानेंट एड्रेस – फलां सदन, चिलां भवन।13 इसी दौरान निकेतन की लालसा को पूर्ण करने के लिए प्रो. अनिकेतन की यात्रा वाया बैंक एजेंट वाया बैंक लोन वाया कागज़-पत्तरों के एक ढेर14 से शुरू होकर पूरी होती है। लेकिन रियल स्टेट्स एजेंट, स्थानीय दलाल के साथ-साथ बैंक वालों के शिकार अनिकेतन को बेघरवार होना पड़ता है।

        उदारीकरण के बाद वैश्विक कंपनियों में भारतीय संसाधनों पर अधिकार एवं उपभोग में प्रतिस्पर्धा होने लगी, जिसके फलस्वरूप कम्पनी प्रतिनिधियों ने राजनीति एवं अर्थ के गठबंधन का सहारा लेना प्रारम्भ किया। ‘बिजुरी महतो की अजब दास्तान’ कहानी में बिजुरी महतो उर्फ़ कौलेसर चा अपने लोगों की आवश्यकतापूर्ति के लिए बिजली उत्पादन करना चाहते है, लेकिन कंपनी कोयला जमीन पर अधिकार करना चाहती है। ‘कम्पनी के प्रतिनिधि और कौलेसर-रामेसर के बीच कुछ होना नहीं था, नहीं ही हुआ। कम्पनी के प्रतिनिधि ने रिपोर्ट भेज दी – पावर प्लांट के लिए जमीन लेना मुश्किल है। सरकारी हस्तक्षेप जरुरी है। सीम्स टू हैव जंगल कनेक्शन। कम्पनी के आला अफसरान दिल्ली में ऊर्जा मंत्रालय, कोयला मंत्रालय करने लगे।’15

        भूमंडलोत्तर परिदृश्य में राजनीति एवं अर्थतंत्र के व्यामोह में आम नागरिक ही पिसता रहा है। देश में एक तरफ राजनेता करोड़ों रोजगार देने का वादा करते है तो दूसरी तरफ विदेशी आयात के बढ़ने से स्थानीय कम्पनियाँ कर्मचारियों की छटनी करने में लगी है, क्योंकि वैश्विक निगमों एवं विदेशी आयात के बनिस्पत वे अपने अस्तित्व बचाने के संकट से जूझ रही है। ‘आज, कल, परसों तक’ कहानी में एक तरफ प्रधानमन्त्री करोड़ों रोजगार देने का वादा कर वाहवाही लूट रहे है, वहीँ दूसरी तरफ स्थानीय संस्थाओं के संकट की वजह से किसान आत्महत्या कर रहे है। प्रधानमन्त्री ने हर साल एक करोड़ रोजगार देने का वादा किया ......... कई बड़ी कम्पनियों के विनिवेश का प्रस्ताव .... न्यूज फ्लैश ग्लोप्लास्ट कंपनी नोएडा के सामने एक कर्मचारी ने आत्मदाह किया।’16 वैश्विक प्रतिस्पर्धा में आम नागरिक दोहरी मार झेलता है। किसान अपने उत्पाद का सही मूल्य नहीं मिलने से आत्मदाह करता है तो शिक्षित युवा कंपनियों की छटनी की मार झेल रहे है मर गया और क्या .. जला लिया खुद को .. कल रात .. इतना काबिल वर्कर .. डेथ वारंट में नाम जो निकल गया था...... उधर सटा है .... हर एक-दो महीने में निकलता है .... भगाओ, आदमी भगाओ- बोझ है कंपनी पर, चाइना के माल से कम्पीट करना है  .... सब बेच देंगे साले।17 दूसरी तरफ प्रधानमंत्री विदेशी निवेश बढ़ाने के लिए प्रोत्साहन योजना में लगे हुए है।

        बाजारवादी अर्थव्यवस्था ने समाज में प्रत्येक कार्य को पूंजी उत्पादन के साधन में बदल दिया है। चाहे वो रिश्ते- संबंध हो या शिक्षा जैसा सामाजिक सेवा का कार्य हो, सब कुछ को उपभोक्ता वस्तु के रूप में बाजार में बेचने का शास्त्र नई पूंजीवादी व्यवस्था ने गढ़ा है, जिसके कारण आज शिक्षा को व्यवसाय का नया रूप दिया जा रहा है। क्विजमास्टर कहानी में कुमार क्विज के माध्यम से अपने कस्बे के बच्चों को मानसिक कसरत करता है। लेकिन व्यवस्था के दबाव में वह भी शिक्षा व्यवसाय की ओर बढ़ता है। अरे गोली मारिये गेम-उम को... पैसा कमाइये पैसा। बरेन है तो बरेन से कमाइये- जो चीज है आपके पास उसी से कमाइये। अगल-बगल देखते नहीं हैं का? जो है रख दीजिए बजार में फटाक देनी उड़ जाएगा... कस्टमर का कमी है कोनो ?”18 कॉरपोरेट व्यवसाय ने हर उस कार्य को व्यवसाय का रूप दे दिया जिससे पूंजी प्रसार हो। यही कारण है कि एक दिन कुमार जैसा संवेदनशील व्यक्ति शिक्षा व्यवसाय में प्रवेश करता है। क्यों कुमार साहब! स्वागत है, स्वागत है हमारे यूनियन में। आखिर आप भी बन गए अँग्रेजी डॉक्टर। हें हें अच्छा है, अच्छा है, और हम तो पहले ही बोलते थे कि का किऊज-फियूज कराते रहते हैं फ्री का। अरे पैसा-वैसा कमाने का जुगाड़ लगाइए।”19

        पूंजीवादी अर्थतन्त्र में पूंजी के निजीकरण के कारण मानव जीवन में एकाधिकार और मुनाफा प्रेरित बाजार को बढ़ावा दिया है। इसी मुनाफा प्रेरित लाभ की भावना ने राजनीति और बाजार को दोस्ताना अंदाज में आगे बढ़ाया है। यहाँ पैसा ही सब कुछ है। सब कोई पैसे के पीछे भागते है। बड़े लोग भी पैसे के पीछे भागते हैं। अब देखो कहीं के कलक्टर की बीवी भी... अब क्या जरूरत है भाई। बस भाग रहे हैं पैसे के पीछे।20 बिन पानी डॉट कॉम की बुढ़िया के इकलौते बेटे ने कंपनी की नीति के खिलाफ कदम बढ़ाया- हम कंपनी के पानी का इस्तेमाल ही नहीं करेंगे।21 धरती के अंदर के पानी के उपयोग की इजाजत नहीं। कंपनीवालों ने मुल्क के सभी कुएं भरवा दिये और हैंड पंप उखड़वा दिये थे। दूसरी बार पानी की क़ीमत बढ़ी सिर्फ तीन महीने के अंदर। लोगों के बर्दाश्त की इंतहा हो गयी। बस मुखालफत के जुलूस पर गोली चलवा दी। इसी जगह पर मेरा जवान बेटा अपने ही खून में पड़ा था। अब तो मेरी मय्यत पर दो बूंद आँसू बहानेवाला भी कोई नहीं।22 इस कॉरपोरेट संस्कृति में सत्ता और कंपनी के साँठ-गांठ में आम नागरिक ही पिसता है। विज्ञापन के द्वारा प्रचार ये किया जाता है कि सुल्तान वाटर मैनेजमेंट के माहिर माने जाते थे23 और इसी का एक कदम था पूरे बाजार में पानी के कियास्क थे जिनमें डालर डालने पर ही पानी मिलता था और रिहायशी इलाकों में कंपनी ने इंतजाम किया ही था मय पानी के मीटरों के खूबसूरत और एफ़िशिएंट वाटर मैनेजमेंट। जगह- जगह पानी ही तो जिंदगी है आपकी जिंदगी हमारे हाथ है मेहरबानी करके कोओपरेट करें, आपकी जिंदगी अनमोल है तो फिर क़ीमत से क्यों घबराएँ।24 इस भूमंडलोत्तर परिदृश्य में राज्य और बाजार के संबंध ने आम नागरिक के शोषण को बढ़ावा दिया है।

        भूमंडलोत्तर भारत में पूंजी निवेश की राह आसान करने से रियल स्टेट्स व्यवसाय को पंख लग गए है। रियल स्टेट्स से एक तरफ सपनों का घर पाने की राह आसान हो गयी है वहीं दूसरी तरफ पूंजी केन्द्रीकरण एवं मोटा मुनाफा प्रेरणा ने मनुष्य को संवेदनहीनता की ओर बढ़ाया है। दो पीढ़ियों के संस्कारों में संक्रमण कहानी कांझड़ बाबा थानमें पिता पुत्र टकराहट के रूप में दिखाई देता है। शहर के नजदीक जमीन होने से बेटा जमीन को बिल्डर को बेचना चाहता है लेकिन पिता उसे सहमत नहीं। कांझड़ बाबा थान हमारे गाँव के उसी सीमान पर था जिस तरफ से शहर हमारे गाँव में घुसने को व्याकुल हो रहा था25 और इसी व्याकुलता के कारण पुत्र ने पिता को मौत के घाट उतार दिया। तब एक चीज है कि बुढ़वा जिंदा में जमीन नहिये बेचल कौ। बेटवै बैचल को।26

        नई उदारवादी व्यवस्था ने समाज में हासिये के लोगों को अपने अधिकारों के लिए सचेत किया, जिसने विभिन्न वर्गीय आंदोलनों को गति दी है। लेकिन पूंजी लालच ने अपने ही लोगों से छल-छद्म व्यवहार को बढ़ावा दिया है। कहानी अधिग्रहण में जेम्स भाषण दे रहा था- हमारी जमीन पर नज़र रखने वाले को मुंहतोड़ जवाब देंगे। जल जंगल जमीन आदिवासी27 पहचान है। यहीं जेम्स अपने दोस्त की धोखे से हत्या कर उसकी दो एकड़ जमीन को हड़प लेता है। तुम्हारा दोस्त था लेकिन इसका मतलब यह थोड़े ही है। उसके दो एकड़ जमीन पर तुम्हारी नज़र है।28 जेम्स ने उसी जमीन पर रियल स्टेट्स का बोर्ड लगाकर लिखा हम आपको घर देंगे, सपना नहीं29

        समग्रतः कहा जा सकता है कि पंकज मित्र ने कहानियों में भूमंडलोत्तर भारतीय ग्रामीण-कस्बाई जीवन में उन्मुक्त बाजार से होने वाले संक्रमण को आधार बनाया है।             

 संदर्भ :

1. पंकज मित्र, हुड़ुकलुल्लु, राजकमल प्रकाशन नई दिल्ली, 2008, फ्लेप पर

2. पंकज मित्र, ज़िद्दी रेडियो, राजकमल प्रकाशन नई दिल्ली, 2014, फ्लेप पर

3.  वहीं, पृष्ट-15

4. वहीं, पृष्ट-20

5. पंकज मित्र, हुड़ुकलुल्लु, राजकमल प्रकाशन नई दिल्ली, 2008, पृष्ट-66

6. चन्दन पाण्डेय, जंक्शन, दूसरा संस्करण, 2016, पृष्ट-40

7. राकेश बिहारी, केंद्र में कहानी, शिल्पायन प्रकाशन दिल्ली, 2013, पृष्ट- 18

8. पंकज मित्र, ज़िद्दी रेडियो, राजकमल प्रकाशन नई दिल्ली, 2014, पृष्ट- 29

9. वहीं, पृष्ट -31

10. पंकज मित्र, हुड़ुकलुल्लु, राजकमल प्रकाशन नई दिल्ली, 2008, पृष्ट-66

11. वहीं, पृष्ट-67

12. डॉ. शिवशरण कौशिक, तृषित उपभोक्ता और पोषित बाजार, अक्सर, जनवरी-मार्च, 2010, पृष्ट-79

13. पंकज मित्र, ज़िद्दी रेडियो, राजकमल प्रकाशन नई दिल्ली, 2014, पृष्ट-63

14. वहीं, पृष्ट-64

15. वहीं, पृष्ट-111

16. पंकज मित्र, हुड़ुकलुल्लु, राजकमल प्रकाशन नई दिल्ली, 2008, पृष्ट-15

17. वहीं, पृष्ट-16

18. पंकज मित्र, क्विज मास्टर और अन्य कहानियाँ, आधार प्रकाशन, 2011, पृष्ट-24

19. वहीं, पृष्ट-24

20. वहीं, पृष्ट-23

21. वहीं, पृष्ट-30

22. वहीं, पृष्ट-31

23. वहीं, पृष्ट-30

24. वहीं, पृष्ट-31

25. पंकज मित्र, वाशिंदा@तीसरी दुनिया, राजकमल प्रकाशन, 2008, पृष्ट-34

26. वहीं, पृष्ट-41

27. वहीं, पृष्ट-56

28. वहीं, पृष्ट-58

29. वहीं, पृष्ट-59

दिनेश कुमार शर्मा, शोधार्थी, हिन्दी विभाग, राजस्थान विश्वविद्यालय, जयपुर

सहायक आचार्य, गुजरात आर्ट्स एंड कॉमर्स कॉलेज (सायं), एलिसब्रिज, अहमदाबाद।

10dineshsharma@gmail.com, 9571826074

        अपनी माटी (ISSN 2322-0724 Apni Maati) अंक-37, जुलाई-सितम्बर 2021, चित्रांकन : डॉ. कुसुमलता शर्मा           UGC Care Listed Issue  'समकक्ष व्यक्ति समीक्षित जर्नल' ( PEER REVIEWED/REFEREED JOURNAL) 

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